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Here is an essay on the ‘World Government’ for class 11 and 12. Find paragraphs, long and short essays on the ‘World Government’ especially written for school and college students in Hindi language.
Essay on the World Government
Essay Contents:
- विश्व सरकार की अवधारणा (Concept of the World Government)
- विश्व सरकार की उपयोगिता (Utility of the World Government)
- विश्व सरकार की विशेषताएं (Characteristics of the World Government)
- विश्व सरकार: निर्माण की प्रक्रिया (The World Government: Process of Making)
- विश्व सरकार के मार्ग में बाधाएं (Deadlocks in the Way of World Government)
Essay # 1. विश्व सरकार की अवधारणा (Concept of the World Government):
द्वितीय महायुद्धोत्तर काल में अन्तर्राष्ट्रीय राजनीतिक चिन्तन के क्षेत्र में जो प्रमुख प्रश्न उभरे है उनमें सबसे महत्वपूर्ण ‘विश्व सरकार’ की अवधारणा है ।
संयुक्त राष्ट्रसंघ की दुर्बलताओं और अणु व उद्जन बम, अन्तर्महाद्वीपीय प्रक्षेपास्त्र और संहारात्मक शस्त्रों के आविष्कार ने अनेक मानवतावादी राजनीतिज्ञों एवं विचारकों को यह सोचने के लिए विवश कर दिया है कि, यदि मानव जाति को तीसरे महायुद्ध में अणु शक्ति के प्रकोप से बचना है तो विश्व के सभी राष्ट्रों को मिलकर एक ऐसे विश्वसंघ का निर्माण करना होगा जिसमें शान्ति व व्यवस्था का उत्तरदायित्व विश्व सरकार का हो । अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं की भयंकरता तथा प्रकृति को देखते हुए उनके समाधान के लिए विश्व सरकार का किसी-न-किसी रूप में होना आवश्यक समझा जाने लगा है ।
मॉरगेन्थाऊ लिखते हैं:
“एक शताब्दी के चतुर्थांश में दो महायुद्धों के अनुभव तथा अणुशखों से तीसरे महायुद्ध की आशंका के कारण विश्व-राज्य का विचार अपूर्व महत्व का हो गया है । तर्क यह दिया जाता है कि संसार की आत्मनाश से रक्षा करने के लिए राष्ट्रीय प्रभुसत्ता के प्रयोग को अन्तर्राष्ट्रीय कर्तव्यों एवं संस्थानों के द्वारा सीमित करने की नहीं वरन् राष्ट्रों की प्रभुसत्ता शक्तियों को एक विश्व शक्ति को प्रदान करने की आवश्यकता है । यह विश्व शक्ति राज्यों पर उसी प्रकार से सार्वभौम होगी जिस प्रकार से राज्य अपने क्षेत्रों में सार्वभौम हैं । अन्तर्राष्ट्रीय समाज में सुधार असफल रहे हैं और इनका असफल होना अवश्यम्भावी था । आवश्यकता इस बात की है कि, प्रभुसत्तासम्पन्न राष्ट्रों के वर्तमान समाज का व्यक्तियों के अधिराष्ट्रीय समुदाय में आमूल रूपान्तर किया जाए ।”
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Essay # 2. विश्व सरकार की उपयोगिता (The Utility of World Government):
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अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं के समाधान के लिए विश्व के अनेक विचारकों ने रचनात्मक रूप से विचार करके विश्व सरकार की स्थापना का सुझाव दिया है । हेरल्ड लास्की के अनुसार, “अन्तर्राष्ट्रीय मामलों में राज्य प्रभुसत्ता धीरे-धीरे समाप्त होती जा रही है, क्योंकि अब उसकी उपयोगिता खत्म हो चुकी है । आज के व्यक्ति को साम्राज्य की धारणा नहीं वरन् संघवाद की कल्पना की आवश्यकता है ।” क्लोरेन्श ए. स्ट्रीट ने अपनी पुस्तक ‘यूनियन नाऊ’ में संघीय प्रकार की एक विश्व सरकार की स्थापना की मांग की है ।
डॉ. राधाकृष्णन् विश्वशान्ति की स्थापना और नए अन्तर्राष्ट्रीय समाज की रचना के लिए विश्व सरकार को सर्वोत्तम साधन मानते हैं । बर्ट्रेण्ड रसेल की मान्यता है कि विश्व सरकार बन जाने से जब सारा विश्व एक सरकार के अधीन हो जाएगा तब युद्धों का स्वरूप ही बदल जाएगा ।
प्रथम तो युद्ध होंगे ही नहीं और यदि होंगे भी तो महायुद्ध न होकर गृहयुद्ध मात्र होंगे । संयुक्त राष्ट्र महासभा में बोलते हुए जवाहरलाल नेहरू ने (20 दिसम्बर, 1963) कहा था कि वर्तमान युग में हम संकुचित दृष्टिकोण नहीं रख सकते । हमें अनागत की ओर देखना चाहिए । इसके लिए निश्चित रूप से केवल एक ही मार्ग है-विश्व सरकार या एक विश्व का उद्भव ।
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डॉ. अप्पादुराय ने चार आधारों पर विश्व संघ की स्थापना का समर्थन किया:
(i) विश्वशान्ति का एकमात्र साधन,
(ii) राष्ट्रों पर अनुशासन रखने के लिए आवश्यक,
(iii) युद्धों को रोकने के लिए आवश्यक,
(iv) प्रगति का प्रतीक ।
संक्षेप में, निम्नलिखित कारणों से आज विश्व सरकार की आवश्यकता प्रकट होती है:
(1) विश्व सरकार के बिना स्थायी शान्ति की स्थापना सम्भव नहीं है ।
(2) विश्व के आर्थिक विकास के लिए विश्व सरकार आवश्यक पैं ।
(3) युद्धों को रोकने के लिए विश्व सरकार आवश्यक है ।
(4) राष्ट्रवाद और साम्राज्यवाद की विभीषिका से मानवता को बचाने का विकल्प भी विश्व सरकार ही है ।
Essay # 3. विश्व सरकार की विशेषताएं (Characteristics of the World Government):
विश्व सरकार के सम्बन्ध में कतिपय महत्वपूर्ण अवधारणात्मक विचार इस प्रकार हैं:
(1) विश्व सरकार एक संघात्मक व्यवस्था है:
कतिपय विचारकों ने विश्व सरकार के संघात्मक प्रतिमान की कल्पना की है जिसमें विभिन्न राज्य घटक इकाइयों के रूप में कार्य करेंगे । जिस प्रकार अमरीका और भारत में संघ व्यवस्था कार्य करती है उसी प्रकार सभी राज्यों को मिलाकर एक संघीय व्यवस्था का निर्माण किया जाए ।
(2) विश्व सरकार सामूहिक सुरक्षा का विकसित रूप:
विश्व सरकार की मान्यता सामूहिक सुरक्षा की कमियों को दूर करने में प्रभावी सिद्ध हो सकती है । सामूहिक सुरक्षा का विचार ऐसी अवस्थाएं पैदा करने की व्यापक समस्या से जुड़ा हुआ है जिनसे विश्व सरकार का विकास होने में मदद मिले । सामूहिक सुरक्षा के समर्थक इसे एक अस्थायी उपाय मानते हैं जिससे अन्त में विश्व सरकार की स्थापना हो सकेगी ।
(3) विश्व सरकार शान्ति स्थापित करने का संस्थागत प्रयत्न हैं:
कतिपय विचारक यह मानते हैं कि अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं का अधिकाधिक विकास ही शान्ति स्थापित करने में समर्थ होगा । अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं के विकास की ये योजनाएं प्राय: विश्व सरकार के विकास पर विशेष बल देती हैं । विश्व सरकार के निर्माण के बाद सम्पभुता और राष्ट्रवाद के आधार पर राज्यों में संघर्ष नहीं होंगे ।
क्लाड के शब्दों में- “सामान्य रूप से विश्व सरकार के सिद्धान्त का आशय ऐसी सत्ताधारी, शक्तिशाली केन्द्रीय संस्थाओं का निर्माण करना है जो राज्यों के बीच सम्बन्धों का मुख्यत: अन्तर्राष्ट्रीय युद्धों को रोकने के लक्ष्य के लिए प्रबन्ध कर सकें ।”
(4) विश्व सरकार शक्ति प्रबन्ध के रूप में:
आज विश्व में शक्ति का असमान रूप से वितरण हो रहा है । राज्यों की शक्ति को नियन्त्रित और अनुशासित कैसे किया जाए यह एक समस्या है । वर्तमान विश्व की अराजकता को विश्व सरकार की स्थापना के अतिरिक्त अन्य किसी साधन द्वारा दूर नहीं किया जा सकता ।
(5) विश्व सरकार द्वारा राष्ट्रीय सम्प्रभुता पर नियन्त्रण:
आज के सम्पभु राज्य अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में मनमाना आचरण करते हैं जिससे अन्तर्राष्ट्रीय जगत की सारी शान्ति भंग होती है । यदि राज्यों की व्यक्तिगत सम्प्रभुता को एक विश्व शक्ति के अर्द कर दिया जाए तो समस्या सुलझ सकती है । ज्योफरे सेवर का मत है कि- ”किसी भी बडे भयानक युद्ध की सम्भावना को तब तक दूर नहीं किया जा सकता जब तक कि सम्पभु आत्मनिर्णायक राज्यों की व्यवस्था को विश्व सरकार की स्थापना द्वारा स्थानान्तरित नहीं कर दिया जाता ।”
Essay # 4. विश्व सरकार: निर्माण की प्रक्रिया (The World Government: Process of Making):
विश्व सरकार को प्राप्त करने के लिए जिन पृथक-पृथक् उपायों का समर्थन किया गया है, वे इस प्रकार हैं:
(1) विश्व विजय द्वारा:
कतिपय विचारकों का कहना है कि, विश्व सरकार के निर्माण का इच्छुक राज्य सैनिक शक्ति का सहारा लेकर विभिन्न छोटे-बड़े सम्प्रभु राज्यों को पराजित कर एक केन्द्रीय शक्ति का निर्माण कर सकता है किन्तु आज के आणविक युग में विश्व विजय का विचार भयावह है । विश्व विजय द्वारा स्थापित विश्व राज्य का आधार शक्ति होगी इच्छा नहीं ।
(2) विश्व संघ के निर्माण द्वारा:
कुछ विचारकों का कहना है कि, विश्व के सभी राज्यों को मिलाकर राज्यों संघ में एकीकृत कर दिया जाए और सभी पर स्विस संविधान जैसी व्यवस्थाएं लागू कर दी जाएं तो विश्व सरकार का समाधान हो जाएगा किन्तु संघ निर्माण के लिए जिन अनुकूल परिस्थितियों का होना आवश्यक है वे अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पैदा नहीं की जा सकतीं ।
(3) विश्व समुदाय के निर्माण द्वारा:
कतिपय विचारकों का कहना है कि, विश्व सरकार के निर्माण से पूर्व विश्व समुदाय का निर्माण किया जाना चाहिए । सभी देशों के नागरिकों के बीच सांकृतिक शैक्षणिक सामाजिक एवं आर्थिक सहयोग की भावना विकसित की जाए ताकि उनमें राष्ट्रीयता के स्थान पर अन्तर्राष्ट्रीयता की भावना विकसित हो । ऐसा होने पर विश्व सरकार की स्थापना सुगम हो जाएगी ।
संयुक्त राष्ट्रसंघ के विभिन्न अभिकरणों, जैसे: यूनेस्को, अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन विश्व स्वास्थ्य संगठन, आदि के माध्यम से विश्व समुदाय के निर्माण के प्रयत्न चल रहे हैं किन्तु ये प्रयत्न अभी शैशवावस्था में ही हैं । मॉरग्रेन्थाऊ के अनुसार- “विश्व राजसत्ता का जन्म तभी हो सकता है जबकि पहले विश्व समुदाय अर्थात् वर्ल्ड कम्युनिटी का विकास हो ।”
वास्तव में विश्व राजसत्ता एक प्रकार से विश्व समुदाय की ही परिणति है । जैसे-जैसे विश्व समुदाय का विकास होगा वैसे-वैसे विश्व राजसत्ता अपने आप स्थापित होती चली जाएगी । अतएव मुख्य समस्या विश्व समुदाय के विकास की है, परन्तु इस प्रकार के समुदाय का विकास अत्यन्त कठिन है । खेद का विषय है कि अभी तक यूनेस्को भी विश्व समुदाय के विकास में कोई महत्वपूर्ण योगदान नहीं दे सका है ।
Essay # 5. विश्व सरकार के मार्ग में बाधाएं (Deadlocks in the Way of World Government):
विश्व सरकार की स्थापना कोई सरल कार्य नहीं है । इसके संगठन के मार्ग में अनेक बाधाएं हैं । विश्व संगठन के निर्माण में सबसे पहला प्रश्न यह उठता है कि, विश्व सरकार का संगठन एकात्मक आधार पर होना चाहिए या संघात्मक आधार पर ? यदि उसे एकात्मक आधार पर संगठित किया जाए तो किस शहर को विश्व का केन्द्र बनाया जाए ? यदि विश्व सरकार संघात्मक आधार पर संगठित की जाए तो विभिन्न राष्ट्रों को उसमें किस आधार पर प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए ? इसी प्रकार विश्व सरकार के लिए विश्व भाषा निश्चित करने की समस्या का समाधान होना कोई सरल कार्य नहीं है ।
विश्व कार्यपालिका और विश्व न्यायपालिका का निर्वाचन और नियुक्ति भी आसान नहीं है क्योंकि उस प्रश्न पर व्यापक मतभेद उत्पन्न हो सकते हैं । डॉ. बी. एम. शर्मा ने लिखा है कि- “ऐसा प्रतीत होता है कि विश्व शान्ति की समस्या को सुलझाने के लिए विश्व संघ का आदर्श केवल कल्पना रह जाएगा उन अनेक कल्पनाओं की भांति जिनके आदर्श प्रशंसनीय हैं किन्तु जिन्हें मानव प्रकृति के कारण सम्भव नहीं बनाया जा सकता ।”
विश्व सरकार के मार्ग की प्रमुख बाधाएं निम्न प्रकार हैं:
(1) सम्प्रभुता की धारणा:
वर्तमान में राज्य सम्पभुता को त्यागने के लिए तैयार नहीं हैं । राष्ट्र राज्यों का गठन सम्पभुता की धारणा के आधार पर ही हुआ है । जब तक सम्पभुता को त्यागने के लिए राष्ट्र तैयार नहीं हो जाते तब तक विश्व सरकार एक सपना ही बना रहेगा । विश्व सरकार की स्थापना के लिए राष्ट्रीय समझता के आदर्श तथा राष्ट्रों के दृष्टिकोण में मनोवैज्ञानिक परिवर्तन की आवश्यकता है ।
(2) उग्र राष्ट्रवाद:
आज भी राज्यों में उग्र राष्ट्रवाद की सुदृढ़ भावनाएं विद्यमान हैं । प्रत्येक राष्ट्र पहले अपने राष्ट्रीय हित की ओर ध्यान देता है और बाद में अन्तर्राष्ट्रीय हित की बात सोचता है । राष्ट्रवाद राष्ट्रों के परस्पर वैमनस्य और धृणा का मुख्य कारण है । टॉयनबी ने लिखा है कि, ”विश्व एकता के लिए राष्ट्रवाद सबसे बड़ी कठिनाई है । विश्व इतिहास के ज्वलन्त अध्याय में राष्ट्रवाद मानवता का एक नम्बर का शत्रु है ।”
(3) उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद:
विश्व सरकार की स्थापना के लिए यह जरूरी है कि, साम्राज्यवाद उपनिवेशवाद और आर्थिक व राजनीतिक शोषण का विश्व में नामोनिशान न रहे किन्तु बड़ी शक्तियां अपनी प्रभावपूर्ण स्थिति खोने के लिए तैयार न होंगी । साम्राज्यवाद से बड़ी शक्तियों को आर्थिक लाभ होता है ।
(4) सैनिकबाद:
राज्यों में भय की भावना है और वे अपने बजट में सैनिक-शक्ति पर बहुत अधिक खर्च करते हैं । सैनिक गुटों का निर्माण किया जा रहा है फलस्वरूप शस्त्रीकरण की होड़ विश्ववाद के मार्ग में रोड़ा है ।
(5) सरकार निर्माण की समस्या:
विश्व के लिए सरकार बनाने का प्रश्न भी कम समस्यापूर्ण नहीं है । उदाहरण के लिए, यदि सम्पूर्ण विश्व की व्यवस्थापिका के संगठन की बात सोची जाए तो भी अनेक ऐसी अड़चनें पैदा होना स्वाभाविक है जिनसे विश्व सरकार का आदर्श अव्यावहारिक दिखाई देता है ।
निष्कर्ष:
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मॉरगेन्थाऊ के अनुसार- “विश्व राज्य के अभाव में अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति स्थायी नहीं हो सकती तथा विश्व की वर्तमान नैतिक सामाजिक एवं राजनीतिक परिस्थितियों में विश्व राज्य की स्थापना नहीं हो सकती ।”
आर्गेन्स्की लिखते हैं कि- ”विश्व सरकार अभी बहुत दूर की बात हैं, वर्तमान राष्ट्रों के ऐच्छिक सहयोग द्वारा विश्व सरकार का निर्माण इतना दुष्कर है कि हम स्पष्टत: कह सकते हैं कि यह कभी नहीं होगा ।”
ऑर्नल्ड फोस्टर के विचार से– “विश्व सरकार की स्थापना के लिए शिक्षा पद्धति में क्रान्तिकारी परिवर्तन की आवश्यकता है । विश्व के भावी नागरिकों को ऐसी शिक्षा दी जानी चाहिए जो उनमें सार्वभौमिक और अन्तर्राष्ट्रीय दृष्टिकोण विकसित करे ।”
सैनिक और शस्त्रीकरण की होड़ पर भी प्रतिबन्ध लगाया जाना चाहिए । यदि लोगों को तीसरे विश्वयुद्ध के भीषण परिणामों से अवगत कराया जाए तो विश्ववाद की निस्सन्देह वृद्धि होने की आशाएं हैं ।
पं. नेहरू ने ठीक ही लिखा था कि- ‘विश्व सरकार’, आनी चाहिए और आएगी, क्योंकि विश्व की बीमारी का इसके अतिरिक्त कोई इलाज नहीं है ।’