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Read this essay in Hindi to learn about the five major causes of war in the world.
1. राजनीतिक कारण:
युद्ध मुख्यतया राजनीतिक कारणों से होता है । अमर्यादित सम्प्रभुता, शक्ति सन्तुलन की समस्या दूसरे राज्यों के प्रति अविश्वास भय सन्देह की भावना आक्रामक विदेश नीतियां आदि कई कारण युद्धों को जन्म देते हैं । युद्ध इस दृष्टि से एक राजनीतिक इकाई द्वारा दूसरी राजनीतिक इकाई के साथ अपने स्वार्थों की पूर्ति का संघर्ष है । इस दृष्टि से युद्ध करने का अधिकार सम्प्रभुता की सबसे मुख्य विशेषता है और राज्य अपने इस अधिकार की रक्षा के लिए अत्यन्त जागरूक हैं ।
2. मनोवैज्ञानिक कारण:
मनोवैज्ञानिकों ने युद्ध की विवेचना करते हुए कई उत्तर दिए हैं । फ्राइड तथा अन्य कई मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि, मनुष्य में विनाशकारी प्रवृति होती है जो उसे लड़ने के लिए प्रेरित करती है । यह भी कहा जाता है कि मनुष्यों में दूसरों पर शासन करने की इच्छा होती है जो उनमें विस्तारवादी भावना को प्रोत्साहित करती है ।
बदला लेने की इच्छा, संग्रह करने की प्रवृत्ति आदि को भी मनोवैज्ञानिक आंशिक रूप से युद्धों का कारण मानते हैं । द्वितीय विश्वयुद्ध में संयुक्त राज्य अमरीका युद्ध में इसलिए शामिल हुआ था क्योंकि वह पर्कहार्बर पर हुए जापान के आक्रमण का बदला लेना चाहता था ।
प्रथम विश्वयुद्ध के बाद इटली और जर्मनी में भूमिलिक्षा की प्रवृति, संग्रह इच्छा ही थी । मनोवैज्ञानिकों के अनुसार युद्ध इसलिए भी होते हैं, क्योंकि मनुष्यों की साहसपूर्ण और उत्तेजनात्मक कार्यों में रुचि होती है और युद्ध में उनकी इस इच्छा को पूरा करने का पूर्ण अवसर प्राप्त होता है । इस प्रकार युद्ध के कारण मनुष्य के स्वभाव में निहित हैं ।
3. सांस्कृतिक कारण:
ऐसा भी माना जाता है कि- सांस्कृतिक, वैचारिक तथा धार्मिक कारणों ने युद्धों को जन्म दिया है । यह कहा जाता है कि संस्कृति और विचारधारा का सम्बन्ध एक बड़ी सीमा तक साथ है इसलिए विश्व इतिहास में जितने भी युद्ध अभी तक धर्म के नाम पर लड़े गए हैं, उन्हें इसी कारण से अनुप्राणित समझा जाना चाहिए । प्रोटेस्टैण्ट-कैथोलिक, ईसाई-मुस्लिम मतभेद एवं हिंदू-मुस्लिंम मतभेद संघर्षों को जन्म देते रहे हैं ।
मध्यकालीन यूरोप में धर्म के नाम पर कई युद्ध हुए हैं । बहुत-से राज्यों ने दूसरे देशों पर अपनी संस्कृति को थोपने के लिए दबाव एवं शक्ति का प्रयोग किया है । बीसवीं शताब्दी को विचारधाराओं के संघर्ष का युग कहा जाता है । इसमें लोकतन्त्र तथा अधिनायकतन्त्र, पूंजीवादी विचारधाराओं तथा साम्यवादी विचारधाराओं में खूब संघर्ष चला है और छोटे-मोटे युद्ध इन्हीं संघर्षों का परिणाम हैं ।
द्वितीय विश्वयुद्ध में एक ओर फासिस्ट शक्तियां थीं, तो दूसरी ओर प्रजातन्त्र में विश्वास रखने वाले देश थे । साम्यवादी और पूंजीवादी देशों में अनिवार्य संघर्ष होना मार्क्स, लेनिन अथवा स्टालिन की मूल मान्यता है । 1945 के पश्चात् विश्व में शीतयुद्ध की स्थिति, दो विरोधी विचारधाराओं का ही परिणाम थी ।
4. आर्थिक कारण:
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आर्थिक समस्याएं भी युद्ध का कारण होती हैं । सम्भवत: ही कोई ऐसा युद्ध हो जिसमें आर्थिक समस्याओं के प्रश्न न हों:
(i) यदि किसी देश में (जैसे: जापान, इटली, जर्मनी) जनसंख्या की अधिक वृद्धि होती जाती है तथा देश की आर्थिक स्थिति इस भार को वहन नहीं कर सकती तो राज्य ऐसे क्षेत्रों की तलाश करते हैं जो आर्थिक दृष्टि से उपजाऊ हों तथा जहां अतिरिक्त जनसंख्या को बसाया जा सके । यह युद्ध द्वारा ही सम्भव हो सकता है ।
(ii) साम्यवादी विचारकों का मत है कि युद्ध पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का आवश्यक परिणाम है । पूंजीवादी-अर्थव्यवस्था की मुख्य विशेषता यह है कि नियोजन के लिए कोई स्थान नहीं होता है । फलत: पूंजीवादी अर्थतन्त्र में आए दिन अधिक उत्पादन का संकट पैदा होता है । इस अधिक उत्पादन को खपाने के लिए पूंजीवादी देश मण्डियों की खोज में रहते हैं और मण्डियों की यही खोज युद्ध और साम्राज्यवाद को जन्म देती है ।
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(iii) युद्ध आर्थिक प्रतियोगिताओं के कारण भी हुए हैं । 18वीं और 19वीं शताब्दियों में यूरोप के राज्यों में भारी आर्थिक प्रतियोगिता थी और इस कारण उनमें कई युद्ध हुए ।
(iv) अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार जगत में आर्थिक प्रतिबन्धों ने भी युद्धों को जन्म दिया है । नैपोलियनिक युद्धों में व्यापारिक बन्धनों ने राज्यों को मित्र या शत्रु बनाने में बड़ा योगदान दिया था । इसके अलावा विश्व इतिहास में ऐसे अनेक युद्धों के उदाहरण हैं जिन्हें व्यापार लाभ पाने की दृष्टि से बड़ा गया ।
(v) एक अन्य दृष्टि से युद्धों के आर्थिक कारणों में श्लाइचर ने अर्थ के उस दानव सिद्धान्त की भी व्याख्या की है जब स्फोटास्त्रों के निर्माता यानी मृत्यु के व्यापारी अन्तर्राष्ट्रीय बैंकर्स तथा पूंजीवादी उद्योगपति अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए राष्ट्रों को युद्ध के लिए प्रेरित करते हैं ।
5. अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था:
अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था ने भी युद्धों को जन्म दिया है । अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था को नियन्त्रित करने हेतु सम्प्रभुतासम्पन्न विश्व सरकार का अभाव पाया जाता है, जिससे अराजकता की स्थिति उत्पन्न हुई है । प्रथम विश्वयुद्ध के बाद शान्तिस्सायों द्वारा जिस अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था का प्रादुर्भाव हुआ उसी में द्वितीय विश्वयुद्ध के बीज सत्रिहित थे । राष्ट्रसंघ के तत्वावधान में भी युद्धों को नहीं रोका जा सका ।
संयुक्त राष्ट्रसंघ द्वारा स्थापित सामूहिक सुरक्षा की पद्धति वांछित रूप से काम करने में असफल रही है । अत: एक ऐसी नवीन अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था को जन्म देने की आवश्यकता है जो राष्ट्रीय प्रभुसत्ता को प्रभावपूर्ण तरीके से मर्यादित करने में सफल हो सके ।