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Read this essay in Hindi to learn about inter-relationship between collective security and the U.N.O.
राष्ट्रसंघ की भांति संयुक्त राष्ट्रसंघ के चार्टर में भी सामूहिक सुरक्षा की व्यवस्था की गयी है । इस व्यवस्था की स्थापना करते समय इस बात का ध्यान रखा गया कि संयुक्ता राष्ट्रसंघ के अन्तर्गत सामूहिक सुरक्षा की व्यवस्था राष्ट्रसंघ के अन्तर्गत स्थापित व्यवस्था से अधिक प्रभावशाली हो ।
अत: संयुक्त राष्ट्रसंघ के विधान के अनुच्छेद 43 के अन्तर्गत यह व्यवस्था की गयी कि शान्ति स्थापना के लिए जब जैसी आवश्यकता हो तब संघ के सदस्य राष्ट्र सुरक्षा परिषद की सहायता के लिए अपने सशस्त्र सैनिक तथा अन्य सुविधाएं परिषद के सुपुर्द करेंगे ।
शान्ति और व्यवस्था स्थापित रखना सुरक्षा परिषद का प्रमुख दायित्व है । फिर भी महासभा के ‘शान्ति के लिए एकता प्रस्ताव’ में यह व्यवस्था कर दी है कि यदि कभी शान्ति के लिए संकट पैदा हो अथवा शान्ति भंग हो अथवा आक्रमण हो जाए और सुरक्षा परिषद् अपने स्थायी सदस्यों द्वारा ‘वीटो’ प्रयोग किए जाने के कारण कोई कार्यवाही न कर सके तो महासभा उस विवाद को अपना संकटकालीन अधिवेशन बुलाकर तुरन्त अपने हाथ में ले सकती है और स्थिति का मुकाबला करने के लिए सामूहिक कार्यवाही का सुझाव दे सकती है जिसमें सशस सेना के उपयोग का सुझाव शामिल है ।
संयुक्त राष्ट्रसंघ ने सामूहिक सुरक्षा से सम्बन्धित निम्न प्रकार की कार्यवाही की है:
(1) कोरिया का मामला:
संयुक्त राष्ट्रसंघ के अन्तर्गत सामूहिक सुरक्षा की परीक्षा का अवसर पहली बार सन् 1950 में आया जबकि दक्षिण कोरिया के विरुद्ध उत्तरी कोरिया द्वारा आक्रमण किया गया । सुरक्षा परिषद् ने निर्णय किया कि उत्तरी कोरिया के हमले से विश्वशान्ति भंग हुई है यद्यपि यह निर्णय सोवियत प्रतिनिधि की अनुपस्थिति में ही किया जा सका था ।
सुरक्षा परिषद ने दोनों पक्षों को फौरन युद्ध बन्द करने तथा सेनाओं को 38 अक्षांश रेखा तक लौट जाने के लिए कहा । उत्तर कोरिया ने जब सुरक्षा परिषद् के इस कथन की सर्वथा अवहेलना की तो उसने अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति स्थापित करने के लिए सैनिक कार्यवाही करने का निश्चय किया ।
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उन दिनों सोवियत रूस द्वारा कम्युनिस्ट चीन को मान्यता न देने के प्रतिवादस्वरूप संघ की सब बैठकों का बहिष्कार किया जा रहा था, अत: सुरक्षा परिषद में संयुक्त राज्य अमरीका का कोरिया में सैनिक कार्यवाही का प्रस्ताव 25 जून, 1950 को बड़ी सुगमता से पास हो गया ।
सुरक्षा परिषद में इसके पक्ष में नो वोट आए, यूगोस्लाविया ने वोट नहीं दिया, रूस अनुपस्थित था । एक दूसरे प्रस्ताव में यह सिफारिश की गयी थी कि- ”संयुक्त राष्ट्रसंघ के सदस्य कोरिया के गणराज्य को ऐसी आवश्यक सहायता दें जो सशस्त्र आक्रमण का प्रतिरोध कर सके तथा उस क्षेत्र में अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा बनाए रख सके ।”
यह प्रस्ताव सात वोटों से पास हुआ, यूगोस्लाविया तटस्थ रहा, मिस्र और भारत ने वोट में भाग नहीं लिया सोवियत संघ अनुपस्थित था । इससे पूर्व अमरीकी सरकार ने ऐलान किया कि हमने अमरीकी वायुसेना और नौसेना को यह आदेश दे दिया है कि वे सुरक्षा परिषद के 25 जून के संकल्प को क्रियान्वित करने में दक्षिण कोरिया की सेना की सहायता करें ।
27 जून से सुरक्षा परिषद ने यह निर्णय लिया कि अविलम्ब सैनिक कदम उठाना आवश्यक है और इस प्रकार अमरीका की कार्यवाही को अपना लिया । संयुक्त राष्ट्रसंघ के 60 सदस्यों में से 16 ने अपनी सशस्त्र
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सेनाएं भेजीं । इन 16 सदस्यों में से अमरीका ब्रिटेन और कनाडा ने ही सेना की काफी मात्रा भेजी ।
कोरिया में लड़ने वाली कुल सेना का 90 प्रतिशत भाग दक्षिण कोरिया और अमरीका का था । नवम्बर 1950 में कोरिया के युद्ध में चीन के स्वयंसेवक भाग लेने गए । इससे युद्ध की समस्या बहुत अधिक गम्भीर हो गयी ।
सामूहिक सुरक्षा की दृष्टि से विचार करने पर कोरिया की घटना से निम्नलिखित तथ्य उभरते हैं:
(i) संयुक्त राष्ट्रसंघ की इस कार्यवाही में अमरीका ने जो काम किया उसे क्या वास्तव में सामूहिक सुरक्षा का कार्य कहा जा सकता है ? यह किसी भी हालत में संयुक्त राष्ट्रसंघ का युद्ध नहीं पर संयुक्त राज्य अमरीका का युद्ध था ।
(ii) संयुक्त राष्ट्रसंघ के महासचिव ने 14 जुलाई, 1950 को पचास राज्यों से कोरिया में सेना भेजने की अपील की थी जिसमें पैंतीस ने तो इकार कर दिया या उत्तर ही नहीं दिया शेष जिन राज्यों ने सेनाएं भेजीं वे अमरीकी गुट के थे और उन्होंने भी बहुत कम मात्रा में सेना भेजी । वस्तुत: यह एक विशुद्ध अमरीकी युद्ध था जिसका सामूहिक सुरक्षा के सिद्धान्त से कोई मतलब नहीं था ।
(iii) युद्ध के मध्य में चीन जैसी महाशक्ति एक सक्रिय भागीदार के रूप में आक्रमणकारी के साथ जा मिली ।
(iv) संयुक्त राष्ट्र के दूसरे सदस्य जिनमें सैनिक सामर्थ्य थी जैसे कि, अर्जेण्टाइना, ब्राजील, चेकोस्लोवाकिया, भारत, मेक्सिको, पोलैण्ड तटस्थ रहे और किसी पक्ष की सैनिक क्रिया में भाग नहीं लिया ।
संक्षेप में, उत्तरी कोरिया के विरुद्ध सामूहिक कार्यवाही में अमरीका के शामिल होने का उद्देश्य सोवियत गुट के प्रसार को रोकना था जो अमरीका की विदेश नीति का एक प्रमुख लक्ष्य था । कोरिया में की गयी सामूहिक कार्यवाही को सामूहिक सुरक्षा का उदाहरण मानना गलत है । यथार्थ में सामूहिक सुरक्षा की कार्यवाही संयुक्त राष्ट्र की अपेक्षा वाशिंगटन से संचालित होती थी । मॉरगेन्थाऊ के अनुसार, ”इस प्रकार सामूहिक सुरक्षा की वास्तविकता जैसा कि इसे कोरिया के युद्ध में लागू किया गया, सचमुच उस आकार के अनुरूप है, जिसकी रूपरेखा रेखाचित्र में दी गयी है ।”
(2) स्वेज संकट का मामला:
संयुक्त राष्ट्रसंघ द्वारा सामूहिक सुरक्षा के प्रयोग का दूसरा उदाहरण स्वेज संकट से सम्बन्धित है । सन् 1956 में मिस्र द्वारा स्वेज नहर का राष्ट्रीयकरण कर दिए जाने पर इजरायल, फ्रांस और ब्रिटेन ने सामूहिक रूप से उस पर आक्रमण कर दिया । इस संकट पर विचार करने के लिए महासभा की अपातकालीन बैठक बुलायी गयी ।
अन्त में आक्रमणकारियों ने महासभा के प्रस्ताव को मानकर युद्ध बन्द कर दिया और सेनाएं वापस बुला लीं । किन्तु वास्तव में यह सामूहिक सुरक्षा की सफलता नहीं थी वरन् कुछ अन्य कारणों से आक्रमणकारी राष्ट्रों ने महासभा के प्रस्ताव को माना था ।
ब्रिटेन और फ्रांस ने अपनी सेनाएं इसलिए हटायीं कि स्वदेश और विदेशों में लोकमत ने इस आक्रमण की कटु निन्दा की थी । अमरीका ने आक्रमणकारियों का समर्थन नहीं किया और इस युद्ध में सोवियत हस्तक्षेप का भी खतरा था ।
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(3) खाड़ी संकट:
2 अगस्त, 1990 को इराक ने कुवैत पर आक्रमण कर दिया और इराकी सेना द्वारा कुवैत पर अधिकार कर लिया गया । कुवैत के शासक ने भागकर सऊदी अरब में शरण ली । संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् ने 8 अगस्त की अपनी बैठक में इराक के साथ कुवैत का विलय अवैध करार दिया और इराक से वहां से अपनी सेना हटाने का आग्रह किया ।
साथ ही परिषद ने इराक के विरुद्ध आर्थिक प्रतिबन्ध भी लागू करने की घोषणा की । 29 नवम्बर, 1990 को सुरक्षा परिषद् ने एक प्रस्ताव पारित कर इराक को चेतावनी दी कि 15 जनवरी, 1991 तक वह अपनी सेनाएं हटा ले अन्यथा उसके विरुद्ध बल प्रयोग किया जा सकता है ।
इराक के राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन की हठधर्मी के सामने संयुक्त राष्ट्रसंघ द्वारा किए सभी राजनीतिक प्रयास विफल हो गए और अन्तत: 17 जनवरी, 1991 को खाड़ी क्षेत्र युद्धस्थली बन गया । संयुक्त राष्ट्रसंघ के इतिहास में यह पहला अवसर है जब उसने किसी छोटे देश को बड़े देश के कष्टों से मुक्त कराने के लिए दुनिया के देशों को संगठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की ।
सद्दाम ने जब कुवैत खाली कराने के संयुक्त राष्ट्रसंघ के सभी प्रयलों को रह कर दिया तो अन्तत: उसने अमरीका व उसके मित्र देशों को कुवैत को इराकी कब्जे से मुक्त कराने के लिए सैनिक कार्यवाही करने को अधिकृत कर दिया ।