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Here is an essay on ‘India and the European Union’ especially written for school and college students in Hindi language.
यूरोपीय संघ के साथ भारत के वर्तमान सम्बन्धों की शुरुआत 1964 में हुई जब भारत ने यूरोपीय आर्थिक समुदाय के साथ राजनयिक सम्बन्धों की स्थापना की । शीतयुद्ध की समाप्ति के बाद 1994 में यूरोपीय संघ व भारत के मध्य एक सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किए गए जिसमें दोनों के सम्बन्धों को व्यापार व आर्थिक क्षेत्र के अतिरिक्त अन्य क्षेत्रों में बढ़ाने की बात कही गई ।
1998 में भारत के दूसरे परमाणु परीक्षण के कारण अमरीका तथा यूरोपीय देशों द्वारा आर्थिक प्रतिबन्ध लगाने के कारण पुन: सम्बन्धों में गतिरोध आ गया, लेकिन 2000 के दशक में भारत-अमरीका रणनीतिक सम्बन्धों की शुरुआत से यूरोपीय संघ ने भी भारत के प्रति अपने दृष्टिकोण में परिवर्तन किया ।
भारत के प्रति यूरोपीय संघ के रुख में बदलाव का संकेत संघ द्वारा 2003 में तैयार यूरोपियन सुरक्षा रणनीति के दस्तावेज से मिलता है । यूरोपीय संघ के साथ भारत के घनिष्ठ व्यापारिक एवं आर्थिक सम्बन्ध रहे हैं । संघ के भारत के साथ सम्बन्धों में दो मुख्य तत्व हैं पहला व्यापार सहयोग और दूसरा विकास सहायता ।
भारतीय विदेश व्यापार में यूरोपीय आर्थिक समुदाय के हिस्से में पिछले वर्षों में वृद्धि हुई है । वर्ष 1970-71 में भारत के कुल निर्यात का 18.4 प्रतिशत समुदाय को निर्यात किया गया जो कि 2005-06 में बढ़कर 19 प्रतिशत हो गया । भारत-ई.सी. संयुक्त आयोग पर एक राजदूत द्वारा भारत का प्रतिनिधित्व किया जाता है ।
विकास सहायता में विज्ञान और प्रौद्योगिकी ऊर्जा तथा मानव संसाधनों में सहयोग को शामिल किया गया है । भारत को यूरोपीय संघ पर्यावरण सम्बन्धी कार्यक्रमों एवं ऊर्जा-प्रबन्धन एवं नियोजन में सहायता कर रहा है ।
भारतीय अर्थव्यवस्था की उदारीकरण की प्रक्रिया से भारत और संघ के निजी क्षेत्रों के बीच सीधे सम्पर्क और सहयोग पर अधिक बल दिया जा रहा है । सरकारी स्तर पर दिसम्बर 1992 में ‘भारत-ई.सी. साझेदारी और विकास पर सहयोग समझौता’ हस्ताक्षरित किया गया । “भारत-ई.सी. व्यवसाय फोरम” दोनों के व्यापारियों एवं उद्योगपतियों के बीच परस्पर व्यावसायिक मुद्दों पर निकट सम्पर्क स्थापित करता है ।
पिछले 4-5 वर्षों में यूरोपीय संघ के साथ भारत की भागीदारी व्यापक आधारित और गहन बनती जा रही है । यूरोपीय संघ और पश्चिमी यूरोप के देशों के साथ निर्णायक बहुआयामी सम्बन्ध विकसित हुए हैं । राजनीतिक तौर पर यूरोपीय संघ के साथ सम्बन्धों को स्थायी सांस्थानिक के रूप में देखा गया जिसमें भारत और यूरोपीय संघ के बीच सात शिखर सम्मेलन सम्पन्न हुए । पिछले दशक में व्यापार न केवल दुगना हुआ है अपितु लोकतन्त्र विकास वाणिज्य और आतंकवाद जैसे मुद्दों पर समान दृष्टिकोण विकसित हुआ है ।
यूरोपीय संघ के साथ हमारे सम्बन्ध की प्रमुख बात 28 जून, 2000 को लिस्बन में आयोजित प्रथम भारत-यूरोपीय संघ की बैठक थी । उस समय पुर्तगाल यूरोपीय संघ का अध्यक्ष था । प्रधान मन्त्री ने भारतीय शिष्टमण्डल का नेतृत्व किया जिसमें विदेश वित्त वाणिज्य एवं उद्योग तथा सूचना प्रौद्योगिकी मन्त्री शामिल थे ।
यूरोपीय संघ के शिष्टमण्डल का नेतृत्व पुर्तगाल के प्रधानमन्त्री ने किया और इसमें यूरोपीय समुदाय के अध्यक्ष तथा पुर्तगाल के विदेश, विज्ञान और प्रौद्योगिकी मन्त्री आर्थिक मामलों के उप मन्त्री, यूरोपीय परिषद् के महासचिव और विदेश सम्बन्ध, व्यापार और अनुरूधान से सम्बद्ध यूरोपीय समुदाय के कमिश्नर शामिल थे ।
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लिस्बन संयुक्त घोषणा जो शिखर सम्मेलन की समाप्ति पर पारित की गई, में यूरोपीय संघ के साथ हमारे सम्बन्धों को बढ़ाने के लिए एक योजना का प्रावधान है । इस घोषणा में नई सदी में एक सामरिक भागीदारी बनाए जाने की आवश्यकता सहित अन्य राजनीतिक और आर्थिक मामलों पर विचारों की समानता की पहचान की गई ।
राजनीतिक वाणिज्यिक और आर्थिक क्षेत्रों की पहलकदमियों को शामिल करने वाली एक ‘कार्य सूची’ भी इस घोषणा का एक भाग है । यह घोषणा क्षेत्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति एवं सुरक्षा को आतंकवाद के कारण उत्पन्न खतरे के प्रति साझी चिन्ता को भी परिलक्षित करती है ।
जहां तक आर्थिक क्षेत्र का प्रश्न है इस घोषणा में बेहतर आर्थिक सहयोग संवर्द्धित करने के लिए दृढ़ निश्चय व्यक्त किया गया । इसमें व्यापार को उत्तरोत्तर उदार बनाने संरक्षणवादी प्रवृत्तियों का विरोध करने तथा एक खुले न्यायोचित और भेदभाव रहित नियमों पर आधारित बहुपक्षीय व्यापार व्यवस्था के प्रति साझी वचनबद्धता व्यक्त की गई ।
इस अवधि के दौरान भारत और यूरोपीय संघ के बीच आर्थिक सहयोग में भी उन्नति हुई । 8000 टन कपड़े की पूर्ण अपवादित नम्यता को जारी करने का इसका निर्णय यूरोपीय समुदाय की संरक्षणवादी प्रवृत्तियों को दूर करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम था ।
चावल इस्पात इत्यादि जैसी अन्य उत्पाद श्रेणियों में दोनों पक्षों के बीच विद्यमान मतभेदों पर चर्चा जारी हे । लिस्बन शिखर सम्मेलन के दौरान नगर विमानन क्षेत्र में प्रौद्योगिक सहयोग के लिए एक परियोजना पर हस्ताक्षर किए गए ।
भारत-यूरोपीय संघ का दूसरा शिखर सम्मेलन नई दिल्ली में नवम्बर, 2001 में सम्पन्न हुआ । 23 नवम्बर, 2001 को जारी अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर घोषणा में कहा गया: “भारत और यूरोपीय संघ यह प्रतिबद्धता जताते हैं कि अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद शांति और सुरक्षा के लिए खतरनाक है ।” 10 दिसम्बर, 2002 को डेनमार्क की अध्यक्षता में कोपेनहेगन में सम्पन्न भारत-यूरोपीय संघ का तीसरा शिखर सम्मेलन भारत-यूरोपीय संघ के द्विपक्षीय सम्बन्धों का चरम बिन्दु था ।
भारत के साथ शिखर स्तर पर वार्षिक वार्ता के दौरान न केवल हमारे द्विपक्षीय राजनीतिक और आर्थिक सम्बन्धों को सम्बधित करने के लिए बल्कि क्षेत्रीय और सार्वभौमिक मामलों को हल करने में योगदान करने के लिए भी मिलकर काम करने की नीतिगत भागीदारी का निर्माण करने की भारत और यूरोपीय संघ दोनों के द्वारा अत्यधिक आवश्यकता महसूस की गई ।
यूरोपीय परिषद् के अध्यक्ष के रूप में डेनमार्क के प्रधान मन्त्री एंदर्स फोग रस्मुसेन, यूरोपीय कमीशन के अध्यक्ष रोमेनो प्रोदी, हाई रिप्रेसेंटेटिव फॉर कॉमन फारेन एण्ड सिक्यूरिटी पॉलिसी जेवियर सोलना, डेनमार्क के विदेश मन्त्री पेर स्टिग मोलर तथा विदेशी सम्बन्धों में यूरोपीय कमिश्नर क्रिस्टोफर पाटेन ने तीसरे शिखर-सम्मेलन में भाग लिया ।
भारत की ओर से प्रधानमन्त्री श्री वाजपेयी ने और उनकी सहायता के लिए विदेश मन्त्री तथा विनिवेश मन्त्री ने भाग लिया । शिखर सम्मेलन ने द्विपक्षीय सम्बन्धों में हुई प्रगति का जायजा लेने के लिए एक उपयुक्त अवसर प्रदान किया ।
कोपेनहेगन में तीसरे शिखर सम्मेलन में जारी संयुक्त प्रेस वक्तव्य तथा पारित की गई ‘कार्य कार्यसूची’ में बहुध्रवीय विश्व में सार्वभौमिक कर्ता के रूप में भारत और यूरोपीय संघ के मूल्यों की पुष्टि होती है । पिछले तीन वर्षों में भारत-यूरोपीय संघ व्यवसाय शिखर सम्मेलन शिखर स्तर की वार्ता का एक अभिन्न अंग बन गया है ।
कोपेनहेगन में राजनीतिक शिखर सम्मेलन के दौरान 8 से 9 अक्टूबर, 2002 को सम्पन्न तीसरे भारतीय-यूरोपीय संघ व्यवसाय शिखर सम्मेलन ने उस कार्यवाही को स्वीकार किया जो दूसरे शिखर सम्मेलन के बाद की गई तथा संयुक्त आयोग की बैठक के विचार-विमर्श की समीक्षा की ।
प्रधानमन्त्री श्री वाजपेयी और डेनमार्क के प्रधान मन्त्री एंदर्स फोग रस्युसेन ने विशिष्ट पूर्ण सत्र को सम्बोधित किया । प्रधानमन्त्री श्री वाजपेयी ने यूरोपीय संघ से यूरोपीय संघ की अत्यधिक कृषि आर्थिक सहायताओं और नॉन-टैरिफ अवरोधों को कसने का अनुरोध किया जिनसे विकासशील देशों की उन्नति की सम्भावनाएं प्रभावित होती हैं ।
इसमें भारत, डेनमार्क और यूरोपीय संघ के लगभग 40 मुख्य कार्यापालक अधिकारियों ने भाग लिया । पहले दिन के मध्याह से पूर्व भारत तथा डेनमार्क के विदेश मन्त्री प्रमुख वक्ता थे । विनिवेश मन्त्री ने भी अलग से अपना आलेख प्रस्तुत किया ।
शिखर सम्मेलन में वार्ता के अतिरिक्त, ट्राइका मन्त्रीस्तरीय बैठक वरिष्ठ अधिकारियों की बैठक संयुक्त आर्थिक आयोग और आतंकवाद से सम्बद्ध संयुक्त कार्य दल के द्वारा संस्थागत तन्त्र प्रणाली से भारत यह सुनिश्चित करने में सफल रहा कि सामरिक एवं आर्थिक मामलों के बारे में उसकी स्थिति और परिप्रेक्ष्यों को उजागर किया जा रहा है ।
भारत-यूरोपीय संघ ट्राइका मन्त्रीस्तरीय बैठक कोपेनहेगन में 10 अक्टूबर, 2002 को राजनीतिक शिखर सम्मेलन के दौरान सम्पन्न हुई । डेनमार्क के विदेश मन्त्री पेर स्टिग मोलर, सेक्रेटरी जनरल ऑफ कॉमन फरिन एवं सिक्यूरिटी पॉलिसी जेवियर यूरोपीय संघ की ओर से सोकना और एक्सटर्नल अफेयर्स कमिश्नर क्रिस पेटर्न ने भाग लिया ।
इस बैठक से हमारी हित-चिन्ताओं के प्रति यूरोपीय संघ को संवेदनशील बनाने तथा मई में ई सी कमिश्नर फॉर एक्सर्टनल क्रिस पेटर्न और जुलाई में यूरोपीय संघ हाई रिप्रेसेंटेटिव जेवियर सोलाना की यात्राओं के दौरान हुए विचार-विमर्श को आगे बढ़ाने का महत्वपूर्ण अवसर प्राप्त हुआ ।
एथेन्स में 17 जनवरी, 2003 को भारत यूरोपीय संघ ट्राइका मन्त्रीस्तरीय बैठक के लिए भारतीय पक्ष का नेतृत्व विदेश मन्त्री ने किया । विदेश मन्त्री ने ग्रीस के विदेश मन्त्री जॉर्ज ए पापनद्रेयु के साथ यूरोपीय संघ के अध्यक्ष की हैसियत से ई.सी. हाई रिप्रेसेंटेटिव जेवियर सोलाना और ई॰ सी॰ कमिश्नर फॉर एक्सटर्नल अफेयर्स क्रिस पेटर्न से पारस्परिक वार्ता की ।
दोनों पक्षों ने 10 अक्टूबर, 2002 को कोपेनहेगन मे सम्पन्न तीसरे भारत यूरोपीय संघ शिखर सम्मेलन का मूल्यांकन किया और भारत में 2003 के उत्तरार्द्ध में होने वाले चौथे शिखर सम्मेलन की तैयारी के सम्बन्ध में विचार-विमर्श किया । चौथा भारत यूरोपीय संध शिखर सम्मेलन 28-29 नवम्बर, 2003 को नई दिल्ली में हुआ । शिखर सम्मेलन में आर्थिक व्यापार एवं विकास के क्षेत्र में संयुक्त राष्ट्र की भूमिका और प्रभावी बनाने पर सहमति हुई ।
उपग्रह परियोजना ‘गैलीलियो’ आशय पत्र तथा समुद्री नौवहन के क्षेत्र में आपसी सहयोग बढ़ाने के क्षेत्र में संयुक्त राष्ट्र की भूमिका और प्रभावी बनाने पर समझौते किए गए । भारत यूरोपीय संघ मिलकर 1 करोड़ यूरो से प्राकृतिक आपदा तैयारी कार्यक्रम भी आरम्भ करेंगे ।
भारत-यूरोपीय संघ के पांचवें शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह एक उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमण्डल के साथ 7 नवम्बर, 2004 को हेग पहुंचे । 8 नवम्बर, 2004 को हुए इस सम्मेलन में पूरोपीय परिषद के अध्यक्ष एवं हॉलैण्ड के प्रधानमन्त्री जॉन पीटर बालकेनेंडी और यूरोपीय आयोग के अध्यक्ष रोमानो प्रोदी ने भाग लिया ।
सम्मेलन में भारत और यूरोपीय संघ ने द्विपक्षीय व्यापार और निवेश प्रवाह को बढ़ाने के उद्देश्य से रणनीतिक भागीदारी कायम करते हुए सभी प्रकार के आतंकवाद की कड़ी भर्त्सना की तथा इस समस्या से निपटने के लिए व्यापक और स्थायी उपाय करने के बारे में प्रतिबद्धता जताई ।
आतंकवाद के सभी स्वरूपों से लड़ने के लिए दोनों पक्षों ने एक पांच सूत्री कार्ययोजना का प्रारूप तैयार किया । इस कार्ययोजना को लागू करने पर भारत-यूरोपीय संघ की नई दिल्ली में होने वाली अगली बैठक में विचार किया जाएगा ।
कार्ययोजना के अन्तर्गत दोनों पक्ष आतंकवाद के विरुद्ध मुहिम आतंकवादियों को मिलने वाले वित्तीय तथा अन्य आर्थिक संसाधनों पर रोक लगाने सीमा नियन्त्रण के मामले में प्रभावी व्यवस्था सुनिश्चित करने आतंकवाद को बढ़ावा देने वाली परिस्थितियों पर चर्चा और सुरक्षा सम्बन्धी मुद्दों पर ध्यान देकर आतंकवाद के विरुद्ध होने वाली चर्चा को मजबूती देने के लिए चलाए जा रहे प्रयासों को तेज करेंगे ।
भारत व यूरोपीय संघ के मध्य छठी वार्षिक शिखर बार्ता 7 सितम्बर, 2005 को नई दिल्ली में सम्पन्न हुई । यूरोपीय संघ के अध्यक्ष होने के नाते इस वार्ता में यूरोपीय संघ का नेतृत्व ब्रिटिश प्रधानमन्त्री टोनी प्लेयर ने किया ।
शिखर वार्ता में डॉ. मनमोहन सिंह ने व्यापार में गैर प्रशुल्कीय अवरोध खड़े करने पर यूरोपीय संघ को आड़े हाथों लिया, जबकि टोनी ब्लेयर ने स्पष्ट किया कि विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिए भारत को अपनी अर्थव्यवस्था को और खोलना होगा ।
बैठक में स्वीकार की गई संयुक्त कार्य योजना में नौ बिन्दुओं में सुरक्षा के मुद्दे पर बातचीत जारी रखने वित्तीय स्रोतों पर पाबंदी के जरिये आतंकवाद के विरुद्ध साझा जंग को और तेज करने तथा एक उच्चस्तरीय व्यापार समूह स्थापित करने के मुद्दे शामिल हैं । इसके अतिरिक्त गैलीलियो उपग्रह नेविगेशन प्रणाली में भारत को शामिल करने के लिए एक फ्रेमवर्क समझौता सम्पन्न करने को सहमति यूरोपीय पक्ष ने व्यक्त की ।
भारत व यूरोपीय संघ की सातवीं वार्षिक शिखर बैठक 12-13 अक्टूबर, 2006 को हेलसिंकी (फिनलैण्ड) में सम्पन्न हुई जिसमें प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने भाग लिया । ईयू-भारत व्यापार शिखर बैठक में यूरोपीय कम्पनियों को भारत में निवेश के लिए प्रधानमंत्री ने प्रोत्साहित किया । उन्होंने कहा कि भारत में यूरोप की कम्पनियां अपनी पूंजी पर 13 प्रतिशत तक लाभ कमा रही हैं, जबकि उनका विश्व औसत 6 प्रतिशत ही है ।
बातचीत में न केवल दोनों पक्षों ने विश्व व्यापार संगठन की अवरुद्ध बातों को शीघ्र पुन: प्रारम्भ करने की साझा कोशिशों के लिए सहमति प्रदान की बल्कि उसकी मौजूदा शर्तों से आगे बढ्कर एक व्यापार एवं निवेश समझौता सम्पन्न करने के लिए प्रतिबद्धता व्यक्त की ।
संयुक्त वक्तव्य में आतंकवाद के सभी रूपों की निंदा की गई तथा यूरोपीय संघ ने उसे सार्क में पर्यवेक्षक का दर्जा दिलाने में भारत के सहयोग की सराहना की । यूरोपीय संघ ने आयुर्वेद को मान्यता देकर भविष्य में आयुर्वेदिक दवाओं की यूरोप में बिक्री की स्वीकृति प्रदान की ।
आठवां भारत-यूरोपीय संघ शिखर सम्मेलन 30 नवम्बर, 2007 को नई दिल्ली में हुआ । सम्मेलन के दौरान विज्ञान और प्रौद्योगिकी सहयोग पर एक करार को नवीकृत किया गया और विकास सहयोग में वर्ष 2007-10 के लिए बहुउद्देश्यीय-वार्षिक संकेतक कार्यक्रम पर दोनों पक्षों द्वारा हस्ता क्षर किए गये ।
दसवें भारत-यूरोपीय संघ शिखर बैठक का आयोजन 6 नवम्बर, 2009 को नई दिल्ली में किया गया । शिखर बैठक में संयुक्त राष्ट्र के प्रमुख निकायों की प्रतिनिधिक क्षमता पारदर्शिता तथा प्रभाविता में संवर्द्धन करने के उद्देश्य से इसमें सुधार लाए जाने की आवश्यकता को स्वीकार किया गया । 11वीं भारत-ईयू शिखर बैठक 10 दिसम्बर, 2010 को ब्रुसेल्स में आयोजित की गई ।
यह लिस्बन संधि के लागू होने के बाद प्रथम शिखर बैठक थी । प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह ने भारत का प्रतिनिधित्व किया और यूरोपीय परिषद् के अध्यक्ष श्री हरमन वान रोम्पी और यूरोपीय आयोग के अध्यक्ष श्री जोस मैनुएल बरोसो ने यूरोपीय संघ का प्रतिनिधित्व किया ।
यूरोपीय संघ की ओर से यह पहला अवसर था कि जब यूरोपीय परिषद् के अध्यक्ष ने अध्यक्ष बरोसो के साथ बेठक की जिससे लिस्बन संधि से हुए परिवर्तन परिलक्षित होते हैं । शिखर बैठक में भारत-यूरोपीय संघ सम्बन्धों की समीक्षा की गई तथा अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर एक संयुक्त घोषणा जारी की गई ।
दोनों नेताओं द्वारा जारी किए गए संयुक्त वक्तव्य में 2011 में प्रस्तावित अगली भारत-ईयू शिखर बैठक में ऊर्जा, स्वच्छ विकास और जलवायु परिवर्तन के सम्बन्ध में 2008 संयुक्त कार्य कार्यक्रम के परिणाम प्रस्तुत करने पर सहमति व्यक्त की गई ।
संयुक्त वक्तव्य के माध्यम से नाभिकीय ऊर्जा के शान्तिपूर्ण उपयोग में अनुक्त-धान एवं विकास सहयोग के लिए शीघ्र भारत-ईयू करार करने; 2005 में प्रारम्भ किए गए उपग्रह नौवहन सम्बन्धी करार को शीघ्र अन्तिम रूप देने और नागरिक उड्डयन करार के शीघ्र कार्यान्वयन का भी आह्वान किया गया । इस शिखर बैठक में अफगानिस्तान, पाकिस्तान जी-20 जलवायु परिवर्तन और निस्त्रीकरण समेत क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर भी विचारों का आदान-प्रदान किया गया ।
12वीं भारत-यूरोपीय संघ शिखर बैठक का आयोजन:
12वीं भारत-यूरोपीय संघ शिखर बैठक नई दिल्ली में 10 फरवरी, 2012 को आयोजित हुई । यूरोपीय परिषद् के अध्यक्ष हरमैन वैन रोमपुई तथा यूरोपीय आयोग के अध्यक्ष जोस मैनुएल बरोसो ने यूरोपीय संघ के शिष्टमण्डल का नेतृत्व किया ।
प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह ने भारतीय शिष्टमण्डल का नेतृत्व किया । लिस्बन सन्धि के कार्यान्वयन के बाद यह शिखर बैठक भारत में इस प्रकार की पहली शिखर बैठक थी । शिखर बैठक में चार दस्तावेज जारी किए गए-केन्द्रीय सांख्यिकीय कार्यालय (सीएसओ), सांख्यिकीय एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय, भारत सरकार तथा सांख्यिकीय सहयोग पर यूरोपीय आयोग (यूरोस्टैट) के बीच संगम ज्ञापन अनुसन्धान और नवाचार सहयोग पर भारत-यूरोपीय आयोग संयुक्त घोषणा भारत सरकार तथा यूरोपीय संघ के बीच ऊर्जा पर सहयोग बढ़ाने के लिए संयुक्त घोषणा और भारत-यूरोपीय संघ संयुक्त वक्तव्य ।
यूरोपीय संघ के साथ भारत की व्यापारिक भागीदारी:
28 देशों के एक गुट के रूप में यूरोपीय संघ भारत का सबसे बड़ा क्षेत्रीय व्यापारिक भागीदार है जबकि भारत 2013 में यूरोपीय संघ का 10वां सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार था । (जनवरी-दिसम्बर) 2013 के दौरान यूरोपीय संघ 28 देशों के साथ (माल और सेवाओं दोनों में) 2013 भारत का समग्र 966 बिलियन यूरो जबकि (द्विपक्षीय-व्यापार माल 72.70 बिलियन यूरो और सेवाओं में द्विपक्षीय व्यापार 23 .9 बिलियन यूरो) ।
महत्वपूर्ण सेवाओं में व्यापार 23.9 बिलियन यूरो था जिसमें 2012 की तुलना में जो 22.5 बिलियन यूरो था 2013 में जिसमें 6.22 प्रतिशत की वृद्धि हुई । यूरोपीय संघ को भारत का निर्यात 2013 में 36.8 बिलियन यूरो था, जबकि यूरोपीय संघ से भारत को आयात 35.9 बिलियन यूरो रहा ।
यूरोपीय संघ से भारत को 2013 में 32 बिलियन यूरो के एफडीआई प्रवाह के साथ यूरोपीय संघ प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के साथ भारत के लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के सबसे बड़े स्रोतों में एक बना हुआ है । विकास सहयोग पर भारत-यूरोपीय संघ उप आयोग की पिछली बैठक 3 जून, 2014 को दिल्ली में आयोजित की गई थी ।
यूरोपीय संघ के मुख्य वार्ताकार ने 30 अक्टूबर, 2014 को अपने भारतीय समकक्षों से 2007 के बाद से वार्ताओं का जायजा लेने के लिए दिल्ली में मुलाकात की । भारत-यूरोपीय संघ मैक्रो आर्थिक वार्ता (एमईडी) और भारत-यूरोपीय संघ वित्तीय सेवा वार्ता (एफएसडी) की 7वीं बैठक 4 जून, 2014 को दिल्ली में की गयी ।
भारत-यूरोपीय संघ ऊर्जा पैनल की पिछली बैठक 27 मार्च, 2014 को ब्रूसेल्स में आयोजित की गई थी । कोयले पर पिछला भारत-यूरोपीय संघ जेडब्ल्यूजी 10-11 सितम्बर, 2014 को जर्मनी में पॉट्सडैम में आयोजित किया गया है ।
पर्यावरण पर संयुक्त कार्यदल की वीं बैठक को 10-11 अप्रैल, 2014 को बूसेल्स में भारतीय पक्ष की ओर से अपर सचिव, पर्यावरण और वन मंत्रालय के नेतृत्व में आयोजित किया गया था । रोजगार और सामाजिक नीति पर वें भारतीय-यूरोपीय संघ की संयुक्त संगोष्ठी ‘कौशल विकास’ पर दिल्ली में सितम्बर 2014 को आयोजित की गयी थी ।
निष्कर्ष:
चर्चिल एक स्वप्निल मुहावरे का प्रयोग किया करते थे; वह मुहावरा था ‘संयुक्त राज्य यूरोप’ । यह मुहावरा अभी स्वप्न ही है, किन्तु इसके बीज क्रमश: प्रकट हो रहे हैं । चर्चिल ने ही विवेचन भी किया था कि हम संयुक्त राज्य यूरोप नाम की कोई ‘मशीन’ नहीं बनाना चाहते वरन् हम एक ‘पौधे’ के समान क्रमश: विकसित होना चाहते हैं ।
इस विकास क्रम को हम सहज ही देख सकते हैं। पांचवें दशक में बना यूरोपीय समुदाय, पड़ोसियों के साथ एक सद्व्यवहारी ‘आर्थिक क्लब’ से अधिक कुछ नहीं था, 1985 में वह एक साझे बाजार के रूप में आकारित हुआ । 6 वर्षों की सुदीर्घ बहस के बाद 11 दिसम्बर, 1991 को मेस्ट्रिच में मुद्रा संघ बनने के अनुबन्ध तक पहुंचा ।
‘एक मुद्रा’ एवं साझासुरक्षा’ पर आम सहमति किसी-न-किसी केन्द्रीय सत्ता का निर्माण करेगी । बिना सत्ता के पूरे यूरोपीय महाद्वीप में एक मुद्रा का नियमन सम्भव नहीं रहेगा । ‘साझा सुरक्षा’ पर आम सहमति नाटो के अस्तित्व को चुनौती दे रही है ।
21वीं शताब्दी का प्रथम दशक यूरोप के लिए निर्णायक संक्रान्ति का काल है । 28 देशों और 49 करोड़ लोगों से मिलकर बना यूरोपीय संघ अब आर्थिक-राजनीतिक शक्ति के साथ विश्व के सबसे बड़े व्यापारिक ब्लॉक में बदल चुका है और यह अमरीका के एक ध्रुवीय पक्ष पर वास्तविक रूप में भारी पड़ता जा रहा है ।
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यूरोपीय संघ विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक है । 28 सदस्यों वाले इस संगठन को 2009 में लागू लिस्बन संधि के द्वारा स्वतन्त्र कानूनी अस्तित्व प्राप्त हो गया । आकार की दृष्टि से छोटा होते हुए भी यूरोपीय सघ आर्थिक रूप से एक विकसित क्षेत्र है ।
यूरोपीय संघ का भौगोलिक क्षेत्रफल 43,24,782 वर्ग किमी है तथा इसकी जनसंख्या 510 मिलियन है जो भारत की जनसंख्या की आधी से भी कम है । इसके विपरीत यूरोपीय संघ का कुल सकल घरेलू उत्पाद ट्रिलियन डॉलर है तथा प्रति व्यक्ति घरेलू उत्पाद 33,052 डॉलर है, जो भारत के प्रति व्यक्ति घरेलू उत्पाद से कई गुना अधिक है ।
निष्कर्ष:
यूरोपीय संघ एक छोटा, लेकिन विकसित क्षेत्र है तथा भारत की उदारीकृत अर्थव्यवस्था में दोनों के मध्य सहयोग की व्यापक सम्भावनाएं मौजूद हैं । भारत के विकास कार्यक्रमों में यूरोपीय संघ की महत्वपूर्ण भागीदारी है । 2007-10 की अवधि के लिए भारत में सहस्राब्दि विकास लक्ष्यों की पूर्ति हेतु यूरोपीय संघ द्वारा 260 मिलियन यूरो की राशि सरकारी सहायता के रूप में दी गई ।
आज जहां भारत उच्च तकनीकी पूंजी तथा विकास सहायता हेतु यूरोपीय संघ की ओर आकर्षित है वहीं यूरोपीय संघ भारत के विशाल बाजार, मानवीय संसाधन आदि के प्रति आकर्षित है । आज यूरोपीय संघ भारत का सबसे बड़ा व्यापार साझेदार है । द्विपक्षीय व्यापार 2012-13 में 102 बिलियन यूरो पार कर गया और अगले 5 वर्षों में 125 बिलियन यूरो तक पहुंचने का लक्ष्य है ।