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Read this article in Hindi to learn about:- 1. Meaning and Necessity of Chief Executive 2. Various Forms of Chief Executive 3. Functions and Powers.
मुख्य कार्यपालिका का अर्थ एवं आवश्यकता (Meaning and Necessity of Chief Executive):
किसी भी संगठन के शीर्ष पर उस संगठन के प्रमुख का पद होता है जो संगठन के सभी अधिकारियों व कर्मचारियों तथा उनकी कार्यविधियों पर नियन्त्रण रखता है । विभव संगठनों में प्रमुख को विभिन्न नामों से जाना जाता है व्यावसायिक संगठन में शीर्षस्थ प्रमुख को ‘महाप्रबन्धक’ अथवा ‘सामान्य प्रबन्धक’ (General Manager) के नाम से सम्बोधित किया जाता है ।
संगठन के पर्यवेक्षण निर्देशन व निरीक्षण का उत्तरदायित्व उसी पर होता है । इसी प्रकार राज्य के प्रशासकीय संगठन का प्रमुख ‘मुख्य कार्यपालिका’ (Chief Executive) कहलाता है प्रशासन के प्रत्येक क्षेत्र का नेतृत्व वही करता है । विश्व के विभिन्न देशों में कार्यपालिका का स्वरूप वहाँ की संवैधानिक व्यवस्था के अनुरूप भिन्न-भिन्न होता है ।
मुख्य कार्यपालिका से अभिप्राय उस व्यक्ति विशेष या व्यक्ति समूह से है जो किसी भी संगठन की प्रशासनिक व्यवस्था का नेतृत्व करता है तथा संगठन के संचालन हेतु अन्तिम रूप से उत्तरदायी होता है ।
वह संगठन की प्रशासनिक व्यवस्था के शीर्ष पर होता है । डिमॉक (Dimock) के अनुसार- ”मुख्य कार्यपालक संगठन में कठिनाइयों का अन्त करने वाला पर्यवेक्षक एवं आगामी कार्यक्रम का प्रवर्तक होता है ।” मुख्य कार्यपालक की आवश्यकता एवं महत्व पर प्रकाश डालते हुए प्रो. बीड लिखते हैं- ”उच्च स्तरीय नीति के विकास में नेतृत्व प्रशासकीय प्रबन्धक के साथ इतना घुल मिल गया है कि अधिकांस सरकारों में तथा प्राय: सभी व्यक्तिगत संगठनों में दोनों कार्यों को जानबूझकर एक ही व्यक्ति को सौंप दिया जाता है ।”
इसी तथ्य के आधार पर मुख्य कार्यपालक की स्थिति अन्य अरिष्ट अधिकारियों की अपेक्षा उल्लेखनीय बन गई है व्यवहार में यह अनुभव किया जाता रहा है कि जब भी प्रशासनिक एकता कमजोर हुई है तब-तब प्रशासन के लिये खतरा उत्पन्न हो गया है । इससे मुख्य कार्यपालिका के पद को और अधिक महत्व दिया जाने लगा है । प्रशासन में एकता, सामंजस्य, सहयोग व समरूपता के लिये यह आवश्यक है कि मुख्य कार्यपालिका के पद को शक्ति-सम्पन्न बनाया जाये ।
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मुख्य कार्यपालिका के पद की आवश्यकता निम्नलिखित तथ्यों में निहित है:
1. प्रशासनिक अनियमितताओं, विलम्ब एवं भ्रष्टाचार को दूर करने हेतु ।
2. प्रशासन में कुशलता एवं मितव्ययिता लाने हेतु ।
3. जनता के अधिकाधिक कल्याण एवं उत्तम सेवाएँ प्रदान करने हेतु ।
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4. देश की सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत बनाने हेतु ।
5. जातीय, साम्प्रदायिक एवं प्रादेशिक आदि चुनौतियों का सामना करने हेतु ।
मुख्य कार्यपालिका के विभिन्न प्रकार (Various Forms of Chief Executive):
किसी भी देश की मुख्य कार्यपालिका का स्वरूप वहाँ की संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार तय किया जाता है जैसा कि अध्याय के प्रारम्भ में वर्णित किया गया है कि मुख्य कार्यपालिका को सामान्यतया निम्नलिखित तीन समूहों में वर्गीकृत किया जाता रहा है:
1. संसदात्मक एवं अध्यक्षात्मक कार्यपालिका,
2. नाममात्र की एवं वास्तविक कार्यपालिका,
3. एकल एवं बहुल कार्यपालिका ।
1. संसदात्मक एवं अध्यक्षात्मक कार्यपालिका (Parliamentary and Presidential Executive):
संसदात्मक शासन-व्यवस्था में कार्यपालिका व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी होती है । इसमें कार्यपालिका शक्ति किसी एक व्यक्ति में निहित न होकर मन्त्रिमण्डल या कैबिनेट में निहित रहती है, अत: इसे ‘मन्त्रिमण्डलात्मक शासन’ भी कहते हैं । साथ ही कार्यपालिका व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी होती है, अत: इसे ‘उत्तरदायी शासन’ भी कहा जाता है ।
संसदात्मक शासन के सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक रूप में भनता के कुछ लक्षण दृष्टिगोचर होते हैं । व्यवहार में इस व्यवस्था में शासन का प्रधान ‘नाममात्र का प्रधान’ (Nominal Head) होता है जो कि राजा या राष्ट्रपति होता है । शासन का वास्तविक संचालन वास्तविक प्रधान मंत्रिपरिषद द्वारा किया जाता है ।
संसदात्मक कार्यपालिका की प्रमुख विशेषताएँ (Chief Characteristics of Parliamentary Executive):
संसदात्मक शासन की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
(i) नाममात्र की एवं वास्तविक कार्यपालिका (Nominal and Real Executive):
राज्य का प्रधान नाममात्र की कार्यपालिका होता है, जबकि वास्तविक कार्यपालिका मन्त्रिपरिषद् होती है । नाममात्र की कार्यपालिका के उदाहरण हैं- इंग्लैण्ड का सम्राट व भारत का राष्ट्रपति । सैद्धान्तिक दृष्टि से ये शक्ति-सम्पन्न होते हैं, किन्तु व्यवहार में इन शक्तियों का प्रयोग वास्तविक कार्यपालिका अर्थात मन्त्रिपरिषद् द्वारा किया जाता है ।
(ii) कार्यपालिका, व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी (Executive Responsible towards Legislative):
संसदात्मक शासन में व्यवस्थापिका एवं कार्यपालिका एक-दूसरे से घनिष्ठ रूप में सम्बन्धित होती है । निम्न सदन में बहुमत प्राप्त राजनीतिक दल का नेता प्रधानमन्त्री का पद ग्रहण करता है तथा राजनीतिक दल में से ही मन्त्रिपरिषद् का निर्माण करता है । वास्तविक कार्यपालिका अथवा मंत्रिपरिषद अपने कार्यों के लिए अन्तिम रूप से इसी लोकप्रिय सदन के प्रति उत्तरदायी होती है ।
(iii) अनिश्चित कार्यकाल (No Fixed Tenure):
संसदात्मक शासन में कार्यपालिका का कार्यकाल निश्चित नहीं होता है । यदि व्यवस्थापिका द्वारा कार्यपालिका के प्रति अविश्वास प्रकट किया जाता है, तो कार्यपालिका को अपने पद से त्यागपत्र देना पड़ता है ।
(iv) व्यक्तिगत उत्तरदायित्व (Personal Responsibility):
मन्त्रिमण्डल के सदस्य अपने-अपने विभागों के अध्यक्ष होते हैं । विभाग का कार्य-संचालन उन्हीं के नेतृत्व में सम्पन्न होता है । इस प्रकार विभाग के कार्यों के लिये वे व्यक्तिगत रूप से व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी होते हैं ।
(v) सामूहिक उत्तरदायित्व (Collective Responsibility):
मन्त्रिमण्डल के सदस्य सामूहिक रूप से भी व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी होते हैं । नीति सम्बन्धी प्रश्न पर व्यवस्थापिका (लोकसभा) में किसी एक मन्त्री की पराजय सारे मन्त्रिमण्डल की पराजय मानी जाती है । मन्त्रिमण्डल के सदस्य ‘एक साथ डूबते व तैरते हैं ।’
(vi) प्रधानमन्त्री का शासन (Rule of Prime Minister):
संसदीय शासन में प्रधानमन्त्री को वास्तविक नेता माना जाता है । वह निम्न सदन में बहुमत दल का नेता होता है । इंग्लैण्ड में लोक सदन (House of Commons) तथा भारत में लोकसभा (House of People) में बहुमत दल का नेता प्रधानमन्त्री के रूप में नियुक्त किया जाता है ।
अध्यक्षात्मक कार्यपालिका की प्रमुख विशेषताएँ (Chief Characteristics of Presidential Executive):
अध्यक्षात्मक कार्यपालिका की प्रमुख विशेषताएँ अग्रलिखित हैं:
(a) इकहरी कार्यपालिका (Single Executive):
अध्यक्षात्मक शासन में नाममात्र की एवं वास्तविक कार्यपालिका में कोई अन्तर नहीं होता है । समस्त शक्तियाँ राष्ट्रपति में केन्द्रित होती हैं तथा वही वास्तविक कार्यपालिका होता है । वह राज्य भी करता है और शासन भी ।
(b) कार्यपालिका एवं व्यवस्थापिका का पृथक्करण (Separation of Executive and Legislature):
इसमें कार्यपालिका और व्यवस्थापिका में पृथक्करण होता है । यह मॉण्टेस्क्यू के ‘शक्ति-पृथक्करण सिद्धान्त’ पर आधारित है । कार्यपालिका के सदस्य न तो व्यवस्थापिका के सदस्य होते हैं और न ही उसके प्रति उत्तरदायी होते हैं । व्यवस्थापिका व कार्यपालिका एक दूसरे से स्वतन्त्र रहती हैं ।
(c) कार्यकाल की निश्चितता (Fixed Tenure):
अध्यक्षात्मक कार्यपालिका का कार्यकाल निश्चित होता है । कार्यपालिका प्रधान (राष्ट्रपति) का निर्वाचन एक निश्चित अवधि के लिये किया जाता है । व्यवस्थापिका के विश्वास-अविश्वास का उसके कार्यकाल पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है । कार्यपालिका प्रधान को एक निश्चित प्रक्रिया ‘महाभियोग’ के द्वारा ही पदच्युत किया जा सकता है ।
2. नाममात्र की एवं वास्तविक कार्यपालिका (Nominal and Real Executive):
नाममात्र की कार्यपालिका से तात्पर्य उस कार्यपालिका से है जिसे संविधान द्वारा सर्वोच्च प्रशासनिक शक्ति प्रदान की गयी हो किन्तु व्यवहार में जिसका प्रयोग किसी अन्य के द्वारा किया जाता हो । प्रशासन के समस्त कार्य उसी के नाम से संचालित किए जाते हैं जबकि उन कार्यों के सम्पादन में वास्तविक शक्ति का प्रयोग वास्तविक कार्यपालिका द्वारा किया जाता है ।
भारत व ब्रिटेन की शासन व्यवस्थाओं में इसका अच्छा उदाहरण देखने को मिलता है । भारत में ‘राष्ट्रपति’ तथा ब्रिटेन में ‘सम्राट’ का पद नाममात्र की कार्यपालिका का है । वास्तविक शक्ति प्रधानमन्त्री व उसकी मन्त्रिपरिषद् के हाथों में रहती है ।
संक्षेप में, संसदीय शासन-व्यवस्था में नाममात्र की एवं वास्तविक कार्यपालिका का अस्तित्व देखने को मिलता है ।
संवैधानिक दृष्टि से राज्य प्रमुख समस्त शक्तियों का सोत है जो कि नाममात्र की कार्यपालिका कहलाता है, क्योंकि उसको प्रदत्त समस्त शक्तियों का वास्तव में उपयोग प्रधानमन्त्री व उसकी मन्त्रिपरिषद द्वारा किया जाता है । वही वास्तविक कार्यपालिका कहलाती है । अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली में वास्तविक कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होती है ।
3. एकल एवं बहुल कार्यपालिका (Single and Plural Executive):
एकल कार्यपालिका से तात्पर्य उस कार्यपालिका संगठन से है जिसमें कार्यपालिका सम्बन्धी समस्त शक्तियाँ एक ही व्यक्ति में निहित होती हैं, जबकि इसके विपरीत बहुल कार्यपालिका में कार्यपालिका की शक्तियाँ विभिन्न व्यक्तियों में बँटी होती हैं । वस्तुत: ये दोनों संसदात्मक एवं अध्यक्षात्मक कार्यपालिका के ही रूप हैं ।
एकल कार्यपालिका का आदर्श स्वरूप संयुक्त राज्य अमेरिका ब्राजील एवं दक्षिणी अमेरिका में देखने को मिलता है जबकि बहुल कार्यपालिका का सर्वोत्तम उदाहरण स्विट्जरलैण्ड की शासनव्यवस्था में देखा जा सकता है । वर्तमान में अमेरिका का राष्ट्रपति एकल कार्यपालिका का सर्वोत्तम उदाहरण है ।
इसके विपरीत स्विट्जरलैण्ड में कार्यपालिका सत्ता सात सदस्यों की एक संघीय परिषद् में निवास करती है ओर यह संघीय परिषद् सामूहिक रूप से राज्य की कार्यपालिका प्रधान के रूप में कार्य करती है । कतिपय विद्वानों के मतानुसार भारत व इंग्लैण्ड के संसदीय शासन भी एकल कार्यपालिका के उदाहरण हैं ।
मुख्य कार्यपालिका के कार्य एवं शक्तियाँ (Functions and Powers of the Chief Executive):
मुख्य कार्यपालिका को सामान्यतया दो प्रकार के कार्य सम्पादित करने पड़ते हैं:
1. राजनीतिक कार्य एवं
2. प्रशासनिक कार्य ।
1. राजनीतिक कार्य (Political Functions):
मुख्य कार्यपालिका के राजनीतिक कार्य निम्नलिखित हैं:
(i) मुख्य कार्यपालिका को व्यवस्थापिका एवं अपने राजनीतिक दल के साथ पूर्ण समन्वय एवं सहयोग की स्थिति बनाकर रखनी होती है । यह आवश्यक है, क्योंकि कार्यपालिका का अस्तित्व इन दोनों की स्वीकृति पर आवश्यक है । प्रशासन के सफल संचालन एवं वित्त की आवश्यकता की पूर्ति हेतु भी इन दोनों का विश्वास प्राप्त करना आवश्यक हो जाता है ।
(ii) निर्धारित योजनाओं की क्रियान्विति करना भी मुख्य कार्यपालिका का दायित्व है । लोक कल्याणकारी योजनाओं को क्रियान्वित करके ही जन-समर्थन की प्राप्ति की जा सकती है ।
(iii) मुख्य कार्यपालिका जन-इच्छाओं एवं जन-समस्याओं को जानने तथा विशाल जमनत तैयार करने की दिशा में भी प्रयासरत रहती है क्योंकि ‘जनमत’ ही आधुनिक लोकतन्त्र का प्रमुख आधार है ।
(iv) मुख्य कार्यपालिका आवश्यकता पड़ने पर व्यवस्थापिका एवं जनता का मार्ग-निर्देशन भी करती है ।
2. प्रशासनिक कार्य (Administrative Functions):
मुख्य कार्यपालिका के प्रशासनिक कार्यों के सम्बन्ध में विभिन्न मत प्रस्तुत किये जाते हैं ।
लूथर गुलिक के पोस्टकॉर्ब (POSDCORB) शब्द के अनुसार कार्यपालिका के प्रशासनिक कार्य निम्नलिखित हैं:
(i) नियोजन,
(ii) संगठन,
(iii) कार्मिकों की व्यवस्था,
(iv) निर्देशन,
(v) समन्वय,
(vi) प्रतिवेदन,
(vii) बजट ।
प्रो. वीग ने मुख्य कार्यपालिका के कार्यों को दो वर्गों में विभक्त किया है:
(a) प्रशासनिक नियोजन व निर्देशन तथा
(b) समन्वय एवं प्रशासनिक प्रतिवेदन ।
एल. डी. ह्वाइट के अनुसार- मुख्य कार्यपालिका आठ प्रकार के कार्य करती है:
(i) अनुकूल वातावरण का निर्माण,
(ii) नीति-निर्माण,
(iii) निर्देश देना,
(iv) बजट बनाना,
(v) कार्मिकों का चयन,
(vi) निरीक्षण एवं नियन्त्रण,
(vii) पद-विमुक्ति एवं
(viii) जन-सम्पर्क ।
चेस्टर आई. बर्नार्ड के मतानुसार- किसी भी संगठन का मुख्य कार्यकारी निम्नलिखित कार्यों को सम्पादित करता है:
(a) सम्प्रेषण प्रणाली को बनाये रखना,
(b) व्यक्तियों से आवश्यक सेवाएँ प्राप्त करना तथा
(c) संगठन के उद्देश्यों व लक्ष्यों का निर्धारण करना ।
विभिन्न मतों के विश्लेषण के आधार पर मुख्य कार्यपालिका के अग्रलिखित प्रशासनिक कार्य बताये जा सकते हैं:
(i) नीति निर्धारण (Policy Making):
प्रशासनिक नीति की रूपरेखा तैयार करने का दायित्व मुख्य कार्यपालिका के ऊपर होता है । सामान्य एवं विशिष्ट नीतियों के निर्धारण के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण निर्णय मुख्य कार्यपालिका द्वारा ही लिए जाते हैं ।
प्रबन्ध नीति के गम्भीर प्रश्नों का निर्णय भी वही करती है । सैद्धान्तिक दृष्टि से नीति-निर्माण का कार्य व्यवस्थापिका का समझा जाता है, किन्तु व्यवहार में नीति-निर्माण में सर्वाधिक भागेदारी मुख्य कार्यपालिका की ही होती है ।
(ii) नियोजन (Planning):
किसी भी कार्य को करने से पूर्व उसकी योजना तैयार करना नियोजन कहलाता है । मुख्य कार्यपालक अर्थात् प्रधानमन्त्री का यह दायित्व होता है कि वह शासन के कुशल संचालन हेतु मन्त्रियों की सहायता से नीति-निर्माण करें । इन नीतियों को अनुमोदन हेतु व्यवस्थापिका के समक्ष रखा जाता है । व्यवस्थापिका द्वारा अनुमोदित होने के उपरान्त ये नीतियाँ कानून का रूप ले लेती हैं ।
(iii) संगठन निर्माण (Establishment of Organization):
प्रशासनिक नीतियों के क्रियान्वयन हेतु प्रशासनिक सफलता प्राप्त करने के लिए एक सुव्यवस्थित संगठन का होना परम आवश्यक है । संगठन की रूपरेखा व्यवस्थापिका निर्धारित करती है किन्तु उसका आन्तरिक स्वरूप कार्यपालिका द्वारा निर्धारित किया जाता है । प्रशासनिक लक्ष्यों की पूर्ति हेतु विभिन्न उपकरण यथा ब्यूरो, निगम, समितियाँ आदि नियुक्त की जाती हैं । किन्हीं विशिष्ट लक्ष्यों की पूर्ति हेतु समय-समय पर आयोगों की नियुक्ति भी की जाती है ।
(iv) कार्मिकों की व्यवस्था (Staffing):
मुख्य कार्यपालिका के शासन के संचालन हेतु पदाधिकारियों की नियुक्ति करती है । उदाहरणार्थ भारत में राष्ट्रपति राज्यपालों उच्चतम न्यायालय तथा राज्य के उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति राजदूतों एवं संघ लोक सेवा आयोग के सदस्यों की नियुक्ति मुख्य कार्यपालिका द्वारा ही की जाती है । जिन पदाधिकारियों को वह नियुक्त करती है उन्हें पदच्युत करने का भी अधिकार रखती है ।
(v) निर्देशन (Direction):
मुख्य कार्यकारी का एक महत्वपूर्ण दायित्व अधीनस्थों को आवश्यक निर्देश देना है । वह सम्पूर्ण प्रशासन के कार्यों का निरीक्षण व नियन्त्रण करता है । किसी भी विभाग के कार्यों की जाँच-पड़ताल करने का अधिकार मुख्य कार्यकारी को प्राप्त होता है । वह नियमों, विनियमों एवं आदेशों के द्वारा प्रशासन का निर्देशन करता है ।
(vi) समन्वय (Co-Ordination):
संगठन की विभिन्न इकाइयों के मध्य समन्वय स्थापित करना मुख्य कार्यपालिका का प्रमुख कर्त्तव्य है । समन्वय की प्रक्रिया में यह देखा जाता है कि विभिन्न इकाइयों के मध्य सहयोग की भावना होनी चाहिए तथा कार्यों में दोहराव (Duplication) नहीं होना चाहिए । निम्न स्तरों में उत्पन्न संघर्ष या मतभेद का निवारण भी मुख्य कार्यपालिका के द्वारा ही किया जाता है ।
(vii) बजट बनाना (Budgeting):
प्रशासनिक दायित्वों की पूर्ति हेतु धन की आवश्यकता होती है । इस हेतु कार्यपालिका बजट तैयार करके व्यवस्थापिका के सम्मुख प्रस्तुत करती है । व्यवस्थापिका द्वारा स्वीकृति मिलने के बाद इसे क्रियान्वित किया जाता है । राज्य के सम्पूर्ण संसाधनों का आकलन करने के बाद ही बजट तैयार किया जाता है । बजट पास होने के बाद राज्यों एवं विभिन्न विभागों के मध्य आवश्यकतानुसार धन वितरित किया जाता है ।
(viii) जन-सम्पर्क (Public Relation):
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आधुनिक लोक-कल्याणकारी राज्य में जनहित को सर्वोपरि महत्व दिया जाता है जनहित तभी सम्भव हो सकता है जबकि जन-आकांक्षाओं की पूर्ति की जाये ।
जन-आकांक्षाओं एवं जनता की आवश्यकताओं से परिचित होने के लिए जन-सम्पर्क अपरिहार्य है । मुख्य कार्यपालिका द्वारा जन-सम्पर्क हेतु निम्नलिखित साधन प्रयोग में लाये जाते हैं- दूरदर्शन, आकाशवाणी, समाचार-पत्र, पत्रकार सम्मेलन आदि । इसी उद्देश्य को दृष्टिगत रखते हुए ‘जन सम्पर्क विभाग’ की स्थापना की जाती है ।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि मुख्य कार्यपालिका को व्यापक अधिकार व दायित्व सौंपे जाते हैं जिनकी पूर्ति पर्याप्त शक्ति स्रोतों एवं वैयक्तिक गुणों के आधार पर ही सम्भव है । उसे व्यापक रूप से संवैधानिक शक्तियाँ सौंपी जाती हैं ।
वैधानिक समर्थन के साथ ही जन-समर्थन व जन-सहयोग भी परमावश्यक है । इसके अतिरिक्त, मुख्य कार्यपालिका में व्यक्तिगत गुणों यथा शारीरिक सामर्थ्य, विवेक, स्थिर व प्रखर बुद्धि, संयम, सहनशीलता, वाक्पटुता आदि गुणों का होना भी आवश्यक है उसमें एक अच्छे नेता के गुण भी होने चाहिए ।
नेतृत्व के आधार पर ही सभी अधिकारियों को एकता के सूत्र में बाँधा जा सकता है तथा उन्हें अपने विचारों व नीतियों के अनुकूल ढाला जा सकता है । एक अच्छे नेता के रूप में तीक्ष्ण बुद्धि होनी चाहिए जिससे कि देश की ज्वलन्त समस्याओं का वह सहज ही समाधान प्रस्तुत कर सके । मुख्य कार्यकारी का दृष्टिकोण हर प्रकार से उदार व परिपक्व होना चाहिए ।