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Here is an essay on ‘India’s Relation with Russia’ especially written for school and college students in Hindi language.
Essay # 1. सोवियत संघ का विघटन और रूस का उदय (Dissolution of the U.S.S.R. and Rise of Russia):
सोवियत संघ के विघटन के बाद उसका सबसे बड़ा गणराज्य ‘रूस’ अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण इकाई के रूप में अवतरित हुआ । जहां सोवियत संघ की कुल जनसंख्या 28 करोड़ 70 लाख थी वहां रूस की कुल जनसंख्या 14 करोड़ 77 लाख है (सोवियत संघ की 52 प्रतिशत जनसंख्या रूसी गणराज्य में निवास करती है) तथा आज भी वह क्षेत्रफल की दृष्टि से विश्व का सबसे बड़ा देश है ।
पूर्व सोवियत संघ की भूमि का 75 प्रतिशत भाग रूस के पास है और ऐसा माना जाता है कि पूर्व सोवियत संघ का औद्योगिक और कृषि उत्पादन का 70 प्रतिशत रूस से ही होता था । सोवियत संघ का 90 प्रतिशत तेल, 50 प्रतिशत गेहूं, 50 प्रतिशत कपड़ा, 50 प्रतिशत खनिज रूसी गणराज्य में ही पैदा होता था । रूस का स्वर्ण उद्योग विश्व में दूसरे स्थान पर आता है । क्षेत्रफल की दृष्टि से भी रूस सोवियत संघ का विशालतम गणराज्य था ।
सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने में इस गणराज्य का अपना विशिष्ट योगदान रहा है, क्योंकि यह सर्वाधिक संसाधन सम्पन्न गणराज्य है । सोवियत संघ के विघटन के बाद रूस को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में पुराने सोवियत संघ का स्थान प्रदान कर दिया गया तथा उसने वचन दिया कि पुराने सोवियत संघ के समस्त अन्तर्राष्ट्रीय दायित्वों का वह निर्वाह करेगा ।
पुराने सोवियत संघ के विघटन के बाद बचा हुआ रूस एक महाशक्ति के रूप में तो उभरा ही, क्योंकि हजारों मिसाइल रूस के दूर-दूर तक लगे हुए हैं तथा राष्ट्रपति गोर्बाच्योव ने तथाकथित ‘परमाणु बटन’ या ‘ब्रीफकेस’ रूसी राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन को सौंप दिये थे ।
Essay # 2. रूस की विदेश नीति (Russian Foreign Policy):
26 दिसम्बर, 1991 को सोवियत संघ के विघटन के बाद रूस एक स्वतन्त्र-सम्प्रभु राज्य के रूप में सामने आया है, अत: मात्र दस वर्ष के उसके अस्तित्व के आधार पर उसकी विदेश नीति का विश्लेषण करना बड़ा कठिन है ।
रूस की विदेश नीति के बारे में दो दृष्टिकोण हमारे सामने आते हैं । पहला दृष्टिकोण तो यह है कि रूस पुराने सोवियत संघ का उत्तराधिकारी राज्य है अत: अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में वह उसी भांति की विदेश नीति अपनायेगा जो पुराने सोवियत संघ की थी ।
दूसरा दृष्टिकोण यह है कि आज रूस पुराने सोवियत संघ से एकदम भिन्न स्थिति में है वहां न तो कम्युनिस्ट पार्टी की सत्ता है और न मध्य एशिया के गणराज्य उसके क्षेत्र का हिस्सा हैं । रूस तो अब एकदम यूरोपीय भू-क्षेत्र का देश है, अत: विदेश नीति के क्षेत्र में उसकी सोच और रुझान एक यूरोपीय महादेश की भांति होगी । उसकी विदेश नीति में आमूलचूल परिवर्तन अपरिहार्य है । इस सम्बन्ध में दूसरा दृष्टिकोण अधिक तर्कसंगत प्रतीत होता है ।
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पुराने सोवियत संघ के 75 वर्ष के अस्तित्व काल में अन्तर्राष्ट्रीय परिदृश्य और रूस के अस्तित्व में आने के बाद के अन्तर्राष्ट्रीय परिदृश्य में व्यापक अन्तर है । जहां पश्चिमी देश सोवियत संघ की साम्यवादी व्यवस्था को छिन्न-भिन्न करने में लगे हुए थे वहां वे रूस में लोकतन्त्र एवं मुक्त बाजार व्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए आर्थिक सहायता देने की नीति का पालन कर रहे हैं ।
पुराने सोवियत संघ ने 1945 के बाद का समय शीत-युद्ध के माहौल में व्यतीत किया वहां आज रूस के अस्तित्व से पूर्व ही शीत-युद्ध का अन्त हो चुका है । अत परिवर्तित अन्तर्राष्ट्रीय परिदृश्य में रूस की विदेश नीति में आमूलचूल परिवर्तन होना स्वाभाविक है ।
पिछले 18-19 वर्षों में रूसी विदेश नीति की निम्नलिखित विशेषताएं उभरकर सामने आयी हैं: संयुक्त राष्ट्र संघ के साथ सहयोग अमरीका के साथ सामान्य सहयोगी सम्बन्ध यूरोपीय राष्ट्रों विशेषकर जर्मनी के साथ घनिष्ट आर्थिक सम्बन्ध नाटो के साथ शान्ति के लिए साझापन, चीन और जापान के साथ विवादों को सुलझाने की नीति और भारत के साथ घनिष्ट सम्बन्ध बनाने की चेष्टा ।
पिछले वर्षों में रूस ने विभिन्न देशों के साथ जिस ढंग से सम्बन्धों की शुरुआत की है, उससे उसकी विदेश नीति का रुझान स्पष्ट हो जाता है । अत: यहां रूस के अन्य देशों के साथ सम्बन्धों का संक्षिप्त विवेचन अपरिहार्य है ।
Essay # 3. रूस और भारत (Russia and India):
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7 नवम्बर, 1917 को सोवियत संघ की स्थापना की गयी थी । सन् 1921 में लेनिन ने नई आर्थिक नीति की घोषणा की ओर 1922 में स्टालिन को कम्युनिस्ट पार्टी का महामन्त्री बना दिया गया । उसके बाद 1956 में ख्रुश्चेव तथा 1964 में बेझनेव पार्टी के महामन्त्री बने ।
इन दिनों पार्टी के महामन्त्री की स्थिति एक अधिनायक की भांति रही । 1985 में गोर्बाच्योव पार्टी के महामन्त्री बने । उन्होंने ग्लेस्नोस्त (खुलापन) और पेरेस्त्रोइका (पुनर्निर्माण) के सिद्धान्त लागू किये । प्रतिफल यह हुआ कि दिसम्बर, 1991 में सोवियत संघ का अस्तित्व ही समाप्त हो गया ।
26 दिसम्बर, 1991 को सोवियत संघ की संसद सुप्रीम सोवियत ने अपने अन्तिम अधिवेशन में सोवियत संघ को समाप्त किये जाने का प्रस्ताव पारित कर दिया और स्वयं के भंग होने की भी घोषणा कर दी । इसके साथ ही 70 वर्ष पुराने सोवियत संघ का अन्त हो गया ।
1991 की कतिपय घटनाएं सोवियत संघ को विघटन की दिशा में ले जाने की दृष्टि से अत्यन्त उल्लेखनीय हैं । 19 अगस्त, 1991 को गोर्बाच्योव को राष्ट्रपति पद से हटा दिया गया तथा उपराष्ट्रपति गेन्नादी यानायेव को राष्ट्रपति पद का कार्यभार सौंप दिया गया ।
22 अगस्त, 1991 को विद्रोह के असफल होने के बाद गोर्बाच्योव वापस लौटे तो एस्टोनिया के बाल्टिक गणराज्य ने स्वतन्त्रता की घोषणा कर दी । 25 अगस्त, 1991 को गोर्बाच्योव ने कम्युनिस्ट पार्टी का प्रमुख पद छोड़ा तो साथ ही उक्रेन ने स्वतन्त्रता की घोषणा कर दी ।
29 अगस्त, 1991 को सुप्रीम सोवियत ने कम्युनिस्ट पार्टी पर प्रतिबन्ध लगा दिया । 31 अगस्त, 1991 को अजरबैजान ने, 1 सितम्बर, 1991 को उज्बेकिस्तान और किर्गिजस्तान ने स्वतन्त्रता की घोषणा कर दी । 7 सितम्बर, 1991 को सोवियत संघ के तीन बाल्टिक गणराज्यों-लिथुआनिया, एस्टोनिया और लाटविया को मान्यता प्रदान कर दी । 13 दिसम्बर, 1991 को येल्लसिन और गोर्बाच्योव में सोवियत संघ को समाप्त करने पर सहमति हो गयी ।
विदेश मन्त्रालय की वार्षिक रिपोर्ट 1998-99 में स्पष्ट कहा गया है कि- ”निरन्तरता, विश्वास और परस्पर सूझबूझ पर आधारित भारत और रूस के बीच घनिष्ठ और मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध दोनों देशों के लिए विदेश नीति की प्राथमिकता का महत्वपूर्ण अंग है । सहयोग के विभिन्न क्षेत्रों में हमारे बहुफलकीय सम्बन्ध तीव्रगति से विकसित हो रहे हैं ।”
भारत-रूस सम्बन्धों को पहले की तरह प्रगाढ़ बनाने की कोशिश में रूस के प्रधानमन्त्री व्लादिमीर पुतिन ने दस वर्ष में पांचवीं बार भारत की यात्रा की । इस यात्रा के दौरान दोनों देशों के आपसी हितों से जुड़े कई अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दों पर दोनों ऐसे निष्कर्षों पर पहुंचे जिनके दूरगामी परिणाम होंगे ।
सोवियत संघ के बिखराव के बाद हालांकि दोनों देशों के बीच दूरिया कुछ बड़ी हैं लेकिन बढ़ती वैश्विक चुनौतियों के सम्बन्ध में उन्होंने रणनीतिक साझेदारी को और दृढ़ किया है । भारत और रूस को भू-राजनीतिक साझेदारी के लिए एक-दूसरे की आवश्यकता है ।
अफगानिस्तान की स्थिति और पाकिस्तान में कट्टरपंथी इस्लाम के उदय से दक्षिण एशिया में विस्फोटक समस्या उत्पन्न हो गई है जिससे विश्व शान्ति को खतरा है । इस क्षेत्र में शान्ति बनाए रखने के लिए भारत और रूस के बीच घनिष्ठ सहयोग आवश्यक हो गया है ।
रूस और भारत:
सोवियत संघ के साथ भारत के घनिष्ट सम्बन्ध थे, अत: सोवियत संघ के विघटन से भारत का चिन्तित होना स्वाभाविक था । पूर्व सोवियत संघ की भांति ही रूस भारत से घनिष्ठ सम्बन्ध बनाने को इच्छुक है ।
31 जनवरी, 1991 को न्यूयार्क में राष्ट्रपति येल्तसिन ने भारत के प्रधानमन्त्री से मुलाकात की । जनवरी, 1992 में विदेश सचिव के नेतृत्व में अधिकारियों का एक उच्चस्तरीय दल रूस और उक्रेन गया । रूस के साथ एक नई मैत्रिक और सहयोग सन्धि को अन्तिम रूप दिया गया ।
भारत ने रूसी संघ को 15 करोड़ रुपए की राशि की मानवीय सहायता देने की पेशकश की । इस पेशकश का आशय संघ की जनता के ऐसे भाग को मुसीबत में मदद देना है जो भूतपूर्व सोवियत संघ में हाल के राजनीतिक और आर्थिक परिवर्तनों के बाद आर्थिक क्रियाकलापों के विघटित होने के फलस्वरूप बुरी तरह प्रभावित हुई है ।
इस धन का उपयोग अत्यावश्यक मदों, जैसे बाल आहार, चावल, मानक औषधियों की आपूर्ति के लिए किया जायेगा । अप्रैल 1992 में रूसी विदेश मन्त्री गेन्नादी बब्यूलिस ने अपनी भारत यात्रा के दौरान कहा कि उनका देश क्रायोजेनिक इंजनों के सम्बन्ध में भारत-सोवियत करार का सम्मान करेगा ।
रूसी विदेश मन्त्री ने कहा कि रूस पारस्परिक लाभ तथा दोनों देशों की राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था के सम्मान के आधार पर भारत के साथ सम्बन्धों को प्रगाढ़ बनाने का निश्चित तौर पर समर्थन करता है । प्रथम भारत-रूस व्यापार प्रोटोकोल को अन्तिम रूप दिया गया जो 1992 के लिए वैध था ।
रूसी राष्ट्रपति येल्तसिन की भारत यात्रा:
जनवरी, 1993 में रूसी राष्ट्रपति येल्तसिन ने भारत की यात्रा की । रूसी राष्ट्रपति के साथ एक उच्चस्तरीय प्रतिनिधि मंडल भी आया । इस समय भारत और रूस के मध्य कई मुद्दे बकाया थे जिनमें रुपये-रूबल विनिमय दर और रूसी ऋण का पुनर्निर्धारण भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए क्रायोजेनिक इंजनों की आपूर्ति आदि प्रमुख थे ।
इस यात्रा से जहां रुपए-रूबल समानता का मुद्दा हल हुआ वहां रूसी राष्ट्रपति ने क्रायोजेनिक इंजनों और अन्य कल-पुर्जों की आपूर्ति का आश्वासन दिया । दोनों देशों ने मित्रता और सहयोग के बारे में एक नये समझौते पर हस्ताक्षर किए जो पुरानी भारत-सोवियत मैत्री का स्थान लेगा ।
चौदह-सूत्री यह संधि व्यापक रूप में पूर्व भारत-सोवियत संधि की ही तरह की है, अन्तर सिर्फ इतना है कि इसमें सुरक्षा सम्बन्धी प्रावधान नहीं है । इसके अतिरिक्त नौ अन्य समझौतों पर भी हस्ताक्षर किये गये, इनमें प्रमुख थे-रक्षा आपूर्ति, विज्ञान और टेक्नोलॉजी तथा आतंकवाद से निबटने और नशीली दवाओं के अवैध व्यापार की रोकथाम सम्बन्धी समझौते ।
श्री येल्तसिन की भारत यात्रा की एक विशेषता यह थी कि उन्होंने संवाददाता सम्मेलन में यह घोषणा की कि वे ‘कश्मीर को भारत का अभिन्न हिस्सा मानते हैं और यह वचनबद्धता व्यक्त की कि वे संयुक्त राष्ट्र में या अन्य स्थानों पर भारत का समर्थन करेंगे ।
श्री येल्तसिन ने भारत को यह आश्वासन दिया कि यदि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में उसे स्थायी सदस्य बनाने सम्बन्धी प्रस्ताव सामने आया तो वे उसके पक्ष में वोट देंगे । इस प्रकरि येल्तसिन की भारत यात्रा से जैसा कि स्वयं उन्होंने कहा न केवल भारत-रूस सम्बन्धों की अनावश्यक बाधाएं दूर हुईं बल्कि इससे द्विपक्षीय सद्भाव, सहयोग और मैत्री के नये युग की शुरुआत हुई ।
भारत और रूस के बीच मैत्री एवं सहयोग से सम्बद्ध संधि का अनुसमर्थन 11 अक्टूबर, 1993 को मास्को में हुआ । दोनों सरकारों के बीच अप्रैल 1993 में टिप्पणियों का आदान-प्रदान करके रुपए-रूबल करार का भी अनुसमर्थन किया गया ।
यह अनुसमर्थन 11 मई, 1993 से प्रभावी हुआ । सचिव संस्कृति विभाग की मास्को यात्रा के दौरान वर्ष 1993-94 की अवधि के लिए एक महत्वपूर्ण भारत-रूस सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रम पर 16 सितम्बर, 1993 को हस्ताक्षर हुए ।
परिवार एवं स्वास्थ्य कल्याण मंत्रालय के सचिव की 12 से 18 सितम्बर, 1993 की रूस की यात्रा के दौरान चिकित्सा विज्ञान और लोक स्वास्थ्य में सहयोग से सम्बद्ध एक नवाचार भी सम्पन्न हुआ । विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पर आई.एल.टी.पी. संयुक्त परिषद् की नवम्बर, 1993 में नई दिल्ली में हुई बैठक के साथ ही भारत-रूसी विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी कार्यकारी दल प्रथम सत्र की बैठक भी हुई ।
आर्थिक क्षेत्र में 1993 की महत्वपूर्ण गतिविधियों में भारत द्वारा रूस को 3 बिलियन रुपए ‘स्विंग ऋण’ और दोनों देशों के व्यवसायी तथा औद्योगिक क्षेत्रों के बीच सीधे सम्पर्क को बढ़ाना शामिल है । वर्ष 1993 के दौरान भारत-रूस सम्बन्धों में एक महत्वपूर्ण घटना रूस की सरकार का वह निर्णय था जिसकी सूचना उन्होंने 16 जुलाई, 1993 को दी जिसके अन्तर्गत अपरिहार्य कारणों से सम्बद्ध धारा का प्रयोग करते हुए उसने यह बताया कि ग्लवकासमोस जी.एस.एल.वी. के लिए क्रायोजेनिक इंजिन के विकास से सम्बद्ध ‘इसरो’ के साथ जनवरी 1991 में सम्पन्न करार के अन्तर्गत अपने दायित्वों को पूरा करने की स्थिति में नहीं है ।
रूस ने अपना निर्णय इस आधार पर न्यायोचित बताया कि इस अनुबन्ध के कुछ अंश रॉकेट इन्जनों से सम्बद्ध प्रौद्योगिकी सामग्री तथा उपकरणों के सम्बन्ध में रूस की नए निर्यात नियन्त्रण कानून के विरुद्ध है । इस निर्णय पर भारत सरकार का खेद सरकारी प्रवक्ता द्वारा 17 जुलाई, 1993 को व्यक्त कर दिया गया ।
प्रधानमन्त्री पी.वी. नरसिम्हा राव की रूस यात्रा:
प्रधानमन्त्री वी.पी. नरसिम्हा राव की चार दिवसीय रूस यात्रा के तीसरे दिन 1 जुलाई, 1994 को मास्को में भारतीय दूतावास द्वारा आयोजित भोज में जुटे भारतीय और रूसी नेताओं नौकरशाही और राजनयिकों की ओर इशारा करते हुए रूसी उप विदेशमन्त्री अलबर्ट चेर्निशेन ने कहा, ” देखिए, हर कोई निश्चिन्त है हमने अच्छा काम किया, नौ महत्वपूर्ण और दो महत्वपूर्ण घोषणाओं पर दस्तखत किए गए हमारे सम्बन्धों में यह एक बड़ा कदम है ।”
वस्तुत: दोनों देश नई विश्व व्यवस्था से तालमेल बैठाने की जुगत कर रहे हैं । जहां भारत की कोशिश अमेरिका और चीन के साथ अपने मतभेदों को मिटाने की है वहीं रूस साइप्रस में हुए यूरोपीय संघ के सम्मेलन में हिस्सा लेने और नेपल्स में जी-7 के औद्योगिक देशों के साथ बातचीत चलाने के अलावा राजनीतिक पर्यवेक्षक की हैसियत से ‘नाटो’ में भी शामिल हो चुका है लेकिन भारत और रूस दोनों को अब भी एक-दूसरे की जरूरत है ।
रूस को अपने गुजारे के लिए हथियार बेचने की जरूरत है उसने अपने पूर्व प्रतिद्वन्द्वी चीन को भी मिग-27 और एस यू-30 लड़ाकू विमान बेचे हैं । उसे इस बात का अहसास हो गया है कि हिन्द महासागर और एशिया-प्रशान्त क्षेत्र में भारत रूसी हितों के लिए सन्तुलन कायम करने वाली ताकत बना रहेगा ।
हथियारों के आयात-निर्यात के रूसी सरकारी निगम ‘रोस्वूरॉझेनि’ के महानिदेशक सोम्योलोव कहते हैं- ”पिछले वर्ष जब हमने अपनी स्थिति पर पुनर्विचार किया तो हमें एहसास हुआ कि ऐसे साझीदार को खोना सरासर मूर्खता है ।”
नरसिम्हा राव के रूस दौरे से प्रतिरक्षा रणनीतिक और व्यापारिक सम्बन्धों की कई बाधाएं दूर हुईं । पारस्परिक सैनिक हितों, रक्षा, व्यापार और तकनीक समेत विभिन्न क्षेत्रों में दो महत्वपूर्ण घोषणाएं और नौ समझौतों पर हस्ताक्षर हुए ।
रक्षा क्षेत्र में भारत को रूस से 83 करोड़ डॉलर का उधार मिलेगा । यात्रा की सबसे बड़ी । उपलब्धि है पुर्जों की आपूर्ति और रूसी विमानों की मरम्मत के लिए एक कम्पनी बनाने के संयुक्त उद्यम पर समझौता । 40 करोड़ रुपए की इस कम्पनी में भारतीय पक्ष-हिदुस्तान एअरोनॉटिक्स लि और आई.सी.आई.सी.आई. का हिस्सा 53 प्रतिशत होगा । साथ ही इसमें मास्को एयरक्राफ्ट प्रोडक्शन आर्गेनाइजेशन जैसी रूसी एजेन्सियों की भी हिस्सेदारी होगी । इस परियोजना से वायु सेना को कम समय में पुर्जे उपलब्ध कराए जा सकेंगे ।
गृहमन्त्री एस.बी. चव्हाण ने 28 अगस्त से 3 सितम्बर, 1994 तक रूस की यात्रा की । रूस के प्रधानमन्त्री चरनोमुइरदीन दिसम्बर, 1994 में भारत आए । उनकी यात्रा के अन्तिम दौर में आठ दस्तावेजों पर हस्ताक्षर हुए जिनमें पूंजी निवेश के संवर्द्धन, बाह्य अन्तरिक्ष के अनुसंधान, वर्ष 2000 तक दीर्घकालिक रक्षा सहयोग कार्यक्रम के क्रियान्वयन तथा 1995-97 की अवधि के लिए भारत में जिन्सों की दीर्घावधिक खरीदों से सम्बद्ध करार शामिल हैं ।
30 मार्च, 1996 को भारत व रूस में आपसी सहयोग के तीन समझौतों पर भारत के विदेशमन्त्री प्रणव मुखर्जी तथा रूस के विदेशमन्त्री प्रीमाकोव ने नई दिल्ली में हस्ताक्षर किए । इनमें से एक समझौता भारत के प्रधानमन्त्री तथा रूस के राष्ट्रपति के कार्यालय के बीच हाट लाईन स्थापित करने सम्बन्धी है । कश्मीर मुद्दे पर रूसी नेता ने कहा कि उनका देश इसे अन्तर्राष्ट्रीय मंच से उछालने के खिलाफ है ।
भारत-रूस: सुखोई विमान विषयक समझौता:
भारत ने अत्यन्त विकसित किस्म के ‘सुखोई-30’ एम.के.-1 युद्धक विमानों की खरीद के विषय में 30 नवम्बर, 1996 को रूस के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए । यह समझौता भारतीय रक्षा मन्त्रालय और रूसी सरकारी शस्त्र कम्पनी रोस्वो उरूझेनिए तथा इर्कुटस्क विमानन औद्योगिक संघ के मध्य हुआ ।
भारत सर्वप्रथम 40 विमान खरीदेगा जो रूस में तैयार होंगे । एक सुखोई विमान की कीमत 1 अरब रुपए है । सुखोई विमान मिल जाने पर वायु सेना की शत्रु के क्षेत्र में काफी अन्दर तक प्रहार करने की क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि होगी ।
प्रधानमन्त्री एच.डी. देवेगौड़ा की रूस यात्रा : मार्च 1997:
मार्च, 1997 में भारत के प्रधानमन्त्री एच.डी. देवेगौड़ा ने रूस की यात्रा की । येल्तसिन-देवेगौड़ा शिखर वार्ता के बाद भारत और रूस ने द्विपक्षीय सहयोग बढ़ाने के लिए छह समझौतों पर हस्ताक्षर किए । जिन छह समझौतों पर हस्ताक्षर हुए उनमें प्रत्यर्पण सन्धि के साथ ही दोहरे कराधान को समाप्त करने, सीमा-शुल्क सम्बन्धी मामलों में पारस्परिक सहयोग परमाणु ऊर्जा संयन्त्र संरक्षण एवं विकास, आपराधिक मामलों में परस्पर कानूनी सहायता, वाणिज्य दूतावास सम्बन्धी समझौता तथा सांस्कृतिक खेल मामलों में सहयोग का समझौता शामिल है ।
रूस ने अमरीका के विरोध को नजरन्दाज करते हुए घोषणा की कि वह भारत में दो परमाणु रिएक्टरों के निर्माण की योजना से पीछे नहीं हटेगा । राष्ट्रपति येल्तसिन ने घोषणा की कि उन्होंने पाकिस्तान को हथियारों की बिक्री पर पाबन्दी लगा दी है तथा उक्रेन को उन टी-80 किस्म के टैंकों के महत्वपूर्ण पुर्जों की आपूर्ति रोक दी है, जिन्हें वह पाकिस्तान को देने वाला है । येल्तसिन ने कहा कि वह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में भारत की स्थायी सदस्यता के दावे का पूर्ण समर्थन करते हैं ।
रूसी प्रधानमन्त्री प्रिमाकोव की भारत यात्रा (दिसम्बर, 1998):
रूस के प्रधानमन्त्री प्रिमाकोव ने 20-22 दिसम्बर, 1998 तक भारत की राजकीय यात्रा की । उनकी यात्रा के दौरान दोनों देशों के प्रधानमन्त्रियों की उपस्थिति में सात द्विपक्षीय दस्तावेजों पर हस्ताक्षर हुए ।
करगिल मसले पर रूस द्वारा पाकिस्तान को चेतावनी:
करगिल मसले पर रूस ने पाकिस्तान को चेतावनी देते हुए कहा कि वास्तविक नियन्त्रण रेखा बदलने के उसके किसी भी प्रयास के गम्भीर परिणाम हो सकते हैं । रूस ने पाक को कड़ाई से कहा कि वह घुसपैठियों को वापस बुला ले ।
जसवन्तसिंह की रूस यात्रा:
जून, 2000 में भारत के विदेश मन्त्री जसवन्तसिंह की रूस यात्रा से भारत और रूस के बीच मैत्री सम्बन्ध प्रगाढ़ हुए । राष्ट्रपति पुतिन और विदेश मन्त्री इगोर इवानोव से जसवन्तसिंह की बातचीत से विभिन्न अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दों पर भारत और रूस के दृष्टिकोण में समानता की झलक मिली ।
भारत रूस के साथ इस बात पर सहमत हुआ कि प्रक्षेपास्त्र मारक तकनीक विश्व के शक्ति सन्तुलन को बिगाड़ देगी और अमेरिका राष्ट्रीय प्रक्षेपास्त्र सुरक्षा के नाम पर जिस तकनीक को विकसित कर रहा है, उससे हथियार होड़ का नया चरण शुरू होने की आशंका है । रूस ने सुरक्षा परिषद् में भारत के स्थायी सदस्यता के दावे को अपना समर्थन दोहराया है ।
राष्ट्रपति पुतिन की भारत यात्रा (अक्टूबर, 2000):
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन ने अक्टूबर, 2000 में दिन के लिए भारत की यात्रा की । भारत और रूस में सैन्य सहयोग बढ़ाने की दृष्टि से चार महत्वपूर्ण समझौतों पर इस यात्रा के दौरान हस्ताक्षर किए गए । इनमें सबसे महत्वपूर्ण समझौता दोनों देशों के बीच सैन्य तकनीकी सहयोग के लिए अन्तर-सरकार आयोग का गठन है ।
इसके अतिरिक्त तीन अन्य समझौते रूस द्वारा भारत को ‘एडमिरल गोर्शकोव एयरक्राफ्ट कैरियर’ दिए जाने एस.यू. 30 एम.के.आई. लड़ाकू विमान देने और टी-90 टैंक देने से सम्बन्धित हैं । रूस के साथ 3 अरब रुपए के रक्षा सौदे से जो स्वतन्त्रता के बाद सबसे बड़ा सौदा है, भारत की प्रतिरक्षा सम्बन्धी खामियों के दूर होने की उम्मीद की जा सकती है ।
भारतीय संसद की संयुक्त बैठक को सम्बोधित करते हुए पुतिन ने कहा कि जम्मू और कश्मीर में विदेशी हस्तक्षेप बंद होना चाहिए । उन्होंने आतंकवाद से संघर्ष के लिए संयुक्त मोर्चा तैयार करने के भारत के प्रस्ताव का समर्थन किया ।
उन्होंने भारत की इस मांग का समर्थन भी किया कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का विस्तार किया जाना चाहिए । पाकिस्तान और अफगानिस्तान से उत्पन्न होने वाले आतंकवादी खतरे को रोकने के लिए भारत-रूस संयुक्त कार्यदल के गठन पर सहमति हुई ।
अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर मास्को घोषणा पत्र (नवम्बर, 2001):
नवम्बर 2001, में भारत के प्रधानमन्त्री वाजपेयी ने रूस की यात्रा की । रूसी राष्ट्रपति पुतिन के साथ 6 नवम्बर को उनकी शिखर वार्ता हुई । शिखर वार्ता के पश्चात् दोनों नेताओं ने अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर मॉस्को घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किए । यह घोषणा-पत्र वस्तुत: कश्मीर व चेचेन्या के मामलों में क्रमश: भारत व रूस की चिन्ताओं पर केन्द्रित दस्तावेज है ।
राष्ट्रपति पुतिन द्वारा सुरक्षा परिषद के लिए भारत की दावेदारी का समर्थन:
राष्ट्रपति पुतिन ने 3-5 दिसम्बर, 2002 तक भारत का दौरा किया । यात्रा के दौरान रूस ने विस्तारित संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की सशक्त और न्यायोचित दावेदारी के प्रति रूस के समर्थन की पुन: पुष्टि की । आठ दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए गए । हस्ताक्षरित दस्तावेजों में विशेषकर सीमा पर आतंकवाद पर भारत के दृष्टिकोण और पाकिस्तान में आतंकवाद की अवसंरचना को ध्वस्त किए जाने का समर्थन किया गया ।
राष्ट्रपति पुतिन की भारत यात्रा (3-5 दिसम्बर, 2004):
अपने देश के उच्चस्तरीय शिष्टमण्डल के साथ रूसी राष्ट्रपति पुतिन 3-5 दिसम्बर 2004 की तीन दिन की भारत यात्रा पर आए । प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह से विस्तृत वार्ता के बाद आतंकवाद से अधिक एकजुट तरीके से निपटने तथा आर्थिक- व्यापारिक सहयोग बढ़ाने के सामरिक महत्व के एक संयुक्त घोषणा पत्र के अतिरिक्त आपसी सहयोग के 9 अन्य समझौतों/आशय पत्रों पर दोनों देशों ने हस्ताक्षर किए ।
इनमें रूस के ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम के शान्तिपूर्ण उद्देश्यों के लिए भारत द्वारा उपयोग किए जाने का समझौता तथा अन्तरिक्ष, ऊर्जा, संचार व आर्थिक क्षेत्रों में सहयोग के समझौते शामिल हैं । राजनयिकों की वीजामुका यात्रा तथा मुम्बई व सेन्टपीटर्सबर्ग को जुड़वां शहर का दर्जा प्रदान करने सम्बन्धी समझौते भी इनमें शामिल हैं ।
पुतिन-मनमोहन शिखर वार्ता (8-10 मई, 2005):
भारत के प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह द्वितीय विश्वयुद्ध में नाजी जर्मनी पर गठबन्धन शक्तियों की जीत की 60वीं वर्षगांठ के समारोह में शामिल होने के लिए तीन दिन की यात्रा पर 8 मई, 2005 को मॉस्को पहुंचे ।
भारत के साथ अपने पुराने सम्बन्धों को मजबूती देने के लिए रूस परमाणु ऊर्जा, रक्षा और अन्तरिक्ष के क्षेत्र में उसके साथ सहयोग को ओर पुख्ता करने के लिए तैयार हुआ । रूस ने भारत के तारापुर संयन्त्र और नए परमाणु संयन्त्रों के लिए परमाणु ईंधन की आपूर्ति पर भी सहमति जताई ।
डॉ. मनमोहन सिंह की रूस यात्रा (5-7 दिसम्बर, 2005):
प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह ने 5-7 दिसम्बर, 2005 को रूस की यात्रा की । रूस की ओर से भारत को यह भरोसा दिलाया गया कि वह भारत की असैनिक परमाणु ऊर्जा सहित तमाम ऊर्जा आवश्यकताएं पूराकरने में पूरा सहयोग करेगा ।
प्रधानमंत्री की रूस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने रक्षा, अन्तरिक्ष और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी क्षेत्र में तीन समझौतों पर हस्ताक्षर किए । इनमें सबसे प्रमुख समझौता है सैन्य सहयोग में बौद्धिक सम्पदा अधिकारों के क्षेत्र में ।
इस समझौते से रूस की रक्षा तकनीकी भारत को मिलने के मार्ग में आने वाली बाधाएं दूर हो गई हैं । समझौते के बाद रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में दोनों देशों के बीच सहयोग की संभावनाएं और बढ़ गई हैं । दूसरा महत्वपूर्ण समझौता सुरक्षा तकनीकों के क्षेत्र में है । इससे भारत का रूस के ग्लोबल नेवीगेशन सैटेलाइट सिस्टम, ग्लोनास में भागीदारी का रास्ता साफ हो गया है ।
रूस से यूरेनियम आपूर्ति:
मार्च, 2006 में रूस ने भारत के तारापुर संयन्त्र की दो इकाइयों के लिए 60 मीट्रिक टन यूरेनियम की आपूर्ति पर सहमति जताई । भारत ने रूस से यूरेनियम लेने का निर्णय कर यह संदेश दिया है कि अमरीका से असैन्य परमाणु समझौते के बावजूद रणनीतिक जरूरतों के उसके विकल्प खुले हैं और वह पूरी तरह अमरीका पर आश्रित नहीं है ।
भारत-रूस परमाणु सहयोग (जनवरी, 2007):
अमेरिका के साथ असैन्य परमाणु ऊर्जा समझौते से आगे जाते हुए भारत ने कुडनकुलम में चार रिएक्टर बनाने के बारे में 25 जनवरी, 2007 को रूस से समझौता कर दोनों देशों के बीच परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण इस्तेमाल की दीर्घकालिक भागीदारी की ओर कदम बढ़ाए ।
राष्ट्रपति पुतिन ने अपनी भारत यात्रा जनवरी, 2007 के दौरान कहा कि रूस असैन्य परमाणु ऊर्जा के बारे में परमाणु सामग्री आपूर्तिकर्ता देशों के समूह और अन्तर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी जैसे मैचों पर भारत का समर्थन करेगा ।
रूसी राष्ट्रपति पुतिन गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य अतिथि (26 जनवरी, 2007):
राष्ट्रपति पुतिन जनवरी, 2007 में दो दिन की भारत यात्रा पर आए । भारत के 58वें गणतंत्र दिवस पर नई दिल्ली में होने वाले राष्ट्रीय समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित थे । कुडनकुलम में परमाणु रिएक्टरों की स्थापना में रूस द्वारा सहयोग के अतिरिक्त दोनों देशों में आठ समझौतों पर हस्ताक्षर हुए ।
उनमें रूस के ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम के आंकड़ों को शेयर करने व यूथसेंट नाम के उपग्रह के संयुक्त प्रक्षेपण के समझौते शामिल हैं । 2 अरब डॉलर के बहुलम्बित रूपी-रूबल डेब्ट एग्रीमेंट को सुलझाने के लिए भी दोनों देशों में समझौता हो गया है । दोनों पक्षों ने 2010 तक द्विपक्षीय व्यापार को 10 अरब डॉलर तक करने के लिए कार्य योजना निर्धारित करने की भी सहमति प्रदान की ।
डॉ. मनमोहन सिंह की रूस यात्रा (नवम्बर 2007):
प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह ने 11-12 नवम्बर, 2007 तक मास्को की आधिकारिकयात्रा की । इस यात्रा के दौरान अनेक दस्तावेजों पर हस्ताक्षर हुए जिनमें स्वापक पदार्थों, मन: प्रभावी पदार्थों और इनके निर्माण में सहयोगी पदार्थों के अवैध व्यापार का सामना करने में सहयोग सम्बन्धी करार तथा संयुक्त चन्द्रमा अन्वेषण के क्षेत्र में भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संगठन और रूसी परिसंघ की फेडरल स्पेस एजेंसी के बीच करार प्रमुख हैं ।
इससे पूर्व भारत और रूस ने 24-27 अप्रैल, 2007 तक जापान सागर में संयुक्त नौसैनिक अभ्यास किया और रूस के स्कोव क्षेत्र में 11-20 सितम्बर, 2007 तक भारतीय थलसेना एवं वायुसेना तथा रूसी वायुसेना की संयुक्त भागीदारी में आतंकवाद विरोधी अभ्यास किया गया ।
राष्ट्रपति मेदवेदेव की भारत-यात्रा (दिसम्बर, 2008):
रूसी महासंघ के राष्ट्रपति मेदवेदेव वार्षिक शिखर वार्ता के लिए 4-5 दिसम्बर, 2008 को भारत के राजकीय दौरे पर आये । उन्होंने भारत में ‘रूस वर्ष’ के समापन समारोह में हिस्सा लिया तथा दौरे के दौरान 9 अन्य दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए गए जिनमें कुडनकुलम स्थानपर अतिरिक्त नाभिकीय विद्युत संयंत्र इकाइयों के निर्माण का समझौता भी शामिल है । भारत में वर्ष 2008 में ‘रूसी वर्ष’ के दौरान संस्कृति, अर्थव्यवस्था व विज्ञान सहित विभिन्न क्षेत्रों में 140 समारोह आयोजित किए गए ।
प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की रूस यात्रा (दिसम्बर, 2009):
7 दिसम्बर, 2009 को भारत के प्रधानमंत्री मास्को पहुंचे तथा मास्को में प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह और रूसी राष्ट्रपति दमित्रि मेदवेदेव ने जिन समझौतों पर दस्तखत किए हैं, उनमें सबसे महत्वपूर्ण परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग के लिए आपसी सहयोग का समझौता है ।
रूस ने वादा किया कि वह हमेशा भारत को परमाणु ईंधन देता रहेगा, यहां तक कि अगर दोतरफा समझौता खत्म हो जाता है तब भी । इसका मतलब है कि भारत को इसके परिशोधन और संवर्धन का अधिकार होगा । इस लिहाज से यह समझौता हमारे लिए भारत-अमेरिका परमाणु करार से भी ज्यादा लाभदायक हो सकता है । रूस का लाभ इस बात में है कि भारत परमाणु ऊर्जा और सैन्य उपकरणों का बड़ा खरीदार है जिसका बड़ा हिस्मा उसे मिल सकता है ।
शीत शुद्ध के जमाने में तत्कालीन सोवियत संघ हमारा सबसे विश्वस्त मित्र देश हुआ करता था, लेकिन शीत युद्ध खत्म होने और सोवियत संघ के टूटने के बाद रूस के साथ हमारे रिश्तों में ठण्डापन बढ़ता गया । बाद में जैसे-जैसे अमेरिका के साथ हमारी निकटता बढ़ी वैसे-वैसे रूप के मिजाज में इस निकटता के प्रति नापसंदगी की झलक दिखाई देने लगी ।
लम्बे अरसे बाद अब प्रधानमंत्री की मास्को यात्रा ने असंतुलन को कमोबेश दूर करने का प्रयास किया है । इसीलिए सैन्य सहयोग के अतिरिक्त व्यापार से लेकर संस्कृति तक जो समझौते किए गए हैं, उनमें पुराने रिश्तों को ताजा करने की कोशिश देखी जा सकती है ।
रूस के राष्ट्रपति मेदवेदेव की भारत यात्रा (दिसम्बर, 2010):
रूस के राष्ट्रपति ने 21-22 दिसम्बर, 2010 को भारत की यात्रा की । यात्रा के अन्त में जारी संयुक्त घोषणापत्र का शीर्षक है- ”रूस-भारत की रणनीतिक साझेदारी के एक दशक पर उत्साह मनाना तथा अग्रिम दृष्टि ।”
घोषणा पत्र के मुख्य बिन्दु इस प्रकार हैं:
(1) दोनों देशों के द्विपक्षीय व्यापार को 2015 तक बढ़ाकर 20 बिलियन डॉलर तक पहुंचाना जबकि वर्तमान में दोनों देशों के मध्य व्यापार बिलियन डॉलर है ।
(2) ऊर्जा के क्षेत्र में आपसी लाभदायक सहयोग; रूस ने कुडनकुलम में परमाणु संयन्त्र की दो इकाइयों को शीघ्र पूरा करनेतथा वहीं पर दो नई इकाइयों की स्थापना पर विचार-विमर्श किया । ऊर्जा के क्षेत्र में सबसे म्रुहत्वपूर्ण समझौता भारत की तेल कम्पनी ओ.एन.जी.सी. तथा रूसी कम्पनी Sistema के मध्य सम्पन्न हुआ जिसके अन्तर्गत तेल व गैस उत्पादन के क्षेत्र में संयुक्त प्रोजेक्ट चलाना ।
(3) दोनों देशों ने भारत में पांचवीं पीढ़ी के युद्धक विमान के उत्पादन हेतु एक समझौते पर हस्ताक्षर किए जिसके अन्तर्गत 200-250 विमानों का निर्माण होगा तथा उन्हें तीसरे देश को बेचा जा सकेगा ।
(4) भारत में एक संयुक्त विज्ञान व तकनीकी केन्द्र की स्थापना करना जिसके द्वारा नई तकनीकों को विकसित करने हेतु कार्यक्रमों का संचालन किया जाएगा ।
प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह की रूस यात्रा (दिसम्बर, 2011):
दिसम्बर 2011 में भारत के प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह ने रूस की यात्रा की । रूस के राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव से बातचीत के बाद संयुक्त पत्रकार वार्ता में डॉ. सिंह ने कहा कि कुडनकुलम संयन्त्र की ‘पहली और दूसरी यूनिट का काम काफी आगे बढ़ चुका है । पहली यूनिट कुछ सप्ताह में और इसके छह महीने बाद दूसरी यूनिट काम करना शुरू कर देगी ।’
संयन्त्र की सुरक्षा चिन्ताओं को लेकर हो रहे आन्दोलन के सम्बन्ध में उन्होंने कहा, ‘हमें यकीन है कि हम सभी समस्याओं से पार पा लेंगे ।’ उनकी इस साफ बयानी के बावजूद भारत व रूस ने संयन्त्र की तीसरी-चौथी यूनिट के लिए समझौता नहीं किया है ।
भूकम्प और सुनामी से जापान में फुकुशिमा परमाणु संयन्त्र के क्षतिग्रस्त होने के बाद भारत में 13 हजार 615 करोड़ रुपए की इस परियोजना का विरोध हो रहा है । यह संयन्त्र भी फुकूशिमा की तरह समुद्र के किनारे है । लिहाजा, इसे लेकर सुरक्षा सम्बन्धी चिन्ताएं जताई जा रही हैं ।
रूसी राष्ट्रपति के निवास क्रेमलिन में डॉ. सिंह और मेदवेदेव के बीच लगभग तीन घण्टे तक वार्ता चली । दोनों देशों के बीच यह 12वीं द्विपक्षीय शिखर वार्ता थी । इसके बाद रक्षा स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्रों में द्विपक्षीय सहयोग के पांच समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए ।
इन्हीं में से एक समझौते के अन्तर्गत रूस 42 सुखोई-30 एम.के.आई. लड़ाकू विमानों के उत्पादन में भारत को तकनीकी सहयोग करेगा । संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में रूस ने भारत की स्थायी सदस्यता के दावे का समर्थन किया है ।
साथ ही क्षेत्रीय स्तर पर शंघाई सहयोग संगठन (एस.सी.ओ.) में शामिल होने की भारत की इच्छा पर भी सहमति व्यक्त की । रूस इस माह के अन्त तक ‘नेरपा’ परमाणु पनडुब्बी दस वर्ष के पट्टे पर भारत को देने के लिए तैयार है । पनडुब्बी पानी के अन्दर महीनों तक रहने में सक्षम है । भारत में इसे ‘आईएनएस चक्र’ नाम दिया जाएगा ।
भारत और रूसी परिसंघ ने अप्रैल, 2012 में राजनयिक सम्बन्धों की 65वीं वर्षगांठ मनाई । दोनों देशों ने नियमित आदान-प्रदान और सभी स्तरों पर बातचीत की परम्परा को जारी रखा । रूसी राष्ट्रपति दमित्री मेदवेदेव चौथे ब्रिक्स शिखर सम्मेलन (28-29 मार्च, 2012) के लिए दिल्ली आए और प्रधान मन्त्री के साथ एक द्विपक्षीय बैठक की ।
प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह ने जून, 2012 में मैक्सिको में जी-20 शिखर सम्मेलन के समय अलग से राष्ट्रपति पुतिन से मुलाकात की । राष्ट्रपति पुतिन उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमण्डल के साथ 13वें वार्षिक शिखर सम्मेलन के लिए 24 दिसम्बर, 2012 को भारत आए ।
भारत-रूस की ‘विशेष एवं विशेषाधिकृत’ रणनीतिक भागीदारी दोनों राष्ट्रों के लिए सर्वोच्च प्राथमिकता का विषय रही है । यह भागीदारी पारस्परिक लाभ तथा वैश्विक शान्ति व स्थायित्व दोनों के लिए टिकाऊ सम्बन्धों के महत्व में विश्वास पर आधारित है ।
20 से 22 अक्टूबर, 2013 तक मॉस्को में आयोजित 14वीं वार्षिक भारत-रूस शिखरवार्ता गहरे द्विपक्षीय आदान-प्रदान की पराकाष्ठा थी । अनेक दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए गए । प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह डरबन में पांचवीं ब्रिक्स शिखरवार्ता (मार्च, 2013) के समय राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन से मिले उसके बाद सेंट पीटर्सबर्ग में जी-20 शिखरवार्ता (सितम्बर, 2013) के दौरान संक्षिप्त चर्चा हुई । जुलाई, 2014 में छठी ब्रिक्स शिखर वार्ता के दौरान प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी की राष्ट्रपति पुतिन से संक्षिप्त वार्ता हुई ।
कमजोर वैश्विक अर्थव्यवस्था के माहौल के बावजूद वर्ष 2012 में द्विपक्षीय व्यापार में लगभग 25 प्रतिशत की वृद्धि के साथ यह 11 बिलियन अमरीकी डॉलर तक पहुंचा । वर्ष 2013 में यह थोड़ा कम होकर 10 बिलियन अमरीकी डॉलर तक के स्तर पर आ गया ।
अक्टूबर, 2013 में कुडनकुलम नाभिकीय ऊर्जा परियोजना के यूनिट-1 को पावर ग्रिड के साथ जोड़ा गया । यूनिट-2 के कार्य को 2014 में पूरा करने का लक्ष्य था । रणनीतिक भागीदारी का एक महत्वपूर्ण घटक रक्षा सहयोग है । वर्ष 2013 में रूस निर्मित तीसरे युद्धपोत आई.एन.एस. त्रिकाण्ड की डिलीवरी एवं एयरक्राफ्ट कॅरियर आई.एन.एस. विक्रमादित्य को सौंप दिया गया ।
क्रीमिया की स्थिति के सम्बन्ध में भारत सरकार ने 18 मार्च, 2014 को देशों की प्रभुता और क्षेत्रीय अखण्डता के मामले पर अपनी दृढ स्थिति पर बल दिया । प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह ने राष्ट्रपति पुतिन के साथ दूरभाष पर बात करते हुए यह उम्मीद जताई कि सभी पक्ष संयम से काम लेंगे और क्षेत्र के सभी राष्ट्रों की वैज्ञानिक आवश्यकताओं की सुरक्षा और यूरोप एवं अन्य देशों में दीर्घकालीन शान्ति और स्थिरता को सुनिश्चित करने के लिए राजनीतिक और राजनयिक हल निकालने के लिए मिलकर सकारात्मक रूप से कार्य करेंगे ।
राष्ट्रपति पुतिन की भारत मात्रा (11 दिसम्बर, 2014):
रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने 11 दिसम्बर, 2014 को भारत के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी के निमन्त्रण पर दोनों देशों की 15वीं शिखर बैठक में भाग लेने के लिए भारत की सरकारी यात्रा की । राष्ट्रपति पुतिन क्रीमिया के प्रधानमन्त्री सर्गे अक्षेनोव को भी साथ लेकर आए । यद्यपि पुतिन चौबीस घण्टे ही भारत में रुके परन्तु दोनों देशों के बीच बीस समझौते हुए ।
रूस पहली बार रक्षा प्रौद्योगिकी और रक्षा उद्योग के क्षेत्र में संयुक्त रूप से उत्पादन के लिए राजी हुआ । दोनों देश विज्ञान और प्रौद्योगिकी, उद्योग, उपकरणों और हिस्से पुर्जों के स्थानीयकरण यूरेनियम खनन परमाणु ईंधन की आपूर्ति उपयोग किए गए ईंधन के प्रबन्धन और परमाणु ईंधन के चक्र के अन्य पहलुओं में सहयोग का विस्तार करने के लिए राजी हुए ।
भारत और रूस नवीकरणीय ऊर्जा के विकास और उसके कुशल उपयोग में भी सहयोग करेंगे । संयुक्त वक्तव्य में दोनों देशों ने सुरक्षा परिषद् को उभरती चुनौतियों से निपटने के लिए अधिक प्रतिनिधित्वपूर्ण और कारगर बनाने का संकल्प दोहराया । दोनों देश सुरक्षा परिषद् में सुधार सुनिश्चित करने के लिए मिलकर काम करने पर भी राजी हुए । सुरक्षा परिषद् में भारत की स्थायी सदस्यता के लिए रूस अपना समर्थन देगा ।
प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी की रूस यात्रा (दिसम्बर, 2015):
भारत के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी की भारत-रूस 16वीं वार्षिक शिखर बैठक के लिए रूस यात्रा के दौरान (23-24 दिसम्बर, 2015) दोनों देशों के बीच परमाणु और रक्षा सहित विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ाने के लिए 16 समझौतों पर हस्ताक्षर हुए ।
भारत में कामोव 226 हैलीकॉप्टर बनाने पर हुआ समझौता मेक इन इंडिया के अन्तर्गत यह पहली बड़ी रक्षा परियोजना है जिसमें भारत की स्थानीय कम्पनियों की सहभागिता होगी । संयुक्त बयान में कहा गया कि भारत और रूस अगले दो दशकों में भारत में 12 परमाणु रिएक्टर बनाएगा ।
इसके अतिरिक्त कुछ अन्य क्षेत्रों में हुए प्रमुख समझौते हैं- दोनों देशों के नागरिकों और राजनयिक पासपोर्ट रखने वालों की आवाजाही के लिए कुछ श्रेणियों में नियम कायदों को सरल बनाना, कस्टम मामलों एवं रेलवे सेक्टर में तकनीकी सहयोग, भारत में सौर ऊर्जा प्लांट लगाने और ब्रॉडकास्टिंग के क्षेत्र में सहयोग पर एमओयू और रूस में तेल खनन को लेकर समझौता हुआ ।
निष्कर्ष:
ADVERTISEMENTS:
भारत और रूस एक-दूसरे को समझने लगे है । दोनों देशों के बीच सम्बन्धों में रक्षा का स्थान सबसे ऊपर है और व्यापार के मुद्दे दूसरे पायदान पर । दोनों देशों के बीच सम्बन्धों का कमजोर पक्ष है आपसी व्यापार का निम्न स्तर जो कि लगभग 4.5 अरब डॉलर मात्र है ।
दिसम्बर, 2011 में रूस का विश्व व्यापार संगठन के सदस्य बनना भारत के लिए सकारात्मक संकेत है । इससे दोनों देशों के बीच व्यापार बढ़ने में मदद मिलेगी । रूस का विश्व व्यापार संगठन में प्रवेश भारत के साथ द्विपक्षीय निवेश और व्यापार के लिए काफी अच्छा है ।
21वीं शताब्दी के पहले दशक में दोनों देशों के सम्बन्धों में घनिष्ठता देखी जा रही है । दोनों के सम्बन्धों में सैनिक व तकनीकी सहयोग तथा परमाणु ऊर्जा सहयोग के क्षेत्र में महत्वपूर्ण उपलब्धियां प्राप्त हुईं हैं हाइड्रोकार्बन व ऊर्जा के क्षेत्र में बहुत सम्भावनाएं हैं ।
दोनों देश बिक तथा जी-20 समूह के सदस्य हैं तथा कई अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दों-जलवायु परिवर्तन मानवाधिकार, आतंकवाद, सुरक्षा परिषद् व अन्तर्राष्ट्रीय वित्ती संस्थाओं आदि में दोनों के मध्य समान दृष्टिकोण पाया जाता है ।
भारत एवं रूस के बीच पुन: सुधरते हुए रिश्तों से अमरीका काफी चिन्तित है । पहले उसने भारत को क्रायोजेनिक रॉकेट इंजन सप्लाई न करने के लिए रूस पर दबाव डाला था । उसने रूस द्वारा भारत को दो परमाणु रिएक्टर को बेचान का विरोध भी किया था ।