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Here is an essay on ‘Indo-Bangladesh Relations’ especially written for school and college students in Hindi language.
Essay # 1. भारत-बांग्लादेश सम्बन्ध (Indo-Bangladesh Relations):
बांग्लादेश के उद्भव के समय अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में विकसित ‘अमरीकी-चीन’ दितान्त ने भारत के समक्ष बड़ी समस्या उत्पन्न कर दी थी । एक ओर पाकिस्तान, चीन और अमरीका की सांठगांठ से दक्षिण एशिया में शक्ति-सन्तुलन अस्त-व्यस्त हो रहा था तो दूसरी ओर पाकिस्तान के दो सम्भागों के बीच झगड़े का सीधा प्रभाव भारत पर आ पड़ा था ।
पूर्वी बंगाल में पाकिस्तान की सेनिक कार्यवाही के परिणामस्वरूप लाखों लोगों को अपना वतन छोड्कर भारत में आना पड़ा । धीरे-धीरे शरणार्थियों की संख्या बढ्कर एक करोड़ हो गयी । विश्व में इतनी बड़ी जनसंख्या का दूसरे देश में आगमन पहली घटना थी ।
इस विशाल जनसमुदाय के खान-पान, रहन-सहन और स्वास्थ्य सम्बन्धी देखभाल का भार भारत पर था । इससे भी अधिक महत्वपूर्ण बात भारत की सुरक्षा, अखण्डता और सार्वभौमिकता को अक्षुण्ण बनाये रखने की थी । विश्व के अधिकांश देश इस प्रसंग पर तटस्थ थे क्योंकि वे इस आग की लपट से बहुत दूर थे । किन्तु पूर्वी बंगाल में जो कुछ भी घटित हो रहा था, उसे देखते हुए भारत न तो तटस्थ द्रष्टा रह सकता था और न विरक्त ही ।
देश की संसद, अखबार, राजनीतिक दल और प्रबुद्ध जन सभी बांग्लादेश की जनता और उसके नेताओं को समर्थन देने की मांग कर रहे थे । भूतपूर्व विदेश मन्त्री एम.सी. छागला का कहना था राजनीतिक वैधानिक और नैतिकता की दृष्टि से बांग्लादेश को मान्यता देना न्यायोचित है ।
भारतीय हितों के परिप्रेक्ष्य में विवेचना करते हुए उन्होंने कहा कि- ”बांग्लादेश का उद्भव हमारे अच्छे पड़ोसी की दृष्टि से स्वागत योग्य है । इसके साथ हमारे सांस्कृतिक राजनीतिक और व्यापारिक सम्बन्ध होंगे । यह पड़ोसी पाकिस्तान से भिन्न होगा । क्या हम अपने पूर्वी भाग में मित्र-पड़ोसी नहीं चाहते ?”
प्रसिद्ध पत्रकार अजित भट्टाचार्य का अभिमत था कि ”भूगोल, इतिहास, संस्कृति और आर्थिक हितों की दृष्टि से इस संघर्ष की परिणति भारत के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है । शरणार्थियों के आगमन से स्थिति और भी गम्भीर हो गयी है ।
इन सब बातों को देखते हुए भारत के लिए यह आवश्यक है कि इस लड़ाई का अन्त बांग्लादेश के पक्ष में हो । सन् 1962 और 1965 में जितनी जोखिम थी उतनी ही इसमें विद्यमान है । इससे हमें निश्चय ही लाभ होंगे ।
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वे इस प्रकार हैं:
(a) हमारी सीमाओं के दोनों ओर एक सशक्त दुश्मन की जगह एक मित्र और दूसरा कमजोर दुश्मन ही रह जायेगा ।
(b) कश्मीर की समस्या का समाधान भी सरल हो जायेगा ।
(c) धर्मनिरपेक्ष राज्य की महत्ता बढ़ेगी और धर्मतन्त्रीय राष्ट्रवाद की मिथ उजागर हो जायेगी ।
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पाकिस्तान ने धीरे-धीरे पूर्वी बंगाल में अपनी स्थिति और भी सुदृढ़ कर ली । पश्चिमी सीमान्त पर पाकिस्तानी सेना के जमाव ने स्थिति को और भी विस्फोटक बना दिया । युद्ध भारत के दरवाजे पर दस्तक दे रहा था । निक्सन माओ से मिलने जा रहे थे और भारत यह समझने लगा कि दो शक्तियों का यह मिलन भारत के लिए खतरनाक हो सकता है ।
जब 3 दिसम्बर, 1971 को पाकिस्तान ने पठानकोट, अमृतसर, जोधपुर, आगरा और श्रीनगर पर बमबारी कर इस उपमहाद्वीप में युद्ध छेड़ दिया तो दो सप्ताह की घमासान लड़ाई के बाद बांग्लादेश की मुक्तिवाहिनी और भारतीय सेना के समक्ष पाकिस्तान को शस डालने पड़े । बांग्लादेश आजाद हुआ और शेख मुजीबुर्रहमान रिहा कर दिये गये । अपनी रिहाई के बाद ढाका जाते समय वे भारत रुके ।
उनके स्वागत समारोह में भारत की भूमिका को दोहराते हुए प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने जो कहा वह उल्लेखनीय है:
”मैंने कहा था कि ये शरणार्थी अपने घर पुन: लौटेंगे । हम मुक्तिवाहिनी और बंगलाजन: की हर तरह से सहायता करेंगे । हमने शेख साहब को मुक्त कराने का भी व्रत लिया था । ये तीनों ही वायदे पूरे कर दिये गये हैं ।”
संक्षेप में, बांग्लादेश के निर्माण में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका रही है । बांग्लादेश का निर्माण भारत-पाक युद्ध के दौरान 16 दिसम्बर, 1971 को हुआ । भारत ही सबसे पहला देश है जिसने 6 दिसम्बर 1971 को बांग्लादेश को मान्यता दे दी । भारत की सेनाओं ने बांग्लादेश की मुक्तिवाहिनी से मिलकर 16 दिसम्बर, 1971 को स्वतन्त्र बांग्लादेश की स्थापना करायी ।
Essay # 2. भारत-बांग्लादेश सम्बन्ध (1971 से 1975) (Indo-Bangladesh Relations, 1971-1975):
6 दिसम्बर, 1971 को भारत ने बांग्लादेश को मान्यता दे दी । 10 दिसम्बर, 1971 को प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी और बांग्लादेश के तकालीन कार्यवाहक राष्ट्रपति नजरुल इस्टाम के मध्य एक सन्धि हुई जिसके अनुसार भारतीय सेनापति की अध्यक्षता में एक संयुक्त कमान का निर्माण किया गया ।
जब 16 दिसम्बर, 1971 को बांग्लादेश में पाकिस्तानी सेना के कमाण्डर जनरल नियाजी ने हथियार डाल दिये तो स्वतन्त्र बांग्लादेश का निर्माण हो गया । भारत के प्रयासों से 9 जनवरी, 1972 को शेख मुजीब को पाकिस्तानी जेल से रिहा कर दिया गया और 10 जनवरी, 1972 को भारत पहुंचने पर शेख ने भारत के प्रति अपने आभार को व्यक्त किया ।
शेख मुजीब ने कहा- ”भारत-बांग्लादेश एक असीम भाई-चारे में बंध गये हैं उनका कृतज्ञ राष्ट्र भारत की सहायता भुला नहीं सकेगा ।” स्वतन्त्र बांग्लादेश के निर्माण के समय से लेकर 1975 तक भारत-बांग्लादेश सम्बन्ध घनिष्ठ मित्रता के रहे ।
अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं के प्रति दोनों देशों के दृष्टिकोणों और विचारों में काफी समानता रही । दोनों ही देश धर्मनिरपेक्षता पंचशील और गुटनिरपेक्षता की नीति में विश्वास करते रहे । दोनों हिन्द महासागर को शान्ति का क्षेत्र बनाये रखना चाहते थे । बांग्लादेश को मान्यता दिलाने में भारत की कूटनीति अत्यधिक सक्रिय रही ।
शेख मुजीब के कार्यकाल में भारत और बंगलादेश के बीच मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों को सुदृढ़ करने के लिए निम्नलिखित सन्धियां और समझौते किये गये:
(i) 19 मार्च, 1972 को मैत्री सन्धि:
फरवरी 1972 में शेख मुजीब भारत की यात्रा पर आये और मार्च 1972 में श्रीमती गांधी बांग्लादेश गयीं । 19 मार्च, 1972 को भारत और बांग्लादेश के बीच एक मैत्री सन्धि हुई जिसकी अवधि 25 वर्ष की थी । इस सन्धि के द्वारा दोनों देशों ने एक-दूसरे के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने, एक-दूसरे की सीमाओं का आदर करने, एक-दूसरे के विरुद्ध किसी अन्य देश की सहायता नहीं करने विश्व-शान्ति और सुरक्षा को दृढ़ बनाने आदि का संकल्प किया । सन्धि में यह व्यवस्था भी की गयी कि यदि दोनों देशों में कोई मतभेद हो जायेगा तो उसे आपसी बातचीत द्वारा हल करने की कोशिश करेंगे ।
(ii) व्यापार समझौता:
भारत-बांग्लादेश के बीच 25 मार्च, 1972 को एक व्यापार समझौता हुआ जिसके अनुसार सीमाओं के दोनों तरफ सोलह-सोलह किलोमीटर तक स्वतन्त्र व्यापार की व्यवस्था थी । इसमें आयात-निर्यात और विनिमय सम्बन्धी कोई नियन्त्रण नहीं था ।
(iii) आर्थिक सहायता:
बांग्लादेश के आर्थिक पुनर्निर्माण के लिए भारत ने 25 करोड़ रुपए मूल्य का माल और सेवाएं प्रदान करने का वचन दिया । भारत ने बांग्लादेश को 50 लाख पौण्ड की विदेशी मुद्रा का ऋण देने का भी निश्चय किया ।
(iv) सांस्कृतिक समझौता:
30 सितम्बर, 1972 को दोनों देशों के बीच एक सांस्कृतिक समझौता हुआ जिसने दोनों के सम्बन्धों को और भी मजबूत किया । पाकिस्तान के साथ 3 जुलाई, 1972 को शिमला समझौता और 18 अगस्त को युद्धबन्दी समझौता करते समय भी भारत ने बांग्लादेश से परामर्श किया ।
अप्रैल 1974 में भारत पाकिस्तान और बांग्लादेश के मध्य एक त्रिपक्षीय समझौता हुआ जिसके अनुसार सभी पाकिस्तानी युद्धबन्दी मुक्त कर दिये गये । मई 1974 में बांग्लादेश और भारत के बीच सीमांकन सम्बन्धी समझौता हुआ जिसके अनुसार भारत ने दाहग्राम और अमरकोट का क्षेत्र बांग्लादेश को दे दिया और बांग्लादेश ने बेरूबाड़ी पर भारतीय अधिकार स्वीकार कर लिया ।
मई 1974 में भारत ने बांग्लादेश को 40 करोड़ रुपए का ऋण देना भी स्वीकार किया । इस ऋण का उपयोग बांग्लादेश रेल के डिब्बे और अन्य उपकरण सीमेण्ट मशीनें तथा कृषि उपकरण खरीदने के लिए करेगा । संक्षेप में, शेख मुजीब के कार्यकाल में भारत-बांग्लादेश सम्बन्ध मधुर रहे ।
Essay # 3. शेख मुजीब के बाद भारत-बांग्लादेश सम्बन्ध (1975-1982):
भारत-बांग्लादेश सम्बन्ध (1975-1982):
15 अगस्त, 1975 को शेख मुजीब की हत्या कर दी गयी । पहले खोदकर मुश्ताक अहमद और फिर 6 नवम्बर, 1976 को जस्टिस आबू सादात सयाम राष्ट्रपति बने । 30 जनवरी, 1977 को मेजर जनरल जिया-उर-रहमान ने मुख्य मार्शल ली प्रशासक बनकर सत्ता पर अधिकार कर लिया ।
मई, 1981 में जिया-उर-रहमान की हत्या कर दी गयी । 24 मार्च, 1982 को राष्ट्रपति अब्दुल सत्तार के असैनिक शासन का तख्ता पलट कर लेफ्टीनेण्ट जनरल एच.एम. इरशाद मुख्य मार्शल ली प्रशासक बन गये । शेख मुजीब की हत्या के बाद बांग्लादेश के शासकों ने भारत विरोधी और पाक समर्थक नीति अपनायी ।
यद्यपि इरशाद के काल (1982 से) में भारत विरोधी स्वर कुछ हल्का पड़ा परन्तु फिर भी भारत-बांग्लादेश में उतने मधुर सम्बन्ध नहीं कहे जा सकते जितने शेख मुजीब के युग में थे । वस्तुत: शेख मुजीब की हत्या के बाद बांग्लादेश में जो नयी सरकारें बनीं उनका भारत के प्रति कठोर रुख था ।
1975-1982 की कालावधि में भारत-बांग्लादेश के मध्य सम्बन्धों को प्रभावित करने वाले निम्नलिखित मुद्दे प्रमुख थे:
(1) फरक्का समस्या:
बांग्लादेश ने गंगा के पानी के बंटवारे की समस्या (फरक्का विवाद) को अन्तर्राष्ट्रीय रूप देने का प्रयत्न किया और संयुक्त राष्ट्र संघ व अन्तर्राष्ट्रीय मैचों पर उछालने का प्रयास किया । भारत ने बांग्लादेश को इस जल-विवाद को अन्तर्राष्ट्रीय रूप न देने के लिए सहमत कर लिया और ढाका व दिल्ली में वार्ताओं के बाद दोनों देशों ने 26 सितम्बर, 1977 को एक समझौता किया । यही समझौता फरक्का समझौता कहलाता है । फरक्का समझौता 5 नवम्बर, 1977 को लागू हुआ ।
इसमें दो व्यवस्थाएं की गयीं:
(i) अल्पकालीन व्यवस्था:
इस व्यवस्था के अनुसार 12 अप्रैल से 30 अप्रैल तक जबकि पानी की बहुत कमी रहती है भारत को 20,800 क्यूसेक और बांग्लादेश को 34,700 क्यूसेक पानी मिलेगा और इसके तुरन्त बाद भारत को मिलने वाले पानी की मात्रा बढ़ती जायेगी और जल्दी ही 40,000 क्यूसेक तक पहुंच जायेगी ।
अल्पकालीन व्यवस्था में यह बात भी रखी गयी कि अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिए भारत फरक्का के नीचे से भी कुछ मात्रा में पानी ले सकता है । इस व्यवस्था में यह कहा गया कि यह समझौता 5 वर्ष के लिए है और 3 वर्ष बाद इस पर पुनर्विचार किया जायेगा ।
(ii) दीर्घकालीन व्यवस्था:
इसके अन्तर्गत दोनों देशों ने अपने ऊपर गंगा के प्रवाह को तेज करने की जिम्मेदारी ली और 1972 में स्थापित संयुक्त आयोग इस सम्बन्ध में दोनों पक्षों के प्रस्तावों की जांच करके यह बतायेगा कि उनके प्रस्ताव व्यावहारिक और मितव्ययी हैं या नहीं और ये सिफारिशें दोनों को लगभग पांच वर्ष के भीतर विचार के लिए मिल जायेंगी ।
भारत में इस समझौते पर तीखी प्रतिक्रियाएं हुईं । आलोचकों के अनुसार गंगा मुख्य रूप से भारतीय नदी है क्योंकि इसकी 80 प्रतिशत धारा भारत में है । दूसरा 40,000 क्यूसेक से कम पानी मिलने पर कोलकाता की हालत खराब होने का अंदेशा था जबकि फरक्का का निर्माण कोलकाता बन्दरगाह के लिए ही हुआ था ।
तीसरा, पानी की कमी के समय भारत को केवल क्यूसेक पानी ही मिलेगा जो इसकी आवश्यकता से लगभग 20,000 क्यूसेक कम होगा और बांग्लादेश को अपनी आवश्यकता से 5,000 क्यूसेक अधिक पानी मिलेगा । वस्तुत: बंगाल और त्रिपुरा की जनता को नाराज करके फरक्का समझौता किया गया । डॉ. बेद प्रताप बैदिक के अनुसार फरक्का समझौते के अन्तर्गत बांग्लादेश को रियायतें देने के लिए जनता सरकार ने भारत द्वारा प्रस्तुत पुराने सभी तकों को दरकिनार कर दिया ।
हो सकता है कि कांग्रेस सरकार कलकत्ता बन्दरगाह को बचाने के नाम पर जरूरत से ज्यादा पानी मांगने की बात करती रही हो और जनता सरकार ने उचित उदारता का परिचय दिया हो किन्तु उसका नतीजा क्या हुआ ? उदारता बांझ ही साबित हुई । फरक्का समझौता गंगा के पानी के बंटवारे की समस्या का स्थायी समाधान नहीं था । अत: इसे 1982 के समझौते (स्मरण-पत्र) द्वारा रद्द कर दिया गया ।
(2) फरक्का समझौते की दीर्धकालीन व्यवस्था पर आनाकानी:
गंगा के पानी के बंटवारे की समस्या को हल करने के लिए भारत ने सितम्बर 1977 में अपने हितों को अनदेखा करते हुए बांग्लादेश के साथ इसलिए फरक्का समझौता किया था कि इससे गंगा के प्रवाह को तेज किया जा सकेगा और दोनों देशों की वार्ताओं से समस्या का स्थायी समाधान हो सकेगा ।
लेकिन बांग्लादेश 1977 के अन्तरिम समझौते को अन्तिम समझौता मानता रहा और उसके द्वारा प्राप्त रियायतों को निरन्तर बनाये रखना चाहता है । इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि बांग्लादेश फरक्का समझौते से केवल प्रारम्भिक लाभ उठाना चाहता है, क्त इसके स्थायी समाधान के प्रति बिल्कुल उत्सुक नहीं है ।
(3) द्विपक्षीय समस्याओं को अन्तर्राष्ट्रीय रूप देने का प्रयत्न:
बांग्लादेश ने गंगा जल वितरण की समस्या को, जो द्विपक्षीय समस्या है बहुपक्षीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय दिशा देने का प्रयास किया । बांग्लादेश ने नेपाल चीन भूटान और विश्व बैंक को भी इस समस्या में घसीटने का प्रयास किया ।
(4) अल्पसंख्यकों की समस्या:
बांग्लादेश के हिन्दू और बिहारी मुसलमान अपने आपको सुरक्षित महसूस नहीं करते परिणामस्वरूप वे अवैध रूप से भारत में आते हैं जिससे भारत के सीमावर्ती प्रदेशों-त्रिपुरा, असम, बंगाल, मिजोरम आदि में स्थिति बिगड़ जाती है ।
(5) मुहरी नदी सीमा-विवाद:
1974 के समझौते के अनुसार मुहरी नदी के पानी की मध्य रेखा ही भारत-बांग्लादेश की सीमा रेखा है । बांग्लादेश रायफल्स के अधिकारियों ने इस समझौते का उल्लंघन करके 1979 में भारतीय: जमीन पर अपना दावा पेश किया और भारतीय किसानों पर गोलियां चलायीं । यह विवाद 44-45 एकड़ (24 हेक्टेअर) जमीन के बारे में है जो त्रिपुरा राज्य के बेलोनिया कस्बे के पास मुहरी नदी के भारतीय तट पर है ।
(6) नवमूर द्वीप विवाद:
नवमूर द्वीप बंगाल की खाड़ी में उभरा एक नया द्वीप है । इसका क्षेत्रफल केवल 12 वर्ग किलोमीटर है । बांग्लादेश इसे दक्षिण ‘तलपती’ कहता है और भारत इसे ‘पुरबाशा’ की संज्ञा देता है । यह द्वीप भारतीय सीमाओं में है फिर भी बांग्लादेश इस पर अपना दावा करता है । अगस्त 1981 में बांग्लादेश के आठ युद्धपोतों ने इस पर कब्जा करने का विफल प्रयास किया । वर्तमान में यह द्वीप भारत के अधिकार में है । बांग्लादेश इस मामले को भी अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर लाना चाहता है ।
(7) ‘चकमा’ शरणार्थियों की समस्या:
‘चकमा’ शरणार्थियों की समस्या ने भी दोनों देशों में उत्तेजना पैदा की । यद्यपि बांग्लादेश ने चकमा शरणार्थियों को वापस लेने का वायदा किया परन्तु भय के कारण चकमा शरणार्थी बांग्लादेश जाना नहीं चाहते ।
Essay # 4. भारत-बांग्लादेश सम्बन्ध (1982-2016):
अप्रैल 1982 में जनरल इरशाद के सत्तारूढ़ होने के बाद भारत-बांग्लादेश सम्बन्धों में कुछ सुधार हुआ ।
भारत-बांग्लादेश सम्बन्धों की दृष्टि से निम्नलिखित बिन्दु उल्लेखनीय हैं:
बांग्लादेश के राष्ट्रपति जनरल इरशाद ने अक्टूबर 1982 में भारत की यात्रा की और एक ‘स्मरण पत्र’ पर हस्ताक्षर किये जिसके अनुसार 1977 के फरक्का समझौते को रह कर दिया और संयुक्त नदी आयोग को अगले 18 महीने में गंगा जल के बहाव पर अध्ययन करने को कहा गया ।
दोनों देशों के बीच एक अन्य समझौते के अन्तर्गत भारत ने बांग्लादेश को भारत के कूच बिहार में स्थित दाहग्राम और आगरापोटा के दो अन्त क्षेत्रों (Enclaves) को बांग्लादेश की मुख्य भूमि से जोड़ने के लिए स्थायी पट्टे पर एक तीन बीघा गलियारा प्रदान कर दिया ।
यह गलियारा 178 x 85 मीटर है । इस गलियारे पर भारतीय सम्प्रभुता रहेगी परन्तु भारत बांग्लादेश से जो एक टका किराये के रूप में लेता था उसे समाप्त कर दिया । दोनों देशों में आर्थिक और तकनीकी क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने के लिए एक संयुक्त आर्थिक आयोग की स्थापना की गयी ।
30 जुलाई, 1983 को दोनों देशों में तीस्ता जल समझौता हुआ । इस समझौते के अनुसार भारत और बांग्लादेश सूखे मौसम के दौरान तीस्ता नदी के पानी के तदर्थ आधार पर बंटवारे पर सहमत हो गये । इस समझौते के अन्तर्गत भारत को 39% पानी मिलेगा और बांग्लादेश को 36% पानी उपलब्ध होगा शेष 25% पानी किसी को आवंटित नहीं किया जायेगा ।
फरक्का में गंगा नदी के जल के बंटवारे पर भारत व बांग्लादेश के बीच सहमति के समझौते पर 22 नवम्बर, 1985 को नई दिल्ली में हस्ताक्षर हुए । जुलाई, 1986 में जनरल इरशाद ने तीन-दिवसीय भारत की सद्भाव यात्रा की और भारतीय नेताओं के साथ द्विपक्षीय प्रश्नों पर बातचीत की ।
भारत-बांग्लादेश सम्बन्धों में उत्तरोत्तर सुधार हो रहा है । मई, 1991 में बांग्लादेश के विदेश मन्त्री की भारत यात्रा से दोनों देशों के सम्बन्धों में तेजी से सुधार हुआ । सात वर्ष बाद मई 1991 में नई दिल्ली में भारत-बांग्लादेश संयुक्त आर्थिक आयोग की बैठक हुई ।
भारत सरकार से सरकार के स्तर पर बांग्लादेश के लिए 30 करोड़ रुपए के ऋण की घोषणा की । संयुक्त नदी आयोग की बैठकें फिर की गयीं और दोनों देशों में बहने वाली नदियों के जल के बंटवारे की समस्या का व्यापक दीर्घकालीन हल ढूंढने के लिए विस्तृत विचार-विमर्श किये गये ।
बांग्लादेश में संसदीय प्रणाली की पुनर्स्थापना (सितम्बर 1991) तथा बेगम खालिदा जिया के प्रधानमन्त्री बनने से भारत-बांग्लादेश सम्बन्धों में मधुरता आने के अवसर बढ गये । बांग्लादेश के विदेश मन्त्री भारत के विदेश मन्त्री के आमन्त्रण पर अगस्त, 1991 में सरकारी यात्रा पर आये और एक ऋण करार व दोहरे कराधान के परिहार सम्बन्धी करार पर हस्ताक्षर किये गये । नदी जल के बंटवारे पर अक्टूबर, 1991 में नई दिल्ली में और फरवरी 1992 में ढाका में सचिव स्तर पर बातचीत की गयी ।
अक्टूबर 1991 में राष्ट्रमण्डल शासनाध्यक्षों की बैठक के दौरान हरारे में भारत के प्रधानमन्त्री की बांग्लादेश की प्रधानमन्त्री बेगम खालिदा जिया से हुई भेंट से भारत के बांग्लादेश के साथ सम्बन्ध और प्रगाढ़ हुए । मई, 1992 में प्रधानमन्त्री खालिदा जिया ने भारत की यात्रा की और त्रिपुरा से प्रहजार चकमा शरणार्थियों की वापसी तथा दोनों देशों के बीच अनधिकृत आवागमन की समस्या से निपटने के लिए भारत और बांग्लादेश एक विदेश सचिव स्तरीय संयुक्त कार्यदल बनाने पर सहमत हो गये ।
खालिदा जिया की इस यात्रा के दौरान निम्नलिखित तीन करार भी सम्पन्न हुए:
(a) चांसरी और आवासी भवनों के निर्माण के लिए भूखण्डों के आदान-प्रदान का समझौता ज्ञापन ।
(b) सांस्कृतिक और शैक्षिक आदान-प्रदान करार ।
(c) दोहरे कराधान के परिहार से सम्बद्ध करार के अनुसमर्थन के दस्तावेजों का आदान-प्रदान ।
26 जून, 1992 को भारत ने तीन बीघा क्षेत्र बांग्लादेश को हस्तान्तरित कर दिया । 178 मीटर लम्बा तथा 85 मीटर चौड़ा तीन बीघा गलियारा एक ऐसा क्षेत्र है, जो भारतीय क्षेत्र ‘कुचलिबाड़ी’ को शेष भारत से जोड़ता है क्योंकि इसके तीन तरफ बांग्लादेश का राज्य क्षेत्र है ।
भारत में कुचलिबाड़ी क्षेत्र के निवासी तीन बीघा से होकर भारत के मूल भाग में आते थे तथा बांग्लादेश के दाहग्राम तथा आगरापोटा के लोग घूमकर काफी दूरी तय करके बांग्लादेश के मूल भाग में जाते थे जिससे उन्हें परेशानी उठानी पड़ती थी तथा समय अधिक लगता था । तीन बीघा क्षेत्र को पट्टे पर देने का भारत के कई राजनीतिक दलों ने विरोध किया, किन्तु बांग्लादेश के साथ मैत्री को अधिक मजबूत बनाने की मंशा से भारत सरकार ने यह निर्णय किया ।
Essay # 5. गंगाजल बंटवारा: ऐतिहासिक सन्धि (दिसम्बर, 1996):
बांग्लादेश की प्रधानमंत्री श्रीमती शेख हसीना 10 से 12 दिसम्बर, 1996 तक भारत की सरकारी यात्रा पर आयीं । इस यात्रा के दौरान भारत के प्रधानमन्त्री और बांग्लादेश की प्रधानमन्त्री ने फरक्का में गंगाजल बंटवारे से सम्बद्ध ऐतिहासिक संधि पर हस्ताक्षर किए । इस संधि की अवधि 30 वर्ष रखी गई है तथा पांच वर्ष की अवधि के पश्चात् अथवा दोनों पक्षों में से किसी एक पक्ष के अनुरोध पर दो वर्ष के पश्चात इसकी समीक्षा की जा सकती है ।
संधि के अन्तर्गत यदि नदी में जल की मात्रा 70 हजार क्यूसेक या इससे कम रहती है तो दोनों देश जल का आधा-आधा बंटवारा करेंगे । यदि यह मात्रा 70 से 75 हजार क्यूसेक के बीच है, तो बांग्लादेश को इसमें 35 हजार क्यूसेक हिस्सा मिलेगा और शेष भारत का होगा ।
यदि जल की मात्रा 75 हजार क्यूसेक से ऊपर है तो 40 हजार क्यूसेक पानी भारत का और शेष पर बांग्लादेश का अधिकार होगा । दोनों देशों ने इस संधि को लागू करने के लिए संयुक्त समिति गठित करने का निर्णय लिया । किसी विवाद या मतभेद का हल संयुक्त समिति में नहीं होने की स्थिति में इसे भारत-बांग्लादेश नदी जल आयोग के पास भेजा जाएगा ।
त्रिपुरा में लगभग 11 वर्षों से रह रहे 50 हजार से अधिक चकमा शरणार्थियों की बांग्लादेश वापसी के लिए भारत व बांग्लादेश के मध्य 9 मार्च, 1997 को अगरतला में एक समझौता सम्पन्न हुआ । जून, 1999 में भारत की पहल पर कोलकाता-ढाका बस सेवा प्रारम्भ की गई । कोलकाता से ढाका पहुंचने वाली पहली बस के स्वागत के लिए स्वयं प्रधानमन्त्री वाजपेयी ढाका पहुंचे ।
Essay # 6. शेख हसीना की भारत यात्रा (10-13 जनवरी, 2010):
10-13 जनवरी 2010 को शेख हसीना की भारत यात्रा भारत-बांग्ला संबंधों में नया ऐतिहासिक मोड़ लाने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगी इसमें जरा भी शक नहीं है । 13 जनवरी, 2010 को नई दिल्ली में शेख हसीना को शांति निरस्त्रीकरण और विकास के लिए 2009 के प्रतिष्ठित इन्दिरा गांधी शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया । भारत ने बांग्लादेश को एक बिलियन डॉलर यानी लगभग 4,500 करोड़ रुपए का अनुदान भी इस यात्रा के दौरान दिया ।
किसी भी विकासमान राष्ट्र के लिए यह बहुत बड़ी राशि थी इतनी बड़ी राशि भारत ने अब से पहले किसी भी राष्ट्र को एकमुश्त नहीं दी । इस यात्रा से पूर्व असम के आतंकवादी नेता राजरवोवा को भारत के हवाले करके बांग्लादेश सरकार ने यह स्पष्ट संकेत दे दिया था कि अपनी जमीन पर वह कोई भी भारत विरोधी गतिविधि बर्दाश्त नहीं करेगी ।
बांग्लादेश की प्रधानमंत्री ने दाहाग्राम-आगरापोटा के लिए विद्युत उपलब्धता को सुविधाजनक बनाने हेतु भारत के प्रधानमंत्री को धन्यवाद दिया और भारत को पूर्व में हुई सहमति के अनुसार सिर्फ भारत के उपयोग हेतु तीन बीघा कोरीडोर पर फ्लाईओवर का निर्माण करने के लिए आमंत्रित किया ।
दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों ने 1974 के भू-सीमा करार की भावना के अनुरूप सभी अनसुलझे तथा भू-सीमा संबंधी मुद्दों का व्यापक समाधान किए जाने पर तथा भारत और बांग्लादेश के बीच समुद्री सीमा का सौहार्दपूर्ण सीमांकन किए जाने की आवश्यकता पर सहमति व्यक्त की ।
उन्होंने समुद्री कानून से संबंद्ध संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (अनक्लोस) के अनुबंधन कें अन्तर्गत कार्यवाही आरंभ किए जाने पर गौर किया और इस संदर्भ में बांग्लादेश के प्रतिनिधिमंडल की भारत यात्रा का स्वागत किया ।
इस बात पर भी सहमति व्यक्त की गई कि बांग्लादेश में आशुगंज तथा भारत में सिलहट को मुक्त बंदरगाह घोषित किया जाएगा । बांग्लादेश सड़क और रेल मार्ग द्वारा भारत से आने वाले और भारत को जाने वाले सामानों की आवाजाही के लिए मोंगला और चटगांव समुद्री बंदरगाहों का उपयोग करने की अनुमति देगा ।
यह सहमति भी व्यक्त की गई कि प्रस्तावित अखौरा-अगरतला रेलवे लिंक का वित्तपोषण भारत के अनुदान से किया जाएगा । उन्होंने कोलकाता और ढाका के बीच ‘मैत्री एक्सप्रेस’ का शुभारंभ किए जाने का स्वागत किया तथा दोनों देशों के बीच सड़क और रेल संपर्कों की बहाली का आह्वान किया ।
इस बात पर सहमति व्यक्त की गई कि नेपाल तक पारगमन के लिए रोहनपुर-सिंगाबाद ब्रॉडगेज रेलवे लिंक उपलब्ध रहेगा । तीस्ता नदी में सूखे मौसम के कारण जल की कमी से दोनों देशों की जनता को हो रही कठिनाई को स्वीकार करते हुए दोनों प्रधानमंत्रियों ने तीस्ता जल के विभाजन के संबंध में दोनों देशों के बीच चल रही बातचीत को शीघ्र निष्कर्ष तक ले जाने पर सहमति व्यक्त की ।
भारत के प्रधानमंत्री ने अपने इस आश्वासन को दोहराया कि भारत तिपाईमुख परियोजना पर आगे की कार्रवाई नहीं करेगा क्योंकि इससे बांग्लादेश पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना है । साथ ही उन्होंने अपने ग्रिड से बांग्लादेश को 250 मेगावाट बिजली की आपूर्ति करने पर सहमति व्यक्त की ।
बांग्लादेश से आयातों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से दोनों देशों ने टेरिफ एव गैर टैरिफ बाधाओं एवं पत्तन नियंत्रणों को समाप्त करने और रेल तथा जल मार्ग द्वारा कंटेनर कारगो की आवाजाही को सुविधाजनक बनाने पर सहमति व्यक्त की ।
इस संदर्भ में बांग्लादेश ने सार्क के अल्पविकसित देशों को भारतीय बाजारों तक शुल्क मुक्त पहुंच उपलब्ध कराने संबंधी भारत की पहल का स्वागत किया । बांग्लादेश ने भारत की नकारात्मक सूची में बांग्लादेश के प्रत्यक्ष हितों से जुड़ी मदों की संख्या में कमी लाए जाने का स्वागत किया और इस सूची में शामिल मदों की संख्या में और कमी लाने का अनुरोध किया ।
दोनों प्रधानमंत्रियों की उपस्थिति में निम्नलिखित करारों पर भी हस्ताक्षर किए गए:
(i) आपराधिक मामलों में पारस्परिक विधिक सहायता से संबद्ध करार ।
(ii) सजायाफ्ता कैदियों के अंतरण से संबद्ध करार ।
(iii) अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद संगठित अपराध तथा मादक द्रव्यों की तस्करी की रोकथाम से संबद्ध करार ।
(iv) विद्युत क्षेत्र में सहयोग से संबद्ध समझौता ज्ञापन ।
(v) सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रम ।
11 मार्च, 2010 को ढाका में इन्दिरा गांधी सांस्कृतिक केन्द्र (आई.जी.सी.सी.) की स्थापना के पश्चात् दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक कार्यकलापों में और तेजी आई है । कई तरह के कार्यक्रम आयोजित किए गए हैं जिसमें पुस्तक विमोचन चित्रकला प्रतियोगिता नृत्य एवं संगीत कार्यक्रम विशेष रूप से भारतीय फिल्में दिखाना और कला प्रदर्शनी और व्याख्यान सहित सभी प्रकार के सांस्कृतिक कार्यकलाप शामिल किये गए हैं ।
सांस्कृतिक केन्द्र में भारत के शिक्षक योग नृप्य और शास्त्रीय संगीत में कार्यशालाएं और प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करते रहे हैं । वर्ष 2011 में गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर की 150वीं वर्षगांठ को संयुक्त रूप से मनाने की तैयारी जारी है ।
बांग्लादेश के कई सहभागियों ने आई.टी.ई.सी. कार्यक्रम और कोलंबो योजना की तकनीकी सहयोग स्कीम के अन्तर्गत प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों का लाभ उठाया है । मिशन ने 18 जुलाई को सभी देशों के राष्ट्रिकों को ऑन लाइन वीजा आवेदन प्रस्तुत करने की शुरुआत की है । बांग्लादेश में 26 नवम्बर-3 दिसम्बर, 2010 के बीच ‘आनंद जाग्या’ शीर्षक पर भारत महोत्सव का आयोजन किया गया ।
पारस्परिक हित के सभी क्षेत्रों में भारत और बांग्लादेश के बीच सहयोग जारी रहा, जिसकी परिणति 6-7 सितम्बर 2011 तक भारत के प्रधानमन्त्री की बांग्लादेश यात्रा के रूप में हुई । भारत ने तीन बीघा क्षेत्र से दहाग्राम एवं अंगोर पोटा एन्क्लेवों तक बांग्लादेशी राष्ट्रिकों के लिए चौबीसों घण्टे की आवाजाही को सुविधाजनक बनाया तथा बांग्लादेश द्वारा किए गए अनुरोध के प्रत्युत्तर में 46 वस्त्र मदों (बाद में इसे 25 मदों को छोड्कर सभी मदों तक विस्तारित कर दिया गया) के शुल्क मुक्त आयात की अनुमति दी ।
भारत सरकार ने वर्ष 2010 में बांग्लादेश के लिए एक बिलियन अमरीकी डॉलर की ऋण शृंखला की घोषणा की थी । वर्ष 2012 में 200 मिलियन अमरीकी डॉलर की राशि को अनुदान में परिवर्तित करने का निर्णय लिया गया था जिसका उपयोग बांग्लादेश सरकार की प्राथमिकता के अनुसार परियोजना के लिए किया जाएगा ।
ऋण शृंखला के अन्तर्गत उपलब्ध शेष 800 मिलियन अमरीकी डॉलर में से मिलियन अमरीकी डॉलर की राशि की 12 परियोजनाओं की पहचान परस्पर सहमति से की गई है । इनमें रोलिंग स्टॉक-फ्रेट वैगन लोकोमोटिव, डीजल इलेक्ट्रिकल मल्टिपल यूनिट तथा 290 डबलडैकर, सिंगल डेकर की आपूर्ति शामिल है तथा 50 सन्धियुक्त बसों के लिए परियोजनाएं शामिल हैं । डबलडैकर बसें पहले ही सौंप दी गई हैं जो ढाका में चल रही हैं ।
Essay # 7. ऐतिहासिक सीमा समझौता (6 सितम्बर, 2011):
6 सितम्बर, 2011 को भारत व बांग्लादेश ने वर्षों पुराने सीमा विवाद को हल करते हुए ऐतिहासिक सीमांकन समझौते पर हस्ताक्षर किए । प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह की दो दिवसीय ढाका यात्रा के दौरान दोनों देशों में 162 छोटे क्षेत्रों के आदान-प्रदान पर सहमति बनी ।
ये ऐसे क्षेत्र हैं जो अपने देश की सरकारों से कटे हुए हैं । हालांकि तीस्ता नदी के जल बंटबारे पर समझौता नहीं हो पाया । तीस्ता नदी के जल पर समझौता न होने का सीधा असर फेनी नदी के जल बंटवारे पर भी हुआ और बांगलादेश ने फेनी नदी पर समझौता करने से इंकार कर दिया ।
वर्ष 2013-14 में भारत-बांग्लादेश में व्यापार तथा आर्थिक सहयोग को सुकर बनाने के लिए संस्थागत अवसंरचना को सुदृढ़ बनाया गया । अब्दुल लतीफ सिद्दीकी वस्त्र एवं पटसन मन्त्री बांग्लादेश ने 19 अगस्त, 2013 को दिल्ली की यात्रा की । दोनों सरकारों के बीच फैशन प्रौद्योगिकी कौशल आदान-प्रदान, उत्पादकता वृद्धि तथा वस्त्र विकास में प्रौद्योगिकी वाणिज्यिक सहयोग हेतु एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए ।
बांग्लादेश के निवेश बोर्ड द्वारा भारतीय उद्योग परिसंघ तथा भारत-बांग्लादेश चेम्बर्स ऑफ कॉमर्स एण्ड इण्डस्ट्री के सहयोग से जून 2013 में मुम्बई, चेन्नई और कोलकाता में आयोजित निवेशक रोड शो से भारत तथा बांग्लादेश की कम्पनियों के बीच बांग्लादेश में निवेश के लिए लगभग 100 मिलियन अमरीकी डॉलर मूल्य के समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए ।
बांग्लादेश को अत्यधिक संवेदनशील 46 वस्त्र टैरिफलाइनों तक कर मुक्त, कोटा-मुक्त पहुंच एवं तम्बाकू, स्प्रिट और एल्कोहल 25 टैरिफ लाइनों को छोड्कर सभी मदों तक कर-मुक्त कोटा मुक्त पहुंच को देखते हुए भारत को बांग्लादेश का निर्यात 2011-12 के 498.4 मिलियन डॉलर से बढ़कर 2012-13 में 563.9 मिलियन अमरीकी डॉलर हो गया, जो पिछले वर्ष की तुलना में 13.15 प्रतिशत की वृद्धि है ।
बांग्लादेश से भारत को अब तक के निर्यात का सर्वोच्च स्तर है और यह बांग्लादेश को वर्तमान में सार्क देशों के बीच भारत का सबसे बड़ा व्यापार भागीदारी बनाता है । ओएनजीसी विदेश लिमिटेड (ओवीएल) तथा पेट्रोबांग्ला ने 17 फरवरी, 2014 को बंगाल की खाड़ी में दो उथले जल ब्लाकों में तेल तथा गैस की खोज और उत्पादन के लिए उत्पादन सम्बन्धी दो साझा करारों पर हस्ताक्षर किए ।
यह पहली बार है जबकि बांग्लादेश ने भारत सरकार द्वारा संचालित तेल कम्पनी ओवीएल को गैस तथा तेल की खोज के लिए जल ब्लॉक प्रदान किए । बांग्लादेश को विस्तारित 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर की ऋण शृंखला के उपयोग में नियमित प्रगति प्राप्त की गई है जो कि भारत द्वारा किसी देश को प्रदान की गई सबसे बड़ी एकल ऋण शृंखला है ।
795 मिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य की परियोजनाओं पर पहले ही सहमति प्रदान की गई है और ग्यारह परियोजनाओं के लिए चौदह संविदाओं पर हस्ताक्षर किए गए हैं । इनमें से अधिकांश कार्यान्वयनाधीन/ सम्पूर्णता के चरण में है ।
इसी प्रकार सहायता अनुदान के रूप में वर्ष के दौरान तीन भागों में 200 मिलियन अमेरिका डॉलर में से 150 मिलियन अमेरिकी डॉलर जारी किए गए हैं । भारत सरकार ने भी प्रधानमन्त्री शेख हसीना द्वारा 4 सितम्बर, 2013 को उद्घाटित बांग्लादेश के 64 जिलों में प्रत्येक के मॉडल स्कूलों में आईटी प्रयोगशालाओं की स्थापना करके अपनी वचनबद्धता पूरी की ।
Essay # 8. ममता बनर्जी के साथ प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी की बांग्लादेश यात्रा (6-7 जून, 2015):
प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी की बांग्लादेश यात्रा पर दोनों देशों के बीच भूमि सीमा समझौते पर ऐतिहासिक करार हुआ । इस समझौते के साथ ही दोनों देशों के बीच पिछले 41 वर्षों से चले आ रहे सीमा विवाद का समाधान हो गया ।
समझौते के अन्तर्गत दोनों देशों के बीच 162 बस्तियों का आदान-प्रदान हुआ । बांग्लादेश को 111 बस्तियां मिलीं जबकि 51 बस्तियां भारत का हिस्सा बनी; भारत को 500 एकड़ भूमि प्राप्त हुई, जबकि बांग्लादेश को 10,000 एकड़ जमीन मिली । इसके अतिरिक्त 6.1 किमी अनिश्चित सीमा का भी सीमांकन किया जाएगा । इस प्रकार 51 हजार लोगों की नागरिकता का सवाल भी सुलझ गया ।
इस अवसर पर शेख हसीना, नरेन्द्र मोदी और ममता बनर्जी ने हरी झण्डी दिखाकर दो बस सेवाओं की शुरुआत की । ये बस सेवाएं कोलकाता-ढाका-अगरतला और ढाका- शिलांग-गुवाहटी के बीच चलेंगी । सम्बन्धों को सद्भावपूर्ण बनाने के लिए प्रधानमन्त्री मोदी ने बांग्लादेश को 2 अरब डॉलर का कर्ज देने की घोषणा की ।
मोदी ने तीस्ता और फेनी नदी जल बंटवारे पर भी जल्द ही राज्यों से सहमति मिलने की उम्मीद व्यक्त की । ममता के विरोध के कारण दोनों देशों के बीच यह समझौता अटका पड़ा था ।
मतभेद के मुद्दे:
इन समझौतों के बावजूद भी कतिपय मुद्दों को लेकर दोनों देशों में मतभेद बने हुए हैं । गंगा-ब्रह्मपुत्र नहर बनाने के प्रश्न पर दोनों देशों में मतभेद बने हुए हैं । जहां बांग्लादेश इसके लिए नेपाल में बड़े-बड़े जलाशय के निर्माण पर बल देकर नेपाल को इस समस्या के साथ जोड़ना चाहता है वहां भारत इसका विरोध करता है । कांटेदार बाड़ का मुद्दा भी दोनों देशों में विवाद का एक कारण है ।
भारत-बांग्लादेश सीमा 3,200 किलोमीटर लम्बी है । इस सीमा से बांग्लादेश से आने वाले शरणार्थी भारत में गैर-कानूनी तौर पर प्रवेश करते हैं और भारत के असम आन्दोलन के मूल में इन ‘विदेशी आगन्तुकों’ की समस्या है ।
अत: असम समस्या के समाधान और विदेशियों के भारत में गैर-कानूनी तौर पर प्रवेश को रोकने के लिए भारत ने सीमाओं पर कांटेदार तार लगाने का निर्णय लिया । बांग्लादेश ने भारत के इस निर्णय का विरोध किया और इसे ‘घेराबन्दी’ की संज्ञा दी । भारत द्वारा पूर्वी सीमा पर बाड़ लगाने का मसला इतना उग्र हो गया कि बांग्लादेश जैसे छोटे-से देश ने अप्रैल 1984 में भारत की सीमा में गोलाबारी तक कर दी ।
अप्रैल 1986 में भारत-बांग्लादेश सीमा पर मुहरी नदी पर तटबांध बनाने के भारत के कार्य को लेकर दोनों देशों में तनाव पैदा हो गया । बांग्लादेश ने अपने अर्द्धसैनिक बल की सहायता के लिए कई सैनिक यूनिटों को तैनात कर दिया और दोनों देशों के अर्द्धसैनिकों के बीच कई बार मुठभेड़ हुई ।
बांग्लादेश ने भारत द्वारा 1.2 किमी लम्बे तटबांध के निर्माण पर विरोध प्रकट किया । चकमा आदिवासियों की वापसी के प्रश्न को लेकर भी दोनों देशों में मतभेद लम्बे समय तक बने रहे । भारत में चकमा आदिवासियों की बाढ़-सी आ गयी और बांग्लादेश उन्हें लेने में आनाकानी करता रहा ।
Essay # 9. बांग्लादेश की सेना का भारतीय गांव पर कब्जा और भारतीय जवानों के साथ क्रुर बर्ताव (अप्रैल 2001):
अप्रैल 2001 में बांग्लादेश की सेना भारतीय क्षेत्र में लगभग डेढ़ किलोमीटर भीतर तक घुस आई और उसने मेघालय में दावकी से चार किलोमीटर दूर पिरदयाव गांव पर कब्जा कर लिया । बांग्लादेशी सैनिकों ने सिर्फ गांव पर कब्जा ही नहीं किया बल्कि बी.एस.एफ. के कतिपय जवानों को बंदी बना लिया ।
बांग्लादेश राइफल्स द्वारा 16 भारतीय जवानों को अमानवीय यातना देकर मारने की घटना ने पूरे राष्ट्र को क्षुब्ध कर दिया । केन्द्र सरकार ने बांग्लादेश से कड़ा विरोध दर्ज किया और कहा कि वह जवानों की हत्या जैसा आपराधिक दुस्साहस करने वालों को दण्ड दे ।
भारत स्थित बांग्लादेश के उच्चायुक्त को इस घटना के सन्दर्भ में दो बार विदेश मन्त्रालय बुलाकर फटकार भी लगाई गई । भारत और बांग्लादेश की सीमा पर अब भी लगभग 111 गलियारे ऐसे हैं जिन पर दोनों देशों का कब्जा तो है लेकिन इस कब्जे के बारे में विवाद है ।
निष्कर्ष:
भारत और बांग्लादेश सम्बन्धों में महत्वपूर्ण भूमिका सार्क और बिम्स्टेक की है । सार्क के अन्तर्गत 2006 से साफ्टा लागू होने के पश्चात् दोनों देशों के मध्य आर्थिक सम्बन्धों में सुधार हुआ है । 43 वर्ष के अन्तराल के पश्चात् भारत व बांग्लादेश के मध्य रेल सेवा अप्रैल 2008 से शुरू हुई ।
कोलकाता व ढाका के मध्य चलायी गई ‘मैत्री एक्सप्रेस’ रेलगाड़ी को विदेश मंत्री प्रणब मुखर्जी ने 14 अप्रैल, 2008 को बंगाली नव वर्ष के अवसर पर कोलकाता के चितपुर स्टेशन से ढाका कैण्ट से लिए रवाना किया । जुलाई, 2011 में भारत के विदेश मन्त्री एस.एम. कृष्णा व गृहमन्त्री पी. चिदम्बरम् ने बांग्लादेश की यात्रा की और इन यात्राओं के दौरान एक व्यापक सीमा प्रबन्धन समझौता व एक द्विपक्षीय निवेश संवर्द्धन एवं संरक्षण समझौते पर हस्ताक्षर हुए ।
ADVERTISEMENTS:
भारत-बांग्लादेश सम्बन्ध इस बात का जीता-जागता सबूत है कि भारत पड़ोसियों को हर सम्भव यहा तक कि अपनी कीमत पर भी मदद करना चाहता है इसके कारण दोनों देशों की सीमाओं पर व्यापारिक गतिविधियां बड़ी हैं और इसमें सब्जी, दूध, मछली आदि के व्यापार में वृद्धि हुई है ।
बांग्लादेश को भारत से होने वाले निर्यात में बढ़ोतरी हो रही है और यह 1995-96 में बढ्कर 3,470 करोड़ रुपए मूल्य का हो गया और इस प्रकार बांग्लादेश भारत की सबसे गतिशील मण्डियों में से एक मण्डी बन गया । हाल ही में भारत सरकार ने बांग्लादेश के हित के 14 सेक्टरों की वस्तुओं के आयात पर टैरिफ रियायत देने तथा मात्रा सम्बन्धी प्रतिबन्ध हटाने का निर्णय लिया है । जुलाई, 2001 में दोनों देशों के बीच यात्री रेलगाड़ी सेवा प्रारम्भ करने के एक समझौते पर हस्ताक्षर हुए ।
आरक्षित सीटों वाली यह सुलभ एक्सप्रेस गाड़ी सियालदाह व बंगबंधु सेतु ईस्ट स्टेशनों के मध्य चलाई जाएगी । लोगों से लोगों के बीच सम्पर्क बढ़ता जा रहा है जो इस तथ्य से स्थापित होता है कि ढाका स्थित भारत का हाई कमीशन प्रतिदिन औसत 1,000 वीजा जारी करता है ।
दोनों देशों के बीच सुमधुर होते सम्बन्धों का पहला संकेत 18 माह पूर्व मिला था जब भारतीय कम्पनी टाटा ने बांग्लादेश में वहीं उत्पादित गैस के बूते 2.5 अरब डॉलर की लागत के बिजली उत्पादन केन्द्र फर्टिलाइजर प्लांट और इस्पात संयन्त्र की योजना का खुलासा किया था । बांग्लादेश में यह निजी निवेश का सबसे बड़ा उदाहरण है ।
भारत ने बांग्लादेश की स्वतन्त्रता में विशेष योग दिया था फिर भी आज वे ‘दूर के पड़ोसी’ लगते हैं । बांग्लादेश से आने वाले शरणार्थियों का तांता ज्यों-का-त्यों बना हुआ है, तस्करी पर कोई रोक नहीं लगी है और मुजीब की हत्या के बाद पारस्परिक अविश्वास की जो भित्ति खड़ी हो गयी थी, वह अभी तक नहीं ढही है । भारत-बांग्लादेश के रिश्तों में खटास का एक प्रमुख मुद्दा वहां तेजी से पनपता आतंकवाद है । दोनों देशों के बीच सबसे अहम समस्या है पूर्वोत्तर के आतंककारियों को बांग्लादेश में पनाह ।