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Here is an essay on ‘India and ASEAN’ for class 11 and 12. Find paragraphs, long and short essays on ‘India and ASEAN’ especially written for school and college students in Hindi language.
Essay on India and ASEAN
Essay Contents:
- आसियान का निर्माण (Formation of ASEAN)
- आसियान का स्वरूप एवं उद्देश्य (ASEAN: Nature and Objectives)
- आसियान के कार्य एवं भूमिका (Functions and Role of the ASEAN)
- आसियान की भूमिका का मूल्यांकन (Assessment of the Role of the ASEAN)
Essay # 1. आसियान का निर्माण (Formation of ASEAN):
‘एसियन’ या ‘आसियान’ का पूरा नाम ‘दक्षिण-पूर्वी एशियाई राष्ट्र संघ’ (Association of South-East Asian Nations-ASEAN) है । यह इण्डोनेशिया, मलेशिया, फिलिपीन्स, सिंगापुर तथा थाईलैण्ड का एक प्रादेशिक संगठन है ।
1967 में दक्षिण-पूर्वी एशिया के पांच देशों ने क्षेत्रीय सहयोग के उद्देश्य से ‘आसियान’ नामक असैनिक संगठन का निर्माण किया और 8 अगस्त, 1967 को बैंकॉक में एक सन्धि-पत्र पर हस्ताक्षर कर इसके निर्माण की औपचारिक घोषणा की ।
बाद में 1984 में बूनेई भी इसका सदस्य बना । प्रारम्भ में वियतनाम, लाओस, कम्बोडिया तथा म्यांमार को प्रेक्षक का दर्जा प्रदान किया गया था । 1995 में वियतनाम को तथा 30 अप्रैल, 1999 को कम्बोडिया को पूर्ण सदस्यता प्रदान कर दी गई ।
इसके साथ ही आसियान की सदस्य संख्या अब 10 हो गई है । आसियान के मौजूदा 10 सदस्य राष्ट्रों में इण्डोनेशिया, मलेशिया, फिलिपीन्स, सिंगापुर, थाईलैण्ड, ब्रूनई, वियतनाम, लाओस, म्यांमार एवं कम्बोडिया सम्मिलित हैं ।
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आसियान देशों ने भारत को अपना आंशिक सहयोगी बना लिया है । 24 जुलाई, 1996 को भारत को आसियान का पूर्ण संवाद सहभागी बना लिया गया है । वर्तमान में भारत, चीन, जापान और दक्षिण कोरिया इसके शिखर स्तर के हिस्सेदार है । भारत और चीन के अतिरिक्त यूरोपीय यूनियन और जापान आसियान के पूर्ण ‘डायलॉग साझेदार’ हैं ।
आसियान का केन्द्रीय सचिवालय जकार्ता (इण्डोनेशिया) में है और उसका अध्यक्ष महासचिव होता है । महासचिव का पद प्रति दो वर्ष के लिए प्रत्येक देश को जाता है और देश के चुनाव का आधार अकारादि क्रम है । सचिवालय के ब्यूरो निदेशकों तथा अन्य पदों की भर्ती तीन वर्ष बाद होती है । आसियान के शिखर सम्मेलन सार्क की भांति अधिक नहीं हुए हैं ।
पहला शिखर सम्मेलन 1976 में, दूसरा 1977 में, तीसरा एक दशक बाद 1987 में, चौथा जनवरी 1992 में, पांचवां दिसम्बर 1995 में थाईलैण्ड की राजधानी बैंकाक में, छठा दिसम्बर 1998 में हनोई में, सातवां नवम्बर, 2001 में बादर सेरी बेगावन (ब्रूनेई) में तथा नौवां शिखर सम्मेलन 7-8 अक्टूबर, 2003 को बाली (इण्डोनेशिया) में सम्पन्न हुआ । 29-30 नवम्बर, 2004 को वियनतिएन (लाओस) में आसियान देशों का 10वां शिखर सम्मेलन सम्पन्न हुआ । विदेशमन्त्रियों की बैठक प्रति वर्ष अवश्य होती रही है ।
Essay # 2. आसियान का स्वरूप एवं उद्देश्य (ASEAN: Nature and Objectives):
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द्वितीय विश्व-युद्ध के बाद निर्मित क्षेत्रीय संगठनों को मोटे रूप से दो भागों में विभाजित किया जा सकता है:
प्रथम:
वे संगठन जो सैनिक सन्धि की भांति हैं; जैसे: नाटो, सेण्टो, सीटो, वारसा पैक्ट आदि ।
द्वितीय:
वे संगठन जिनका उद्देश्य आर्थिक विकास राजनीतिक सांस्कृतिक वैज्ञानिक और जनकल्याण के क्षेत्र में कार्य करना है । ऐसे संगठनों में अरब लीग, आसियान, सार्क आदि प्रमुख हैं ।
आसियान और सार्क एशिया में क्षेत्रीय सहयोग के अनूठे प्रयास हैं । ‘आसियान’ दक्षिण-पूर्वी एशिया में तथा ‘सार्क’ दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय सहयोग के लिए कार्यरत संगठन हैं । दस सदस्यीय आसियान में भारत, चीन, जापान और दक्षिण कोरिया की भांति शिखर स्तर का हिस्सेदार है । 23 सदस्यीय ‘आसियान क्षेत्रीय मंच’ आसियान देशों का सुरक्षा कवच है जिसका भारत 1996 में सदस्य बना ।
प्रधानमन्त्री वाजपेयी ने 7 अक्टूबर, 2003 को आसियान मंच से ‘इस सदी को एशिया के वर्चस्व वाली सदी’ बताया । भारत ने 8 अक्टूबर को आसियान देशों के साथ आर्थिक-राजनीतिक स्तर पर एक नई साझीदारी की शुरुआत करते हुए इन देशों के साथ मुक्त व्यापार संधि के प्रारूप पर दस्तखत किए । भारत ने इस क्षेत्र के देशों का एक व्यापक एशियाई आर्थिक समुदाय बनाने का भी सुझाव दिया है ।
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में दक्षिण-पूर्वी एशिया का कई कारणों से बड़ा महत्व रहा है:
प्रथम:
यह क्षेत्र सामरिक (Strategic) और भौगोलिक दृष्टि से महत्वपूर्ण रहा है । यह हिन्द महासागर को प्रशान्त महासागर से मिलाने वाले समुद्री मार्ग पर स्थित है, और एशिया व ऑस्ट्रेलिया के मध्य तक प्राकृतिक पुल का सा कार्य करता है ।
द्वितीय:
आर्थिक दृष्टि से यह क्षेत्र बहुत समृद्ध है । चावल टिन रबड़ और पेट्रोल यहां प्रचुर मात्रा में पाया जाता है । म्यांमार, थाईलैण्ड और हिन्दचीन में अन्न का विशाल उपजाऊ क्षेत्र है, जिसे एशिया का ‘चावल का कटोरा’ कहा जाता है । मलाया में इतना अधिक टिन और रबड़ है कि वह अकेले विश्व की आवश्यकता पूर्ति कर सकता है । इण्डोनेशिया सारावाक और उत्तरी ब्रूनेई में तेल के विशाल भण्डार हैं ।
दक्षिण-पूर्वी एशिया ‘क्षेत्रीय सहयोग’ की ओर:
दक्षिण-पूर्वी एशिया में क्षेत्रीय सहयोग को पुख्ता करने के लिए द्वितीय महायुद्ध के बाद अनवरत प्रयत्न किए जाते रहे हैं । द्वितीय विश्व-युद्ध की समाप्ति के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ ने ‘इकाफे’ (ECAFE) की स्थापना कर इस एशियाई भूभाग की आर्थिक विकास की समस्याओं को रेखांकित कर दिया था ।
1954 में सीटो (SEATO) की स्थापना से इस क्षेत्र की सामूहिक सुरक्षा एवं आर्थिक साधनों के विकास की ओर ध्यान केन्द्रित किया गया । किन्तु सीटो एक सैनिक सन्धि का निर्माण करने वाला संगठन था जिसमें ब्रिटेन, फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया, पाकिस्तान, अमरीका आदि देश भी भागीदार थे ।
वी.के. कृष्णमेनन के शब्दों में, ”सीटो सुरक्षा का क्षेत्रीय संगठन नहीं है अपितु ऐसे विदेशी लोगों का संगठन है जिन्हें इस क्षेत्र में अपने न्यस्त स्वार्थों की रक्षा करनी है ।” आगे चलकर ‘कोलम्बो योजना’ ने तकनीकी-सांस्कृतिक सहयोग के लिए जमीन तैयार की और 1959 में ‘आसा’ (Association of South-East Asian States)के निर्माण की पृष्ठभूमि तैयार की गयी ।
1967-68 में ब्रिटेन ने स्वेज के पूरब से अपनी सेनाओं को वापस बुला लेने की घोषणा की और चीन में महान् सांस्कृतिक क्रान्ति के विस्फोट के साथ इस क्षेत्र में अपने सामरिक हितों के लिए पश्चिमी शक्तियां व्यग्र होने लगीं ।
असली सवाल द.-पू. एशिया के देशों की सुरक्षा का था । ऑस्ट्रेलिया के विदेश मन्त्री ने सुझाव दिया था कि- ”इसकी रक्षा करना हमारी जिम्मेदारी है दूसरी शक्तियां हमारा भार क्यों उठाएं ? सबसे सुरक्षित और विश्वसनीय उपाय तो अपनी शक्ति बढ़ाना तथा एशियाई देशों का संगठन सुदृढ़ बनाना है ।”
आसियान के दसों सदस्य राष्ट्रों में विभिन्न भाषा, धर्म, जाति, संस्कृति, खान-पान, रहन-सहन वाले लोग निवास करते हैं, इन देशों की औपनिवेशिक विरासत, ऐतिहासिक पूष्ठभूमि, राजनीतिक, आर्थिक एवं सामाजिक जीवन मूल्यों में भिन्नता है, तथापि उनमें कतिपय चुनौतियों का सामना करने की साझी समझ भी है । इन देशों के समुख जनसंख्या विस्फोट, निर्धनता, आर्थिक शोषण, असुरक्षा, आदि की समान चुनौतियां हैं जिन्होंने इन्हें क्षेत्रीय सहयोग के मार्ग पर चलने के लिए विवश कर दिया है ।
आसियान के निर्माण का प्रमुख उद्देश्य है द.-पू. एशिया में आर्थिक प्रगति को त्वरित करना और उसके आर्थिक स्थायित्व को बनाए रखना । मोटे तौर पर इसके निर्माण का उद्देश्य सदस्य राष्ट्रों में राजनीतिक सामाजिक आर्थिक सांस्कृतिक, व्यापारिक, वैज्ञानिक, तकनीकी, प्रशासनिक आदि क्षेत्रों में परस्पर-सहायता करना तथा सामूहिक सहयोग से विभिन्न साझी समस्याओं का हल ढूंढना है जो इसके निर्माण के समय आसियान घोषणा में स्पष्ट रूप से लिखित हैं ।
इसका ध्येय इस क्षेत्र में एक साझा बाजार तैयार करना और सदस्य देशों के बीच व्यापार को बढ़ावा देना है । 14 दिसम्बर, 1987 को आसियान का तीसरा शिखर सम्मेलन मनीला में हुआ । दो-दिवसीय शिखर सम्मेलन के अन्त में आसियान देशों ने आपसी व्यापार बढ़ाने हेतु चार समझौतों पर हस्ताक्षर किए ।
आसियान क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग पर बल देने वाला संगठन है, इसका स्वरूप कदापि सैनिक नहीं है । सदस्य राष्ट्र ‘सामूहिक सुरक्षा’ जैसी किसी कठोर एवं अनिवार्य शर्त से बंधे हुए नहीं हैं । यह किसी महाशक्ति से प्रोत्साहित प्रवर्तित एवं सम्बद्ध नहीं है । इसकी सदस्यता उन सभी दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों के लिए खुली है जो इसके लक्ष्यों से सहमत हैं ।
Essay # 3. आसियान के कार्य एवं भूमिका (Functions and Role of the ASEAN):
आसियान के कार्यों का क्षेत्र काफी व्यापक है । यह आज समस्त राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक, तकनीकी तथा प्रशासनिक क्षेत्रों में कार्यरत है । इसके सदस्य देश अपनी वैयक्तिक कार्य-प्रणालियों को क्षेत्रीय संगठन द्वारा सुलझाने के लिए प्रस्तुत करते हैं ।
सामाजिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों से सम्बन्धित स्थायी समिति ने अनेक परियोजनाएं बनायी हैं जिनका उद्देश्य जनसंख्या नियन्त्रण एवं परिवार नियोजन कार्यक्रमों को प्रोत्साहन दवाइयों के निर्माण पर नियन्त्रण, शैक्षणिक, खेल, सामाजिक, कल्याण एवं राष्ट्रीय व्यवस्था में संयुक्त कार्य-प्रणाली को महत्व देना है ।
1969 में संचार व्यवस्था एवं सांस्कृतिक गतिविधियों को बढ़ाने के लिए एक समझौता किया गया जिसके अन्तर्गत आसियान के सदस्य देश रेडियो एवं दूरदर्शन के माध्यम से एक-दूसरे के कार्यक्रमों का परस्पर आदान-प्रदान करते हैं ।
पर्यटन के क्षेत्र में आसियान ने अपना एक सामूहिक संगठन ‘आसियण्टा’ स्थापित किया है जो बिना ‘वीसा’ के सदस्य राष्ट्रों में पर्यटन की सुविधा प्रदान करता है । आसियान देशों ने 1971 में हवाई सेवाओं के व्यापारिक अधिकारों की रक्षा एवं 1972 में फंसे जहाजों की सहायता पहुंचाने से सम्बन्धित समझौते पर हस्ताक्षर किए ।
आसियान ने खाद्य-सामग्री के उत्पादन में प्राथमिकता देने के लिए किसानों को अर्वाचीन तकनीकी शिक्षा देने के कुछ कदम उठाए हैं जो विशेषकर गन्ना, चावल तथा पशुपालन में सहायक होते हैं । प्राथमिकता के आधार पर सीमित वस्तुओं के ‘स्वतन्त्र व्यापार क्षेत्र’ (साझा बाजार) स्थापित करने के लिए भी आसिणन देश प्रयत्नशील हैं ।
आसियान देशों में आपसी निर्यात एवं आयात उनके सीमित बाजार का विस्तार तथा विदेशी मुद्रा की बचत करेगा । इसके अतिरिक्त, आसियान वाणिज्य व उद्योग संघों के महासंघ के एजेण्डा पर मुख्य निर्यातों में आसियान देशों के संयुक्त बाजार एवं व्यापार का लक्ष्य रखा जा चुका है ।
1976 के बाली शिखर सम्मेलन में आसियान के सदस्य राष्ट्रों में पारस्परिक सहयोग को बढ़ाने के सन्दर्भ में निम्नांकित तीन सुझाव रखे गए:
i. बाहरी आयात कम करके सदस्य राष्ट्र पारस्परिक व्यापार को महत्व देंगे ।
ii. अधिशेष, खाद्य एवं ऊर्जा शक्ति वाले राष्ट्र इन क्षेत्रों में अभाव से पीड़ित आसियान देशों को मदद देंगे ।
iii. आसियान के देश व्यापार को अधिकाधिक क्षेत्रीय बनाने का प्रयास करेंगे ।
बाली शिखर सम्मेलन में ही आसियान राष्ट्रों के प्रधानों ने क्षेत्रीय सहयोग में आसियान की भूमिका पर एक ठोस रूपरेखा प्रस्तुत की । एक घोषणा एवं समझौते में इण्डोनेशिया एवं फिलिपीन्स के राष्ट्रपति और सिंगापुर, मलेशिया एवं थाईलैण्ड के प्रधानमन्त्रियों ने यह घोषणा की कि आसियान का कार्य सिर्फ आर्थिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक मामलों तक ही सीमित रहेगा तथा उसमें ‘सुरक्षा’ को सम्मिलित नहीं किया जाएगा ।
जनवरी, 1992 में चौथे शिखर सम्मेलन (सिंगापुर) में ‘आसियान’ ने नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की मांग की जिसमें विकासशील और विकसित देशों के बीच कोई भेदभाव न रहे । आसियान देशों के नेताओं ने अपना एक अलग मुक्त व्यापार क्षेत्र बनाने का प्रस्ताव भी रखा ।
सम्मेलन के अन्त में जारी घोषणा-पत्र में दक्षिण-पूर्वी एशिया को शान्ति क्षेत्र बनाने पर जोर दिया गया । इससे पूर्व एशिया को सदस्य देशों के बीच क्षेत्रीय व्यापार को बढ़ावा देने के लिए करों में कमी केर बारे में एक समझौता हुआ ।
इस समझौते को सिंगापुर, मलेशिया इण्डोनेशिया, फिलिपीन्स और ब्रूनेई के वित्त मन्त्रियों ने मिलकर तैयार किया था । इसमें साझा प्रभावी कर योजना बनाने की बात कही गयी है । इसका मकसद दक्षिण-पूर्व एशिया में 15 वर्षों के अन्दर एक मुक्त व्यापार क्षेत्र बनाया जाना है ।
आसियान संगठन के देशों ने उन 15 उत्पादों की सूची भी तैयार कर ली है, जिसे मुता व्यापार क्षेत्र के अन्तर्गत, समान तटकर योजना के अन्तर्गत लाया जाएगा । इसमें तेल, सीमेण्ट, रसायन उर्वरक, प्लास्टिक लुग्दी और रबड़ का सामान शामिल है । इन वस्तुओं पर तटकर में कमी लाई जाएगी ।
पूंजी बाजार में सहयोग को बढ़ावा देने के लिए सदस्य देश पूंजी और विशेष संसाधनों की स्वतन्त्र आवाजाही प्रोत्साहित करेंगे । ‘आसियान’ ने कृषि उत्पादन के व्यापार को बढ़ावा देने के लिए भी संयुक्त प्रयास करने का फैसला किया है । दिसम्बर, 1995 में आयोजित पांचवें शिखर सम्मेलन (थाईलैण्ड) में शिखर नेताओं ने सन् 2003 तक आसियान को मुक्त व्यापार क्षेत्र बनाने का निर्णय किया ।
आसियान के शिखर सम्मेलन का एक अन्य महत्वपूर्ण निर्णय बौद्धिक सम्पदा से सम्बन्धित समझौता है । इस समझौते से समूह के सदस्य देशों को विश्वास है कि वे विदेशी निवेश को आकर्षित करने में कामयाब होंगे तथा साथ ही तकनीक के हस्तान्तरण पर भी जोर दे सकेंगे ।
एक अन्य समझौता नाभिकीय शस्त्रों को रखने, उनका उत्पादन करने अथवा इन्हें प्राप्त करने को प्रतिबन्धित रखने के सिलसिले में भी सम्पन्न हुआ । समझौते के अन्तर्गत उत्तर में म्यांमार एवं वियतनाम तथा दक्षिण में फिलीपीन्स व इण्डोनेशिया तक एक नाभिकीय शस्त्रविहीन क्षेत्र बनाने की व्यवस्था है ।
आसियान का छठा शिखर सम्मेलन 15-16 दिसम्बर, 1998 को हनोई (वियतनाम) में सम्पन्न हुआ । दो दिन चले इस शिखर सम्मेलन में दक्षिण-पूर्व एशिया में स्वतन्त्र व्यापार क्षेत्र (ASEAN Free Trade Area-AFTA) को पूर्व निर्धारित समय सीमा से पहले ही प्रभावी करने पर सहमति रही ।
संयुक्त विज्ञप्ति में कहा गया कि आसियान के छ: पुराने सदस्य ब्रूनेई, इण्डोनेशिया, मलेशिया, फिलिपीन्स, सिंगापुर व थाईलैण्ड क्षेत्र में पूर्ण स्वतन्त्र व्यापार के लक्ष्य को पूर्व निर्धारित सन् 2003 के स्थान पर 2002 तक ही प्राप्त कर लेंगे ।
आसियान के पूर्व निर्धारित ‘विजन-2020’ की दिशा में पहले व्यावहारिक कदम के रूप में 1999-2004 ई॰ की अवधि के लिए स्वीकृत इस ‘हनोई कार्य योजना’ के अन्तर्गत क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण, व्यापार उदारीकरण व वित्तीय सहयोग वृद्धि के लिए विभिन्न उपाय निर्धारित किए गए हैं ।
नवम्बर, 1999 में सम्पन्न आसियान नेताओं के सम्मेलन में इस बात पर विशेष रूप से बल दिया गया है कि आसियान देशों को एक समूह के रूप में वित्तीय व आर्थिक सहयोग के लिए गम्भीरता से प्रयास करने चाहिए ।
इस सन्दर्भ में चीन-आसियान सम्बन्धों का विस्तार इस सम्मेलन की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है । चीन, कोरिया व जापान के सकारात्मक रुख से आसियान देशों में नया उत्साह आया है तथा यदि यही रुख बना रहा तो क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग इस भाग में नया मोड़ ले सकता है ।
जुलाई, 2000 में आसियान का वा मंत्रिस्तरीय सम्मेलन बैंकॉक में सम्पन्न हुआ । बैठक का मुख्य मुद्दा था विश्व व्यापार संगठन में विकासशील देशों के हितों की रक्षा कैसे की जाए ? आई.एम.एफ. तथा विश्व बैंक की नाराजगी के भय से इस प्रश्न पर खुलकर चर्चा नहीं हुई । चीन को विश्व व्यापार संघ का सदस्य बनाए जाने की अनुशंसा की गई ।
नवम्बर 2001 में बादर सेरी बेगावन (ब्रूनेई) में सम्पन्न आसियान शिखर सम्मेलन में भारत के साथ आसियान की नियमित शिखर बैठक करने का निर्णय लिया गया । दस सदस्यीय आसियान अभी तक तीन गैर आसियान सदस्यों (चीन, द. कोरिया तथा जापान) के साथ ही नियमित शिखर बैठक करता रहा है ।
भारत अभी तक आसियान का वार्ता भागीदार होने के साथ-साथ ‘आसियान रीजनल फोरम’ का सदस्य रहा है । शिखर सम्मेलन में लिए गए निर्णय के अन्तर्गत भारत व आसियान की शिखर बैठक ‘आसियान + 1’ के प्रारूप पर होगी ।
दस सदस्यीय आसियान (दक्षिण-पूर्व एशिया देशों का संगठन) देशों का युवा शिखर सम्मेलन 7-8 अक्टूबर, 2003 को बाली (इंडोनेशिया) में आयोजित हुआ । इसमें सभी दस सदस्य देशों के शिखर नेताओं के अतिरिक्त भारतीय प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी चीन के प्रधानमन्त्री वेन जियाबाओ जापान के प्रधानमन्त्री जुनीचीरो कोइजुमी और दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति रोह यू ल्यून ने भाग लिया ।
सम्मेलन का उद्घाटन इंडोनेशिया की राष्ट्रपति मेघावती सुकर्णपुत्री ने किया । इस सम्मेलन में लगभग सभी नेताओं ने परस्पर सहयोग एवं सहभागिता का आह्वान किया । 29-30 नवम्बर, 2004 को वियनतिएन (लाओस) में आसियान देशों का 10वां शिखर सम्मेलन हुआ । इसके साथ ही भारत-आसियान की तीसरी शिखर बैठक हुई । इस बैठक में भारत-आसियान दीर्घकालीन समझौता किया गया । भारत की आसियान में संवाद सहभागी के रूप में भूमिका स्थापित की गई है ।
कोनकोर्ड समझौता-II:
दस देशों के आसियान समूह ने वर्ष 2020 तक मुक्त व्यापार क्षेत्र बनाने की राह आसान करने के लिए 7 अक्टूबर को एक महत्वपूर्ण समझौते पर दस्तखत किए । ‘आसियान संधि-2’ पर ये दस्तखत क्षेत्रीय समूह की शिखर बैठक की समाप्ति पर हुए । आसियान कोनकोर्ड नाम की इस संधि में नेताओं ने आसियान समुदाय बनाने की अपनी प्रतिबद्धता का एलान किया ।
इस समुदाय में एक आसियान सुरक्षा समुदाय, एक आसियान आर्थिक समुदाय और एक आसियान सामाजिक एवं सांस्कृतिक समुदाय की संकल्पना है । संधि पर दस्तखत के बाद इंडोनेशिया की राष्ट्रपति मेघावती सुकर्णपुत्री ने कहा कि हम एक ऐतिहासिक घटना के चश्मदीद बन गए हैं ।
यह संधि अगली पीढ़ी और उसके भी आगे की पीढ़ियों के लिए शांति स्थायित्व और समृद्धि की सम्भावनाएं बनाएगी । नेताओं ने इस दस्तावेज के द्वारा यह सहमति भी व्यक्त की है कि हर सदस्य देश की सम्प्रभुता बनी रहेगी, हर देश अपनी निजी विदेश नीति और रक्षा प्रबन्ध और अपने राष्ट्रीय अस्तित्व से जुड़े अधिकारों के मामले में पूरी तौर पर स्वतन्त्र होगा और अंदरूनी मामलों में बाहरी दखल से मुक्त होगा ।
‘एक सुरक्षा समुदाय’ बनाने की कोशिशों के बावजूद नेताओं ने इस बात पर जोर दिया है कि वे कोई रक्षा संधि सैन्य गठबन्धन या कोई साझा विदेश नीति नहीं बनाएंगे । नेताओं ने सभी देशों की स्वतन्त्रता सम्प्रभुता और भौगोलिक अखंडता के प्रति सम्मान की प्रतिबद्धता दोहराई और एक दूसरे के अंदरूनी मामलों में दखल नहीं देने क्षेत्र के भीतर होने वाले किसी विवाद के शांतिपूर्ण समाधान और आपसी सहयोग का भी संकल्प व्यक्त किया ।
साझा धोषणा पत्र:
भारत और दस देशों के संगठन आसियान ने 8 अक्टूबर को आपसी व्यापार बढ़ाने, अगले दस वर्षों में मुक्त व्यापार क्षेत्र बनाने और अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद से निपटने में सहयोग के बारे में एक साझा घोषणा पत्र जारी किया ।
साझा घोषणा पत्र में आतंकवाद से निपटने का जिक्र करते हुए कहा गया है, कि हाल के कुछ वर्षों में यह दोनों पक्षों के लिए एक जैसी समस्या बन गई है । भारत की तरह कई एशियाई क्षेत्र आतंकवाद की चपेट में आ गए हैं ।
आसियान इस सिलसिले में दूसरे देशों के साथ भी साझा घोषणा पत्र जारी कर चुका है जिसमें अमेरिका भी शामिल है । साझा बयान में कहा गया है कि ‘अल जामिया नेटवर्क’ इंडोनेशिया, सिंगापुर, मलेशिया और फिलीपींस में सक्रिय हैं ।
इस संगठन ने थाईलैंड और कम्बोडिया में भी अपनी गतिविधियां फैला दी हैं । इंडोनेशिया आतंकवाद से बुरी तरह प्रभावित है । साझा बयान में अवैध धन की आवाजाही और नशीले पदार्थों के धंधे के खिलाफ उपाय करने का भी जिक्र किया गया है ।
भारत-आसियान सम्बन्ध:
अक्टूबर 2003 में भारत के तत्कालीन प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी की आसियान देशों की यात्रा के साथ ही भारत के आसियान के साथ सम्बन्ध एक नए मोड़ पर आ गए हैं । वस्तुत: वर्तमान समय में भारत-आसियान सम्बन्ध भारत की विदेश नीति का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष बन गया है ।
लगभग एक दशक पहले भारत ने पूर्वोन्मुखी नीति का अनुगमन किया था । तबसे निरन्तर आसियान के साथ भारत के सम्बन्धों में मजबूती आई है । यह कहा जा सकता है कि प्रधानमन्त्री नरसिम्हा राव के समय से अब तक भारत की आसियान देशों के प्रति नीति में एक निरन्तरता रही है ।
न केवल यह अपितु वाजपेयी सरकार ने इस नीति को और अधिक ठोस धरातल पर ला खड़ा किया । एक महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत की पूर्वोन्मुखी नीति पर एक राष्ट्रीय सहमति रही है तथा इसका विरोध नहीं हुआ है । यह कहना असंगत नहीं होगा कि पं. नेहरू के काल में जिस एशियाई एकता का सपना भारत ने देखा था भारत आज उस ओर धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा है ।
1990 के पश्चात् वैश्वीकरण व उदारीकरण के प्रभाव में जब क्षेत्रीय आर्थिक गठबन्धनों पर जोर दिया जाने लगा तो भारत ने पूर्वोन्मुखी नीति को प्राथमिकता देना प्रारम्भ किया । इस नीति की सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपलब्धि भारत का आसियान में प्रवेश रही है ।
भारत को 1992 में आसियान में सेक्टोरल डायलॉग पार्टनर का दर्जा मिला । 1995 में उसको फुल डायलॉग पार्टनर का दर्जा मिला । 1996 में भारत को आसियान क्षेत्रीय फोरम की सदस्यता मिली । नवम्बर 2002 में भारत को कम्बोडिया में शिखर वार्ता में सम्मिलित होने का अवसर मिला तथा अक्टूबर 2003 में बाली में भारत आसियान के साथ समझौता करने की स्थिति में आया । भारत की आसियान शिखर वार्ता तक की यात्रा काफी महत्वपूर्ण रही है ।
भारत ने आसियान के साथ मुक्त व्यापार सन्धि पर हस्ताक्षर किए हैं । यह उम्मीद की जा रही है कि इस सन्धि से भारत व आसियान के मध्य व्यापार में वृद्धि होगी । भारत का 45 प्रतिशत बाह्य व्यापार आसियान देशों के साथ है ।
1991 में भारत का आसियान देशों के साथ 3.1 अरब डॉलर का व्यापार था जो कि 2002 में 12 अरब डॉलर हो गया । भारत ने कम्बोडिया लाओस वियतनाम व म्यांमार के साथ व्यापार में छूट देने का भी निश्चय किया है ।
आसियान के साथ वार्ता में सीधी विमान सेवा के बारे में भी निर्णय किया गया है । भारत अपने 18 शहरों में यह सेवा उपलब्ध कराएगा । भारत ने आसियान देशों से आतंकवाद के मामले में एकजुट होने की अपील की है ।
अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद से संघर्ष के घोषणा पत्र पर भी इस शिखर वार्ता में हस्ताक्षर किए गए हैं । दक्षिण-पूर्व एशिया के इण्डोनेशिया, मलेशिया, सिंगापुर, फिलीपीन्स, आदि देश इस्लामिक आतंकवाद की समस्या से ग्रसित हैं । भारत की आज यह एक बड़ी समस्या बन चुकी है । इस समस्या से मुकाबले के लिए इन सभी देशों को सहमत करने में भारत सफल हुआ है ।
भारत-आसियान ऐतिहासिक समझौता (30 नवम्बर, 2004):
नवम्बर 2004 में भारतीय प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह ने विएनतिएन में सम्पन्न आसियान शिखर सम्मेलन में भाग लिया और 30 नवम्बर को आसियान और भारत के बीच एक ऐतिहासिक समझौता हुआ जिसमें शान्ति सहयोग और विकास को आधार बनाया गया ।
आसियान और भारत के बीच व्यापार 13 अरब डॉलर तक सीमित था, जिसे 2007 तक बढ़ाकर 30 अरब डॉलर करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया । रेल, सड़क, जल, यातायात और वायु यातायात में विस्तार की रूपरेखा बनाने एवं आपसी पर्यटन को बढ़ावा देने का संकल्प लिया गया ।
अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद से मिलकर मुकाबला करने की दृढ़ इच्छा शक्ति का इजहार भी किया गया । भारतीय प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह ने कहा भी कि अगर 21वीं सदी को एशियाई सदी बनाना है तो आसियान को भारत के साथ मिलकर चलना होगा ।
ऐसा सपना पं. नेहरू ने 1947 में देखा था और कहा था कि भविष्य को सुखद बनाने के लिए एशियाई देशों को मिलकर काम करना होगा । आसियान और भारत के बीच एक 18 सूत्री दस्तावेज भी जारी किया गया । विकसित देशों का उचित हक दिलाने और भूमण्डलीकरण का लाभ सब देशों तक पहुंचाने के लिए विश्व व्यापार संगठन में मिलकर आवाज उठाने की बात कही गई है ।
भारत और आसियान व्यापक जनसंहार के हथियारों की रोकथाम के लिए मिलकर प्रयास करेंगे । सम्मेलन में एक मन्त्री की यह टिपणी काबिले गौर है कि, ”भारत आसियान का पश्चिमी पंख है और जापान ब दक्षिण कोरिया पूर्वी पंख हैं ।
आसियान रूपी जम्बोजेट के उड़ने के लिए दोनों पंखों का सहयोग अपेक्षित है ।” सम्मेलन के दौरान प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह ने एशियाई आर्थिक विकास समूह के गठन का एक प्रस्ताव भी दिया । आसियान के मंच से द्विपक्षीय साझीदारी पर भी वार्ता चली ।
ऐतिहासिक भारत-आसियान समझौते के प्रमुख बिन्दु:
आसियान के साथ अपनी रणनीतिक भागीदारी को एक नई ऊंचाई देते हुए भारत ने उनके साथ शान्ति प्रगति एवं साझी उन्नति के लिए 30 नवम्बर, को एक ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसके प्रमुख बिन्दु निम्न प्रकार हैं:
i. अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद का मिलकर मुकाबला करेंगे और एक-दूसरे के देशों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के प्रवाह को सुगम व समृद्ध बनाएंगे ।
ii. समझौते में सदस्य देशों के बीच व्यापार निवेश खेल एवं लोगों के बीच सम्पर्क को बढ़ाने के लिए एक कार्ययोजना तैयार करने की बात कही गई है ।
iii. अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद व अन्य अन्तर्राष्ट्रीय अपराधों जैसे मादक द्रव्यों मानवों विशेषकर महिलाओं व बच्चों तथा हथियारों की तस्करी, समुद्री पायरेसी एवं काले धन को सफेल बनाने जैसी गैरकानूनी गतिविधियों से निपटने के लिए प्रयासों को तेज करने पर सहमति ।
iv. भारत और आसियान के बीच 2011 तक मुक्त व्यापार क्षेत्र का गठन कर लिया जाएगा ।
v. भारत और आसियान विश्व व्यापार संगठन, विश्व बैंक, संयुक्त राष्ट्र और ब्रेटनवुड्स समझौते के अन्तर्गत गठित अन्य संस्थाओं के प्रतिनिधिक स्वरूप का क्षेत्र बढ़ाने और उनमें सदस्य देशों को उचित स्थान दिलाने के लिए आपसी सहयोग करेंगे । दोनों पक्षों ने भूमण्डलीकरण के फायदे को विकासशील देशों तक समान रूप से पहुंचाने के लिए डब्यूटीओ में संयुक्त प्रयास करने की प्रतिबद्धता जताई है ।
vi. दस्तावेज में चिन्हित अपराधों से निपटने के लिए सदस्य देशों में कार्यरत संस्थाओं में सूचनाओं के आदान-प्रदान तथा इन संस्थाओं को और मजबूत बनाने पर सहमति का उल्लेख है ।
vii. भारत और आसियान प्रभावी अन्तर्राष्ट्रीय नियन्त्रण के अन्तर्गत व्यापक जनसंहार के हथियारों का प्रसार रोकने के लिए भी आवश्यक उपाय करेंगे ।
viii. दस्तावेज पर दस्तखत करने वाले देश क्षेत्रीय आधारभूत संरचना विकसित करने और इसके अन्तर्गत सड़क, रेलवे, समुद्र और हवाई सम्पर्क बढ़ाने को उच्च प्राथमिकता देंगे । दोनों पक्षों ने पर्यटन केन्द्रों को विकसित करने और इस दिशा में आपसी सम्पर्क बढाने की भी घोषणा की ।
भारत-आसियान शिखर की चतुर्थ शिखर बैठक (दिसम्बर, 2005):
आसियान के 11वें शिखर सम्मेलन के साथ-साथ भारत-आसियान चतुर्थ शिखर बैठक 13 दिसम्बर, 2005 को कुआलालम्पुर में सम्पन्न हुई । प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह ने आसियान के साथ सहयोग संवर्धन के कुछ ठोस प्रस्तावों की पेशकश की ।
दक्षिण-पूर्व एशिया में विद्यार्थियों, उद्यमियों व प्रशासनिकों में ‘कम्युनिकेशंस स्किल’ के विकास हेतु आसियान के चार देशों में स्थायी अंग्रेजी शिक्षा केन्द्रों की स्थापना तथा 2006 में भारत-आसियान प्रौद्योगिकी सम्मेलन के आयोजन के प्रस्ताव इनमें शामिल हैं ।
आसियान के चार अपेक्षाकृत निर्धन राष्ट्रों वियतनाम, कम्बोडिया, म्यांमार व लाओस के लिए प्रस्तावित विकास परियोजनाओं के वित्तीयन हेतु भारत-आसियान निधि के लिए 50 लाख डॉलर तथा एशियाई विकास निधि हेतु 10 लाख डॉलर की सहायता की उन्होंने पेशकश की ।
भारत-आसियान शिखर की पांचवीं बैठक (जनवरी 2007):
आसियान के 12वें शिखर सम्मेलन (13-14 जनवरी, 2007 : सेबू) के साथ-साथ 14 जनवरी, 2007 को भारत-आसियान पांचवीं शिखर बैठक भी सम्पन्न हुई । भारत-आसियान शिखर को सम्बोधित करते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने आसियान देशों से आग्रह किया कि वह मुक्त व्यापार समझौते की दिशा में सभी बाधाओं को दूर करने के लिए कदम उठाएं ।
दोनों पक्षों ने जुलाई 2007 तक मुक्त व्यापार समझौते तक पहुंचने के उपायों का अनुमोदन किया । भारत एवं आसियान के बीच व्यापार में 2006 में हुई 20 प्रतिशत वृद्धि का उल्लेख करते हुए मनमोहन सिंह ने कहा कि मुक्त व्यापार समझौते के बाद दोनों पक्षों के व्यापार में और तेजी आएगी । वर्ष 2006 में भारत-आसियान व्यापार 23.5 अरब डॉलर तक पहुंच गया था ।
भारत-आसियान शिखर की छठी बैठक (2008):
छठे भारत-आसियान शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमन्त्री द्वारा की गई विभिन्न वचन बद्धताओं पर स्पष्ट प्रगति करते हुए भारत ने भारत-आसियान विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी कोष की स्थापना की जिसमें भारत ने एक मिलियन अमरीकी डॉलर का आरम्भिक अंशदान दिया और साथ ही आसियान सदस्य देशों से 50 छात्रों के पहले बैच की मेजबानी भी की ।
भारत-आसियान मुक्त व्यापार समझौता (13 अगस्त, 2009):
13 अगस्त, 2009 को भारत ने 10 सदस्यीय आसियान के साथ बहुप्रतीक्षित मुक्त व्यापार समझौते (Free Trade Agreement) पर हस्ताक्षर किए । वर्ष 2010 से प्रभावी होने वाले इस समझौते से दोनों पक्षों के बीच वर्ष 2016 तक लगभग चार हजार उत्पादों का शुल्क मुक्त आयात-निर्यात किया जा सकेगा ।
489 अति संवेदनशील उत्पादों को शुल्क मुक्ति के दायरे से बाहर रखा गया है । इस समझौते के परिणामस्वरूप दोनों पक्षों के बीच वार्षिक व्यापार 40 अरब डॉलर से बढ्कर 60 अरब डॉलर हो जाने की आशा व्यक्त की गई ।
भारत-आसियान मुक्त व्यापार समझौते के मुख्य बिन्दु:
i. 2016 तक 4000 उत्पादों से आयात कर की समाप्ति ।
ii. समझौता जनवरी 2010 से लागू ।
iii. 2013 तक 2300 वस्तुओं से आयात कर हटाया जाना ।
iv. 2016 तक 880 उत्पादों का आयात शुल्क शून्य स्तर तक लाया जाना ।
v. 489 उत्पादों (कृषि, आटो पार्टस, मशीनरी, केमिकल) को समझौते के क्षेत्र से बाहर रखा जाना ।
vi. संवेदनशील कृषि उत्पादों पर आगामी दस वर्ष तक 45 से 50 प्रतिशत आयात शुल्क लिया जाना ।
भारत-आसियान सातवां शिखर सम्मेलन (अक्टूबर, 2009):
24-25 अक्टूबर, 2009 को चा आम व हुआ हीन में आयोजित 15वें आसियान शिखर सम्मेलन के साथ-साथ भारत-आसियान वां शिखर सम्मेलन भी आयोजित किया गया । आसियान के साथ भारत की वीं बैठक को सम्बोधित करते हुए प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह ने दोनों पक्षों के बीच निवेश एवं सेवाओं के स्वतन्त्र व्यापार के समझौते की दिशा में कार्यवाही तेज करने का आह्वान किया । आसियान की भारत से सम्बन्धित विभिन्न पहलों के कार्यान्वयन हेतु आसियान विकास कोष हेतु 5 करोड़ डॉलर तक के भारत के योगदान की घोषणा प्रधानमन्त्री ने की ।
भारत-आसियान नौवीं शिखर बैठक (नवम्बर, 2011):
आसियान के 19वें शिखर सम्मेलन (वाली: 17-19 नवम्बर 2011) के साथ ही भारत-आसियान 9वीं शिखर वार्ता बाली में 18 नवम्बर, 2011 को आयोजित की गयी । बाली में आसियान के साथ भारत के सम्बन्धों को रेखांकित करते हुए प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह ने कहा कि 2012-15 के लिए भारत-आसियान के ‘82 सूत्रीय प्लान ऑफ एक्शन’ के अन्तर्गत पारस्परिक सहयोग की अनेक परियोजनाएं प्रस्तावित कर रहा हे ।
प्रधानमन्त्री के अनुसार भारत व आसियान के बीच वस्तुओं के स्वतन्त्र ध्यापार का समझौता पहले ही अमल में लाया जा चुका है तथा सेवाओं एवं निवेश के लिए समझौते को शीघ्र सम्पन्न करने की आवश्यकता है ।
डॉ. मनमोहन सिंह ने कहा कि 2010-11 के दौरान भारत-आसियान व्यापार में 30 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है । तथा इस स्तर की वृद्धि दर बने रहने पर 2012 में 70 अरब डॉलर का व्यापार लक्ष्य प्राप्त किया जा सकेगा । उनके अनुसार भारत व आसियान के बीच बेहतर फिजीकल कनेक्टिविटी भारत की मंशा है ।
भारत-आसियान दसवीं शिखर बैठक (नवम्बर, 2012):
नोम पेन्ह, कम्बोडिया में 19 नवम्बर, 2012 को आयोजित दसवें आसियान-भारत शिखर सम्मेलन में प्रधानमन्त्री ने भारतीय शिष्टमण्डल का नेतृत्व किया । शिखर सम्मेलन के दौरान आसियान-भारत वार्ता सम्बन्धों के पिछले 20 वर्षों के इतिहास की समीक्षा की और उन्होंने आसियान-भारत शांति भागीदारी प्रगति तथा सांझी प्रगति (2010-2015) के क्रियान्वयन हेतु कार्य योजना में हुई अच्छी प्रगति की सराहना की । आसियान लब्धप्रतिष्ठ व्यक्ति समूह की रिपोर्ट नेताओं के समक्ष पेश की गई । नेताओं ने आसियान-भारत कारोबार हेतु वर्ष 2015 तक 100 बिलियन अमरीकी डॉलर का लक्ष्य निर्धारित किया ।
भारत-आसियान 11वीं शिखर बैठक (अक्टूबर, 2013):
प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह ने को बेगावान-ए-ब्रुनेई दारेस्सलाम में 10 अक्टूबर, 2013 को आयोजित 11वें आसियान भारत शिखर सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधिमण्डल की अगुवाई की । दिसम्बर, 2012 में भागीदारी को रणनीतिक भागीदार तक उठाने के बाद से यह प्रथम आसियान-भारत शिखर सम्मेलन था ।
नेताओं ने शान्ति प्रगति और साझी सम्पन्नता (2010-15) के लिए आसियान-भारत साझेदारी के कार्यान्वयन कार्य में हुई अच्छी प्रगति का स्वागत भी किया । भारत आसियान समुदाय निर्माण प्रक्रिया में भारत के सतत समर्थन का आसियान नेताओं द्वारा स्वागत किया गया ।
आसियान भारत कार्यनीतिक भागादारी के सपूर्ण तीव्रीकरण के मद्देनजर जाकार्ता इण्डोनेशिया में आवासीय दूत के साथ एक अलग से आसियान के लिए भारतीय मिशन की स्थापना की घोषणा 11वें आसियान-भारत शिखर सम्मेलन में की गयी । आसियान और भारत के बीच व्यापार बढ़ता रहा । यह 2012-13 (अक्टूबर, 2013 तक) में 76.4 बिलियन अमरीकी डॉलर था ।
भारत-आसियान 12वीं शिखर बैठक (नवम्बर, 2014):
12-13 नवम्बर को म्यांमार की राजधानी नेपीता में भारत-आसियान और पूर्वी एशिया शिखर बैठक में आदान-प्रदान को बढ़ावा देकर क्षेत्रीय सम्पर्क में सुधार करने और आसियान समूह के 10 देशों के साथ संवाद बढ़ाने की मजबूत जमीन तैयार करने के लिए प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने 12वें आसियान-भारत शिखर सम्मेलन में भाग लिया ।
भारत-आसियान और पूर्वी एशिया शिखर बैठकों में भारत ने इस बात पर जोर दिया कि एसोसिएशन ऑफ साउथ ईस्ट एशियन नेशन्स (आसियान) भारत की एक्ट ईस्ट नीति के मूल में है दोनों पक्ष आपसी सम्बन्धों को नई ऊंचाई पर ले जाने के लिए सहमत हुए जो प्रत्येक सदस्य के साथ मजबूत होते द्विपक्षीय सम्बन्धों के लिए पूरक का काम करेगा ।
भारत इस बात का इच्छुक है कि 2016 से शुरू होने वाली अगली आसियान-भारत पंचवर्षीय योजना में जनता से जनता के बीच सम्पर्क बढ़ाने पर जोर दिया जाना चाहिए । इस दौरान सामरिक और राजनीतिक सम्पर्क पर जोर देने के साथ ही व्यापार को बढ़ावा देने के भी उपाय होने चाहिए ।
योजना में क्षेत्र के सुरक्षा ढांचे पर भी ध्यान दिया जाएगा । भारत-म्यांमार और थाईलैण्ड को जोड़ने वाला 3,200 किलोमीटर का राजमार्ग विकसित करने की महत्वाकांक्षी योजना निर्माणाधीन है । इसे शुरू में 2017 तक पूरा करने पर जोर दिया जा रहा था लेकिन यह अपने निर्धारित लक्ष्य से पीछे है और अब इसके 2018 तक पूरा होने की सम्भावना है । भारत और 10 देशों का आसियान समूह इस राजमार्ग के द्वारा अपनी सम्पर्क योजनाओं को आकार देने की उम्मीद लगाए हैं ।
भारत और आसियान के बीच सेवा और निवेश में मुक्त व्यापार समझौता हो चुका है, जिससे द्विपक्षीय व्यापार के 2015 तक 100 अरब डॉलर तक पहुंचने की सम्भावना है । द्विपक्षीय व्यापार 2011 में 68.4 अरब डॉलर से 2012 में 71.6 अरब डॉलर पर पहुंच गया ।
आसियान देशों को 43.84 अरब अमेरिकी डॉलर मूल्य के सामान का निर्यात किया गया, जबकि भारत को हुआ आयात 2012 में अरब डॉलर रहा । आसियान समुदाय विश्व की तीसरी सबसे बड़ी जनसंख्या है जिसके इस शताब्दी में विश्व में सातवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और तीसरी सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बनने का अनुमान है ।
13वां भारत-आसियान शिखर सम्मेलन (21 नवम्बर, 2015):
मलेशिया की राजधानी क्वालालम्पुर में 21 नवम्बर, 2015 को 13वां भारत-आसियान शिखर सम्मेलन आयोजित हुआ । सम्मेलन में आतंकवाद के उभरते खतरे और पश्चिम एशिया के मौजूदा हालात पर भी चर्चा हुई । भारत के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने भारत-मासियान देशों को स्वाभाविक साझीदार बताते हुए आसियान देशों को भारत में निवेश के लिए आमन्त्रित किया ।
दोनों पक्ष आर्थिक और व्यापार सम्बन्ध बढ़ाकर 2020 तक सौ अरब डॉलर तथा 2025 तक दो सौ अरब डॉलर करने परु सहमत हुए । प्रधानमन्त्री ने कहा कि भारत इन देशों में विनिर्माण केन्द्रों की स्थापना के लिए परियोजना विकास कोष बनाना चाहता है । भारत ने ब्रूनेई सहित आसियान के सभी 10 देशों के लिए इलेक्ट्रॉनिक वीजा सुविधा देने की घोषणा की ।
प्रधानमन्त्री ने अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर एक व्यापक प्रस्ताव पारित कर क्षेत्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सहयोग बढ़ाने पर भी जोर दिया । भारत-आसियान के बीच आतंकवाद मानव और नशीलें पदार्थों की तस्करी साइबर चोरी और समुद्री डकैती जैसे मुद्दों पर मिलकर काम करने पर बातचीत हुई ।
आसियान भारत का चौथा सबसे बड़ा कारोबारी साझीदारी है । भारत-आसियान के लिए छठा सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार है । भारत और आसियान के बीच 2014-15 में अरब डॉलर का व्यापार हुआ । आसियान को भारत 31.81 अरब डॉलर का निर्यात करता है और इस समूह से 44.71 अरब डॉलर का आयात करता है ।
Essay # 4. आसियान की भूमिका का मूल्यांकन (Assessment of the Role of the ASEAN):
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के कतिपय विद्वानों का मत है कि मोटे तौर पर ‘आसियान’ का कार्य एवं भूमिका मन्द एवं निराशाजनक रही है । आसियान की तुलना यूरोपियन साझा बाजार; से करते हुए उनका विचार है कि यह संगठन सदस्य राष्ट्रों में वह आर्थिक एवं अन्य प्रकार का सहयोग तीव्र गति से नहीं बढ़ा पाया है ।
आर्थिक सहयोग में ‘आसियान’ की गति मन्द होने का कारण सदस्य राष्ट्रों के पास आवश्यक पूंजी एवं क्रय-शक्ति का कम होना है । सदस्य राष्ट्रों के हितों में टकराव के कारण उनके बीच कई अन्तर्राष्ट्रीय विवाद भी उठे हैं ।
यह भी आरोप लगाया जाता है कि आसियान देशों का झुकाव पश्चिमी देशों की तरफ अधिक रहा है । यह सही है कि इण्डोनेशिया के अतिरिक्त आसियान के अन्य सदस्य राष्ट्र मलेशिया, सिंगापुर, फिलिपीन एवं थाईलैण्ड पश्चिमी देशों के साथ सुरक्षात्मक समझौते से जुड़े हैं तथा उन्होंने अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के अनेक मुद्दों पर ही नहीं बल्कि हिन्दचीन पर भी पश्चिमी शक्तियों का साथ दिया । आसियान के सदस्य राष्ट्रों में विदेशी सैनिक अड्डे भी मौजूद हैं ।
इन सब आलोचनाओं के बावजूद आसियान एक असैनिक स्वरूप का संगठन है । आसियान की सदस्यता के द्वार दक्षिण-पूर्वी एशिया के उन सभी राष्ट्रों के लिए खुले हुए हैं जो इसके उद्देश्य सिद्धान्त तथा प्रयोजनों में विश्वास रखते हैं ।
आसियान के सदस्य राष्ट्रों की जनता उसको एक ऐसी मशीनरी के रूप में मानती है जो एक देश की जनता को दूसरे देश की जनता से जोड़ती है । ‘आसियान’ क्षेत्र को मुक्त व्यापार क्षेत्र बनाने के प्रयल क्षेत्रीय सहयोग की दिशा में महत्वपूर्ण चरण हैं ।
भारत तथा आसियान देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार और निवेश में पर्याप्त वृद्धि हुई है और यह कड़ा वर्ष 2009-2010 में 44 बिलियन अमरीकी डॉलर (18 बिलियन अमरीकी डॉलर का निर्यात तथा 26 बिलियन अमरीकी डालर का आयात) तक पहुंच गया है ।
वर्ष 2003-2004 में द्विपक्षीय व्यापार का कड़ा 13. 25 बिलियन अमरीकी डॉलर का था । वर्ष 2012-13 में आसियान तथा भारत के बीच कारोबार में 35 प्रतिशत की वृद्धि हुई जो 76.4 बिलियन अमरीकी डॉलर तक पहुंच गया जिससे यह राशि समय से पहले 70 बिलियन अमरीकी डॉलर के लक्ष्य को पार कर गई ।
मुक्त व्यापार करार के पहले भाग के रूप में अगस्त 2009 में बैंकॉक में हस्ताक्षरित भारत-आसियान सेवा व्यापार करार 1 जनवरी, 2010 को लागू हुआ । यह आसियान के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था के एकीकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम है ।
ADVERTISEMENTS:
सांस्कृतिक शैक्षिक एवं अकादमिक क्षेत्रों में हम लोगों से लोगों के बीच सम्पर्कों, धार्मिक पर्यटन, उच्च शैक्षिक संस्थाओं के बीच सम्पर्कों तथा साझे हित के मुद्दों पर दूर संचार को बढ़ावा देना चाहते हैं । हम इस क्षेत्र के देशों के साथ क्षेत्रीय एकीकरण को भी बढ़ावा देना चाहते हैं ।
इन क्षेत्रों में हमारा सहयोग हमारे सभ्यतामूलक सम्पर्कों की निरन्तरता पर आधारित है । अगस्त 2010 में, ‘अन्तर्राष्ट्रीय शिक्षण एवं उत्कृष्टता संस्थान’ के रूप में नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना से सम्बन्धित विधेयक को पारित किया जाना इस क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम है ।
हमारी संसदीय संस्थाओं और आसियान संसदों के बीच कार्यकलापों को बढ़ावा देने की एक महत्वपूर्ण मुहिम के अन्तर्गत हमें हनोई में हाल में आयोजित आसियान अन्तर्संसदीय असेंबली में पर्यवेक्षक का दर्जा दिया गया । इस क्षेत्र के देशों के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए भारत ने कम्बोडिया, लाओस, वियतनाम और फिलीपींस को अनुदानों, रियायती ऋणों, एवं ऋण शृंखलाओं के द्वारा सहायता प्रदान करना जारी रखा ।
इसके साथ ही आईटेक योजना के अन्तर्गत प्रशिक्षण पाठयक्रमों की भी पेशकुश की गई । प्रशांत द्वीप मंच (पीआईएफ) देशों के वार्ता भागीदार के रूप में भारत क्षमता निर्माण तथा सामाजिक-आर्थिक कार्यक्रमों एवं सतत विकास के क्षेत्र में क्षेत्रीय स्तर पर सहायता प्रदान करते हुए प्रशांत द्वीप के देशों के साथ भी विविध कार्यकलापों में शामिल रहा है ।
इसके आधार पर भारत-संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में भारत की उम्मीदवारी, राष्ट्रमण्डल, असैनिक परमाणु सहयोग इत्यादि जैसे मुद्दों पर भारत के लिए इस क्षेत्र के अधिकांश देशों का समर्थन प्राप्त करने में सफल रहा है ।