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Here is an essay on ‘Forms of International Terrorism’ especially written for school and college students in Hindi language.
आतंकवाद की अभिव्यक्ति कई रूपों में दिखलायी देती है । आतंकवाद का पहला रूप मानव बम है – मानव बम एक ऐसा हथियार है जिसकी काट अब तक विश्व की किसी भी सुरक्षा एजेन्सी, सरकार और सेना के पास नहीं है ।
मरने मारने का संकल्प लिए उच्च विस्फोटकों से लैस चलता-फिरता कोई युवक या युवती मानव बम बना वह व्यक्ति 6 से 8 किलोग्राम आर.डी.एक्स. को बेल्ट में भरकर अपने कमर से बांधे रहता है जो ब्लास्टिंग कैप और बैटरी से जुड़ी है ।
बेल्ट में भरे विस्फोटक का विस्फोटन इलेक्ट्रोनिक प्रणाली पर आधारित होता है, जिसे मात्र एक छोटे से बटन को दबाकर विस्फोटित किया जा सकता है और वह बटन मानव बम बने व्यक्ति की सुविधाजनक पहुंच के भीतर मौजूद होता है ।
एक अनुमान के अनुसार इस समय विश्व में 75 से भी अधिक ऐसे आतंकवादी संगठन हैं जिनके पास मानव बम मौजूद हैं । इनमें श्रीलंका का उग्रवादी संगठन ‘लिट्टे’ भी प्रमुख रहा था । मानव बमों को तैयार करने में लिट्टे को सर्वाधिक दक्षता हासिल थी । लिट्टे के पास मानव बमों की एक पूरी ब्रिगेड थी जिसमें 250 मानव बम आतंकवादी कार्यवाही हेतु हरदम तैयार रहते थे और 900 से ज्यादा रंगरूट मानव बम बनने की प्रतीक्षा में रहते थे ।
सन् 1980-2000 की अवधि में आतंकवादी कार्यवाहियों को अंजाम देने के लिए लगभग 275 मानव बमों का इस्तेमाल किया गया । इसमें सबसे ऊपर लिट्टे था जिसने तबाही मचाने के लिए सबसे ज्यादा 168 बार मानव बमों का प्रयोग किया, जिनमें हजारों लोग मारे गए और अरबों-खरबों की सम्पत्ति नष्ट हुई ।
लिट्टे के बाद दूसरे स्थान पर हिजबुल्लाह एवं सीरिया समर्थित आतंकवादी संगठन इस्लामी जेहादी ने इसी अवधि में 52 बार मानव बमों का इस्तेमाल किया । इनके अतिरिक्त ओसामा बिन लादेन का अलकायदा, फिलिस्तीन की स्वतन्त्रता के लिए लड़ रहा ‘फिलिस्तीन लिबरेशन फ्रन्ट’ एवं हमास पी.के.के.के नाम से प्रसिद्ध तुर्की का वुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी और पाकिस्तान का लश्कर-ए-तोयबा और जैश-ए-मोहम्मद नामक उग्रवादी संगठन बड़ी संख्या में मानव बमों द्वारा हमला करने की क्षमता रखते हैं और हमला करते रहे हैं ।
अमरीकी गृह मत्रालय की एक रिपोर्ट (2000) के अनुसार इस समय विश्व में 550 से 600 तक की संख्या में मानव बम तैयार स्थिति में घूम रहे हैं और वे कुछ भी कर सकते हैं । आज विश्व के किसी भी देश पर मानव बमों के हमले का खतरा मंडरा रहा है ।
सर्वाधिक खतरा ओसामा बिन लादेन के अलकायदा से है क्योंकि यह विश्व का खतरनाक से खतरनाक हथियारों से सुसज्जित सबसे बड़ा खतरनाक और सर्वाधिक सम्पन्न आतंकवादी संगठन है ओर इसका नेटवर्क विश्व के 60 देशों में फैला हुआ है ।
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आतंकवाद का दूसरा रूप सुगठित और समुचित रूप से वित्त पोषित संगठन के रूप में दिखलायी देता है जो अपनी हिंसक और बलकारी गतिविधियों द्वारा सपूर्ण जनमानस को आतंकित करते हैं । आतंकवादी गतिविधियां ‘अरब रिवोल्युशनरी ब्रिगेड’ और ‘इस्लामिक जेहाद’ जैसे संगठनों द्वारा सम्पन्न की जाती हैं और ये समूह आदेश, सदस्यता और उनके मुख्यालय से आबद्ध होते हैं । अनेक बार आतंकवादी कार्यवाही या घटना की जिम्मेदारी किसी-न-किसी समूह या गुट द्वारा ली जाती है ।
समसामयिक विश्व के प्रमुख आतंकवादी संगठन हैं:
(i) डाइरेक्ट एक्शन ग्रुप (फ्रांस),
(ii) अल फतह (फिलिस्तीनी संगठन),
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(iii) अबू निदाल संगठन (फिलिस्तीनी संगठन),
(iv) 15 मई अरब संगठन (फिलिस्तीनी संगठन),
(v) एंग्री ब्रिगेड (ग्रेट ब्रिटेन),
(vi) आर्मीनियाई सीक्रेट आर्मी फार दि लिबरेशन आफ आर्मीनिया,
(vii) बादर मीनहॉफ ग्रुप (जर्मनी),
(viii) ब्लैक जून (फिलिस्तीनी संगठन),
(ix) ईलम रिवोल्यूशनरी आर्गेनाइजेशन (श्रीलंका),
(x) हिरावलकतार (इटली),
(xi) जर्मन एक्शन ग्रुप (जर्मनी),
(xii) जापानी लाल सेना (जापान),
(xiii) मोस्साद (इजरायल),
(xiv) जनता विमुक्ति पेरूमन (श्रीलंका),
(xv) फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन (फिलिस्तीनी संगठन),
(xvi) आयरिश रिपब्लिकन आर्मी (आयरलैण्ड) ।
इनके अतिरिक्त विश्व के कुछ अन्य देशों में सक्रिय आतंकवादी गुट हैं:
(1) पाकिस्तान:
(a) बलूच पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट,
(b) बलूच स्टूडेन्ट्स ऑर्गनाइजेशन आवामी,
(c) हरकत-उल-अंसार,
(d) जमात-उल-फारूक,
(e) मुहाजिर कौमी मूवमेन्ट-हकीकी फैक्शन,
(f) मुताहिदा कौमी मूवमेन्ट-अल्ताफ फैक्शन ।
(2) अफगानिस्तान:
(a) हरकत-ई-इस्लामी,
(b) जमात-ए-इस्लाम,
(c) नेशनल इस्लामिक मूवमेन्ट,
(d) नोर्दर्न एलियन्स,
(e) तालिबान मिलिशिया,
(f) यूनाइटेड इस्लामिक फ्रंट फॉर द सेलवेशन ऑफ अफगानिस्तान ।
(3) इजरायल:
(a) अबु निडाल ऑर्गनाइजेशन,
(b) डेमोक्रेटिक फ्रंट फॉर द लिबरेशन ऑफ पोलेस्तीन,
(c) फतेह उपरिसिंग,
(d) हमस,
(e) ऑर्गनाइजेशन ऑफ द आम्र्ड अरब स्ट्रगल,
(f) पोलेस्तीन लिबरेशन फ्रंट-अबू अब्बास फैक्शन,
(g) पापूलर फ्रंट फॉर द लिबरेशन ऑफ पोलेस्तीन ।
(4) सउदी अरेबिया:
(a) हिजबुल्लाह गल्फ,
(b) इस्लामिक जिहाद इन हेजाज,
(c) जमात अल-अदाला अल-अलामिया,
(d) लोगिओन ऑफ द मार्टिर अब्दुल्लाह अल-हुजाइफी,
(e) मूवमेन्ट फॉर इस्लामिक चेंज,
(f) टाइगर्स ऑफ द गल्फ ।
(5) ईरान:
(a) अल हरकत अल इस्लामिया,
(b) अंसार ए हिजबुल्लाह,
(c) बबाक खोराम्दीन आर्गनाइजेशन,
(d) बैनर ऑफ कावेह,
(e) डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इरानिया कुरदिस्तान,
(f) नेशनल लिबरेशन आर्मी ऑफ ईरान ।
आतंकवाद का तीसरा रूप राज्य प्रायोजित (State Sponsored) आतंकवाद है । विश्व के कई देश प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से आतंकवाद को शह व प्रश्रय दे रहे हैं । ”पैटर्न्स ऑफ ग्लोबल टेरोरिज्म, 1989” (Patterns of Global Terrorism, 1989) नामक रिपोर्ट में 6 राष्ट्रों – क्यूबा, ईरान, इराक, लीबिया, उत्तरी कोरिया, दक्षिणी यमन और सीरिया को राज्य प्रायोजित आतंकवाद का समर्थक माना गया है ।
ऐसे देशों की सूची में अब पाकिस्तान का नाम भी जुड़ गया है । यह बात शत-प्रतिशत सत्य है कि आतंकवाद तभी फूलता-फलता है जब उसे समर्थन देने वाले बाहरी देश हों । भारत में आतंकवाद को बढ़ावा देने वाला पाकिस्तान ही है और इसे अंजाम देने का कार्य आई.एस.आई. कर रही है ।
पाकिस्तान की इस खुफिया एजेन्सी ने भारत में लगभग तीन दशकों से आतंकवाद फैला रखा है । पहले उसने पंजाब में आतंकवाद फैलाया और अब जम्मू-कश्मीर में विदेशी व भाड़े के आतंकवादियों की मदद से आतंकवाद तेज कर दिया है ।
आतंकवाद का चौथा रूप इस्लामिक आतंकवाद है । इस्लामिक आतंकवाद का अर्थ यह लगाया जाता है कि जो राष्ट्र इस्लाम को मानते हैं वह आतंकवाद के रास्ते पर हैं या दूसरे अर्थ में कहें तो इस्लाम का कट्टरवादी नेतृत्व पूरी दुनिया में रहने वाले इस्लाम के अनुयायियों को अपने साथ लेकर चलना चाहता है और विश्व के अनेक क्षेत्रों में इस्लामी राज्य स्थापित करना चाहता है ।
इस्लाम के प्रति निष्ठा उन्हें एक भावना के सूत्र में बांधती है जो देश की सीमा विभाजन से प्रभावित नहीं होती । यही इस्लामिक भावना जुनून की हद तक पहुंच जाती है जो उन लोगों के विरुद्ध कार्य करती है जो इस विचारधारा को नहीं मानते ।
यह जुनून इस सीमा तक इन पर सवार हो जाता है कि ये आत्म बलिदान के लिए प्रेरित हो जाते हैं । इस संघर्ष को वह ‘जेहाद’ कहते हैं और जेहाद के जुनून में वर्ल्ड ट्रेड सेन्टर जैसी इमारतों को कब्रगाह बनाने में फक्र का अनुभव करते हैं ।
रूसी संघ के राष्ट्रपति पुतिन के अनुसार आतंकवादी शक्तियां अपने क्षुद्र स्वार्थों की पूर्ति करने के लिए धर्म का दुरुपयोग करती हैं ताकि वह धार्मिक जनता की सहानुभूति पाने के साथ ही भोले-भाले धार्मिक नौजवानों को अपनी फौज में आने के लिए प्रेरित कर सकें ।
ऐसा कहा जाता है कि अनेक इस्लामिक देशों में आतंकवाद एक सुगठित स्वतन्त्र विचारधारा का रूप लेता जा रहा है जिसे एक विषय की तरह आतंकवादी विश्वविद्यालय खोलकर पढ़ाया जाने लगा है और नवीन आतंकवादी तकनीकों पर शोध की जाने लगी है । इन विश्वविद्यालयों में मुस्लिम नवयुवकों को प्रशिक्षित किया जा रहा है ।
इन प्रशिक्षित नवयुवकों की आतंकवादी सेना में नियमित भर्ती कर दी जाती है । इस प्रशिक्षित फौज का प्रयोग वह छोटे राज्य, जो बड़े राज्यों से सीधे युद्ध कर किसी भूभाग को प्राप्त नहीं कर सकते या किसी प्रान्त को स्वतन्त्र नहीं करा सकते, भाड़े पर लेकर आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देते हैं । हथियारों की तस्करी के साथ-साथ अन्य इसी प्रकार के कार्य भी इन प्रशिक्षित लोगों से कराए जाते हैं ।
जैव आतंकवाद का खतरा:
अमरीका में एंथ्रेक्स की पुष्टि की अनेक घटनाएं और विश्व के अनेक अन्य देशों में एंथ्रेक्स की पुष्टि और आशंका की बात सामने आने के बाद लगभग पूरे विश्व में जैव आतंकवाद (बायो टेररिज्य) का भय लोगों में व्याप्त होता जा रहा है । एंथ्रेक्स पशुओं का रोग है और बेसिलस ऐन्थ्रेसिस (Bacillus Anthracis) नामक बैक्टीरिया के संक्रमण से होता है ।
भारत में स्थिति:
भारत में एंथ्रेक्स के कुछ मामलों के प्रकाश में आने के बाद ‘सिप्रोफ्लोक्सेसिन’ नामक दवा के उत्पादकों ने इसके भण्डारण की ओर ध्यान देना शुरू कर दिया, जिससे जैव आतंकवाद के माध्यम से इसकी कमी को लेकर होने वाली अफरा-तफरी से आसानी से निपटा जा सके ।
एंथ्रेक्स है क्या ?
एंथ्रेक्स मुख्यत: पशुओं का रोग है, जो गाय, भैंस, भेड़, बकरी आदि जानवरों में हो सकता है । यह बेसिलस एंथ्रेसिस नामक जीवाणु द्वारा होता है । यह जीवाणु छड़ के आकार का, वायुजीवी होता है तथा वायुमण्डल की स्वतन्त्र ऑक्सीजन के सम्पर्क में आते ही स्पोर (गोलाणु) में परिवर्तित हो जाता है ।
स्पोर किसी भी तापमान या रसायन के लिए प्रतिरोधक होते हैं । मिट्टी में 15 वर्ष तक जीवित अवस्था में रह सकते हैं । ऐसे ही क्षेत्रों में पशुओं के चरने से यह महामारी फैलती है । संक्रमित पशुओं के ऊन, बाल, चमड़े या हड्डियों अथवा संक्रमित पानी या आहार से भी यह जीवाणु फैलता है । पशुओं में इस जीवाणु की संक्रमण अवधि 1 से 14 दिन तक है ।
यह रोग अचानक उग्र लक्षणों के साथ रुधिर विष रूप में प्रकट होता है । ग्रसित पशु में तेज बुखार, दस्त, सांस लेने में परेशानी तथा सीने-गले में सूजन आदि लक्षण दिखाई देते हैं । अधिकतर 12 से 36 घण्टे के अन्दर पशु की मृत्यु की सम्भावना रहती है ।
एंथ्रेक्स के कारण मरे पशुओं का शव परीक्षण भी नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि इसके जीवाणु वायुमण्डल की ऑक्सीजन के सम्पर्क में आते ही स्पोर में परिवर्तित हो जाते हैं और स्पोर ही संक्रमण के प्रमुख कारक हैं ।
मनुष्यों में यह रोग मुख्यत: तीन रूपों में पाया जाता है । संक्रमित पशुओं के बाल, ऊन, खाल या हड्डियों के साथ काम करते हुए सांस के साथ, मनुष्य के श्वसन तन्त्र व फेफड़ों में इस जीवाणु के स्पोर प्रवेश कर जाते हैं ।
इसीलिए इसे ‘बूल सोर्टर्स डिसीज’ भी कहते हैं । अमरीका में पाउडर के रूप में जीवाणुओं को पत्रों के माध्यम से भेजकर व्यक्तियों को शिकार बनाये जाने की बात उजागर हुई । प्रारम्भ में ग्रसित व्यक्ति को बुखार, खांसी व थकावट की शिकायत होती है ।
इसके लक्षण फ्लू के समान होने के कारण, प्रारम्भिक दौर में इसकी पहचान करना मुश्किल होता है । इस प्रकार के एंथ्रेक्स में मृत्यु दर 75 प्रतिशत तक है । अमरीका के बोका रेटन (फ्लोरिडा) में पता लगाए गए एंथ्रेक्स के रूप में जैविक हमलों के पहले शिकार मीडियाकर्मी बॉव स्टीवन्स की मृत्यु इसी कारण हुई । यही एंथ्रेक्स का सर्वाधिक घातक रूप है ।
संयुक्त राष्ट्र संघ और आतंकवाद (The U.N.O. and Terrorism):
संयुक्त राष्ट्र ने कानूनी और राजनीतिक, दोनों ही उपाय करते हुए आतंकवाद की समस्या पर निरन्तर ध्यान दिया है । कानूनी क्षेत्रों में संयुक्त राष्ट्र और इसकी विशेषित एजेन्सियों ने आतंकवाद के खिलाफ बुनियादी कानूनी दस्तावेज की रचना करने वाले अन्तर्राष्ट्रीय समझौतों के एक नेटवर्क को विकसित किया है । ऐसी विशेषित एजेन्सियां हैं – अन्तर्राष्ट्रीय नगर विमानन संगठन (आई.सी.ए.ओ.), अन्तर्राष्ट्रीय समुद्रीय संगठन (आई.एम.ओ.) और अन्तर्राष्ट्रीय आणविक ऊर्जा एजेन्सी (आई.ए.ई.ए.) ।
बुनियादी कानूनी दस्तावेज की रचना करने वाले अन्तर्राष्ट्रीय समझौते हैं:
(i) विमानों पर किए गए अपराधों एवं कतिपय अन्य कार्यों पर कन्वेंशन (1963 में टोक्यो में स्वीकृत),
(ii) विमानों के गैरकानूनी कब्जे के निरोध हेतु कन्वेंशन (द् हेग, 1970),
(iii) नागर विमानन की सुरक्षा के खिलाफ गैरकानूनी कार्यों के निरोध पर कन्वेंशन (मांट्रियल, 1971),
(iv) राजनयिक प्रतिनिधियों सहित अन्तर्राष्ट्रीय रूप से सुरक्षा प्राप्त लोगों के खिलाफ अपराधों के निरोध एवं दण्ड पर कन्वेंशन (न्यूयार्क, 1973),
(v) आणविक सामग्री की भौतिक सुरक्षा पर कन्वेंशन (वियेना, 1980),
(vi) अन्तर्राष्ट्रीय नागर विमानन के लिए उपयोग किए जा रहे हवाई अड्डों पर हिंसा के गैरकानूनी कार्यों के निरोध के निमित्त प्रोटोकोल (मांट्रियल, 1988),
(vii) समुद्री नौकायन की सुरक्षा के खिलाफ गैरकानूनी कार्यों के निरोध पर कन्वेंशन (रोम, 1988),
(viii) महाद्वीपीय समुद्री चट्टान श्रेणी पर स्थित फिक्स्ड प्लेटफार्मों की सुरक्षा के खिलाफ गैरकानूनी कार्यों के निरोध पर प्रोटोकोल (रोम, 1988),
(ix) खोज के उद्देश्य के निमित्त प्लास्टिक विस्फोटकों के विपणन पर कन्वेंशन (मॉण्ट्रियल, 1991) ।
महासभा ने चार कन्वेंशन प्रस्तुत किए हैं:
(A) बन्धक बनाने के खिलाफ कन्वेंशन (1979) में पक्ष-राज्य बन्धक बनाने के काम को उपयुक्त दण्डों द्वारा दण्डित करने पर सहमत हो गए हैं । वे अपने क्षेत्रों में कतिपय गतिविधियों पर प्रतिबन्ध लगाने, सूचना के विनिमय और किन्हीं भी आपराधिक या प्रत्यर्पण प्रक्रिया को सम्भव बनाने के लिए भी सहमत हो गए हैं । यदि कोई पक्ष-राज्य किसी आरोपित अपराधी का प्रत्यर्पण नहीं करता है तो उस मामले को अपने ही अधिकारियों के समक्ष अभियोजन के लिए अनिवार्यत: रखना चाहिए । दिसम्बर 2000 तक कन्वेंशन के 94 पक्ष-राज्य थे ।
(B) संयुक्त राष्ट्र एवं सहयोगी कर्मचारियों की सुरक्षा पर कन्वेंशन (1994) के लिए 1993 में महासभा ने क्षेत्र में संयुक्त राष्ट्र कर्मचारियों पर हमलों की अनेक घटनाओं के बाद अनुरोध किया था । इन हमलों में लोगों के घायल होने के अलावा मौतें भी हुई थीं । दिसम्बर 2000 तक इस कन्वेंशन के 49 पक्ष-राज्य थे ।
(C) आतंकवादी बमबारी के निरोध के निमित्त अन्तर्राष्ट्रीय कन्वेंशन (1997) का उद्देश्य आतंकवादी बमबारी के लिए वांछित लोगों को ‘सुरक्षित स्थलों’ से वंचित रखना है । इसके अनुसार प्रत्येक पक्ष-राज्य को वचनबद्ध किया गया है कि यदि वे प्रत्यर्पण करने वाले अन्य राज्य को ऐसे वांछित लोगों का प्रत्यर्पण नहीं करते हैं तो वे स्वयं उन्हें दण्डित करें । यह कन्वेंशन 22 राज्यों द्वारा पुष्ट किए जाने के बाद लागू हो जाएगा । दिसम्बर 2000 तक 17 राज्यों ने इसकी पुष्टि की है ।
(D) आतंकवाद को वित्तपोषण करने के निरोध के निमित्त अन्तर्राष्ट्रीय कन्वेंशन (1990) पक्ष-राज्य को आतंकवादी गतिविधियों को धन देने के आरोपी व्यक्तियों को या तो दण्ड देने या उनका प्रत्यर्पण करने के लिए वचनबद्ध करता है । इसमें बैंकों को सन्देहजनक लेन-देन की पहचान के लिए उपाय करने की जरूरत भी है । 22 राज्यों द्वारा इसकी पुष्टि के बाद कन्वेंशन लागू हो जाएगा । दिसम्बर, 2000 तक दो राज्यों ने उसकी पुष्टि कर दी थी ।
महासभा द्वारा 1996 में स्थापित एक समिति आणविक आतंकवाद के कार्यों के निरोध के लिए एक कन्वेंशन को विस्तार से सम्पन्न कर रही है । राजनीतिक क्षेत्र में महासभा ने 1994 में अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद की समाप्ति के उपायों पर घोषणा और 1996 में 1994 की धोषणा की सम्पूर्ति के लिए धोषणा स्वीकार की, जो आतंकवाद के सभी कार्यों और व्यवहारों को, वे जहां भी, जिसके द्वारा किए जाएं, अपराध और अनुचित ठहराते हुए अनकी भर्त्सना की ।
महासभा के 48वें अधिवेशन (1993) में इस आशय का एक प्रस्ताव कि आतंकवाद मानवाधिकारों के मार्ग का एक रोड़ा है सर्वसम्मति से पारित हुआ जिसे दूसरे देशों के साथ मिलकर भारत ने पेश किया था । इस संकल्प में आतंकवाद की कार्यवाहियों, तरीकों और उसके अमल की स्पष्ट शब्दों में यह कहकर निन्दा की गई कि ये ऐसी कार्यवाहियां हैं जिनका उद्देश्य मानवाधिकारों, आधारभूत स्वतन्त्रताओं और लोकतन्त्र का विनाश करना तथा राज्यों की प्रादेशिक अखण्डता और सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करना और विधित: गठित सरकारों को अस्थिर करना है ।
इसने सभी राष्ट्रों का आह्वान किया कि आतंकवाद को रोकने, उसका मुकाबला करने तथा उसे समाप्त करने के लिए प्रभावी कदम उठाए जाएं । पाकिस्तान ने इस बात की कोशिश की कि आतंकवाद के दायरे से आत्म-निर्णय के लिए संघर्ष को बाहर रख कर इस प्रस्ताव में तदनुरूप संशोधन किया जाए परन्तु समिति में उसकी बात को कोई समर्थन नहीं मिला ।
11 सितम्बर, 2001 को अमरीका पर हुए भयंकर आतंकवादी हमलों ने आतंकवाद को अन्तर्राष्ट्रीय कार्यसूची के केन्द्र में ला दिया । 12 सितम्बर को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् ने अमरीका पर हुए आतंकवादी हमलों की निन्दा करने सम्बन्धी संकल्प 1368 पारित किया । उसके बाद 28 सितम्बर, 2001 को उसने संकल्प 1373 (2001) पारित किया जिसमें अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद का प्रतिकार करने के लिए विविध और व्यापक उपायों एवं नीतियों का उल्लेख है ।
इस संकल्प में अन्य बातों के साथ-साथ सभी राज्यों से आतंकवादी कृत्यों को धन देने से रोकने और उनका दमन करने; सम्भावित आतंकवादियों की सभी वित्तीय परिसम्पत्तियों तथा आर्थिक संसाधनों पर रोक लगाने; आतंकवादियों को किसी प्रकार का समर्थन देने जिसमें भर्ती और प्रशिक्षण आदि शामिल हैं, से बचने का आह्वान किया गया है ।
आतंकवाद का सामना करने के लिए संयुक्त राष्ट्र में अभी दो प्रक्रियाएं चल रही हैं:
प्रथम:
भारत द्वारा प्रस्तावित (वर्ष 1996 में) अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर एक व्यापक अभिसमय को अन्तिम रूप दिया जाना ।
द्वितीय:
संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा सितम्बर 2006 में अंगीकार की गई वैश्विक आतंकवाद-रोधी रणनीति ।
अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर एक व्यापक अभिसमय पर करार को कराने के प्रयासों में भारत अग्रणी रहा है । संयुक्त राष्ट्र वैश्विक आतंकवाद-रोधी रणनीति के क्रियान्वयन पर सदस्यों की एक अनौपचारिक बैठक दिसम्बर 2007 में आयोजित की गई ताकि अभी तक किये गये प्रयासों का मूल्यांकन किया जा सके ।
अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद के कृत्यों के निवारण तथा उन्हें दण्डित करने के बारे में अन्य अन्तर्राष्ट्रीय समझौते/प्रयास:
आतंकवाद के निवारण तथा उसे दण्डित करने के लिए अभिकल्पित निम्नलिखित समझौते आज प्रभावशील हैं:
(1) आतंकवाद के निवारण तथा उसे दण्डित करने के लिए 1937 का कन्वेंशन:
1 नवम्बर से 16 नवम्बर, 1937 तक जिनेवा में आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय कान्फ्रेन्स ने दो कन्वेंशनों को जांचा और उन्हें स्वीकार किया । एक कन्वेंशन आतंकवाद के निवारण और उसे दण्डित करने के बारे में था तथा दूसरा एक अन्तर्राष्ट्रीय अपराध न्यायालय की स्थापना के बारे में था । आतंकवाद का निवारण और उसे दण्डित करने के बारे में कन्वेंशन में एक भूमिका तथा 29 धाराएं थीं । भूमिका में इस बात पर बल दिया गया कि यह कन्वेंशन अन्तर्राष्ट्रीय चरित्र वाले आतंकवाद के निवारण तथा उसे दण्डित करने के काम को अधिक प्रभावी बनाने के लिए लक्षित है ।
(2) अन्तर्राष्ट्रीय महत्व वाले और व्यक्तियों के बिरुद्ध अपराध तथा उससे बलात् छीना-झपटी का रूप धारण करने वाले आतंकवादी कृत्यों के निवारण और उन्हें दण्डित करने के लिए 1971 का कन्वेंशन:
अमरीकी राज्यों के संगठन (OAS) की महासभा ने 25 जनवरी से 2 फरवरी, 1971 तक वाशिंगटन में आयोजित अपने अधिवेशन में 6 अन्तर्राष्ट्रीय महत्व वाले और व्यक्तियों के विरुद्ध अपराध तथा छीना-झपटी का रूप धारण करने वाले आतंकवादी कृत्यों के निवारण और उन्हें दण्डित करने के लिए कन्वेंशन को स्वीकृति दी । इस कन्वेंशन में एक प्रस्तावना और 13 धाराएं हैं ।
प्रस्तावना इस पर बल देती है कि अमरीकी राज्यों के संगठन की महासभा ने अपने 30 जून, 1970 के प्रस्ताव संख्या 4 में आतंकवादी कृत्यों, विशेषत: व्यक्तियों के अपहरण तथा इस अपराध के क्रम में उनसे बलपूर्वक छीना-झपटी की निन्दा की है और ऐसे आपराधिक कृत्यों को ‘सामान्य गम्भीर अपराध’ घोषित किया है ।
प्रस्ताव में यह भी बताया गया है कि अन्तर्राष्ट्रीय कानून के अन्तर्गत विशेष संरक्षण के अधिकारी व्यक्तियों के विरुद्ध आपराधिक कृत्य बढ़ते जा रहे हैं और इन कृत्यों से राज्यों के बीच सम्बन्धों के लिए जो परिणाम निकल सकते हैं, उनके कारण ये कृत्य अन्तर्राष्ट्रीय महत्व के हो जाते हैं ।
(3) आतंकबाद को रोकने के बारे में 1977 का यूरोपियन कन्वेंशन:
यूरोपीय देशों के कानूनी सहयोग से आतंकवाद को रोकने के लिए यूरोपियन कन्वेंशन की रचना हुई जिस पर स्ट्रासबर्ग में 27 जनवरी, 1977 को हस्ताक्षर हुए । कन्वेंशन में 16 धाराएं और एक भूमिका है । जैसा कि भूमिका में बताया गया है, कन्वेंशन का उद्देश्य ऐसे प्रभावी उपाय करना था जिनसे यह निश्चित किया जा सके कि आतंकवादी कृत्यों के कर्ता मुकदमे तथा दण्ड से नहीं बच सकेंगे ।
(4) आतंकवाद के मसले तथा आतंकवाद को रोकने में अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग और सम्बधित करने की आवश्यकता पर भी संयुक्त कार्य दलों अर्थात् आतंकवाद से सम्बद्ध भारत-फ्रांस संयुक्त कार्यदल (7 सितम्बर, 2001), अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद तथा नशीली दवाओं के गैर कानूनी व्यापार से सम्बद्ध भारत-यू. के. संयुक्त कार्य दल (22 जनवरी, 2001 और 19 दिसम्बर, 2001), आतंकवाद के प्रतिकार से सम्बद्ध भारत-अमरीका संयुक्त कार्यदल (7-8 फरवरी, 2001), अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद से सम्बद्ध भारत-यूरोपीय संघ कार्यदल (9 नवम्बर, 2001) तथा भारत-कनाडा संयुक्त कार्यदल (22-28 अगस्त, 2001) की बैठकों में चर्चा हुई जिसमें भारत भी इस मसले पर कई देशों के साथ रहा ।
इस दृष्टि से भारत एवं रूस के मध्य मास्को घोषणा पत्र उल्लेखनीय है ।
(5) सार्क का 11 वां शिखर सम्मेलन 4-6 जनवरी, 2002 तक काठमाण्डू में सम्पन्न हुआ ।
आतंकवाद के सम्बन्ध में काठमाण्डू घोषणा-पत्र में कहा गया:
राज्याध्यक्ष/शासनाध्यक्ष इस बात से आश्वस्त थे कि आतंकवाद, इसके सभी रूपों और अभिव्यक्तियों में, सभी राज्यों तथा व्यापक रूप से सपूर्ण मानव जाति के लिए एक चुनौती है और इसे विचारधारागत राजनीतिक, धार्मिक अथवा किसी अन्य आधार पर न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता है ।
नेता इस बात पर सहमत हुए कि आतंकवाद संयुक्त राष्ट्र और सार्क चार्टर के मूल मूल्यों का उल्लंघन करता है और 21वीं सदी में अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा के लिए एक अत्यधिक गम्भीर चुनौतियों में से एक है । आतंकवाद के दमन से सम्बद्ध पहले ही सम्पन्न सार्क क्षेत्रीय अभिसमय सीमा के भीतर समर्थनकारी राष्ट्रीय विधायन के अधिनियमन को तेज करने की कटिबद्धता को दोहराया ।
(6) पहली बार संयुक्त राज्य अमरीका पर 11 सितम्बर, 2001 को सीधा आतंककारी हमला हुआ । राष्ट्रपति बुश ने विश्व व्यापार केन्द्र और पेंटागन पर हुए हमले को युद्ध की कार्यवाही बताते हुए इसमें अपने देश की विजय का संकल्प व्यक्त किया ।
अमरीका ने बदले की कार्यवाही के लिए विश्वव्यापी समर्थन जुटाने का अभियान शुरू किया । अमरीका ने इसे अमरीका के खिलाफ युद्ध नहीं बल्कि समूची सभ्यता के खिलाफ युद्ध कहा ।
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राष्ट्रपति बुश ने 23 सितम्बर को अमरीकी कांग्रेस से कहा- ”हर देश को अब एक निर्णय करना है- आप या तो हमारे साथ हैं या फिर आतंकवादियों के साथ ।” दिल्ली के किसी भीड़ भरे बाजार में धमाके से 4,000 लोग मारे जाते तो विश्व भर में इतनी हलचल न पैदा होती ।
लेकिन वह न्यूयार्क था, जो विश्व पूंजीवाद का मक्का और सबसे बड़ी महाशक्ति का मुखड़ा है । वहां की गई हिंसा से खेल के सारे नियम बदल गए । 11 सितम्बर की घटनाओं के लिए ओसामा को अपराधी घोषित किया गया और तालिबान सरकार को मजबूर किया कि वह ओसामा को अमरीका को सौंप दे; तालिबान सरकार के मना कर देने पर अमरीका ने अफगानिस्तान के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर तालिबान को नेस्तनाबूद कर दिया ।
निष्कर्ष:
आज आतंकवाद की सबसे बड़ी चुनौती आतंकवादियों के पास अत्याधुनिक हथियारों का होना है । अब आतंकी संगठनों के पास विभिन्न प्रकार के घातक हथियार एवं विस्फोटक उपलब्ध हैं । नाभिकीय हथियार, रासायनिक हथियार और जैविक हथियार भी आतंकवादियों की पहुंच की परिधि में है ।
आतंकवादी आज इस स्थिति में हैं कि वे किसी भी प्रचलित महामारी के जीवाणु, कीटाणु, विषाणु प्रयोगशाला में तैयार कराकर उसका औद्योगिक स्तर पर उत्पादन भी कर सकते हैं । ऐसी स्थिति में अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद जैसी भयावह चुनौती से निपटने के लिए दुनिया के सभी छोटे-बड़े देशों को एकजुट हो जाना चाहिए, क्योंकि यह चुनौती किसी एक देश की नहीं, बल्कि पूरी मानव जाति की है । अब आतंकवाद के विरुद्ध अन्तर्राष्ट्रीय जनमत तैयार होने लगा है तथापि स्थिति यह है कि अभी भी विश्व के अनेक राष्ट्र प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से आतंकवाद को शह दे रहे हैं ।