ADVERTISEMENTS:
Here is an essay on ‘National Character’ especially written for school and college students in Hindi language.
राष्ट्रीय चरित्र शक्ति का अमूर्त, सूक्ष्म तथा मानवीय तत्व है । कोलरिज ने लिखा है कि इतिहास इसका साक्ष्य है कि प्रत्येक देश के निवासियों में कुछ सामान्य गुण, अवगुण अवश्य पाए जाते हैं जिन्हें हम सामूहिक रूप से राष्ट्रीय चरित्र के नाम से जानते हैं ।
मॉरगेन्थाऊ के शब्दों में- ”राष्ट्रीय शक्ति पर राष्ट्रीय चरित्र का अनिवार्यत: प्रभाव पड़ता है, क्योंकि जो भी व्यक्ति युद्ध तथा शान्ति में राष्ट्र की ओर से कार्य करते हैं, चुनते हैं, अथवा चुने जाते हैं, जनमत पर निर्णयात्मक प्रभाव डालते हैं, उत्पादन तथा खपत बढ़ाते हैं । ये सभी लोग अधिक या कम स्तर पर उन बौद्धिक तथा नैतिक गुणों की छाप से मुक्त रहते हैं, जो राष्ट्रीय चरित्र को निर्मित करते हैं ।”
किसी भी देश की राष्ट्रीय शक्ति का मूल्यांकन करते हुए राष्ट्रीय चरित्र को भले ही वह कितना ही अमूर्त हो, ध्यान में रखना होगा । राष्ट्रीय चरित्र केकारण जर्मनी तथा रूस सैन्यीकरण पर आधारित विदेश नीतियां सरलता से अपना सकते हैं, जबकि अमरीका तथा ब्रिटेन ऐसा नहीं कर सकते क्योंकि इन दोनों देशों का जनमानस मूलत: सैन्यीकरण के विरुद्ध है ।
रूसी राष्ट्रीय चरित्र की विशेषता उसकी अटलता, अविचलता (Persistence), शौर्य, अडिगपन, धैर्य और विदेशियों के प्रति सन्देह की भावना है । बिस्मार्क ने रूसी कर्तव्यनिष्ठा और स्थिरता के दो उदाहरण दिए हैं: 1825 में गेट पीटर्सबर्ग में बाढ़ आयी थी, किन्तु इसके आने पर भी रक्षा करने वाले प्रहरी अपने स्थान पर खड़े रहे और बाढ़ में बह गए किन्तु उन्होंने अपना स्थान नहीं छोड़ा ।
1877 में इसी प्रकार शिपकी दर्रे में सैनिक अपने स्थान पर खड़े हुए बर्फ में दबकर मर गए । ये उदाहरण रूसियों के उस अविचल, अटल, अडिग निश्चय एवं दृढ़ संकल्प की और कर्तव्य पालन की भावना को सूचित करते हैं जिसके कारण उन्होंने द्वितीय विश्वयुद्ध में सैकड़ों मील भीतर घुसे हुए नाजी सैनिकों को अपने देश से निकाल भगाने में सफलता प्राप्त की थी ।
अमरीकी चरित्र की विशेषता है, ‘व्यक्तिगत प्रेरणा तथा आविष्कार की क्षमता’ (The individual initiative and inventiveness), ब्रिटिश लोगों की ‘कट्टरहीनता एवं साधारण सूझबूझ’ (The discipline and thoroughness) वे गुण हैं जो सदा ही प्रकट होते रहते हैं । भारतीय बड़े से बड़े अन्याय की दर्शन के आधार पर सह लेता है परन्तु विषम परिस्थितियों से जूझने की उसमें अपूर्व क्षमता है ।’
जब-जब भी किसी विशेष राष्ट्र के सदस्य व्यक्तिगत अथवा सामूहिक कार्यों में लिप्त होते हैं तब-तब उनका राष्ट्रीय चरित्र व्यक्त होता चलता है । सैनिकवाद का विरोध अनिवार्य सैनिक नौकरी तथा स्थायी सेना के प्रति विरक्ति अमरीकन तथा ब्रिटिश राष्ट्रीय चरित्र के स्थायी तत्व हैं ।
ADVERTISEMENTS:
रूस में सरकार की प्रभुत्वकारी शक्ति की आज्ञापालन की परम्परा तथा विदेशियों के प्रति परम्परागत भय की भावना ने वहां की जनता को बड़े स्थायी सैनिक संगठनों को अपना लेने के लिए प्रेरित किया । जर्मनी, रूस, जापान और इजरायल के राष्ट्रीय चरित्र ने शक्ति संघर्ष में उन्हें प्रारम्भिक लाभ प्रदान कर रखा है, क्योंकि वे शान्तिकाल में ही अपने राष्ट्रीय साधनों का एक बड़ा भाग युद्ध के यन्त्रों में प्रयुक्त कर सकते हैं ।
दूसरी तरफ ऐसे परिवर्तन के प्रति ब्रिटिश अमरीकन और भारतीय जनता की उदासीनता विशेषकर राष्ट्रीय संकट के समय को छोड़कर वैदेशिक नीतियों को बहुत हद तक प्रभावित करती हैं । पाकिस्तान की सैनिकवादी सरकार अपने स्वयं के चुने हुए क्षण में युद्ध की योजना बना सकती है उसकी तैयारी कर सकती है और उसको संचालित भी कर सकती है जबकि भारत जैसे शान्तिप्रिय राष्ट्र की सरकार इस प्रसंग में अपने आपको हानिकर परिस्थिति में पाती है क्योंकि अपनी जनता की आन्तरिक सैनिकतावाद विरोधी प्रवृत्तियों से वह बंधी रहती है ।
वस्तुत: जब वह युद्ध की घोषणा करती है तो प्राय: शत्रु की इच्छा से बाध्य होकर ही उसे ऐसा करना पड़ता है । अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के पर्यवेक्षक को जो विभिन्न राष्ट्रों की आनुपातिक शक्ति का मूल्यांकन करना चाहता है राष्ट्रीय चरित्र के गूढ़ तत्व का ज्ञान रखना आवश्यक है ।
ADVERTISEMENTS:
ADVERTISEMENTS:
ऐसा न कर सकने की असफलता निर्णय व नीति की वैसी ही भूल का कारण बन सकती है, जैसी भूल प्रथम विश्वयुद्ध के उपरान्त जर्मनी की फिर से शक्ति संचय करने की क्षमता को कम करके आंकने से हुई थी ।
मॉरगेन्थाऊ लिखते हैं: “वार्साय की सन्धि जर्मनी को राष्ट्रीय शक्ति के अन्य यन्त्रों में बाधित कर सकती थी जैसे भूमि कच्चे माल के स्रोत औद्योगिक क्षमता तथा सैनिक संगठन हैं परन्तु वह जर्मनी को उन तमाम चरित्र व बुद्धि के गुणों से वंचित नहीं कर सकती थी जिनके सहारे दो शताब्दियों में ही उसने वह सब कुछ वापस कर लिया जो कि उसने खो दिया और जगत में एकाकी रूप से सर्वशक्तिमान राष्ट्र के रूप मे उदित हुआ ।”
भारतीय स्वाधीनता के बाद चीन और पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण किया और अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में भारतीय महत्वाकांक्षाओं को चूर करने का साहस आखिर क्यों किया ? इसके लिए बहुत कुछ भारतीय चरित्र उत्तरदायी है । उदासीनता, सामंजस्य और सहिष्णुता की भावना शान्तिवाद एवं अहिंसा में आस्था, सामाजिक विषमता एवं फूट भारतीय चरित्र की विशेषताएं हैं ।
एक सबल देश के नागरिकों में जो गुण होने चाहिए जैसे स्पष्टवादिता अन्याय का प्रतिकार करने की भावना पहल करने की क्षमता ये भारतीय नागरिकों में आमतौर से कम पाए जाते हैं और इसी कारण चीनियों ने सन् 1962 में और पाकिस्तान ने 1965 में भारत को झटका दिया ।
जर्मन नागरिकों में जिस प्रकार की संगठन निर्माण की कुशलता पायी जाती है वैसी भारतीय नागरिकों में नहीं पायी जाती और यह भी भारत की कमजोरी का एक कारण है । गांधी की अहिंसावादी विचारधारा ने भारतीय चरित्र को शान्तिवादी (Pacifist Type) बना दिया जिससे समझौतावादी और तुष्टिकरण की विदेश नीति का अभ्युदय हुआ ।