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Read this essay in Hindi to learn about the various benefits of the balance of power in relation to international politics.
1. छोटे राज्यों की स्वाधीनता की सुरक्षा:
शक्ति सन्तुलन से छोटे राज्यों की स्वाधीनता बनी रहती है । यदि सभी राष्ट्र समान रूप से शक्तिशाली होंगे तो किसी भी राष्ट्र को प्रबल शक्ति होने का अवसर नहीं मिलेगा । प्रथम शक्ति वाला राष्ट्र ही महत्वाकांक्षी और आक्रमणकारी बन सकता है, अत: शक्ति के समान वितरण से (सन्तुलन से) छोटे राज्यों की स्वाधीनता को खतरा नहीं रहेगा ।
2. अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति का पोषण:
ऐसी भी मान्यता है कि शक्ति सन्तुलन में अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति बनी रहती है । यदि विविध राष्ट्रों या राष्ट्र समूहों में शक्ति का समान वितरण हो तो कोई भी एक राष्ट्र या राष्ट्र समूह आक्रमणकारी बनने का साहस नहीं करेगा । सन्तुलन को कायम रखने के लिए आक्रमण को रोकना निस्सन्देह शान्ति को कायम रखना है ।
किन्तु उपर्युक्त दोनों लाभों की आलोचना की जाती है । आलोचक यह स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं कि शक्ति सन्तुलन से छोटे राज्यों की स्वाधीनता की सुरक्षा होती है । आलोचकों का कहना है कि शक्ति सन्तुलन के नाम पर राष्ट्रों के समूह एवं गुटबन्दियां बनती हैं ।
इन गुटबन्दियों में बडे और छोटे सभी राज्य शामिल होते हैं । जैसे अमरीका ने नाटो, सीटी और सोवियत संघ ने वार्साय पैक्ट बनाया । इन सारे शक्ति सन्तुलन तन्त्र में होने वाली जोड़-तोड़ और राजनीतिक दांव-पेंच की प्रक्रिया प्रमुख होती है । शक्ति सन्तुलन के नाम पर पनपती गुटबन्दियों से छोटे राज्यों की निर्णय प्रक्रिया नियन्त्रित हो जाती है ।
आलोचकों का यह भी कहना है कि, शक्ति सन्तुलन का मुख्य उद्देश्य घोषित नहीं किया जा सकता । यथार्थ में शक्ति को सन्तुलित करने के विचार से ही यह बात ध्वनित होती है कि उसमें आस्था रखने वाला शान्ति की अपेक्षा किसी अन्य वस्तु को अधिक महत्वपूर्ण मानता है । यह तथ्य इस बात से प्रमाणित होता है कि राज्यों को सन्तुलन कायम रखने के लिए युद्ध का आश्रय लेने में संकोच नहीं होता ।
यह सच है कि शक्ति सन्तुलन भूतकाल में शान्ति कायम रखने के एक तन्त्र के रूप में बहुत सफल रहा है । 19वीं शताब्दी में यूरोप में युद्ध तो बहुत बार हुए पर शक्ति सन्तुलन व्यवस्था ने उन युद्धों को स्थानबद्ध और सीमित किया । 18वीं सदी में निरन्तर युद्ध होते रहते थे और 19वीं सदी में नैपोलियन के युद्ध के बाद प्राय: पूर्ण शान्ति रही ।
क्या इसका कारण शक्ति सन्तुलन की स्थापना था ? वस्तुत: इस शान्ति का कारण शक्ति सन्तुलन न होकर शक्ति की प्रबलता थी । नैपोलियन के युद्धों के बाद विशेष रूप से इंग्लैण्ड के पास शक्ति की बहुत अधिक विपुलता थी । शक्ति की विपुलता के कारण ही प्रथम विश्वयुद्ध से पहले की शताब्दी को ‘ब्रिटिश सर्वोच्चता की शताब्दी’ कहा जाता है ।
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अत: यह कहना अधिक तर्कसंगत होगा कि सन् 1815 से 1914 की अवधि की शान्ति शक्ति सन्तुलन के कारण नहीं अपितु ब्रिटिश शक्ति की विपुलता के कारण थी । प्रथम विश्वयुद्ध के बाद अमरीका के पास शक्ति की विपुलता देखी गयी । दोनों विश्वयुद्धों के बीच मित्र राष्ट्रों के पक्ष में शक्ति की बहुतायत रही ।
आर्गेन्स्की ने लिखा है कि “शक्ति सन्तुलन की जिन अवधियों को शान्ति की अवधियां माना जाता है वे वास्तव में युद्ध की अवधियां रही हैं और शक्ति की अत्यधिकता की अवधियों में ही शान्ति बनी रही है।”
3. अन्तर्राष्ट्रीय कानून के अस्तित्व को कायम रखना:
शक्ति सन्तुलन का एक अन्य लाभ यह है कि इसके कारण अन्तर्राष्ट्रीय कानून का अस्तित्व बना रहता है । ओपेनहीम इसी दृष्टिकोण को मानते हुए कहते हैं कि- ”अन्तर्राष्ट्रीय कानून के अस्तित्व के लिए शक्ति सन्तुलन एक अनिवार्य अवस्था है ।”
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अन्तर्राष्ट्रीय कानून के अस्तित्व के लिए यह आवश्यक है कि राष्ट्रों के मध्य शक्ति का सन्तुलन हो । अन्तर्राष्ट्रीय कानून राष्ट्रों की सहमति द्वारा मान्य होता है । अन्तर्राष्ट्रीय कानून को लागू करने वाली कोई केन्द्रीय सत्ता नहीं है, अत: शक्ति सन्तुलन द्वारा ही किसी राष्ट्र को सर्वशक्तिमान होने से रोका जा सकता है ।
अत: शक्ति सन्तुलन पर ही अन्तर्राष्ट्रीय कानून का क्रियान्वयन व संचालन आधारित है, परन्तु वर्तमान में विचारकों का मत है कि अन्तर्राष्ट्रीय कानून व उसका क्रियान्वयन शक्ति सन्तुलन व्यवस्था पर आधारित न होकर अधिक-से-अधिक अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों, विश्व लोकमत, अन्तर्राष्ट्रीय नैतिकता तथा सामूहिक सुरक्षा, आदि पर निर्भर होना चाहिए ।