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Read this essay in Hindi to learn about the six main approaches used for maintaining the balance of power in international politics.
Essay # 1. क्षतिपूर्ति (Compensation):
क्षतिपूर्ति या मुआवजे की नीति से अभिप्राय है कि एक राज्य को उतना दो जितना उससे ले लिया गया है ताकि अन्तर्राष्ट्रीय तुल्यभारिता बनी रहे । युद्धों के पश्चात् शान्ति सन्धियों में इसी आधार पर राज्यों के क्षेत्रों में प्रदेशों का आदान-प्रदान होता है और सीमाओं में परिवर्तन किया जाता है कि राज्यों की तुलनात्मक शक्ति यथापूर्व बनी रहे ।
सन् 1713 की यूट्रैक्ट सन्धि द्वारा प्रथम बार स्पेन द्वारा अधिकृत भूमि को बांटकर शक्ति सन्तुलन स्थापित करने की कोशिश की गयी थी । इतिहास में पोलैण्ड का तीन बार विभाजन किया गया (1772, 1793 तथा 1795 में) और तीनों बार उसका बंटवारा इस प्रकार किया गया कि सन्तुलन कायम रहे ।
भूभागों का वितरण करते समय केवल क्षेत्रफल का ही ध्यान नहीं रखा जाता वरन् उनकी उर्वरता औद्योगिक क्षमता तथा साधनों की प्रचुरता का भी ध्यान रखा जाता है । इथियोपिया को हस्तगत करने की उग्र होड़ का समाधान 1906 में इथियोपिया को ब्रिटेन, इटली तथा फ्रांस में तीन समान प्रभाव क्षेत्रों में बांटकर किया गया था ।
इसी प्रकार ईरान के सम्बन्ध में ब्रिटेन तथा रूस की प्रतिद्वन्द्विता का परिणाम 1907 की रेल-रूसी सन्धि में निकला । इसने दोनों पक्षों के लिए प्रभाव क्षेत्रों की एवं ईरान के एकमात्र अधिकार में एक तटस्थ क्षेत्र की स्थापना की । मॉरगेन्थाऊ के अनुसार- ”राजनीतिक समझौते को जन्म देने वाली राजनयिक वार्ताओं की सौदेबाजी भी अपने सामान्यतम रूप का सिद्धान्त ही है और इस प्रकार यह शक्ति सन्तुलन का ही एक अंग है ।”
Essay # 2. हस्तक्षेप (Intervention):
कभी-कभी शक्तिशाली राज्य सन्तुलन स्थापित करने की दृष्टि से अन्य राज्यों के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप करते हैं । एक देश शस्त्रीकरण, औद्योगीकरण एवं उत्पादन बढ़ाकर शान्तिप्रिय राज्य के स्थान पर आक्रामक राज्य बन सकता है जिसका प्रभाव अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति पर पड़ता है । अत: ऐसी स्थिति में अन्य राज्य या तो मूक-दर्शक बना रह सकता है अथवा प्रत्यक्ष हस्तक्षेप कर सकता है ।
1648 में वेस्टफेलिया की सन्धि के बाद से यूरोप की राजनीति का यह मुख्य सिद्धान्त रहा है कि कोई भी राज्य अन्य राज्यों की अपेक्षा बहुत अधिक शक्तिसम्पन्न न हो सब राज्यों में शक्ति सन्तुलन बना रहे । 1648 की यूट्रेक्ट की सन्धि के 1816 की वियना कांग्रेस के 1856 की पेरिस कांग्रेस के तथा 1878 की बर्लिन कांग्रेस के अधिकांश निर्णय इसी सिद्धान्त के आधार पर किए गए ।
1856 का क्रीमिया युद्ध ब्रिटेन और फ्रांस द्वारा टर्की के साम्राज्य को सुरक्षित रखने की दृष्टि से किया गया था, ताकि इसे दबाकर रूस दक्षिण-पूर्वी यूरोप में अधिक शक्तिशाली न हो जाए । बाल्कन प्रदेश में प्रभुसत्ता के लिए 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में आस्ट्रिया तथा रूस में प्रबल होड़ थी ।
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इस प्रदेश के राज्यों में अधिकांश हस्तक्षेप इन दोनों के तथा ग्रेट ब्रिटेन के शक्ति सन्तुलन को बनाए रखने के लिए किए गए । 1886 में तथा 1897 में ग्रीस और टर्की के मामलों में महाशक्तियों ने इस उद्देश्य से हस्तक्षेप किया । 1913 में अल्वानिया का स्वतन्त्र राज्य बनाने के लिए टर्की में दखल किया गया ।
द्वितीय विश्वयुद्ध के उपरान्त ब्रिटेन ने जोर्डन में, अमरीका ने ग्वाटेमाला, क्यूबा, लेबनान, लाओस, कम्बोडिया और वियतनाम तथा सोवियत संघ ने उत्तरी कोरिया पूर्वी जर्मनी चेकोस्लोवाकिया एवं अफगानिस्तान (1979-88) में हस्तक्षेप किया है ।
इन सभी हस्तक्षेपों में हस्तक्षेप करने वाली शक्तियों के उद्देश्य स्वार्थपूर्ण थे और उन्होंने छोटे राज्यों के हितों को अपने हितों की पूर्ति के लिए बलिदान करने में संकोच नहीं किया । ये समस्त हस्तक्षेप यथापूर्व स्थिति को बनाए रखने अथवा शक्ति सन्तुलन को अपने पक्ष में मोड़ने के लिए किए गए । हस्तक्षेप की अन्तिम उग्र स्थिति युद्ध होता है । युद्ध सदैव यथास्थिति को बनाए रखने के लिए प्रारम्भ किए जाते हैं, जबकि युद्ध के उपरान्त शक्ति सन्तुलन की स्थिति बदल जाती है ।
Essay # 3. मध्यवर्ती राज्य (Buffer State):
शक्ति सन्तुलन स्थापित करने का तीसरा तरीका है मध्यवर्ती राज्य-एक ऐसा तटस्थ बफर राज्य स्थापित किया जाए जो दुर्बल हो और दो बड़े गैर-मित्र देशों के बीच में स्थित हो । ऐसे मध्यवर्ती राज्य का काम है दोनों बड़े अमित्र राष्ट्रों को अलग रखकर उनमें युद्ध छिड़ने की गुंजाइश कम करना ।
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द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद विश्व दो शक्तिशाली गुटों में विभक्त हो गया और उनके बीच सन्तुलन स्थापित करने के लिए मध्यवर्ती राज्य के अस्तित्व का महत्व बढ़ गया था जो अवरोधक का काम करें ।
हाल्स्टी के शब्दों में- ”दो शक्तिशाली राज्यों को सन्तुलित रखने के लिए मध्यवर्ती राज्यों की पट्टियों का विशेष महत्व होता है ।” मध्यवर्ती राज्य कई प्रकार के हो सकते हैं- तटस्थी कृत, राज्य, जैसे- स्विट्जरलैण्ड (फ्रांस, जर्मनी, और इटली के मध्य), तटस्थ राज्य, उपग्रह राज्य (जैसे पूर्वी यूरोप) तथा गुटनिरपेक्ष राज्य ।
प्रथम विश्वयुद्ध से पहले रूस और जर्मनी के बीच पोलैण्ड मध्यवर्ती राज्य था बेल्जियम और हालैण्ड दोनों फ्रांस तथा जर्मनी के बीच मध्यवर्ती राज्य थे । भारत और चीन के बीच तिब्बत मध्यवर्ती राज्य का काम करता था ।
Essay # 4. शस्त्रीकरण (Armament):
मॉरगेन्थाऊ के अनुसार जिन प्रधान साधनों द्वारा एक राष्ट्र अपनी शक्ति से शक्ति सन्तुलन बनाए रखने अथवा उसको पुन: स्थापित करने का प्रयत्न करता है अस्त्र-शस्त्र हैं । जब कभी कोई राष्ट्र अपनी सैनिक शक्ति बढ़ाता है तब इसके प्रतियोगी राज्य भी इसकी बराबरी में आने के लिए शस्त्रास्त्रों की प्रतिस्पर्द्धा में पड़ जाते हैं ।
शस्त्रीकरण की यह होड़ यद्यपि सन्तुलन के लिए होती है तथापि इसके कारण गतिशील शक्ति सन्तुलन की स्थिति का निर्माण होता है । द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद अमरीका और सोवियत संघ में शस्त्रीकरण की प्रतिस्पर्द्धा कुछ ऐसी ही थी ।
शस्त्रीकरण से सदैव अस्थिर सन्तुलन का जन्म होता है, अत: राज्य निस्त्रीकरण के लिए प्रयत्नशील रहते हैं । ऐसा माना जाता है कि निस्त्रीकरण से शक्ति सन्तुलन स्थिर और अस्थायी बन सकता है । वस्तुत: निस्त्रीकरण की समस्या शक्ति सन्तुलन के सिद्धान्त से अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ी हुई है ।
Essay # 5. विभाजन तथा शासन (Divide and Rule):
शक्ति सन्तुलन स्थापित करने के लिए राज्य शत्रुपक्ष के साथी राष्ट्रों में फूट डालने का भी प्रयत्न करते हैं जिससे उसके शत्रु आपस में न मिल सकें उनमें फूट रहे और वे कमजोर बने रहें । ‘विभाजन करो और शासन करो’ नीति का प्रयोग उन राष्ट्रों द्वारा हुआ जिन्होंने अपने प्रतिस्पर्द्धियों को विभाजित करके अथवा उन्हें विभाजित रखकर निर्बल बनाने अथवा बनाए रखने का प्रयत्न किया है ।
फ्रांस की नीति जर्मनी तथा शेष यूरोप के साथ सोवियत संघ की नीति आधुनिक समय में इस प्रकार की सबसे अधिक संगत एवं महत्वपूर्ण नीतियां हैं । 17वीं शताब्दी से द्वितीय विश्वयुद्ध के अन्त तक यह फ्रांसीसी विदेश नीति का अपरिवर्तनीय सिद्धान्त रहा है कि या तो वह जर्मन साम्राज्य के बहुत-से छोटे स्वतन्त्र राज्यों में विभाजन का पक्ष ले या एक एकीकृत रा ष्ट्र के रूप में ऐसे राज्यों का सम्मेलन न होने दे ।
इसी प्रकार सोवियत संघ ने निरन्तर यूरोप के एकीकरण की सभी योजनाओं का विरोध इस मान्यता पर किया कि यूरोपीय राष्ट्रों की विभाजित शक्ति का एक ‘पाश्चात्य गुट’ में एकत्रीकरण सोवियत संघ के शत्रुओं को इतनी शक्ति दे देगा जिससे उनकी सुरक्षा को खतरा हो जाएगा ।
Essay # 6. मैत्री सन्धियां (Alliance and Counter Alliances):
संश्रय अथवा मैत्री सन्धियां शक्ति सन्तुलन स्थापित करने का मुख्य आधार रही है । पामर तथा पर्किन्स के अनुसार यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि राज्यों की प्रत्येक सन्धि का सम्बन्ध शक्ति सन्तुलन से रहता है, चाहे उसका विस्तार क्षेत्रीय हो गोलार्द्धीय हो या विश्वव्यापी ।
मॉरगेन्थाऊ के अनुसार, परस्पर प्रतिस्पर्द्धा में लगे हुए राष्ट्र अ और ब के समक्ष अपनी सापेक्ष शक्ति स्थितियों को बनाए रखने तथा सुधारने के तीन विकल्प हैं । वे अपनी निजी शक्ति बढ़ा सकते हैं वे अपनी शक्ति में अन्य राष्ट्रों की शक्ति जोड़ सकते हैं अथवा विरोधी राष्ट्र की शक्ति के साथ दूसरे राष्ट्रों की शक्ति को मिलने से रोक सकते हैं । जब वे प्रथम विकल्प को चुनते हैं तो संश्रयों की नीति का अनुसरण करते हैं ।
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अन्तिम दोनों विकल्पों का सम्बन्ध सन्धियों और प्रति-मैत्री सन्धियों से है । जब भी कोई एक राज्य अन्य राज्यों की तुलना में शक्तिशाली होने लगता है, अन्य राज्य आशंकित हो उठते हैं । ये सभी भयभीत राज्य आपस में मैत्री सन्धियां करके इस शक्तिशाली राज्य के विरुद्ध संगठित हो जाते हैं । इनके संगठित होते ही शक्तिशाली राज्य अपने को अकेला अनुभव करता है और प्रत्युतर में प्रतिसन्धियां करने लगता है ।
इस प्रकार का क्रम तब तक निरन्तर बढ़ता चलता है जब तक कि विश्व के सभी राज्य स्पष्ट रूप से विरोधी गुटों में संगठित होकर बंट नहीं जाते । मैत्री सन्धियां और प्रतिमैत्री सन्धियां यूरोपीय राजनीति का मुख्य अंग रही हैं ।
सन् 1882 के उपरान्त जब त्रिराष्ट्रीय संश्रय (Triple Alliance) की स्थापना हुई तो उसके विरुद्ध ही त्रिराष्ट्रीय सहमति (Triple Entente) का निर्माण हुआ । इस प्रकार 1936 में धुरी राष्ट्रों (Axis Powers) की सन्धि के विरोध में मित्र राष्ट्रों (Alliances Powers) के प्रति संश्रय का निर्माण हुआ ।
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में मैत्री सन्धियां और संश्रय सुरक्षात्मक भी हो सकते हैं तथा आक्रमणात्मक भी । मैत्री सन्धियां सदैव किसी निश्चित राज्य के विरुद्ध नहीं होतीं वरन् उस किसी भी राज्य के विरुद्ध होती हैं जो शक्ति सन्तुलन को असन्तुलित करना चाहता है ।
मैकियावेली के अनुसार, ”सदैव दुर्बल पक्ष के साथ ही सन्धि करके शक्ति सन्तुलन स्थापित करना चाहिए ।” संक्षेप में, अपने अनुकूल शक्ति सन्तुलन बनाए रखने के लिए राज्य इन छ: में से कोई भी तरीका अपनाते रहते हैं । इन तरीकों से किसी प्रयोगकर्ता राज्य की शक्ति में वृद्धि होती है ।