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Here is an essay on ‘Civil Service’ for class 11 and 12. Find paragraphs, long and short essays on ‘Civil Service’ especially written for school and college students in Hindi language.
Essay # 1. लोक सेवा का अर्थ (Meaning of Civil Service):
किसी भी राज्य के अन्तर्गत सेवाएँ दो प्रकार की होती हैं- सैनिक तथा असैनिक । लोक सेवा का सम्बन्ध राज्य की प्रशासनिक सेवा की असैनिक शाखा से है । फाइनर के अनुसार- ”लोक सेवा अधिकारियों का एक व्यावसायिक निकाय है जो स्थायी है वैतनिक है तथा कार्यकुशल है ।”
ग्लैडन के अनुसार- ”प्रशासन के क्षेत्र में तटस्थ विशेषज्ञों का व्यावसायिक निकाय जो निस्वार्थ रूप से बिना राजनीतिक दलीय विचारों अथवा वर्ग हितों से प्रभावित हुए राष्ट्र की सेवा से प्राणपण से जुटा है ।”
प्रारम्भ में राज्य का कार्यक्षेत्र शांति एवं व्यवस्था को बनाये रखने तक सीमित था किन्तु वर्तमान में राज्य के कार्य क्षेत्र का असाधारण रूप से विस्तार हुआ है । आज मानव जीवन का कोई भी पहलू राज्य के कार्य क्षेत्र से बाहर नहीं है । राज्य प्रशासनिक अधिकारियों एवं लोक सेवकों के माध्यम से ही इन बड़े हुए उत्तरदायित्वों की पूर्ति करता है ।
लोक सेवा के महत्व को सभी विद्वानों ने स्वीकार किया है । पिफनर के अनुसार- ”लोक सेवा को ‘प्रशासन की आधारशिला’ (Keystone of Administration) कहा जा सकता है ।” इसी प्रकार एल. डी. ह्वाइट ने लिखा है कि ”लोक सेवाएँ प्रशासनिक संगठन का एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा सरकार अपने लक्ष्यों को प्राप्त करती है ।”
प्रारम्भ में कार्मिक प्रशासन में अप्रशिक्षित लोक सेवक होते थे किन्तु वर्तमान में प्रशासन की समस्त शक्तियाँ तकनीकी योग्यता प्राप्त लोक सेवकों के हाथों में केन्द्रित है ।
Essay # 2. लोक सेवा की प्रमुख विशेषताएँ (Chief Characteristics of Civil Service):
आधुनिक लोक सेवा की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
(1) लोक सेवा ऐसे अधिकारियों का व्यावसायिक वर्ग है जो कुशल, प्रशिक्षित, स्थायी एवं वैतनिक होते हैं ।
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(2) लोक सेवा का संगठन पदसोपान सिद्धान्त के आधार पर किया जाता है ।
(3) लोक सेवा के सभी सदस्यों को नियमानुसार निर्धारित वेतन दिया जाता है ।
(4) कार्य का श्रेय लोक सेवकों को नहीं वरन् जन-प्रतिनिधियों को प्राप्त होता है ।
(5) लोक सेवक निश्चित समय तक अपने पद पर कार्य करते हैं ।
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(6) राजनीति के प्रति लोक सेवकों का दृष्टिकोण तटस्थ होता है ।
(7) लोक सेवक देश की संसद कार्यपालिका व न्यायपालिका के प्रति उत्तरदायी होते हैं ।
(8) लोक सेवकों को व्यक्तिगत हित से पूर्व सार्वजनिक हित को दृष्टिगत रखना होता है ।
(9) लोक सेवकों को उनके कार्यों व दायित्वों का समुचित प्रशिक्षण दिया जाता है ।
Essay # 3. लोक सेवा के कार्य (Functions of the Civil Service):
लोक सेवा के कार्य इतने विस्तृत हैं कि उन सभी का वर्णन नहीं किया जा सकता है तथापि कुछ प्रमुख कार्यों का वर्णन निम्नलिखित है:
(1) सैद्धान्तिक दृष्टि से नीति निर्माण का कार्य मंत्रियों व संसद द्वारा किया जाता है किन्तु व्यवहार में यह कार्य लोक सेवकों के द्वारा किया जाता है ।
(2) लोक सेवा का सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य कार्यपालिका सदस्यों को परामर्श देना है । चेम्बरलेन के अनुसार- ”मुझे संदेह है कि आप लोग (लोक सेवक) हमारे बिना काम चला सकते हैं लेकिन मुझे पूर्ण विश्वास है कि हम लोग (मन्त्रीगण आपके बिना काम नहीं चला सकते हैं ।”
(3) सरकार की नीतियों को कार्यान्वित करना लोक प्रशासक का कार्य है ।
(4) वर्तमान में संसद अत्यधिक कार्य भार के कारण अनेक जटिल विषयों को लोक सेवकों को सौंप देती है । इस प्रकार लोक सेवक को प्रत्यायोजित विधिनिर्माण का भी कार्य करना पड़ता है ।
(5) वर्तमान में लोक सेवकों को अर्द्धन्यायिक प्रकृति के भी कार्य करने पड़ते हैं ।
(6) लोक सेवाएँ विकास एवं परिवर्तन के अभिकरण के रूप में भी कार्य करती हैं ।
(7) लोक सेवकों को मन्त्रियों के निर्देशों के अनुसार देश के विकास हेतु अच्छी-से- अच्छी योजना बनाकर उसे क्रियान्वित करना होता है ।
(8) लोक सेवकों का यह परम कर्त्तव्य है कि जन कल्याण हेतु प्रशासन का पूर्ण निष्ठा से संचालन किया जाये ।
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गुन्नार मिर्डल के अनुसार:
”एक कल्याणकारी राज्य वह है जिसके उद्देश्य आर्थिक विकास, पूर्ण रोजगार, सबको समान अवसर सामाजिक सुरक्षा, समाज के सभी वर्गों के लिए रहन-सहन के न्यूनतम स्तर की उपलब्धता न केवल आय के मामले में वरन् पोषण आवास स्वास्थ्य एवं शिक्षा आदि सभी क्षेत्रों में उपलब्ध हो ।”
लोक सेवाओं की नूतन प्रवृत्तियाँ (New Trends of Public Services):
वर्तमान में लोक सेवाओं में अनेक नूतन प्रवृत्तियाँ परिलिक्षित होने लगी हैं । कार्य भार में वृद्धि के साथ-साथ लोक सेवाओं की संख्या में भी वृद्धि होने लगी है । तकनीकी योग्यता से युक्त कर्मचारियों के कारण लोक सेवा में अनेकरूपता देखने में आ रही है । अब लोक सेवा का चरित्र नकारात्मक न रहकर सकारात्मक होता जा रहा है । अब लोक सेवा के लिये नैतिक एवं व्यावसायिक मापदण्डों पर अधिक बल दिया जा रहा है ।
आधुनिक समय में लोक सेवाओं की संख्या में निरन्तर वृद्धि हो रही है अब लोक कर्मचारी पहले की भांति पुलिस या राजस्व अधिकारी मात्र नहीं हैं वरन् विकास कार्यों में भी संलग्न रहते हैं । जनसाधारण के हितों का संवर्द्धन करना लोक सेवकों का प्रमुख लक्ष्य बन चुका है । लोक सेवा की तटस्थता की परम्परागत अवधारणा का स्थान अब ‘राजनीतिक प्रतिबद्धता’ लेती जा रही है ।