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Read this article in Hindi to learn about:- 1. Introduction to Training 2. Objectives of Training 3. Kinds 4. Methods 5. Training in India.
Contents:
- प्रशिक्षण का आशय (Introduction to Training )
- प्रशिक्षण के उद्देश्य (Objectives of Training)
- प्रशिक्षण के प्रकार (Kinds of Training)
- प्रशिक्षण की विधियाँ (Methods of Training)
- भारत में प्रशिक्षण (Training in India)
1. प्रशिक्षण का आशय (Introduction to Training):
लोक सेवा से सम्बन्धित एक बहुत ही महत्वपूर्ण पहलू ‘प्रशिक्षण’ है जिस पर एक बड़ी सीमा तक प्रशासनिक कार्यकुशलता निर्भर करती है । वर्तमान में कार्य विशेषीकरण के कारण सरकारी अधिकारियों के प्रशिक्षण की आवश्यकता अत्यधिक महत्वपूर्ण हो गयी है ।
यह उल्लेखनीय है कि ‘प्रशिक्षण’ (Training) व ‘शिक्षण’ (Education) एक-दूसरे से पृथक् हैं । शिक्षा जीवन के मूल्य व लक्ष्य निर्धारित कर सैद्धान्तिक आधार तैयार करती है जबकि प्रशिक्षण का सम्बन्ध व्यावहारिक ज्ञान से है ।
शिक्षा का क्षेत्र व्यापक होता है प्रशिक्षण का क्षेत्र अपेक्षाकृत संकुचित होता है । शिक्षा बौद्धिक व मानसिक विकास करती है तथा प्रशिक्षण का सम्बन्ध किसी विशेष व्यवसाय के क्षेत्र में विशेष कौशल बढ़ाने से है ।
विभिन्न विद्वानों के द्वारा प्रशिक्षण को निम्नलिखित रूपों में परिभाषित किया गया है:
मैण्डेल के अनुसार- ”प्रशिक्षण का अर्थ है- नये कार्य के लिये अभिनवकरण, वर्तमान कार्य के लिए, ज्ञान तथा कुशलता का विकास एवं भावी उत्तरदायित्वों के लिए तैयारी ।”
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स्टाल (Stahl) के मतानुसार- ”कर्मचारी वर्ग के विकास में प्रशिक्षण मानवीय प्रयास के निर्देशन का एक मूल तत्व है और इस रूप में यह उस समय अधिक प्रभावशाली रहता है जबकि इसे नियोजित, व्यवस्थित एवं मूल्यांकित किया जाता है ।”
विलियम जी. टोरपे (William G. Torpey) के अनुसार- ”प्रशिक्षण का अर्थ एक ऐसी प्रक्रिया से है जो कर्मचारियों की कुशलता आदत ज्ञान और दृष्टिकोण को विकसित कर सके जिससे कि वर्तमान सरकारी स्थिति में उनकी प्रभावशीलता को बढ़ाया जा सके और कर्मचारियों को भावी सरकारी स्थितियों के लिए तैयार किया जा सके ।”
संक्षेप में कहा जा सकता है कि जब लोक सेवकों की योग्यता कुशलता बुद्धि व दृष्टिकोण को एक निश्चित दिशा में अग्रसर करने का प्रयास किया जाता है तो यह प्रशिक्षण कहलाता है ।
2. प्रशिक्षण के उद्देश्य (Objectives of Training):
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प्रशिक्षण का मूल उद्देश्य प्रशासनिक अधिकारी को अपने कार्य में कुशल एवं दक्ष बनाना है । प्रशिक्षण के पश्चात् कर्मचारी का व्यक्तित्व तो वही रहता है किन्तु उसके व्यवहार में सकारात्मक परिवर्तन आ जाता है ।
सन् 1944 में ब्रिटेन में नियुक्त ‘एस्वोटन समिति’ (Assheton Committee) ने प्रशिक्षण के निम्नलिखित पाँच उद्देश्य बताये:
(1) कार्मिकों में विश्वसनीय कार्य चातुर्य उत्पन्न करना ।
(2) कार्मिकों को इस योग्य बनाना कि वे परिवर्तित परिस्थितियों में अपने कार्य को दक्षतापूर्वक एवं सुगमता से सम्पदा कर सकें ।
(3) कार्मिकों के दृष्टिकोण को व्यापक बनाकर उन्हें अनुभव कराना कि वे सेवक हैं स्वामी नहीं ।
(4) कार्मिकों में सामुदायिक भावना उत्पन्न करना तथा उन्हें यन्त्रीकरण से बचाना ।
(5) कार्मिकों को दायित्वों की पूर्ति हेतु अधिक क्षमता प्रदान करना ।
प्रशासनिक कार्यों को सभ्यता करने की एक निश्चित विधि होती है जिसे प्रशिक्षण के माध्यम से ही सीखा जा सकता है ।
उपयुक्तता विवरण से स्पष्ट है कि प्रशिक्षण का उद्देश्य केवल तकनीकी कार्यों एवं नित्य के कार्यों का निष्पादन सिखाना ही नहीं वरन् एक समझदार एवं गम्भीर दृष्टिकोण का विकास करना भी है ।
प्रशिक्षण के कतिपय उद्देश्य निम्न हैं:
(1) कर्मचारियों को नवीनतम ज्ञान की जानकारी देना ।
(2) प्रशिक्षण की सहायता से लोक सेवकों में जनकल्याण की भावना उत्पन्न करना ।
(3) लोक सेवकों के मनोबल को ऊँचा उठाना ।
(4) विभागीय लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु लोक सेवकों को व्यावसायिक दृष्टि से कुशल बनाना ।
(5) नवीन लक्ष्य एवं वातावरण के मध्य सामंजस्य स्थापित करना ।
(6) लोक सेवकों के दृष्टिकोण में एक समानभाव उत्पन्न करना ।
3. प्रशिक्षण के प्रकार (Kinds of Training):
सामान्यतया प्रशिक्षण को निम्नलिखित श्रेणियों में विभक्त किया जाता है:
(1) औपचारिक व अनौपचारिक प्रशिक्षण,
(2) अल्पकालीन व दीर्घकालीन प्रशिक्षण,
(3) विभागीय व केन्द्रीय प्रशिक्षण,
(4) कौशल व सामान्य प्रशिक्षण,
(5) प्रवेश-पूर्व सेवाकालीन व प्रवेशोत्तर प्रशिक्षण,
(6) अनुस्थापन प्रशिक्षण ।
(1) औपचारिक व अनौपचारिक प्रशिक्षण (Formal and Informal Training):
औपचारिक प्रशिक्षण की परम्परा प्रक्रिया में पूर्व निर्धारित योजना के अन्तर्गत विशिष्ट प्रशिक्षकों के द्वारा प्रशिक्षण दिया जाता है । यह प्रशिक्षण विधिवत् प्रशिक्षण केन्द्र में संगोष्ठी वाद-विवाद व्याख्यान आदि के माध्यम से दिया जाता है ।
इसमें विशेष प्रकार के प्रशासनिक कौशल व कार्यविधि का प्रशिक्षण दिया जाता है । इसके विपरीत अनौपचारिक प्रशिक्षण अनुभव एवं व्यक्तिगत सम्पर्क पर आधारित होता है । इसमें नवनियुक्त अधिकारी अपने वरिष्ठ अधिकारियों के साथ रहकर उसके आचरण को देखकर अनुभव ज्ञान व कौशल की प्राप्ति करता है ।
(2) अल्पकालीन व दीर्घकालीन प्रशिक्षण (Short-Term and Long-Term Training):
अल्पकालीन प्रशिक्षण अल्पविधि के लिए दिया जाता है, जबकि दीर्घकालीन प्रशिक्षण एक लम्बे समय तक चलता है अल्पकालीन प्रशिक्षण किन्हीं विशेष परिस्थितियों में दिया जाता है । जैसे- युद्ध के समय मोर्चे पर भेजते समय नवनियुक्त सैनिकों को दिया गया प्रशिक्षण । इसके विपरीत दीर्घकालीन प्रशिक्षण में विषय की गहन जानकारी एक लम्बी अवधि में प्रदान की जाती है । जैसे- शान्तिकाल में सैनिकों को दिया गया प्रशिक्षण । यह प्रशिक्षण जटिल व तकनीकी प्रकृति का होता है ।
(3) विभागीय व केन्द्रीय प्रशिक्षण (Departmental and Central Training):
विभागीय प्रशिक्षण विभाग या कार्यालय के अन्दर ही अनुभवी विभागीय अधिकारियों द्वारा प्रदान किया जाता है । यह प्रशिक्षण विभाग की विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुरूप दिया जाता है । इसके विपरीत उच्च एवं जटिल कार्यों के लिए प्रशिक्षण विभाग के केन्द्रीय मुख्यालय या केन्द्रीय सत्ता द्वारा दिया जाता है ।
(4) कौशल व सामान्य प्रशिक्षण (Skill and General Training):
कौशल प्रशिक्षण विशिष्ट योग्यता प्रदान करने के उद्देश्य से दिया जाता है । उदाहरणार्थ- पुलिस विभाग को आपराधिक कृत्यों की खोज व निवारण हेतु दिया गया प्रशिक्षण । इसके विपरीत, सामान्य प्रशिक्षण किसी विशिष्ट कौशल को बढ़ाने के लिए नहीं वरन् कार्य-सम्पादन को सुगम बनाने की दृष्टि से दिया जाता है । इसमें राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक आदि क्षेत्रों की जानकारी देते हुए ऐसी पृष्ठभूमि तैयार की जाती है जिससे कि प्रशिक्षणार्थी सरलता से विषय को ग्रहण कर सकें ।
(5) प्रवेश-पूर्व, सेवाकालीन व प्रवेशोत्तर प्रशिक्षण (Pre-Entry, In-Service and Post-Entry Training):
सेवा में पद-स्थापन से पूर्व दिया जाने वाला प्रशिक्षण ‘प्रवेश-पूर्व प्रशिक्षण’ कहलाता है । शिक्षण संस्थाएँ इस प्रकार का प्रशिक्षण प्रदान करने में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं । वर्तमान में विश्वविद्यालयों में तकनीकी व व्यावसायिक प्रशिक्षण को विशेष महत्व दिया जा रहा है ।
सेवाकालीन प्रशिक्षण पहले से कार्यरत कार्मिकों को दिया जाता है जिससे कि वे अपने कार्य को अधिक कुशलता व दक्षता के साथ सम्पन्न कर सकें । यह एक निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है । यह प्रशिक्षण सामूहिक या व्यक्तिगत किसी भी रूप में हो सकता है ।
सेवाकालीन प्रशिक्षण निम्नलिखित प्रकार का होता है:
प्रशिक्षकों का प्रशिक्षण (Trainers Training), पुनरावलोकन अथवा अनुस्थापन प्रशिक्षण (Orientation Training), नवीनीकरण-प्रशिक्षण (Orientation Training), पर्यवेक्षक प्रशिक्षण (Supervisors Training), पदोन्नति हेतु प्रशिक्षण (Training for Promotion), शिक्षण हेतु प्रशिक्षण (Training to Educate) तथा नेतृत्व हेतु प्रशिक्षण (Training for Leadership) ।
प्रवेशोत्तर प्रशिक्षण कार्मिकों को भविष्य के लिए तैयार करता है । इस प्रशिक्षण का सम्बन्ध प्रत्यक्षत: कार्मिकों के कार्यों से नहीं होता है वरन् भावी योजनाओं के लिए उन्हें तैयार करने से होता है । इन भावी योजनाओं का सम्बन्ध संगठनों से होता है ।
(6) अनुस्थापन प्रशिक्षण (Orientation Training):
यद्यपि अनुस्थापन प्रशिक्षण सेवाकालीन प्रशिक्षण का ही एक प्रकार है तथा इसकी पृथक् जानकारी भी आवश्यक है । इसे ‘पुनरावलोकन प्रशिक्षण’ भी कहा जाता है । किसी भी संगठन में नवनियुक्त कर्मचारीकों उसके पद व स्थिति से सम्ब इप्स्धतजो महत्वपूर्ण जानकारी दी जाती है उसे ही ‘अनुस्थापन प्रशिक्षण’ कहा जाता है ।
4. प्रशिक्षण की विधियाँ (Methods of Training):
लोक सेवकों को प्रशिक्षण प्रदान करने में निम्नलिखित विधियों को काम में लाया जाता है:
(1) समूह प्रशिक्षण (Group Training)- कर्मचारियों को समूह में भाषण, सामूहिक वार्ता व गोष्ठियों आदि के माध्यम से प्रशिक्षित किया जाता है ।
(2) लिखित परिपत्र (Manuals and Bulletins)- कर्मचारियों को लिखित रूप में विशेष निर्देशों व नियमावली के माध्यम से प्रशिक्षित किया जाता है ।
(3) कार्य सम्बन्धी निर्देश (Instructions Regarding Job)- एक सुयोग्य उच्चाधिकारी पर्यवेक्षक के रूप में अपने अधीनस्थों को निर्देश देता है ।
(4) परिसम्वाद कक्षाएँ (Discussion Classes)- किसी विशेष विषय पर प्रशिक्षक व कर्मचारी के मध्य सीधे परिचर्चा होती है ।
(5) अधिसभा पद्धति (Syndicate Method)- प्रशिक्षणार्थियों को छोटे-छोटे दलों में विभक्त कर दिया जाता है तथा प्रत्येक दल का एक अध्यक्ष होता है । ये दल किसी गम्भीर समस्या का समाधान खोजने हेतु विचार-विमर्श करते हैं ।
(6) संगोष्ठी व सम्मेलन (Seminar and Conference)- विभिन्न सामाजिक विषयों पर प्रशिक्ष्णार्थियों की रुचि जानने के लिए संगोष्ठी या सम्मेलन किये जाते हैं ।
(7) विद्युत् उपकरणों के द्वारा (Though Electronic Media)- टेलीविजन, फिल्म आदि के माध्यम से लोक सेवकों को आवश्यक जानकारी प्रदान की जाती है ।
(8) भ्रमण द्वारा प्रशिक्षण (Training in India)- प्रशिक्षणार्थी को विभिन्न कार्य-क्षेत्रों का भ्रमण कराकर सम्बन्धित क्षेत्रों की समस्याओं का अध्ययन करने के लिये कहा जाता है ।
5. भारत में प्रशिक्षण (Training in India):
भारत में सर्वप्रथम 18वीं शताब्दी में वरिन हेस्टिंग्स ने ‘प्रशिक्षण’ की आवश्यकता अनुभव की । उनके मतानुसार ईस्ट इंडिया कम्पनी के कर्मचारियों को भारतीय भाषाओं व पद्धतियों आदि का ज्ञान कराने के लिए प्रशिक्षण आवश्यक था । इसी उद्देश्य को दृष्टिगत रखते हेतु लॉर्डवेलेजली (1798-1805) ने कलकत्ता में फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना की ।
तत्पश्चात् 1813 ई में ‘हेलिबरी कॉलेज’ भी इसी उद्देश्य से स्थापित किया गया । यह सन् 1857 ई तक चलता रहा । इसके बाद लोक सेवकों को ब्रिटिश विश्वविद्यालय कैम्ब्रिज या किसी अन्य में प्रशिक्षण देने की पद्धति आरम्भ की गयी उन्हें भारतीय कानून, भारतीय भाषा, भारतीय राजनीतिक, आर्थिक व सांस्कृतिक इतिहास का प्रशिक्षण प्राप्त करना होता था । एक भारतीय भाषा का ज्ञान होना भी अनिवार्य था ।
स्वाधीन भारत में लोक सेवकों के प्रशिक्षण हेतु निम्नलिखित संस्थान हैं:
(1) लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी, मसूरी
(2) सरदार बल्लभ भाई पटेल राष्ट्रीय पुलिस अकादमी, हैदराबाद
(3) भारतीय लोक प्रशासन संस्थान, नई दिल्ली
(4) सचिवालय प्रशिक्षण तथा प्रबन्ध संस्थान, नई दिल्ली
(5) एडमिनिस्ट्रेटिव स्टाफ कॉलेज, हैदराबाद
(6) राष्ट्रीय ग्रामीण विकास संस्थान, हैदराबाद
(7) रेलवे स्टाफ कॉलेज, बड़ोदरा
(8) राष्ट्रीय वित्तीय प्रबन्धन, संस्थान
(9) राष्ट्रीय प्रत्यक्ष कर अकादमी, नागपुर ।
भारतीय प्रशिक्षण पद्धति की आलोचना (Criticism of the Training System in India):
भारतीय प्रशिक्षण पद्धति की आलोचना निम्नलिखित आधा से पर की जाती है:
(1) प्रशासनिक विषयों का ज्ञान केवल उच्च अधिकारियों को कराया जाता है । निम्न श्रेणी के अधिकारियों के लिए इसकी कोई आवश्यकता नहीं समझी जाती है ।
(2) प्रशिक्षण अधिकतर औपचारिक होता है जिसमें व्यावहारिक ज्ञान बहुत कम होता है ।
(3) प्रशिक्षण व कार्य निष्पादन के मध्य समन्वय का अभाव बना रहता है ।
(4) प्रशिक्षण को प्राथमिकता नहीं दी जाती है । अधिकारी के पास कोई कार्य न होने पर ही प्रशिक्षण हेतु भेजा जाता है ।
(5) आधुनिक तकनीकों का ज्ञान बहुत सीमित रूप में दिया जाता है ।
(6) भारत में शीघ्र पदोन्नति व प्रशिक्षण के कारण प्रशिक्षण योजना विफल हो जाती है ।
(7) व्यावहारिक ज्ञान से रहित होने के कारण प्रशिक्षणार्थी इस प्रकार के प्रशिक्षणों में कोई रुचि नहीं लेते हैं ।
(8) प्रशिक्षण के द्वारा वरिष्ठ अधिकारियों के दृष्टिकोण में परिवर्तन लाना एक जटिल समस्या है ।
भारतीय प्रशिक्षण पद्धति में सुधार हेतु सुझाव (Suggestions to Reform India Training System):
भारतीय प्रशिक्षण पद्धति के दोषों को दूर करने के लिए विद्वानों द्वारा निम्नलिखित सुझाव प्रस्तुत किये जाते हैं:
(1) आधारभूत पाठ्यक्रम के साथ-साथ व्यावहारिक प्रशिक्षण की व्यवस्था की जानी चाहिए ।
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(2) बौद्धिक गुणों के विकास के साथ ही भारतीय संविधान के निदेशक तत्वों में वर्णित गुणों के विकास पर भी बल दिया जाना चाहिए ।
(3) निम्न श्रेणी के कर्मचारियों के प्रशिक्षण की भी उचित व्यवस्था होनी चाहिए ।
(4) प्रशिक्षण-पाठ्यक्रम इस प्रकार का होना चाहिए कि प्रशिक्षणार्थी में परस्पर सहयोग की भावना एवं नेतृत्व आदि गुणों का विकास हो सके ।
(5) प्रशासकों को सेवा काल के दौरान ही अवकाश देकर प्रशिक्षण हेतु भेजा जाना चाहिए ।
अन्त में यही कहा जा सकता है कि उचित व सफल प्रशिक्षण पर ही प्रशासनिक कार्यकुशलता व सफलता अवलम्बित है । अत: इस दिशा में सार्थक कदम उठाना नितान्त आवश्यक है ।