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Here is an essay on ‘Narendra Modi and Indo-American Relations’ especially written for school and college students in Hindi language.
प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी की अमरीका यात्रा:
भारत के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने 26-30 सितम्बर, 2014 तक अमरीका की यात्रा की । सितम्बर, 29-30 को वाशिंगटन में उनकी राष्ट्रपति ओबामा से दो बार लम्बी वार्ता हुई । प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रपति बराक ओबामा ने पहली शिखर स्तरीय बैठक में भारत-अमरीका द्विपक्षीय सम्बन्धों को नई ऊंचाइयों पर ले जाने, असैन्य परमाणु करार को लागू करने में आ रही बाधाओं को दूर करने और आतंकवाद से लड़ने में सहयोग की प्रतिबद्धता जताई ।
संयुक्त बयान में कहा गया कि भारत-अमरीका स्वाभाविक साझेदार हैं । दोनों नेताओं के बीच लम्बी चली बातचीत में आर्थिक सहयोग, व्यापार और निवेश सहित व्यापक मुद्दों पर चर्चा हुई । मोदी ने अमरीका में भारतीय सेवा क्षेत्र की पहुंच को सुगम बनाने की मांग की । मोदी ने डबल्यूटीओ के व्यापार समझौते का मुद्दा भी उठाया । बैठक के बाद प्रधानमन्त्री कार्यालय (पीएमओ) की ओर से जारी बयान में कहा गया कि दोनों नेताओं के बीच डबल्यूटीओ के मुद्दों पर खुलकर चर्चा हुई ।
मोदी ने ओबामा से कहा भारत व्यापार का समर्थन करता है लेकिन देश के खाद्य सुरक्षा की कीमत पर नहीं । भारत की खाद्य समस्या के परिप्रेक्ष्य में सब्सिडी जैसे इस मुद्दे का हल भी निकालना चाहिए । गौरतलब है कि बीते दिनों भारत ने खाद्य सुरक्षा का मुद्दा उठाते हुए ही डबल्यूटीओ में व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया था ।
इन पर भी बनी सहमति:
i. रक्षा सहयोग के फ्रेमवर्क एग्रीमेंट को 10 वर्ष के लिए और बढ़ाने पर ।
ii. जलवायु परिवर्तन पर दोनों देश चिन्तित यह दोनों के लिए ही प्राथमिकता ।
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iii. परमाणु नागरिक ऊर्जा सहयोग और परमाणु नि:शस्त्रीकरण पर जोर ।
iv. रणनीतिक और खुफिया साझेदारी को और अधिक मजबूत बनाने पर ।
बिजन स्टेटमेन्ट दोनों देश इन पर एकमत:
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1. आतंक के खिलाफ:
आतंकवाद के खिलाफ मिलकर लड़ेंगे । विश्व को हथियार मुक्त करेंगे और अन्य देशों के परमाणु हथियार कम करेंगे ।
2. सुरक्षा परिषद में सुधार:
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में सुधार के लिए सहयोग करेंगे जिसमें भारत बड़ी भूमिका निभाने के लिए तैयार है ।
3. जलवायु परिवर्तन:
इसके प्रभाव को कम करने के लिए मिलकर काम करेंगे । अमरीकी परमाणु बिजली तकनीक भारत लाने में मदद करेंगे ।
4. कौशल बिकास:
दोनों देशों के बीच कौशल और ज्ञान का आदान-प्रदान करेंगे जो दोनों देशों को आगे ले जाने में मददगार साबित होगा ।
5. विश्व में मिसाल:
21वीं सदी में भरोसेमन्द सहयोगी बनने के लिए हमारी वृहद् सोच है । हमारी साझेदारी विश्व के लिए मिसाल होगी ।
अजमेर को स्मार्ट बनाएगा अमेरिका:
मोदी की स्मार्ट सिटी योजना के लिए अमरीकी कम्पनियां सहयोग करेंगी । दोनों की बातचीत के बाद कहा गया कि अजमेर, इलाहाबाद और विजाग को स्मार्ट सिटी बनाने में अमरीका प्रमुख भागीदार होगा । इसके अतिरिक्त भारतीय राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय के निर्माण में भी वह महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा । अमरीका भारत के 500 शहरों को स्वच्छ बनाने में मदद देगा । भारत कौशल विकास में अमरीकी अनुभव का लाभ लेगा । विभिन्न अमरीकी विश्वविद्यालयों से हर वर्ष 1000 छात्रों युवाओं को बुलाया जाएगा ।
भारतीय कम्पनियों की राह आसान:
दोनों देशों के शीर्ष नेताओं के बीच आर्थिक और रणनीतिक मुद्दों पर भी बात हुई । मोदी ने भारतीय आईटी कम्पनियों के हितों का मुद्दा उठाते हुए ओबामा से आग्रह किया कि वह ऐसे कदम उठाएं जिससे भारतीय कम्पनियां अमरीकी अर्थव्यवस्था तक पहुंच सकें । ओबामा प्रशासन के एक बिल के चलते आईटी कम्पनियों का भविष्य अधर में लटक सकता है । सूत्रों के अनुसार ओबामा ने इस मसले का हल निकालने का भरोसा दिलाया ।
भारत के प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी के निमन्त्रण पर अमेरिकी राष्ट्रपति श्री बराक ओबामा ने 26 जनवरी, 2015 को भारत के गणतन्त्र दिवस समारोह के मुख्य अतिथि बनने के लिए भारत की यात्रा की । राष्ट्रपति श्री बराक ओबामा भारत के गणतन्त्र दिवस समारोह के सम्मानित अतिथि बनने वाले अमेरिका के पहले राष्ट्रपति बने । यह इतिहास में पहली बार है कि महज चार महीनों की अवधि में दोनों देशों के बीच दो शिखर सम्मेलन स्तरीय बैठकें हुईं ।
व्यापार और आर्थिक सम्बन्ध:
2013-14 के दौरान अमरीका में भारतीय वस्तुओं का निर्यात 39.14 बिलियन अमरीकी डॉलर तक हुआ (2012-13 में 36.16 बिलियन अमरीकी डॉलर की तुलना में) जो कि भारत के वैश्विक निर्यात का 12.45 प्रतिशत बैठता है । भारतीय आयात 22.51 बिलियन अमरीकी डॉलर तक हुआ (2012-13 में 25.20 बिलियन अमरीकी डॉलर की तुलना में) जो उसी अवधि के दौरान भारत के कुल आयात का 5 प्रतिशत बैठता है ।
16.65 बिलियन अमरीकी डॉलर का व्यापार अधिशेष भारत के पक्ष में है (2012-13 में 10.96 की तुलना में) । अमरीका वस्तुओं के मामले में भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापार साझीदार बन गया है । सेवा क्षेत्र में कुल व्यापार जिसके लिए पूरा कड़ा केवल 2011 के लिए उपलब्ध है, 54.42 बिलियन अमरीकी डॉलर था ।
अप्रैल 2000-सितम्बर, 2014 के दरमियान अमरीका से भारत में प्राप्त एफ.डी.आई. 13.12 बिलियन अमरीकी डॉलर तक पहुंच गया जिससे अमरीका भारत में एफ.डी.आई. का छठा सबसे बड़ा अंशदाता बन गया जिसमें भारत के लिए कुल एफ.डी.आई. का लगभग 6 प्रतिशत शामिल है ।
अमरीका 1998-99 में भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार हुआ करता था । जब कुल व्यापार में उसका हिस्सा 14 प्रतिशत था । उसके बाद से गिरावट चालू हुई । यह हिस्सा धीरे-धीरे गिरते हुए 2009 से 2013 के बीच 8 प्रतिशत से भी नीचे पहुंच गया और 2013-14 के दौरान ही इसमें कुछ सुधार हुआ तो यह 8 प्रतिशत पर वापस आया । दूसरी ओर भारत के व्यापार में चीन की हिस्सेदारी इसी अवधि में 2 से बढ्कर 9 प्रतिशत हो गई । लिहाजा वह भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार बन गया ।
निष्कर्ष:
भारत और अमेरिका निस्संदेह हर एक क्षेत्र में काफी करीब आ रहे हैं, लेकिन कुछ क्षेत्र अब भी हैं जिन पर दोनों देशों के बीच कोई सहमति नहीं हो सकी है ।
कुछ महत्वपूर्ण मसले जिन पर दोनों देशों में मतभेद चल रहे हैं, वे इस प्रकार हैं:
(a) सुरक्षा परिषद् में भारत को स्थायी सदस्यता प्रदान करने के प्रश्न पर अमेरिका अब भी चुप है ।
(b) भारत और ईरान के बीच 4.2 बिलियन डॉलर की लागत से तैयार होने वाली प्रस्तावित गैस पाइप लाइन पर अमोरका को ऐतराज है, क्योंकि अमेरिका ईरान को आतंकवाद के पोषक के रूप में देखता है ।
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(c) विश्व व्यापार संगठन के मंच पर भारत और अमेरिका के हित मेल नहीं खाते ।
(d) एनपीटी और सीटीबीटी पर भारत ने अब तक हस्ताक्षर नहीं किये हैं जिसकी अपेक्षा अमरीका को है ।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की 29-30 सितम्बर, 2014 की अमरीका यात्रा पर टिपणी करते हुए पत्रकार डी. वेद प्रताप वैदिक लिखते हैं । यह ठीक है कि अमेरिका के साथ अधर में लटके कई द्विपक्षीय मुद्दे ज्यों-के-त्यों हैं । जैसे परमाणु सौदे में दुर्घटना होने पर क्षतिपूर्ति का प्रावधान नई-नई रक्षा-उत्पादन तकनीकें उन्नत हेलिकॉप्टरों की खरीद, परमाणु सप्लायर्स क्लब में भारत के प्रवेश और सुरक्षा परिषद् की स्थायी सदस्यता पर अमेरिकी रवैया तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार आदि ।
इसके अतिरिक्त प्रवासी भारतीयों के लिए चिन्ता का विषय बना हुआ एच-1 वीजा और उन पर लगने वाले टैक्स आदि के मामलों पर कोई ठोस समाधान नहीं निकला । न ही इन्हें हल करने के लिए कोई कूटनीतिक प्रक्रिया तय की गई । इन तथ्यों के आधार पर कांग्रेस ने मोदी की अमेरिका यात्रा को ‘निराशाजनक’ बताया है लेकिन मेरा विचार तो यह है कि मोदी की अमेरिका-यात्रा के लिए अगर कोई एक शब्द कहना हो तो मैं कहूंगा कि वह चाहे जैसी रही हो वह आशाजनक तो निश्चय ही है ।
वह आशाजनक तो कई कारणों से है । पहला कारण तो यही है कि ओबामा और मोदी में सीधा संवाद हुआ । पिछले दो-तीन वर्ष से हमारे सम्बन्धों में जो ठहराव आ गया था, उसमें गति पैदा हुई । दोनों ने ‘वाशिंगटन पोस्ट’ में संयुक्त लेख लिखा । क्या पहले कभी ऐसा हुआ ?