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Here is an essay on ‘International Terrorism’ for class 11 and 12. Find paragraphs, long and short essays on ‘International Terrorism’ especially written for school and college students in Hindi language.
Essay on International Terrorism
Essay Contents:
- अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद के कृत्य की परिभाषा (The Act of International Terrorism Definitions)
- आतंकवाद और अन्तर्राष्ट्रीय परिदृश्य (Terrorism and International Scenario)
- आतंकवाद: रुग्ण समाज की उपज (Terrorism: Product of Sick Society)
Essay # 1. अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद के कृत्य की परिभाषा (The Act of International Terrorism – Definitions):
प्रो. यशपाल के अनुसार- “आज सम्पूर्ण मानवता आतंकवाद से त्रस्त है…इसका खतरा और बढ़ेगा क्योंकि हम तकनीकी का उपभोग मनुष्य की सृजनात्मक ऊर्जा को जाग्रत और दिलों के फासले को दूर करने के बजाय केवल भौगोलिक दूरी को दूर करने के लिए कर रहे हैं । यही बजह है कि नस्ली, मजहबी और सांस्कृतिक वर्चस्ववादी आतंकवाद बढ़ रहा है ।”
अपेक्षा थी कि 20वीं शताब्दी के दो-दो महायुद्धों की महाविभीषिका के इतिहास में दर्ज होने के साथ-साथ विश्व मानवता शान्त एवं सृजनात्मक युग में प्रवेश करेगी, लेकिन बीती सदी के अन्तिम चरण और नई सदी के शैशवकाल का घटनाचक्र नई त्रासदियों की दिशा में घूमता दिखाई दे रहा है- आतंकवाद (Terrorism) की शक्त में दृश्य-अदृश्य छाया युद्धों (Proxy War) का अन्तहीन सिलसिला चल पड़ा है ।
बेशुमार बदहालियों से जूझते पिछड़े और विकासशील देशों के अतिरिक्त अति विलासिता से लदे समृद्ध देश भी आतंकवाद की मजबूत व गहरी गिरफ्त में हैं । विश्व महाशक्ति अमरीका भी इसका अपवाद नहीं रहा । भारत सहित दक्षिण एशियाई देश तो इसमें लगातार झुलस ही रहे हैं । यह दावानल जल्दी थमेगा, इसके आसार फिलहाल दिखाई नहीं दे रहे हैं । आज आतंकवाद का वैश्वीकरण हो गया है और यह एक ‘ट्रेड’ की तरह कार्य करने लगा है ।
अन्तर्राष्ट्रीय राजनय की शब्दावली में आतंकवाद सम्भवत: वह नवीन शब्द है, जिसने समूचे विश्व का इन दिनों ध्यान आकर्षित किया है । फिर भी आतंकवाद की सर्वसम्मत और सर्वव्यापी परिभाषा आज तक नहीं ढूंढ़ी जा सकी है ।
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बुनियादी तौर पर किसी भी देश की स्थापित वैध व्यवस्था के खिलाफ हिंसात्मक कार्यवाही को आतंकवादी गतिविधियों में शामिल किया जा सकता है, क्योंकि वैध व्यवस्था अवैध हिंसात्मक हस्तक्षेप को कभी भी मान्यता नहीं दे सकती ।
आतंकवाद एक ऐसी कार्यवाही है जो प्रत्यक्ष, नियमित संगठित और केन्द्रीकृत नहीं होती है । अलबत्ता यह सघन और विस्तृत होती है । गुरिल्ला लड़ाई और नियमित घोषित युद्ध के बीच की यह व्यवस्था है । इसकी परिभाषा, अवधारणा, स्वरूप, कार्यशैली, रणनीति और शक्ति परिधि समयागत और परिस्थितिगत बदलते रहे हैं ।
समकालीन स्थापित राजसत्ता अपने मानदण्डों के आधार पर आतंकवाद की परिभाषा और उसके लक्ष्यों को वैध या अवैध घोषित करती है । राजसत्ता के लिए आतंकवादी समाज विरोधी, शान्ति का दुश्मन और खलनायक हो सकता है लेकिन वह बहुतों का ‘हीरो’ भी हो सकता है ।
उदाहरण के लिए, 17वीं सदी में भारत की केन्द्रीय मुगलिया सत्ता की निगाहों में शिवाजी की हैसियत सिर्फ ‘छापामार’ या ‘आतंकवादी’ की थी, लेकिन मराठों के वे ‘हीरो’ थे, हिन्दुओं के एक बहुत बड़े वर्ग के वे नायक थे । 20वीं सदी के प्रारम्भ में रूसी जार सत्ता, लेनिन, ट्राटस्की, स्टालिन जैसे क्रान्तिकारियों को आतंकवादियों की श्रेणी में रखती थी, परन्तु 1917 की अक्टूबर क्रान्ति के बाद लेनिन जननायक कहलाए, विश्व के महान क्रान्तिकारी कहलाए ।
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चीन में माओत्सेतुंग की स्थिति इससे भिन्न नहीं थी । वे तो छापामार युद्ध के महायोद्धा थे, लेकिन चीन की केन्द्रीय सत्ता पर काबिज चांग काई शेक की नजरों में वे सिर्फ छापामार लडाकू या आतंकवादी थे । वही माओ बाद में सम्पूर्ण चीन के ‘जननायक’ कहलाए, बल्कि ‘अर्द्ध देवत्व’ में उन्हें रूपान्तरित कर दिया गया । वियतनाम के होची मिह्न और क्यूबा के कास्त्रो व चेग्वेरा की आतंकवादी से ‘लोकनायक’ बनने की रूपान्तरण गाथा भी इससे भिन्न नहीं है ।
यदि भविष्य में स्वतन्त्र या स्वायत्तता सम्पन्न तमिल ईलम (राष्ट्र) अस्तित्व में आता है, तो नि:सन्देह उसके राष्ट्रनायक बनने का गौरव लिट्टे सुप्रीमो प्रभाकरण को ही प्राप्त होगा । यह अलग बात है कि आज उन्हें विश्व के बर्बरतम आतंकवादियों में शुमार किया जाता है ।
यूरो-अमरीकी शिविर और इजरायल फिलिस्तीनी नेता यासर अराफात को आतंकवादी संगठन के नेता के रूप में देखते रहे हैं, जबकि फिलिस्तीनी जनता उन्हें अमन का मसीहा मानती रही । साम्राज्यवादी बरतानिया सरकार की परिभाषा में रामप्रसाद बिस्मिल, भगतसिंह, चन्द्रशेखर आजाद जैसे शहीद ‘आतंकवादी’ से अधिक कुछ नहीं थे, परन्तु वास्तव में आजादी के लिए संघर्षरत भारतवासियों ने इन आतंकवादियों को क्रान्तिकारी, स्वतन्त्रता सेनानी, जननायक, मुक्ति योद्धा और अमर शहीद जैसे सम्बोधनों से परिभाषित किया ।
उपर्युक्त विवेचन से यह अर्थ निकलता है कि बागी, उग्रवादी, आतंकवादी और राष्ट्रद्रोही जैसे सम्बोधन राज्य एवं परिस्थिति सापेक्ष हैं । इन्हें विद्यमान परिवेश एवं परिस्थितियों से पृथक् करके नहीं देखा जा सकता, क्योंकि इन सम्बोधनों की स्थिरता हमेशा विवादास्पद बनी रही है ।
राजसत्ता के चरित्र में बदलाव के साथ-साथ इन सम्बोधनों में भी ‘गुणात्मक बदलाव’ आता है । इस प्रक्रिया का साक्षी है इतिहास, इसलिए छापामार लडाकू उग्रवादी और आतंकवादी को एक व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए । 1970 के दशक में संयुक्त राष्ट्र संघ ने आतंकवाद की एक समुचित परिभाषा के निर्धारण का प्रयास किया ताकि इसे नियन्त्रित करने की दिशा में समुचित कदम उठाए जा सकें ।
तथापि इस मुद्दे पर विचार विमर्श के दौरान संयुक्त राज्य अमरीका के प्रस्ताव में मुख्य बल आतंकवादियों की मनोवृत्ति पर देते हुए यह तर्क दिया गया कि केवल उन्हीं कृत्यों को आतंकवाद की सीमा परिधि में रखा जाना चाहिए, जिनका उद्देश्य किसी राज्य या अन्तर्राष्ट्रीय संगठन के हितों को हानि पहुंचाना या उससे रियायतें लेना हो, जबकि गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों द्वारा प्रस्तावित परिभाषा में उपनिवेशवादी, रंगभेदवादी शासन द्वारा मुक्ति सेनानियों के विरुद्ध की जा रही हिंसा और दमनात्मक कार्यवाही को भी इसमें सम्मिलित करने की मांग की गई ।
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के विश्लेषकों तथा विभिन्न अन्तर्राष्ट्रीय कन्वेंशनों द्वारा आतंकवाद की अवधारणा को समय-समय पर स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है ।
तदनुसार आतंकवाद का अर्थ इस प्रकार है:
शाब्दिक रूप में ‘टैरर’ (आतंक) शब्द लैटिन भाषा से आया है और रोमन समूह की भाषाओं में जड़ जमाने के बाद यह शब्द यूरोप की अन्य भाषाओं में भी प्रचलित हो गया है । इस शब्द से व्युत्पन्न ‘टैररिज्म’ (आतंकवाद) और ‘एक्ट ऑफ टैररिज्म’ (आतंकवादी कृत्य) अब बहुत प्रचलित हो गए हैं ।
कतिपय विचारकों ने आतंकवाद की व्याख्या सामाजिक खतरा उत्पन्न करने में समर्थ कार्य के रूप में की है । रोमानिया के प्रोफेसर शदुलेस्कू के अनुसार, आतंकवाद मूलत: सम्पत्ति तथा जीवन को भारी नुकसान पहुंचाने में बम तथा ऐसी ही अन्य समर्थ युक्तियों अर्थात् विस्फोटों के रूप में स्वयं को प्रकट करता है ।
आतंकवाद के सारतत्व के सम्बन्ध में अपनी पुष्टि की व्याख्या करते हुए प्रोफेसर शदुलेस्कू ने कहा कि समाज के सारे राजनीतिक तथा कानूनी संगठनों के हिंसक विध्वंस की दृष्टि से किए गए अतिक्रमण इसमें शामिल होते हैं ।
ब्रियां एम. जेन्किन्स ने आतंकवाद की परिभाषा करते हुए लिखा है कि- ”हिंसा की धमकी, व्यक्तिगत हिंसात्मक कृत्य और लोगों को आतंकित करने के उद्देश्य से हिंसा का विचार आतंकवाद है ।”
जी. श्वार्जनबर्गर के अनुसार- “एक आतंकवादी को उसके तात्कालिक लक्ष्य के सन्दर्भ में सर्वश्रेष्ठ तरीके से परिभाषित किया जा सकता है । यह लक्ष्य है भय पैदा करने के उद्देश्य से शक्ति का प्रयोग करना और इस प्रकार अपने लक्ष्य की प्राप्ति करना ।”
कन्वेंशन ऑन प्रिवेंशन एण्ड पनिशमेंट, 1937 द्वारा आतंकवाद को इन शब्दों में परिभाषित किया गया है- ”आतंकवाद का अभिप्राय उन आपराधिक कृत्यों से है, जो किसी राज्य के विरुद्ध उन्मुख हों और जिनका उद्देश्य कुछ खास लोगों या सामान्य जनमानस के मन में भय या आतंक पैदा करना हो ।”
कतिपय अन्य अध्ययनों में आतंकवाद की व्याख्या सामान्यतया ”किसी राजनीतिक उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए उग्रवादी हिंसा से उत्पन्न उठाया गया कदम”, “एक दोषग्रस्त शस्त्र जो अक्सर निशाना चूक जाता है”, ”विभिन्न उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए उपकरण”, आदि के रूप में की जाती है ।
आतंकवाद की परिभाषा करते समय ब्रिटेन के आधुनिक लेखक पाल बिल्किंसन ने निम्नलिखित में भेद करना आवश्यक बताया है:
i. युद्ध आतंक,
ii. दमनात्मक आतंक,
iii. क्रान्तिकारी आतंक,
iv. उपक्रान्तिकारी आतंक (राजनीतिक तथा वैचारिक उद्देश्यों से किए गए कृत्य, जो राज्य पर अधिकार करने के लिए किए गए अभियान के भाग नहीं होते) ।
अमरीका के कैलिम्स ग्रास ने आतंकवाद की परिभाषा करते हुए निम्नलिखित में भेद करना जरूरी समझा है:
1. घरेलू निरंकुशता के विरुद्ध संघर्ष और हिंसा,
2. उन विदेशी विजेताओं के विरुद्ध हिंसा जो राष्ट्रों को नष्ट कर देते हैं और नागरिकों को गुलाम बना लेते हैं,
3. जनतान्त्रिक संस्थाओं के विरुद्ध हिंसा, जैसा कि नाजियों, फासिस्टों और उनके सहायकों ने किया था ।
बेल्जियन लेखक पियरे मेरटेंस के अनुसार- युद्ध और शान्ति के समय आतंकवादी कृत्यों के भिन्न-भिन्न अर्थ होते हैं । युद्ध और शान्ति के समय ये कृत्य युद्धीय कानून के ढांचे में आते हैं और अनावश्यक रूप में क्रूर तथा घृणित दिखाई देने वाली कार्यवाहियों को सूचित करते हैं । अन्तत: उनकी व्याख्या युद्ध अपराध, मानवता के विरुद्ध अपराध अथवा मानवतावादी कानून के अतिक्रमण के रूप में होती है ।
लियोन जे. बैंकर और चार्ल्फ ए. रसेल ने आतंकवाद की व्याख्या भय, बलप्रयोग, डांट-डपट के द्वारा राजनीतिक उद्देश्य की सिद्धि के लिए शक्ति अथवा हिंसा के प्रयोग की धमकी अथवा वास्तविक प्रयोग के रूप में की है । उनके अनुसार आधुनिक आतंकवाद की जड़ साठ के दशक के उन छात्र एवं उग्रवादी आन्दोलन में है, जो वर्तमान संस्थाओं के विरुद्ध लक्षित था ।
पाल बिल्किंसन ने आतंकवाद की व्याख्या उस नीति अथवा प्रक्रिया के रूप में की है, जिसमें तीन मूल तत्व होते हैं:
a. आतंकवाद को व्यवस्थित शस्त्र के रूप में प्रयोग करने का निर्णय,
b.सामान्य से अधिक हिंसा की धमकी या हिंसक कृत्य,
c. तात्कालिक शिकार और व्यापक राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय जनमत पर इस हिंसा का प्रभाव ।
प्रो. कारपेत्स ने लिखा है- ”आतंकवाद हत्या, हिंसा प्रयोग, फिरौती या अन्य मांगों के लिए मनुष्यों के बन्धक बनाने और स्वतन्त्रता का बलात् अपहरण करने के लिए विशेष संगठन या गुट बनाने की ओर लक्षित अन्तर्राष्ट्रीय अथवा अन्तर्राष्ट्रीय रूप में अभिप्रेरित राष्ट्रीय घटना अथवा अन्य गतिविधि है । आतंकवाद का मतलब इमारतों का विनाश, उनमें लूटमार और इसी प्रकार के अन्य काम भी हो सकते हैं ।”
कतिपय विद्वान मुक्ति आन्दोलन और आतंकवाद को एक ही कृत्य मानते हैं, जबकि साम्यवादी दृष्टिकोण के अनुसार मुक्ति आन्दोलन तथा आतंकवाद को एक ही स्तर पर रखना पूरी तरह गलत है, क्योंकि इनके उद्देश्य बिल्कुल परस्पर विरोधी हैं ।
आतंकवादी नियमत: या तो व्यक्तिवादी हैं या पूरी तरह स्थार्थपूर्ण महत्वाकांक्षाओं के लिए काम करने वाले गुट हैं, जबकि मुक्ति आन्दोलन अपने जनगण की स्वाधीनता के लिए संघर्ष कर रहे हैं । वे व्यक्तियों के नहीं, सपूर्ण राष्ट्रों के भविष्य तथा हितों का समर्थन कर रहे हैं । आतंकवाद की नई परिभाषा यह है कि आतंकवाद अपने प्रत्यक्ष शिकार से अधिक व्यापक समूह पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव डालने हेतु लक्षित हिंसा की धमकी अथवा हिंसा का प्रयोग है ।
बेल्जियम के शोधकर्ता फेरिक डेबिड ने आतंकवादी कृत्य की परिभाषा इस प्रकार की है- ”राजनीतिक-सामाजिक-दार्शनिक, विचारधारात्मक या धार्मिक उद्देश्यों के लिए किया गया कोई भी ऐसा सशस्त्र हिंसक कृत्य जो मानवतावादी कानून के आदेशों का (जिनमें क्रूर तथा बर्बर तरीकों का निषेध, असैनिक लक्ष्यों तथा निर्दोष व्यक्तियों पर आक्रमण का निषेध शामिल है) उल्लंघन करता हो ।”
संक्षेप में आतंकवाद की अधिक पूर्ण परिभाषा इस प्रकार होगी- ”अन्तर्राष्ट्रीय कानून के एक पात्र द्वारा दूसरे पात्र के विरुद्ध निष्पादित आतंकवादी कृत्य ।”
इसमें:
I. राज्य,
II. मुक्ति के लिए युद्धरत राष्ट्र,
III. अन्तर्राष्ट्रीय संगठन द्वारा निष्पादित आतंकवादी कृत्य शामिल होगा ।
राजकीय आतंकवाद की व्याख्या में राजनीतिक, जातीय और धार्मिक उद्देश्यों से व्यक्तियों, व्यक्तियों के समूह या जनसंख्या के विरुद्ध अधिकारियों के द्वारा अपनाई गई आतंकवादी नीति समाविष्ट होगी । एक राज्य की गुप्तचर सेवाओं द्वारा दूसरे राज्य के क्षेत्र में की गई आतंकवादी गतिविधियां भी इसमें शामिल होंगी ।
अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों को प्रभावित करने वाला आतंकवादी कृत्य निम्न कारणों से अन्तर्राष्ट्रीय कानून के क्षेत्र में विचारणीय बन जाता है:
A. अन्तर्राष्ट्रीय कानून के विषयों (पात्रों) द्वारा निष्पादित होने के कारण,
B. अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में उत्पन्न खतरे के कारण,
C. उसमें निहित अन्तर्राष्ट्रीय तत्व के कारण,
D. किसी विशेष आतंकवादी कृत्य से उत्पन्न सामाजिक खतरे के कारण तथा इस तरह के कृत्यों के विरुद्ध संघर्ष करने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कार्यवाही संगठित करने में राज्य की दिलचस्पी के कारण ।
Essay # 2. आतंकवाद और अन्तर्राष्ट्रीय परिदृश्य (Terrorism and International Scenario):
अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद के विख्यात अध्येता ब्रियां क्रोजर के अनुसार 20वीं शताब्दी का आतंकवाद अपने स्वरूप में विलक्षण है । यह समाज और राज्य व्यवस्था के लिए एक कलंक जैसा है । यह अपने स्वरूप में वैश्विक (Global) है अर्थात् विश्वभर के आतंकवादियों में आपसी भाईचारा है, क्योंकि वे मूलभूत विश्वासों एवं कार्यपद्धति में एक जैसे हैं – ये एक-दूसरे को प्रशिक्षण और हथियारों की आपूर्ति में सहायता करते रहते हैं । सामान्यतया आतंकवादी संगठन के सदस्य सुशिक्षित युवजन और युवतियां होती हैं, न्यूनाधिक रूप से ये मध्यवर्गीय परिवारों से सम्बन्धित होते हैं ।
आधुनिक आतंकवाद का नकारात्मक पक्ष यह है कि यह प्राय: उदारवादी और पाश्चात्य श्रेणी की लोकतान्त्रिक व्यवस्थाओं को अपना प्रमुख निशाना बनाते हैं । यह स्थिति पूर्वकाल से इस अर्थ में पूर्णतया भिन्न है कि पहले क्रान्तिकारी दमनकारी शासकों या शासनतन्त्रों यथा- जार द्वारा शासित रूस, आस्ट्रिया-हंगेरियाई साम्राज्य या फ्रांस के एन्सियन शासन को ही अपना निशाना बनाते थे ।
पिछले तीन दशक से हवाई जहाजों के अपहरण, दूतावासों में विस्फोट, कूटनीतिज्ञों के अपहरण उत्तेजनात्मक कार्यवाहियां, सरकारी एवं गैर-सरकारी मिशनों के विरुद्ध सीधे आक्रमण और प्लास्टिक व डाक बमों के विस्फोट, आदि के बारे में चौंकाने वाली घटनाएं निरन्तर हो रही हैं ।
ऐसी कतिपय घटनाओं के उदाहरण हैं:
i. 3 दिसम्बर, 1969 को यहूदियों के एक गुट ने संयुक्त राष्ट्र संघ में सीरिया के प्रतिनिधिमण्डल के मुख्य कार्यालय पर हमला किया,
ii. 3 मार्च, 1971 को संयुक्त राष्ट्र संघ में इराकी मिशन के कार्यालय में पेट्रोल बम फेंका गया,
iii. 1972 के उत्तरार्द्ध में स्कॉटलैण्ड यार्ड को पार्सल या पत्रों के रूप में भेजे गए प्लास्टिक बमों की बाढ़ के कारण लन्दन के पोस्ट-ऑफिस में द्वितीय महायुद्ध के बाद पहली बार विशेष नियन्त्रण कक्ष स्थापित करना पड़ा,
iv. अक्टूबर 1972 में यहूदीवादी मौसाद संगठन के सदस्यों ने पेरिस में एक फिलिस्तीनी किताबों की दुकान और फ्रांस में फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन के प्रतिनिधि महमूद महशारी के घर को उड़ा दिया,
v. 1973 में लुसाका के चीनी राजदूतावास में एक पार्सल बम फटा,
vi. 21 सितम्बर, 1976 को वाशिंगटन के शेरीडन सर्किल में एक विस्फोट में चिली की आलन्दे सरकार के भूतपूर्व विदेशमन्त्री लैण्डो लेटेलियर मारे गए ।
हम ऐसे और बहुत से उदाहरण दे सकते हैं । 1970 के दशक में कुल जितने आतंकवादी कृत्य हुए उनमें से आधे यूरोप में हुए, लैटिन अमरीका में 21%, उत्तरी अमरीका में 14%, मध्यपूर्व तथा उत्तरी अफ्रीका में यूरोप की तुलना में दो गुना आतंकवादी कृत्य हुए, किन्तु 1978 में यह अनुपात उल्टा हो गया ।
1970-78 के बीच आतंकवादी कृत्यों के कारण जो प्रत्यक्ष हानि हुई और उनसे जुड़े हुए बीमा तथा सुरक्षा, आदि मदों में जो अन्य खर्चे हुए उनका मूल्य अरबों डॉलर था । आतंकवादियों द्वारा अपहृत व्यक्तियों के लिए फिरौती की घोषित राशि ही 14 करोड़ 50 लाख डॉलर थी ।
एक अमरीकी लेखक ब्रियां एम. जेन्किन्स ने ‘अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद और विश्व सुरक्षा’ ग्रन्थ में लिखा है, “पिछले कुछ वर्षों में आतंकवाद विशेष रूप से बढ़ गया मालूम होता है । राजनीतिक तथा अपराध जगत के आतंकवादियों ने विश्व के विभिन्न भागों में रेलवे स्टेशन एवं हवाई अड्डों में यात्रियों पर हमले किए हैं; राजकीय भवनों, बहुराष्ट्रीय निगमों के कार्यालयों, शराबघरों और नाटकघरों में बम छुपाए हैं; विमानों, पानी के जहाजों और सिंगापुर में तो नावों का भी अपहरण किया है; हजारों यात्रियों को बन्धक बनाया है; दूतावासों पर अधिकार किया है तथा सरकारी अधिकारियों, कूटनीतिज्ञों एवं व्यापारिक अधिकारियों का अपहरण किया है । हम लगभग हर रोज नई घटनाओं की खबर पढ़ते हैं । अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में आतंकवाद एक नया तत्व हो गया है ।”
आतंकवाद की घटनाओं में फिलिस्तीनी आतंकवाद सबसे पुराना है । अबू निदान जैसे आतंकवादियों ने विमान अपहरण और बम विस्फोट जैसी अनेक घटनाओं को सिलसिलेवार अंजाम दिया । आज विश्व में 153 से अधिक आतंकी संगठन सक्रिय हैं । अलकायदा, तालिबान, अलनुसरा आई.एस.आई.एस. जैसे संगठन मानवता के लिए खतरा बन गये हैं । अलजवाहिरी, हाफिज सईद, दाऊद जैसे आतंकी माफिया सरगना विश्व में अमन-चैन बिगाड़ने में लगातार जुटे हुए हैं ।
13 नवम्बर, 2015 को पेरिस में आई.एस.आई.एस. के आतंकी हमले ने यूरोप की सुरक्षा के लिए प्रश्न चिह्न खड़ा कर दिया है । पेरिस में यूरोप के ही आतंकवादियों ने बाहरी आतंकवादियों के साथ हमला किया । आज एशिया, अफ्रीका और यूरोप के 124 देशों में आईएस का आतंक फैल चुका है जिनमें भारत छठे स्थान पर है । दुनिया में घटित होने वाली घटनाओं में 51% के लिए आई.एस.आई.एस. जिम्मेदार होता है । आई.एस.आई.एस. के आतंक से अभी तक एक लाख से अधिक मुस्लिम मारे गए हैं ।
संयुक्त राज्य अमेरिका:
पिछले दो दशकों में संयुक्त राज्य अमेरिका, भारत, रूस, चीन और श्रीलंका जैसे देश आतंकवाद से पीड़ित रहे हैं । सन् 1983 में बेरूत में अमरीकी नौसैनिक ठिकाने पर कार बम विस्फोट में 240 से ज्यादा अमरीकी सैनिक मारे गए । 1988 में यूरोप में लॉकर्बी के ऊपर अमरीकी विमान पैन-एम उड़ान संख्या-103 में बम विस्फोट में 240 यात्री मारे गए ।
1993 में न्यूयार्क के विश्व व्यापार केन्द्र में हुए बम धमाके में 6 मरे और 1,000 घायल हुए । 1995 में अमरीका के ओक्लाहामा शहर में बम फटने से 168 लोगों की मृत्यु हुई । 1996 में सऊदी अरब में एक ट्रक में हुए बम विस्फोट में 19 अमरीकियों की मृत्यु हुई । 1998 में केन्या और तंजानिया स्थित अमरीकी दूतावासों में बम विस्फोट में 224 लोग मरे और लगभग 5,000 घायल हुए ।
वर्ष 2000 में यमन में अमरीकी विमान वाहक युद्धपोत पर हमले में 19 अमरीकी मारे गए । अमरीका के दो प्रमुख शहरों – व्यापारिक राजधानी न्यूयार्क तथा राजनीतिक राजधानी वाशिंगटन डी.सी. के दो महत्वपूर्ण ठिकानों पर 11 सितम्बर, 2001 को आतंकवादी हमले किए गए ।
इन हमलों में बिल्कुल नया आत्मघाती तरीका अपनाया गया । आतंकवादियों ने बोस्टन हवाई अड्डे से यात्री विमानों का अपहरण कर उन्हें पूर्व निर्धारित निशानों से टकराया । चार विमानों में से दो को विश्व व्यापार केन्द्र के ट्विन टावर्स (दो टावर) से अलग-अलग 15 मिनट के अन्तराल पर टकराया गया । तीसरे विमान को पेंटागन (वाशिंगटन डी.सी.) भवन जो कि अमरीका का रक्षा मुख्यालय है, से टकराया गया । चौथा विमान पेनसिल्वानिया में दुर्घटनाग्रस्त हो गया ।
इन हमलों में विश्व व्यापार केन्द्र के दोनों टावर ढह गए तथा पेंटागन के विशाल क्षेत्रफल में बने पांच मंजिला भवन के एक हिस्से को भारी नुकसान हुआ । इन हमलों के मुख्य संदिग्ध के रूप में अमरीका एवं उसकी गुप्तचर एजेन्सी एफ.बी.आई. ने अफगानिस्तान में रह रहे सऊदी आतंकवादी ओसामा बिन लादेन की पहचान की । बाद की जांच में यह तथ्य भी उजागर किया गया कि इन हमलों में अमरीकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू. बुश की हत्या का उद्देश्य भी शामिल था ।
वर्ल्ड ट्रेड सेन्टर : एक नजर:
1. सात वर्ष की मेहनत के बाद वर्ल्ड ट्रेड सेन्टर 1973 में बनकर तैयार हुआ था । उस वक्त इस पर अनुमानित लागत 75 करोड़ डॉलर आयी थी ।
2. 110 मंजिलों की यह ट्विन टावर (दो टावर) वर्तमान दौर की विश्व की सबसे ऊंची 10 इमारतों में से एक थी ।
3. अमरीका के चेस मैनहट्टन बैंक के अध्यक्ष डेविड राकफेलर ने 1962 में न्यूयार्क के गवर्नर नेल्सन डी राकफेलर की मदद से न्यूयार्क और न्यूजर्सी पोर्ट अथॉरिटी को वर्ल्ड ट्रेड सेन्टर के निर्माण के लिए राजी किया था । इस इमारत की रूपरेखा अमरीका के आर्किटेक्ट इमेरी रोथ और दिवंगत मिनोरू यामासाकी ने स्टेनलैस स्टील और शीशे से तैयार की थी । वर्ल्ड ट्रेड सेन्टर के निर्माण प्रबन्धक प्रोफेसर हाइमैन ब्राउन हैं ।
4. वर्ल्ड ट्रेड सेन्टर का पहला टावर 1,364 फीट तथा दूसरा टावर 1,362 फीट ऊंचा था । वर्तमान समय में विश्व की सबसे ऊंची इमारत दुबई स्थित बुर्ज दुबई है जो 2,717 फीट ऊंची है ।
5. 16 एकड़ भूमि के क्षेत्र में फैले वर्ल्ड ट्रेड सेन्टर में 1 करोड़ वर्ग फीट का कार्यालय स्थान था जिसमें विभिन्न देशों की 500 से अधिक अन्तर्राष्ट्रीय कम्पनियों के ऑफिस थे तथा इनमें 50 हजार लोग काम करते थे ।
6. वर्ल्ड ट्रेड सेन्टर में रोजाना लगभग 1 लाख से अधिक पर्यटक एवं अतिथि आते थे ।
7. वर्ल्ड ट्रेड सेन्टर में एक भूमिगत बाजार, शापिंग कॉम्पलेक्स तथा न्यूयार्क मेट्रोपोलिटन ट्रन्सिट अथॉरिटी स्थित थे । वर्ल्ड ट्रेड सेन्टर में 70 दुकानें एवं रेस्टोरेन्ट थे । वर्ल्ड ट्रेड सेन्टर की 110वीं मंजिल तक पहुंचने के लिए लिफ्ट द्वारा मात्र 1 मिनट लगता था ।
8. जब 11 सितम्बर, 2001 को आतंकवादियों द्वारा वर्ल्ड ट्रेड सेन्टर के दोनों टावर से अपहरण किए गए यात्री विमान (यूनाइटेड एयरलाइन्स के बोइंग 757 तथा बोइंग 767) टकराए तब इन इमारतों में लगभग 15,000 लोग काम कर रहे थे ।
9. वर्ल्ड ट्रेड सेन्टर में 26 फरवरी, 1993 को भी आतंककारियों ने एक कार बम विस्फोट किया था जिसमें छ: लोग मारे गए थे ।
अमरीका का पेंटागन : एक नजर:
a. अमरीकी रक्षा विभाग की एवं विश्व की यह सबसे बड़ी और सुरक्षित इमारत है ।
b. पेंटागन अपने आप में एक शहर है जिसमें लगभग 23 हजार लोग काम करते हैं, जिनमें सेना और नागरिक कर्मचारी शामिल हैं जो मिलकर अमरीका के रक्षा विभाग का संचालन करते हैं ।
c. पेंटागन की इमारत द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान बनायी गयी थी तथा यह मात्र 16 महीने में बनकर 15 जनवरी, 1943 को तैयार हुई ।
d. पेंटागन का ऑफिस 3,705,793 वर्ग फुट क्षेत्र में फैला हुआ है । ऊपर जाने के लिए 131 जगह सीढ़ियां व 19 स्वचालित सीढ़ियां हैं । इमारत में 284 रेस्ट रूम तथा 16 पार्किंग स्थल (8,770 गाड़ियों के पार्किंग का स्थान) है ।
e. पेंटागन से लगभग 2 लाख टेलीफोन प्रतिदिन किए जाते हैं । इसमें सुरक्षा विभाग की एक लाख मील की स्वयं की टेलीफोन केबल लगी है ।
f. पेंटागन में 17.5 मील के बरामदे हैं, परन्तु इमारत के एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु तक पहुंचने में मात्र सात मिनट का समय लगता है ।
ओसामा बिन लादेन:
I. संयुक्त राज्य अमरीका में 11 सितम्बर, 2001 के आतंकी हमले का मास्टर माइण्ड व अलकायदा का सरगना ओसामा बिन लादेन अन्तत: 1-2 मई, 2011 की मध्य रात्रि में पाकिस्तान में इस्लामाबाद से लगभग 100 किमी दूर ऐबटाबाद में सीआईए कमाण्डो ऑपरेशन के अन्तर्गत मारा गया ।
II. सऊदी अरब के रियाद शहर में जन्मा ओसामा अरबपति था । शीत युद्ध के दौर में अमरीका ने सोवियत संघ के खिलाफ उसका इस्तेमाल किया था । अमरीकी खुफिया एजेन्सी सीआईए ने ओसामा को प्रशिक्षण दिया । अफगानिस्तान में सोवियत संघ के वर्चस्व को खत्म करने की लड़ाई विभिन्न अफगान कबीलों ने लड़ी थी । उनकी मदद के लिए ओसामा बिन लादेन तीन हजार अरबियन नौजवानों के साथ मोजूद था ।
III. ओसामा धनाढ्य था । विरासत में उसे करोड़ों डॉलर अपने पिता से मिले । वे सऊदी अरब में निर्माण व्यवसाय से जुड़े हुए थे । ओसामा की सऊदी अरब नागरिकता खत्म कर दी गई । पिता और भाइयों ने भी नाता तोड़ लिया । लगभग एक दशक से ओसामा अफगानिस्तान के कन्धार क्षेत्र में गोपनीय ठिकाने पर रह रहा था । छियालीस वर्षीय ओसामा ने कन्धार में ही अपने पुत्र का विवाह किया ।
IV. इस्लामी कट्टरता का प्रतीक बनकर उभरा ओसामा बिन लादेन कोई सामान्य व्यक्ति नहीं था । लगभग दस अरब डॉलर की कम्पनी चलाने का पर्याप्त अनुभव रखने वाला यह शख्स सिविल इन्जीनियरिंग, अर्थशास्त्र व प्रबन्धन की डिग्रियां भी रखता था ।
V. लादेन ‘अल कायदा’ नामक जो संगठन चलाता था उसमें 60 देशों में सक्रिय लगभग 200 आतंकवादी गुट शामिल थे । इस खतरनाक संगठन का मुख्य उद्देश्य था जिस किसी इस्लामी देश में गैर इस्लामी सेना की उपस्थिति है वह उस देश से चली जाए । इस्लामी देशों में सिर्फ इस्लामी सेना ही रह सकती है ।
VI. लादेन अद्भुत नेतृत्व और सांगठनिक क्षमता का मालिक था । एक मोटे अनुमान के अनुसार उसके पूरे नेटवर्क के पास लगभग 25-30 अरब डॉलर का खजाना रहा । उसके पास काबिल लोगों की पूरी फौज थी और वह कहीं भी बड़ी-से-बड़ी आतंकवादी कार्यवाही को अंजाम देने में सक्षम था ।
VII. कहा जाता है कि विश्वभर में 60 देशों की सरकारें ओसामा बिन लादेन की समर्थक थीं । उसने मिस्र, अल्जीरिया और यमन के विद्रोहियों को आर्थिक सहायता देकर अपनी ताकत में भरपूर वृद्धि की । इसी क्रम में उसने सूडान में नेशनल इस्लामिक फ्रंट की मदद से विभिन्न गुटों के आतंकवादियों को प्रशिक्षित करने के लिए शिविर लगाए । नौरोबी और दारूस्सलाम में कोई दो-ढाई वर्ष पूर्व अमेरिकी दूतावासों पर उसके द्वारा करवाए गए बमों के हमलों के सिलसिले में पकड़े गए उसके चार लोगों ने न्यूयार्क की अदालत में जो बयान दिए उसके अनुसार लादेन का मंसूबा जेहादिस्तान नामक एक अलग गणराज्य बनाना था ।
VIII. अमेरिकी सरकार ने उसे जिन्दा या मुर्दा पकड़वाने वाले को 120 करोड़ रुपए (12 मिलियन डॉलर) के पुरस्कार की घोषणा कर रखी थी । सऊदी अरब की राजधानी रियाद के अमीर और धर्मभीरु परिवार में जन्मा यह शख्स इस्लामी कानूनों का काफी जानकार माना गया और इसी जानकारी ने लादेन को ‘जेहाद’ की तरफ प्रेरित किया ।
IX. काबुल से 15 किमी. दक्षिण-पूर्व में रिशखोर अल कायदा के सबसे बड़े और सबसे कुशलता से चलाए जा रहे आतंकवादी प्रशिक्षण शिविरों में एक था । रिशखोर में ओसामा ने मानो आतंकवाद का विश्वविद्यालय ही स्थापित कर रखा था ।
X. उसने युद्ध से जर्जर एक देश को अपहृत करके आतंक के स्रोत में तब्दील कर दिया । उसने लगभग एक मजहब का अपहरण कर लिया और सभ्यताओं के टकराव को हवा दे दी ।
भारत में आतंकवाद : जम्मू-कश्मीर राज्य के विशेष सन्दर्भ में:
अप्रैल 2002 में गृह राज्यमन्त्री सी.एच. विद्यासागर राव ने राज्यसभा में एक प्रश्न के उत्तर में बताया कि भारत में लश्कर-ए-तौयबा, जैश-ए-मोहम्मद, लिट्टे, हरकत-उल-मुजाहिदीन तथा सिमी समेत 31 प्रमुख उग्रवादी संगठन सक्रिय हैं ।
इनमें से कुछ ने पाकिस्तान अथवा पाक अधिकृत कश्मीर और अफगानिस्तान में अपने अड्डे बना रखे हैं । पूर्वोतर राज्यों के विद्रोहियों ने पड़ोसी देशों में अपने कैम्प स्थापित कर लिए हैं । उल्का तथा नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैण्ड, एन.डी.एफ.बी. ने भूटान और बांग्लादेश में, नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा, एन.एल.एफ.टी. तथा आल त्रिपुरा टाइगर्स फोर्स ने बांग्लादेश में तथा नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैण्ड और इसके सभी गुटों ने म्यांमार और बांग्लादेश में अपने कैम्प स्थापित किए हुए हैं ।
हमारा जम्मू और कश्मीर राज्य देश के विभाजन के बाद से ही पाकिस्तानी कूटनीतिक चाल का प्रमुख केन्द्र बिन्दु होने के कारण द्विराष्ट्र सिद्धान्त की उसकी संकल्पना के अनुसार वह 1947 के विभाजन को हमेशा अधूरा मानता रहा है ।
उसने इस राज्य को हथियाने के लिए बार-बार प्रयत्न किए – पहली बार सैनिकों के सक्रिय समर्थन के साथ कबाइलियों की घुसपैठ करवा कर और उसके बाद तीन युद्ध करके तथा वर्ष 1999 में करगिल में अविवेकपूर्ण घुसपैठ के द्वारा लेकिन हर बार उसे मुंह की खानी पड़ी, हर बार भारत ने उसे करारा जवाब दिया है ।
नवम्बर 2000 को भारत द्वारा कश्मीर में घोषित एकतरफा संघर्ष विराम मई 2001 तक चला । तब काफी अटकलें लगी थीं कि शायद इस समस्या का, जिसमें अभी तक 65,000 से भी ज्यादा कश्मीरी नागरिक और भारतीय सुरक्षाकर्मियों की जानें गई हैं, कोई शान्तिपूर्ण समाधान निकल आए ।
लेकिन आज भी इसी पाक समर्थित आतंकवाद को लेकर भारत और पाकिस्तान की सेनाएं सीमा पर आमने-सामने हैं । यह स्थिति किसी भी दिन युद्ध में बदल सकती है । इस समस्या के गम्भीर मोड़ लेने का कारण एक बार फिर पाकिस्तान है ।
पाकिस्तान की गुप्तचर शाखा आई.एस.आई. के इशारे पर 13 दिसम्बर, 2001 की सुबह 11:40 बजे भारतीय संसद पर जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तोयबा से जुड़े आतंककारियों ने हमला बोल दिया । आतंककारी संसद भवन परिसर में बाहरी सुरक्षा को तोड़ कर घुस गए । इनमें से एक मानव बम भी था । यदि इन पांचों आतंककारियों को सुरक्षाकर्मियों ने मार नहीं दिया होता तो इनका निशाना भारत का शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व था ।
पाकिस्तानी राष्ट्रपति, जनरल जिया उल हक ने भारत के खिलाफ एक अघोषित युद्ध तब शुरू किया, जब पाकिस्तान ने यह देख लिया कि परोक्ष युद्ध में उन्हें कोई सफलता नहीं मिल रही है । अघोषित युद्ध राज्य में असन्तुष्ट युवकों की भावनाओं को भड़काकर और उन्हें गुमराह करके चोरी छिपे शुरू हुआ ।
इसके परिणामस्वरूप 1989-90 के वर्ष में घाटी से पाकिस्तान को बड़े पैमाने पर कश्मीरी युवकों को सीमा पार कराई गई । पाकिस्तान ने स्थानीय युवकों को विघटनकारी गतिविधियों में प्रशिक्षित किया, उन्हें अत्याधुनिक हथियार दिए और फिर उन्हें घाटी में उत्पात मचाने के लिए वापस भेज दिया ।
बाद में जब इन स्थानीय युवकों का मोहभंग हुआ और उन्हें स्थानीय समर्थन कम होने लगा तो पाकिस्तान को इस राज्य में पाकिस्तानी और भाड़े के विदेशी सैनिकों की घुसपैठ कराने पर मजबूर होना पड़ा । आज जम्मू और कश्मीर में सक्रिय आतंकवादियों में अधिकतर वे ही हैं ।
हालांकि, अनुमान भिन्न-भिन्न हैं, लेकिन जम्मू और कश्मीर में इस समय 1500-2000 भाड़े के विदेशी सैनिक सक्रिय हैं जिनकी घुसपैठ पाकिस्तान ने राज्य में आतंकवाद को कायम रखने और उस पर अपना नियन्त्रण बनाए रखने की चाल के लिए किया है ।
भाड़े के ये विदेशी सैनिक मुख्यत: पाकिस्तान, पाक अधिकृत कश्मीर और अफगानिस्तान के हैं, जो पान-इस्लामिक रूढ़िवादी उग्रवाद के लिए एक केन्द्र के रूप में पाकिस्तान द्वारा निभाई जा रही खतरनाक भूमिका को उजागर करता है ।
पाकिस्तान का अस्तित्व इस बात पर निर्भर करता है कि वह कितनी कुटिलता से आतंकवाद को बनाए रखता है ओर भारत को परेशान कर सकता है । कश्मीर समस्या के समाधान से भारत सहज हो जाएगा और व्यापक विकास के रास्ते पर आगे कदम भरने में समर्थ हो सकेगा । यही भावना पाकिस्तान को घाटी में आतंकवाद की आग को भड़काए रखने के लिए विवश कर रही है ।
भारत के विरुद्ध पाकिस्तान के अघोषित युद्ध ने निम्नांकित प्रकार का विशाल स्वरूप धारण कर लिया है:
A. घुसपैठ में बढ़ोतरी करने और उसे कारगर बनाने के लिए पाकिस्तानी सेना द्वारा सीमा पार से गोलाबारी में वृद्धि ।
B. भाड़े के विदेशी सैनिकों के प्रशिक्षण में बढ़ोतरी । जम्मू और कश्मीर में उग्रवादी गतिविधियों को धारदार नेतृत्व प्रदान करने के लिए परदेशी भाड़े के विदेशी सैनिकों का इस्तेमाल ।
C. उग्रवाद के दायरे को जम्मू और उससे आगे तक बढ़ाना, जिसमें राजौरी, पुंछ और डोडा पर अधिक ध्यान देना है अर्थात् पीर पंजाल रेंज के दक्षिण में उग्रवादी गतिविधियां बढ़ाना ।
D. घुसपैठ के लिए वास्तविक नियन्त्रण रेखा के साथ-साथ कुछ उच्च तुंगता वाले दर्रों सहित नए रास्तों का प्रयोग ।
E. साम्प्रदायिक समीकरणों को ध्यान में रखते हुए निर्दोष लोगों की हत्याएं कराना ।
F. सुरक्षा बलों पर अत्याधुनिक हथियारों से और अलग-अलग स्थानों पर अल्पसंख्यकों पर हमले करवाना । अचूक निशाने वाली लम्बी दूरी के हथियारों के अधिकाधिक प्रयोग से उग्रवादी रणनीति में नया आयाम जुड़ा है ।
G. ‘फिदाईन’ आत्मघाती दस्तों का निरन्तर प्रयोग ।
H. राज्य में उग्रवाद को जारी रखने के लिए धन-प्रवाह में वृद्धि, इसकी बड़ी मात्रा जाली मुद्रा होती है और यह हवाला के माध्यम से आता है ।
I. मिश्रित कश्मीरी संस्कृति को बदलने के उद्देश्य से पान-इस्लामिक रूढ़िवादियों को जम्मू-कश्मीर में अनवरत भेजते रहना ।
J. कश्मीर मामले पर भारत के खिलाफ पाकिस्तानी कूटनीतिक और आक्रामक कुप्रचार पुरजोर तरीके से जारी रखना ।
K. उग्रवादी गतिविधियों में स्थानीय युवकों को अधिकाधिक शामिल करना । इस हेतु भर्ती अभियान तेज किया गया है । इससे उग्रवादी आन्दोलन को स्वदेशी रूप देने की कुटिल चाल को जामा पहनाया जा सकेगा ।
इन प्रयासों से, अल जेहाद, अलबर्क और तेहरिक उल-मुजाहिदीन जैसे निष्क्रिय कुछ तंजीमों के सक्रिय होने की उम्मीद है जबकि हिजबुल मुजाहिदीन और अल बदर सहित वर्तमान तंजीमों को सुदृढ़ किया जा रहा है ।
जम्मू-कश्मीर में बहुत से आतंकवादी गुट सक्रिय हैं, जिनमें मुख्य हैं:
हिजबुल मुजाहिदीन, लश्कर-ए-तोयबा, हरकत-उल-मुजाहिदीन, हरकत-अल-जेहाद-ए-इस्लामी, तहरीक उल-मुजाहिदीन और अल-बदर । हिजबुल मुजाहिदीन को छोड़कर अन्य गुटों में अधिकांशत: भाड़े के विदेशी सैनिक हैं ।
जम्मू-कश्मीर राज्य में सामान्य हालात बहाल करने के अपने प्रयास में भारत सरकार ने त्रिस्तरीय रणनीति अपनाई है, जिसमें सम्मिलित है:
i. पाक प्रायोजित आतंकवादी गुटों द्वारा सीमा पार से चलाए गए आतंकवाद से सुरक्षा बलों की सहायता से प्रतिकारक रूप से निपटना,
ii. आर्थिक विकास को तेज करना और आम लोगों की शिकायतों को दूर करना,
iii. जम्मू-कश्मीर के ऐसे सभी लोगों के साथ बातचीत करने को तैयार होना जो बातचीत करने के इच्छुक हों और हिंसा का रास्ता छोड़ने की मंशा रखते हों ।
भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौती पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित छाया युद्ध और आतंकवाद है । संसद और कश्मीर विधानसभा भवन पर हमला भारतीय लोकतन्त्र की नींव पर हमला है । 11 जुलाई, 2006 को क्रमवार हुए मुम्बई की ट्रेनों में विस्फोटों में 200 लोग मारे गये और 700 से ज्यादा लोग जख्मी हुए । विभिन्न आतंकवादी संगठनों और समूहों के लिए मुम्बई लम्बे अरसे से लगातार एक प्रमुख निशाना बनी हुई है । पिछले 13 वर्षों में इस महानगर ने सात आतंकवादी हमलों का दंश झेला है ।
रूस में आतंकवाद:
सोवियत संघ के विघटन के बाद से ही मध्य एशिया में उत्तरी काकेशस के क्षेत्र में इस्लामी आतंकवाद ने पैर जमाना आरम्भ कर दिया था । पूरे उत्तरी काकेशस क्षेत्र को स्वतन्त्र इस्लामी राज्य में रूपान्तरित करना उनका घोषित लक्ष्य था । उनकी छत्रछाया में अपराधियों एवं मादक पदार्थों के अवैध व्यापार में लगे व्यक्तियों को फलने-फूलने का पूरा मौका प्राप्त हो रहा था ।
चेचेन्या में उन्होंने अपना केन्द्र स्थापित कर लिया था तथा दागस्तान को अपनी कार्यवाही के निशाने पर रखा था । अगस्त 1999 के आरम्भ में लगभग 2000 इस्लामी आतंकवादियों ने चेचेन्या से दागस्तान में प्रवेश किया तथा बोतलिख जिले में सक्रिय हो गए ।
यह आतंकवादी आधुनिकतम हथियारों से लैस थे । रूस के प्रमुख शहरों में एकाएक बम विस्फोट होने लगे । आतंकवादियों की आपराधिक कार्यवाही ने रूस की सरकार को उनके विरुद्ध कड़े कदम उठाने के लिए मजबूर किया । सेना के बढ़ते दबाव से आतंकवादियों को चेचेन्या में शरण लेने को मजबूर होना पड़ा ।
चेचेन्या की सरकार की हमदर्दी इस्लामी आतंकवादियों के साथ थी अत: उसने आतंकवादियों के उन्मूलन के लिए रूस के साथ सहयोग नहीं किया । अत: रूस को चेचेन्या के विरुद्ध सैनिक कार्यवाही का अवसर प्राप्त हो गया । सैनिक कार्यवाही दो चरणों में चलायी गई ।
पहले तो हवाई हमलों के द्वारा आतंकवादियों के अड्डों, सैनिक ठिकानों तथा चेचेन्या के आर्थिक प्रतिष्ठानों विशेषकर तेल उद्योग को नष्ट किया गया । आर्थिक प्रतिष्ठानों को नष्ट करने के लिए तर्क दिया गया कि इनसे होने वाली आय का बड़ा हिस्सा आतंकवादियों को लामबंद करने पर खर्चे हो रहा था । सैनिक अभियान के दूसरे चरण में रूस की थल सेना ने चेचेन्या में प्रवेश किया तथा आगे बढ़ते हुए चेचेन्या की राजधानी ग्रोज्नी कौ अपने नियन्त्रण में ले लिया ।
चीन में आतंकवाद:
चीन में मुस्लिम आतंकवादियों का प्रकोप जारी है । यहां के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र शिनव्यांग में वर्ष 1988 से यह आन्दोलन चल रहा है । वर्ष 1997 में यहां के अलगाववादी आतंकवादियों ने चीन के कई बड़े अधिकारियों को मौत के घाट उतार दिया । बाद में इन्हें फांसी की सजा सुनाई गई ।
इनमें से 11 आतंकवादियों को जनवरी 1998 में फांसी दे दी गई । इन सभी पर निर्दोष बच्चों की हत्या, पुलिस के वाहन फूंकने व सरकारी सम्पत्तियों को जलाने का आरोप था ।
श्रीलंका में आतंकबाद:
श्रीलंका में तमिल आतंकवाद किसी से छिपा नहीं है । स्वतन्त्र तमिल ईलम (राज्य) की स्थापना के लिए शुरू किया गया संघर्ष ‘लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम’ (लिट्टे) के नेतृत्व में वर्षों तक जारी रहा है । लिट्टे की छापामार लड़ाई में श्रीलंका की सेना के सैनिकों की हत्या आए दिन होती रहती है ।
अल्जीरिया, सूडान और मिस्र में आतंकवाद:
अल्जीरिया, सूडान और मिस्र जैसे देश हजारों वर्ष पुरानी अरब संस्कृति से जुड़े रहे हैं, अब ये भी पिछले कई वर्षों से आतंकवाद की भट्टी में झुलस रहे हैं । अल्जीरिया में पिछले 6-7 वर्षों से आतंकवाद जारी है और अब तक 75,000 से अधिक लोग इसका शिकार हो चुके हैं ।
सूडान में 1958 से हिंसात्मक गतिविधियां जारी हैं, यहां का आतंकवाद कभी कम हो जाता है तो कभी बढ़ जाता है । मिस्र का कट्टरवादी आतंक अपनी पराकाष्ठा पर पहुंच चुका है । आतंकवाद का भयावह साया तुर्की, जोर्डन, लीबिया, ईरान आदि देशों में भी है । पेरू से लेकर फिलीपीन्स तक, अंगोला से लेकर अजरबैजान तक आतंकवादी गतिविधियां जारी हैं ।
इराक और सीरिया में आई.एस.आई.एस. का आतंक:
इराक और सीरिया में आई.एस.आई.एस. बगदादी के नेतृत्व में तेजी से पैर पसार रहा है । आई.एस.आई.एस. कोई एक देश नहीं है, यह सिर्फ एक आतंकवादी संगठन है, अलकायदा का अलग हो चुका एक हिस्सा । इसके कार्य करने का तरीका आधुनिक है । इसने तकनीक में माहिर नौजवानों को कार्य सौंप रखा है, ये आधुनिक तरीकों से आतंकवादी घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं ।
Essay # 3. आतंकवाद : रुग्ण समाज की उपज (Terrorism : Product of Sick Society):
ADVERTISEMENTS:
आतंकवाद राज्य एवं समाज के विषैले चरित्र की उपज है । समाज में व्याप्त बहुआयामी विषमता एवं असन्तुलन, क्षेत्रीय असमानताएं एवं आकांक्षाएं, सामन्ती एवं औपनिवेशिक मूल्य दृष्टियां, जातीय एवं वर्णगत वर्चस्ववादिता, धार्मिक असहिष्णुता, अवैज्ञानिकता, अन्धविश्वास, धर्मगत राज्य व कट्टर राष्ट्रवाद, युद्धोन्माद, तकनीकी कौशल का नकारात्मक प्रयोग, राजसत्ता का कुलीनीकरण जैसी घातक प्रवृत्तियां फासीवाद, उग्रवाद और आतंकवाद को बीज-खाद-जल-जमीन प्रदान करती हैं ।
आतंकवाद की उत्पत्ति राज्यों में अल्पसंख्यकों या रंगभेद या जातीयता और धर्म के नाम पर अपनायी गयी दमन और संरक्षण की दोगली नीति के कारण हुई । धार्मिक कट्टरवादिता एवं जातीय उन्माद और बाहरी राष्ट्रों द्वारा किए गए पोषण ने आतंकवाद को तेजी से विकसित किया ।
आतंकवाद बीमार (रुग्ण) सामाजिक व्यवस्था की उत्पाद है । इसकी उत्पत्ति राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक मांगों की तरफ एक लम्बे समय तक ध्यान न देने या एकाकीपन (Unnoticed Alienation) के परिणामस्वरूप होती है ।
आज की स्थिति में असन्तोष, हताशा, निराशा, उपेक्षा, शोषण और अत्याचार इसके प्रमुख कारण हैं । जब तक न्याय मिलने में विलम्ब या कुप्रबन्ध रहेगा, आतंकवाद किसी-न-किसी रूप में विद्यमान रहेगा । इन्हीं कारणों से नई सदी का आतंकवाद पहले से कहीं अधिक व्यापक, गहरा और शक्तिशाली बन चुका है ।
आतंकवादियों के पास रॉकेट, रॉकेट लांचर, तोपें, मशीनगनें, शक्तिशाली बम, आर. डी. एक्स. जैसी विस्फोटक सामग्री, हेलीकॉप्टर, गुप्त विमान, अकूत जाली मुद्राएं, गोपनीय उद्योग व बैंक खाते, शक्तिशाली संचार प्रणाली, भूमिगत रेडियो व टी.वी. स्टेशन, आत्मघाती दस्ते जैसे विध्वंसकारी संसाधन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं ।