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Here is an essay on ‘National Morale’ especially written for school and college students in Hindi language.
मनोबल राष्ट्रीय शक्ति का एक सूक्ष्म तथापि प्रभावकारी तत्व है । मनोबल वास्तव में वह अमूर्त भाव है जो अपनी विशिष्ट निष्ठा, साहस, विश्वास, व्यक्तित्व की गरिमा को सुरक्षित रखने की भावना से प्रेरित होता है । मॉरगेन्थाऊ के अनुसार- राष्ट्रीय मनोबल निश्चय का वह अनुपात है जिसके अनुसार एक राष्ट्र शान्ति एवं युद्ध के समय अपनी सरकार की विदेश नीति का समर्थन करता है ।
यह किसी राष्ट्र के प्रत्येक कार्य में व्याप्त रहता है । मनोबल में राष्ट्र की सारी क्रियाएं-औद्योगिक व कृषि उत्पादन तथा सैनिक तैयारियां व कूटनीतिक सेवाएं समाहित होती हैं । लोकमत के रूप में यह वह अदृश्य तत्व प्रदान करता है जिसके सहारे के बिना कोई भी सरकार चाहे वह लोकतान्त्रिक हो अथवा निरंकुश, अपनी नीतियों को पूर्ण प्रभाव के साथ कार्यान्वित नहीं कर सकती ।
मनोबल या हौसले की उपस्थिति या अनुपस्थिति तथा उसके गुण राष्ट्रीय संकट के समय प्रकट होते हैं जबकि या तो राष्ट्र का जीवन ही दांव पर हो और वह आधारभूत निर्णय लेने की घड़ी हो, जिस पर राष्ट्र का जीवित रहना अवलम्बित हो ।
राजनीति के सन्दर्भ में मनोबल एक पूरे राष्ट्र का वह सामूहिक मानसिक दृष्टिकोण है, जिससे वह अपनी सरकार की नीतियों को हितकर मानकर उनका समर्थन करने को तत्पर होता । कोई भी सरकार तब तक कार्य नहीं कर सकती जब तक उसे यह विश्वास नहीं होता कि उसकी आन्तरिक तथा बाह्य नीतियों को उसके औद्योगिक सैनिक राजनयिक कार्यकलापों को जनता का समर्थन प्राप्त है ।
समर्थन के इस अमूर्त भाव से शासन का मनोबल विकसित होता है । मनोबल का एक अंश है बलिदान की तत्परता । इसी तत्परता का किसी राष्ट्र की सेना पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है । पर किसी राष्ट्रीय संकट के समय आक्रमण का मुकाबला करने के लिए बलिदान करने और मुकाबला करने की तत्परता का आम जनता में होना भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना सशस सेनाओं में ।
बलिदान की तत्परता युद्ध काल में ही नहीं बल्कि शान्तिकाल में भी राष्ट्रीय शक्ति का निर्माण करने में सहायक होती है । शान्तिकालीन बलिदान का सबसे अधिक औचित्य असैनिक जनसंख्या के ही प्रसंग में होता है ।
राष्ट्रीय चरित्र के कुछ गुण इतिहास के किसी विशेष क्षण में एक जनता के राष्ट्रीय हौसले में अपने आपको प्रकट करते हैं; जैसे अंग्रेजों की सहज सूझ-बूझ, फ्रांसीसियों का व्यक्तिवाद, रूसियों की दृढ़ता, इत्यादि, परन्तु किसी राष्ट्र के चरित्र के आधार पर यह निर्णय नहीं किया जा सकता कि विशेष परिस्थितियों में किसी राष्ट्र का मनोबल क्या होगा ।
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राष्ट्रीय संकट के समय में जिस देश के निवासियों का मनोबल जितना ऊंचा होगा, वह उतनी ही सफलता से संकटों का सामना कर सकेगा । इसका सर्वोत्तम उदाहरण 1940 का ग्रेट ब्रिटेन है । उस समय हिटलर ने अपने विद्युतयुद्ध की नवीन रणनीति से समूचे पश्चिमी यूरोप को पदाक्रान्त करके उस पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया था एक-मात्र ब्रिटेन पर वह इंगलिश-चैनल में ब्रिटिश नौसेना की प्रबलता के कारण अपनी सेनाएं नहीं उतार सका था किन्तु दिन-रात उसके शक्तिशाली बमवर्षक वायुयान इंग्लैण्ड पर बमबारी करते रहते थे, उसे कहीं से भी कोई सहायता मिलने की आशा नहीं थी ।
फिर भी इस समय चर्चिल के नेतृत्व में अंग्रेजों ने दृढ़ संकल्प के साथ अपना संघर्ष जारी रखा और अन्त में अपने इस ऊंचे मनोबल के कारण ही ग्रेट ब्रिटेन को युद्ध में सफलता मिली । एक हार किस प्रकार किसी देश के मनोबल को निर्बल बनाती है, इसका उदाहरण 1917 में केपोरेटो के रणक्षेत्र में इटली की हार थी जिसमें 3 लाख इटालियन बन्दी बनाए गए ।
इसके बाद इटली की लड़ने की हिम्मत बिल्कुल टूट गई । 1971 के भारत-पाक युद्ध में बंगलादेश में मिली सफलताओं के कारण भारतीयों का मनोबल बहुत ऊंचा था और पाकिस्तान का मनोबल अपनी विफलताओं से इतना अधिक गिर गया कि बांग्लादेश में पाकिस्तान के प्रधान सेनापति ले. जनरल नियाजी ने अपने 93 हजार सैनिकों के साथ आत्मसमर्पण किया ।
इतिहास में इतने कम समय में इतने अधिक सैनिकों के आत्मसमर्पण की यह अभूतपूर्व घटना थी । राष्ट्रीय मनोबल की अन्तिम परीक्षा युद्ध है तथापि इसका महत्व प्रत्येक उस परिस्थिति में प्रकट होता है, जबकि किसी राष्ट्र की शक्ति किसी अन्तर्राष्ट्रीय समस्या के सम्बन्ध में उपयोग में लायी गयी है ।
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यदि किसी राष्ट्र में लोगों का कोई भी अंग स्थायी रूप से यह महसूस करता है कि, वह अपने अधिकारों व राष्ट्रीय जीवन में पूर्ण रूप से भाग लेने से वंचित है तो उस वर्ग में राष्ट्रीय मनोबल उन अन्य अंगों की तुलना में कम होगा जो कि ऐसे अभावों से ग्रस्त नहीं हैं ।
जब कभी किसी राष्ट्र की जनता गहरे मतभेदों द्वारा फूट का शिकार होती है तो विदेश नीति के पक्ष में जनता का समर्थन सदा अनिश्चित रहता है । यह समर्थन वास्तव में और भी कम होगा यदि उस विदेश नीति की सफलता अथवा असफलता का गृह संघर्ष की समस्या पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ने वाला हो ।
निरंकुश सरकारें, जोकि अपनी नीतियों के निर्माण के समय जनता की इच्छा और अभिलाषा को दृष्टि में नहीं रखती हैं अपनी वैदेशिक नीतियों के पक्ष में जनता के सहयोग की आशा नहीं कर सकती हैं । इस दृष्टि से आस्ट्रिया का उदाहरण उल्लेखनीय है: आस्ट्रिया की विदेश नीति विशेषकर स्ताव राष्ट्रों से सम्बन्धित नीतियां उनको कमजोर करने के लक्ष्य से संचालित होती थीं ताकि आस्ट्रियन राज्य के अन्तर्गत बसी स्ताव राष्ट्र जातियों को नियन्त्रण में रखा जा सके ।
इसके परिणामस्वरूप ये स्ताव राष्ट्र जातियां अपनी ही सरकार की वैदेशिक नीतियों के प्रति उदासीन रहती थीं और अपने निकृष्ट रूप में वे स्ताव सरकारों की अपनी ही सरकार के विरुद्ध निर्दिष्ट नीतियों का सक्रिय समर्थन करती थीं ।
प्रथम विश्वयुद्ध के मध्य आस्ट्रो-हंगेरियन फौज की सभी स्ताव टुकड़ियां रूसियों से जा मिली थीं । सोवियत संघ को द्वितीय विश्वयुद्ध के मध्य ऐसे ही हौसले की कमी का अनुभव हुआ था जबकि यूकरेनियनों व टारटर निवासियों की फौजों की बड़ी टुकड़ियां बगावत करके जर्मनों से जा मिली थीं ।
ग्रेट ब्रिटेन को भारत के सम्बन्ध में ऐसा ही अनुभव हुआ था क्योंकि भारत की जनता ने एक वैदेशिक स्वामी की वैदेशिक नीतियों का समर्थन बिना इच्छा के तथा बेमन से किया था, परन्तु सुभाष चन्द्र बोस व उनके अनुयायियों की तरह द्वितीय विश्वयुद्ध में वैदेशिक स्वामी के शत्रु के क्रियाशील सहायता के लिए भारतीय प्रस्तुत नहीं हुए ।
जिस देश में वर्णभेद की खाइयां बहुत गहरी हैं वह देश अपने राष्ट्रीय हौसले को अनिश्चित अवस्था में पाएगा । जितनी अधिक निकटता से एक जनता अपनी सरकार के कार्यों तथा लक्ष्यों-विशेषकर उसके वैदेशिक मामलों से सम्बन्धित कार्यों से एकीकरण स्थापित कर लेती है, उतना ही राष्ट्रीय मनोबल के ऊंचा होने की सम्भावना है, और यदि ऐसा न हो तो ठीक उसके विपरीत होगा ।
अर्थात् राष्ट्रीय मनोबल की कसौटी यह है कि राष्ट्रीय सरकार पर उसके निवासियों की कितनी आस्था है । राष्ट्रीय मनोबल के दृष्टिकोण से किसी भी राष्ट्र की शक्ति उसकी सरकार में निहित रहती है । जो राष्ट्र अच्छी तरह शासित है वहां के निवासियों का राष्ट्रीय मनोबल उन राष्ट्रों से अधिक होगा जहां का शासन बुरा है । इसी कारण राष्ट्रीय मनोबल को बढ़ाने का एकमात्र साधन सरकार के गुणों को बढ़ाना है ।
मनोबल को प्रभावित करने वाले तत्व:
मनोबल एक गतिशील विचार है । यह हर परिस्थिति के अन्तर्गत समान नहीं रहता । यह सम्भव है कि एक राज्य जिसने एक कठिनाई में उच्च मनोबल प्रदर्शित किया था दूसरी कठिनाई के समक्ष बहुत शीघ्र ही टूट जाए । वास्तव में कुछ ऐसे तत्व हैं जिनसे मनोबल प्रदर्शित होता है ।
वे निम्नलिखित हैं:
(i) राष्ट्रीय चरित्र:
रहन-सहन, विचार, भाषा, धर्म, संस्कृति व एक वस्तु के प्रति अपनाए जाने वाले दृष्टिकोण की समानता को राष्ट्रीय चरित्र के नाम से सम्बोधित किया जाता है । यह राष्ट्रीय मनोबल पर बहुत अधिक प्रभाव डालता है । ब्रिटेन के निवासी अपनी संस्थाओं से प्रेम करते हैं लोकतन्त्र के प्रति गहरी आस्था रखते हैं एवं क्रान्तिकारी परिवर्तनों की ओर उदासीन रहते हैं । यही कारण है कि ब्रिटेन दो विश्वयुद्धों की विभीषिका को झेलने के बाद भी पूर्ववत् है जबकि अन्य देशों में छोटे से छोटा संकट राज्य के स्वरूप को बदल देता है ।
(ii) संस्कृति:
संस्कृति व्यक्तियों के विचारों व मूल्यों को बौद्धिक स्तर प्रदान करती है । नवीन संस्कृति नवीन विचारों को लेकर आती है जो अधिक स्पष्ट व परिस्थिति के अनुकूल होने के कारण राष्ट्रीय मनोबल का निर्माण करती है ।
(iii) लोकप्रिय नेतृत्व:
मनोवैज्ञानिक आधार पर एक राज्य के निवासी अपने आपको एक नेता के साथ सम्बद्ध कर देते हैं । ऐसे लोकप्रिय नेता का आह्वान राष्ट्रीय मनोबल को ऊंचा उठाता है । चीन के 80 करोड़ नर-नारी माओ के साथ इसी प्रकार सम्बद्ध थे । हो-ची-मिन्ह के नेतृत्व ने वियतनामियों का मनोबल इतना ऊंचा कर दिया कि अमरीका को वियतनाम से बेआबरू भागना पड़ा ।
(iv) सुयोग्य सरकार:
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एक योग्य सरकार राष्ट्रीय मनोबल को अत्यधिक बढ़ाने में सफल होती है । 1971 ई. के भारत-पाक संघर्ष में पाकिस्तान की हार का मुख्य कारण अयोग्य सरकार (Inefficient Government) का होना था ।
(v) परिस्थिति:
स्थिति या अवसर का मनोबल के ऊपर सकारात्मक एवं नकारात्मक प्रभाव पड़ता है । राष्ट्रीय संकट के समय कई ऐसे अवसर आते हैं जिनमें सपूर्ण राष्ट्र एक हो जाता हे । 1965 ई. के भारत-पाक संघर्ष में निरन्तर विजयों के कारण भारतीय राष्ट्रीय मनोबल अपनी पराकाध पर था ।
यह सकारात्मक प्रभाव माना जा सकता है । कभी-कभी राष्ट्र के समक्ष कठिन परिस्थितियां आ जाती हैं, जैसे: बाढ़ सूखा दुर्घटनाएं व नेताओं की मृत्यु । इन परिस्थितियों में जनता का मनोबल टूट जाता है । लगातार हारों के पश्चात् भी ब्रिटिश मनोबल ज्यों-का-त्यों बना रहा ।
यह उसके मनोबल की स्थिरता का परिचायक है । ब्रिटिश प्रधानमन्त्री चर्चिल ने राष्ट्रीय मनोबल को स्थिर बनाए रखने के सम्बन्ध में यह विचार दिए थे: ‘युद्ध में सूझ-बूझ, हार में धैर्य व शान्ति में महानता ही राष्ट्रीय मनोबल की रीढ़ की हहुईा के समान है ।’ संक्षेप में, मनोबल राष्ट्रीय शक्ति का एक महत्वपूर्ण तत्व है । बिना राष्ट्रीय मनोबल के राष्ट्रीय शक्ति केवल एक भौतिक शक्ति के अलावा कुछ भी नहीं है ।