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Here is an essay on ‘National Power and Leadership’ especially written for school and college students in Hindi language.
राष्ट्रीय शक्ति का एक अन्य महत्वपूर्ण तत्व नेतृत्व है । नेतृत्व में ही राष्ट्रीय शक्ति के अन्य सभी आधार उचित दिशा निर्देशन पाते हैं । नेतृत्व शक्ति के अन्य तत्वों के विकास तथा अनुशीलन की प्रेरणा देता है । नेतृत्व अकेला भी कभी-कभी इतना प्रभावशाली होता है कि वह शक्ति का एक स्वतन्त्र तत्व माना जा सकता है ।
नेतृत्व की अनुपस्थिति में राज्य की रचना भी नहीं हो सकती । दूर दृष्टि और कड़ी मेहनत वाले नेतृत्व के बिना सुविकसित तकनीक की भी कल्पना नहीं की जा सकती और उसके न होने की स्थिति में राष्ट्रीय मनोबल का कोई अर्थ नहीं हो सकता ।
नेतृत्व के मुख्य रूप से दो कार्य हैं जिनसे वह राष्ट्रीय शक्ति की अभिवृद्धि में सहायक होता है:
प्रथम- नेतृत्व राष्ट्रीय शक्ति के अन्य तत्वों के बीच समन्वय की स्थापना करता है ।
द्वितीय- राष्ट्र अधिक से अधिक शक्ति प्राप्त कर सके इसके लिए भी उच्च गुणों वाले नेतृत्व का अस्तित्व आवश्यक होता है ।
हम सभी जानते हैं कि युद्ध में सैनिक नेतृत्व ने राष्ट्रीय शक्ति पर सदा से ही निर्णयात्मक प्रभाव डाला है । 18वीं शताब्दी में प्रशा की शक्ति वास्तव में फ्रेडरिक महान् की सैनिक योग्यता का विलक्षण गुण व युद्ध सम्बन्धी चालों के लिए किए गए आविष्कारों की झलक मात्र ही तो थी ।
उसके बाद नैपोलियन ने प्रशा की सेना को ध्वस्त कर दिया जो उस समय (1806 में जेना की लड़ाई के समय) भी उतनी ही अच्छी तथा सबल थी जितनी कि फ्रेडरिक महान् के समय थी, परन्तु महत्वपूर्ण बात यह थी कि फ्रेडरिक महान् के पक्ष में लड़ने वाले सैन्य संचालकों में अपेक्षित सैनिक प्रतिभा का अभाव था । दूसरी ओर नैपोलियन जैसी अपूर्व प्रतिभा का नेतृत्व था ।
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सन् 1939 में जर्मनी की शक्ति का कारण हिटलर की प्रतिभा और नेतृत्व था । नेतृत्व का स्पष्ट प्रभाव युद्ध में देखा जा सकता है । भूतकालीन युद्धों से सर्वथा भिन्न आधुनिक युद्ध केवल सैनिकों के बीच ही नहीं लड़े जाते अपितु उनकी लपेट में असैनिक जनसंख्या भी आती है ।
आधुनिक युद्ध का प्रभाव सर्वव्यापी होने के कारण जन-जीवन का प्रत्येक पहलू उससे प्रभावित होता है । अत: ऐसी स्थिति में युद्ध में संलग्न राष्ट्रों के लिए यह नितान्त आवश्यक है कि राज्य में स्थित सभी संसाधनों की रक्षा विकास एवं उनका उचित उपयोग किया जाए । आधुनिक युद्धों में युद्ध निर्देशन एवं युद्ध नीति निर्माण का विशेष महत्व है ।
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इसके लिए विपुल खाद्य सामग्री के भण्डार, औद्योतिक कच्चे माल की रक्षा, औद्योगिक कारखानों का संचालन, राष्ट्रीय मनोबल को बढ़ाने, आदि कार्य करने होते है । स्पष्टत: ऐसे कार्यों का निष्पादन कुशल नेतृत्व के द्वारा ही हो सकता है ।
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युद्ध काल में नेतृत्व का ही दायित्व होता है कि राष्ट्र की समूची शक्तियों के बीच इस प्रकार का समन्वय बैठाए जिससे युद्ध प्रयासों को समुचित रूप से संचालित किया जा सके । पश्चिमी एशिया में होने वाले अरब-इजरायल युद्धों में इजरायल के सैनिक नेतृत्व ने सदैव अरबों को निराश किया ।
यह माओ के नेतृत्व का ही परिणाम है कि अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में चीन की सुषुप्त शक्तियां एवं क्षमताएँ गतिमान हो उठीं । चर्चिल के गतिमान नेतृत्व ने ही द्वितीय विश्वयुद्ध का पासा पलट दिया और ब्रिटेन को विजयश्री हासिल हुई । चर्चिल का यह कथन ब्रिटिश राष्ट्र में रक्त का प्रवाह कर देता है: ”हम समुद्र तटों पर लड़ेंगे हवाई क्षेत्रों में लड़ेंगे खेतों में लड़ेंगे और गलियों में लडेंगे हम पहाड़ों पर लडेंगे लेकिन आत्मसमर्पण नहीं करेंगे ।”
शान्तिकाल में एक देश में राजनीतिक नेतृत्व का राष्ट्रीय शक्ति के निर्माण में ठीक वही योगदान होता है जो युद्धकाल में सफल सैन्य व्यूह-रचना का होता है । कूटनीतिक कौशल के कारण ही राष्ट्र का महत्व अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर उभरता है । शक्ति के सभी तत्वों का कच्चे माल की तरह से उपयोग करके कूटनीतिक चातुर्य, मानो निर्जीव तत्वों में शक्ति संजोता है ।
राजनयिक नेतृत्व ही अपने राज्य तथा अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय में समन्वय लाता है । अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में अपने राष्ट्र की शक्ति का चातुर्यपूर्ण ढंग से प्रदर्शन राजनयिक नेतृत्व ही करता है । अत: राजनयिक सेवा में श्रेष्ट प्रवीण एवं चतुराई वाले व्यक्तियों को कार्य करने का अवसर दिया जाना चाहिए । संक्षेप में, नेतृत्व वह शक्तिशाली तत्व है जो राष्ट्रीय शक्ति के अन्य तत्वों को संगति देता है, उद्देश्यों को प्राप्त करने योग्य ढंग में परिभाषित करता है और रणनीति के मार्ग का निर्धारण करता है ।