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Here is an essay on ‘Collective Security System’ for class 11 and 12. Find paragraphs, long and short essays on ‘Collective Security System’ especially written for school and college students in Hindi language.
Essay on Collective Security System
Essay Contents:
- ‘सामूहिक सुरक्षा’ का अर्थ (Meaning of Collective Security System)
- सामूहिक सुरक्षा का सिद्धान्त: सैद्धान्तिक मान्यताएं (The Concept of the Collective Security: Theoretical Assumptions)
- सामूहिक सुरक्षा के विचार का विकास (Evolution of the Collective Security System)
- सामूहिक सुरक्षा एवं सामूहिक मोर्चाबन्दी (Collective Security and Collective Defence)
- सामूहिक सुरक्षा और प्रादेशिक संगठन (Collective Security and Regional Arrangements)
- सामूहिक सुरक्षा और निरस्त्रीकरण (Collective Security and Disarmament)
- सामूहिक सुरक्षा और विश्व सरकार (Collective Security and World Government)
- सामूहिक सुरक्षा और शक्ति सन्तुलन (Collective Security and Balance of Power)
- राष्ट्रसंघ और संयुक्त राष्ट्रसंघ की सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था: तुलना (Comparative Analysis of the Collective Security System Under League of Nations and the U.N.O.)
Essay # 1. ‘सामूहिक सुरक्षा’ का अर्थ (Meaning of Collective Security System):
‘सामूहिक सुरक्षा’ शब्द के अनेक अर्थ निकलते हैं, किन्तु मूल में यह बात है कि, इस व्यवस्था के अन्तर्गत विभिन्न राष्ट्र सामूहिक रूप से मिलकर किसी सम्भावित आक्रमण का विरोध करने के लिए कृत-संकल्प हो जाते हैं ।
आधार के रूप में यह मान्यता कार्य करती है कि, उनमें किसी राष्ट्र के ऊपर होने वाला आक्रमण सभी राष्ट्रों पर किया गया आक्रमण समझा जाएगा और सामूहिक रूप से सभी राष्ट्र संगठित होकर उस आक्रमण का मुकाबला करेंगे । सामूहिक सुरक्षा की इस व्यवस्था को संरक्षण एवं शान्ति का अभिवर्द्धक माना जाता है ।
शक्ति सन्तुलन की व्यवस्था में जो गुट बनाए जाते हैं अथवा सैनिक सन्धियां की जाती हैं उनका लक्ष्य दूसरे गुट अथवा दूसरे गुट के देशों का विरोध करना-उन पर आक्रमण करना अथवा उनके आक्रमण से अपनी रक्षा करना होता है, परन्तु सामूहिक सुरक्षा की व्यवस्था में विरोधी अस्पष्ट और सम्भावित होता है ।
प्रत्येक राष्ट्र अपनी सुरक्षा के कार्य में रत रहता है और यदि उनमें से किसी एक राष्ट्र पर संकट आता है तो इस व्यवस्था के अन्तर्गत बंधे सभी राष्ट्र उसकी सुरक्षा के लिए सामूहिक रूप से दौड़ पड़ते हैं । सुरक्षा सिद्धान्त की मान्यता है कि, किसी भी समय पर संसार में शक्ति का वितरण इस प्रकार होता है जिसमें अधिकांश शक्ति उन लोगों के हाथों में केन्द्रित होती है जो शान्ति और व्यवस्था को कायम रखना चाहते हैं, इसलिए इस व्यवस्था के अन्तर्गत संसार की शान्ति भंग करने का कोई भी आक्रमणकारी साहस नहीं करेगा ।
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यदि कोई भी राष्ट्र किसी अन्य राष्ट्र पर आक्रमण करेगा तो बाकी सब राष्ट्र मिलकर उस आक्रमणकारी का मुकाबला करेंगे । सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था को जॉन श्वार्जनबर्गर ने अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था के विरुद्ध आक्रमण रोकने अथवा उसके विरुद्ध प्रतिक्रिया करने के लिए किए गए संयुक्त कार्यों का यन्त्र कहा है ।
मॉरगेन्थाऊ के अनुसार- ”सामूहिक सुरक्षा की सक्रिय प्रणाली में सुरक्षा की समस्या अब व्यक्तिगत राष्ट्र का समुत्थान नहीं जिसका ख्याल शस्त्रों और राष्ट्रीय बल के दूसरे अंशों से किया जाए । सुरक्षा का सम्बन्ध सब राष्ट्रों से है । वे प्रत्येक की सुरक्षा का ख्याल सामूहिक रूप में करेंगे जैसे उनकी अपनी ही सुरक्षा खतरे में हो ।
यदि ‘अ’ ‘ब’ की सुरक्षा के लिए खतरा सिद्ध होता है तो ‘स’ ‘द’ ‘य’ ‘ब’ की ओर से ‘अ’ के विरुद्ध कदम उठाएंगे माना कि ‘अ’ ने उनको और ‘ब’ को चुनौती दी हो और ऐसी ही इसके विपरीत भी । एक सब के लिए और सब एक के लिए सामूहिक सुरक्ष का मूलमन्त्र है ।
जार्ज श्वार्जनबर्जर ने सामूहिक सुरक्षा का लक्षण स्पष्ट करते हुए लिखा है, ”एक सुप्रतिष्ठित अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था के आधार पर हमले को रोकने के लिए यह विभित्र राज्यों द्वारा सम्मिलित कार्यवाही करने का एक साधन है ।”
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जैसे कि ब्रिटिश राजदूत कार्ड लोफटस को, बिस्मार्क ने 12 अप्रैल, 1869 को ब्रिटिश विदेश मन्त्री अर्ल आफ क्लेरेडन से 17 अप्रैल, 1869 की भेजी गयी रिपोर्ट के अनुसार कहा था: ”यदि तुम केवल इतना घोषित कर दो कि हर समय उस शक्ति को जो जान-बूझकर यूरोप की शान्ति को भंग करेगी सामूहिक शत्रु के रूप में देखा जाएगा-हम इस घोषणा में सम्मिलित होंगे और इसका पालन करेंगे, यह मार्ग यदि इसका दूसरी शक्तियां समर्थन करें यूरोप की शान्ति के लिए निश्चित गारण्टी बनेगा ।”
संक्षेप में, सामूहिक सुरक्षा से अभिप्राय है:
(i) किसी एक राज्य पर किया गया हमला सब राज्यों पर हमला माना जाए ।
(ii) किसी राष्ट्र विशेष की सुरक्षा अकेले उसी राष्ट्र की चिन्ता का विषय नहीं है, बल्कि वह सारे अन्तर्राष्ट्रीय समाज की चिन्ता का विषय है ।
(iii) यदि एक राष्ट्र किसी दूसरे राष्ट्र की सुरक्षा को खतरा पैदा करता है तो खतराग्रस्त राष्ट्र की ओर से बाकी सब राष्ट्र कार्यवाही करेंगे ।
(iv) आक्रमणकारी के अलावा और सब राष्ट्रों के बीच सहयोग सामूहिक सुरक्षा का सारतत्व है । हो सकता है कि इस ‘सहयोग’ के डर से आक्रमणकारी आक्रमण का विचार ही त्याग दे ।
Essay # 2. सामूहिक सुरक्षा का सिद्धान्त: सैद्धान्तिक मान्यताएं (The Concept of the Collective Security: Theoretical Assumptions):
युद्ध को रोकने तथा अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति की अभिवृद्धि करने के प्रभावी साधन के रूप में सामूहिक सुरक्षा का सिद्धान्त कुछ सैद्धान्तिक मान्यताओं पर आधारित है ।
मॉरेगेन्थाऊ के अनुसार, यदि सामूहिक सुरक्षा को युद्ध रोकने के माध्यम के रूप में कार्य करना है, तो तीन धारणाएं अवश्य पूरी होनी चाहिए:
प्रथम:
यह कि सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था प्रत्येक अवसर पर इतनी जबरदस्त शक्ति संचय करने की स्थिति में होनी चाहिए ताकि आक्रामक राष्ट्र अथवा राष्ट्रों को आक्रमण करने का साहस न हो;
द्वितीय:
उन राष्ट्रों की सुरक्षा सम्बन्धी धारणाएं मान्यताएं व नीतियां समान होनी चाहिए जिन्हें सामूहिक रूप से आक्रमण का मुकाबला करना हो; और
तृतीय:
ऐसे सभी राष्ट्रों को अपने परस्पर विरोधी राजनीतिक हितों को सामूहिक सुरक्षात्मक कार्यवाही के हितों के लिए बलिदान करने को तत्पर रहना चाहिए ।
आर्गेन्स्की के अनुसार सामूहिक सुरक्षा की अवधारणा पांच आधारभूत मान्यताओं पर आधारित है:
प्रथम:
किसी भी सशस्त्र संघर्ष में सब राष्ट्र इस बात पर एकमत होंगे कि कौन-सा राष्ट्र आक्रामक है । वे इस निर्णय को लेने में कोई समय नहीं लगाएंगे क्योंकि आक्रमण का प्रतिकार करने में विलम्ब का अर्थ है व्यापक नुकसान ।
द्वितीय:
सभी राष्ट्र आक्रमण को रोकने में समान रूप से रुचि रखते हैं चाहे आक्रमण का स्रोत कुछ भी क्यों न हो । अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों के संचालन में आक्रमण का प्रतिकार करना वास्तव में सबसे अधिक मूल्यवान बात है और उसके मार्ग में मैत्री और आर्थिक लाभ के विचार खड़े नहीं कर सकते ।
तृतीय:
सभी राष्ट्र आक्रामक राष्ट्र के विरुद्ध कार्यवाही करने में समान रूप से रुचि रखते हैं और उनमें ऐसा करने की क्षमता भी समान रूप से पायी जाती है ।
चतुर्थ:
आक्रमणकारी को छोड़कर शेष संसार के राष्ट्रों की सामूहिक शक्ति आक्रामक राष्ट्र की शक्ति से बहुत अधिक होगी ।
पंचम:
इस बात को समझकर कि उसके विरुद्ध प्रयुक्त होने वाली समय की शक्ति उसकी शक्ति से कहीं अधिक है आक्रामक राष्ट्र या तो युद्ध का विचार ही त्याग देगा और यदि उसने ऐसा नहीं किया तो युद्ध में उसे पराजय निश्चित रूप से मिलेगी ।
ब्रैण्डन विश्वविद्यालय, कनाडा में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर और अध्यक्ष डॉ. एम. वी. नायडू ने अपनी पुस्तक ‘Collective Security and the United Nations’ में सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था के सम्बन्ध में मौलिक विचार प्रस्तुत किए हैं ।
डॉ. नायडू ने सामूहिक सुरक्षा के आदर्श स्वरूप का निर्माण करने के लिए निम्नलिखित सात तत्वों पर जोर दिया है:
प्रथम:
सुरक्षा की अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था ‘एक सबके लिए और सब एक के लिए’ के सिद्धान्त पर आधारित हो सकती है और होनी भी चाहिए ।
द्वितीय:
सभी राज्यों की ओर से अन्तर्राष्ट्रीय सेना किसी भी सम्भावित आक्रमणकारी का प्रतिरोध करेगी । यदि किसी आक्रमण का प्रतिरोध न किया जा सके तो सामूहिक सेना एक अनुशक्ति के रूप में कार्य करते हुए आक्रमण को रोक देगी समाप्त कर देगी अथवा अभिशून्य कर देगी ।
तृतीय:
कोई भी आक्रमण होने पर सामूहिक कार्यवाही की मशीनरी स्वत: चालित हो जाएगी और यह कार्यवाही तीव्रता से और निष्पक्षता से परिचालित होगी ।
चतुर्थ:
सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए कि वह बिना किसी पक्षपात या द्वेष आदि के आक्रमणकारी की निन्दा करे और आक्रमण से ग्रस्त (Victim) राज्य की सहायता करे ।
पंचम:
राज्यों द्वारा अपनी सेना का निरंकुश और आअपरक प्रयोग किन्हीं भी परिस्थितियों में अवांछनीय है ।
षष्ठ:
सामूहिक सुरक्षा एक ऐसी व्यवस्था पर आधारित होनी चाहिए जिसमें आक्रमण की परिभाषा दी गयी हो, आक्रमणकारी को पहचानने की प्रक्रिया दी गयी हों और उन संस्थाओं का उल्लेख हो जो इन प्रक्रियाओं को तीव्रता और निष्पक्षता के साथ परिभाषित और लागू कर सकें ।
सप्तम:
सामूहिक सुरक्षा की व्यवस्था स्थायी नींव पर टिकी होनी चाहिए, सामान्य प्रयोग और वस्तुनिष्ठ उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए सुलभ होनी चाहिए ।
डॉ. नायडू ने अपनी बहुचर्चित पुस्तक में सामूहिक सुरक्षा के लिए दस पूर्व शर्तो का भी उल्लेख किया है जो इस प्रकार हैं:
(i) सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था में संलग्न व्यक्तियों का विश्वास इस सिद्धान्त में होना चाहिए ।
(ii) राज्यों को मनुष्य के भाईचारे में आस्था होनी चाहिए । उन्हें यह सोचकर कार्य करना चाहिए कि जो विश्व समुदाय के लिए भी शुभ है वही राष्ट्रीय समुदाय के लिए भी शुभ है ।
(iii) विश्व के किसी भी भाग अथवा किसी भी राज्य में संघर्ष, अन्याय और युद्ध को अपने स्वयं के राज्य की शान्ति और सुरक्षा के लिए खतरा समझा जाना चाहिए, क्योंकि किसी भी स्थान पर होने वाला अनियन्त्रित आक्रमण कालान्तर में विश्व के दूसरे राज्यों को प्रभावित करता है ।
(iv) सदस्य राज्यों को सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था की निष्पक्षता में विश्वास होना चाहिए ।
(v) सदस्य राज्यों को सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था के सभी प्रयत्नों को अपना समर्थन देना चाहिए ।
(vi) सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था यथापूर्व स्थिति के माध्यम से शान्ति की पक्षधर है । अर्थात् सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था राज्यों की वर्तमान राजनीतिक सम्पभुता और प्रादेशिक एकता कायम रखने और उनकी रक्षा करने का वचन देती है ।
(vii) यदि निःशस्त्रीकरण या शस नियन्त्रण सम्भव होता तो सामूहिक सुरक्षा अधिक प्रभावी हो सकती थी ।
(viii) सभी या कम से कम अधिकांश राज्यों को सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था का सदस्य होना चाहिए ।
(ix) प्रभावशाली रूप में कार्य करने के लिए सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था को वैधानिक और वस्तुगत सप्रत्ययों और प्रक्रियाओं तथा निष्पक्ष संस्थाओं से सम्पन्न होना चाहिए ।
(x) सामूहिक सम्प्रभुता के अभाव में सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था समुदाय या विश्व सरकार के सम्प्रत्ययों में परिणत हो जाती है ।
आइनिस क्लाड के अनुसार सामूहिक सुरक्षा शक्ति के व्यवस्थापन (Management of Power) की एक मुक्ति है । सामूहिक सुरक्षा की मूल मान्यता है कि युद्धों को अन्तर्राष्ट्रीय समाज से समाप्त नहीं किया जा सकता और इसलिए हम केवल शक्ति पर नियन्त्रण करने की कोशिश कर सकते हैं जो युद्ध का मूल कारण है ।
Essay # 3. सामूहिक सुरक्षा के विचार का विकास (Evolution of the Collective Security System):
सामूहिक सुरक्षा के विचार का आरम्भ 17वीं शताब्दी की ओस्थाबक सन्धि से माना जाता है । इस सन्धि की 17वीं धारामें कहा गया था कि- ”संविदा करने वाले सभी और प्रत्येक पक्ष को इस शान्ति सन्धि से प्रत्येक और सब रूपों को प्रतिरक्षा और अस्तित्व रक्षा के लिए जिम्मेदार ठहराया जाएगा, चाहे इसके विरोध में खड़ा होने वाला कोई भी हो ।”
इसके बाद विलियम पेन ने यूरोप में शान्ति व सुव्यवस्था बनाए रखने के लिए इस प्रकार की व्यवस्था का सुझाव दिया । विलियम पिट ने 1805 में सुझाया था कि सब प्रमुख यूरोपीय शक्तियों को व्यापक शान्ति भंग करने के किसी भी प्रयत्न के विरोध में नयी यथापूर्व स्थिति का मिलकर समर्थन करना चाहिए, किन्तु सामूहिक सुरक्षा पद्धति का वास्तविक रूप 20वीं शताब्दी में हमारे सामने आया जबकि सन् 1910 में अमरीकी राष्ट्रपति थियोडोर रूजवेल्ट ने कहा था कि यह एक महत्वपूर्ण बात होगी, यदि महाशक्तियां, जो शान्ति में विश्वास करती हैं, एक शान्ति संगठन बना लें, जिससे न केवल उनके मध्य ही शान्ति रहे वरन् किसी राष्ट्र द्वारा उसके भंग किए जाने पर यदि आवश्यक हो तो वे सामूहिक रूप से बल प्रयोग कर सकें ।
सन् 1910 में ही एक अन्य विचारक वान वुलेनहीवन ने भी इसी प्रकार की एक अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था का सुझाव दिया जिसका अमरीकी कांग्रेस द्वारा समर्थन किया गया । सामूहिक सुरक्षा के विचार के विकास में प्रथम महायुद्ध के दौरान ‘हेग’ में कार्य कर रहे अन्तर्राष्ट्रीय संघ ने महत्वपूर्ण योग दिया ।
सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था के विचार को विशेष लोकप्रिय बनाने में प्रथम महायुद्धकाल में राष्ट्रपति बुडरो विल्सन की भूमिका महत्वपूर्ण रही । वैसे तो जब वुडरो विल्सन ने सामूहिक सुरक्षा के विचार का खुलकर समर्थन किया उससे पूर्व ही यह विचार अन्तर्राष्ट्रीय जीवन में एक महत्वपूर्ण उपागम के रूप में जम चुका था, यहां तक कि ‘राष्ट्र संध’ (League of Nations) के निर्माण के लिए पेरिस में जो शान्ति समझौता किया गया उसमें इसको मान्यता दी गयी और इसे राष्ट्र संघ का आधार मान लिया गया ।
राष्ट्रसंघ के रूप में ही पहली बार सामूहिक पद्धति ने संगठनात्मक रूप धारण किया । राष्ट्रसंघ आयोग की पांचवीं बैठक में संघ के विधान के 16वें अनुच्छेद को जो सामूहिक सुरक्षा से सम्बन्धित था बिना किसी वाद-विवाद के स्वीकार कर लिया गया ।
सन् 1945 में संयुक्त राष्ट्र की स्थापना भी सामूहिक सुरक्षा के सिद्धान्त के आधार पर की गयी । चार्टर के अध्याय 7 तथा महासभा के ‘शान्ति के लिए एकता प्रस्ताव’ द्वारा सामूहिक सुरक्षा पद्धति का विकास किया गया । इसी विचार के आधार पर सोवियत संघ की साम्यवादी पार्टी के तात्कालिक महामन्त्री ब्रेझनेव (1969) ने एशियाई सामूहिक सुरक्षा सिद्धान्त का प्रतिपादन किया ।
Essay # 4. सामूहिक सुरक्षा एवं सामूहिक मोर्चाबन्दी (Collective Security and Collective Defence):
सामूहिक सुरक्षा को सामूहिक मोर्चाबन्दी का पर्यायवाची नहीं माना जाना चाहिए । यद्यपि सामूहिक सुरक्षा और सामूहिक मोर्चाबन्दी की कुछ विशेषताएं समान प्रतीत होती हैं तथापि दोनों में बुनियादी अन्तर है । वैसे दोनों ही सिद्धान्तों में सामूहिक कार्यवाही (Collective Action) तथा आक्रमण के प्रतिरोध की प्रतिबद्धता नजर आती है ।
वस्तुत: सामूहिक मोर्चाबन्दी सिद्धान्त के अन्तर्गत थोड़े राज्यों का ही आपसी सहयोग अस्थायी एवं तदर्थ रूप से देखा जाता है जबकि सामूहिक सुरक्षा सिद्धान्त के अन्तर्गत लगभग सभी राष्ट्र अथवा अधिकांश राष्ट्र स्थायी रूप से सम्भावित आक्रमणकारी का विरोध करने के लिए अथवा विश्वशान्ति स्थापित करने के लिए प्रतिबद्ध होते हैं ।
सामूहिक सुरक्षा सिद्धान्त का ध्येय कहीं भी किसी भी प्रकार के आक्रमणकारी का मुकाबला करना होता है । नाटो सीटों वारसा पैक्ट आदि अथवा अनेक द्विपक्षीय सैनिक सब्धियां एक प्रकार से सामूहिक मोर्चाबन्दी का ही प्रतीक हैं ।
इन सन्धियों का निर्माण किसी-न-किसी सुनिश्चित दुश्मन को ध्यान में रखकर ही किया गया है । जबकि यथार्थ में इन सन्धियों के प्रारूप में कूटनीतिक सावधानी के कारण किसी दुश्मन के, नाम का स्पष्ट उल्लेख नहीं किया गया है ।
सामूहिक सुरक्षा उपागम ऐसे हर देश के विरुद्ध कार्यवाही करने के लिए प्रतिबद्ध है जो आक्रमण करे चाहे वह देश किसी देश विशेष के साथ मैत्री सन्धि से जुड़ा देश हो या उसका मित्र हो या उसका दुश्मन हो । सामूहिक मोर्चाबन्दी के अन्तर्गत विश्वशान्ति भंग करने वाले राष्ट्रों का स्वरूप निश्चित होता है ओर सामूहिक सुरक्षा के अन्तर्गत अनिश्चित ।
सामूहिक सुरक्षा यह मानती है कि कोई भी राज्य आक्रमणकारी हो सकता है । सामूहिक मोर्चेबन्दी के अन्तर्गत पहले से ही सैनिक तैयारियां चलती रहती हैं और सैनिक रणनीतियां बनती रहती हैं जबकि सामूहिक सुरक्षा के अंन्तर्गत पहले से ही कोई सैनिक तैयारियां नहीं होती । सैनिक गुटबन्दियों के स्वरूप वाली सामूहिक मोर्चाबन्दी की अवधारणा यथार्थ में सामूहिक सुरक्षा सिद्धान्त की मूल भावना के प्रतिकूल है क्योंकि यह अन्ततोगत्वा सैनिक गुटबन्दियों की विरोधी हे ।
Essay # 5. सामूहिक सुरक्षा और प्रादेशिक संगठन (Collective Security and Regional Arrangements):
प्रादेशिक संगठन व सन्धियां सामूहिक सुरक्षा के उद्देश्य से की जाती हैं । प्रादेशिक संगठन किसी प्रदेश की रक्षा के लिए बनाए जाते है । ये प्रदेश के हितों से सम्बन्धित होते है । अनेक व्यक्तियों का मत है कि प्रादेशिक संगठन बनाकर सामूहिक सुरक्षा पद्धति को लोकप्रिय व सुदृढ़ बनाया जा सकता है, किन्तु वस्तुस्थिति इससे भिन्न है ।
प्रादेशिक संगठन गुटबन्दी के आधार पर बनाए गए हैं । इनकी स्थापना का कारण किसी सम्भावित आक्रमण की रक्षा करना नहीं, वरन् द्वेष, ईर्ष्या, प्रतिस्पर्द्धा और गुटबन्दी है । गुटबन्दी के आधार पर निर्मित प्रादेशिक संगठन जैसे नाटो सीटो सेण्टो आदि शान्ति और सुरक्षा को नहीं वरन् युद्ध की प्रवृति को प्रोत्साहित करते हैं । सैनिक स्वरूप वाले इन प्रादेशिक संगठनों ने शीतयुद्ध और गुटबन्दी को बढ़ावा दिया ।
सोवियत संघ के प्रभाव को न बढ़ने देने और साम्यवादी राष्ट्रों के सम्भावित आक्रमण से रक्षा करने के लिए यदि ‘नाटो’ की स्थापना हुई तो उसकी प्रतिक्रियास्वरूप साम्यवादी राष्ट्रों ने मिलकर ‘वारसा पैक्ट’ का निर्माण कर डाला ।
इन प्रादेशिक संगठनों में विश्वशान्ति और सामूहिक सुरक्षा की समस्या सुलझने के स्थान पर उलझती रही । इन संगठनों और समझौतों ने अन्तर्राष्ट्रीय समस्याएं उत्पन्न कीं तनाव को बढ़ाया और संयुक्त राष्ट्रसंघ के महत्व को घटाया ।
Essay # 6. सामूहिक सुरक्षा और निरस्त्रीकरण (Collective Security and Disarmament):
युद्ध की समस्या सुलझाने के लिए सामूहिक सुरक्षा और निरस्त्रीकरण दो पृथक् मार्ग हैं । अभी तक इन दोनों को पृथक् दृष्टिकोण ही माना जाता रहा और इनके आपसी सम्बन्धों की बहुत कम चर्चा हुई है । तथ्य यह है कि सैद्धान्तिक दृष्टि से इनमें काफी घनिष्ट सम्बन्ध हैं ।
बेन्जामिन कोहन ने इनमें घनिष्ट सम्बन्धों की चर्चा करते हुए कहा है- ”मैं इस तथ्य पर जोर डालना चाहूंगा कि सामूहिक सुरक्षा के कार्यक्रम तथा निरस्त्रीकरण में घनिष्ट सम्बन्ध है दोनों प्रकृतिवश साथ-साथ चलते हैं । निरस्त्रीकरण के क्षेत्र में हम उस दिन की तलाश में हैं जब किसी राष्ट्र के पास शस्त्रधारी सेना अथवा ऐसे हथियार नहीं होंगे जो उसके पड़ोसी के लिए भय का कारण बन सकें । सामूहिक सुरक्षा के क्षेत्र में हम उस दिन की प्रतीक्षा में हैं, जबकि राष्ट्र अपनी सुरक्षा के लिए अपनी निजी सेनाओं पर इतने निर्भर नहीं रहेंगे जितने संयुक्त राष्ट्र पर । यदि राष्ट्रों को यह विश्वास दिलाया जा सके कि आक्रमण होने पर वे अकेले नहीं होंगे तो उन्हें प्रतिरक्षा के लिए कम हथियारों की आवश्यकता होगी । जैसे-जैसे निरस्त्रीकरण के क्षेत्र में प्रगति की जाती है, वैसे-वैसे सामूहिक सुरक्षा की स्थापना का कार्य सफल हो जाता है । दोनों साथ-साथ चलते रहते हें…..निरस्त्रीकरण और सामूहिक सुरक्षा शान्ति के लिए दो महान् साहस हैं ।”
Essay # 7. सामूहिक सुरक्षा और विश्व सरकार (Collective Security and World Government):
क्लाड के अनुसार शक्ति के व्यवस्थापन (Management of Power) की अनेक युक्तियां हैं, जैसे: सामूहिक सुरक्षा, शक्ति सन्तुलन और विश्व सरकार के उपागम । शक्ति के व्यवस्थापन की दृष्टि से सामूहिक सुरक्षा उपागम की स्थिति शक्ति सन्तुलन और विश्व सरकार के बीच में है ।
शक्ति सन्तुलन की तुलना में इसमें (सामूहिक सुरक्षा) शक्ति का नियन्त्रण अधिक होता है, किन्तु विश्व सरकार की तुलना में यह नियन्त्रण कम साबित होगा । सामूहिक सुरक्षा की संकल्पना एक विकल्प के रूप में की गयी है जो इसलिए उपयोगी हो सकती है कि विश्व सरकार का अभी तक कोई अस्तित्व नहीं है ।
सामूहिक सुरक्षा के समर्थकों का कहना है कि, इसे एक संक्रमणकालीन उपाय माना जाना चाहिए जिससे अन्त में विश्व सरकार की स्थापना हो सकेगी । डॉ. अप्पादोराय के अनुसार, विश्व सरकार की स्थापना का पक्ष प्रबल है, क्योंकि युद्ध को समाप्त किए बगैर उस असुरक्षा की समाप्ति नहीं हो सकती जिसके अन्तर्गत मनुष्य रहते हैं तथा विश्वशान्ति भी स्थापित नहीं हो सकती । विश्वशान्ति केवल विश्व सरकार की स्थापना से ही सम्भव है ।
Essay # 8. सामूहिक सुरक्षा और शक्ति सन्तुलन (Collective Security and Balance of Power):
सामूहिक सुरक्षा की अवधारणा को ‘शक्ति सन्तुलन सिद्धान्त’ का विकल्प माना जाता है । क्लाड के अनुसार, सामूहिक सुरक्षा शक्ति के व्यवस्थापन की दृष्टि से शक्ति सन्तुलन की तुलना में एक अधिक केन्द्रीकृत प्रबन्ध है । इसमें शक्ति सन्तुलन की तुलना में शक्ति का नियन्त्रण अधिक होता है ।
सामूहिक सुरक्षा अवधारणा के जनक वुडरो विल्सन ने शक्ति सन्तुलन अवधारणा का विरोध करते हुए लिखा था कि शक्ति सन्तुलन वाली विश्व व्यवस्था में राष्ट्र प्रतियोगितापूर्ण सन्धियों में बंध जाते हैं तथा बाध्यकारी शक्ति का प्रयोग राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं तथा स्वार्थपूर्ण लक्ष्यों को पूरा करने के लिए करते हैं, जबकि सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था में राष्ट्रों के सहयोग का लक्ष्य होता है न्याय एवं सुरक्षा की व्यवस्था करना जिसमें बाध्यकारी शक्ति का प्रयोग सामान्य शान्ति की स्थापना के लिए किया जाता है ।
सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था का प्रतिपादन इस रूप में किया जाता है कि यह शक्ति सन्तुलन व्यवस्था का अन्त करके अन्तर्राष्ट्रीय समाज के रूप को बदल देगा । शक्ति सन्तुलन सिद्धान्त की निहित मान्यताएं सामूहिक सुरक्षा के विचार से मेल नहीं खाती हैं ।
पामर तथा पर्किन्स का मत है कि– “प्रभावशाली विश्व सरकार के अभाव में सामूहिक सुरक्षा के सारे प्रयत्न शक्ति सन्तुलन से सम्बन्धित हो जाते हैं ।”
क्विन्सी राइट का मत है कि- ”शक्ति सन्तुलन तथा सामूहिक सुरक्षा के बीच सम्बन्ध एक ही साथ एक-दूसरे के पूरक तथा विरोधी रहे हैं ।” वे आगे लिखते हैं कि ”सामूहिक सुरक्षा को शक्ति सन्तुलन पर आधारित होना चाहिए ।”
राष्ट्रसंघ की स्थापना यद्यपि इस उद्देश्य से की गयी थी कि सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था शक्ति सन्तुलन का अन्त करके उसका स्थान प्राप्त कर लेगी, परन्तु राष्ट्रसघ का यही अनुभव था कि सामूहिक सुरक्षा का लक्ष्य बिना शक्ति सन्तुलन के साधन के प्राप्त नहीं हो सकता । यह स्वीकार किया गया कि प्रभावशाली राष्ट्रसंघ के लिए शक्ति सन्तुलन एक आवश्यक शर्त है ।
ओपेनहीम का विचार था कि- “राष्ट्रसंघ का अस्तित्व शक्ति सन्तुलन को और भी आवश्यक बना देता है, क्योंकि कोई भी शक्तिशाली राष्ट्र राष्ट्रसंघ का उल्लंघन कर सकता था ।”
राष्ट्रसंघ की भांति संयुक्त राष्ट्रसंघ भी शक्ति सन्तुलन की दिशा में कार्य करता है । अत: अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति की वास्तविकता इसी ओर संकेत करती है कि सामूहिक सुरक्षा का आधार शक्ति सन्तुलन ही होगा । सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था शक्ति सन्तुलन के द्वारा ही लागू हो सकती है ।
सिद्धान्तत: शक्ति सन्तुलन तथा सामूहिक सुरक्षा एक-दूसरे की विरोधी हैं, परन्तु अन्तर्राष्ट्रीय समाज के वर्तमान ढांचे के अन्तर्गत सामूहिक सुरक्षा के प्रयत्न शक्ति सन्तुलन से ही सम्बन्धित होंगे । अत: शक्ति सन्तुलन तथा सामूहिक सुरक्षा एक-दूसरे के विरोधी तथा पूरक दोनों ही हैं ।
शक्ति सन्तुलन और सामूहिक सुरक्षा सिद्धान्तों में निम्नलिखित अन्तर हैं:
शक्ति सन्तुलन:
(i) शक्ति सन्तुलन व्यवस्था प्रतियोगी स्वरूप वाली सन्धियों (Competitive Alliances) के परिणामस्वरूप स्थापित होती हैं ।
(ii) शक्ति सन्तुलन की धारणा दो या दो से अधिक विरोधी गुटों के अस्तित्व को मानकर चलती है जो परस्पर संघर्षशील स्वभाव के हैं ।
(iii) शक्ति सन्तुलन शान्ति व व्यवस्था के निर्माण के लिए संघर्षपूर्ण सहयोग का इच्छुक है ।
(iv) शक्ति सन्तुलन सिद्धान्त गुटबन्दी के आधार पर आक्रमणकारी का विरोध करता है ।
(v) शक्ति सन्तुलन के अन्तर्गत बंधे राज्य आक्रमणकारी का विरोध करने के लिए उस समय ही एक साथ उठ खड़े होंगे जबकि उन सबके हितों को आक्रमण से हानि पहुंचने की सम्भावना होगी । शक्ति सन्तुलन की व्यवस्था के अन्तर्गत बहुधा ऐसा होता है कि जिस राज्य का राष्ट्रीय हित आक्रमण से प्रभावित नहीं होता वह युद्ध के पचड़े से दूर रहता है ।
(vi) शक्ति सन्तुलन व्यवस्था ढीली-ढाली होती है ।
(vii) शक्ति सन्तुलन व्यवस्था यथार्थवादी (Pragmatic) है तथा एक राष्ट्र को आक्रमण का विरोध करने की केवल तभी सलाह देती है जब आक्रमण उसकी स्वयं की सुरक्षा के लिए घातक हो ।
(viii) शक्ति सन्तुलन की व्यवस्था सकारात्मक हे, क्योंकि इस व्यवस्था में राष्ट्र विचार सिद्धान्त मान्यताओं और समान हितों की दृष्टि से मिलकर एक होते है ।
सामूहिक सुरक्षा:
(a) सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था एक सार्वभौमिक सन्धि है जो प्रतियोगी सन्धियों से भिन्न है । यह कुछ संगठित राष्ट्रों के विरुद्ध सन्धि नहीं है वरन् प्रत्येक आक्रमण-कारी के विरुद्ध है ।
(b) सामूहिक सुरक्षा की धारणा में गुटबन्दी की पूर्व कल्पना नहीं है, वह एक विश्व के सिद्धान्त को मानकर चलती है ।
(c) सामूहिक सुरक्षा का सिद्धान्त संघर्ष को प्रतिबन्धित करने के लिए सामान्य सहयोग पर बल देता है ।
(d) सामूहिक सुरक्षा की अवधारणा सामान्य सहयोग के आधार पर आक्रमणकारी का विरोध करती है ।
(e) सामूहिक सुरक्षा का सिद्धान्त यह मानता है कि किसी एक राष्ट्र पर किया गया आक्रमण शान्ति के लिए संकट हे ओर इसका विरोध करने के लिए प्रत्येक राष्ट्र को कटिबद्ध रहना चाहिए ।
(f) सामूहिक सुरक्षा की व्यवस्था दृढ़ और संगठनबद्ध होती है ।
(g) सामूहिक सुरक्षा की व्यवस्था कुछ अधिक सैद्धान्तिक और आदर्शवादा है, क्योंकि यह राज्य को सदैव आक्रमण का विरोध करने को प्रेरित करती है, क्योंकि उसका हित आक्रमण से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता है ।
(h) सामूहिक सुरक्षा की व्यवस्था नकारात्मक है, क्योंकि इस व्यवस्था के अन्तर्गत राष्ट्र आक्रमण का विरोध करने की भावना से एकत्रित होते हैं ।
शक्ति सन्तुलन और सामूहिक सुरक्षा के मध्य इन असमानताओं के बावजूद कतिपय समानताएं भी हैं । दोनों मान्यताएं प्रतिरोध (Deterrence) के सिद्धान्त पर आधारित हैं । शक्ति सन्तुलन में स्वयं को इतना शक्तिशाली बनाया जाता है कि विरोधी मुंह न उठा सके और सामूहिक सुरक्षा में भी शक्ति का एकत्रीकरण कर आक्रमणकारी की महत्वाकांक्षाओं पर प्रतिबन्ध लगाया जाता है ।
दोनों ही अवधारणाएं ‘शान्ति के लिए युद्ध’ (War of Peace) में विश्वास रखती हैं । दोनों ही राज्यों के सामूहिक सहयोग में विश्वास करती हैं ।
क्लॉंड के अनुसार- “सामूहिक सुरक्षा को शक्ति सन्तुलन का एक परिवर्द्धित संस्करण मानना चाहिए, न कि पूरी तरह से भिन्न और शक्ति सन्तुलन का विकल्प ।
क्विन्सी राइट के अनुसार- ”सामूहिक सुरक्षा और शक्ति सन्तुलन के बीच वही अन्तर है, जो ‘कला’ और ‘प्रकृति’ के अन्तर्गत होता है ।”
उपर्युक्त समानताओं के अतिरिक्त शक्ति सन्तुलन तथा सामूहिक सुरक्षा में निम्न समानताएं महत्वपूर्ण हैं:
(1) शक्ति सन्तुलन तथा सामूहिक सुरक्षा दोनों का लक्ष्य सामूहिक प्रयलों के द्वारा विश्व शान्ति की स्थापना तथा राज्यों की स्वतन्त्रता की रक्षा करना है ।
(2) दोनों ही विचारधाराएं ‘शक्ति’ के विचार पर आधारित हैं तथा इनमें राष्ट्रों की पारस्परिक शक्ति का अनुमान लगाया जाता है ।
(3) शक्ति सन्तुलन का अर्थ शक्ति के समान तथा असमान वितरण दोनों रूपों में लिया जाता है । ‘सन्तुलन’ का अर्थ अपने विरोधी के मुकाबले में शक्ति प्रधानता से ही अधिकतर लिया जाता है । सामूहिक सुरक्षा के लिए तो शक्ति की अधिकता एक आवश्यक शर्त है । शक्ति सन्तुलन तथा सामूहिक सुरक्षा दोनों शक्ति की अधिकता पर बल देते हैं ।
(4) दोनों ही सिद्धान्त यथास्थिति कायम रखते हुए अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था में स्थायित्व शान्ति व सुरक्षा बनाए रखना चाहते हैं ।
(5) दोनों ही सिद्धान्त आवश्यकता पड़ने पर युद्ध करने के लिए तैयार रहते हैं । यद्यपि दोनों का लक्ष्य शान्ति बनाए रखना है परन्तु भविष्य में स्थायी शान्ति बनाए रखने की दृष्टि से वर्तमान शान्ति भंग करने को उचित समझते हैं ।
(6) प्रभावशाली विश्व सरकार के अभाव में सामूहिक सुरक्षा की व्यवस्था को शक्ति सन्तुलन के रूप में ही लागू किया जाता है ।
(7) शक्ति सन्तुलन तथा सामूहिक सुरक्षा दोनों शक्ति को नियन्त्रित करने के साधन हैं ।
Essay # 9. राष्ट्रसंघ और संयुक्त राष्ट्रसंघ की सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था: तुलना (Comparative Analysis of the Collective Security System Under League of Nations and the U.N.O.):
प्रथम:
संयुक्त राष्ट्रसंघ के अन्तर्गत पायी जाने वाली सामूहिक सुरक्षा और राष्ट्र संघ के अन्तर्गत स्थापित सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था में पर्याप्त अन्तर है । राष्ट्रसंघ के अन्तर्गत तो सामूहिक सुरक्षा एक नए विचार की स्वीकृति का सूचक थी, पर संयुक्त राष्ट्रसंघ द्वारा पहले ही स्वीकृत विचार के अधिक कारगर तरीके से कार्य करने की लगन की द्योतक है ।
द्वितीय:
संयुक्त राष्ट्रसंघ को आवश्यकता पड़ने पर सशस्त्र बल प्रयोग का अधिकार है, जो राष्ट्रसंघ को प्राप्त नहीं था ।
तृतीय:
ADVERTISEMENTS:
सामूहिक सुरक्षा की कार्यवाही को सफल बनाने के लिए संयुक्त राष्ट्रसंघ के अन्तर्गत महाशक्तियों को ‘वीटो’ प्रदान करके विशेष रूप से उत्तरदायी बना दिया गया है । महाशक्तियों को ‘वीटो’ की शक्ति राष्ट्रसंघ के अन्तर्गत प्राप्त नहीं थी ।
चतुर्थ:
सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था को दृढ बनाने के लिए संयुक्त राष्ट्र के विधान में प्रादेशिक संगठनों की स्थापना को उचित बताया गया है और सदस्य राष्ट्रों को ऐसे संगठन बनाने की अनुमति दी गयी है, परन्तु राष्ट्रसंघ के अन्तर्गत ऐसी कोई व्यवस्था नहीं थी ।
पंचम:
राष्ट्रसंघ ने मंचूरिया अथवा अबीसीनिया की घटनाओं के समय भी सामूहिक सुरक्षा के प्रावधानों का क्रियान्वयन नहीं किया जबकि संयुक्त राष्ट्रसंघ के अन्तर्गत सामूहिक सुरक्षा अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में एक क्रान्ति की सूचक है और संयुक्त राष्ट्रसंघ के अन्तर्गत वह उस क्रान्ति के फलों को मजबूत बनाने के प्रयत्न की सूचक है ।