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Read this essay in Hindi to learn about Globalism.
भूमण्डलीकरण या वैश्वीकरण राष्ट्रों की राजनीतिक सीमाओं के आर-पार आर्थिक लेनदेन की प्रक्रियाओं और उनके प्रबन्धन का प्रवाह है । विश्व अर्थव्यवस्था में आया खुलापन आपसी जुड़ाव और परस्पर निर्भरता के फैलाव को भूमण्डलीकरण कहा जा सकता है ।
इस प्रक्रिया के तेज विस्तार ने विश्व अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण बदलाव ला दिए हैं । भूमण्डलीकरण की यह प्रक्रिया अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक लेनदेन पर लगी रोक के हटने से शुरू हुई । विश्व अर्थव्यवस्था में कई तरह की रुकावटें दूर होने से भूमण्डलीकरण की प्रक्रिया के लिए रास्ता साफ हुआ है व्यापार के क्षेत्र में खुलापन आया है और विदेशी निवेश के प्रति उदारता बड़ी हे ।
साथ ही वित्तीय क्षेत्र में भी उदार नीतियां अपनायी जा रही हैं । यातायात एवं संचार क्षेत्र में आई क्रान्ति ने विश्व को बहुत पास ला दिया है । औद्योगिक संगठनों में नई प्रबन्ध व्यवस्थाओं के विकास ने भी भूमण्डलीकरण की प्रक्रिया को गति प्रदान की है ।
इसके अतिरिक्त संयुक्त राज्य अमेरिका की राजनीतिक प्रभुता ने भी भूमण्डलीकरण को बल प्रदान किया है, क्योंकि भूमण्डलीकरण की प्रक्रिया के लिए एक महाशक्ति का प्रभुत्व जरूरी है जिसकी मुद्रा से अन्तर्राष्ट्रीय बाजार का संचालन होता है । यह भूमिका अमरीकी डॉलर निभा रहा है ।
अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों के भूमण्डलीय परिप्रेक्ष्य में अध्ययन के लिए कतिपय सर्वमान्य पूर्वमान्यताएं निम्नांकित हैं:
प्रथम:
भूमण्डलीय विचारकों का विश्वास है कि, विश्व के समक्ष उपस्थित सभी समस्याएं भूमण्डलीय प्रकृति की हैं । इन समस्याओं की तीव्रता और गम्भीरता में अन्तर हो सकता है फिर भी वे किसी स्थान विशेष या समुदाय राज्य या क्षेत्र तक सीमित नहीं हैं ।
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अत: यदि उनका समाधान न किया जाए तो सभी को उनके परिणामों को भुगतना पड़ेगा । पर्यावरण प्रदूषण, जनसंख्या विस्फोट परमाणु युद्ध आतंकवाद, नशीली वस्तुएं तथा एड्स रोग जैसी सभी समस्याएं विश्वव्यापी हैं ।
द्वितीय:
सभी भूमण्डलीय विचारक मानते हैं कि, इन भूमण्डलीय अथवा विश्वव्यापी समस्याओं का निदान भी विश्वव्यापी ही हो सकता है । ऐसा इसलिए है क्योंकि, इन समस्याओं के समाधान के लिए जिन संसाधनों की आवश्यकता है वे किसी एक देश, क्षेत्र या समुदाय के पास उपलब्ध नहीं हैं । न केवल वित्तीय तथा भौतिक संसाधनों को समस्त भूमण्डल से एकत्र करना होगा परन्तु मानव संसाधनों के निवेश को भी समन्वय करना होगा ताकि उनमें कार्यकुशलता के साथ मितव्ययता भी सम्भव हो सके ।
तृतीय:
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सभी भूमण्डलवादियों का विचार है कि, इस प्रकार का समन्वय सतत आधार पर ही हो सकता है क्योंकि, इन समस्याओं की परिभाषा तथा उनके समाधान की प्राथमिकताओं का निर्णय विश्वव्यापी आम सहमति से ही सम्भव हो सकता है ।
आम सहमति प्राप्त करने के लिए निर्णय प्रक्रिया में पारदर्शिता तथा समानता पर आधारित लोकतान्त्रिक भागीदारी अपरिहार्य है । अनेक विचारक वर्तमान भूमण्डलीकरण की प्रक्रिया को ‘ऊपर से थोपा गया भूमण्डलीकरण’ कहते हैं क्योंकि, इसका निर्माण अमीर और शक्तिशाली राज्यों तथा बहुराष्ट्रीय निगमों के द्वारा किया जा रहा है ।
वे अपनी अपार शक्ति और सम्पदा का प्रयोग करके शक्तिहीन तथा निर्धन देशों और समुदायों पर थोपते हैं ताकि वे और भी पिछड़ जाएं । इस बात के काफी सबूत हैं कि पिछले 30 वर्षों में भूमण्डलीकरण के चलते राष्ट्रों और लोगों के आय स्तरों के बीच की खाई गहराती गई है ।
आय वितरण की असमानाएं भी बड़ी हें । लैटिन अमेरिका, अफ्रीका और पूर्व समाजवादी देशों में गरीबी बढ़ी है । भूमण्डलीकरण ने कुछ ही लोगों, राष्ट्रों और प्रान्तों के लिए लाभ के ऐसे अवसर खोजे हैं जिनकी तीन दशक पहले कल्पना नहीं की जा सकती थी ।
इस दौड़ में विकसित देशों की जीत हुई है । जीतने वाले राष्ट्रों में उत्तरी अमेरिका, पश्चिमी यूरोप, जापान, पूर्वी एशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया का नाम आता है । पिछड़ने वाले देश हैं: लैटिन अमेरिका, अफ्रीका, पश्चिमी एशिया, पूर्व एशिया और दक्षिण एशिया ।