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Read this essay in Hindi to learn about the changing nature of national power in a country.
राष्ट्रीय शक्ति का स्वरूप बदलता रहा है । एक समय अपने राजनयिक कौशल के कारण फ्रांस, नौसेना की गुणवत्ता के कारण ब्रिटेन, साम्यवादी विचारधारा के कारण सोवियत संघ उल्लेखनीय शक्ति रहे हैं । शीतयुद्धकाल में संयुक्तराज्य अमेरिका एवं सोवियत संघ विश्व की प्रबलतम महाशक्तियां थीं ।
किन्तु 1990 के बाद सोवियत संघ का विघटन हो गया और ऐसा लण-कि दुनिया एक ध्रुवीय विश्व की ओर उमुख हो रही है । भूमण्डलीकरण और सूचना-तकनीकी क्रांति के बाद राष्ट्रीय शक्ति के स्वरूप में भी परिवर्तन आता जा रहा है । 21वीं शताब्दी में वही देश शक्तिशाली होगा जिसका पलड़ा व्यापार-वाणिज्य तथा सूचना-तकनीकी क्रांति की दृष्टि से भारी होगा ।
राष्ट्रीय शक्ति का स्वरूप किस प्रकार बदल रहा है, इसे भारत के सन्दर्भ में देखा जा सकता है । भारत एक विशाल देश है । आबादी की दृष्टि से पूरी दुनिया में चीन के बाद भारत का स्थान आता है । खनिज और प्राकृतिक सम्पदा के भारत में पर्याप्त भण्डार हैं । 2011 की जनगणना के अनुसार साक्षरता की वर्तमान दर 73.0 प्रतिशत है । क्षेत्रफल की दृष्टि से विश्व में भारत का स्थान सातवां है ।
लोहे और कोयले की दृष्टि से भारत आत्म-निर्भर है । भारत के पास काफी बड़ी सेना है । सन् 1974 में पोखरण में आणविक परीक्षण भी भारत ने कर लिया । तकनीकी दृष्टि से भी भारत आत्म-निर्भर बना जा रहा है । जीपें, ट्रकें, टैंक, वायुयान और जलपोतों का निर्माण भारत में ही होने लगा है ।
स्पेस तकनीकी की दृष्टि से काफी उन्नति हुई है और ‘आर्यभट्ट’ और तदुपरान्त अन्य उपग्रह प्रक्षेपण उसका नमूना पेश करते हैं । आज कई चीजों का भारत विदेशों को निर्यात करता है । आउटसोर्सिंग के मामले में विश्व की अधिकतर बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की पहली पसन्द भारत ही है । इसका सबसे बड़ा कारण भारत में कम लागत पर मानव संसाधन की उपलब्धता है ।
1971 में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत को एक क्षेत्रीय शक्ति के रूप में मान्यता मिलना आरम्भ हुआ । आज के बदलते सन्दर्भों में अमरीका भारत को एक क्षेत्रीय शक्ति के रूप में स्वीकार करने लगा है और दक्षिण एशिया में उसे शीर्ष शक्ति के रूप में स्वीकृति मिली है ।
भारत में अमरीका के राजदूत फेंक वीजनर के शब्दों में- “आज विश्वव्यापी सुरक्षा महाशक्तियों अमरीका, रूस, यूरोप, चीन, जापान और भारत के सहयोग से ही सम्भव है ।” भारत स्थित जर्मन राजदूत फ्रेंक एल्बे के अनुसार- “भारत के पास जर्मनी से अधिक संसाधन हैं ।”
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बांग्लादेश के सफल निर्माण एवं 1974 के परमाणु विस्फोट के बाद यह माना जाने लगा कि भारत भी ‘पावरगेम’ का एक चतुर खिलाड़ी हो गया है । ‘शक्ति’ के महत्व को भारत ने अवश्य पहचान लिया है जो भारतीय विदेश नीति में आए नए यथार्थवाद का द्योतक है ।
यह इस नए चिन्तन का प्रभाव है कि, भारत ने आर्थिक प्रगति के साथ-साथ सैन्य क्षमता पर भी ध्यान देना शुरू किया । 1965 की लड़ाई ने उसे चेता दिया कि उसे एक साथ दो-दो फलों पर युद्ध के लिए तैयार रहना पड़ेगा । एक के बाद एक शस्त्रों का जखीरा इकट्ठा करना भारत की मजबूरी हो गयी ।
आज राष्ट्रीय उत्पादन की दृष्टि से भारत विश्व के प्रथम चार राष्ट्रों में आता है । उत्पादन की विकास दर को यदि कड़ी में प्रस्तुत करें तो 1970 से 1985 के बीच 4 प्रतिशत 1985 से 1990 तक लगभग 6 प्रतिशत विकास दर आंकी गई जो ठीक-ठाक है । भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गयी है ।
आर्थिक विकास की गति निरन्तर तीव्र बनी हुई है । कृषि क्षेत्र, उद्योग-धन्धों और सेवा क्षेत्रों में हो रही प्रगति ने अर्थव्यवस्था में नया उत्साह भर दिया है । देश का विदेशी मुद्रा भण्डार नवम्बर 2015 में लगातार एक नयी ऊंचाई 3,53,640 मिलियन डॉलर पर पहुंच गया ।
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वर्ष 2003-04 में आर्थिक विकास दर 7-8 प्रतिशत रही जिसे आगे के वर्षों में बराबर बनाये रखा गया । सैन्य क्षमता की दृष्टि से भारत की स्थिति काफी मजबूत है । समग्र विश्व में भारत की सेना संख्या बल की दृष्टि से चौथी सबसे बड़ी सेना है । सन् 1980-90 के दशक में भारत ने उसके आधुनिकीकरण की विशाल योजनाओं को कार्यान्वित किया ।
सैन्य प्रयोग के क्षेत्र में भारत के पास व्यापक क्षमता है तथा 1986 से भारत विश्व में हथियार के आयातकर्ताओं में सबसे अग्रिम पंक्ति में रहा है । स्टॉकहोम इन्टरनेशनल पीस रिसर्च इन्स्टीट्यूट की मार्च, 2014 में जारी रिपोर्ट के अनुसार भारत विश्व में हथियारों का सबसे बड़ा आयातक देश है ।
रिपोर्ट के अनुसार 2008-12 की तुलना में 2009-14 की पांच वर्षीय अवधि में भारत के हथियार आयात में 111 प्रतिशत वृद्धि हुई तथा विश्व के कुल शस्त्र आयात में उसका अश 7 प्रतिशत से बढ्कर 14 प्रतिशत हो गया है । हमारी रक्षा उत्पादन सम्बन्धी विभिन्न इकाइयां धीरे-धीरे आत्मनिर्भर होती जा रही हैं ।
अतिरिक्त क्षमताएं सृजित की गई हैं और इनमें नई मदों का उत्पादन शुरू हुआ है जिनमें मुख्य युद्ध टैंक अर्जुन, उन्नत हल्का हेलीकाप्टर तथा 155 मिमी गोला बारूद की रेन्ज शामिल है । भारतीय नौसैनिक क्षमता में भारी वृद्धि हुई है । आरम्भ में एक सामान्य तट रक्षक नौसेना से बढ़कर आज भारतीय नौसेना की क्षमता तथा प्रभाव क्षेत्र में भारी वृद्धि हुई है ।
12 जून, 2002 को भारत ने तीव्र गश्तीपोत ‘35 नॉट फास्ट पेट्रोल वैसल’ गोवा शिपयार्ड में परीक्षण किया । युद्धपोत ‘प्रबल’ 11 अप्रैल, 2002 को भारतीय नौसेना में शामिल किया गया । जमीन से हवा में मार करने वाली मिसाइलों से सुसज्जित ‘आईएनएस प्रबल’ अब तक बनाये गये युद्धपोतों में सबसे ज्यादा 65 प्रतिशत स्वदेशी तकनीकी से बनाया गया युद्धपोत है ।
आईएनएस विक्रान्त एवं आईएनएस विक्रमादित्य ने भारतीय नौसेना की शक्ति में अभूतपूर्व वृद्धि कर दी है । इसी प्रकार वायु सेना के क्षेत्र में भारत एक प्रमुख शक्ति है । उसके पास विविध श्रेणियों के लगभग 700 विमान ब्रिटिश जेगुआर, फ्रांसीसी मिराज-2000, साथ ही मिग-23, मिग-27 तथा मिग-29 हैं ।
मिराज 2000 को फ्रांस से प्राप्त किया गया । अब इसका नाम वज्र रख दिया गया है । पायलट रहित लक्ष्य विमान लक्ष्य ADE बेंगलुरू द्वारा बनाये जाते हैं । वर्ष 2000 में इसे भारतीय वायुसेना में शामिल कर लिया गया । पहला पूर्णत: स्वदेशी तकनीक से बना हैलीकॉप्टर, HAL बेंगलुरू द्वारा, 1992 में बनाया गया था ।
सुखोई-30 एम. के. रूस निर्मित विश्व का आधुनिकतम किस्म का बहुयोजनीय लडाकू विमान है, जिसको भारतीय वायुसेना में शामिल कर लिया गया है । भारतीय रक्षा बजट 80 के दशक में बढ़ कर दूना हो गया लगभग 8.5 बिलियन डॉलर । रॉकेट निर्माण के क्षेत्र में देश ने ठोस बूस्टर और तरल ईंधन इंजन के मामले में महारत हासिल कर ली है । पी. एस. एल. वी. से भारत को पहली बार अन्तर-महाद्वीपीय प्रक्षेपास्त्र (आई. सी. बी. एम.) की क्षमता प्राप्त हो गयी ।
इससे भारत के पास ऐसी तकनीकी क्षमता आ गयी है कि वह पांच टन वजन का रासायनिक, जैविक व आणविक विस्फोटक दुनिया के किसी भी हिस्से में गिरा सकता हे । मार्च, 2009 में ब्रह्मोस मिसाइल के संस्करण 2 का परीक्षण सफल रहा जिसे सेना में शामिल कर लिया गया है ।
हमलावर मिसाइल को लक्ष्य तक पहुंचने से पूर्व ही इण्टरसेप्टर मिसाइल द्वारा आकाश में ही नष्ट करने का सफल परीक्षण मार्च 2009 में कर भारत ने स्वदेशी द्विस्तरीय बैलिस्टिक मिसाइल डिफेन्स सिस्टम विकसित करने की दिशा में सुदृढ़ता का प्रदर्शन किया ।
26 जुलाई, 2009 को परमाणु ऊर्जा से युक्त पनडुब्बी आई.एन.एस. अरिहन्त का जलावतरण किया जा चुका है । आज भारत के पास सबसे बड़ा वैज्ञानिक समूह मौजूद है । इसके वैज्ञानिक अंटार्कटिका तक जा पहुंचे । सुपर कम्प्यूटर तक के परीक्षण हो रहे हैं । ये सारे आंकड़े किस ओर संकेत करते हैं ? 11 एवं 13 मई, 1998 को पांच और परमाणु परीक्षण करके परमाणु शक्ति के रूप में भारत ने स्वयं को स्थापित कर दिया ।
इन सफल परमाणु परीक्षणों के बाद भारत गिनती के उन चोटी के राष्ट्रों की श्रेणी में आ गया जिनके पास परमाणु अस्त्रों की शक्ति है । ये परीक्षण देश के वैज्ञानिकों की क्षमता दृढ़ता और अनुकधानात्मक वृत्ति के भी उत्कृष्ट प्रतीक हैं । दक्षिण-पूर्व एशिया में भारत चीन के बाद दूसरा परमाणु शक्ति सम्पन्न देश बन गया इससे क्षेत्र का शक्ति सन्तुलन काफी हद तक भारत के पक्ष में हो गया है ।
पोखरण में मई, 1998 में किए गए 5 परमाणु परीक्षणों की शृंखला के 11 महीने बाद अग्नि-II का परीक्षण करके भारत ने अपनी रक्षा क्षमता का जबर्दस्त विस्तार किया है । 2000 किमी से अधिक की मारक क्षमता वाला यह प्रक्षेपास्त्र परम्परागत एवं परमाणु दोनों प्रकार के हथियारों को ढोने की क्षमता रखता है ।
इससे पूर्व अग्नि-I के तीन परीक्षण मई 1989, मई 1992 तथा फरवरी 1994 में किए गए थे । अग्नि-II के सफल परीक्षण के पश्चात् भारत ने अपने स्वदेशी पायलट रहित प्रशिक्षण विमान तथा सतह से हवा में मार करने वाले प्रक्षेपास्त्र त्रिशूल के भी परीक्षण किए । 17 अक्टूबर, 2014 को स्वदेश में विकसित परमाणु आयुध ले जाने में सक्षम क्रूज मिसाइल ‘निर्भय’ का सफल परीक्षण किया गया ।
यह मिसाइल 700 किमी से अधिक दूरी पर स्थित लक्ष्यों को निशाना बना सकती है । 10 जुलाई, 2015 को सुपरसोनिक मिसाइल ‘आकाश’ को वायुसेना में शामिल किया गया । यह 100 किमी की दूरी से लक्ष्य पर दृष्टि रखकर 25 किमी की दूरी तक दुश्मन के हेलीकॉप्टर विमान और होन को भेद सकती है ।
30 सितम्बर, 2015 को स्वदेशी निर्मित सबसे बड़े युद्धपोत आईएनएस कोच्चि का जलावतरण मुम्बई में नौसेना डॉक यार्ड में किया गया । 9 नवम्बर, 2015 को बैलेस्टिक अग्नि-4 का सफल परीक्षण किया जो 4000 किमी तक मार करने में सक्षम है । प्रेक्षकों के अनुसार इन परीक्षणों के पश्चात् भारत लम्बी व मध्यम दूरी की प्रक्षेपाख प्रौद्योगिकी के मामले में चीन के बराबर पहुंच रहा है ।
24 सितम्बर, 2014 को पहली ही बार में मंगल तक पहुंचने वाला भारत विश्व का पहला देश बन गया । इन सबके बावजूद भारत एक महाशक्ति नहीं है । गरीबी महंगाई बेकारी और अशिक्षा के कारण भारत की जनता का मनोबल ऊंचा नहीं है । पिछले कुछ वर्षों से जो राजनीतिक अस्थिरता और अनिश्चितता देखी गयी उससे तो यही कहा जा सकता है कि, जनता और सरकार के बीच तादाल्थ नहीं हो पाया है ।
सूखे और अकाल के कारण जिस देश को विदेशों से खाद्य सामग्री शक्कर और सीमेण्ट का आयात करना पड़ता हो वह महाशक्ति कैसे कहला सकता है ? पिछले कुछ वर्षो से भारतीय अर्थव्यवस्था में गतिरोध (स्टेगफ्लेशन) की स्थिति उभरी है जिसमें तीन चीजें एक साथ घटित हुई हैं: आर्थिक मन्दी, बेरोजगारी और मूल्य वृद्धि ।
पांच-छ: आणविक बमों का परीक्षण कर देने मात्र से अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में शक्ति सन्तुलन भारत के पक्ष में नहीं हो जाता । इजरायली लोगों जैसा राष्ट्रीय चरित्र भी भारतीय नागरिकों में नहीं पाया जाता । आम भारतीय नागरिक निराश, उदास, सहिष्णु और रूढ़िवादी है, जिसमें महत्वाकांक्षाओं का अभाव है ।
भारतीय समाज धर्म और जाति के टुकड़ों में बंटा हुआ है और उसमें बुनियादी एकता का अभाव पाया जाता है । भारतीय राजनयिक औपनिवेशिक रंग में रंगे हुए रहते हैं और विदेशी भाषा का प्रयोग करते हैं । औद्योगिक क्षमता का पूरा विकास नहीं हो पाया है और तेल के लिए भारत अरब देशों की कृपा का सदैव आकांक्षी रहता है ।
भारत में यद्यपि लोहे और कोयले के विशाल भण्डार हैं, फौलाद तैयार करने के लिए आवश्यक मैंगनीज भी पर्याप्त मात्रा में मिलता है फिर भी भारत प्रथम कोटि के शक्तिशाली राष्ट्रों की पंक्ति में अपना स्थान नहीं बना सका है, क्योंकि उसमें अभी तक अपनी इस् बहुमूल्य खनिज सम्पदा को कारखानों में पूरा उपयोग करने की क्षमता का रूस अथवा अमरीका जैसा विकास नहीं हुआ ।
ऐसी स्थिति में भारत को अमरीका, रूस और चीन की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता । केवल इतना ही कहना पर्याप्त है कि निकट भविष्य में महाशक्ति बनने की उसमें सम्भावनाएं झलकती हैं । 1971 में बांग्लादेश की मुक्ति के सन्दर्भ में भारत ने जो भूमिका निबाही उससे उसकी क्षेत्रीय शक्ति सामर्थ्य और क्षमता का संकेत मिला ।
1987-90 में भारत ने श्रीलंका के अनुरोध पर वहां सैनिक सहयोग सम्बन्धी कार्यवाही की । 1988 में मालदीव के अनुरोध पर वहां सेना भेजकर आन्तरिक विद्रोह को दबाने में तत्कालीन मालदीव सरकार को सहयोग दिया । भारत ने समय-समय पर स्पष्ट किया है कि, मसला चाहे कश्मीर का हो या गंगा जल विवाद या तमिल प्रश्न-ये प्रश्न भारत और उसके पड़ोसी राष्ट्रों के बीच हैं यहां द्विपक्षीय समझौता ही सम्भव है ।
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बाहरी शक्तियों का हस्तक्षेप भारत बर्दाश्त नहीं करेगा । विदेश नीति गृह नीति का दर्पण होती है । आर्थिक शक्ति से ही किसी देश की आणविक शक्ति तथा प्रौद्योगिकी जुड़ी होती है । औद्योगिक दृष्टि से 10वें स्थान पर होते हुए भी भारत आर्थिक दृष्टि से पिछड़ा हुआ मुल्क है । नवम्बर, 2015 में भारत का कुल विदेशी ऋण 954.90 अरब डॉलर था जो कुल जी.डी.पी. का 18.0 प्रतिशत था ।
वर्ष 2015 की मानव विकास रिपोर्ट (2014 के सूचकांक पर आधारित) 188 देशों में भारत का 130वां स्थान दर्शाया गया है । भारत जीवन प्रत्याशा को छोड्कर मानव विकास सूचकांक की सभी कसौटियों में अन्य ब्रिक्स देशों की तुलना में थोड़ा ऊपर है । विश्व बैंक की गरीबी की स्थिति पर जारी एक रिपोर्ट के अनुसार 1981 में विश्व के 22 प्रतिशत गरीब भारत में रहते थे, लेकिन 2010 तक यह संख्या 33 प्रतिशत हो गई ।
मतलब यह कि विश्व के तीन में से अत्यन्त गरीब लोगों में से एक भारतीय है, जबकि हर घर में से एक मनुष्य भारतीय है । अक्टूबर, 2013 में जारी एक रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि कुपोषण, बाल कुपोषण व बाल मृत्यु दर के आधार पर तैयार किए गए ग्लोबल हंगर इन्डेक्स के आधार पर भारत को 84 देशों में 63वां स्थान प्रदान किया गया है, जबकि पड़ोसी देशों में चीन का इस मामले में 9वां, श्रीलंका का 39वां, नेपाल का 56वां व पाकिस्तान का 52वां स्थान है ।
पड़ोसी देश चीन का रक्षा बजट 132 अरब डॉलर है और हमारा महज 38 अरब डॉलर है । उनकी अर्थव्यवस्था भारत से चार गुना बड़ी हो गई है । जबकि 30 वर्ष पहले दोनों मुल्क बराबरी पर थे । चीन का विदेशी मुद्रा भण्डार लगभग 3,948 अरब डॉलर है, जबकि भारत का 353 अरब डॉलर ही है ।
वस्तुत: भारत की शक्ति इस बात पर निर्भर करेगी कि राष्ट्रीय उत्पादन में कितनी वृद्धि हुई, विदेशी मुद्रा कितनी आयी, अकाल कितने कम पड़े, इत्यादि । चाहे रूस हो या अमरीका या मिश्रित अर्थव्यवस्था वाला भारत, विश्व राजनीति में उसी राष्ट्र का प्रभुत्व रहता है, जो आर्थिक रूप से आत्म-निर्भर है और जिसमें पराश्रित मुल्कों को आपस में लड़ाने की क्षमता है ।