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Read this essay in Hindi to learn about economic rewards and punishments involved in international politics operation.
द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् सोवियत-यूगोस्लाव सम्बन्धों का विश्लेषण करने से ज्ञात होता है कि आर्थिक उपकरणों का प्रयोग राजनीतिक सम्बन्धों को प्रभावित करने के लिए अनवरत रूप से हुआ है ।
महायुद्ध की समाप्ति के तुरन्त बाद सोवियत संघ ने यूगोस्लाविया को आर्थिक सहायता देना प्रारम्भ किया था तथा व्यापारिक सम्बन्धों की प्रगाढ़ता का भी विस्तार करने की योजना बनायी थी, परन्तु सन् 1948 में ही मार्शल टीटो को साम्यवादी बिरादरी से पृथक् कर दिया गया, चूंकि वे थोड़े-से संशोधनवादी विचारों के थे, सोवियत दबाव के आगे झुकने में आनाकानी कर रहे थे ।
सोवियत संघ ने यूगोस्लाविया के खिलाफ साम्यवादी जगत से घाटबन्दी और बहिष्कार की नीति अपनाने को कहा । (The Soviet Union also organized a communist block embargo and boycott against Yugoslavia.)घाटबन्दी की नीति यूगोस्लाविया के लिए बहुत बड़ा आर्थिक दण्ड था, चूंकि इस समय यूगोस्लाविया का 50 प्रतिशत निर्यात साम्यवादी बिरादरी के देशों को होता था और 95 प्रतिशत आयात भी इन्हीं ईशों से होता था । (The embargo was potentially an effective techniques of punishment because in 1948 Yugoslavia solved over 50 percent of tis export to the block and received 95 percent of its imports from the same source.)
घाटबन्दी और बहिष्कार के हानिकारक दबाव कुछ समय तक बने रहे क्योंकि टीटो ने शीघ्र ही इटली और ब्रिटेन का बाजार ढूंढ लिया था । स्टालिन की मृत्यु के पश्चात् सोवियत-यूगोस्लाव सम्बन्धों में उतार-बढ़ाव आता रहा । सन् 1955 में सोवियत संघ ने 19 मिलियन डॉलर के वार्षिक व्यापार के आदान-प्रदान का यूगोस्लाविया के साथ समझौता किया ।
इसी वर्ष यूगोस्लाविया के मन को जीतने के लिए सोवियत संघ ने 90 मिलियन डॉलर का पुराना ऋण माफ कर दिया । यूगोस्लाविया से घनिष्ठता स्थापित करने के लिए साम्यवादी गुट के देशों ने सन् 1955-58 की अवधि में 500 मिलियन डॉलर का ऋण दिया, किन्तु मार्शल टीटो टस-से-मस न हुए और साम्यवादी गुट में अपनी स्वतन्त्र विचारधारा को छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे परिणामस्वरूप सोवियत संघ ने आर्थिक सहायता बन्द करने तथा ऋण देने में विलम्ब करने की धमकी दी ।
मई, 1958 में खुश्चेव ने 300 मिलियन डॉलर के ऋण सम्बन्धी समझौते निलम्बित कर दिए । 1963 तक अपनी स्वतन्त्र विचारधारा को बनाए रखते हुए टीटो ने सोवियत संघ से घनिष्ठता स्थापित कर ली जिससे दोनों देशों के बीच नए व्यापारिक समझौते हुए और यूगोस्लाविया को सोवियत ऋण प्राप्त हुए ।
यूगोस्लाविया की सोवियत गुट पर आर्थिक दृष्टि से निर्भरता के परिणामस्वरूप साम्यवादी देशों द्वारा अपनायी गयी आर्थिक पुरस्कार और दण्ड की नीति सफल रही, किन्तु जब यूगोस्लाविया ने पश्चिमी देशों के साथ व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित कर लिए और अनुकूल बाजार ढूंढ लिया तो साम्यवादी गुट के आर्थिक उपकरण असफल सिद्ध हुए ।
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यूगोस्लाविया को तो विकल्प मिल गया, अत: सोवियत दबाव के आर्थिक तरीके अर्थशून्य साबित हुए किन्तु 1948 के बाद सोवियत-फिनलैण्ड सम्बन्धों से यह सिद्ध हो जाता है कि आर्थिक दबाव काफी प्रभावकारी होते हैं और किसी राष्ट्र की राष्ट्रीय नीति को प्रभावित करते हैं । फिनलैण्ड के 1958 के संसदीय चुनावों में एक-चौथाई स्थान साम्यवादियों को मिले और ‘सोशलिस्ट डेमोक्रेट’ के नेतृत्व में एक मिली-जुली सरकार का निर्माण हुआ । इस सरकार में कोई भी साम्यवादी नहीं था ।
फिनलैण्ड के सोशलिस्टों के प्रति प्रारम्भ से ही सोवियत संघ द्वेषपूर्ण व्यवहार करता आया था और सोवियत प्रधानमन्त्री ने सरकार के गठन पर अपनी अप्रसन्नता प्रकट की थी । इस सरकार में रूढ़िवादी मन्त्रियों की नियुक्ति पर भी सोवियत संघ ने असन्तोष प्रकट किया ।
सोवियत समाचार-पत्रों ने इस सरकार को ‘प्रतिक्रयावादी दक्षिणपन्थी’ सरकार कहा जो सोवियत-फिनिश सम्बन्धों में कटुता लाने को कटिबद्ध है । सोवियत संघ ने आरोप लगाया कि यह सरकार सोवियत-फिनिश व्यापारिक समझौतों को रह करके पश्चिमी देशों के साथ व्यापार समझौते करने के लिए प्रयत्नशील है ।
एक पड़ोसी राज्य में सोवियत संघ ऐसी सरकार को सहन नहीं कर सकता, अत: उसने निम्नलिखित राजनयिक और आर्थिक दबाव के उपकरण अपनाए:
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(i) सोवियत राजदूत ने फिनिश राष्ट्रपति से बिना किसी औपचारिक भेंट के हेलसिंकी छोड़ दिया,
(ii) सोवियत सरकार ने तकनीकी आधार पर फिनलैण्ड से फिनलैण्ड की खाड़ी में मछलीगाह से सम्बन्धित समझौते पर हस्ताक्षर करने से इन्कार कर दिया,
(iii) 1959 में जो फिनिश व्यापारिक प्रतिनिधिमण्डल सोवियत संघ जाने वाला था सोवियत निमन्त्रण के इन्तजार में बैठा रहा,
(iv) नवम्बर, 1985 में सोवियत सरकार ने फिनलैण्ड से सभी व्यापारिक सम्बन्ध स्थगित कर दिए । इसका फिनलैण्ड की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा ।
फिनलैण्ड का धातु और मशीनरी का जो सामान सोवियत संघ में बिकता था पश्चिमी देशों में बिक नहीं पा रहा था । फिनलैण्ड को वैकल्पिक बाजार उपलब्ध नहीं हुआ उसके मजदूर बेकार होने लगे और अर्थव्यवस्था में अस्थिरता आ गयी ।
इस तथ्य को स्वीकार करते हुए कि सोवियत आर्थिक दबाबों के फलस्वरूप फिनलैण्ड की अर्थव्यवस्था डगमगाने लगी, मन्त्रिमण्डल के कई सदस्यों ने त्यागपत्र दे दिया और ऐसी नयी सरकार का निर्माण हुआ जो सोवियत संघ के अनुकूल थी ।
अरब देशों ने पश्चिमी यूरोप, संयुक्त राज्य अमरीका तथा जापान के विरुद्ध 1973 में तेल के हथियार का प्रयोग किया ताकि उनके इजरायल समर्थन को कमजोर किया जा सके । अक्टूबर, 1973 में अधिकांश अरब देशों ने संयुक्त रूप से अमरीका और नीदरलैण्ड को तेल का निर्यात बन्द कर दिया ।
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इसके पीछे यही लक्ष्य था कि पश्चिमी यूरोप के औद्योगिक देशों में गम्भीर ईंधन संकट उत्पन्न करके उनकी इजराइल समर्थक विदेश नीति को अरब समर्थक बना दिया जाए । जापान ने तो तत्काल अपनी नीति में परिवर्तन करके इजरायल को समर्थन देना बन्द कर दिया और अमरीकी नीति में भी काफी परिवर्तन आ गया ।
सन् 1960 के बाद अमरीका ने क्यूबा के सन्दर्भ में आर्थिक दबाव की नीति अपनायी । जब फिडेल केस्ट्रो के नेतृत्व में क्यूबा ने साम्यवादी जगत से घनिष्ठ सम्बन्धों की शुरुआत की तो अमरीका ने उसका आर्थिक बहिष्कार कर दिया ।
इससे पूर्व क्यूबा की आर्थिक स्थिति उसके अमरीकी निर्यात पर अवलम्बित थी और अमरीका क्यूबा की शक्कर का सबसे बड़ा खरीदार था । इस आर्थिक दण्ड के फलस्वरूप क्यूबा को पूर्वी यूरोप सोवियत संघ और चीन के वैकल्पिक मार्केट ढूंढने पड़े ।
बाद में अमरीका ने खाद्य सामग्री और दवाइयों का निर्यात भी बन्द कर दिया ताकि क्यूबा झुक जाए । क्या राजनीतिक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए व्यवस्थित आर्थिक उपकरण किसी देश की नीति बदलने में सफल हो जाते हैं ? सन् 1918-68 की अवधि में ऐसे 18 मामलों का अध्ययन करके पीटर बालेन्सटीन ने बताया है कि दो मामलों में आर्थिक साधनों ने प्रभावकारी भूमिका अदा की है ।
सन् 1933 में छ: ब्रिटिश नागरिकों को मुक्त कराने के लिए ब्रिटिश सरकार ने सोवियत संघ के विरुद्ध अनेक आर्थिक प्रतिबन्ध लगाए जिसके फलस्वरूप सोवियत संघ ने ब्रिटिश नागरिकों को मुक्त कर दिया था । सन् 1962 में राष्ट्रपति केनेडी ने डोमिनिकन रिपब्लिक के विरुद्ध आर्थिक प्रतिबन्धों की नीति अपनायी जिसके आगे वहां की सरकार को झुकना पड़ा । दक्षिणी अफ्रीका और क्यूबा के विरुद्ध वर्तमानकाल में अपनायी गयी आर्थिक प्रतिबन्धों की नीति असफल रही है ।