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Here is an essay on ‘Indo-Bhutan Relations’ especially written for school and college students in Hindi language.
Essay # 1. भारत-भूटान सम्बन्ध: संक्षिप्त इतिहास (Indo-Bhutan Relations: A Brief History):
भूटान पूर्वी हिमालय में स्थित एक छोटा-सा स्वतन्त्र राज्य है । इसके पश्चिम में भारत का सिक्किम प्रान्त तथा बंगाल का दार्जिलिंग जिला इसे नेपाल से अलग करता है । इसकी उत्तरी तथा उत्तर-पूर्वी सीमा पर तिब्बत और इसके पूरब तथा दक्षिण में भारत का असम प्रान्त है ।
भूटान एक पर्वतीय राज्य है और पर्वतों के बीच घाटियों में बसा हुआ है । इसका क्षेत्रफल 18,000 वर्गमील और जनसंख्या लगभग 7.08 लाख है । यहां अधिकतर भूटिया जाति के लोग रहते हैं । भूटान के लोग बौद्ध धर्मावलम्बी हैं ।
भारत की प्रतिरक्षा में भूटान का अत्यधिक महत्व है । भारत की उत्तरी प्रतिरक्षा व्यवस्था में भूटान को भेद्यांग (Achilles Heel) की संज्ञा दी जाती है । चुम्बी घाटी से चीन की सीमाएं केवल 80 मील हैं । यदि चीन विस्तारवादी क्षेत्रों से इस क्षेत्र में घुसपैठ करे तो वह न केवल भूटान को बल्कि उत्तरी बंगाल असम और अरुणाचल प्रदेश को भारत से काट सकता है ।
चीन ने भूटान-तिब्बत की वर्तमान प्राकृतिक सीमाओं को कभी स्वीकार नहीं किया । सौभाग्य से भारत-भूटान सम्बन्ध मित्रतापूर्ण रहे हैं और उनमें कोई प्रमुख समस्या नहीं है । भारत भूटान को एक स्वतन्त्र देश के रूप में बनाये रखना चाहता है । भारत की पहल पर ही भूटान 1971 में संयुक्त राष्ट्र संघ का सदस्य बना; 1973 में वह निर्गुट आन्दोलन में शामिल हुआ 1977 में भारत ने भूटान के राजदूतावास का नई दिल्ली में दर्जा बढ़ा दिया ।
भूटान ‘सार्क’ का भी सदस्य है और वह दक्षिण एशिया में डाक सेवाओं में सहयोग सम्बन्धी समिति का अध्यक्ष है । 24 मार्च, 2008 को नेशनल असेम्बली के चुनावों के साथ भूटान विश्व का सबसे नया लोकतांत्रिक देश बन गया । देश के लोकतंत्र की स्थापना के विचार को भूटान नरेश जिग्मे वांगचुक ने स्वयं आगे बढ़ाया ।
आज से लगभग 500 वर्ष पूर्व तिब्बत के खामा प्रान्त के लोग यहां आकर बस गये और धीरे-धीरे उन्होंने इस पर कब्जा कर लिया । आगे चलकर वर्तमान महाराजा के पूर्वजों ने लामाओं के प्रभुत्व को समाप्त कर दिया और भूटान पर अपना आधिपत्य जमा लिया ।
भारत-भूटान सम्बन्धों की शुरुआत 1865 की सन्धि (सिनचुला सन्धि) जो कि भारत की ब्रिटिश सरकार और भूटान के मध्य हुई थी के द्वारा भूटान को भारतीय रियासत का रूप प्रदान किया गया था । उसके बाद 1910 में पुनरवा सन्धि द्वारा इन सम्बन्धों को सुदृढ़ किया गया ।
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इस सन्धि के अन्तर्गत तत्कालीन ब्रिटिश भारत सरकार ने भूटान के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने और भूटान ने विदेशी मामलों में भारत से निर्देशित (नियन्त्रित) होना स्वीकार कर लिया ।
भारत-भूटान सन्धि, 1949:
अगस्त 1949 में भूटान सरकार ने स्वतन्त्र भारत की सरकार से एक नई सन्धि की जिसमें पुनरवा सन्धि की अनेक धाराओं का उल्लेख किया गया । इसमें दोनों देशों ने ‘चिरस्थायी शान्ति और मित्रता’ को सुनिश्चित करने का आश्वासन दिया ।
इस सन्धि के अनुसार भूटान और भारत का सम्बन्ध पूर्ववत् बनाये रखने का निश्चय किया गया । भारत ने भूटान के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने का वचन दिया । सन्धि के अनुच्छेद 2 में कहा गया कि भूटान सरकार विदेशी मामलों में भारत सरकार की सलाह को मार्गदर्शक के नाते मानने के लिए सहमत है ।
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यह भी व्यवस्था की गयी कि भारत 5 लाख रुपए वार्षिक सहायता देगा । सिक्किम ने सन्धि के द्वारा उसका वैदेशिक सम्बन्ध और प्रतिरक्षा का भार भारत को सौंप दिया था । लेकिन भूटान ने इस सन्धि के द्वारा केवल विदेश नीति का भार ही भारत को सौंपा था । भारत-चीन युद्ध के बाद भूटान ने प्रतिरक्षा का भार भी भारत को सौंप दिया ।
Essay # 2. नेहरू और इन्दिरा गांधी के युग में भारत-भूटान सम्बन्ध (1947-1977):
नेहरू और श्रीमती इन्दिरा गांधी के प्रधानमन्त्रित्व काल में भारत और भूटान के सम्बन्ध बहुत मधुर रहे । भारत ने भूटान के विकास में सक्रिय रुचि ली और उसे आर्थिक सहायता दी । 30 करोड़ रुपये की लागत से भारतीय सीमा सड़क संगठन ने भूटान में 1,000 किलोमीटर लम्बी सड़क का निर्माण किया ।
चीन भूटान के 300 वर्गमील क्षेत्र पर दावा करता है इस क्षेत्र में भी एक सड़क बनायी गयी । भूटानी विद्यार्थी भारत में शिक्षा ग्रहण करने आने लगे । भारत ने भूटान में हवाई पट्टियां भी बनायीं जिन पर हेलीकोप्टर उड़ सकते हैं ।
भारत के सहयोग से ही महान की नयी राजधानी थिम्पु का निर्माण किया गया । भूटान के दूसरे महत्वपूर्ण नगर पारो का विकास भी भारत के सहयोग से हुआ । भारत ने भूटान में विद्यालय और अस्पताल बनवाये ।
1970 में भूटान ने संयुत्त राष्ट्र संघ का सदस्य बनने के लिए प्रार्थना-पत्र दिया जिसका भारत ने समर्थन किया । सितम्बर 1971 में भूटान संयुक्त राष्ट्र संघ का सदस्य बन गया । बांग्लादेश के संकट के समय भूटान ने भारत को नैतिक समर्थन प्रदान किया तथा भूटान ने भारत के तुरन्त बाद बांग्लादेश को मान्यता दे दी ।
13-14 अगस्त, 1976 को भूटान नरेश गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों के शिखर सम्मेलन में भाग लेने जाते हुए दिल्ली रुके । इस गुटनिरपेक्ष सम्मेलन में भूटान ने भारत की अच्छे पड़ोसी की नीति की प्रशंसा की । सन् 1973 में सिक्किम के भारत विलय की घटना ने भूटान पर गहरा प्रभाव डाला और भूटान ने बड़ी बारीकी के साथ अन्य देशों से मेल-मिलाप बढ़ाने का अभियान छेड़ा ।
1974 में भूटान नरेश के राज्यारोहण के अवसर पर भूटान ने 1949 की सन्धि की धारा 2 की व्याख्या का प्रश्न उठाया । भूटान ने इसकी यह व्याख्या करने का यत्न किया कि भूटान वैदेशिक सम्बन्धों के मामले में भारत के परामर्श को मानने के लिए बाध्य नहीं है ।
Essay # 3. भारत में जनता पार्टी शासन और भारत-भूटान सम्बन्ध:
भारत और भूटान के सम्बन्धों में प्रकट रूप से कोई तनाव नहीं था किन्तु जनता पार्टी के शासन के दौरान दो छोटी-छोटी समस्याओं का समाधान हुआ । एक तो 1972 के व्यापार समझौते की धारा 5 के अनुसार भूटानियों पर भी विदेशी व्यापार के सम्बन्ध में वे ही कानूनी-कायदे लागू होते थे, जो भारतीय व्यापारियों पर होते थे ।
भूटान की मांग थी कि इस अड़चन को हटाया जाये । विदेश मन्त्री वाजपेयी की भूटान यात्रा के दौरान इस समस्या का समाधान हुआ । दूसरा भूटान की इस पुरानी मांग को भी स्वीकार किया गया कि उसे नई दिल्ली में राजदूतावास खोलने दिया जाये ।
जनता शासन ने भूटानी मिशन को न केवल राजदूतावास का दर्जा दिया अपितु उसे बांग्लादेश से भी राजनयिक सम्बन्ध स्थापित करने की सुविधा दी गयी । दोनों देशों के सम्बन्धों को घनिष्ट बनाने के लिए भूटान के युवा नरेश जिग्मे सिंघे वांगचुक ने दो बार भारत की यात्रा की तथा भारतीय विदेश मन्त्री वाजपेयी भी एक बार भूटान गये । वाजपेयी ने दावा किया कि भारत और भूटान के सम्बन्ध अत्यन्त उत्तम हैं तथा जो कुछ छोटी-मोटी अड़चनें थीं उन्हें दूर कर दिया गया है ।
मार्च 1978 में भूटान नरेश भारत आये तो भारत ने भूटान को चौथी पंचवर्षीय योजना के लिए 70 करोड़ रुपए का अनुदान स्वीकार किया । यह योजना कुल 77 करोड़ रुपए की थी । इस अवसर पर भूटान नरेश वांगचुक ने कहा था कि- ”भूटान को भारत की मित्रता पर भरोसा है ।”
Essay # 4. भारत-भूटान सम्बन्ध (1980-2011):
जून 1981 में विदेश मन्त्री पी.वी.नरसिंह राव थिम्पू की सद्भावना यात्रा पर गये । भारत ने भूटान की पांचवीं विकास योजना (1981-87) के लिए 139 करोड़ रुपए देने का प्रस्ताव किया । भूटान को पारो से कोलकाता तक अन्तर्राष्ट्रीय विमान सेवा प्रारम्भ करने की अनुमति दी गयी । असम-पश्चिम बंगाल के साथ सीमा निर्धारण के लिए खम्भे लगाये गये और भारत ने भूटान में रहने वाले 1,500 तिब्बती शरणार्थियों को लेना स्वीकार कर लिया ।
भारत और भूटान के बीच 10 दिसम्बर 1983 को एक व्यापारिक समझौता हुआ । इसमें भारत ने वायदा किया कि भारत भूटान के व्यापार को अन्य बाहरी देशों के साथ बढ़ाने में मदद करेगा । सन् 1984 में भारत और भूटान के बीच दूर संचार और माइक्रोवेव की व्यवस्था की गयी ।
भारत और भूटान के बीच सम्बन्धों को पुख्ता करने के लिए प्रधानमन्त्री राजीव गांधी ने 29 सितम्बर, 1985 से 1 अक्टूबर, 1985 तक भूटान की यात्रा की । इससे पूर्व फरवरी 1985 में भूटान नरेश ने भारत की यात्रा की ।
महामहिम नरेश जिग्मे सिंग्ये वांगचुक ने वर्ष 1990 के दौरान जनवरी फरवरी व नवम्बर में तीन बार भारत की यात्रा की । आपसी हित के द्विपक्षीय और बहुपक्षीय मामलों पर विचार-विमर्श में विचारों की परम समानता और प्रगाढ़ता प्रकट हुई ।
नवम्बर 1990 में भूटान के नरेश की भारत यात्रा के दौरान समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर हुए जिसके अनुसार भारत को क्रमश: 1000 मेगावाट और 600 मेगावाट की टाला पनबिजली परियोजना और वांगचू जलाशय योजना के सम्बन्ध में विस्तृत परियोजना रिपोर्टें तेयार करनी हैं ।
भारत के वाणिज्य मन्त्री की यात्रा के दौरान 2 मार्च, 1990 को थिम्पू में एक नये भारत-भूटान व्यापार और वाणिज्य समझौते (1990-95) पर हस्ताक्षर हुए । इसमें दोनों देशों के बीच मुक्त व्यापार जारी रखने की व्यवस्था की गयी और प्रवेश प्रक्रिया को सरल बनाने तथा इसी प्रकार की दूसरी सुविधाओं की व्यवस्था के अतिरिक्त इसमें भूटानी गैर-सरकारी व्यापारियों के लिए भी व्यापार की छूट दी गयी ।
योजना आयोग के उपाध्यक्ष श्री प्रणब मुखर्जी दिसम्बर 1991 में भूटान गये और इससे पूर्व विस्तृत तकनीकी विचार-विमर्श के लिए विशेष सचिव (योजना आयोग) के नेतृत्व में एक शिष्टमण्डल भूटान गया । महामहिम नरेश वांगचुक ने जनवरी, 1993 तथा दिसम्बर 1994 में भारत की यात्रा की तथा उन्होंने राष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री तथा भारत सरकार के अन्य वरिष्ठ मन्त्रियों के साथ आपसी हित पर बातचीत की ।
प्रधानमन्त्री पी.वी. नरसिंह राव 21-22 अगस्त, 1993 को भूटान की सद्भावना यात्रा पर गए, यह यात्रा लाभप्रद रही और इससे भूटान में चल रही कई परियोजनाओं के सहयोग को बढ़ाने में मदद मिली । भारत के विदेशमन्त्री 10 से 12 अगस्त, 1996 तक और मन्त्रिमण्डल सचिव 21 से 25 मई, 1996 तक भूटान की यात्रा पर गए ।
भूटान से महामहिम भूटान नरेश 6 से 9 जनवरी, 1997 तथा 5-8 अक्टूबर, 1998 तक भारत की यात्रा पर आए । भूटान के विदेशमन्त्री 17-26 अप्रैल, 2000 तक भारत की यात्रा पर आए । भारत के विदेश सचिव 7-9 मार्च, 2000 तथा 19-21 अक्टूबर, 2000 तक भूटान की यात्रा पर गए । सचिव (डाक) की 30 मार्च से 2 अप्रैल, 2000 की भूटान यात्रा के समय डाक सेवा में सम्भावित सहयोग की सम्भावनाएं तलाशी गईं ।
भूटान नरेश जिग्मे सिंघे वांगचुक की जनवरी 2005 में पाच दिन की भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच रेल सम्पर्क स्थापित करने के ऐतिहासिक सहमति पत्र पर हस्ताक्षर हुए । इस सहमति पत्र के अन्तर्गत बंगाल व असम से भूटान के सीमावर्ती केन्द्रों के लिए रेल नेटवर्क के विस्तार के लिए सम्भाव्यता का अध्ययन किया जाएगा ।
हाल ही में भारत सरकार ने भूटान की सरकार को 4,000 से अधिक इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीनें उपहार स्वरूप दीं । इन मशीनों का उपयोग चुनावों के अभ्यास में सफलतापूर्वक किया गया । भारत सरकार द्वारा प्रतिनियुक्ति चुनाव आयोग के अधिकारियों ने अप्रैल/मई 2007 में भूटान में चुनावों के अभ्यास का पर्यवेक्षण किया ।
Essay # 5. भूटान के नए नरेश की भारत यात्रा (फरवरी 2007) और नई मैत्री संधि पर हस्ताक्षर:
भूटान के नए नरेश जिग्मे सिंग्ये खेसर नामग्याल वांगचुक फरवरी 2007 में 6 दिन की भारत की यात्रा पर आए । नरेश के रूप में कार्यभार ग्रहण करने के बाद उनकी यह पहली भारत यात्रा थी । उनकी इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य दोनों देशों के बीच मैत्री की नई संधि पर हस्ताक्षर करना था ।
इस नई संधि ने 57 वर्ष पूर्व 8 अगस्त, 1949 को दार्जिलिंग में हस्ताक्षरित मैत्री संधि का स्थान लिया है । नई संधि में भारत-भूटान सम्बन्धों में भारत की भूमिका मार्गदर्शक की बजाय अब एक सहयोगी राष्ट्र की हो गई है । संशोधित संधि में मुख्यत: 1949 की मैत्री संधि के अनुच्छेद 2 व 6 में संशोधन किए गए हैं । अनुच्छेद 6 में किए गए संशोधन से भूटान को अब भारत की अनुमति के बिना भी अन्य देशों से गैर-घातक सैन्य उपकरण आयात करने का अधिकार मिल गया है ।
Essay # 6. प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी एवं राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की भूटान यात्रा (जून एवं नवम्बर 2014):
प्रधानमन्त्री ने विदेश मन्त्री के साथ अपनी 15-16 जून, 2014 को भूटान की अपनी पहली विदेश यात्रा की । मई, 2014 में प्रधानमन्त्री के शपथग्रहण समारोह के लिए सार्क नेताओं के भारत दौरे के बाद जल्दी ही प्रधानमन्त्री की दक्षिण एशिया के हमारे घनिष्ठ तथा मित्रवत पड़ोसियों में से एक का दौरा प्रतीकात्मक था जो हमारे निकट पड़ोसी को प्रदान की जाने वाली सर्वोच्च प्राथमिकता को प्रदर्शित करता है ।
प्रधानमन्त्री के पारो से थिम्पू आने और जाने के दौरान 50 किलोमीटर रास्ते के आस-पास भूटानी जनता द्वारा गर्मजोशी से स्वागत किया गया । इस दौरे के दौरान प्रधानमन्त्री ने भूटान नरेश प्रधानमन्त्री श्री शेरिंग टोब्गे और विपक्ष के नेता, डॉ. पेमा ग्याम्तशो से मुलाकात की ।
प्रधानमन्त्री ने संसद के संयुक्त सत्र को सम्बोधित किया, 600 मेगावाट कोलोम्छु जलविद्युत परियोजना की नींव रखी, और 79 करोड़ रुपए की भारत सरकार की सहायता वाली परियोजना, उच्चतम न्यायालय के भवन का उद्घाटन किया ।
प्रधानमन्त्री ने भूटान को आश्वस्त किया कि भारत सरकार वर्ष 2013-18 के भूटान की 11वीं पंचवर्षीय योजना के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को पूरा करेगी जिसमें योजनागत सहायता 4,500 करोड़ रुपए है और आर्थिक प्रोत्साहन योजना के लिए 500 करोड़ रुपए है ।
प्रधानमत्री ने कतिपय अनिवार्य खाद्य मदों पर मात्रात्मक प्रतिबन्धों से भूटान को छूट दिए जाने और नेहरू-वांगछु छात्रवृत्ति को दोगुना करके प्रति वर्ष 2 करोड़ रुपए करने के निर्णय के बारे में बताया और भूटान के प्रत्येक 20 जिलों को एक ई-लाईब्रेरी उपहार में देने की घोषणा की ।
राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी ने भूटान नरेश महामहिम जिम्मे खेसर नामोल वांगचुक के निमन्त्रण पर 7-8 नवम्बर, 2014 को भूटान का राजकीय दौरा किया । इस यात्रा के दौरान राष्ट्रपति ने नरेश, चौथे नरेश और भूटान के प्रधानमन्त्री के साथ द्विपक्षीय तथा क्षेत्रीय अनेक मुद्दों पर विस्तृत बातचीत की । उन्होंने कॉन्वेंशन केन्द्र, थिम्पू में ‘भारत-भूटान सम्बन्धों’ पर भाषण दिया । इस यात्रा के दौरान, राष्ट्रपति ने राजदूत की छात्रवृति को दोगुना करके प्रति वर्ष 2 करोड़ रुपए करने की घोषणा की ।
उन्होंने भूटान में भारत सरकार की सहायता वाली तीन परियोजनाएं प्रारम्भ की नामत:
(1) स्कूल सुधार कार्यक्रम (348.72 करोड़ रुपए),
(2) पूर्व-पश्चिम राजमार्ग को दो लेन का बनाना (463.657 करोड़ रुपए) और
(3) जिग्मे वांग्चुक विद्युत प्रशिक्षण संस्थान (33.7 करोड़ रुपए) ।
इस यात्रा के दौरान, भूटान ने नालन्दा विश्वविद्यालय की स्थापना पर समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए और पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन सम्मेलन से बाहर बांग्लादेश के बाद ऐसा करने वाला दूसरा देश बन गया ।
Essay # 7. भारत-भूटान आर्थिक सम्बन्ध:
आर्थिक क्षेत्र में भारत ने भूटान की धन और जन से अधिक सहायता की है । भूटान की कृषि, सिंचाई, सड़क परियोजनाओं में भारत ने निरन्तर सहयोग दिया है । जिन प्रमुख परियोजनाओं में भारत भूटान की सहायता कर रहा है उनमें प्रमुख हैं-चुक्ख हाईडिल परियोजना और पेनडेना सीमेण्ट संयन्त्र । भारत ने पेनडेना में सीमेण्ट कारखाना खोलने के लिए 1 करोड़ रुपए की सहायता दी है । भारत ने भूटान के सचिवालय के निर्माण तथा पुराने मठों व विहारों के जीर्णोद्धार के लिए आर्थिक सहायता दी है ।
पूर्ण रूप से भारत की सहायता से निर्मित 50 कि. वा. के भूटान प्रसारण केन्द्र का मार्च, 1991 में उद्घाटन और जून, 1991 में 336 मे.वा. की चुक्ख जल परियोजना का, जिनसे भूटान को आधे से अधिक आय प्राप्त होती है भूटान को सौंपना दोनों देशों के बीच बढ़ते हुए आर्थिक और तकनीकी सहयोग का उदाहरण है ।
भारत से सहायता प्राप्त संगम पुल नाम की एक अन्य परियोजना का जून, 1991 में उद्घाटन किया गया । सितम्बर 1991 में भूटान नरेश की भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच एक नये वायु सेवा करार पर हस्ताक्षर किये गये ।
भारत ने भूटानी विद्यार्थियों को माध्यमिक एवं उच्चतर शिक्षा तथा विभिन्न क्षेत्रों में प्रशिक्षण के अवसर प्रदान करना जारी रखा । लगभग 100 भूटानी विद्यार्थी भारत सरकार की योजनाओं और कोलम्बो योजना के अन्तर्गत छात्रवृत्तियां ले रहे हैं ।
भूटान की वीं पंचवर्षीय योजना (1992-97) जुलाई, 1992 में शुरू हुई थी । जिसके लिए भारत ने कुल मिलाकर 750 करोड़ रुपए की सहायता दी । आठवीं पंचवर्षीय योजना के क्रियान्वयन (1997-2002) में भारत सरकार ने वचनबद्धता के रूप में 900 करोड़ रुपए अनुमोदित किए ।
इस कुल वचनबद्धता में से 500 करोड़ रुपए परियोजनाबद्ध सहायता के लिए और शेष 400 करोड़ रुपए भूटानु के लिए विकास राज सहायता के रूप में प्रदान किए गये । भारत भूटान की चल रही वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान सहायता करने के लिए वचनबद्ध है ।
भूटान में भारत की सहायता से चल रही पिछली परियोजनाओं से प्राप्त राजस्व में बढ़ोतरी की वजह से पंचवर्षीय योजनाओं में प्रतिशतता के हिसाब से भारत के योगदान में अपेक्षाकृत कमी आई है । भूटान नरेश जुलाई 2006 में छ: दिवसीय दौरे पर भारत आए और 29 जुलाई को प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने भूटान नरेश जिग्मे वांग्चुक से क्षेत्रीय और द्विपक्षीय मसलों पर बातचीत की ।
भूटान ने जलविद्युत और व्यापार क्षेत्र से जुड़े मसलों पर भारत के साथ तीन समझौतों पर हस्ताक्षर किए । समझौते के तहत भारत 2020 तक भूटान से न्यूनतम 5000 मेगावाट बिजली का आयात करेगा । दोनों देशों ने व्यापार व्यवसाय एवं पारगमन से सम्बन्धित एक नए समझौते पर 28 जुलाई को हस्ताक्षर किए । यह समझौता 28 फरवरी 1995 को हुए व्यापार एवं वाणिज्य समझौते के स्थान पर लागू होगा ।
राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभासिंह ने विदेशमन्त्री और यूपीए की अध्यक्षा के साथ भूटान की शाही सरकार के आमन्त्रण पर 5-8 नवम्बर, 2008 को भूटान का दौरा किया और भूटान नरेश महामहिम जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक के औपचारिक राज्याभिषेक में हिस्सा लिया ।
अप्रैल, 2008 में भूटान के लोकतान्त्रिक संवैधानिक राजतन्त्र बनने के बाद प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह ने 16-17 मई, 2008 को पहले विदेशी प्रतिनिधि के रूप में भूटान की यात्रा की और पन-बिजली क्षेत्र में द्विपक्षीय सहयोग को सघन करने के सम्बन्ध में सकारात्मक चर्चा की ।
उन्होंने यह घोषणा भी की कि भारत सरकार अगले पांच वर्षों के दौरान 10,000 करोड़ रुपए की आर्थिक मदद देगी जिसका उपयोग भूटान की 10वीं पंचवर्षीय योजना में भारत सरकार की सहायता और पन-बिजली एवं अवसंरचना की बड़ी परियोजनाओं को विकसित करने के लिए भी किया जाएगा ।
भूटान में पन-बिजली विकास पर अधिकार प्राप्त संयुक्त दल की पहली बैठक 17 मार्च, 2009 को नई दिल्ली में आयोजित की गई और उसमें भूटान में 10,000 मेगावाट पन-बिजली के विकास से सम्बन्धित मुद्दों पर चर्चा की गई ।
16वें सार्क शिखर सम्मेलन के बाद 30 अप्रैल, 2010 को डॉ.मनमोहन सिंह की भूटान नरेश जिम्मे खेसर नामग्याल के साथ द्विपक्षीय संबंधों पर चर्चा हुई । छिपेन रिगपेल अर्थात् Total Solutions नाम की जिस आई टी परियोजना का उद्घाटन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 30 अप्रैल, 2010 को थिम्पु में किया, उससे भूटान की 7.08 लाख जनसंख्या में से आधी जनसंख्या अगले 5 वर्षों में कम्प्युटर साक्षर होगी ।
प्रधानमन्त्री ने दो जल विद्युत परियोजनाओं-मांगदेछू परियोजना तथा पुनदसांगहू-II परियोजना की भी आधार शिला रखी । इन परियोजनाओं की कुल क्षमता 1710 मेगावाट होगी तथा इनसे उत्पादित विद्युत का अधिकांश भाग भारत को ही निर्यात किया जायेगा । इन परियोजनाओं की कुल लागत का 70 प्रतिशत भाग ऋण के रूप में व शेष 30 प्रतिशत अनुदान के रूप में भारत द्वारा उपलब्ध कराया जाएगा ।
भारत भूटान का सबसे बड़ा व्यापार तथा विकास भागीदार बना हुआ है । भूटान की 11वीं पंचवर्षीय योजना के लिए 4,500 करोड़ रुपए की भारत सरकार की प्रतिबद्धता के अन्तर्गत विमुक्तियां समय पर वितरित की जाती रहीं जिसके लिए प्रधानमन्त्री श्री शिरिंग टोगे ने नवम्बर 2014 में प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी से अपनी मुलाकात के समय उन्हें धन्यवाद दिया ।
भारत सरकार तीन जलविद्युत परियोजनाओं नामत: पुनातसांग्छु-I (1200 मेगावाट), पुनातसांग्छु-II (1020 मेगावाट) और मांगदेछु (720 मेगावाट) के निर्माण में भूटान की सहायता कर रही है जिसे 2017-18 में पूरा किए जाने की प्रत्याशा है ।
इससे पहले, 22 अप्रैल, 2014 को भारत ने भूटान के साथ चार संयुक्त उद्यम जलवियुत परियोजनाओं पर अन्तर-सरकारी करार और भूटान में 600 मेगावाट कोलान्छु जलविड़त परियोजना के कार्यान्वयन पर हस्ताक्षर किए ।
Essay # 8. भारत और भूटान के बीच मतभेद के मुद्दे:
भारत और भूटान के बीच कुछ मनमुटाव 1949 की भारत-भूटान मैत्री सन्धि की धारा 2 की व्याख्या को लेकर है । इस धारा में कहा गया है कि भारत भूटान के आन्तरिक मामलो में कोई दखल नहीं देगा, लेकिन विदेशी मामलों में भूटान को भारत की सलाह-मशविरा से ही चलना पड़ेगा ।
भूटान का मत है कि इस धारा की मनचाही व्याख्या नहीं की जा सकती । इसके अतिरिक्त, भूटान का कहना है कि 1949 से समय बहुत बदल चुका है अत: इस धारा में संशोधन करना अति आवश्यक है । भारत का मत है कि 1949 की सन्धि के अन्तर्गत भारत भूटान की रक्षा तक के लिए बाध्य है । भूटान इस प्रकार की व्याख्या का खण्डन करता है । कामचलाऊ सरकार (1979-80) के समय वांगचुक ने 1949 की सन्धि की धारा 2 पर पुनर्विचार की बात कही थी ।
भारत-भूटान सम्बन्धों में कतिपय गौण मुद्दों को लेकर भी उत्तेजना पैदा होती रही है । ये हैं:
(a) टान के आयात-निर्यात पर भारत के कानूनों का लागू होना । 1972 के व्यापार समझौते की धारा पांच में इसकी व्यवस्था है । नवम्बर 1977 में भारत के तत्कालीन विदेश मन्त्री वाजपेयी ने अपनी भूटान यात्रा के दौरान उसे आश्वासन दिया था कि ये नियम अब भूटान के माल पर लागू नहीं होंगे ।
(b) पर्यटकों के लिए आन्तरिक रेखा परमिट व्यवस्था । भूटान का मत है कि विदेशी पर्यटकों को भूटान आने में परमिट न मिलने से उसे राजस्व की हानि होती है अत: इसमें भारत को उदार नीति अपनानी चाहिए ।
विभिन्न अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दों पर भी भूटान ने भारतीय दृष्टिकोण से भिन्न नीति अपनायी है । हवाना गुटनिरपेक्ष सम्मेलन (1979) में जहां भारत बहुसंख्यक निर्गुट देशों के साथ कम्पूचिया की सीट को खाली रखने के पक्ष में था वहां भूटान ने कम्पूचिया की सीट पोल पोत समूह को देने की वकालत की ।
भारत जहां परमाणु अप्रसार सन्धि को पक्षपातपूर्ण मानता है वहां भूटान इस सन्धि के पक्ष में है । जून 1981 में भूटानी विदेश मन्त्री ने -राष्ट्रीय असेम्बली में घोषणा की कि भूटान चीन के साथ सीधे द्विपक्षीय वार्ता करना चाहता है ताकि भूटान-चीन सीमा को चिहित किया जा सके ।
चीन की भूटान में घुसपैठ निश्चित ही भारत की चिन्ता का कारण है । चीन ने पिछले दिनों में पशुओं भेड़ों को चराने के बहाने भूटान की सीमाओं का अतिक्रमण किया । तिब्बती काफी अन्दर तक भूटान की सीमाओं में चले आये ।
दूसरा भारत की चिन्ता का कारण भूटान में रह रहे वे 4,000 तिब्बती शरणार्थी हैं जो 1959 से वहां, रह रहे हैं और जिन्हें भूटान की राष्ट्रीय असेम्बली ने 1979 में एक प्रस्ताव पास कर कहा है कि वे या तो भूटान की नागरिकता स्वीकार करें और भूटान समाज में घुल-मिल जायें या फिर उन्हें निकाल बाहर किया जाये अर्थात् उन्हें तिब्बत वापस भेज दिया जाये ।
इस चेतावनी के पीछे चीन का हाथ है जो भारत के राष्ट्रीय हित और आदर्श के विपरीत है । यदि तिब्बती शरणार्थी भूटान नेपाल या भारत की नागरिकता ग्रहण कर लेते है तो फिर तिब्बत की स्वाधीनता का मसला ही समाप्त हो जाता है ।
निष्कर्ष:
भूटान की सामरिक अवस्थिति का लाभ उठाने के लिए चीन ही नहीं, अमरीका, पूर्व सोवियत संघ तथा अन्य यूरोपीय राष्ट्र भी लालायित रहे हैं । यदि भूटान को एकदम खोल दिया जाए तो वह भारतीय सुरक्षा के लिए भी खतरनाक सिद्ध हो सकता है लेकिन एक सार्वभौम राष्ट्र को जो कि संयुक्त राष्ट्र संघ का सदस्य है भारत एक सन्धि के आधार पर कितना नियन्त्रित कर सकता है यह प्रश्न भी विचारणीय है ।
Essay # 9. पड़ोसी देशों के प्रति भारतीय विदेश नीति का मूल्यांकन:
पड़ोसी देशों के साथ भारत के सम्बन्धों के विवेचन से यह स्पष्ट परिलक्षित होता है कि भारतीय विदेश नीति इस क्षेत्र में बुरी तरह असफल रही है । पाकिस्तान हो या श्रीलंका चीन हो या बांग्लादेश नेपाल हो या भूटान सभी पड़ोसी देशों के साथ भारत के कटु विवाद उभरते रहे हैं । चीन, पाकिस्तान और श्रीलंका के सन्दर्भ में बल प्रयोग तक की आवश्यकता पड़ चुकी है ।
प्रखर राजनयिक डॉ. शिशिर गुप्ता के अनुसार इन छोटे पड़ोसी देशों के लिए यह एक मनोवैज्ञानिक विवशता है कि वे अपनी स्वतन्त्र राष्ट्रीय पहचान प्रमाणित करने के लिए भारत विरोध का स्वर निरन्तर मुखर करते रहें ।
इनमें से अनेक पड़ोसी देशों ने समय-समय पर बाहरी शक्तियों को हस्तक्षेप का आमन्त्रण देकर भारत को कृत्रिम रूप से सन्तुलित करने का प्रयत्न किया है । इसमें पाकिस्तान का अमरीका के साथ सैनिक गठबन्धन नेपाल का चीन के प्रति झुकाव और श्रीलंका की हिन्द महासागरीय नीति उल्लेखनीय है ।
यदि भारत अपनी सामर्थ्य का प्रदर्शन भर करता है तो उस पर भयादोहन का आक्षेप लगाया जाता है और यदि भारत अपनी सदाशयता प्रमाणित करने के लिए रियायतें देता है तो पड़ोसी देश उसकी दुर्बलता का लाभ उठाने की कोशिश करते हैं । विद्वानों को आशा है कि ‘सार्क’ जैसे संगठन से भारत को पड़ोसियों के साथ अधिक घनिष्ठ और गतिशील सम्बन्ध स्थापित करने में मदद मिलेगी ।