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Here is an essay on ‘India and SAARC’ especially written for school and college students in Hindi language.
Essay # 1. सार्क का निर्माण:
‘सार्क’ (दक्षेस) का पूरा नाम है ‘साउथ एशियन ऐसोसिएशन फॉर रीजनल को-ऑपरेशन’ अर्थात् ‘दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन’ । 7 व 8 दिसम्बर, 1985 को ढाका में दक्षिण एशिया के 7 देशों के राष्ट्राध्यक्षों का सम्मेलन हुआ तथा ‘सार्क’ की स्थापना हुई ।
ये देश हैं: भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, श्रीलंका और मालदीव । यह दक्षिण एशिया के सात पड़ोसी देशों की विश्व राजनीति में क्षेत्रीय सहयोग की पहली शुरुआत है । ‘सार्क’ की स्थापना के अवसर पर दक्षिण एशिया के इन नेताओं ने जो भाषण दिये, उनमें आपसी सहयोग बढ़ाने और तनाव समाप्त करने पर जोर दिया गया । उन्होंने यह भी कहा कि इस नये संगठन के जन्म से इन सात देशों के बीच सद्भावना भाई-चारा और सहयोग का नया युग शुरू होगा ।
उन्होंने ‘क्षेत्रीय सहयोग संघ’ के जन्म को ‘युगान्तकारी घटना’, ‘नये युग का शुभारम्भ’ तथा ‘सामूहिक सूझबूझ और राजनीतिक इच्छा शक्ति की अभिव्यक्ति’ बताया । दक्षिण एशियाई संघ के सदस्य देशों में लगभग 170 करोड़ लोग रहते हैं ।
इस दृष्टि से यह विश्व का सबसे अधिक जनसंख्या वाला संघ है । यद्यपि यह क्षेत्र प्राकृतिक साधनों, जनशक्ति तथा प्रतिभा से भरपूर है तथापि इन देशों की जनसंख्या गरीबी, अशिक्षा और कुपोषण की समस्या से पीड़ित है ।
इस क्षेत्र में जनसंख्या का दबाव प्रति वर्ग किलोमीटर 180 है, जबकि विश्व का औसत प्रति वर्ग किलोमीटर केवल 30 है । विश्व के सकल राष्ट्रीय उत्पाद में इस क्षेत्र का भाग केवल 2 प्रतिशत और निर्यात में 0.6 प्रतिशत है ।
भारत को छोड़कर इस क्षेत्र के अन्य देशों को खाद्यान्न का आयात करना पड़ता है । मालदीव को छोड्कर संघ के शेष सदस्य (भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान, नेपाल, भूटान और श्रीलंका) भारतीय उपमहाद्वीप के हिस्से हैं ।
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ये सभी देश इतिहास, भूगोल धर्म और संस्कृति के द्वारा एक-दूसरे से जुड़े हैं । विभाजन के पहले भारत पाकिस्तान और बांग्लादेश एक ही प्रशासन और अर्थव्यवस्था के अभिन्न अंग थे लेकिन स्वतन्त्रता के बाद ये देश एक-दूसरे से दूर हो गये ।
‘सार्क’ का विकास धीरे-धीरे हुआ है । दक्षिण एशियाई देशों का क्षेत्रीय संगठन बनाने का विचार बांग्लादेश के पूर्व राष्ट्रपति जिया-उर-रहमान ने दिया था । उन्होंने 1977 से 1980 के बीच भारत पाकिस्तान नेपाल और श्रीलंका की यात्रा की थी ।
उसके बाद ही उन्होंने एक दस्तावेज तैयार करवाया जिसमें नवम्बर, 1980 में आपसी सहयोग के लिए दस मुद्दे तय किये गये । बाद में इसमें से पर्यटन और संयुक्त उद्योग को निकाल दिया गया । इन्हीं में से दस मुद्दे आज भी ‘सार्क’ देशों के बीच सहयोग का आधार हैं । ‘सार्क’ के विदेश सचिवों की अप्रैल 1981 में बांग्लादेश के दस्तावेज पर विचार करने के लिए एक बैठक हुई थी ।
विदेशमन्त्रियों की पहली बैठक नयी दिल्ली में सन् 1983 में हुई थी । इसी बैठक में दक्षिणी एशियाई क्षेत्रीय सहयोग की पहली औपचारिक घोषणा हुई । विदेशमन्त्रियों की बैठक जुलाई, 1984 में मालदीव में और 1985 में ‘भूटान’ में हुई । उसके बाद ही दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन की स्थापना हुई और इसका संवैधानिक स्वरूप निश्चित किया गया ।
Essay # 2. सहयोग क्षेत्रों का निर्धारण:
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सार्क का मूल आधार क्षेत्रीय सहयोग पर बल देना है । अगस्त, 1983 में ऐसे नौ क्षेत्र रेखांकित किये गये थे-कृषि, स्वास्थ्य सेवाएं, मौसम विज्ञान, डाक-तार सेवाएं, ग्रामीण विकास, विज्ञान तथा तकनीकी, दूर संचार तथा यातायात, खेलकूद तथा सांस्कृतिक सहयोग । दो वर्ष बाद ढाका में इस सूची में कुछ और विषय जोड़ दिये गये-आतंकवाद की समस्या, मादक-द्रव्यों की तस्करी तथा क्षेत्रीय विकास में महिलाओं की भूमिका ।
सार्क का चार्टर एवं ढाका घोषणा:
सार्क के चार्टर में 10 धाराएं हैं । इनमें सार्क के उद्देश्यों, सिद्धान्तों, संस्थाओं तथा वित्तीय व्यवस्थाओं को परिभाषित किया गया है, जो इस प्रकार हैं:
उद्देश्य:
अनुच्छेद 1 के अनुसार सार्क के मुख्य उद्देश्य हैं:
(i) दक्षिण एशिया क्षेत्र की जनता के कल्याण एवं उनके जीवन-स्तर में सुधार करना ।
(ii) दक्षिण एशिया के देशों की सामूहिक आत्म-निर्भरता में वृद्धि करना ।
(iii) क्षेत्र के आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक विकास में तेजी लाना ।
(iv) आपसी विश्वास, सूझ-बूझ तथा एक-दूसरे की समस्याओं का मूल्यांकन करना ।
(v) आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, तकनीकी और वैज्ञानिक क्षेत्र में सक्रिय सहयोग एवं पारस्परिक सहायता में वृद्धि करना ।
(vi) अन्य विकासशील देशों के साथ सहयोग में वृद्धि करना ।
(vii) सामान्य हित के मामलों पर अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर आपसी सहयोग मजबूत करना ।
सिद्धान्त:
अनुच्छेद 2 के अनुसार सार्क के मुख्य सिद्धान्त निम्न हैं:
(a) संगठन के ढांचे के अन्तर्गत सहयोग, समानता, क्षेत्रीय अखण्डता, राजनीतिक स्वतन्त्रता, दूसरे देशों के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना तथा आपसी लाभ के सिद्धान्तों का सम्मान करना ।
(b) इस प्रकार का सहयोग द्विपक्षीय और बहुपक्षीय सहयोग का स्थान नहीं लेगा बल्कि उनका पूरक होगा ।
(c) इस प्रकार का सहयोग द्विपक्षीय और बहुपक्षीय उत्तरदायित्वों का विरोधी नहीं होगा ।
संस्थाएं:
चार्टर के अन्तर्गत ‘सार्क’ की निम्नलिखित संस्थाओं का उल्लेख किया गया है:
(I) शिखर सम्मेलन:
अनुच्छेद 3 के अनुसार प्रतिवर्ष एक शिखर सम्मेलन का आयोजन किया जायेगा । शिखर सम्मेलन में सदस्य देशों के शासनाध्यक्ष भाग लेते हैं । पहला शिखर सम्मेलन बांग्लादेश की राजधानी ढाका में (7-8 दिसम्बर, 1985), दूसरा शिखर सम्मेलन भारत के बेंगलुरू नगर में (16-17 नवम्बर, 1986), तीसरा शिखर सम्मेलन नेपाल (1987) में, चौथा शिखर सम्मेलन (1988 में) पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में, पांचवां शिखर सम्मेलन (1990 में) मालदीव की राजधानी माले में, छठा शिखर सम्मेलन 1991 में श्रीलंका की राजधानी कोलम्बो में, सातवां शिखर सम्मेलन बांग्लादेश (1993 में) की राजधानी ढाका में, आठवां शिखर सम्मेलन (1995) भारत की राजधानी नई दिल्ली में, नौवां शिखर सम्मेलन मालदीव की राजधानी माले (12-14 मई, 1997) में, दसवां शिखर सम्मेलन (29-31 जुलाई, 1998) श्रीलंका की राजधानी कोलम्बो में, ग्यारहवां शिखर सम्मेलन (5-6 जनवरी, 2002) नेपाल की राजधानी काठमांडू में, 12वां शिखर सम्मेलन (4-6 जनवरी, 2004) इस्लामाबाद में, 13वां शिखर सम्मेलन (12-13 नवम्बर, 2005) ढाका में, 14वां शिखर सम्मेलन अप्रैल 2007 में नई दिल्ली में, 15वां शिखर सम्मेलन अगस्त 2008 में कोलम्बो में, 16वां शिखर सम्मेलन अप्रैल 2010 में थिम्पू (भूटान) में, 17वां शिखर सम्मेलन 10-11 नवम्बर, 2011 में अडू (मालदीव) में तथा 18वां शिखर सम्मेलन 26-27 नवम्बर 2014 में काठमांडू (नेपाल) में आयोजित किया गया ।
(II) मन्त्रिपरिषद:
अनुच्छेद 4 के अनुसार यह सदस्य देशों के विदेशमन्त्रियों की परिषद् है । इसकी विशेष बैठकें आवश्यकतानुसार कभी भी हो सकती हैं परन्तु छह माह में एक बैठक होना आवश्यक है । इसके कार्य हैं; संघ की नीति निर्धारित करना सामान्य हित के मुद्दों के बारे में निर्णय करना सहयोग के नये क्षेत्र खोजना आदि ।
(III) स्थायी समिति:
अनुच्छेद 5 के अनुसार यह सदस्य देशों के विदेश सचिवों की समिति है । इसकी बैठकें आवश्यकतानुसार कभी भी हो सकती हैं, परन्तु वर्ष में एक बैठक का होना अनिवार्य है । इसके प्रमुख कार्य हैं-सहयोग के कार्यक्रमों को मॉनिटर करना अन्तर-क्षेत्रीय प्राथमिकताएं निर्धारित करना अध्ययन के आधार पर सहयोग के नये क्षेत्रों की पहचान करना ।
(IV) तकनीकी समितियां:
इनकी व्यवस्था अनुच्छेद 6 में की गयी है । इनमें सभी सदस्य देशों के प्रतिनिधि होते हैं । ये अपने-अपने क्षेत्र में कार्यक्रम को लागू करने उनमें समन्वय पैदा करने और उन्हें मॉनिटर करने के लिए उत्तरदायी हैं । ये स्वीकृत क्षेत्रों में क्षेत्रीय सहयोग के क्षेत्र और सम्भावनाओं का पता लगाती हैं ।
(V) कार्यकारी समिति:
अनुच्छेद 7 में कार्यकारी समिति की व्यवस्था की गयी है । इसकी स्थापना स्थायी समिति द्वारा की जा सकती है ।
(VI) सचिवालय:
अनुच्छेद 8 में सचिवालय का प्रावधान है । इसकी स्थापना दूसरे सार्क सम्मेलन (बेंगलुरू) के बाद 16 जनवरी, 1987 को की गयी । 17 जनवरी, 1987 से सचिवालय ने कार्य करना शुरू कर दिया है । इसका मुख्यालय नेपाल की राजधानी काठमाण्डू में है ।
महासचिव का कार्यकाल 2 वर्ष रखा गया है तथा महासचिव का पद सदस्यों में बारी-बारी से घूमता रहता है । प्रत्येक सदस्य अपनी बारी आने पर किसी व्यक्ति को नामजद करता है जिसे सार्क मन्त्रिपरिषद् नियुक्त कर देती है । संगठन के वर्तमान महासचिव अर्जुन बहादुर थापा (नेपाल) हैं । सार्क सचिवालय को सात भागों में विभक्त किया गया है और प्रत्येक भाग के अध्यक्ष को निदेशक कहते हैं ।
(VII) वित्तीय प्रावधान:
सार्क के कार्यों के लिए प्रत्येक सदस्य के अंशदान को ऐच्छिक रखा गया है । कार्यक्रमों के व्यय को सदस्य देशों में बांट ने के लिए तकनीकी समिति की सिफारिशों का सहारा लिया जाता है ।
सचिवालय के व्यय को पूरा करने के लिए सदस्य देशों के अंशदान को निम्न प्रकार निर्धारित किया गया है:
भारत 32%, पाकिस्तान 25%, नेपाल, बांग्लादेश एवं श्रीलंका प्रत्येक का 11% और भूटान एवं मालदीव प्रत्येक 5% ।
Essay # 3. सार्क शिखर सम्मेलन:
अब तक 18 सार्क शिखर सम्मेलन सम्पन्न ही चुके हैं, जो निम्नांकित हैं:
ढाका शिखर सम्मेलन:
सार्क का पहला शिखर सम्मेलन बांग्लादेश की राजधानी ढाका में 7-8 दिसम्बर, 1985 में हुआ जिसमें दक्षिण एशिया के 7 देशों ने विभिन्न समस्याओं और भाई-चारे तथा सहयोग के विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से विचार-विमर्श एवं विश्लेषण किया ।
बेंगलुरू शिखर सम्मेलन:
सार्क का द्वितीय शिखर सम्मेलन बेंगलुरु में 16-17 नवम्बर, 1986 को सम्पन्न हुआ । सम्मेलन में निश्चित किया गया कि सार्क का सचिवालय काठमाण्डू में स्थापित होगा जिसके प्रथम महासचिव श्री अब्दुल हसन होंगे ।
सहयोग के क्षेत्र में नशीले पदार्थों की तस्करी रोकने, पर्यटन के विकास, रेडियो-दूरदर्शन प्रसारण कार्यक्रम, विपदा प्रबन्ध पर अध्ययन सम्मिलित किये गये और क्रियान्वयन हेतु एक समयबद्ध कार्यक्रम की घोषणा की-गयी ।
काठमाण्डू शिखर सम्मेलन:
सार्क का तीन दिवसीय तृतीय शिखर सम्मेलन नेपाल की राजधानी काठमाण्डू में 4 नवम्बर, 1987 को समाप्त हुआ । आतंकवाद की समस्या पर सभी राष्ट्रों ने खुलकर विचार किया । आतंकवाद निरोधक समझौता उस सम्मेलन की महत्वपूर्ण उपलब्धि थी । खाद्य सुरक्षा भण्डार की स्थापना एवं पर्यावरण की समस्या पर भी विचार-विमर्श हुआ ।
सार्क (दक्षेस) का चतुर्थ शिखर सम्मेलन (दिसम्बर, 1988):
इस्लामाबाद धोषणा-पत्र-सार्क (दक्षेस) का चतुर्थ शिखर सम्मेलन (29-31 दिसम्बर, 1988) क्षेत्रीय सहयोग के नूतन दिशा संकेत इंगित करता है । ‘इस्लामाबाद घोषणा-पत्र’ में दक्षेस 2000 एकीकृत योजना पर विशेष जोर दिया गया ।
इस योजना के अन्तर्गत शताब्दी के अन्त तक क्षेत्र की एक अरबसे अधिक जनसंख्या को आवास व शिक्षा देने का प्रावधान है । इसमें मादक-द्रव्यों के खिलाफ संघर्ष का आह्वान किया गया । घोषणा-पत्र में परमाणु निरस्त्रीकरण पर बल देते हुए सकारात्मक अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों का नया माहौल बनाने का स्वागत भी किया गया ।
सार्क (दक्षेस) का पांचवां शिखर सम्मेलन (नवम्बर, 1990):
23 नवम्बर, 1990 को मालदीव की राजधानी माले में 5वां दक्षेस शिखर सम्मेलन सम्पन्न हुआ । सम्मेलन में भारत के प्रधानमन्त्री चन्द्रशेखर पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री मियां नवाज शरीफ व नेपाल के प्रधानमन्त्री भट्टराय शामिल हुए । मालदीव के राष्ट्रपति गयूम को दक्षेस का नया अध्यक्ष बनाया गया ।
शिखर सम्मेलन की समाप्ति पर सदस्य देशों के शासनाध्यक्षों ने माले घोषणा-पत्र पर हस्ताक्षर किये । इन दक्षिण एशियाई देशों ने आर्थिक क्षेत्र में आपसी सहयोग मजबूत करने के लिए संयुक्त उद्योग स्थापित करने तथा क्षेत्रीय परियोजनाओं हेतु सामूहिक कोष गठित करने का निर्णय किया ।
सम्मेलन के नेताओं ने विकासशील देशों के लिए अधिक दिनों तक खाद्य जुटाने के सम्बन्ध में जैव-प्रौद्योगिकी के महत्व तथा चिकिस्ता सम्बन्धी आवश्यकताओं पर बल दिया और इस क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने का आह्वान किया । घोषणा-पत्र में क्षेत्र में आत्म-निर्भरता की आवश्यकता पर बल दिया गया । सम्मेलन में 1990 के दशक को ‘दक्षेस बालिका दशक’ वर्ष 1991 को ‘दक्षेस आश्रय वर्ष’ और वर्ष 1993 को ‘दक्षेस विकलांग वर्ष’ मनाने का फैसला किया गया ।
सार्क (दक्षेस) का छठा शिखर सम्मेलन (दिसम्बर 1991):
21 दिसम्बर, 1991 को कोलम्बो में छठा सार्क शिखर सम्मेलन सम्पन्न हुआ । श्रीलंका के राष्ट्रपति सार्क के नये अध्यक्ष बनाये गये ।
सम्मेलन में निम्नांकित बातों पर सहमति व्यक्त की गई:
(1) क्षेत्र में आतंकवाद को रोकने के लिए व्यापक सहयोग और सदस्य देशों में सूचनाओं का आदान-प्रदान किया जाये ।
(2) निरस्त्रीकरण की सामान्य प्रवृत्ति का स्वागत इस आशा से किया गया कि उससे सैन्य शक्तियों को विश्व के अन्य भागों में संयम बरतने के लिए प्रेरणा मिलेगी ।
(3) मानव अधिकारों के प्रश्न को केवल संकीर्ण और विशुद्ध राजनीतिक दृष्टि से न देखकर आर्थिक और सामाजिक पहलू के साथ सम्बद्ध करके देखा जाय ।
(4) सार्क के सदस्य देशों के बीच व्यापार के उदारीकरण के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उसके संस्थागत ढांचे के बारे में समझौता किया जाये ।
(5) गरीबी उन्मूलन के लिए एक सार्क समिति की स्थापना की जाये ।
(6) वर्ष 2000 ई॰ तक क्षेत्र के सभी बच्चों को प्राथमिक शिक्षा की सुविधा प्रदान करायी जाये ।
छठे शिखर सम्मेलन में क्षेत्रीय सहयोग के अनेक क्षेत्रों में ठोस कदम उठाये गये । इस दिशा में सबसे महत्वपूर्ण और सबसे प्रशंसनीय बात यह रही कि आर्थिक सहयोग समिति की यह सिफारिश छठे सार्क शिखर सम्मेलन ने अनुमोदित कर दी कि एक अन्तर सरकारी दल गठित किया जाये जो एक संस्थागत रूपरेखा तैयार करे और उस पर सहमति प्राप्त करे और इसके अन्तर्गत व्यापार के उदारीकरण के लिए विशेष कदम उठाये ।
एक अन्य दूरगामी महत्वपूर्ण निर्णय यह था कि क्षेत्रीय संस्थानों को समेकित करके एक कोष चलाया जाये तथा वित्तीय संस्थानों के विकास के लिए सार्क देशों की एक क्षेत्रीय परिषद् गठित की जाये जो इस कोष की प्रबन्ध व्यवस्था देखे । तकनीकी सहयोग के 13 सहमत क्षेत्रों के अन्तर्गत वर्ष 1991 के दौरान सार्क के 62 कार्यकलाप हुए और इनमें से लगभग एक-चौथाई कार्यकलाप भारत में सम्पन्न हुए ।
सार्क का सातवां शिखर सम्मेलन (अप्रैल, 1993):
सातवां शिखर सम्मेलन 10-11 अप्रैल, 1993 को बांग्लादेश की राजधानी ढाका में आयोजित किया गया सम्मेलन की अध्यक्षता बांग्लादेश की प्रधानमन्त्री बेगम खालिदा जिया ने की । सातवें सार्क शिखर सम्मेलन की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि रही सार्क अधिमानी व्यापार व्यवस्था पर हस्ताक्षर किया जाना जो सार्क क्षेत्र में व्यापारिक उदारीकरण की दिशा में एक ठोस कदम है । सातवें सार्क शिखर सम्मेलन के निर्णय के अनुसार महिला तथा परिवार स्वास्थ्य के सम्बन्ध में सार्क मन्त्री सम्मेलन 21 से 23 नवम्बर, 1993 तक काठमाण्डू में आयोजित किया गया ।
सार्क का आठवां शिखर सम्मेलन (मई, 1995):
मई, (1995) को सार्क का आठवां शिखर सम्मेलन भारत की राजधानी नई दिल्ली में सम्पन्न हुआ । सम्मेलन में सार्क के सातों देश सहमत हुए कि सभी सदस्य देशों में अन्तर-जन-संचार के लिए ‘वीजा’ नियमों को उदार बनाया जाना चाहिए । सम्मेलन ने भेदभाव रहित अन्तर्राष्ट्रीय आणविक नि:शस्त्रीकरण की मांग की । आतंकवाद एवं गरीबी के खिलाफ युद्ध की घोषणा दिल्ली घोषणा पत्र का मुख्य स्वर है । वर्ष 2002 तक पूरे क्षेत्र से गरीबी मिटाने का संकल्प व्यक्त किया गया ।
आठवें शिखर सम्मेलन की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि सात देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने दक्षिण एशिया अधिमान्य व्यापार समझौता लागू करना स्वीकार कर लिया । दक्षिण एशिया मुक्त व्यापार क्षेत्र 8 दिसम्बर, 1995 से अस्तित्व में लाना तय हुआ । समझौता लागू होने के प्रथम चरण में भारत ने 106 वस्तुओं, पाकिस्तान ने 35, श्रीलंका ने 31, मालदीव ने 17, नेपाल ने 14, बांग्लादेश ने 12 और भूटान ने 7 वस्तुओं पर तटकर में छूट देने की सूचना दी ।
सार्क का नौवां शिखर सम्मेलन (मई 1997):
सार्क का नौवां शिखर सम्मेलन 12-14 मई, 1997 को मालदीव की राजधानी माले में सम्पन्न हुआ । सम्मेलन का उद्घाटन मालदीव के राष्ट्रपति मैमून अब्दुल गयूम ने किया । सम्मेलन की समाप्ति के अवसर पर सर्वसम्मति से जारी संयुक्त घोषणा-पत्र में यह स्वीकार किया गया कि दक्षिण एशियाई क्षेत्र में शान्ति एवं स्थिरता का माहौल बनाए रखने तथा इस क्षेत्र के त्वरित सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए अच्छे पड़ोसी सम्बन्धों का होना आवश्यक है ।
इसके लिए राजनीतिक स्तर पर अनौपचारिक वार्ताओं के महत्व को घोषणा-पत्र में स्वीकार किया गया । दक्षिण एशिया क्षेत्र को एक स्वतन्त्र व्यापार क्षेत्र (SAFTA) के रूप में विकसित करने के वर्ष 2005 तक के पूर्ण निर्धारित लक्ष्य को अब वर्ष 2001 तक ही प्राप्त करने की बात माले घोषणा-पत्र में कही गई है ।
आतंकवाद से निपटने के मामले पर घोषणा-पत्र में कहा गया है कि दक्षिण एशिया में आतंकवादी गतिविधियां संचालित करने वाले गुटों के विदेशों में धन एकत्रित करने पर तुरन्त रोक लगाई जाए । इस सन्दर्भ में अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर 1996 में संयुक्त राष्ट्र घोषणा-पत्र को स्वीकार किए जाने की मांग घोषणा-पत्र में की गई है ।
भारत के तात्कालिक प्रधानमन्त्री इन्द्रकुमार गुजराल ने दक्षिण एशियाई देशों के इस संगठन को अधिक प्रभावपूर्ण बनाने व सदस्य देशों के बीच आर्थिक सम्पर्क घनिष्ठ करने के लिए ‘दक्षिण एशियाई स्वतन्त्र व्यापार’ (SAFTA) की परिणति ‘दक्षिण एशियाई आर्थिक समुदाय’ (SAEC) में करने का आह्वान किया ।
सार्क का दसवां शिखर सम्मेलन (जुलाई, 1998):
29-31 जुलाई, 1998 को कोलम्बो में दसवें सार्क शिखर सम्मेलन का आयोजन हुआ । भारतीय शिष्टमण्डल की अध्यक्षता प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी ने की । शिखर सम्मेलन ने व्यापार और निवेश के प्रमुख आर्थिक क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने के लिए कुछ महत्वपूर्ण निर्णय लिए ।
दक्षिण एशिया मुक्त व्यापार से सम्बन्धित करार अथवा संधि पर बातचीत आरम्भ करने के लिए सार्क के सभी सातों देशों के विशेषज्ञों का एक समूह गठित किया गया । इस करार में व्यापार मुक्त करने के लिए बाध्य अनुसूचियों का उल्लेख होगा और इसे वर्ष 2001 तक अंतिम रूप दे दिए जाने और सही स्थिति में ले आने की सम्भावना रही ।
कोलम्बो में सार्क नेता जनसंख्या वृद्धि को रोकने, शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण, बाल कल्याण और महिलाओं के विकास के महत्वपूर्ण क्षेत्रों में क्षेत्रीय लक्ष्य निर्धारित करते हुए सार्क के लिए सामाजिक चार्टर तैयार करने पर सहमत हुए । क्षेत्र में गरीबी की समस्या पर विशेष ध्यान दिया गया और सार्क देशों के नेताओं ने वर्ष 2002 तक दक्षिण एशिया में गरीबी के उन्मूलन के लिए प्रतिबद्धता व्यक्त की ।
सार्क का 11वां शिखर सम्मेलन (जनवरी, 2002):
12 अक्टूबर, 1999 को पाकिस्तान में सेना द्वारा तख्ता पलटने से 11वां सार्क शिखर सम्मेलन स्थगित करना आवश्यक हो गया (काठमाण्डू में 26 से 28 नवम्बर, 1999 को होने का कार्यक्रम था) क्योंकि सार्क देशों ने सदस्य देश की लोकतान्त्रिक रूप से चुनी हुई सरकार को अपदस्थ करने के बाद शिखर सम्मेलन आयोजित करने की सम्भावना पर अपनी चिन्ता व्यक्त की ।
बहुप्रतीक्षित 11वां सार्क शिखर सम्मेलन 5-6 जनवरी, 2002 को काठमांडू में सम्पन्न हुआ । सम्मेलन की समाप्ति पर जारी 11 पृष्ठों के 56 सूत्रीय ‘काठमांडू घोषणा पत्र’ में आतंकवाद की समाप्ति के प्रति प्रतिबद्धता व्यक्त की गई ।
आर्थिक सहयोग पर बल देते हुए क्षेत्रीय व्यापार को सुगम बनाकर इसका लाभ प्राप्त करने के लिए सार्क घोषणा पत्र में कहा गया कि ‘साफ्टा’ (SAFTA) अर्थात् ‘दक्षिण एशिया मुक्त व्यापार क्षेत्र’ का मसौदा-2002 के अन्त तक तैयार कर लिया जाये ।
सार्क का 12वां शिखर सम्मेलन (जनवरी, 2004):
सार्क का 12वां शिखर सम्मेलन जनवरी, 2004 में इस्लामाबाद (पाकिस्तान) में सम्पन्न हुआ । समृद्धि का रास्ता शान्ति के गर्भ से निकलता है । मुक्त व्यापार समृद्धि का वाहक है और आतंकवाद इसके लिए सबसे बड़ा खतरा ।
ये तीन निष्कर्ष हैं जहां तक इस्लामाबाद में सार्क देशों के 12वें शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए जुटे दक्षिण एशिया के सात देशों के नेता पहुंचे । इस्लामाबाद घोषणापत्र को ‘ऐतिहासिक और मील का पत्थर’ मानें, जैसा कि पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री जफरुल्ला खान जमाली ने इसे बताया है तो यह भी स्वीकार करना होगा कि सार्क देशों की इस समझ तक पहुंचने के पीछे भारत की विकास यात्रा और आतंकवाद के खिलाफ उसकी लड़ाई मुख्य उत्प्रेरक साबित हुई है ।
पहली बार सार्क के एजेन्डे में अतिरिक्त प्रोटोकॉल के अन्तर्गत आतंकवाद के मुद्दे को शामिल किया गया और सातों देशों के शासनाध्यक्षों ने यह तय किया कि वें एक साथ मिलकर आतंकवाद से निबटेंगे और आतंकवादी समूहों को मिलने वाली मदद से निबटने के प्रभावी उपाय खोजेंगे ।
भारत का जोर हमेशा इस बात पर रहा है कि उसका पड़ोसी आतंकवादी संगठनों की मदद करता है लेकिन सार्क के इस सालाना सम्मेलन में पाकिस्तान ने भी आतंकवाद पर भारत की चिन्ता से सहमति जताई है ।
इस्लामाबाद घोषणा-पत्र की सबसे बड़ी खासियत है, शान्ति की कोशिशों में सबको शामिल करने की सोच । इसमें साफ तौर से कहा गया है कि शान्ति की तलाश में सब साथ चलेंगे, सबकी बराबर भागीदारी होगी, विकास व समृद्धि की यात्रा में सब सहभागी होंगे ।
दक्षिण एशिया में मुक्त व्यापार के लिए साफ्टा सन्धि को सार्क एजेडे में स्वीकार किया गया और दक्षिण एशियाई देशों को प्राथमिकता देने वाली व्यापार सन्धि साफा की दिशा में भी अच्छी प्रगति हुई है । यानी अगर पाकिस्तान भारत को मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा नहीं भी देता है तो साप्टा के बाद अपने आप दक्षिण एशियाई देशों की व्यापार प्राथमिकताएं तय हो जाएंगी । 43 सूत्री इस्लामाबाद घोषणा-पत्र में सभी पड़ोसियों ने यह भी तय किया कि वे अपने आपसी विवादों को निबटाने के लिए वे शान्तिपूर्ण साधनों और संवाद का इस्तेमाल करेंगे ।
सभी देश आपसी मामलों के निबटारे के लिए अनौपचारिक राजनीतिक वार्ता करते रहेंगे और एक-दूसरे के मामले में अहस्तक्षेप की नीति अपनाएंगे । छोटे देशों की सुरक्षा को भी इसमें खासा महत्व दिया गया । अनेक किस्म के संदेहों अविश्वास और असुरक्षा के माहौल में शुरू हुए सार्क सम्मेलन का बड़ा शानदार समापन हुआ ।
तमाम अटकलों के बीच प्रधानमन्त्री वाजपेयी ने पाकिस्तानी राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ से सद्भावना मुलाकात की । पाकिस्तान ने कश्मीर का जिक्र नहीं किया आतंकवाद पर भारत के साथ साझा चिन्ता जताई और विज्ञान व तकनीक के साथ-साथ साझा व्यापार की जरूरत पर जोर दिया ।
सार्क का 13वां शिखर सम्मेलन (12-13 नवम्बर, 2005):
सार्क का 13वां शिखर सम्मेलन 12-13 नवम्बर, 2005 को बांग्लादेश (ढाका) में सम्पन्न हुआ । भारत के प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह ने आतंकवाद के विरुद्ध संघर्ष का पुरजोर ढंग से आह्वान करते हुए क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग के विकास गरीबी उन्मूलन व ऊर्जा सुरक्षा के लिए ठोस उपायों की आवश्यकता को रेखांकित किया ।
सार्क देशों के बीच दैनिक हवाई सम्पर्क बढ़ाने आपदा प्रबन्धन के लिए क्षेत्रीय स्तर पर सुनियोजित तन्त्र विकसित करने पारस्परिक पारगमन सुविधाओं की व्यवस्था करने दक्षिण एशियाई विश्वविद्यालय व क्षेत्रीय खाद्य बैंक की स्थापना हेतु अनेक ठोस प्रस्ताव उन्होंने पेश किये । भारतीय प्रधानमन्त्री ने आशा व्यक्त की कि 1 जनवरी, 2006 से दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार (साफ्टा) लागू करने के मार्ग की सभी रुकावटों को समय से पूर्व दूर कर लिया जायेगा ।
शिखर सम्मेलन के समापन से पूर्व तीन महत्वपूर्ण समझौतों पर ढाका में हस्ताक्षर किये-गये : यह समझौते दोहरे करारोपण से बचाव, वीजा नियमों में उदारता तथा सार्क पंचाट परिषद् के गठन से सम्बन्धित हैं । 30 करोड़ डॉलर के आरम्भिक बजट से क्षेत्र के लिए एक गरीबी उन्मूलन कोष के गठन को सहमति भी दी गई ।
भारत इस कोष के लिए 10 करोड़ डॉलर की राशि प्रदान करने का वायदा पहले ही कर चुका है । अफगानिस्तान को सार्क की सदस्यता प्रदान करने का सम्मेलन में निर्णय लिया गया वह इस समूह का आठवां सदस्य होगा ।
सार्क का 14वां शिखर सम्मेलन (3-4 अप्रैल, 2007):
14वां सार्क के शिखर सम्मेलन 4 अप्रैल, 2007 को नई दिल्ली में सौहार्दपूर्ण माहौल में सम्पन्न हुआ । सार्क का आठवां सदस्य अफगानिस्तान पहली बार सम्मेलन में शामिल हुआ । साथ ही पांचों पर्यवेक्षकों (संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, दक्षिण कोरिया, चीन और यूरोपीय संघ) को भी सम्मेलन में शामिल किया गया ।
सदस्य देशों ने सार्क नेताओं के बीच दृढ़ता और अपने लक्ष्य के प्रति नई समझ देखी । दक्षिण एशियाई विश्वविद्यालय और दक्षेस खाद्य बैंक की स्थापना के समझौतों पर हस्ताक्षर हुए । तीस करोड़ डॉलर की शुरुआती राशि से दक्षिण एशियाई विकास कोष की स्थापना हुई ।
सार्क सम्मेलन की समाप्ति पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि जो चार मुद्दे (पानी, ऊर्जा, खाद्य और पर्यावरण) हमारी जनता की रोजाना की जिंदगी को प्रभावित करते हैं उनके बारे में अगले छह माह में प्रगति करने के लिए क्षेत्रीय नेता सहमत हो गए । राजनीतिक अस्थिरता से घिरे क्षेत्र के लिए वर्ष 2008 को ‘सुशासन का सार्क वर्ष’ घोषित किया गया ।
14वें सार्क शिखर सम्मेलन में आर्थिक मुद्दे ही ज्यादा छाए रहे । भारत की ओर से क्षेत्र के अल्प विकसित देशों के लिए शुल्क मुक्त व्यवस्था की एकतरफा घोषणा को सम्मेलन की मुख्य उपलब्धि कहा जा सकता है । शुल्क मुक्त व्यवस्था की भारत की घोषणा से अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, नेपाल और मालदीव जैसे गरीब देशों को लाभ होगा । सार्क के प्रस्तावित खाद्य बैंक में भारत सर्वाधिक 15 लाख 30 हजार टन अनाज का योगदान देगा ।
दिल्ली सम्मेलन की पांच प्रमुख उल्लेखनीय उपलब्धियां रहीं:
(1) सभी दक्षेस देशों की राजधानियों को भारत से सीधी हवाई सेवाओं से तुरन्त जोड़ना तथा छात्रों, शिक्षकों, पेशेवरों, पत्रकारों और अभिभावकों के लिए वीजा आसान बनाना ।
(2) साफ्टा के तहत भारत ने पड़ोसियों के लिए अपना बाजार एकतरफा खोल दिया है । इस बात पर जोर नहीं दिया कि दूसरे भी ऐसा करें ।
(3) भारतीय बाजारों में क्षेत्र के सबसे कम विकसित देशों के सामानों के प्रवेश पर शुल्क नहीं लगाया जाएगा । इसका लाभ बांग्लादेश, अफगानिस्तान, नेपाल, मालदीव और भूटान को मिलेगा ।
(4) ऊर्जा के आदान-प्रदान और ऊर्जा बाजार के लिए क्षेत्रीय ऊर्जा समुदाय की स्थापना की बात हुई ।
(5) क्षेत्रीय खाद्य बैंक की स्थापना के द्वारा खाद्य सुरक्षा में सुधार किया जाएगा ।
सार्क का 15वां शिखर सम्मेलन (2-3 अगस्त, 2008):
कोलम्बो में आयोजित 15वें सार्क शिखर सम्मेलन में भारत ने सामाजिक क्षेत्र के लिए 100 मिलियन अमरीकी डॉलर के आकलित अंशदान के अतिरिक्त 100 मिलियन अमरीकी डॉलर की स्वैच्छिक वचनबद्धता व्यक्त की । सार्क मच से पहली बार भारत की पहल पर अफगानिस्तान एवं श्रीलंका जैसे देशों ने खुलेआम आतंकवाद के मुद्दे को उठाया ।
सार्क का 16वां शिखर सम्मेलन (28-29 अप्रैल, 2010):
थिम्पू में आयोजित 16वें सार्क सम्मेलन में प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह ने कहा कि सार्क का वास्तविक उद्देश्य इस क्षेत्र में लोगों की आवाजाही वस्तुओं एवं सेवाओं के व्यापार की स्वतन्त्रता से ही प्राप्त होगी ।
सार्क का 17वां शिखर सम्मेलन (नवम्बर 2011):
10-11 नवम्बर, 2011 को मालदीव में सार्क का 17वां शिखर सम्मेलन सम्पन्न हुआ । सम्मेलन में भारत के प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन की पाक प्रधानमन्त्री सैयद युसूफ रजा गिलानी के साथ दोनों देशों में सम्बन्धों को सुधारने की दिशा में बातचीत हुई ।
भारत ने साफ्टा के अन्तर्गत अन्य विकसित देशों के लिए अपनी संवेदनशील वस्तुओं की सूची में कटौती करने की घोषणा की तथा वर्तमान 480 से घटाकर 25 करने का निर्णय लिया । दो दिन के इस सम्मेलन का थीम था, ‘सम्पर्क निर्माण’ (Building Bridges) ।
पारस्परिक सहयोग के चार महत्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर इस सम्मेलन में किए गए-सार्क सीड बैंक एग्रीमेन्ट, एग्रीमेन्ट ऑन मल्टीलेटराल अरेन्जमेन्ट ऑन रिकगनिशन रिकगनिशन ऑफ कनफॉर्मिटी एसेसमेन्ट, एग्रीमेन्ट ऑन रेपिड रिस्पोंसटुनेचुरल डिजार्स्टल तथा एग्रीमेन्ट ऑन इम्प्लीमेन्टेशन ऑफ रीजनल स्टैण्डर्डस इनमें शामिल थे ।
सार्क का 18वां शिखर सम्मेलन (नवम्बर 2014):
प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने काठमाण्डू में (26-27 नवम्बर, 2014) 18वें सार्क शिखर सम्मेलन में भाग लिया । उन्होंने सार्क प्रक्रिया के प्रति भारत की वचनबद्धता दोहराई और सार्क देशों को समर्पित उपग्रह, 3-5 वर्षों के लिए बिजनेस वीजा तथा सार्क व्यावसायियों के लिए बिजनेस ट्रेवलर कार्ड पोलियो मुक्त क्षेत्र की मॉनीटरिंग/निगरानी, सार्क देशों के नागरिकों के लिए पोलियो और पंच संयोजन टीकों तथा तत्काल चिकित्सा वीजा के प्रावधान सहित कई एकपक्षीय पहलकदमियों की घोषणा की । इन पहलकदमियों का अन्य सार्क सदस्य देशों ने स्वागत किया ।
Essay # 4. सार्क और भारत (SAARC and India):
दक्षिण एशिया क्षेत्र में सार्क सामूहिक आत्मनिर्भरता के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए एक प्रभावी माध्यम बन सकता है । इसकी कार्यसूची में हाल ही में आर्थिक सहयोग से सम्बद्ध जो मसले शामिल किए गए हैं उनसे एक रचनात्मक तरीके से इस क्षेत्र की सम्पूरकताओं से लाभ उठाया जा सकता है, यदि सभी सदस्य देश सचेत होकर इस कार्यसूची पर कार्यवाही करें । भारत सार्क के प्रति प्रतिबद्ध है और सार्क के सभी सदस्य राज्यों के सामूहिक लाभ के लिए इस संघ को सुदृढ़ बनाना चाहता है ।
भारत सार्क संगठन से सम्बन्धित विभिन्न गतिविधियों में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता रहा है । सार्क शिखर सम्मेलन की सिफारिशें भारत एवं अन्य सदस्य देशों द्वारा संयुक्त रूप से क्रियान्वित की गयीं और उसने अपने संसाधन एवं सामर्थ्य के अनुकूल उनकी सफलता में सर्वोत्तम सम्भव तरीके से योगदान किया ।
कोलम्बो शिखर सम्मेलन के निर्देशों के अनुपालन में भारत ने पर्यावरण के मसले पर सार्क मन्त्रिमण्डलीय बैठक का नई दिल्ली में 1992 में आयोजन किया । सार्क के तत्वावधान में सन् 1994 में लगभग 58 क्रियाकलाप सम्पन्न हुए । इनमें विशेष प्रशिक्षण पाठक्रम संगोहिया बैठकें कार्यशालाएं संयुक्त अनुसन्धान परियोजनाएं, तकनीकी अध्ययन, आदि शामिल हैं ।
कुल क्रियाकलापों के लगभग एक-तिहाई कार्यक्रम भारत में सम्पन्न हुए । सार्क का झुकाव आर्थिक सहयोग पर्यावरण गरीबी उन्मूलन, आदि प्रमुख क्षेत्रों में ठोस विकासोन्मुख विचार-विमर्श की ओर है । चूंकि भारत सार्क देशों के बीच सामूहिक आत्मनिर्भरता के प्रति वचनबद्ध है इसलिए उसने उसके मंच पर सदैव इस बात का समर्थन किया है कि क्षेत्र में उपलब्ध संसाधनों का इसके कार्यों और क्रियाकलापों के लिए उपयोग किया जाए ।
वर्ष 1986-87, 1996-97 तथा 2007-08 के लिए भारत सार्क का अध्यक्ष रहा । प्रथम सार्क व्यापार मेला जनवरी 1996 में नई दिल्ली में सम्पन्न हुआ । सभी सार्क देशों के व्यावसायिक समुदायों के हित का उल्लेख करते हुए सार्क वाणिज्य और उद्योग मण्डल ने नई दिल्ली में 19 से 21 नवम्बर, 1996 तक अग्रगामी बहुआयामी सार्क आर्थिक सहयोग सम्मेलन का आयोजन किया ।
भारत ने 14 से 16 अक्टूबर, 1996 तक नई दिल्ली में प्रौढ़ साक्षरता तथा अनवरत शिक्षा कार्यक्रमों के क्षेत्र में कार्यरत स्वयंसेवी संगठनों का सार्क सम्मेलन आयोजित किया । सम्मेलन ने एक घोषणा पारित की जिसमें दक्षिण एशिया के गैर-सरकारी संगठनों और स्वयंसेवी संगठनों के बीच सहयोग का संवर्धन करने के सम्बन्ध में विशिष्ट सिफारिशें की गई थीं ।
सीमा शुल्क सहयोग से सम्बन्धित सार्क युप की तीसरी बैठक 24 से 26 अगस्त, 1998 तक जयपुर में हुई । बहुभाषी और बहुमीडिया सूचना प्रौद्योगिकी पर 1-4 सितम्बर, 1998 तक पुणे में सार्क शिखर सम्मेलन हुआ । दसवें सार्क शिखर सम्मेलन (जुलाई, 1998) में अपने बाजार मे प्रवेश बढ़ाने के लिए भारत ने महत्वपूर्ण पहल की ।
प्रधानमन्त्री वाजपेयी ने घोषणा की कि भारत 1 अगस्त, 1998 से सार्क देशों के लिए मात्रात्मक प्रतिबन्ध हटा लेगा । इसमें सार्क देशों के लिए 2000 से अधिक उलादों को मुक्त सामान्य लाइसेन्स के अन्तर्गत रखना शामिल है । प्रधानमंत्री ने यह भी घोषणा की कि त्थर मार्ग प्रक्रिया के अन्तर्गत सार्क देशों में भारत के विदेशी निवेश के लिए 80 लाख से 150 मिलियन अमरीकी डॉलर कर दिया जाएगा ।
11 वें सार्क शिखर सम्मेलन (5-6 जनवरी, 2002) का आयोजन अन्तत: ऐसे समय में हुआ जब भारत एवं पाकिस्तान के पारस्परिक सम्बन्धों में गम्भीर तनाव की स्थिति चरम अवस्था में थी । सार्क आन्दोलन को गतिशील बनाने पर बल देते हुए प्रधानमन्त्री वाजपेयी ने कहा कि, यह आवश्यक है कि आर्थिक एजेंडे को सार्क में सर्वोपरि माना जाए ।
क्षेत्र के देशों के बीच व्यापार संवर्द्धन तथा सार्क द्वारा गठित गरीबी उन्मूलन आयोग को पुन: सक्रिय करने के लिए भारत की ओर से हर सम्भव सहायता की पेशकश भी उन्होंने की । भारत ने दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ (दक्षेस) के कार्यक्रमों और उद्देश्यों की पूर्ति की दिशा में 4 जनवरी, 2004 को सहयोग की छह ठोस पेशकश की ।
दक्षेस की बारहवीं शिखर बैठक के उद्घाटन सत्र में प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी ने ये पेशकश की:
i. दक्षेस देशों में गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम आगे बढ़ाने के लिए गरीबी उन्मूलन कोष बनाया जाए । भारत इसके लिए दस करोड़ डॉलर देगा और यह राशि भारत को छोड़कर दक्षेस के अन्य देशों में खर्च की जाएगी ।
ii. दक्षेस के स्वायत्त गरीबी उन्मूलन आयोग की सिफारिशों के कार्यान्वयन के लिए पूर्ण प्रतिबद्ध कार्यदल का गठन किया जाए । भारत इसका खर्च उठाने को तैयार है और आवश्यकता होने पर कार्यदल की मेजबानी के लिए भी तैयार है ।
iii. संयुक्त राष्ट्र संघ ने 2015 तक विकास लक्ष्य प्राप्त करने पर कार्यक्रम रखा है । दक्षेस का उद्देश्य इन्हें 2010 तक पूरा करने का होना चाहिए । भारत इसके लिए विशेष दक्षेस दल को सहायता देगा और विशेष रूप से इस कार्यक्रम में पिछड़ने वाले दक्षेस देशों को सहायता दी जाएगी ।
iv. दक्षेस देशों के बीच रेल सड़क वायु एवं जलमार्ग परिवहन व्यवस्था मजबूत करने के लिए दक्षेस कार्यदल का गठन किया जाए । भारत इसके लिए पूरा योगदान देगा और कार्यदल द्वारा की गई सिफारिशों को लागू करेगा ।
v. सूचना प्रौद्योगिकी जैव तकनीक एवं विज्ञान के क्षेत्र में भारत अपना अनुभव और ज्ञान दक्षेस देशों के साथ बांटने को तैयार है ।
vi. प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम के 150 वर्ष पूरे होने के अवसर पर 2007 में भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश ने संयुक्त रूप से समारोह मनाया ।
सार्क राष्ट्रों के पारस्परिक आर्थिक सम्बन्धों में एक नया मोड़ 1 जनवरी, 2006 से उस समय आया जब इन देशों का आपसी स्वतन्त्र व्यापार समझौता ‘साफ्टा’ प्रभावी हो गया । साफ्टा के लिए सार्क राष्ट्रों ने जनवरी, 2004 में इस्लामाबाद में हस्ताक्षर किये थे ।
साफ्टा का मूल उद्देश्य इसके सदस्य राष्ट्रों के बीच आपसी व्यापार में प्रशुल्क स्तर को वर्ष 2016 तक 5 प्रतिशत से कम करना है । भारत ने पाकिस्तान व श्रीलंका जैसे क्षेत्र के मजबूत देशों के मामले में 884 वस्तुओं और कम विकसित देशों नेपाल, भूटान, बांग्लादेश व मालदीव के लिए 763 उत्पादों की सूची बनायी है । सूची में शामिल वस्तुओं का व्यापार साफ्टा के व्यापार उदारीकरण कार्यक्रम के अन्तर्गत नहीं किया जा सकेगा ।
दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार करार के अक्षरश: समग्र कार्यान्वयन के लिए प्रशंसनीय प्रगति हुई है । सदस्य देशों ने 1 जनवरी, 2008 से एलडीसी को जीरो ड्यूटी पहुंच प्रदान करने तथा एलडीसी के सम्बन्ध में इसकी नकारात्मक सूची को 744 से 480 तक एकतरफा कम करने के भारत के निर्णय की प्रशंसा की है । भारत अपनी संवेदनशील सूची को निरन्तर संशोधित करता रहता है तथा एलडीसी हेतु 740 तथा गैर एलडीसी हेतु 868 मदें इसकी परिधि से बाहर हैं ।
सार्क के 14वें शिखर सम्मेलन की मेजबानी भारत को सौंपी गई और यह सम्मेलन 3-4 अप्रैल, 2007 को आयोजित किया गया । यह तीसरा अवसर था जब सार्क शिखर सम्मेलन का आयोजन भारत में हुआ । भारत की ओर से क्षेत्र के अल्पविकसित देशों के लिए शुल्क मुक्त व्यवस्था की एकतरफा घोषणा सम्मेलन की प्रमुख उपलब्धि रही ।
पारस्परिक व्यापार संवर्द्धन के लिए सीमा शुल्कों में कटौती की दिशा में आगे बढ़ते हुए 17वें सार्क शिखर सम्मेलन (नवम्बर, 2011) में कम विकसित देशों के लिए साफ्टा के अन्तर्गत भारत ने संवेदनशील उत्पादों की सूची को 480 से घटाकर 25 करने की घोषणा की ।
इससे हटायी गयी वस्तुओं का अब शुल्क मुक्त आयात इन देशों से किया जा सकेगा । भारत के प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह द्वारा सोलहवीं थिम्पू सार्क शिखरवार्ता के दौरान सार्क के सबसे कम विकसित देशों (अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान और नेपाल) के छात्रों के लिए घोषित ‘सार्क इण्डिया सिल्वर जुबली स्कॉलरशिप्स’ के अन्तर्गत 50 छात्रवृत्तियां प्रदान करने की घोषणा की । 10-11 नवम्बर, 2011 में मालदीव में आयोजित सत्रहवीं सार्क शिखरवार्ता के दौरान प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह ने इन छात्रवृतियों की संख्या 50 से बढ़ाकर 100 कर दी ।
प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने 26-27 नवम्बर, 2014 को काठमाण्डू में आयोजित 18वें सार्क शिखर सम्मेलन में सार्क देशों को समर्पित उपग्रह 3-5 वर्षों के लिए बिजनेस वीजा तथा सार्क व्यावसायियों के लिए बिजनेस ट्रेवलर कार्ड, तत्काल चिकित्सा वीजा के प्रावधान सहित कई एक पक्षीय पहलकदमियों की घोषणा की ।
भारत सार्क का एकमात्र सदस्य है, जिसने ‘सार्क विकास निधि’ (SDF) में 189.9 मिलियन अमरीकी डॉलर की अपनी पूर्ण प्रतिबद्धता अन्तरित की है । नई दिल्ली में दक्षिण एशियाई विश्वविद्यालय की स्थापना से उच्च शिक्षा के क्षेत्र में सहयोग के नए आयाम को छूने की आशा है । विश्वविद्यालय को पूर्णरूप से कार्यात्मक करने की कुल लागत मिलियन अमरीकी डॉलर होगी, भारत इस परियोजना में 229.11 मिलियन अमरीकी डॉलर का योगदान दे रहा है ।
सार्क क्षेत्र में लोगों में आपस में गतिविधियों में क्रमिक वृद्धि हुई है । भारत ने नई दिल्ली में द्वितीय सार्क बैण्ड उत्सव, आगरा में सार्क साहित्य उत्सव तथा चण्डीगढ़ में द्वितीय सार्क लोकगीत उत्सव की सफलतापूर्वक मेजबानी की ।
संक्षेप में, भारत सार्क में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है और यह आशा करता रहा है कि क्षेत्र के देशों के मध्य आर्थिक, सामाजिक, तकनीकी, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक विकास के लिए एक प्रभावी साधन के रूप में इसका विकास हो जैसा कि इसके चार्टर के अधीन अपेक्षा की जाती है ।
Essay # 5. सार्क की भूमिका का मूल्यांकन (Assessment of the Role of SAARC):
दक्षिण एशिया में समय बहुत तेजी से घूमा है । चौबीस वर्ष पहले के समय पर नजर डालिए । खासतौर पर भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के प्रयासों से दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (दक्षेस) अस्तित्व में आया । उसमें भारत, बांग्लादेश, भूटान, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका सम्मिलित हुए ।
विश्व की 22 प्रतिशत जनसंख्या को समेटने वाला यह विश्व का सबसे बड़ा क्षेत्रीय संगठन है । अस्सी और नब्बे के दशक में दक्षेस का मतलब केवल बड़े सम्मेलन और क्षेत्रीय मुद्दों से जुड़ी घोषणाएं थीं यद्यपि इस मंच पर द्विपक्षीय मुद्दे उठाना प्रतिबंधित कर दिया गया ।
पाकिस्तान कश्मीर का मुद्दा उठाता और भारत उसका जवाब भी देता रहा है इससे सम्मेलन पटरी से उतर जाता । सदी बदलते ही स्थिति में बदलाव शुरू हुआ । दक्षिण एशिया के नेताओं ने यूरोपियन संघ और आसियान जैसे क्षेत्रीय संगठनों की सफलता से सबक सीखा ।
इन क्षेत्रीय संगठनों ने आर्थिक एकजुटता के जरिए काफी उपलब्धियां हासिल कीं । सात देशों के संगठन दक्षेस के समक्ष यह स्पष्ट हो गया कि आर्थिक विकास में क्षेत्रीय और वैश्विक सम्पर्क महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं ।
इन देशों ने आर्थिक विकास के लिए दक्षेस को एक माध्यम समझना शुरू किया । उन्होंने माना कि इससे आर्थिक विकास के साथ विवादों के निपटारे की प्रक्रिया में भी मदद मिल सकेगी । जनवरी, 2004 में इस्लामाबाद में हुए सम्मेलन में इस तरह की स्पष्ट अभिव्यक्ति सामने आई ।
इस सम्मेलन में दक्षेस देशों ने 2012 तक दक्षिण एशियाई स्वतंत्र व्यापार क्षेत्र (साफ्टा) बनाने की वचनबद्धता जताई । साथ ही भारत और पाकिस्तान ने अपनी राजनीतिक समस्याओं के हल के प्रयास शुरू किए । नवम्बर, 2005 में ढाका में हुए एक और ऐतिहासिक सम्मेलन में यह प्रक्रिया आगे बढ़ी ।
दक्षेस के अस्तित्व में आने के बाद पहली बार इस क्षेत्र के नए सदस्य अफगानिस्तान को पूर्ण सदस्य के रूप में स्वीकार किया गया । साथ ही चीन, दक्षिण कोरिया, जापान, संयुक्त राष्ट्र और यूरोपियन संघ को पर्यवेक्षक का दर्जा दिया गया ।
इसके पीछे यह सोच रही कि इन शक्तिशाली देशों से दक्षेस देशों को आर्थिक सहयोग लेना चाहिए । दिल्ली में हुए चौदहवें सम्मेलन में इन प्रयासों को अंतिम रूप दिया गया । नई दिल्ली सम्मेलन की उपलब्धियों पर विचार किया जाना चाहिए । दक्षेस का आठवां सदस्य अफगानिस्तान पहली बार सम्मेलन में शामिल हुआ । साथ ही पांचों पर्यवेक्षकों को भी सम्मेलन में शामिल किया गया ।
कड़वाहट भरे द्विपक्षीय विवादों को प्रमुखता दिए बगैर यह दो-दिवसीय सम्मेलन समाप्त हो गया । सदस्य देशों ने दक्षेस नेताओं के बीच दृढ़ता और अपने लक्ष्य के प्रति नई समझ देखी । दक्षिण एशियाई विश्वविद्यालय और दक्षेस खाद्य बैंक की स्थापना के समझौतों पर हस्ताक्षर हुए ।
तीस करोड़ डॉलर की शुरुआती राशि से दक्षिण एशियाई विकास कोष की स्थापना हुई है । सार्क सम्मेलन की समाप्ति पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि जो चार मुद्दे (पानी, ऊर्जा, खाद्य और पर्यावरण) हमारी जनता की रोजाना की जिंदगी को प्रभावित करते हैं उनके बारे में अगले छह माह में प्रगति करने के लिए क्षेत्रीय नेता सहमत हो गए हैं । राजनीतिक अस्थिरता से घिरे क्षेत्र के लिए वर्ष 2008 को ‘सुशासन का दक्षेस वर्ष’ घोषित किया गया है ।
दिल्ली सम्मेलन की पांच प्रमुख उल्लेखनीय उपलब्धियां रहीं:
a. सभी दक्षेस देशों की राजधानियों को भारत से सीधी हवाई सेवाओं से तुरन्त जोड़ना तथा छात्रों शिक्षकों पेशेवरों, पत्रकारों और अभिभावकों के लिए वीजा आसान बनाना ।
b. साफ्टा के तहत भारत ने पड़ोसियों के लिए अपना बाजार एक तरफा खोल दिया है । इस बात पर जोर नहीं दिया कि दूसरे भी ऐसा ही करें ।
c. भारतीय बाजारों में क्षेत्र के सबसे कम विकसित देशों के सामानों के प्रवेश पर शुल्क नहीं लगाया जाएगा । इसका लाभ बांग्लादेश, अफगानिस्तान, नेपाल मालदीव और भूटान को मिलेगा ।
d. ऊर्जा के आदान-प्रदान और ऊर्जा के लिए क्षेत्रीय ऊर्जा समुदाय की स्थापना की बात हुई ।
e. क्षेत्रीय खाद्य बैंक की स्थापना के द्वारा खाद्य सुरक्षा में सुधार किया जाएगा ।
साप्टा (South Asian Preferential Trade Arrangement-SAPTA) तथा साफ्टा (South Asian Free Trade Area–SAFTA) सार्क की महत्वपूर्ण उपलब्धियां हैं । दिसम्बर, 1995 से साप्टा लागू हो गया है । साप्टा के लागू हो जाने से दक्षेस देशों के मध्य उदार व्यापार व्यवस्था लागू हो गई है । क्षेत्र में मुक्ता व्यापार व्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए साप्टा का निर्माण किया गया जिससे कि क्षेत्र का आर्थिक और तकनीकी विकास सम्भव हो पाएगा ।
सार्क के नई दिल्ली शिखर सम्मेलन में ‘दक्षिण एशियाई विकास संचय’ (South Asian Development Fund-SADF) के गठन का निर्णय भी लिया गया । 1 जनवरी, 2006 से साफ्टा (SAFTA) प्रभावी हो गया है । नवम्बर 2011 में मालदीव में आयोजित 17वें सार्क शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह ने दक्षिण एशियाई डाक संघ (एसएपीयू) की स्थापना की सराहना की और डाक क्षेत्र में क्षमता निर्माण के लिए एक प्रशिक्षण कार्यक्रम की घोषणा की । वर्ष के दौरान रफी अहमद किदवई राष्ट्रीय डाक अकादमी गाजियाबाद में 15-19 अक्टूबर, 2012 के दौरान सार्क पदाधिकारियों के लिए अन्तर्राष्ट्रीय डाक सम्बन्धी एक प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया गया ।
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निष्कर्ष:
दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग (सार्क) की रजत जयंती के दौरान भारत ने सार्क को क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग के एक गतिशील वाहन में परिवर्तित करने की दिशा में अन्य सदस्य देशों के साथ मिलकर कार्य किया ।
पिछले वर्षों में भारत ने असमान एवं गैर-पारस्परिक तरीके से सार्क में अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करना जारी रखा । क्षेत्रीय सहयोग को सुदृढ़ बनाने में योगदान देने के अतिरिक्त इसने सार्क के अन्य सदस्य देशों को क्षेत्रीय परियोजनाओं पर पहलकदमियां करने के लिए भी प्रेरित किया ।
वर्ष 2010 में दक्षिण एशियाई विश्वविद्यालय (एसएयू) और सार्क विकास कोष (एसडीएफ) जैसी अग्रणी परियोजनाओं के कार्यान्वयन में पर्याप्त प्रगति हुई । अगस्त 2010 की निर्धारित समय-सीमा के भीतर दक्षिण एशियाई विश्वविद्यालय में पाठ्यक्रमों का आरम्भ होना तथा विश्वविद्यालय के प्रचालन हेतु शेष प्रक्रियाओं का अनुमोदन किया जाना सार्क के दीर्घावधिक लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में सदस्य देशों द्वारा मिलकर कार्य करने की इच्छा का प्रतीक है ।
अप्रैल 2010 में थिम्पू में सचिवालय की स्थापना के साथ सार्क विकास कोष को पूर्ण रूप से प्रचालित किए जाने तथा इसके मुख्य कार्यकारी अधिकारी की नियुक्ति से दक्षिण एशिया के लोगों के लिए सामाजिक परियोजनाओं का कार्यान्वयन करने की दिशा में इस संगठन को पर्याप्त संवेग प्राप्त हुआ है ।