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Here is an essay on ‘Public Administration’ for class 11 and 12. Find paragraphs, long and short essays on ‘Public Administration’ especially written for school and college students in Hindi language.
Essay # 1. लोक प्रशासन का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Public Administration):
अर्थ (Meaning):
वर्तमान में राज्य के स्वरूप एवं दायित्वों में आये परिवर्तनों ने लोक प्रशासन की अवधारणा को अपरिहार्य सिद्ध कर दिया है । उन्नीसवीं शताब्दी तक राज्य का स्वरूप एक पुलिस-राज्य से अधिक कुछ भी नहीं था । कानून एवं व्यवस्था की स्थापना हेतु इसमें राज्य का कार्य क्षेत्र निषेधात्मक था, किन्तु शनै:- शनै: कतिपय कारणों यथा- औद्योगिक क्रान्ति (Industrial Revolution), वैज्ञानिक एवं तकनीकी प्रगति जनसंख्या वृद्धि तथा आधुनिकीकरण आदि से राज्य के स्वरूप व कार्यक्षेत्र में निरन्तर परिवर्तन आता गया जिसके परिणामस्वरूप ‘पुलिस राज्य’ की अवधारणा का स्थान एक ‘कल्याणकारी राज्य’ (Welfare State) की अवधारणा ने ले लिया ।
बीसवीं शताब्दी की परिवर्तित परिस्थितियों में अस्तित्व में आये इस कल्याणकारी राज्य के कार्यों व दायित्वों में उत्तरोत्तर वृद्धि होती गई तथा निषेधात्मक कार्यों की अवधारणा का स्थान सकारात्मक कार्यों की अवधारणा ने ले लिया ।
पहले राज्य द्वारा केवल वही कार्य किये जाते थे, जो कि राज्य के अस्तित्व को बनाये रखने के लिये आवश्यक थे, किन्तु अब राज्य व्यक्ति एवं उसके कल्याण से सम्बन्धित समस्त कार्य करता है व्यक्ति के जन्म से लेकर मृत्यु तक राज्य की यह सकारात्मक भूमिका अपने दायित्वों की पूर्ति हेतु जवाबदेह है । राज्य के इन उत्तरदायित्वों एवं कर्त्तव्यों की पूर्ति का उत्तरदायित्व पूर्णतया ‘लोक प्रशासन’ पर होता है । यही कारण है कि वर्तमान में लोक प्रशासन की अवधारणा अधिकाधिक महत्वपूर्ण होती जा रही है ।
आधुनिक संदर्भ में लोक प्रशासन की इस अहम् एवं अपरिहार्य भूमिका के कारण ही राज्य को ‘प्रशासकीय राज्य’ भी कहा जाने लगा है । लोक प्रशासन न केवल राज्य के कार्यों का संचालन एवं नीतियों का क्रियान्वयन करता है वरन् परिवर्तनशील सरकारों वाले राज्य के ढाँचे को स्थिरता प्रदान करने का उत्तरदायित्व भी वहन करता है । वस्तुत: लोक प्रशासन का कार्यक्षेत्र जनजीवन के सभी क्षेत्रों तक विस्तृत हो गया है । हरमन फाइनर का यह कथन उचित ही प्रतीत होता है कि- ”कुशल प्रशासन सरकार का एकमात्र वह आधार है जिसकी अनुपस्थिति में राज्य क्षतविक्षत हो जायेगा ।”
लोक प्रशासन के अर्थ को समझने के लिये प्रशासन के साथ-साथ ‘लोक’ शब्द का अर्थ समझना भी उपयुक्त होगा ।
लोक शब्द का प्रयोग सामान्यतया तीन अर्थों में किया जाता है:
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(a) ऐसे कार्य जो व्यक्तिगत न होकर सार्वजनिक हों ।
(b) ऐसे कार्य जो एक बड़े वर्ग को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हों ।
(c) ऐसे कार्य जो कुछ ही व्यक्तियों को प्रभावित करते हों, किन्तु समाज इस प्रभाव की उपेक्षा न कर सके इस प्रकार ‘लोक’ शब्द में उन कार्यों को समाविष्ट किया जाता है जिनका महत्व सार्वजनिक दृष्टि से है ।
दूसरे शब्दों में- ‘लोक’ से तात्पर्य ‘समस्त जनता से सम्बन्धित सरकारी प्रशासन’ से है । राज्य ही एकमात्र ऐसा संगठन है जिसके अन्तर्गत निवास करने वाली समस्त जनता आ जाती है । इस आधार पर ‘लोक’ शब्द इस विषय के क्षेत्र को ‘सरकार के प्रशासनिक क्रियाकलापों’ तक सीमित कर देता है । इस प्रकार ‘लोक प्रशासन’ को ‘सरकारी प्रशासन’ कहना अनुचित नहीं होगा ।
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परिभाषाएँ (Definitions):
लोक प्रशासन को विभिन्न विद्वानों ने भिन्न-भिन्न रूपों में परिभाषित किया है ।
कतिपय प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं:
बुडरो विल्सन के अनुसार- “लोक प्रशासन विधि को विस्तृत एवं क्रमबद्ध रूप से कार्यान्वित करने का नाम है । विधि को कार्यान्वित करने की प्रत्येक क्रिया एक प्रशासकीय किया है ।”
पिफनर लिखते हैं- “लोक प्रशासन का सम्बन्ध उस सार्वजनिक नीति के निर्धारित करने और पूर्ण करने से है जिसे अंतिम रूप राजनीतिक अंगों के प्रतिनिधि प्रदान करते हैं ।”
एल. डी. ह्वाइट के अनुसार- ”लोक प्रशासन के अन्तर्गत वे समस्त कार्य आ जाते हैं जिनका उद्देश्य सार्वजनिक नीतियो को पूरा अथवा लागू करना होता है ।”
ई. एन. ग्लैडन के कथनानुसार- “लोक प्रशासन में लोक कर्मचारियों के वे समस्त कार्य सम्मिलित हैं जिनका सम्बन्ध प्रशासन से है चाहे वह व्यक्ति प्रशासक हो अथवा क्लर्क ।”
लूथर गुलिक लोक प्रशासन को सरकार के केवल एक ही अंग कार्यपालिका से सम्बन्धित मानते हुए लिखते हैं- “लोक प्रशासन, प्रशासन-विज्ञान की वह शाखा है जिसका सम्बन्ध शासन से है । इस प्रकार इसका सम्बन्ध मूलत: कार्यपालिका से हो जाता है इसके साथ ही व्यवस्थापिका और न्यायपालिका से सम्बन्धित कुछ ऐसी समस्या होती है जो लोक प्रशासन के क्षेत्र में आती है ।”
साइमन का मत है- “जनसाहगरण की भाषा में लोक प्रशासन से अभिप्राय उन क्रियाओ से है, जो केन्द्र राज्य तथा स्थानीय सरकारों की कार्यपालिका शाखाओं द्वारा सम्पादित की जाती है ।”
लोक प्रशासन की उपयुक्त परिभाषाओं का विश्लेषण करने से निम्नलिखित तथ्य उभरकर सामने आते हैं:
(1) लोक प्रशासन सार्वजनिक समस्पाओं से सम्बन्धित होता है ।
(2) विशिष्ट उद्देश्य के रूप में सामुदायिक आवश्यकता की पूर्ति करता है ।
(3) संगठन का होना भी नितान्त आवश्यक है ।
(4) स्थायित्व एवं व्यवस्था को बनाये रखने में सहायक होता है ।
(5) लोकमत व लोक नीतियों के निर्माण में सहायक होता है ।
लोक प्रशासन के सम्बन्ध में यह प्रश्न विवादित है कि इसका सम्बन्ध सरकार के तीनों अंगों से है अथवा कार्यपालिका मात्र से है ?
(A) लोक प्रशासन शासन के तीनों अंगों से सम्बन्धित:
इस विचार के समर्थकों की मान्यतानुसार शासन के समस्त कार्य लोक प्रशासन की ही परिधि में आते हैं उदाहरणार्थ व्यवस्थापिका के माध्यम से कानूनों का निर्माण तदुपरान्त उन कानूनों की क्रियान्विति तथा कानूनों का उल्लंघन होने पर न्यायपालिका के माध्यम से दण्ड की व्यवस्था । इस प्रकार सरकार के तीनों अंगों के कार्य लोक प्रशासन में आते हैं ।
(B) लोक प्रशासन केवल कार्यपालिका शाखा से सम्बन्धित:
सिद्धान्तत: यह मत उचित प्रतीत होता है कि लोक प्रशासन के अन्तर्गत सरकार के तीनों अंगो का अध्ययन किया जाना चाहिये, किन्तु व्यवहार में लोक प्रशासन का सम्बन्ध मुख्यतया संगठन कर्मचारी वर्ग के कार्यों तथा उन कार्यों की पूर्ति के सम्बन्ध में कार्यपालिका शाखा से होता है ।
निष्कर्षत: यही कहना उपयुक्त होगा कि यद्यपि व्यवहारिक रूप से लोक प्रशासन कार्यपालिका शाखा से ही सम्बद्ध है, किन्तु लोक नीतियों के निर्माण में भी उसकी भूमिका को पूर्णतया नकारा नहीं जा सकता है ।
Essay # 2. लोक प्रशासन का क्षेत्र (Scope of Public Administration):
लोक प्रशासन एक गतिशील एवं निरन्तर विकासशील विषय है एक क्रमबद्ध एवं विकसित ज्ञान के रूप में इसका निरन्तर विकास हो रहा है । राज्य के कार्य क्षेत्र में उत्तरोत्तर वृद्धि के परिणामस्वरूप लोक प्रशासन के दायित्वों में भी निरन्तर वृद्धि हो रही है ।
इन परिस्थितियों में लोक प्रशासन के क्षेत्र का सीमांकन (Demarcation) एक जटिल कार्य है । यही कारण है कि इस संदर्भ में विद्वानों में मतैक्य नहीं है ।
लोक प्रशासन के क्षेत्र के सम्बन्ध में सामान्यतया चार दृष्टिकोण प्रस्तुत किये जाते हैं:
(1) व्यापक दृष्टिकोण,
(2) संकुचित दृष्टिकोण,
(3) पोस्टकार्ड दृष्टिकोण,
(4) लोक कल्याणकारी दृष्टिकोण,
(5) पोकोक दृष्टिकोण तथा
(6) आधुनिक दृष्टिकोण ।
(1) व्यापक दृष्टिकोण (Broader View):
व्यापक दृष्टिकोण रखने वाले विद्वानों की मान्यतानुसार लोक प्रशासन के क्षेत्र में सरकार के तीनों विभाग यथा- व्यवस्थापिका कार्यपालिका एवं न्यायपालिका के कार्य सम्मिलित किये जाते हैं । इस दृष्टिकोण का समर्थन करने वाले प्रमुख विद्वान विलोबी मार्क्स नीग्रो एवं एल. डी. ह्वाइट आदि हैं ।
मार्क्स के शब्दों में- ”अपने व्यापकतम क्षेत्र में लोक प्रशासन के अन्तर्गत सार्वजनिक नीति से सम्बन्धित समस्त क्रियाएँ आती हैं ।” इसी प्रकार विलोबी ने भी लिखा है कि- ”अपने व्यापकतम अर्थ में लोक प्रशासन उस कार्य का प्रतीक है जो कि सरकारी कार्यों के वास्तविक सम्पादन से सम्बद्ध होता है चाहे वे कार्य सरकार की किसी भी शाखा से सम्बन्धित क्यों न हों ।”
अन्य विद्वानों के अनुसार व्यापक दृष्टिकोण के आधार पर लोक प्रशासन का अध्ययन अव्यवहारिक है । सरकार के तीनों अंगों के कार्यों तक विस्तृत कर देने पर लोक प्रशासन का उद्देश्य एवं विशिष्टता समाप्त हो जाती है ।
(2) संकुचित दृष्टिकोण (Narrow View):
संकुचित दृष्टिकोण के समर्थक विद्वान लोक प्रशासन का कार्यक्षेत्र सरकार की कार्यपालिका शाखा तक ही सीमित मानते हैं । कार्यपालिका द्वारा अपनाई गई नीति को क्रियान्वित करने का दायित्व लोक प्रशासन का होता है । इस दृष्टिकोण के प्रमुख समर्थक लूथर गुलिक एवं साइमन आदि हैं लोक प्रशासन के क्षेत्र के सम्बन्ध में यह संकुचित दृष्टिकोण ही व्यापक दृष्टिकोण की अपेक्षा अधिक मान्य है ।
(3) पोश्चकॉर्ब दृष्टिकोण (POSDCORB View):
सर्वप्रथम पोश्चकॉर्ब दृष्टिकोण को हेनरी फेयोल एवं उर्विक आदि विद्वानों ने अपनाया किन्तु पोस्टकार्ड दृष्टिकोण को सुव्यवस्थित ढंग से प्रस्तुत करने का श्रेय लूथर गुलिक को दिया जाता है । लोक प्रशासन के कार्य क्षेत्र की परिधि में आने वाले सात कार्यों को अंग्रेजी के सात शब्दों (Word’s) के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है तथा इन सात शब्दों के प्रथम अक्षरों (Letters) को मिलाकर ‘पोस्टकार्ड’ (POSDCORB) शब्द बनता है ।
अंग्रेजी के ये सात शब्द, जिनसे लोक प्रशासन की क्रियाओं का बोध होता है, निम्नलिखित हैं:
इन समस्त क्रियाओं की विवेचना निम्नलिखित रूप में प्रस्तुत की जा सकती है:
P- Planning (योजना बनाना):
नियोजन या योजना बनाने से तात्पर्य है- कार्य करने से पूर्व उसकी रूपरेखा का निर्धारण करना ।
इस सम्बन्ध में ध्यान रखने योग्य प्रमुख पहलू निम्नलिखित हैं:
योजना निर्माण का लक्ष्य व अपनाई जाने वाली नीति, योजना पूर्ति हेतु आवश्यक साधन तथा उन साधनों की पूर्ति के तरीके, योजना की समयावधि व संचालन आदि । रूपरेखा निर्धारण में दक्ष व विशेषज्ञ व्यक्तियों की भूमिका अहम् होनी चाहिये ।
O- Organizing (संगठन स्थापित करना):
निश्चित लक्ष्य की प्राप्ति हेतु संगठन स्थापित करना अनिवार्य होता है । संगठन इस प्रकार का होना चाहिये कि उसमें कार्यों का विभाजन उचित प्रकार से हो सके । प्रत्येक कर्मचारी को निश्चित समयावधि में अपने लक्ष्य को प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिये इसके साथ ही कर्मचारियों के कार्यों में समन्वय स्थापित किया जाना चाहिए ।
S- Staffing (कर्मचारियों की व्यवस्था करना) कुशल नियोजन एवं संगठन का उस समय तक कोई महत्व नहीं होता है जब तक कि उसके निष्पादनकर्ता अपनी भूमिका का निर्वाह निष्ठापूर्वक एवं कुशलतापूर्वक न करते हों । लोक प्रशासन की सफलता कुशल लोक सेवकों पर ही निर्भर करती है । इसमें कर्मचारियों के चयन प्रशिक्षण पदोन्नति एवं वेतनवृद्धि आदि का अध्ययन किया जाता है ।
D- Direction (निर्देशन करना):
उचित निर्देशन के अभाव में प्रशासन की सफलता संदिग्ध रहती है । नीति-निर्धारकों के द्वारा अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को कार्य से सम्बन्धित आवश्यक निर्देश दिये जाते हैं जिससे वे अपने-अपने क्षेत्रों में दायित्वों का सम्पादन उचित रीति से करते हुए निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति कर सकें ।
Co-Ordination (समन्वय स्थापित करना):
प्रशासन एक सामूहिक प्रक्रिया है, अत: विभिन्न कर्मचारियों एवं उनके विभागों के मध्य समन्वय स्थापित किया जाना अत्यावश्यक होता है । समन्वय के माध्यम से ही विभिन्न स्तरों, विभागों एवं कार्मिकों की परस्पर सम्बद्धता एवं आश्रितता प्रमाणित होती है । समन्वय स्थापित करके ही संघर्ष से बचा जा सकता है ।
R- Reporting (प्रतिवेदन प्रस्तुत करना):
लोक प्रशासन अपने विभिन्न विभागों की प्रगति के सम्बन्ध में व्यवस्थापिका को समय-समय पर सूचित करता रहता है । जन-प्रतिनिधियों के माध्यम से प्रशासकीय कार्यों की प्रगति की सूचनाएँ जनता तक पहुँचती हैं प्रतिवेदन का उद्देश्य निम्न कर्मचारियों के कार्यों के सम्बन्ध में निरीक्षण अधिकारियों को सूचित करना होता है ।
B- Budgeting (बजट तैयार करना):
‘बजट तैयार करना’ या ‘वित्तीय प्रशासन’ से तात्पर्य है- वित्तीय नियोजन, आय-व्यय का लेखा रखना, प्रशासकीय विभागों पर वित्तीय साधनों द्वारा नियन्त्रण स्थापित रखना आदि । बजट प्रशासनिक व्यवस्था का प्राण है ।
पोस्डकॉर्ब विचार की आलोचना (Criticism of POSDCORB View):
पोस्टकॉर्ब विचार की आलोचना अनेक आधारों पर की जाती है ।
इनमें से कुछ प्रमुख आधार निम्नलिखित हैं:
(i) पोस्डकॉर्ब क्रियाएँ समूचे प्रशासन की प्रतिनिधि नहीं हैं । अत: दृष्टिकोण संकीर्ण है ।
(ii) ल्यूइस मेरियम (Lewis Merriam) के अनुसार पोस्टकॉर्ब विचार में ‘पाठ्य विषय का ज्ञान’ तत्व की पूर्ण उपेक्षा कर दी गई है । उन्हीं के शब्दों में- ”लोक प्रशासन एक कैंची की भांति दो फलकों वाला एक यंत्र होता है । इस यंत्र का एक भाग पोस्डकॉर्ब के अन्तर्गत आता है और दूसरे भाग में विषयवस्तु का ज्ञान समाविष्ट होता है । कुशल प्रशासन के लिये यह आवश्यक है कि ये दोनों भाग ठीक प्रकार से कार्य करें ।”
(iii) इसमें लोक कल्याण की भावना की पूर्ण अवहेलना की गई है ।
(iv) लोक प्रशासन के अन्तर्गत कार्यरत व्यक्तियों की मनोदशाओं स्व भावों महत्वा कांक्षाओं एवं पारस्परिक सम्बन्धों आदि का प्रभाव भी संगठन पर पड़ता है किन्तु पोस्टकॉर्ब विचार धारा में मानवीय तत्व की भी उपेक्षा की गई है ।
(v) सामाजिक व सांस्कृतिक परिस्थितियों के अध्ययन की ओर भी कोई ध्यान नहीं दिया गया है ।
(vi) पोस्टकॉर्ब विचारधारा में सैद्धान्तिकता पर अधिक बल दिया गया है तथा व्यवहारिक पक्ष की उपेक्षा की गई है ।
(4) लोक कल्याणकारी दृष्टिकोण (Public Welfare View):
इसे ‘आदर्शवादी दृष्टिकोण’ (Public Welfare View) भी कहा जाता है इस दृष्टिकोण की मान्यतानुसार आधुनिक प्रशासन लोक कल्याणकारी है आज लोक प्रशासन सभ्य जीवन का रक्षक मात्र नहीं वरन् सामाजिक न्याय व सामाजिक परिवर्तन का भी महान सा धन है ।
लोक कल्याणकारी राज्य में लोक प्रशासन व्यक्ति के सर्वांगीण कल्याण के लिये कार्यों को सम्पन्न करता है । इसमें व्यक्ति के केवल राजनीतिक जीवन का ही नियमन नहीं किया जाता है वरन् सामाजिक कल्याण आर्थिक समृद्धि तथा अन्य सुख-सुविधाएँ उपलब्ध कराने से सम्बन्धित दायित्वों का भी निर्वाह किया जाता है । संक्षेप में कहा जा सकता है कि यह दृष्टिकोण व्यक्ति के चहुँमुखी विकास को लोक प्रशासन के क्षेत्र में समाहित करता है ।
लोक प्रशासन के क्षेत्र से सम्बन्धित उपर्युक्त वर्णित दृष्टिकोणों के अतिरिक्त ‘व्यावहारवादी दृष्टिकोण’ (Behavioural Views) एवं परिवेशीय दृष्टिकोण (Ecological Views) को भी मान्यता प्रदान की जाती रही है । व्यावहारवादी दृष्टिकोण के प्रमुख समर्थक एम. बी. फॉलेट, स्टोक्स, रॉबर्ट डहल एवं रिग्स आदि रहे हैं ।
इस विचारधारा ने विभिन्न सामाजिक वातावरणों में मानवीय व्यवहार के वैज्ञानिक अध्ययन पर जोर दिया । इसके अतिरिक्त, परिवेशीय दृष्टिकोण वातावरण में व्याप्त उन सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, नैतिक एवं भौगोलिक आदि प्रभावों को सम्मिलित करता है । जिनके बीच लोक प्रशासन कार्य करता है प्रशासनिक क्रियाकलापों को वातावरण से सम्बद्ध करने की आवश्यकता पर बल देते हुए इस सिद्धान्त का प्रतिपादन ‘जॉन गौस’ ने किया ।
निस्संदेह वर्तमान में लोक प्रशासन के अध्ययन क्षेत्र का पर्याप्त विकास हो चुका है त था यह अभी भी विकास की सतत प्रक्रिया की ओर उन्मुख है । यद्यपि लोक प्रशासन के अध्ययन का प्रमुख क्षेत्र कार्यपालिका शाखा से सम्बद्ध माना जा सकता है तथापि व्यवस्थापिका एवं न्यायपालिका शाखा की भी उपेक्षा नहीं की जा सकती है ।
समाजवादी व जनकल्याणवादी विचार धारा के विकास के साथ-साथ लोक प्रशासन का क्षेत्र भी निरन्तर विस्तृत होता जा रहा है । लोक प्रशासन का क्षेत्र एक प्रगतिशील विषय है इसे किन्हीं सीमाओं में बाँधा जाना सम्भव नहीं है ।
(5) पोकोक दृष्टिकोण (Poccoc View):
परा हेनरी फेयोल ने ‘पोकोक दृष्टिकोण’ के आधार पर लोक प्रशासन के कार्यों का निधारण किया है ।
इस दृष्टिकोण के अनुसार लोक प्रशासन के क्षेत्र में निम्नलिखित कार्य आते हैं:
P- Planning (नियोजन करना)
O- Organization (संगठन बनाना)
C- Commanding (आदेश देना)
Co- Co-Ordinating (समन्वय करना)
C- Controlling (नियन्त्रण रखना)
कास्ट तथा रोजनावेग ने लोक प्रशासन के क्षेत्र को POC अर्थात P- Planning; O- Organising; C-Controlling के रूप में स्वीकार किया ।
स्टीफन रॉबिन्स ने लोक प्रशासन के क्षेत्र को POLE शब्द के रूप में स्वीकार किया है जिसका अर्थ इस प्रकार है:
P- Planning (योजना बनाना)
O- Organising (संगठन बनाना)
L- Leading (नेतृत्व करना)
E- Evaluation (मूल्यांकन करना)
(6) आधुनिक दृष्टिकोण (Modern View):
सन् 1887 में अपने प्रादुर्भाव के बाद से लोक प्रशासन निरन्तर विकास की ओर अग्रसर है । राज्य के कार्य क्षेत्र में वृद्धि होने के साथ-साथ प्रशासन का क्षेत्र भी निरन्तर विस्तृत होता जा रहा है । पोस्टकार्ब सिद्धान्त अब एक परम्परागत दृष्टिकोण बनता जा रहा है क्योंकि आधुनिक समय में लोक प्रशासन के क्षेत्र में नये-नये विषय सम्मिलित होते जा रहे हैं ।
जैसा कि पोकोक दृष्टिकोण से स्पष्ट है कि लोक प्रशासन में नियन्त्रण का अध्ययन भी समाविष्ट किया जाना चाहिए । उदाहरणार्थ- कार्यपालिका, व्यवस्थापिका व न्यायपालिका का एक-दूसरे पर नियन्त्रण, स्थानीय सरकार पर राज्य व केन्द्र का नियन्त्रण ।
वाकर (Walker) ने लोक प्रशासन के क्षेत्र में निम्नलिखित दस विषयों को सम्मिलित किया है:
वैधानिक, राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक, वित्तीय, प्रतिरक्षा, स्थानीय शासन, विदेशी एवं साम्राज्य सम्बन्धी ।
आज लोक प्रशासन के क्षेत्र में ग्राम पंचायतों से लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ तक को सम्मिलित किया जाता है इस प्रकार वर्तमान में लोक प्रशासन का क्षेत्र अत्यन्त विस्तृत है ।
Essay # 3. लोक प्रशासन का महत्व (Significance of Public Administration):
आधुनिक लोक कल्याणकारी राज्य में लोक प्रशासन का महत्व उसके बढ़ते हुए कार्यों एवं उत्तरदायित्वों के सन्दर्भ में निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है:
(1) समाज की सुरक्षा (Security of Society):
वर्तमान में राज्य व्यक्ति के जीवन में पूर्णतया प्रविष्ट हो चुका है । जन्म से ही पूर्व ही गर्भस्थ शिशु के लिए लोक प्रशासन का दायित्व प्रारम्भ हो जाता है । राज्य का दायित्व है कि वह गर्भवती स्त्रियों की रक्षा करें । शिशु जन्म के पश्चात् राज्य के दायित्वों में और भी वृद्धि हो जाती है शिशु जन्म का लेखा जोखा रखना, प्रसूति गृह व चिकित्सालयों की व्यवस्था आदि राज्य के कार्य क्षेत्र में ही आता है ।
शिक्षा व्यवस्था, रोजगार उपलब्ध कराना, आवास, जल, विद्युत, स्वच्छता आदि की व्यवस्था- ये समस्त दायित्व राज्य के द्वारा ही निभाए जाते हैं । संक्षेप में कहा जा सकता है कि व्यक्ति जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में लोक प्रशासन पर आश्रित है ।
(2) सरकारी नीतियों व योजनाओं का क्रियान्वयन (Implementation of Government Policies and Planning’s):
किसी भी राज्य में नीतियों व योजनाओं के निर्माण का कार्य सरकार के अधिकार-क्षेत्र में आता है किन्तु उनके सफल क्रियान्वयन हेतु लोक प्रशासन की मशीनरी की आवश्यकता होती है ।
सरकारी नीतियों के कुशलतापूर्वक निष्पादन हेतु योग्य समर्पित व सत्यनिष्ठ लोक सेवकों की आवश्यकता होती है प्रशासन के कुशल एवं सक्षम न होने पर सरकार की समस्त व्यवस्था धराशायी हो सकती है यही कारण है कि वर्तमान राज्य ‘प्रशासनिक राज्य’ (Administrative State) कहलाता है ।
डिमॉक के क कथानुसार:
लोक प्रशासन सभ्य समाज का आवश्यक अंग तथा आधुनिक जीवन का एक प्रमुख तत्व है और इसमें राज्य के उस स्वरूप ने जन्म लिया है जिसे ‘प्रशासकीय राज्य’ कहा जाता है ।
प्रशासकीय राज्य में जन्म से लेकर मृत्यु तक जीवन के प्रत्येक मोड़ पर व्यक्ति लोक प्रशासन से जुड़ा रहता है । लोक प्रशासन व्यक्ति के जन्म से पूर्व ही उसमें रुचि लेने लगता है और उसकी मृत्यु के बाद भी अपनी रुचि बनाए रखता है ।
(3) सभ्यता व संस्कृति की रक्षा (Protection of Civilization and Culture):
आधुनिक राज्य दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ-साथ जता एवं संस्कृति की सुरक्षा का दायित्व भी निभाता है । आवश्यक वस्तुओं की उपलब्धता एवं सुख-साधनों में वृद्धि सभ्यता के विकास का प्रतीक है । प्रशासनिक कुशलता होने पर आन्तरिक शान्ति बनी रहेगी तथा सभ्यता के विकास का मार्ग भी प्रशस्त होगा, किन्तु प्रशासनिक शिथिलता सभ्यता के पतन की सूचक होगी ।
इसी तथ्य को दृष्टिगत रखते हुए प्रो. डोनहम ने लिखा है कि- ”यदि हमारी सभ्यता का पतन होता है तो वह प्रशासकीय असफलता का परिणाम होगा ।”
इसी प्रकार बीयर्ड लिखते हैं- “सभ्यता का भविष्य हमारी इस योग्यता पर निर्भर है कि हम प्रशासन के सम्बन्ध में एक ऐसे विज्ञान दर्शन एवं व्यवहार को विकसित करें जो सध्य समाज के कर्त्तव्यों को पूरा करने की क्षमता रखता हो ।”
(4) सामाजिक प्रगति का प्रतीक (Symbol of Social Progress):
समाज कल्याण एवं सामाजिक सुरक्षा की योजनाएँ लोक प्रशासन के द्वारा ही तैयार की जाती हैं । इन योजनाओं के माध्यम से ही सामाजिक प्रगति सम्भव होती है वर्तमान में लोक प्रशासन विभिन्न देशों में सकारात्मक दिशा में सामाजिक क्रान्ति लाने के लिए प्रयत्नशील है । अन्धविश्वास, कुरीतियों आदि को समाप्त कर सकारात्मक दिशा में कद उठाना नितान्त आवश्यक है । यह सब भी प्रशासन के क्षेत्राधिकार में ही आता है ।
(5) समस्याओं के समाधान में सहायक (Helpful in Solving the Problems):
आज जीवन के विभिन्न क्षेत्रों तथा राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक आदि सभी क्षेत्रों में समस्याएँ उत्पन्न होने से जीवन अत्यन्त जटिल हो गया है । इसके अतिरिक्त औद्योगिक एवं तननीकी प्रगति में एक ओर जहाँ समाज को विकास के मार्ग पर अग्रसर किया है वहीं अनेक प्रकार की नवीन समस्याएँ भी अस्तित्व में आ गई हैं ।
इन समस्याओं का समुचित समाधान लोक प्रशासन के माध्यम से ही सम्भव है । उदाहरणार्थ- भारत में निर्धनता, भुखमरी, कुपोषण, बेरोजगारी, बाल विवाह, विधवा उत्पीड़न, दहेज प्रथा, महिला अपराध, शोषण आदि सामाजिक समस्यायें व्याप्त हैं । इन जटिल समस्याओं का समा ध्यान सरकार द्वारा निर्मित नीतियों एवं प्रशासन द्वारा उनके सफल कार्यान्वयन से ही सम्भव है ।
(6) अधिकारों एवं प्रभुसत्ता के बीच समन्वय (Co-Ordination between Right and Sovereignty):
राज्य अपनी सम्पूर्ण सत्ता पर निर्भर है । व्यक्तिवादियों और अराजकतावादियों के प्रहारों के बावजूद भी राज्य की शक्ति में वृद्धि हुई है । बहुलवादियों एवं अराजकतावादियों के अनुसार अराजकता के निवारण हेतु राज्य का आकाधिक विकास होना चाहिए । राज्य का एकपक्षीय विकास मानव विकास के लिए चुनौती बन सकता है । मानव विकास एवं राज्य की प्रभुसत्ता में विरोध सम्भव है । लोक प्रशासन ही दोनों के मध्य समन्वय स्थापित कर सकता है ।
(7) मौलिक अधिकारों का रक्षक (Saviour of Fundamental Rights):
औद्योगिक क्रान्ति के परिणामस्वरूप समाज में विषमता की स्थिति उत्पल हुई है । समाज के एक विशिष्ट वर्ग के हाथों में पूंजी का केन्द्रीयकरण हो गया है यह वर्ग अमानवीय तरीकों से श्रमिकों का शोषण करता है । इन परिस्थितियों में व्यक्ति के मौलिक अधिकारों की रक्षा करना लोक प्रशासन का प्रमुख दायित्व हो गया है ।
(8) स्थायी संगठन (Permanent or Stable Organization):
वर्तमन समय में मनुष्य की राज्य पर निर्भरता में उत्तरोत्तर वृद्धि होती जा रही है । ऐसे में राज्य के दायित्वों में वृद्धि होना भी स्वाभाविक है । राज्य के अन्तर्गत सरकार एवं प्रशासन पर इन कर्त्तव्यों के निर्वाह का दायित्व होता है । सरकार का स्वरूप निरन्तर परिवर्तनशील होता है जबकि लोक प्रशासन के कर्मचारी स्थायी संगठन के अंग होते हैं । वे सरकार की परिवर्तनशीलता के कारण उत्पन्न दुष्प्रभावों पर भी नियन्त्रण का प्रयास करते हैं ।
(9) लोक-हितकारी राज्य का प्रतीक (Symbol of Welfare State):
वर्तमान में लोक प्रशासन का प्रमुख दायित्व है कि वह लोक कल्याणकारी योजनाओं के प्रति न केवल निष्ठावान रहे वरन् उन योजनाओं की क्रियान्विति हेतु भी पूर्णरूपेण सजग एवं प्रयत्नशील रहे । राज्य की योजनाएँ लोक प्रशासन के अ भाव में पूर्ण नहीं हो सकती हैं कल्याणकारी योजनाओं की सफलता लोक प्रशासन की कुशलता दक्षता एवं ईमानदारी पर निर्भर करती है ।
(10) युद्धकाल में महत्व (Significance during War-Period):
आधुनिक युग ‘समग्र युद्ध’ का युग है । ऐसे में देश की सम्पूर्ण जनशक्ति एवं उसके समस्त साधनों के संगठन-नियमन का दायित्व भी लोक प्रशासन निभाता है । शान्तिकाल में जो कार्यक्षेत्र निजी प्रबन्ध के अधीन होते हैं । युद्धकाल में उन्हें लोक प्रशासन के अधीन कर दिया जाता है ।
पं. जवाहरलाल नेहरु के शब्दों में- ”लोक कल्याणकारी राज्य का आधारभूत कार्य सबके लिए समान अवसर उपलब्ध करना, अमीरों-गरीबों के मध्य अन्तर मिटाना तथा रहन-सहन के स्तर को ऊँचा उठाना है ।
सम्पूर्ण विश्लेषण आधार पर कहा जा सकता है कि लोक प्रशासन सभ्य जीवन का संरक्षक ही नहीं वरन् सामाजिक व आर्थिक परिवर्तनों का महत्वपूर्ण अस्त्र तथा मनुष्य के सर्वागीण विकास का एक प्रभावशाली भी है ।
अन्त में डी. जी. कर्वे के इस कथन की प्रस्तुति समीचीन प्रतीत होती है- ”एक लोक कल्याणकारी राज्य, जहाँ पर नियोजित अव्यवस्था होती है तथा गणतन्त्रात्मक सवधान रहता है । तब तक कार्य नहीं कर सकता जब तक कि एकीकृत ढाँचे वाला विस्तृत लोक प्रशासन न हो ।”
Essay # 4. विकासशील देशों में लोक प्रशासन (Public Administration in Developing Countries):
विकासशील देशों में लोक प्रशासन के कार्य एवं उत्तरदायित्व बहुत अधिक होते हैं । ये देश लोक प्रशासन के माध्यम से जितना तीव्र गति से प्रगति के पथ पर अग्रसर होगे उतनी ही तेजी से ये राष्ट्र विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में आकर खड़े हो जायेंगे । विकासशील देशों के समक्ष राजनीतिक, आर्थिक, प्रशासनिक एवं सामाजिक समस्याएँ गम्भीर रूप से होती हैं ।
ये देश प्रशासनिक दृष्टि से भी पिछड़े होते हैं । विकासशील देशों के समक्ष अन्य समस्याएं भी यथा निर्धनता, अशिक्षा, बेरोजगारी आदि भी व्यापक रूप से खड़ी रहती हैं । ऐसे में लोक प्रशासन का दायित्व और महत्व स्वत: ही स्पष्ट हो जाते हैं ।
विकासशील देशों में लोक प्रशासन की भूमिका का मूल्यांकन निम्नलिखित आधारों पर किया जा सकता है:
(a) विकासशील देशों में यह आवश्यक है कि लोक प्रशासन सक्रिय एवं कर्तव्यपरायण हो, क्योंकि विकसित देशों की तुलना में इन देशों के कर्त्तव्य कहीं अधिक हैं ।
(b) विकासशील देशों में प्रशासन का प्रमुख दायित्व आर्थिक जीवन को नियमित एवं नियन्त्रित करना है । लोक प्रशासन मालिकों व श्रमिकों के मध्य सम्बन्धों को नियमित करता है उपभोक्ताओं के हितों को सुरक्षित करने की दिशा में सार्थक कदम उठाये जाते हैं ।
(c) विकासशील देशों में राज्य के स्वामित्व वाली औद्योगिक संस्थाओं का प्रबन्ध व संचालन लोक प्रशासन के द्वारा ही किया जाता है ।
(d) विकासशील देशों में ‘आर्थिक नियोजन’ का महत्व सर्वोपरि है । आर्थिक नियोजन के द्वारा कल्याणकारी गतिविधियों को तीव्र गति से लागू किया जाता है । आर्थिक नियोजन सम्बन्धी नीतियों को क्रियान्वित करना लोक प्रशासन का दायित्व है ।
(e) पंचायती राज संस्थाओं की भूमिका भी लोक प्रशासन पर निर्भर करती है ।
(f) लोक प्रशासन का जनता से भावनात्मक जुड़ाव होना चाहिये तथा प्रशासन को जनसेवक की भांति कार्य करना चाहिये ।
(g) लोक प्रशासन को चाहिये कि वह योजनाबद्ध रूप से आर्थिक विकास करें । ऐसा होने पर ही राजनीतिक आधुनिकीकरण सम्भव हो सकता है ।
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(h) ‘सामाजिक कल्याण’ (Social Welfare) और ‘आर्थिक विकास’ (Economic Development) को अत्यधिक महत्व दिया जाता था ।
(i) विकासशील देश में शासक दल व लोक-सेवकों के मध्य सम्बन्ध इस प्रकार के होने चाहिये कि शासक दल के परिवर्तन के उपरान्त भी प्रशासकीय दक्षता अप्रभावित रहे । इसका तात्पर्य यह है कि प्रशासकों की प्रतिबद्धता मन्त्रियों के प्रति नहीं वरन् संविधान के प्रति होनी चाहिये ।
(j) विकासशील देशों में लोक प्रशासन का उद्देश्य राष्ट्र-निर्माण का सुदृढ़ प्रयास करना है ।
(k) विकासशील देशों में लोक प्रशासन का उद्देश्य मानव संसाधनों का विकास करना भी है । मानव संसाधनों के विकास से तात्पर्य है- शारीरिक व मानसिक रूप से स्वस्थ तथा व्यवसायिक कुशलता से युक्त मानवों का विकास करना ।
इस प्रकार स्पष्ट है कि विकासशील राष्ट्रों में लोक प्रशासन के दायित्व अत्यन्त व्यापक हैं । इन देशों में जनसंख्या वृद्धि के साथ निरन्तर नई-नई समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं । इन नवीन चुनौतियों का सामना करने के लिये लोक प्रशासन के स्वरूप एवं कार्यशैली में परिवर्तन लाना अपेक्षित है ।