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Read this article in Hindi to learn about:- 1. Meaning and Characteristics of Code of Conduct 2. Code of Conduct in India 3. Need of Discipline 4. Types of Disciplinary Action.
आचार-संहिता का अर्थ एवं विशेषताएँ (Meaning and Characteristics of Code of Conduct):
प्रशासनिक सेवा में कार्यरत कर्मचारियों व अधिकारियों को ऐसी नियमावली का पालन करना होता है जो कि प्रशासनिक सेवा हेतु अनिवार्य होती है नियमों के इस संकलन को ही ‘आचार-संहिता’ कहा जाता है । यह आचार-संहिता ही कर्मचारियों व अधिकारियों को यह ज्ञान कराती है कि उनको किन परिस्थतियों में किस प्रकार का व्यवहार करना चाहिए ?
अपने कार्यस्थल पर किस प्रकार का दृष्टिकोण अपनाना चाहिए ? आचार-संहिता के माध्यम से कर्मचारी संयत व अनुशासित रहते हैं । शासकीय कर्मचारियों को अपना व्यवहार इसलिए भी अनुशासित रखना चाहिए क्योंकि जनता उनके व्यवहार का अनुकरण करती है । आचार-संहिता के द्वारा अहि कारियों को मनमानी करने से रोका जा सकता है ।
आचार-संहिता की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
(1) आचार-संहिता देश में प्रचलित विधि से ऊपर होती है । कई बार नागरिक अधिकारों को भी सीमित कर देती है ।
(2) आचार-संहिता के नियमों का पालन करना नैसर्गिक अधिकारों से वंचित करना नहीं है ।
(3) आचार-संहिता के अनुसार प्रत्येक कर्मचारी को संविधान के प्रति तथा अपने उच्च अधिकारी के प्रति निष्ठा की शपथ लेनी होती है ।
(4) व्यक्तिगत स्वार्थ व साम्प्रदायिकता से दूर रहते हुए पूर्ण ईमानदारी से कार्य करना होता है ।
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(5) ऐसे कार्यों से बचना होता है जिनसे प्रशासनिक सेवा की प्रतिष्ठा को धक्का लगे ।
(6) व्यक्तिगत व्यापार व राजनीति से दूर रहना होता है ।
भारत में आचार-संहिता (Code of Conduct in India):
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भारत में लोक सेवकों से सम्बन्धित आचार-संहिता में निम्नलिखित बातें सम्मिलित हैं:
(1) सरकारी सेवकों को अपने कर्त्तव्यों का पालन पूर्ण निष्ठा व ईमानदारी से करना चाहिए ।
(2) लोक सेवकों को न तो किसी राजनीतिक दल का सदस्य बनना चाहिए और न ही किसी राजनीतिक गतिविधि में भाग लेना चाहिए ।
(3) सार्वजनिक रूप से न तो सरकार की आलोचना करनी चाहिए और न ही सरकार का कोई गोपनीय रहस्य प्रकट करना चाहिए ।
(4) राजनीतिक उद्देश्य से संग्रह किये जाने वाले किसी फण्ड में न तो कोई धनराशि देनी चाहिए और न ही चुनाव प्रचार में भाग लेना चाहिए ।
(5) एक निश्चित मूल्य से अधिक का उपहार मिलने पर सरकार को इसकी जानकारी देनी चाहिए ।
(6) पहली पत्नी के जीवित रहते दूसरा विवाह नहीं किया जा सकता है । यदि कोई व्यक्ति किन्हीं विशेष परिस्थितियोंवश ऐसा करता है तो उसे सरकार से लिखित स्वीकृति लेनी चाहिए ।
(7) अपनी चल व अचल सम्पत्ति की जानकारी सरकार को देना आवश्यक है ।
(8) कोई भी सरकारी कर्मचारी शासन की पूर्व स्वीकृति के बिना निजी व्यापार नहीं कर सकता है ।
(9) व्यक्तिगत जीवन में अपने धर्म का आचरण किया जा सकता है, किन्तु सार्वजनिक रूप से धर्मनिरपेक्षता का आचरण किया जाना चाहिए ।
(10) चौदह वर्ष से कम आयु के बच्चों को नौकरी पर नहीं रखा जाना चाहिए ।
अनुशासन की आवश्यकता (Need of Discipline):
अनुशासनात्मक कार्यवाही एक ऐसा नियन्त्रण है जो अधिकारियों व अधीनस्थों के मध्य स्वस्थ सम्बन्धों की आधारशिला रखता है । इससे कर्मचारी नैतिक ईमानदार कार्यकुशल एवं कर्त्तव्यनिष्ठ बनते हैं ।
मेयर्स के अनुसार- ”प्रभावशाली अनुशासन सकारात्मक, बुद्धिमत्तापूर्ण नेतृत्व तथा अधीनस्थों के इच्छुक सहयोग की उपज है ।”
डॉ. ह्वाइट के अनुसार अनुशासनात्मक कार्यवाही करने की आवश्यकता निम्नलिखित कारणों से उत्पन्न होती है:
(1) कर्त्तव्यपालन व कुशलता का अभाव
(2) आज्ञा अथवा नियमों का उल्लंघन,
(3) निष्ठा व नैतिकता का अभाव,
(4) ईमानदारी का अभाव,
(5) घूसखोरी, नशाखोरी व भ्रष्टाचार ।
अनुशासनात्मक कार्यवाही के प्रकार (Types of Disciplinary Action):
अनुशासनात्मक कार्यवाही दो प्रकार की होती है:
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(1) अनौपचारिक कार्यवाही:
नियम भंग करने वाले को यद्यपि कोई दण्ड नहीं दिया जाता है, किन्तु अधिकारी द्वारा नाराजगी व्यक्त की जाती है । नाराजगी दिखाने के कई तरीके हो सकते हैं । जैसे-रूखा व्यवहार कम महत्वपूर्ण कार्य सौंपना सत्ता व विशेषाधिकारों में कमी आदि ।
(2) औपचारिक कार्यवाही:
औपचारिक कार्यवाही अपराध प्रमाणित होने पर की जाती है । इसमें दण्ड देने के लिये कानून द्वारा निर्धारित प्रक्रिया अपनाई जाती है । इसमें अपराध छोटा होने पर लघु दण्ड जैसे कि वेतन वृद्धि में विलम्ब, चेतावनी, भर्त्सना आदि किया जाता है, किन्तु अपराध बड़ा होने पर निलम्बन, पदावनति आदि बड़े दण्ड दिये जाते हैं ।
उल्लेखनीय है कि कोई भी दण्ड सरकार द्वारा ‘लोक सेवा आयोग’ से परामर्श किये बिना जारी नहीं किया जा सकता है ।