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Here is an essay on ‘Indo-Japan Relations’ especially written for school and college students in Hindi language.
भारत-जापान सम्बन्धों का इतिहास बहुत पुराना है । ईसा से छठी शताब्दी पूर्व जापान में बौद्धधर्म के प्रसार के माध्यम से दोनों देश पहली बार एक-दूसरे के निकट आए । कवि रबीन्द्रनाथ टैगोर ने वर्ष 1916,1924 एवं 1929 में जापान की यात्राएं कीं । रूस पर जापान की विजय (1905) ने भारत के स्वाधीनता सेनानियों को प्रेरणा दी ।
जापान शासन की मदद से ही सुभाष बोस ने सिंगापुर में ‘आजाद हिन्द फौज’ की स्थापना की थी । जापान द्वारा द्वितीय महायुद्ध की समाप्ति के दौरान आत्म समर्पण करने पर भारत ही ऐसा देश था जिसने जापान के प्रति सहानुभूति दिखायी । अन्तर्राष्ट्रीय सैन्य अधिकरण ने जब जापान के 28 युद्धबन्दियों को फांसी की सजा सुनायी तो भारत के न्यायाधीश राधा विनोद पॉल ने इस निर्णय पर अपना विरोध दर्ज किया ।
भारत-जापान सम्बन्धों के इतिहास को चार चरणों में विभक्त कर देखा जा सकता है:
(1) उत्सुकतापूर्ण मित्रता की शुरुआत (1955-62),
(2) राजनीतिक मतभेदों के बावजूद आर्थिक सहयोग की ओर बढ़ते चरण (1963-84),
(3) सुदृढ़ आर्थिक सहयोग के नए दिशा संकेत (1985-90),
(4) सामरिक निकटता के साथ आर्थिक सहयोग (1991-2014) ।
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जापान वर्ष 1958 से भारत को सरकारी विकास सहायता प्रदान करता आ रहा है । भारत को जापानी सरकारी विकास सहायता ऋण सहायता, सहायतानुदान तथा तकनीकी सहयोग के रूप में जापान अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग अभिकरण के माध्यम से प्राप्त होता है । जापान भारत को सहायता देने वाला सबसे बड़ा द्विपक्षीय दाता है ।
(1) उत्सुकतापूर्ण मित्रता की शुरुयात (1955-62):
द्वितीय महायुद्ध के बाद भारत-जापान सम्बन्धों की शुरुआत धीमी किन्तु उत्सुकतापूर्ण रही । 1951 में सम्पन्न सेन-फ्रांसिस्को शान्ति सन्धि में शामिल होने से भारत ने इंकार कर दिया तथापि भारत ने 9 जून, 1951 को एक अलग से जापान के साथ शान्ति सन्धि पर हस्ताक्षर किए ।
इस सन्धि के अन्तर्गत भारत ने जापान से युद्ध से प्राप्त क्षतिपूर्ति के अपने लाभ को त्याग दिया; भारत ने सुदूर-पूर्व आयोग के सदस्य के नाते जापान के सम्बन्ध में लिए गए निर्णयों में सहानुभूति का रुख अपनाया तथा अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों में जापान की भागीदारी को प्रोत्साहित किया ।
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जापानी बौद्धिक का ने भारत द्वारा जापान को दिए गए सम्बल की सराहना की तथा कोरिया संकट व सेन-फ्रांसिस्को सन्धि के समय नेहरू की भूमिका की सराहना की । दोनों देशों के मध्य राजनीतिक सम्बन्धों को पुख्ता करने के लिए भारत के उपराष्ट्रपति डॉ. राधाकृष्णन ने 1956 में, प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू ने अक्टूबर 1957 में तथा राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने 1960 में जापान की यात्राएं कीं ।
इसके उत्तर में 1957 एवं 1961 में जापान के प्रधानमन्त्री नोबुसुके एवं ईकेदा हयातो ने तथा 1960 में राजकुमार अकीहितो व राजकुमारी मिचिको ने भारत की यात्रा की । फरवरी, 1958 में दोनों देशों के मध्य एक व्यापारिक समझौते पर हस्ताक्षर हुए जिसके अन्तर्गत एक-दूसरे को ‘अति विशिष्ट राष्ट्र’ का दर्जा दिया गया । 1958 में ही एक अन्य समझौते द्वारा जापान ने भारत को 18 बिलियन येन का कर्ज उपलब्ध कराया ।
इसके बाद चार और ऋण भारत को दिए गए और मार्च, 1966 तक भारत को 118.8 बिलियन येन के पांच ऋण प्राप्त हुए । फरवरी 1960 में दोनों देशों के बीच हुई आपसी सहमति से व्यापार पर लगने वाली दोहरी कर व्यवस्था को भी हटा दिया गया ।
इस प्रकार प्रारम्भिक दशक में दोनों देशों में राजनीतिक सम्बन्धों के साथ-साथ मजबूत आर्थिक सम्बन्धों की नींव रखी गई । अक्टूबर, 1959 में दोनों देशों के मध्य एक सांस्कृतिक समझौता भी हुआ । इन सबके बावजूद अनेक मुद्दों पर दोनों देशों में भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण देखे गए ।
दोनों देशों में आर्थिक विकास की नीतियों में अन्तर देखा गया । जहां भारत एक नियन्त्रित आर्थिक नीति के साथ-साथ आत्मनिर्भर बनने के लिए सीमित आयात का समर्थक रहा वहीं जापान मुक्त बाजार एवं निर्यातोन्मुखी नीति का समर्थक ।
जहां जापान ने अमरीकी सैन्य गठबन्धनों की नीति का समर्थन किया वहीं भारत ने गुटनिरपेक्षता की नीति अपनायी । भारत जहां उपनिवेशवाद एवं साम्राज्यवाद का विरोधी था वहीं जापान अमरीका जैसी साम्राज्यवादी ताकत के निकट था । जब भारत ने 1961 में पूर्व पुर्तगाली उपनिवेश गोवा को मुक्त कराने की कार्यवाही की तो जापान ने भारत का खुले शब्दों में समर्थन नहीं किया ।
इसी प्रकार 1962 में भारत पर चीनी आक्रमण के समय जापान के तटस्थ रुख ने भारत को निराश किया । संक्षेप में, प्रारम्भिक वर्षों में राजनीतिक एवं आर्थिक सम्बन्धों की सक्रिय पहल के बावजूद दोनों देशों की विदेश नीतियों एवं अनेक मुद्दों पर दृष्टिकोणों में विभिन्नता बनी रही ।
(2) राजनीतिक मतभेदों के बावजूद आर्थिक सहयोग की ओर बढ़ते चरण (1963-84):
भारत-जापान में अनेक मुद्दों पर राजनीतिक मतभेद बढ़ते गए । 1965 में भारत-पाक युद्ध में जापान ने भारत के दृष्टिकोण का समर्थन नहीं किया । मामले पर गुण-अवगुण के आधार पर निर्णय न लेकर जापान ने दोनों ही देशों की आर्थिक सहायता रह कर दी ।
1966 में जब जापान ने दक्षिण-पूर्व एशिया के मन्त्रियों का सम्मेलन बुलाया तो वह भारत को इससे दूर रखने की नीति अपनाने लगा । 1971 की भारत-सोवियत मैत्री सन्धि के बाद जापान ने भारत और पाकिस्तान को दी जाने वाली आर्थिक सहायता पर रोक लगा दी ।
जापान ने परमाणु अप्रसार सन्धि पर 1970 में ही हस्ताक्षर कर दिए जबकि भारत ने उसे भेदभावपूर्ण बताते हुए हस्ताक्षर करने से इकार कर दिया । जेब भारत ने 1974 में शान्तिपूर्ण उद्देश्यों के लिए पोखरण-I का विस्फोट किया तो जापान ने तीखी प्रतिक्रिया की ।
1978-79 के वर्षों में वियतनाम, कम्बोडिया और अफगानिस्तान में सोवियत हस्तक्षेप जैसे मुद्दों पर भी दोनों देशों में मतभेद देखे गए । इन्हीं दिनों जापान द्वारा कश्मीर मुद्दे पर भारत व पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता करने के प्रस्ताव को भारत ने अस्वीकार कर दिया ।
उपर्युक्त राजनीतिक मतभेदों के बावजूद भी इस काल में भारत-जापान आर्थिक सहयोग के मार्ग पर आगे बढ़ते गए । आर्थिक सहयोग का पता लगाने के लिए 1967 में दोनों ने ‘भारत-जापान व्यापार सहयोग समिति’ का गठन किया । सन् 1969 में श्रीमती इन्दिरा गांधी एवं 1973 में विदेशी मन्त्री स्वर्ण सिंह ने जापान की यात्राएं कीं ।
जून 1976 में दोनों देशों में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के सहयोग का समझौता सम्पन्न हुआ । राजीव गांधी के कार्यकाल से भारतीय अर्थव्यवस्था में उदारीकरण की प्रक्रिया के सूत्रपात से दोनों देश आर्थिक सहयोग के मार्ग पर तेजी से चलने लगे ।
(3) सुदृढ़ आर्थिक सहयोग के नए दिशा संकेत (1985-90):
मई, 1984 में जापान के प्रधानमन्त्री नकासोनी यशुहिरो की भारत यात्रा से दोनों देशों में सुदृढ़ आर्थिक सहयोग के नए दिशा संकेत परिलक्षित हुए । नवम्बर 1985 में प्रधानमन्त्री राजीव गांधी ने टोक्यो की अपनी ऐतिहासिक यात्रा की और 1988 तक राजीव दो बार और जापान की यात्रा पर गए ।
1985 में जापान ने ‘आसियान’ देशों के साथ प्लाजा समझौते पर हस्ताक्षर किए और उसे व्यापार के लिए दक्षिण एशिया-खासतौर से भारत विशेष रूप से लाभकारी क्षेत्र नजर आने लगा । इस युग में जापान भारत को आर्थिक सहायता प्रदान करने वाला सबसे महत्वपूर्ण देश बन गया । जापान की भारत को दी जाने वाली सहायता 1981 के 0.1 प्रतिशत से बढ्कर 1989 में 14.4 प्रतिशत हो गई ।
1970 के 500 मिलियन डॉलर राशि का व्यापार 1990 में 4 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया । भारत अब जापान को अपने निर्यात का 10.7 प्रतिशत भेजने लगा तथा जापान अब भारत के निर्यातक देशों की श्रेणी में सोवियत संघ व अमेरिका के बाद तीसरा महत्वपूर्ण देश बन गया ।
मार्च 1991 तक जापान का भारत में कुल पूंजी निवेश 196 मिलियन डॉलर हो गया जो उसका अमेरिका व हॉलैण्ड के बाद विश्व का सबसे बड़ा तीसरा निवेश था । इसी प्रकार 1979 में दोनों के मध्य 12 संयुक्त उद्यम थे जो 1988 में 96 तक पहुंच गए ।
सन् 1987 में नर्मदा नदी पर बहुआयामी जलविद्युत उत्पन्न एवं नहरी सिंचाई परियोजना सरदार सरोवर बांध हेतु जापान ने 2.85 मिलियन येन का कर्ज प्रदान किया । भारत ने 1988 में जापान में ‘भारत महोत्सव’ का आयोजन किया जिसका उद्घाटन प्रधानमन्त्री राजीव गांधी ने किया । 1991 में जब भारत में भुगतान संगठन का संकट था तो-जापान ने भारत की भारी सहायता की ।
फिर भी इस अवधि में 1985 में दक्षेस की स्थापना को लेकर दोनों देशों में मतभेद रहे । जापान का मानना था कि अब इस क्षेत्र के सभी द्विपक्षीय मुद्दे इस संगठन के माध्यम से हल हों जबकि भारत द्विपक्षीय मुद्दों को इस मंच पर उठाने का पक्षधर नहीं था ।
इसी प्रकार अप्रवासी नियमों का उल्लंघन कर जापान में रह रहे भारतीयों की समस्या भी दोनों देशों में मतभेद का कारण रही । संक्षेप में, इस काल में भारत-जापान पुख्ता आर्थिक सम्बन्धों की नींव पड़ी । व्यापार और आर्थिक सहयोग के अनेक नए अवसर तलाशे गए ।
(4) सामरिक निकटता के साथ आर्थिक सहयोग (1991-2014):
पिछले डेढ़ दशक से जापान का भारत के प्रति दृष्टिकोण बदल रहा है और दोनों देशों के बीच काफी हद तक आर्थिक समझ विकसित हो गई है । भारत में अपनाए गए आर्थिक सुधारों एवं नई आयात-निर्यात नीति के बाद जापान को भारत में पूंजीनिवेश के व्यापक अवसर प्राप्त हुए हैं ।
पिछले एक दशक से दोनों देशों के व्यापार में सुधार हुआ है । भारत मुख्य: जापान से सामान्य मशीनरी, लोहा, बिजली के उपकरण, व्यावसायिक उपकरण, यातायात उपकरण आदि आयात करता है तथा जापान को कच्चा लोहा, हीरे, खालें, सिले हुए वस्त्र आदि निर्यात करता है ।
जापान भारत को द्विपक्षीय विकास सहयोग की सर्वाधिक राशि उपलब्ध कराता है । भारत को जापानी द्विपक्षीय ऋण ‘जापान अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग बैंक’ के माध्यम से प्राप्त होती है जिसे पहले विदेशी आर्थिक सहायता निधि के नाम से जाना जाता था ।
वर्ष 2004-05 में जापान सरकार ने आठ परियोजनाओं के लिए 1,34,466 मिलियन येन देने का वचन दिया था जो जापान सरकार द्वारा भारत को एक वित्तीय वर्ष में दी गई अब तक की सबसे बड़ी अधिकाधिक विकास सहायता ऋण वचनबद्धता है ।
वर्ष 2005-06 में 38 परियोजनाओं के लिए भारत को जापानी ओडीए का संवितरण 31.57 बिलियन येन था । भारत और जापान की बढ़ती निकटता को 1 अप्रैल, 2006 को उस समय और गति मिली जब जापान ने भारत को 5,910 करोड़ रु. (1,55,458 मिलियन येन) का ऋण देने का फैसला किया ।
यह भारत को जापान से मिलने वाला अब तक का सबसे बड़ा ऋण है । इस ऋण का उपयोग भारत में जापानी सहयोग से चलने वाली 10 बड़ी परियोजनाओं में होगा । इनमें दिल्ली मेट्रो रेल के दूसरे चरण के अतिरिक्त बेंगलुरू मेट्रो रेल व ग्रामीण विद्युतीकरण परियोजना शामिल हैं ।
जापान सरकार प्रतिवर्ष लगभग 3-4 बिलियन येन की अनुदान सहायता प्रदान करती है । जापान अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग अभिकरण परियोजना टाइप तकनीकी सहयोग क्रियान्वित करता है, जिसमें वे अपने विशेषज्ञों को तकनीकी मार्गदर्शन के लिए भारत भेजते हैं, भारतीय विशेषज्ञों को जापान में प्रशिक्षण प्रदान करते हैं तथा परियोजना क्रियान्वयन के लिए आवश्यक उपकरण की व्यवस्था करते हैं । भारत में उदारीकरण के बाद अब दोनों देश संयुक्त उद्यमों के माध्यम से भी नजदीक आ रहे हैं । जापान की कम्पनियों ने अब भारत में पूर्ण रूप से स्वयं संचालित कम्पनियां भी खोलनी शुरू कर दी हैं ।
प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह की जापान यात्रा (दिसम्बर, 2006):
भारतीय प्रधानमंत्री चार दिवसीय यात्रा पर 13 दिसम्बर, 2006 को टोक्यो पहुंचे । उसके अगले दिन जापानी प्रधानमन्त्री शिन्जो एबे ने अपने सरकारी आवास पर डॉ. सिंह का समारोहपूर्वक स्वागत किया । भारतीय प्रधानमन्त्री ने जापानी सम्राट एकी होतो एवं साम्राज्ञी से सपत्नीक मुलाकात की । इस अवसर पर भारतीय प्रधानमन्त्री ने कहा कि आर्थिक सम्बन्ध हमारे रिश्तों का आधार होना चाहिए और इस क्षेत्र में एक जोरदार पहल की जरूरत है ।
उसके बाद डॉ. सिंह ने जापानी संसद ‘डाइट’ के संयुक्त सत्र को सम्बोधित किया । अपने सम्बोधन में उन्होंने आर्थिक रिश्तों की बुनियाद को और मजबूत करने की आवश्यकता बताई तथा परमाणु निरस्त्रीकरण के प्रति भारत की प्रतिबद्धता व्यक्त की ।
भारत और जापान ने 15 दिसम्बर को अपने बीच विशेष आर्थिक साझेदारी पहल और आर्थिक भागीदारी समझौते पर बातचीत शुरू करने का निर्णय किया जिससे भारत के बुनियादी ढांचे एवं विनिर्माण क्षेत्र में जापानी निवेश को आकर्षित किया जा सकेगा । इसी दिन डॉ. सिंह एवं एबे के बीच हुई समग्र बातचीत के बाद एक संयुक्त वक्तव्य जारी किया गया जिसके मुताबिक जापान दिल्ली मेट्रो की तर्ज पर ही विभिन्न भारतीय शहरों में शहरी परिवहन प्रणाली के निर्माण में सहयोग करने के लिए इच्छुक है ।
दोनों देश भारत-जापान वैश्विक भागीदारी को मजबूत करते हुए द्विपक्षीय सम्बन्धों को उच्च स्तर तक पहुंचाने के लिए आठ चरणों वाले प्रयास करने पर भी सहमत हैं । डॉ. मनमोहन सिंह ने अमेरिकी संसद द्वारा पारित भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते के अलावा आर्थिक सहयोग द्विपक्षीय और क्षेत्रीय मुद्दों पर बातचीत की ।
दोनों नेताओं ने मुंबई-दिल्ली और दिल्ली-हावड़ा मार्ग पर कम्प्यूटर नियंत्रित बहुद्देश्यीय माल ढुलाई गलियारे को मूर्त रूप देने के लिए सहयोग तेज करने पर भी सहमति जताई । जापानी अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग एजेंसी (जेआईसीए) ने इस बड़ी परियोजना पर अपनी सिफारिश पहले ही सौंप दी है जिसमें भारी जापानी निवेश की उम्मीद है । वक्तव्य में भारत में जापान के निवेश से बहुउत्पाद विशेष आर्थिक क्षेत्र एवं समूह की स्थापना की भी बात कही गयी है ।
इन क्षेत्रों में विनिर्माण एवं प्रसंस्करण उद्योगों होटलों एवं मनोरंजन इकाइयों के साथ-साथ शैक्षणिक एवं प्रशिक्षण केन्द्रों की भी सुविधा मौजूद होगी । जापानी कम्पनियां ऊर्जा क्षेत्र में भी निवेश करेंगी । जापानी कम्पनियों की भागीदारी के लिए भारतीय पक्ष की ओर से तैयार किए गए प्रस्तावों में तमिलनाडु के चयूर में 400 मेगावाट क्षमता वाली तटीय बृहत् विद्युत परियोजना और अरुणाचल प्रदेश में 3000 मेगावाट क्षमता की लोही जलविद्युत परियोजना शामिल हैं ।
दोनों देश मध्य प्रदेश के जबलपुर में ‘इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी फॉर डिजाइन एंड मेन्युफैक्चरिंग’ के विकास के लिए गठजोड़ करने पर सहमत हो गए हैं । प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह ने 22-23 अक्टूबर, 2008 को जापान की यात्रा की । प्रधानमन्त्री शिन्जो एबे की यात्रा के दौरान यह सहमति हुई थी कि वर्ष 2010 तक 20 बिलियन अमरीकी डॉलर का व्यापार लक्ष्य पाने की कोशिश की जाएगी । वर्ष 2007-08 में दोनों ओर का व्यापार 9.89 बिलियन अमरीकी डॉलर रहा जो पिछले वर्ष की तुलना में 37% अधिक है ।
वर्ष 2010 के दौरान जापान के साथ भारत के सम्बन्धों की एक प्रमुख बात जापान के प्रधानमन्त्री श्री नवोतो कान के साथ वार्षिक शिखर बैठक करने के लिए 24-26 अक्टूबर, 2010 तक प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह की जापान यात्रा रही ।
दोनों प्रधानमन्त्रियों ने दो निम्नलिखित दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए ”अगले दशक में भारत-जापान सामरिक एवं वैश्विक भागीदारी का विजन” और ”व्यापक आर्थिक भागीदारी करार सम्पन्न किए जाने पर भारत और जापान के नेताओं के बीच संयुक्त घोषणा ।”
इसके अतिरिक्त भारत और जापान के बीच वीजा प्रक्रियाओं के सरलीकरण पर एक समझौता ज्ञापन पर भी हस्ताक्षर किए गए । प्रधानमन्त्री जी ने जापान के प्रधानमन्त्री के साथ व्यापक चर्चा की । जापान के रक्षा मन्त्री श्री तोशिमी किताजावा ने 30 अप्रैल, 1 मई, 2010 तक भारत का दौरा किया और रक्षा मन्त्री के साथ व्यापक बातचीत की । 15 जून, 2010 को जापान सरकार ने असैनिक परमाणु सहयोग के लिए भारत के साथ बातचीत आरम्भ करने सम्बन्धी अपने निर्णय की घोषणा की ।
प्रथम दो प्लस दो वार्ता का आयोजन 6 जुलाई, 2010 को भारत के विदेश सचिव एवं रक्षा सचिव और जापान के उप विदेश मन्त्री एवं प्रशासनिक उपमन्त्री के बीच किया गया । भारत और जापान के मध्य व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता (CEPA- Comprehensive Economic Partnership Agreement) 1 अगस्त, 2011 से लागू हो गया । इस पहल से वर्ष 2014 तक दोनों देशों के बीच व्यापार मौजूदा 12 अरब डॉलर से बढ़कर 25 अरब डॉलर हो जाने की सम्भावना है । भारत और जापान के मध्य व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते पर हस्ताक्षर 16 फरवरी, 2011 को किए गए थे ।
यह समझौता भारत के पूर्वी एशिया के साथ व्यापक आर्थिक भागीदारी को मजबूत करने के व्यापक एजेंडे का हिस्सा है जिसके अन्तर्गत आसियान, चीन, दक्षिण कोरिया, जापान, आस्ट्रेलिया तथा न्यूजीलैण्ड आदि आते हैं ।
व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते के अन्तर्गत दोनों देशों के बीच 10 वर्ष में आयात-निर्यात होने वाले 94 प्रतिशत उत्पादों पर शुल्क खत्म किया जाना है । भारत-जापान सेवा समझौते से दोनों देशों के मध्य दवा कृषि वस्त्र आभूषण रसायन पेट्रोलियम और सीमेंट उद्योगों को निवेश में बढ़ावा मिलेगा ।
कपड़ा समुद्री खाद्य पदार्थ और मसाले पर शुल्क खत्म होने से जापान के निर्यातकों को जबकि भारतीय निर्यातकों को मुख्य रूप से आम, खट्टे फल, मसाले, इंस्टेंट चाय, शराब, रसायन, सीमेंट और जेवरात के क्षेत्र में होगा ।
ज्ञातव्य हो कि सिंगापुर और दक्षिण कोरिया के बाद जापान तीसरा व पहला विकसित देश है, जिसके साथ भारत ने इस तरह का व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता किया है । वाणिज्य मन्त्रालय के अनुसार यह समझौता पूर्वी एशिया के साथ व्यापक आर्थिक भागीदारी को मजबूत करने के व्यापक एजेंडे का हिस्सा है ।
प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह ने 18 नवम्बर, 2012 को नोम पेन्ह, कम्बोडिया में पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन से समय निकाल कर जापान के प्रधानमन्त्री श्री योशीहीको नोदा से मुलाकात की । प्रथम भारत-जापान मन्त्री-स्तरीय आर्थिक संवाद पूर्व विदेश मन्त्री श्री एस एम कृष्णा और जापान के विदेश मन्त्री श्री कोईचीरो गेम्बा के बीच 30 अप्रैल, 2012 को नई दिल्ली में सम्पन्न हुआ ।
द्विपक्षीय आर्थिक सहयोग के लिए इस संवाद को महत्व देते हुए दोनों ओर से अनेक मन्त्रियों ने सहभागिता की जिसमें हमारी ओर से योजना वाणिज्य और उद्योग एवं रेल राज्य-मन्त्रियों के साथ जापान के आर्थिक व्यापार एवं उद्योग मन्त्री वित्तीय सेवाओं के मन्त्री तथा अन्य वरिष्ठ अधिकारी शामिल थे ।
भारत को जापानी सरकारी विकास सहायता ऋण ‘बिना शर्त ऋण’ हैं । अधिप्राप्ति अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धी बोली के माध्यम से की जाती है । ओडीए ऋण अधिकतर परियोजना से बंधा होता है । ब्याज दरें सामान्य परियोजनाओं के लिए 30 वर्षीय अवधि के साथ जिसमें 10 वर्ष की अनुग्रह अवधि शामिल है, 1.4 प्रतिशत प्रति वर्ष है । पर्यावरणीय परियोजनाओं के लिए ब्याज दर 10 वर्ष की अनुग्रह अवधि समाहित 40 वर्ष के लिए 0.30 प्रतिशत प्रतिवर्ष है ।
इसके अतिरिक्त जापान सरकार ने ऋण सम्बन्धी प्रारम्भिक शुल्क भी शुरू किया है जो ऋण राशि के 0.2% की दर से भुगतान करना है । यदि परियोजना संवितरण सहमति की अवधि में पूरा हो जाता है तो जेआईसीए उधार लेने वाले को 0.1% ऋण सम्बन्धी प्रारम्भिक शुल्क की प्रतिपूर्ति करेगा । ऋण सम्बन्धी प्रारम्भिक शुल्क अप्रैल 2013 से शुरू किया गया इसके बाद यह प्रतिबद्ध प्रभार का स्थान लेगा ।
जापान सरकार ने 1 जनवरी, 2013 से 31 दिसम्बर, 2013 तक भारत की सात परियोजनाओं के लिए 3 बिलियन जापानी येन (लगभग 20,618 करोड़ रुपए) की प्रतिबद्धता की है । 31 दिसम्बर, 2013 की स्थिति के अनुसार जापानी ऋण सहायता के साथ उनहत्तर परियोजनाएं क्रियान्वयनाधीन हैं । इन परियोजनाओं के लिए प्रतिबद्ध ऋण राशि 1,738.32 बिलियन जापानी येन (लगभग 91,966) करोड़ सपए है ।
प्रतिबद्धता आधार पर भारत को सरकारी विकास सहायता ऋण की संचयी प्रतिबद्धता 31 दिसम्बर, 2013 तक 3,902.87 बिलियन जापानी येन हो गई है । 1 जनवरी, 2013 से 31 दिसम्बर, 2013 तक भारत को सरकारी विकास सहायता ऋण संवितरण की राशि बिलियन जापानी येन (7,892.08 करोड़ रुपए) थी ।
जापान के प्रधानमन्त्री शिंजो अबे ने 25-27 जनवरी, 2014 को भारत की यात्रा की । वे हमारे गणतन्त्र दिवस समारोह के मुख्य अतिथि थे । शिखर सम्मेलन बैठकों के दौरान दोनों प्रधानमन्त्रियों द्वारा एक ‘संयुक्त वक्तव्य’ पर हस्ताक्षर किए गए । प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह ने मई 2013 में वार्षिक जापान-भारत शिखर सम्मेलन के लिए जापान की यात्रा की । उन्होंने जापान के सम्राट और सम्राज्ञी के साथ भेंट की ।
शिखर सम्मेलन की बैठकों के दौरान दोनों प्रधानमन्त्रियों द्वारा ‘संयुक्त वक्तव्य: लोकतान्त्रित सम्बन्धों की वर्षगांठ के बाद भारत और जापान के बीच नीतिगत तथा वैश्विक भागीदारी को सुदृढ़ बनाना’ पर हस्ताक्षर किए । जापान के महामहिम सम्राट और साम्राज्ञी ने 50 वर्षों के पश्चात् इस देश में नवम्बर, 2013 में भारत की ऐतिहासिक यात्रा की ।
मोदी की पांच दिवसीय जापान यात्रा:
प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी 31 अगस्त से 3 सितम्बर, 2014 तक जापान की यात्रा पर रहे । मोदी जापान यात्रा के तीसरे दिन वहां उद्यमियों और कारोबारियों से मिले । सबको भारत आने का न्यौता दिया । साथ ही अपने हुनर का भरोसा दिलाया । कहा ‘मैं गुजराती हूं और कारोबार मेरी रगों में है ।’
मोदी ने जापानी उद्योगपतियों को गुजरात के मुख्यमन्त्री रहते जापान के साथ अपने कामकाज की याद भी दिलाई । बोले, “यदि गुजरात का अनुभव पैमाना है तो भारत” में भी उन्हें वही प्रतिक्रिया और गति मिलेगी ।
इसके साथ ही भारत और जापान ने पांच बड़े करारों पर हस्ताक्षर भी किए । इसके जवाब में जापान ने भारतीय कम्पनियों पर लगे प्रतिबन्ध हटाने की घोषणा की । जापान ने भारत को गंगा सफाई, रक्षा और बुलेट ट्रेन सहित कई अहम क्षेत्र में निवेश के लिए पेशकश की है । अगले पांच वर्ष में 2.10 लाख करोड़ रुपए निवेश का भरोसा दिलाया है । इसके मद्देनजर जापानी निवेशकों को सहूलियतें देने के लिए प्रधानमन्त्री कार्यालय में ‘जापान प्लस’ कमेटी बनाई जाएगी ।
पीएमओ में जापानी सिस्टम:
प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी और जापान के प्रधानमन्त्री शिन्जो एबे ने संयुक्त प्रेस कांग्रेस की । घनिष्ठ सम्बन्धों के बावजूद दोनों देशों के बीच परमाणु करार नहीं हो पाया । पर दोनों पक्षों ने इसको लेकर चल रही बातचीत को जल्द मूर्तरूप देने का भरोसा दिलाया ।
जापानी कुशलता से प्रभावित मोदी ने कहा कि उन्होंने पीएमओ में जापानी काइजेन सिस्टम ऑफ मैनेजमेंट लागू कराया है ताकि वहां जापानी कौशल आ सके । भारत 2003-04 से जापान से विदेश विकास सहयोग (ओडीए) का सबसे बड़ा प्राप्तकर्ता रहा है ।
वित्तीय वर्ष 2012-13 के दौरान जापान से वचनबद्ध ओडीए ऋण 353 बिलियन येन (लगभग 23,180 करोड़ रुपए/3.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर) रहा जोकि अब तक का सर्वाधिक है । आर्थिक विकास सम्बन्धी 6वां उच्च स्तरीय परामर्श (ओडीए परामर्श) के परिणामस्वरूप अप्रैल, 2012 में जापान के प्रधानमन्त्री ने मई, 2013 में घोषणा की कि आई.आई.टी. हैदाराबाद के परिसर विकास परियोजना के लिए 17.7 बिलियन येन उपलब्ध करवाए जाएंगे ।
13 बिलियन येन तमिलनाडु निवेश संवर्धन परियोजना के लिए रखे गए हैं । मुम्बई मेट्रो लाइन-III परियोजना के लिए कुल 71 बिलियन येन के ऋण हेतु टिप्पणियों के आदान-प्रदान का दोनों प्रधानमंत्रियों द्वारा स्वागत किया गया । आईआईटी परियोजना तथा तमिलनाडु निवेश संवर्धन परियोजना के लिए टिपणियों के आदान-प्रदान पर नवम्बर, 2013 में हस्ताक्षर किए गए । वित्तीय वर्ष 2013-14 (मई, 2014 तक) जापान से वचनबद्ध ओडीए ऋण 101.703 बिलियन येन (लगभग 6,812 करोड़ रुपए/ 1.13 बिलियन अमेरिकी डॉलर) है ।
31 मार्च को भारत सरकार ने:
(1) दिल्ली में मेट्रो के निर्माण,
(2) हरियाणा में पॉवर वितरण प्रणाली में सुधार और
(3) आगरा में सुरक्षित और स्थिर पेयजल आपूर्ति की तीन परियोजनाओं के लिए कुल 183.079 बिलियन येन हेतु जेआईसीए के साथ ओडीए ऋण करारों पर हस्ताक्षर किए । दोनों देशों के बीच मौजूद एक द्विपक्षीय मुद्रा विनिमय करार को सितम्बर 2013 में 15 बिलियन डॉलर से बढ़ाकर 50 बिलियन डॉलर कर दिया गया ।
वर्तमान दशक में दोनों देशों के मध्य समान सामरिक बोध भी विकसित हो रहा है । दोनों देशों के मध्य हिन्द महासागर के आवागमन के मार्ग की स्वतन्त्रता को लेकर समान सामरिक सोच है । भारत ‘हिन्द महासागर रिम-क्षेत्रीय सहयोग समूह’ का महत्वपूर्ण सदस्य है और जापान भी अब इस क्षेत्रीय समूह में पर्यवेक्षक का दर्जा चाहता है । चीन से सुरक्षा का मुद्दा भी दोनों के मध्य सामरिक समानता का एक महत्वपूर्ण पहलू है ।
चीन की हिन्द महासागर में बढ़ती नौसैनिक शक्ति को दोनों ही देश गहन खतरे के रूप में देखते हैं । इसके बावजूद निरस्त्रीकरण एवं अणु प्रसार जैसे मुद्दों पर दोनों देशों की भिन्न सोच रही है । मई 1998 में भारत के नाभिकीय परीक्षणों के बाद जापान ने कई कदम उठाए जिनके अन्तर्गत नई परियोजनाओं के लिए येन ऋण एवं सहायता अनुदान बन्द कर दिया गया । जापान ने भारतीय दृष्टिकोण को समझा और केवल 9 माह बाद ही अपने प्रतिबन्ध हटा लिए ।
भारत एवं जापान के बीच बुलेट ट्रेन समझौता (12 दिसम्बर, 2015):
भारत व जापान के बीच 12 दिसम्बर, 2015 को प्रधानमन्त्री शिंजो अबे की भारत यात्रा के दौरान मुम्बई-अहमदाबाद के बीच बुलेट ट्रेन के लिए समझौता हुआ । दिल्ली के हैदराबाद हाउस में भारतीय रेलवे बोर्ड के चैयरमैन व जापान के रेलवे प्रमुख ने समझौते पर हस्ताक्षर किए । बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट 98.13 हजार करोड़ रुपए का है, इसमें से 80 प्रतिशत कर्ज जापान देगा जिस पर 0.1 प्रतिशत की दर से ब्याज लगेगा, जिसे 50 वर्ष में भारत को चुकाना होगा ।
भारत और जापान के बीच कुल मिलकर 14 करार हुए, जिनमें प्रमुख हैं:
i. प्रधानमन्त्री मोदी और जापान के प्रधानमन्त्री शिंजो अबे ने सिविल न्यूक्लियर एग्रीमेंट के मेमोरेंडम पर हस्ताक्षर किए ।
ii. भारतीय रेलवे के विकास में जापान 12 अरब डॉलर की मदद करेगा और जापान अगले पांच वर्ष में 35 बिलियन डॉलर भारत में निवेश करेगा ।
iii. जापान 12 अरब डॉलर यानी लगभग 75 हजार करोड़ रुपए का फण्ड मेक इन इण्डिया को प्रमोट करने के लिए बनाएगा ।
iv. पहली बार जापान मारुति सुजुकी कारों को भारत से इम्पोर्ट करेगा ।
ADVERTISEMENTS:
v. जापान के नागरिकों को भारत द्वारा 1 मार्च, 2016 से वीसा ऑन अराइवल सुविधा दिया जाना तय किया गया ।
vi. दोनों देशों के बीच निरन्तर डिफेंस इक्विपमेंट और टेक्नोलॉजी ट्रांसफर होगा ।
vii. दोनों देश समुद्री सुरक्षा के मामले में भी साथ मिलकर कार्य करेंगे ।
निष्कर्ष:
आज एशिया में चीन के बाद जापान और भारत उभरती हुई शक्तियां हैं । भारत भी जापान की भांति अपने आपको संयुक्त राष्ट्र की स्थायी सदस्यता का दावेदार मानता है । परमाणु अप्रसार कश्मीर जैसे मुद्दों को छोड़कर दोनों देशों में समान दृष्टिकोण रहे हैं । भारत और जापान 21वीं शताब्दी के लिए सार्वभौमिक साझेदारी बनाने पर सहमत हुए हैं ।