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Read this article in Hindi to learn about the promotion system for civil servants.
पदोन्नति व्यवस्था के अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Promotion System):
लोक सेवकों को कार्यकुशल एवं दक्ष बनाये रखने की सबसे बड़ी प्रेरणा (Incentive) उनकी पदोन्नति (Promotion) का होना है । पदोन्नति का सम्बन्ध केवल उन्हीं कार्मिकों से होता है जो कि पहले से संगठन में किसी पद पर होते हैं । यही कारण है कि पदोन्नति के लिए ‘भीतर या अन्दर से भर्ती’ (Selection from within) का भी प्रयोग किया जाता रहा है । पदोन्नति से आशय है- दायित्वों एवं वेतनमान में वृद्धि होना ।
पदोन्नति से तात्पर्य प्रत्येक वर्ष होने वाला वार्षिक वेतन वृद्धि से नहीं है वरन् इसका अर्थ कर्मचारी की पद सम्बन्धी प्रस्थिति (Status) में वृद्धि से है ।
पदोन्नति को विभिन्न विद्वानों ने निम्न शब्दों में परिभाषित किया है- विलियम जी. टोरपे के अनुसार- ”पदोन्नति पदाधिकारी के एक पद से दूसरे पद पर पहुँचने की ओर संकेत करती है जो उच्चतर श्रेणी या उच्चतर न्यूनतम वेतन वाला होता है पदोन्नति का अर्थ कर्मचारी के कर्त्तव्यों व उत्तरदायित्वों में वृद्धि करना है ।”
विलोबी लिखते हैं- ”वेतन वृद्धि का अर्थ केवल यह है कि कर्मचारी के वर्तमान पद अथवा उसके कार्य की प्रकृति में कोई परिवर्तन किये बिना उसके वेतन में वृद्धि कर दी गयी है । पदोन्नति का अर्थ है कि कर्मचारी को निम्न स्तर के पद से उच्च स्तर के पद पर नियुक्त कर दिया गया है ।”
एल. डी. ह्वाइट के कथनानुसार- ”पदोन्नति का अर्थ है- किसी एक पद से दूसरे पद पर नियुक्ति ऐसा पद जो कि उच्चतर श्रेणी का है तथा जिसमें जटिलतर प्रकृति एवं अधिक बड़े उत्तरदायित्व का कार्य करना पड़ता है । इसमें पद-नाम परिवर्तन व वेतन वृद्धि शामिल हैं ।”
अत: स्पष्ट होता है कि पदोन्नति विभाग के अन्दर ही एक उच्चतर पद पर पहुँचना है । उच्च पद रिक्त होने पर विभाग के निम्न स्तरीय कर्मचारियों में से उसकी पूर्ति की जाती है । इस उच्च पदस्थिति में उत्तरदायित्वों व कार्यों में वृद्धि हो जाती है तथा उसके अनुसार ही वेतन वृद्धि भी होती है ।
पदोन्नति के सिद्धान्त (Principles of Promotion):
किसी भी संगठन में कर्मचारियों की पदोन्नति से सम्बन्धित दो सिद्धान्त प्रचलित हैं जिनका विवरण निम्नलिखित है:
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1. वरिष्ठता का सिद्धान्त,
2. योग्यता का सिद्धान्त ।
1. वरिष्ठता का सिद्धान्त (Principle of Seniority):
इसे ‘ज्येष्ठता का सिद्धान्त’ भी कहा जाता है । इसमें लम्बी अवधि से कार्यरत व्यक्तियों को पदोन्नति प्रदान की जाती है । अन्य शब्दों में पहले भर्ती होने वाले व्यक्ति की पदोन्नति पहले होती है । यह परम्परागत पद्धति आज भी यथावत् कायम है ।
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पक्ष में तर्क (Arguments in Favour):
वरिष्ठता के सिद्धान्त के पक्ष में निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किये जा सकते हैं:
(1) अधिक आयु व अनुभव वाले व्यक्तियों के उच्च पदों पर आने से उनकी प्रतिष्ठा बनी रहती है ।
(2) यह पद्धति स्वचालित है । कर्मचारियों को पदोन्नति के लिए भाग-दौड़ नहीं करनी पड़ती है ।
(3) इस पद्धति में आन्तरिक झगड़े समाप्त हो जाते हैं तथा राजनीतिक दवाब का भी कोई भय नहीं रहता है ।
(4) इसमें पदोलति न्यायोचित आधार पर होती है, अत: कर्मचारियों का मनोबल (Morale) ऊँचा होता है ।
(5) पदोन्नति निश्चित होने के कारण योग्य व्यक्ति इन सेवाओं की ओर आकर्षित होते हैं ।
(6) कर्मचारियों में ईर्ष्या या द्वेष की भावना नहीं आ पाती है ।
विपक्ष में तर्क (Arguments Against):
वरिष्ठता सिद्धान्त के विपक्ष में निम्नलिखित तर्क दिये जाते हैं:
(i) यह आवश्यक नहीं है कि वरिष्ठ व्यक्ति योग्य भी हो । इस प्रकार कई बार अयोग्य व्यक्ति पदोन्नति को प्राप्त कर उच्च पदों पर आसीन हो जाते हैं ।
(ii) वरिष्ठता के सिद्धान्त के अनुसार कई बार उच्च पदों पर रूढ़िवादी व अप्रगतिशील विचारों वाले व्यक्ति आसीन हो जाते हैं जो कि उचित मार्गदर्शन व नेतृत्व प्रदान नहीं कर सकते हैं ।
(iii) कर्मचारियों में अपने को योग्य बनाने का कोई उत्साह नहीं रह जाता है क्योंकि उन्हें मालूम होता है कि पदोन्नति वरिष्ठता के आधार पर ही होगी ।
(iv) कम आयु के कर्मचारी कितने भी योग्य क्यों न हों, किन्तु उनकी पदोलति के कोई अवसर नहीं होते हैं, इससे उनमें असन्तोष उत्पन्न होता है ।
(v) कई बार दो व्यक्तियों की कार्यविधि समान होने पर वरिष्ठता का निर्धारण करना कठिन हो जाता है । ऐसे में तथ्यों को तोड़ने मरोड़ने की प्रक्रिया प्रारम्भ होती है ।
2. योग्यता का सिद्धान्त (Principle of Merit):
पदोन्नति का यह तरीका अपेक्षाकृत आधुनिक एवं वैज्ञानिक है । इसमें योग्यता का मूल्यांकन करने के बाद पदोहाति की जाती है । यह सिद्धान्त कर्मचारियों को कुशलता से कार्य करने के लिए प्रेरित करता है ।
कर्मचारियों की योग्यता के मूल्यांकन हेतु निम्नलिखित विधियाँ काम में लायी जाती हैं:
(A) प्रतियोगी परीक्षाएँ,
(B) सेवा अभिलेख एवं
(C) विभागाध्यक्ष का व्यक्तिगत निर्णय ।
(A) प्रतियोगी परीक्षाएँ (Competitive Examination):
ये परीक्षाएँ तीन प्रकार की होती हैं:
(i) खुली प्रतियोगिता परीक्षा,
(ii) सीमित प्रतियोगिता परीक्षा,
(iii) उत्तीर्णता परीक्षा ।
(B) सेवा अभिलेख (Service Record):
इसमें कर्मचारियों की सेवा का एक विवरण रखा जाता है जिसके आधार पर कर्मचारियों की कार्य सम्पन्न करने की क्षमता का मूल्यांकन किया जाता है ।
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(C) विभागाध्यक्ष का व्यक्तिगत निर्णय (Personal Decision of Head of the Department):
कर्मचारी की पदोन्नति में विभागाध्यक्ष का निर्णय सर्वाधिक महत्वपूर्ण होता है । पदोन्नति की कोई भी प्रणाली क्यों न हो, किन्तु यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि पदोन्नति द्वारा कर्मचारियों में सामान्य सन्तोष, कर्त्तव्य निष्ठता, सहयोग एवं उच्च मनोबल की भावना विकसित होती है ।
भारत में भी पदोन्नति की दोनों प्रणालियाँ प्रयोग में लाई जाती हैं । पदोन्नति प्रणाली में सुधार लाने के उद्देश्य से समय-समय पर सिफारिशें प्रस्तुत की जाती रही हैं । छठे वेतन आयोग ने अपने प्रतिवेदन (2008) में ‘एश्योर्ड कैरियर प्रोग्रेशन’ (Assured Career Progression) की सिफारिश की जिसमें सभी कर्मचारियों एवं अधिकारियों को वर्ष में तीन पदोन्नति मिलना अनिवार्य कर दिया गया ।