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Read this essay in Hindi to learn about the end of cold war and its impact on international politics.
शीत-युद्ध की समाप्ति के वर्षों (1985-91) में अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के तनाव केन्द्रों में कमी आयी और कतिपय संकटपूर्ण समस्याओं का हल खोजना आसान हुआ । ईरान-इराक युद्ध की समाप्ति (1988), अफगान समस्या के समाधान (1988), नामीबिया की स्वतन्त्रता (1988), कुवैत को मुक्त कराने (1991) में संयुक्त राज्य अमरीका और सोवियत संघ ने मिल-जुलकर कार्य किया और संयुक्त राष्ट्र संघ प्रभावी भूमिका अदा कर सका ।
खाड़ी संकट के दिनों में राष्ट्रपति बुश और गोर्बाच्योव में गजब की सहमति देखी गयी । पश्चिम एशिया शान्ति वार्ता का माहौल तैयार करने में सोवियत संघ ने अमरीका को पूर्ण सहयोग दिया । शान्ति वार्ता में भाग लेने के लिए सीरिया को राजी करने में सोवियत पहल काफी सहायक सिद्ध हुई क्योंकि कई वर्षो से वह सीरिया को हथियार सप्लाई करता था । शीतयुद्ध की समाप्ति वाले परिवेश में ही दोनों महाशक्तियों के मध्य आई. एन. एफ. सन्धि पर हस्ताक्षर सम्भव हो सके ।
यह सन्धि टकराव को शान्ति में विरोध को सहयोग में तथा सन्देह को विश्वास में बदलने का प्रयास है । सोवियत संघ को आर्थिक संकट से उबारने के लिए पश्चिमी देश आगे आये । सोवियत राष्ट्रपति गोर्बाच्योव ने जी-7 देशों के लंदन सम्मेलन में (जुलाई 1991) भाग लिया ।
सोवियत संघ की मदद के लिए उसे अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष तथा विश्व बैंक का सदस्य बना दिया गया । इसके अतिरिक्त जी-7 ने सोवियत संघ में यातायात कानूनी एवं बैंकिंग प्रणाली स्थापित करने तथा ऊर्जा एवं खाद्य उत्पादन बढ़ाने में भी पूरी-पूरी तकनीकी सहायता देने का वचन दिया ।
शीत-युद्ध के अन्त के साथ ही सोवियत संघ का अस्तित्व भी समाप्त हो गया । 26 दिसम्बर, 1991 को सोवियत संघ की सुप्रीम सोवियत ने अपने अन्तिम अधिवेशन में सोवियत संघ को समाप्त किये जाने का प्रस्ताव पारित कर दिया और स्वयं के भंग होने की घोषणा कर दी ।
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इसके साथ ही 70 वर्ष पुराने सोवियत संघ का अन्त हो गया । गोर्बाच्योव ने तथाकथित ‘परमाणु बटन’ या ‘ब्रीफकेस’ रूसी नेता बोरिस येल्तसिन को सौंप दिये । विश्व के अनेक नेताओं ने गोर्बाच्योव की ऐतिहासिक दृष्टि और अपने देश में उदारवादी और लोकतान्त्रिक नीतियां अपनाने के वास्ते काफी सराहना की ।
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गोर्बाच्योव द्वारा सत्ता का अन्तिम हस्तान्तरण जिस शान्तिपूर्ण ढंग से किया गया उसकी समूचे विश्व ने प्रशंसा की विशेषकर एक ऐसे देश में जहां अतीत में सत्ता हस्तान्तरण राजनीतिक दांवपेचों या सशस्त्र सेनाओं के माध्यम से हुआ हो ।
वर्तमान और भावी इतिहासकार यह कलमबद्ध करेंगे कि मिखाइल गोर्बाच्योव ने एक जटिल व्यवस्था में न केवल लोकतान्त्रिक सुधार शुरू किये बल्कि वे अपने देश में लोकतन्त्र के उद्देश्य के लिए राजनीतिक शहीद भी हो गये । अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर गोर्बाच्योव को पूर्वी यूरोप में स्वतन्त्रता का मसीहा जर्मनी के एकीकरण का नायक स्वीकार किया जाता हे ।
उन्होंने शिखर वार्ताओं और संवाद द्वारा राष्ट्रों के बीच दूरियों को पाटकर अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति को तनाव रहित बनाने का प्रयत्न किया । उन्हें शीत-युद्ध की समाप्ति और परमाणु अस्त्रों को समाप्त करने के उपाय शुरू करने का श्रेय दिया जाता है ।
विश्व राजनीति में ‘हितों के सन्तुलन’ (A balance of interest) ने ‘भय के सन्तुलन’ (A balance of terror) का स्थान ले लिया । अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के मुख्य मुद्दे ‘सुरक्षा’ और ‘विचारधारा’ के बजाय ‘व्यापार’ और ‘पूंजी निवेश’ बन गये ।