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Read this article in Hindi to learn about the process of recruitment of civil servants.
लोक प्रशासन में कर्मचारियों की भर्ती की समस्या एक महत्वपूर्ण समस्या है । इसका कारण यह है कि किसी भी प्रशासन के कर्मचारी उसके आधार-स्तम्भ होते हैं । उनके बिना शासन संचालन की कल्पना नहीं की जा सकती है । इस सम्बन्ध में कर्मचारियों की भर्ती की समस्या एक विचारणीय समस्या है । मि. स्टाल के अनुसार- ”यह लोक कर्मचारियों के सम्पूर्ण ढाँचे की आधारशिला है ।” भर्ती की निश्चित प्रणाली का प्रारम्भ सर्वप्रथम चीन में हुआ । वर्तमान समय की भर्ती प्रणाली को प्रारम्भ करने का श्रेय प्रशा को दिया जाता है ।
भर्ती का अर्थ एवं समस्याएँ (Meaning and Problems of Recruitment):
‘भर्ती’ शब्द से अभिप्राय नियुक्ति से है । विभिन्न सरकारी नौकरियों में योग्य व्यक्तियों की नियुक्ति करना ही भर्ती है लोक प्रशासन के क्षेत्र में नियुक्ति व साक्षात्कार आदि का सम्मिलित नाम ही भर्ती है ।
डिमॉक के अनुसार- ”विशिष्ट कार्यों के लिये उचित व्यक्तियों को प्राप्त करना और कर्मचारियों के बड़े समूह के विज्ञापन निकालना या विशेष कार्य के लिये किसी उच्च दक्षता प्राप्त व्यक्ति की खोज ही भर्ती है ।”
एल. डी. ह्वाइट के शब्दों में- ”प्रतियोगिता परीक्षाओं रिक्त स्थानों व पदों के लिये व्यक्तियों को आकर्षित करना ही भर्ती है ।”
किंग्सले ने भर्ती को परिभाषित करते हुए लिखा है कि- ”यह वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा लोक-सेवा में नियुक्ति के लिए उचित प्रत्याशियों को प्रतियोगिता के लिए प्रवृत्त किया जाता है । यह एक व्यापक प्रक्रिया का अंग है जिसमें परीक्षा एवं प्रमाणीकरण की प्रक्रियाएँ भी सम्मिलित हैं ।”
इस प्रकार भर्ती के द्वारा योग्य कर्मचारियों की नियुक्ति करके निर्धारित प्रशासनिक लक्ष्यों की प्राप्ति का प्रयास किया जाता है ।
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जहाँ तक भर्ती की समस्याओं का प्रश्न है प्रो. विलोबी ने भर्ती की समस्या के अन्तर्गत निम्नलिखित पाँच बातों को रखा है:
(i) नियुक्ति सत्ता की स्थापना अर्थात नियुक्ति का अधिकार किसे प्राप्त हो ?
(ii) भर्ती कहाँ से हो – पदोन्नति द्वारा भीतर से अथवा बाहर से सीधी भर्ती ।
(iii) भिन्न-भिन्न पदों के लिये क्या अर्हताएँ (Qualifications) हों ?
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(iv) प्रत्याशियों की योग्यताओं का निर्धारण किस प्रकार किया जाये ? परीक्षाओं द्वारा, साक्षात्कार द्वारा अथवा मनोवैज्ञानिक परीक्ष्णों द्वारा ।
(v) योग्यताओं के निर्धारण हेतु किस प्रकार से प्रशासकीय तन्त्र की स्थापना की जाये ।
(i) नियुक्ति सत्ता की स्थापना (Establishment of Appointing Authority):
प्राय: मुख्य प्रशासक की नियुक्ति का अधिकार लोकतन्त्र में प्रतिनिधि संस्थाओं में निहित रहता है । मुख्य प्रशासक के अधीन अन्य कर्मचारियों की नियुक्ति का अधिकार प्राय: शासक को होता है । अखिल भारतीय सेवा अधिनियम के द्वारा अखिल भारतीय सेवाओं की भर्ती आदि का अधिकार भारत सरकार को दिया गया है ।
इस समस्या के सम्बन्ध में दो मत प्रस्तुत किये जाते हैं:
(a) जनता के द्वारा एवं
(b) सत्ता के द्वारा ।
आलोचकों के अनुसार जनता बड़ी संख्या में अधिकारियों को चुनने में सक्षम नहीं होती है । इसके अतिरिक्त लोग व्यक्तिगत स्वार्थों के प्रवाह में बह जाते हैं । एक अन्य मत यह प्रस्तुत किया जाता है कि केवल विधानमण्डल और कार्यपालिका के सदस्य ही जनता द्वारा चुने जाने चाहिये ।
अन्य पदाधिकारियों की भर्ती एक निश्चित प्रणाली द्वारा की जानी चाहिये उन्हें चुनने की शक्ति लोक सेवा आयोग जैसे किसी निकाय में निहित की जानी चाहिये । निस्संदेह इन दोनों में द्वितीय मत कहीं अधिक व्यावहारिक प्रतीत होता है ।
(ii) अन्दर या बाहर से भर्ती (Recruitment from within or without):
सरकारी कर्मचारियों की नियुक्ति दो प्रकार से की जाती है- अन्दर से अर्थात् पदोन्नति द्वारा (Through Promotion) तथा बाहर से अर्थात भर्ती (Direct Recruitment) । इसे ‘पदोन्नति बनाम प्रत्यक्ष भर्ती’ भी कहा जाता है । इन दोनों प्रणालियों के अपने लाभ व दोष हैं ।
उदाहरणार्थ- पदोन्नति भर्ती में कर्मचारियों को यह आश्वासन रहता है कि उत्साह व लगन से कार्य करने पर उनकी स्थिति में सुधार होगा । पदोन्नति का आधार अनुभव होता है ।
इससे कार्यकुशलता बनी रहती है । अनुभवी कर्मचारियों को नवीन उत्तरदायित्व सौंपने में कोई संकोच नहीं होता है किन्तु पदोन्नति द्वारा भर्ती के कुछ दोष भी हैं । जैसे कि अधिक योग्य व्यक्ति सेवाओं में आने से वंचित हो जाते हैं । इस पद्धति से शासन में रूढ़िवादिता उत्पन्न होती है । कई बार औसत से भी कम योग्यता वाले लोग सेवा के निम्न स्तरों में प्रवेश पाकर पदोन्नति द्वारा उच्चतम पदों तक पहुँच जाते हैं ।
प्रत्यक्ष भर्ती में चयन का क्षेत्र व्यापक होता है । नये व्यक्तियों से प्रशासन में प्रगतिशीलता व नवजीवन आता है । यह पद्धति सबके लिये समान अवसर की जनतन्त्रात्मक धारणा पर आधारित है । नये व्यक्ति अधिक उत्साह व अधिक रुचि से कार्य करते हैं किन्तु इस पद्धति के भी कतिपय दोष हैं । कई बार उच्च पदों पर अनुभवहीन व्यक्ति नियुक्त हो जाते हैं ।
पहले से सेवारत कर्मचारियों को पदोन्नति न मिलने के कारण उनका उत्साह ठण्डा पड़ जाता है । अनुभवहीन युवा अधिकारियों के अधीन कार्य करने में वृद्ध व अनुभवी व्यक्तियों के आत्मसम्मान को क्षति पहुँचती है । मितव्ययिता के दृष्टिकोण से भी यह पद्धति उपयुक्त नहीं है ।
भर्ती की इन दोनों पद्धतियों के गुण-दोषों पर दृष्टिपात करने से यह स्पष्ट हो जाता है कि कोई भी पद्धति अपने आप में पूर्ण नहीं है । यदि दोनों पद्धतियों को मिश्रित रूप से प्रयुक्त किया जाये तो सर्वोत्तम परिणाम प्राप्त होंगे ।
(iii) लोक सेवकों की आवश्यक योग्यताएँ (Qualifications Required for Public Employees):
प्रत्येक लोक सेवा में भर्ती के लिये कुछ पूर्वापेक्षित (Pre-Requisites) योग्यताएँ तय की जाती हैं ।
इन योग्यताओं को दो श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है:
(a) सामान्य योग्यता- इसके अन्तर्गत नागरिकता, निवास, लिंग, आयु आदि आते हैं ।
(b) विशिष्ट योग्यता- इसमें व्यक्तिगत योग्यता, तकनीकी ज्ञान व अनुभव आदि आते हैं ।
सामान्य योग्यताएँ:
सामान्यतया देश के नागरिकों को ही प्रशासनिक पद दिये जाते है । इसके अतिरिक्त उसी स्थान विशेष के व्यक्तियों को पदों पर नियुक्ति हेतु अधिक प्राथमिकता दी जाती है । कई बार भर्ती लिंग के आधार पर भी होती है । कुछ पदों पर स्त्रियों को नियुक्त नहीं किया जा सकता है । विभिन्न पदों के लिये आयु-सीमाएँ भी भिन्न-भिन्न होती हैं ।
विशिष्ट योग्यताएँ:
लोक सेवा के लिये न केवल सामान्य वरन् विशिष्ट शिक्षा प्राप्त होनी चाहिये । इसके लिये प्रवेश हेतु एक न्यूनतम शैक्षणिक स्तर का अनिवार्य रूप से होना भी आवश्यक कर दिया जाता है । शिक्षा के अतिरिक्त कई बार अनुभव को भी आवश्यक योग्यता घोषित कर दिया जाता है । इसके अतिरिक्त, ईमानदारी, निष्ठा व विनम्रता आदि गुणों को भी ध्यान में रखा जाता है ।
(iv) योग्यता निर्धारण की पद्धतियाँ (Methods of Determining Qualifications):
योग्यता निर्धारित करने के लिये निम्नलिखित पद्धतियाँ अपनाई जाती हैं:
(a) नियुक्ति करने वाले अधिकारी का स्वविवेक (Discretion of the Appointing Authority):
यदि अधिकारी निष्पक्ष व ईमानदार हों तो यह पद्धति अनुकूल है किन्तु यदि अधिकारी पूर्वाग्रह से मुक्त न हों तो उनका निर्णय सही नहीं हो पायेगा ।
(b) आचार-योग्यता के प्रमाण-पत्र (Certificates of Ability and Character):
उम्मीदवारों की योग्यता की जाँच उनके प्रमाणपत्रों के माध्यम से भी हो जाती है किन्तु प्रमाणपत्रों को ही आधार नहीं बनाया जा सकता है ।
(c) पूर्व अनुभव के रिकॉर्ड (Record of Previous Experience):
पूर्व अनुभवों के आधार पर भी अम्यर्थी की योग्यता का मूल्यांकन किया जा सकता है ।
(d) परीक्षाएँ (Examinations):
परीक्षाएँ दो प्रकार की हो सकती हैं:
(a) प्रतियोगी एवं
(b) अप्रतियोगी ।
प्रतियोगितात्मक परीक्षाएँ निम्नलिखित प्रकार की होती हैं:
(A) लिखित परीक्षा-लिखित परीक्षा दो उद्देश्यों से ली जाती हैं:
(i) बौद्धिक गुणों व मानसिक क्षमता की जाँच हेतु ।
(ii) तकनीकी अथवा व्यावसायिक ज्ञान की जाँच हेतु ।
लिखित परीक्षाओं का उद्देश्य सामान्य बुद्धिमत्ता का पता लगाना होता है । लिखित परीक्षाएँ भी दो प्रकार की होती हैं- संक्षिप्त उत्तर परीक्षाएँ एवं निबन्धात्मक परीक्षाएँ ।
(B) मौखिक परीक्षाएँ या साक्षात्कार (Viva or Interview):
केवल लिखित परीक्षा के द्वारा ही अभ्यर्थी की पूर्ण योग्यता का मूल्यांकन सम्भव नहीं है । इसके लिए मौखिक परीक्षा भी आवश्यक है साक्षात्कार द्वारा उसके व्यक्तित्व के कुछ अच्छे-बुरे पहलू उभरकर सामने आते हैं ।
मौखिक परीक्षा चार प्रकार की होती है:
(a) चयन मण्डल प्रक्रिया- विशेषज्ञों की भर्ती हेतु ।
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(b) मौखिक प्रश्नोत्तर प्रणाली- इसका उद्देश्य केवल यह पता लगाना होता है कि उम्मीदवार विषय को कितना गहराई तक जानता है ।
(c) खुली प्रतियोगिता- उम्मीदवार को एक मण्डल के समक्ष उपस्थित किया जाता है जिसमें उसके व्यक्तिगत गुणों का मूल्यांकन किया जाता है ।
(d) छँटनी साक्षात्कार- व्यक्तित्व के मामले में अनुपयुक्त पाये जाने वाले उम्मीदवारों की छँटनी करके अलग कर दिया जाता है ।
(v) योग्यता निर्धारण हेतु प्रशासनिक तन्त्र (Administrative Machinery for the Assessment of Qualification):
अभ्यर्थियों के सेवा में प्रवेश से पूर्व जाँच हेतु एवं योग्यता के निर्धारण हेतु प्रशासनिक तन्त्र होने चाहिए । इस हेतु लोक सेवा आयोग की स्थापना की जाती है । भारत में केन्द्रीय सेवाओं के लिए एक केन्द्रीय संघीय लोक सेवा आयोग है । राज्यों में भी इसी प्रकार के लोक सेवा आयोग हैं ।