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Read this essay in Hindi to learn about the grounds of interventions in international politics.
Essay # 1. आत्मरक्षा के लिए हस्तक्षेप (Intervention for Self-Defence):
आत्मरक्षा के लिए हस्तक्षेप करना आवश्यक है । संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर की धारा 51 में वर्णन किया गया है कि, ”सुरक्षा परिषद् द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा के उपायों का अवलम्बन करने से पहले तक” दूसरे राज्य के आक्रमण से रक्षा करने का अन्य राज्यों को अधिकार है ।
सन् 1837 की कैरोलाइन (Caroline) स्टीमर की घटना इस कार्य का अच्छा उदाहरण है । इस समय कैनेडा में विद्रोह हुआ और कैरोलाइन नामक अमरीकी जहाज नियाग्रा नदी द्वारा सैनिक तथा युद्ध की सामग्री ले जाकर उन विद्रोहियों की सहायता करता था । अमरीकी सरकार ने कैरोलाइन को नहीं रोका । इस पर कैनेडा के सैनिकों ने कैरोलाइन जहाज को अमरीका में जाकर नष्ट कर दिया ।
उस समय अमरीकी विधिवेत्ता हाइड ने ठीक ही कहा था कि ब्रिटिश सेना ने वही कार्य किया जो संयुक्त राज्य स्वयं करता ।” इस विषय में अमरीकी विदेश सचिव डेनियल ने कहा था कि- “आत्मरक्षा के लिए यह सिद्ध करना आवश्यक है कि यह कार्य तात्कालिक और प्रचुर है और अन्य साधन का विकल्प छोड़ने वाली या विचार के लिए समय देने वाली नहीं है ।”
दूसरी शर्त यह है कि इस कार्य में की गयी कार्यवाही अत्यधिक नहीं होनी चाहिए । उदाहरण के रूप में कैरोलाइन जहाज को नष्ट करके ब्रिटिश सेना का अपनी सीमा में लौट आना उचित ही था । यदि वह सेना अमरीकी प्रदेश पर अधिकार करती तो यह हस्तक्षेप अनुचित होता ।
प्रथम विश्वयुद्ध के समय जर्मनी ने बेल्जियम पर आक्रमण करते समय आत्मरक्षा का बहाना बनाया था । इसी प्रकार 1931 में मंचूरिया पर अधिकार जमाने के लिए जापान ने आत्मरक्षा का प्रश्न उठाकर चीन पर धावा बोल दिया था । आत्मरक्षा के नाम पर रूस ने भी फिनलैण्ड पर आक्रमण कर दिया था ।
जर्मनी ने भी हॉलैण्ड, लक्जमवर्ग, नॉर्वे तथा स्वीडन पर आक्रमण करने का कारण आत्मरक्षा को ही बताया था । द्वितीय विश्वयुद्ध में कूदने से पूर्व संयुक्त राज्य अमरीका मित्रराष्ट्रों की शस्त्रों से सहायता कर रहा था । यह कार्य अन्तर्राष्ट्रीय विधि के अनुसार तटस्थता के नियमों का उल्लंघन था । संयुक्त राज्य अमरीका की सरकार ने इसे आत्मरक्षा की आड़ में छिपा लिया था ।
आत्मरक्षा का प्रश्न विधिशास्त्रीयों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है । हॉल के अनुसार- “सुव्यवस्थित समाजों में निवास करने वाले व्यक्तियों तक को आत्मसंरक्षण का पूरा अधिकार होता है, यही बात स्वतन्त्र राज्यों के साथ भी लागू होती है, प्रत्येक अवस्था में उन्हें अपनी रक्षा का अधिकार होता है । सम्पूर्ण रूप से राज्यों के सभी कर्तव्य आत्मसंरक्षण में समा जाते हैं ।”
किन्तु ब्रियर्ली ने आत्मसंरक्षण के उपर्युक्त विचार को स्वीकार नहीं किया है । उसका तो कहना है कि, आत्मरक्षा का प्रश्न तभी उठाना चाहिए जब राज्य पर सीधा आक्रमण हो । ब्रियर्ली ने विलियम ब्राउन जहाज का उदाहरण देते हुए बताया हे कि जब जहाज आइसबर्ग से टकरा गया तब सवारियां जान बचाने वाली नौकाओं में उतर गयीं ।
एक नौका में छिद्र होने के कारण पानी आ रहा था । उस पर सवारियां अधिक थीं । एक व्यक्ति ने नौका को हल्का करने के लिए कुछ लोगों को समुद्र में धकेल दिया । इस व्यक्ति को न्यायालय में हत्या का दण्ड मिला ।
ऐसी दशा में हॉल द्वारा प्रतिपादित राष्ट्रीय कानून के अनुसार अन्तर्राष्ट्रीय कानून में आत्मरक्षा के सिद्धान्त को मानना भ्रान्तियुक्त है । 1956 में सोवियत रूस ने हंगरी के विषय में तथा 1968 में चेकोस्लोवाकिया के मामले में हस्तक्षेप किया परन्तु अन्तर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार ये बातें न्यायोचित सिद्ध नहीं की जा सकतीं ।
Essay # 2. सन्धियों को बलपूर्वक लागू करना (Enforcement of Treaties by Coercion):
एक राज्य दूसरे राज्य के मामले में हस्तक्षेप करने का अधिकारी होता है जबकि दूसरा राज्य पहले राज्य से की गयी सन्धि की अवहेलना कर देता है । इस प्रकार से हस्तक्षेप करना किसी राज्य की स्वतन्त्रता के अधिकार में बाधा डालना नहीं माना जाता क्योंकि उक्त राज्य ने सन्धि की शर्तों पर स्वेच्छा से अपनी स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्ध लगाना स्वीकार कर लिया ।
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सन् 1831 तथा 1839 की लन्दन सन्धियों में यूरोपीय शक्तियों ने स्वेच्छापूर्वक बेल्जियम की स्वतन्त्रता, एकता तथा तटस्थता की गारण्टी दी थी । जर्मनी ने जब इस सन्धि का उल्छंघन किया तो ब्रिटेन ने सन्धि के द्वारा प्राप्त अधिकार के कारण जर्मनी के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी ।
इसी प्रकार 1863 की लन्दन सन्धि में रूस फ्रांस तथा ब्रिटेन ने यूनान की स्वतन्त्रता की गारण्टी दी थी, अत: 1916 ई. में जब यूनान में गड़बड़ हुई तो उक्त तीनों शक्तियों ने यूनान के मामले में हस्तक्षेप कर वहां संवैधानिक सरकार की स्थापना करायी ।
Essay # 3. मानवीयता (Intervention for Human Grounds):
ग्रोशियस, वैटेल और वेस्टलेक जैसे लेखकों ने उस समय हस्तक्षेप को कानूनी रूप से उचित माना है, जब लोगों को उनके मानवीय अधिकार से वंचित किया जाए । लारेन्स के अनुसार भी इस प्रकार का हस्तक्षेप वैध होता है । लारेन्स ने एक घटना का उल्लेख करते हुए कहा है कि जब तुर्कों ने ईसाइयों का कत्लेआम करना प्रारम्भ किया तो यूरोप की शक्तियों ने मिलकर टर्की के राज्य के मामलों में हस्तक्षेप किया ।
इसी प्रकार 1878 में रूस ने ईसाइयों की रक्षा हेतु बुल्गारिया के मामले में हस्तक्षेप किया । भारत ने दिसम्बर, 1971 में बांग्लादेश में पाक अत्याचारों को रोकने के लिए हस्तक्षेप किया था । भूतपूर्व यूगोस्लाविया में 1992-95 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने मानवीयता की रक्षार्थ ही हस्तक्षेप किया ।
Essay # 4. शक्ति सन्तुलन के लिए हस्तक्षेप (Intervention for Balance of Power):
17वीं शताब्दी से यूरोपियन शक्तियों के मध्य शक्ति सन्तुलन के सिद्धान्त को बड़ी मान्यता दी जाती रही है । सन् 1816 की वियना कांग्रेस, सन् 1856 की पेरिस कांग्रेस और सन् 1878 की बर्लिन कांग्रेस के अधिकांश निर्णय इसी सिद्धान्त के अनुसार किए गए थे । सन् 1886 और 1897 में यूनान और टर्की के विषयों में बड़े-बड़े राज्यों ने इसीलिए हस्तक्षेप किया था ।
सन् 1913 में अल्बानिया का स्वतन्त्र राज्य बनाने के लिए टर्की में हस्तक्षेप किया गया था । इस सिद्धान्त का उद्देश्य राज्यों में शक्ति को बनाए रखना है ताकि कोई भी राज्य अन्य राज्यों की तुलना में अधिक शक्ति सम्पन्न न हो ।
Essay # 5. वित्तीय विषयों के लिए हस्तक्षेप (Intervention for Financial Matters):
ऐसा देखा गया है कि यदि किसी देश की दशा खराब हो जाती है तो आर्थिक सहायता देने वाले देश उसके आन्तरिक विषयों में हस्तक्षेप करते हैं । पिछली शताब्दी में मिस्र इसी कारण से पराधीनता की जंजीरों में जकड़ा गया था ।
वह इंग्लैण्ड और फ्रांस का ऋणी था । ऋण की प्राप्ति के लिए इन दोनों देशों ने उस पर अपना दोहरा नियन्त्रण स्थापित किया था । सन् 1882 में फ्रांस इस विषय में पीछे हट गया था और इंग्लैण्ड ने उस पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया था ।
Essay # 6. गृहयुद्धों में हस्तक्षेप (Intervention in Civil Wars):
किसी देश में आन्तरिक विद्रोह होने पर पडोसी राज्यों पर इसका प्रभाव पड़ सकता है । सन् 1815 में वियना कांग्रेस ने यूरोप में फ्रांसीसी क्रान्ति के विरोधी देशों में लोकतन्त्र और राष्ट्रीयता की अवहेलना करने वाले राज्यों की स्थापना की थी । इसीलिए राष्ट्रीय भावना को दबाने के लिए, आस्ट्रिया, रूस और प्रशा के राजाओं ने पवित्र संघ (Holly Alliences) की स्थापना की थी ।
इसके द्वारा किसी देश में क्रान्ति होने पर अन्य राज्यों द्वारा हस्तक्षेप किया जा सकता था । इसी के अनुसार 1821 में नैपल्स और लोम्बार्डी के राज्यों में क्रान्ति होने पर आस्ट्रिया ने और स्पेन में क्रान्ति होने पर फ्रांस ने अपनी-अपनी सेनाएं भेजकर क्रान्तिकारियों का दमन किया था । सन् 1827 में ब्रिटेन, रूस और फ्रांस ने यूनान को स्वाधीन बनाने के लिए हस्तक्षेप किया था ।
सन् 1849 में रूस ने हंगरी का विद्रोह दबाने के लिए आस्ट्रिया को सैनिक सहायता दी थी । द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद जब चीन जापान के चंगुल से निकला तो वहां गृहयुद्ध छिड़ गया । रूस ने साम्यवादियों का साथ दिया और अमरीका ने राष्ट्रवादियों का साथ दिया ।
वियतनाम के गृहयुद्ध में एक ओर चीन और दूसरी तरफ अमरीका सहायता कर रहे थे । पाकिस्तान का गृहयुद्ध भारत पर प्रभाव डाल रहा था । बांग्लादेश से एक करोड़ शरणार्थी भारत की सीमा में आ गए थे । उनका भार वहन करना भारत के लिए कठिन था ।
भारत ने अन्ततोगत्वा अपनी सेनाएं बांग्लादेश में भेजकर हस्तक्षेप किया और समस्या का हल प्रस्तुत किया । इस प्रकार अन्तर्राष्ट्रीय कानून की आड़ में उपयुक्त कारणों से महाशक्तियां अन्य राज्यों के मामलों में हस्तक्षेप करती रही हैं ।