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Here is an essay on ‘International Politics’ for class 11 and 12. Find paragraphs, long and short paragraphs on ‘International Politics’ especially wriiten for school and college students in Hindi language.
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति की जानकारी केवल प्रातःकालीन समाचार-पत्रों के अवलोकन मात्र से प्राप्त नहीं की जा सकती । वस्तुत: यह ज्ञान का एक ऐसा क्षेत्र है, जिसमें सुनियोजित चिन्तन की सबसे अधिक आवश्यकता है । अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति की मूल समस्या राष्ट्रों के आपसी व्यवहार तथा आचरण के बुनियादी सिद्धान्तों का पता लगाना है ।
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का विद्यार्थी यह मालूम करने का प्रयत्न करता है कि, राष्ट्र सहयोग क्यों करते हैं ? राष्ट्र युद्ध क्यों करते हैं ? राष्ट्र शक्तिशाली क्यों बनना चाहते हैं ? शान्ति के लक्ष्य की निरन्तर दुहाई देते हुए भी राष्ट्र संयुक्त राष्ट्र संघ जैसी संस्था के आदेशों का पालन क्यों नहीं करते ? नि:शस्त्रीकरण के सिद्धान्तों को विश्व-शान्ति के लिए अपरिहार्य मानते हुए भी राष्ट्र निरन्तर शस्त्रीकरण क्यों करते रहते हैं ?
शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व में आस्था रखते हुए भी राष्ट्र अपनी विचारधारा का प्रसार क्यों करना चाहते हैं ? राष्ट्रों के विरोधाभासी राजनीतिक व्यवहार और इस प्रकार के आचरण को समझने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के मूल तत्वों एवं सिद्धान्तों का विवेचन-विश्लेषण करना उपयोगी कार्य होगा ।
द्वितीय विश्व-युद्ध के उपरान्त अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के अध्ययन एवं अन्वेषण में व्यापक प्रगति हुई है । अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का अन्य ज्ञान-शाखाओं में बिखरी हुई विषय-सामग्री के स्तर से एक स्वायत्त अथवा स्वतन्त्र ज्ञान-शाखा के रूप में व्यवस्थित होकर थोड़े ही समय में वैज्ञानिक अध्ययन की ओर अग्रसर होना सिद्धान्तीकरण एवं सिद्धान्त निर्माण (Theory Building) के क्षेत्र में निश्चय ही महत्वपूर्ण उपलब्धियां हैं । अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का विज्ञान तथा वैज्ञानिक अध्ययन के रूप में इसकी प्रगति यात्रा का उल्लेख करना निश्चित ही एक ज्ञानवर्द्धक अनुष्ठान है ।
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति: परिभाषाएं एवं प्रकृति (International Politics: Definitions and Nature):
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति एक विकासोन्मुख विषय है और इसलिए इसके अर्थ को लेकर विद्वानों में गहरा मतभेद है । ‘अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति’ का अर्थ समझने के लिए ‘राजनीति’ शब्द की विवेचना करना आवश्यक प्रतीत होता है ।
राजनीति (Politics):
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‘राजनीति’ शब्द की विशद विवेचना आवश्यक है । बोलचाल में इसका अत्यधिक प्रयोग होता है । यह शब्द मूलत: संस्कृत भाषा का है । इसमें इसका अर्थ राजा की नीति है, किन्तु वर्तमान सन्दर्भ में इस शब्द का जिस अर्थ में प्रयोग होता है वह इससे भिन्न और अधिक व्यापक है ।
रॉबर्ट के शब्दों में- ‘मानव समुदायों के ऊपर शासन करने की कला को ही राजनीति कहते हैं ।’ शासन से उसका अभिप्राय है: आदेश देने और नियन्त्रण कायम करने से सम्बन्धित प्रक्रियाएं । उसके मतानुसार- ‘पॉलिटिक्स’ का विषय क्षेत्र बहुत व्यापक है, परिवार चर्च ट्रेड यूनियन फर्म या अन्य संघों और समुदायों के भीतर चलने वाली प्रतिस्पर्द्धा को भी उसने राजनीति का ही रूप दिया है । मैक्स वेबर जार्ज कैटलिन, हेरॉल्ड लासवेल तथा रॉबर्ट डहल, आदि विचारकों ने राजनीति को ‘संघर्ष’ के रूप में देखा है ।
जार्ज कैटलिन के मतानुसार- ”समस्त राजनीति स्वभावत: शक्ति और संघर्ष से सम्बन्धित है ।” (All Politics is by its nature power politics)
मैक्स वेबर के अनुसार- “राजनीति का अर्थ हैं-शक्ति के लिए संघर्ष अथवा उन लोगों को प्रभावित करने की कला जिनके हाथों में सत्ता है । परस्पर राज्यों के बीच जो संघर्ष चलता रहता है अथवा राज्य के भीतर विभिन्न संगठित समुदायों के बीच होने वाला संघर्ष दोनों ही राजनीति के अन्तर्गत आ जाते हैं ।”
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मैक्स वेबर की परिभाषा चार बातों पर प्रकाश डालती है:
प्रथम:
राजनीति का शक्ति के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध है ।
द्वितीय:
राजनीति में विभिन्न समूह अपने लिए अधिक से अधिक लाभ व सुविधाएं अर्जित करने का प्रयत्न करते हैं ।
तृतीय:
जिस प्रकार राष्ट्रीय स्तर पर सत्ता प्राप्ति का संघर्ष चलता रहता है वैसे ही अन्तर्राष्ट्रीय जगत में भी उखाड़-पछाड़ देखने को मिलती है । राष्ट्रों में ज्यादा से ज्यादा शक्ति प्राप्त कर लेने की होड़ लगी हुई है ।
चतुर्थ:
राज्य के भीतर केवल राज्य और अन्य समुदायों का ही संघर्ष देखने को नहीं मिलता बल्कि स्वयं समुदायों के मध्य भी खींचतान चलती रहती है ।
कतिपय लेखकों (प्रो. वाइजमैन प्रो. रफेल) ने राजनीति को ‘सीमित साधनों का बंटवारा करने की प्रक्रिया’ (allocation of resourses) के रूप में देखा है । डेविड ईस्टन इसे ‘मूल्यों के प्राधिकृत विनिधा’ (Authoritative allocation of values) कहते हैं । प्रो. टी. ब्रैनन राजनीति को सम्भाव्य की कला (Politics is essentially the art of the possible) कहकर पुकारते है ।
उदारवादी लेखक राजनीति को विभिन्न सामाजिक समुदायों या वर्गों के बीच तालमेल बिठाने का साधन मानते है । कैटलिन और लासवेल ने राजनीति को शक्ति की तलाश (Quest for Power) माना है । लासवेल के शब्दों में- ”राजनीति के अन्तर्गत हम यह अध्ययन करते हैं कि ‘राजनीतिक शक्ति’ का क्या स्वरूप है और उसमें कौन-कौन भागीदार है ।”
‘राजनीत’ की उत्पत्ति वस्तुत: इस तथ्य में से होती है कि प्रत्येक मनुष्य की कुछ आवश्यकताएं हैं और जिन्हें पूरा करना उसके लिए बहुत आवश्यक है । जब मनुष्य इन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए प्रयास करता है तो स्वाभाविक रूप से उसे अन्य व्यक्तियों के सम्पर्क में आना पड़ता है ।
इस सम्पर्क के परिणामस्वरूप समुदायों (Groups) की रचना होती है । विभिन्न समुदायों (Groups) की आवश्यकताएं और इच्छाएं एक-सी नहीं होतीं प्राय: एक समुदाय की आवश्यकता का हमें दूसरे समुदाय की आवश्यकता से टकराव दिखायी पड़ता है ।
जब किसी समूह अथवा समुदाय के सदस्य पारस्परिक रूप से बाधक नीतियों का समर्थन करते हैं तो हितों का विरोध होता है और तर्क-वितर्क, अनुनय-विनय, समायोजन राजनय या समझौते के शान्तिपूर्ण तरीकों अथवा बल और जोर-जबर्दस्ती के हिंसात्मक तरीकों से विरोधों के समाधान की अवस्था प्राप्त की जा सकती है ।
अतएव राजनीति का प्रथम स्रोत है, ‘समूहों का अस्तित्व’ और दूसरा ‘उन समूहों की आपसी प्रतिस्पर्धा’ । ‘यह एक क्रिया है जो समूहों में या उनके बीच होती है ।’ जहां देशद्रोह और वस्तुत: गृह युद्ध का आरम्भ होता है, वहां राजनीति का अन्त हो जाता है, क्योंकि उस समय मूल्यों का कोई प्रमाणीकृत विनिधान नहीं होता बल्कि दो पक्ष अलग-अलग तरीके से मूल्यों का विनिधान करते हैं ।
तथापि, इस वक्तव्य से हमें यह नहीं समझना चाहिए कि गृह युद्ध अथवा क्रान्तिकारी उथल-पुथल के दिनों में राजनीतिक कार्यकलाप जैसी कोई वस्तु नहीं होती इसका सीधा-सादा अर्थ यह है कि “क्योंकि ऐसी घटना समाज के जीवन में तनाव का चरम बिन्दु ला देती है, अत: राजनीति की भूमिका समाज में ऐसी स्थिति आने से रोकना होनी चाहिए ।
राजनीति की परिभाषा करते हुए क्विन्सी राइट ने लिखा है- ‘राजनीति एक ऐसी कला है जिसके द्वारा प्रत्येक समूह दूसरे समूहों पर किसी न किसी तरह नियन्त्रण रखकर हितों को निरन्तर आगे बढ़ाने का प्रयास करता रहता है ।
इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि राजनीति की तीन अनिवार्यताएं हैं:
प्रथम:
समुदायों का अस्तित्व (The existence of groups),
द्वितीय:
समुदायों के बीच मतभेद (Disagreement between groups) तथा
तृतीय:
कुछ समुदायों द्वारा अन्य समुदायों के कार्यों को नियन्त्रित करने का प्रयत्न (Efforts of some to influence or control the actions of others) ।
इन तीनों में दूसरी अनिवार्यता का विशेष महत्व है । यदि मतभेद या विवाद नहीं है तो फिर राजनीति नहीं हो सकती । बर्ट्रेण्ड ज्यूविनल ने विवाद को ही राजनीति की जड़ माना है । विवाद ही राजनीति का आधार है । विवाद के कारण झगड़े पैदा होते हैं और झगड़ों के कारण विवाद बना रहता है । वस्तुत : मतभेद या विवाद के कारण ही राजनीति चलती है ।
यहां यह उल्लेखनीय है कि मतभेद इतने अधिक नहीं होने चाहिए जिससे कि सहयोग की सम्भावनाएं ही समाप्त हो जाएं । राजनीति न तो पूर्ण मतभेद की स्थिति में चल सकती है और न पूर्ण सहमति की स्थिति में । शैल्डन वोलिन के शब्दों में- ”राजनीति एक ऐसी प्रक्रिया है जिससे हम परिस्थितियों के अनुसार दूसरों के साथ ऐसे सम्बन्ध स्थापित करने का निरन्तर प्रयल करते रहते हैं जिनसे अपने लक्ष्य की अधिक से अधिक पूर्ति हो सके ।”
जब कोई समुदाय किसी दूसरे समुदाय के कार्यों को नियन्त्रित अथवा प्रभावित करने का प्रयास करता है तो उसका लक्ष्य वास्तव में उस समुदाय के साथ अपने सम्बन्धों को इस प्रकार निर्मित करना होता है जिससे वह उसका पक्षधर हो जाए ।
दूसरों के कार्यों को नियन्त्रित करने की क्षमता को ‘शक्ति’ कहा जाता है और शक्ति राजनीति का अनिवार्य तत्व है । शक्ति की अनुपस्थिति में राजनीति की कल्पना नहीं की जा सकती । शक्ति प्राप्ति के लिए किया गया संघर्ष ही राजनीति का मूल है ।
राजनीति उस प्रक्रिया के अतिरिक्त और कुछ नहीं है जिसके द्वारा शक्ति को उपार्जित किया जाता है, उसे कायम रखा जाता है, उसे प्रयोग में लाया जाता है तथा उसे विकसित किया जाता है । मूल रूप से राजनीति विभिन्न समूहों के हितों के पारस्परिक विरोध से जन्म लेती है परन्तु व्यवहार रूप में राजनीति शक्ति लोलुपता के कारण पनपती है । इसलिए कभी-कभी राजनीति को शक्ति का संघर्ष (Struggle for Power) कहा जाता है ।
कर्टिस के अनुसार- “राजनीति शक्ति और उसके उपयोग के बारे में एक संगठित विवाद है जिसमें प्रतियोगी मूल्यों, विचारों व्यक्तियों, हितों और मांगों के बीच पसन्द अथवा अधिमान्यता निहित होती है । राजनीति के अध्ययन का सम्बन्ध उस तरीके के विवरण और विश्लेषण से है जिससे सत्ता (शक्ति) प्राप्त की जाती है, उसका उपयोग किया जाता है उसका नियन्त्रण किया जाता है ।
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति (International Politics):
‘राजनीति’ शब्द का अर्थ स्पष्ट करने के बाद ‘अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति’ का विवेचन एवं परिभाषा करना आवश्यक है । मोटे रूप से हम राष्ट्रों के मध्य पायी जाने वाली राजनीति को अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति की संज्ञा प्रदान करते हैं ।
पहले यह बताया जा चुका है कि क्विन्सी राइट के मतानुसार राजनीति ऐसी कला है जिसकी सहायता से प्रत्येक समूह दूसरे समूहों पर किसी तरह का नियन्त्रण रखकर अपने हितों को बढ़ाने के लिए लगातार प्रयत्न करता है ।
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में ये समूह राज्य तथा राष्ट्र होते हैं, उनकी अपनी आवश्यकताएं, इच्छाएं, अभिलाषाएं होती हैं, इन्हें राष्ट्रीय हित कहा जाता है । वे इनके संवर्द्धन के लिए प्रयत्न करते हैं । ऐसा करते हुए अन्य राष्ट्रों के साथ इसके अनेक मतभेद और विवाद उत्पन्न होते हैं इन्हें शान्तिपूर्वक रीति से कूटनीति द्वारा हल करने का प्रयत्न किया जाता है । यदि यह इस रीति से हल न हो सके तो विवाद का समाधान शक्ति द्वारा किया जाता है ।
अत: यह कहा जाता है कि अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें प्रत्येक राष्ट्र शक्ति के माध्यम से अपने अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों को इस प्रकार व्यवस्थित करता है कि इससे इसे अधिक से अधिक लाभ हो और उसके राष्ट्रीय हितों की वृद्धि हो ।
दूसरे शब्दों में, अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में विभिन्न राष्ट्र अपने हित साधन के लिए आपसी सम्बन्धों में संघर्ष की जिस स्थिति में रहते हैं उसी का अध्ययन अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति की विषय-वस्तु है । अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के प्रसंग में ‘राष्ट्र’ समुदाय (Groups) है उनकी आवश्यकताएं और इच्छाएं ‘राष्ट्रीय हित’ (National Interests) है और राष्ट्रों या हितों के बीच असहमति ही ‘संघर्ष’ (Conflict) है ।
लेकिन शक्ति का तत्व ज्यों-का-त्यों रहता है । अर्थात् अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में भी शक्ति की वही भूमिका होती है जो राजनीति में होती है । इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के तीन महत्वपूर्ण तत्व हैं: राष्ट्रीय हित, संघर्ष एवं शक्ति ।
राष्ट्रीय हित अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का लस्थ है, संघर्ष उसकी प्रकृति है तथा शक्ति उसका साधन है । (Thus three important things relevant to International Politics are National interest, Conflict and Power, The First is the objectives and second is the condition and the third is the means of International politics) परन्तु इन तीनों तत्वों में संघर्ष या विवाद ही सबसे अधिक महत्वपूर्ण है ।
संघर्ष या विवाद के बिना राष्ट्रीय हित और शक्ति जैसे तत्व महत्वहीन हो जाएंगे, किन्तु इससे यह अभिप्राय नहीं है कि, शक्ति संघर्ष या विवाद ही अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का मुख्य हेतु है । जिन राष्ट्रों के हित परस्पर समान होते हैं उनमें सहयोग भी देखा जाता है और अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में संघर्ष और सहयोग दोनों सन्निहित हैं ।
फिर भी अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में संघर्ष या विवाद का महत्व ज्यादा है । इसका मूल कारण है कि सहयोग स्वयं विवाद से ही उत्पन्न होता है । समान उद्देश्य तथा समान हितों वाले राज्य मिलकर अपने हितों की सुरक्षा के लिए संगठन बनाते हैं और शत्रुओं से रक्षा के लिए सन्धियां करते हैं ।
इस प्रकार अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में सहयोग और संघर्ष की प्रक्रिया साथ-साथ चलती रहती है। सन्धियों के कारण राष्ट्रोंमें परस्पर मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध विकसित होते हैं और संघर्ष शत्रुतापूर्ण सम्बन्धों और युद्धों को जन्म देता है ।
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद संयुत्प्त राज्य अमरीका ने इंग्लैण्ड, फ्रांस, बेल्जियम, कनाडा, आदि देशों के साथ मिलकर लोकतन्त्र और सुरक्षा के लिए नाटो (NATO) का संगठन बनाया और इसका सोवियत संघ के साथ शीतयुद्ध आरम्भ हुआ ।
भारत और चीन के सम्बन्ध 1949 से 1959 तक बड़े मैत्रीपूर्ण रहे, किन्तु इसके बाद इन सम्बन्धों में शिथिलता आने लगी । अक्टूबर, 1962 में चीन द्वारा भारत पर हमला होने के बाद दोनों देशों में संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो गयी। पिछले कुछ वर्षों से दोनों देशों में संघर्ष को टालने और सहयोग के पुख्ता आधारों की खोज के प्रयल शुरू हुए हैं ।
वस्तुत: अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का अध्ययन वास्तव में विवाद के नियन्त्रण और सहयोग की स्थापना का अध्ययन है । अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति की दृष्टि से इस बात का अध्ययन अत्यन्त आवश्यक है कि दो राष्ट्रों में संघर्ष क्यों पैदा होता है और इसका समाधान किस प्रकार हो सकता है । अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में विवाद और सहयोग की नीतियां साथ-साथ चलती रहती है ।
अपनी शक्ति बढ़ाने तथा किसी भी विवाद या संघर्ष में अपनी स्थिति सुदृढ़ करने के लिए राज्यों के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि वे अपने अनुकूल राज्यों से मित्रता बनाएं विभिन्न प्रकार की सन्धियां व समझौते करें । विवाद और युद्ध की स्थिति उत्पन्न होने पर दूसरे देश से सन्धियां, समझौते करके अपनी शक्ति बढ़ाना और भी अधिक आवश्यक हो जाता है ।
इस प्रकार अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में एक ओर राज्यों में विवाद उत्पन्न होते हैं दूसरी ओर शक्ति द्वारा इनको सुलझाने का प्रयास होता है । यह दोहरी प्रक्रिया अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति को विलक्षण गतिशीलता प्रदान करती है । अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का उद्देश्य विभिन्न राष्ट्रों के शान्तिपूर्ण और संघर्षपूर्ण सम्बन्धों का अध्ययन करना है और यह पता लगाना है कि विवादों का समाधान किस प्रकार किया जा सकता है और विभिन्न देशों में सहयोग की भावना को किस प्रकार बढ़ाया जा सकता है । अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति की परिभाषा को लेकर विद्वानों में काफी मतभेद हैं ।
कतिपय प्रमुख लेखकों द्वारा व्यक्त परिभाषाएं यहां प्रस्तुत की जा रही हैं:
स्प्राउट के अनुसार- ”स्वतन्त्र राजनीतिक समुदायों अर्थात् राज्यों के अपने-अपने उद्देश्यों अथवा हितों के आपसी विरोध-प्रतिरोध या संघर्ष से उत्पन्न उनकी क्रिया-प्रतिक्रियाओं और सम्बन्धों का अध्ययन ही अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति है ।”
चार्स्स श्लाइचर के अनुसार- “राज्यों के सभी अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में शामिल किए जा सकते हैं यद्यपि वे यह मानते हैं कि सभी अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध राजनीतिक नहीं होते ।”
जेम्स रोजनाऊ के अनुसार- “अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों का एक अत्यन्त महत्वपूर्ण उपखण्ड है ।” (Its is now widely agreed that International Politics is only a subcategory of international relations, although perhaps the most important one) ।
थाम्पसन के शब्दों में- ”राष्ट्रों के बीच छिड़ी प्रतिस्पर्द्धा के साथ-साथ उनके पारस्परिक सम्बन्धों को सुधारने या बिगाड़ने वाली परिस्थितियों और संस्थाओं के अध्ययन को अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति कहते हैं ।”
नॉर्मन पेडलफोर्ड और जार्ज लिंकन- “अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति को शक्ति सम्बन्धों के परिवर्तित होते हुए ढांचों के भीतर एक- दूसरे से टकराती हुई राजकीय नीतियों के रूप में देखते हैं ।” [Padelford and Lincoln define International Politics as the interaction of state politics within changing patterns of power relationships]
फैलिक्स ग्रास के अनुसार- ”अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का अध्ययन वास्तव में विदेश नीतियों के अध्ययन के अतिरिक्त कुछ नहीं है ।” (The Study of International Politics is identical to the study of Foreign Policy) अनेक विद्वान विभिन्न देशों की विदेश नीति के अध्ययन को ही अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का अध्ययन समझते हैं ।
उनका कहना है कि अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति विभिन्न राज्यों की विदेश-नीतियों के अध्ययन के बिना नहीं समझी जा सकती है, अत: विभिन्न देशों की विदेश नीतियां ही अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का प्रमुख विषय है । इसलिए अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति को विदेश नीतियों का पारस्परिक सम्बन्ध भी माना गया है, किन्तु फ्रेड साण्डरमेन जैसे विद्वान इस मत को स्वीकार नहीं करते ।
उनके अनुसार विदेश नीति का ज्ञान महत्वपूर्ण भले ही हो पर इस ज्ञान की उपलब्धि अत्यन्त कठिन है, क्योंकि किसी देश की विदेश नीति समझने के लिए उस देश के ऐतिहासिक अनुभवों और उसकी शासन प्रणाली की पेचीदगियों को समझना आवश्यक है ।
साथ ही उस देश के नीति निर्धारकों के चरित्र एवं व्यक्तित्व की जानकारी भी जरूरी है । उदाहरणार्थ, लॉर्ड पामर्स्टन द्वारा संचालित विदेश नीति के अध्ययन के लिए उस समय के इंग्लैण्ड और यूरोप के राजनीतिज्ञों का और इंग्लैण्ड तथा अन्य देशों की शासन पद्धति के स्वरूप का और विदेश नीति का निर्माण करने वाले व्यक्तियों का परिचय आवश्यक है ।
जार्ज केनन जैसे राजनीतिज्ञों ने तो यहां तक कहा है कि जिन व्यक्तियों का नीति निर्धारण में हाथ होता है उनके दृष्टिकोण और उन पर अवचेतन में काम कर रहे दबावों की जानकारी के बिना विदेश नीति को नहीं समझा जा सकता ।
इस प्रकार विदेश नीति को समझने का प्रश्न अपने आप में काफी उलझा हुआ है और इसी के समान अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति और विदेश नीति के सम्बन्ध का प्रश्न भी । संक्षेप में, हम यों कह सकते हैं कि अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का अध्ययन निश्चय ही विदेश नीति से जुड़ा हुआ है, परन्तु अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति और विदेश नीति को एक-दूसरे का पर्याय नहीं माना जा सकता । विदेश नीति का अध्ययन अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के अध्ययन का एक महत्वपूर्ण पक्ष है ।
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मारगेन्थाऊ के मत में, अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति राष्ट्रों के बीच निरन्तर होने वाले शक्ति संघर्ष के अतिरिक्त कुछ नहीं है । [ “International Politics is the struggle from and use of Power among nations……. ] पामर और पर्किन्स ने लिखा है कि अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का अध्ययन राज्य-प्रणाली के साथ अनिवार्य रूप से जुडा हुआ है । [ “The study of International Politics is essentially concerned with the state system” ]
राबर्ट स्ट्रास ह्यूप ने अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के अन्तर्गत नागरिकों के कार्यों एवं राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण गैर-सरकारी गुटों के निर्णयों को शामिल करने का समर्थन किया है । संक्षेप में, अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के प्रत्येक विद्वान लेखक ने अपने दृष्टिकोण से परिभाषा करने का प्रयत्न किया है ।
इनमें से कई परिभाषाएं एकपक्षीय प्रतीत होती हैं । इन परिभाषाओं में विचारधारा, राष्ट्रीयता, अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों के क्रिया-कलाप का उल्लेख तक नहीं पाया जाता। राष्ट्रों के मध्य सम्बन्ध तथा प्रतिक्रियाएं ही अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का केन्द्र बिन्दु हैं ।
इसमें राष्ट्रों के बीच शक्ति के संघर्ष की प्रक्रिया का अध्ययन किया जाता है । इसके लिए इसे उन उद्देश्यों को पहचानना है जो राष्ट्रों को क्रिया तथा प्रतिक्रिया करने के लिए तथा इन उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए राष्ट्रों के संघर्ष के स्वरूप का विश्लेषण करने के लिए प्रेरित करते हैं ।
यथार्थ में अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति उस प्रक्रिया का नाम है जिससे विभिन्न राष्ट्र अपनी नीतियों और कार्यों के जरिए अपने उन राष्ट्रीय हितों की सिद्धि के लिए बराबर कोशिश करते रहते हैं जो दूसरे राष्ट्रों के राष्ट्रीय हितों से टकराते हैं ।