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Here is an essay on the ‘Non-State Actors in International Politics’ especially written for school and college students in Hindi language.
Essay # 1. राज्येतर (अन्तरा-राष्ट्रीय) कर्ता: अभिप्राय (Non-State Actors: Meaning):
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के परिवेश एवं प्रकृति में क्रान्तिकारी परिवर्तन आ रहा है । एक जमाने में अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति ‘राज्य प्रणाली’ के इर्द-गिर्द ही घूमती थी; सम्प्रभु राज्य ही अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में कर्ता थे । ओपेनहीम के अनुसार- ”चूंकि अन्तर्राष्ट्रीय कानून राज्यों की सहमति पर आधारित है, अत: राज्य ही अन्तर्राष्ट्रीय कानून का मुख्य विषय है ।”
फ्रेडरिक स्मिथ के अनुसार- ”राज्य ही अन्तर्राष्ट्रीय व्यक्तित्व के धारक होते हैं ।”
अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय की संविधि में अंकित है कि- ”न्यायालय के समक्ष आने वाले मामलों में केवल राज्य ही वादी-प्रतिवादी हो सकते हैं ।” किन्तु आज अनेक शक्तिशाली राज्येतर कर्ता (गैर-राज्यीय कर्ता) अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में प्रभावी भूमिका अदा करने लगे हैं ।
संयुक्त राष्ट्र संघ के 193 सदस्य राज्य कर्ताओं के साथ-साथ कई हजार राज्येतर कर्ता (Non-State Actors) समकालिक अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों का पथ प्रशस्त कर रहे हैं । राज्येतर कर्ता अथवा अन्तर्राष्ट्रीय कर्ताओं (Transnational Actors) की गतिविधियों का अध्ययन आज के अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों के अध्ययन का एक दिलचस्प विषय बनकर उभरा है ।
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के, ‘यथार्थवादी सिद्धान्त’ के अनुसार अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के प्रमुख पात्र (Actors) ‘राज्य’ होते हैं और इसके अन्तर्गत राज्यों के बाह्य व्यवहार का अध्ययन किया जाता है जो कि शक्ति के परिप्रेक्ष्य में राष्ट्रहित की प्राप्ति हेतु कटिबद्ध रहते हैं ।
इसके विपरीत समकालीन युग में अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के अध्ययन का एक अन्य लोकप्रिय दृष्टिकोण जिसे बहुलतावादी दृष्टिकोण (Pluralist Approach) भी कहते हैं के अनुसार अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में वे सभी संगठन ‘कर्ता’ की भूमिका अदा करते हैं जो संगठित होते हैं तथा अपने नीति-लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए किसी-न-किसी प्रकार जन-समर्थन पर आधारित होते हैं ।
बहुलवादी धारणा राज्य कर्ताओं के साथ-साथ गैर-सरकारी संगठनों, बहुराष्ट्रीय निगमों तथा अन्तरा-राष्ट्रीय संगठनों को भी अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के अध्ययन के प्रभावी पात्र मानती है । आज हम अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति अथवा विश्व राजनीति के अध्ययन को मात्र सम्प्रभु राज्यों की भूमिका के अध्ययन तक ही सीमित नहीं कर सकते ।
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विश्व राजनीति के अध्ययन की पृष्ठभूमि को व्यापक करते हुए बहुराष्ट्रीय निगमों और गैर-सरकारी संगठनों की भूमिका को भी उसमें सम्मिलित करना होगा । ‘राज्येतर कर्ताओं’ (Non-State Actors) शब्द से यह ध्वनि निकलती है कि, राज्य कर्ता प्रधान पात्र हैं और अन्य कर्ता गौण पात्र हैं । इस प्रकार की व्याख्या अस्पष्ट लगती है क्योंकि इससे यह स्पष्ट नहीं होता कि क्या अन्तर सरकारी संगठनों को अन्तर्राज्यीय अथवा गैर-राज्यीय संगठन माना जाए ।
इसी प्रकार कतिपय विद्वान अन्तरा-राष्ट्रीय कर्ता (Transnational Actors) शब्द का प्रयोग करते हुए इस धारणा पर बल देना चाहते हैं कि अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध केवल सरकारों तक ही सीमित नहीं हैं । दुर्भाग्य से राजनयिक शब्दावली में अन्तरा-राष्ट्रीय (Transnational) शब्द का प्रयोग उन अन्तर्राष्ट्रीय कम्पनियों के सन्दर्भ में किया जाता है जिनका स्वरूप और कार्यक्षेत्र एक राष्ट्र की सीमा से परे बहुराष्ट्रीय होता है ।
इसके विपरीत अनेक ऐसे गैर सरकारी संगठन (NGOs) हैं, जो धन कमाने के लिए काम नहीं करते और जिनके साधन हिंसात्मक नहीं होते तथापि वे अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में राज्य कर्ताओं से भी अधिक प्रभावी भूमिका अदा करते हैं ।
विश्व राजनीति में सक्रिय गैर-राज्यीय कर्ताओं (Non-State Actors) को अन्तरा-राष्ट्रीय कर्ता/संगठन (Transnational Actors/Organisations) अन्तर्सरकारी कर्ता (Inter-Governmental Actors), गैर-सरकारी कर्ता (Non-Governmental Actors) अथवा बहुराष्ट्रीय कर्ता (Multi-National Actors) भी कहा जाता है ।
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सभी राज्येतर कर्ताओं को एक-दूसरे से अलग करने वाला बिन्दु यह है कि यद्यपि उनकी गतिविधियां विश्व के विभिन्न राज्यों में लोगों तथा वस्तुओं को प्रभावित करती हैं तथापि ये सरकारों या राज्यों के साथ औपचारिक रूप से जुडे हुए नहीं होते ।
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीतिक व्यवस्था में इन राज्येतर कर्ताओं तथा इनकी भूमिका के बीच अन्तर्कियाओं को अन्तरा-राष्ट्रीय (Transnational) अन्तरक्रिया कहा जाता है । ‘अन्तरा-राष्ट्रीय अन्तर्किया’ शब्द में राज्य की सीमाओं के पार सभी वास्तविक तथा अवास्तविक तत्वों की गतिविधियां उस सीमा तक शामिल हैं जब कम-से-कम एक कर्ता किसी एक सरकार अथवा किसी अन्तर्सरकारी संगठन का अभिकर्ता नहीं होता ।
अनेक विद्वान तो अन्तरा-राष्ट्रीय सम्बन्ध शब्द में ही अन्तर्सरकारी संगठनों की गतिविधियों को भी शामिल कर लेते हैं । रॉबर्ट ओ कियोहेन तथा जोसेफ एस. नी-सीनियर लिखते हैं- ”अधिकांश अन्त सामाजिक अन्तर व्यवहार जो काफी महत्वपूर्ण होता है बिना सरकारी नियन्त्रण के ही सम्पन्न होता रहता है; अत: किसी भी स्थिति में राज्य विश्व राजनीति में केवल अकेले ही कर्ता नहीं होते ।”
अन्तर्राष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठन वे संगठन हैं जिनमें सरकारें और राज्य सदस्य नहीं होते हैं । फिर भी वे राष्ट्र के अन्दर और राष्ट्रीय सीमापार कार्य करते हैं और राष्ट्रीय सरकारों के नियन्त्रण के अधीन होते हैं । स्वयंसेवी संगठनों के रूप में गैर-सरकारी संगठन विभिन्न क्षेत्रों में बड़ी संख्या में कार्य कर रहे हैं ।
लगभग दो शताब्दी पूर्व आर्नोल्ड वोल्फर ने लिखा था- “वैटिकन अरब-अमेरिका तेल कम्पनी तथा अनेक गैर-राज्यीय इकाइयां कभी-कभी अन्तर्राष्ट्रीय घटनाओं की दिशा को प्रभावित करते हैं ।” वोल्कर के उपर्युक्त कथन के बाद अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में बहुत कुछ बदल गया है तथा अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में अनेक ऐसे गैर-राज्यीय कर्ता इतने शक्तिशाली एवं प्रभावी दृष्टिगोचर होते हैं कि उनकी भूमिका का विश्व लेषण किए बिना अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का हमारा ज्ञान अधूरा ही रहेगा ।
Essay # 2. राज्येतर अथवा अन्तरा-राष्ट्रीय कर्ता: प्रकार एवं प्रकृति (Non-State Actors: Kinds and Nature):
एक अनुमान के अनुसार सभी अन्तर्राष्ट्रीय क्रियाशीलता का 33 प्रतिशत भाग सिर्फ गैर-राज्यीय कर्ताओं के बीच ही घटित होता है तथा समस्त अन्तर्राष्ट्रीय क्रियाशीलता का करीब 50 प्रतिशत से अधिक भाग गैर-राज्यीयकर्ताओं तथा राष्ट्र-राज्यों के बीच घटित होता है ।
बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ से ही अन्तर्राष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठनों की संख्या बढ़नी शुरू हो गई थी । सन् 1901 में यह संख्या 180 थी और 1975 के आस-पास 2,500, जबकि आज इनकी संख्या अनगिनत है । अनेक बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के अस्तित्व में आने से इनकी निश्चित संख्या बता पाना एक दुष्कर कार्य है ।
आज मोटे रूप से निम्नांकित प्रकार के गैर-राज्यीय कर्ता अथवा अन्तरा-राष्ट्रीय संगठन विश्व राजनीति में सक्रिय हैं:
(1) बहुराष्ट्रीय निगम,
(2) गैर-सरकारी संगठन,
(3) अन्तर्सरकारी संगठन,
(4)अन्तर्राष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठन,
(5) धार्मिक संगठन,
(6) गुरिल्ला एवं आतंकवादी संगठन ।
(1) बहुराष्ट्रीय निगम (Multinational Corporations):
बहुराष्ट्रीय निगम या कम्पनियां प्रभावी अन्तर्राष्ट्रीय कर्ता हैं । एक अध्ययन के अनुसार आधुनिक विश्व में 38,500 प्रमुख बहुराष्ट्रीय कम्पनियां कार्यरत हैं । इनमें से प्रमुख कम्पनियां हैं: शैल, बार्कलेज बैंक, कोका-कोला, जनरल मोटर्स, इन्टेल नेसले, एस्सो, कॉर्टलेक्स सोनी आदि । इन प्रधान कम्पनियों के साथ 2,50,000 विदेशी सहायक हिस्सेदार कम्पनियां जुड़ी हुई हैं ।
सन् 1971 में इन बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने 50,000 करोड़ डॉलर के मूल्य का नया धन पैदा किया था जो विश्व के समग्र राष्ट्रीय उत्पादन (समाजवादी देशों को छोड्कर) का पांचवां भाग था । इन बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की विकास दर को देखते हुए यह अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2020 तक बहुराष्ट्रीय कम्पनियां विश्व के कुल उत्पादन के (समाजवादी देशों को छोड़कर) 80 प्रतिशत पर नियन्त्रण कायम कर लेंगी ।
अमेरिका की तीन बहुराष्ट्रीय कम्पनियों-जनरल मोटर्स स्टैण्डर्ड आयल और फोर्ड की वार्षिक बिक्री भारत के कुल राष्ट्रीय उत्पादन के बराबर है । अमेरिका की 10, ब्रिटेन की 5 और स्विट्जरलैण्ड की 3 बहुराष्ट्रीय कम्पनियां पूंजीवादी जगत के कुल उत्पादन का क्रमश: 40, 30 और 20 प्रतिशत पैदा करती हैं । अमेरिका में 500 बड़ी कम्पनियां हैं जो अमेरिका के कुल उत्पादन के 60 प्रतिशत पर नियन्त्रण करती हैं ।
राज्येतर कर्ता के रूप में ये कम्पनियां विश्व राजनीति में सक्रिय रहती हैं । मध्य-पूर्व के तेल भण्डार के अधिकांश भाग पर इन कम्पनियों का कब्जा है । अंगोला के सोने, लोहे तथा तेल के भण्डारों पर इन कम्पनियों का नियन्त्रण रहा है । चिली में अलंदे की सरकार ने अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कम्पनी के राष्ट्रीयकरण के कदम उठाए तो इन कम्पनियों ने अलंदे की हत्या करवा दी तथा सरकार को उलटवा दिया ।
(2) गैर-सरकारी संगठन (Non-Governmental Organisations- NGOs):
दुनिया भर में लगभग दस हजार गैर-सरकारी संगठन सक्रिय हैं । ये संगठन किसी एक देश में कार्यरत रहते हैं और इनकी प्रकृति गैर-सरकारी संगठन की होती है । ये संगठन बिना किसी स्वार्थ के बिना किसी लाभ कमाने के उद्देश्य से सक्रिय होते हैं । ऐसे संगठनों में प्रमुख हैं: संयुक्त राज्य अमेरिका में कार्यरत फ्रीडम हाउस, फ्रांस में कार्यरत मेडिसिन सेन्स फन्टीयर्स, इंग्लैण्ड में कार्यरत पापुलेशन कर्सन तथा वॉटर एड ।
जून 1992 में सम्पन्न रियो पृथ्वी सम्मेलन के अवसर पर तथा दिसम्बर, 1997 में सम्पन्न ग्लोबल वार्मिंग पर अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन में अनेक देशों के गैर-सरकारी संगठनों ने भाग लेकर पर्यावरणीय मसलों को प्रभावित करने का प्रयास किया ।
इसी प्रकार सिएटल में सम्पन्न विश्व व्यापार संगठन के तीसरे मन्त्रीस्तरीय सम्मेलन के अवसरू पर अनेक गैर-सरकारी संगठनों ने प्रदर्शन आयोजित किए । ऐसा देखा गया है कि पर्यावरणीय मसलों तथा विश्व व्यापार से सम्बन्धित मुद्दों को प्रभावित करने में गैर-सरकारी संगठनों की प्रभावी भूमिका रही है ।
(3) अन्तर्सरकारी संगठन (Inter-Governmental Organisations- IGOs):
अनेक अन्तर्राष्ट्रीय संगठन; जैसे संयुक्त राष्ट्र संघ और उसके मुख्य तथा विशिष्ट अंग, अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन, यूनेस्को का अपना अलग अन्तर्राष्ट्रीय व्यक्तित्व है । इनके अपने वैधानिक अधिकार एवं कर्तव्य होते हैं । स्टार्क, ओपेनहीम जैसे विद्वान अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों को अन्तर्राष्ट्रीय कानून का विषय मानते हैं ।
अन्तर्सरकारी संगठनों में कई प्रकार के संगठन हैं; जैसे: संयुक्त राष्ट्र संघ यूनेस्को विश्व स्वास्थ्य संगठन, अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन विश्व व्यापार संगठन राष्ट्र मण्डल आदि । इसके अतिरिक्त नाटो वारसा पैक्ट सीटी सेण्टो जैसे क्षेत्रीय सैनिक स्वरूप वाले संगठन भी एक तरह से अन्तर-सरकारी प्रकृति के कर्ता हैं ।
इसके अतिरिक्त पिछले 10-15 वर्षों में निम्नांकित कर्ता भी उभरकर आए हैं जिन्हें इसी श्रेणी में रखा जा सकता:
(i) इस्लामिक सम्मेलन संगठन,
(ii) अफ्रीकी एकता संगठन,
(iii) ओपेक,
(iv) अंकटाड,
(v) ग्रुप-77,
(vi) जी-15,
(vii) आसियान,
(viii) सार्क,
(ix) एपेक,
(x) नाफ्टा,
(xi) हिमतक्षेस,
(xii) बिम्स्टेक,
(xiii) जी-7,
(xiv) डी-8,
(xv) ब्रिक्स,
(xvi) शंघाई सहयोग संगठन,
(xvii) जी-20।
(4) अन्तर्राष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठन (International Non-Governmental Organisations- INGOs):
कतिपय गैर-सरकारी संगठन क्षेत्र एवं भूमिका की दृष्टि से इतने व्यापक होते हैं कि उनका कार्यक्षेत्र राष्ट्रीय सीमाओं से आगे अन्तर्राष्ट्रीय हो जाता है । कुछ अंतर्राष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठन इतने लोकप्रिय हो गए हैं कि उन्हें हर कोई जानता है ।
इनमें से प्रमुख हैं:
(i) एमनेस्टी इन्टरनेशनल (Amnesty International)
(ii) ग्रीनपीस (Greenpeace)
(iii) रेड क्रास (Red Cross)
(iv) सेव दी चिल्ड्रन (Save the Children)
(v) केयर एण्ड ऑक्सफेम (Care and Oxfam)
मानव अधिकारों के संरक्षण की दिशा में एमनेस्टी इन्टरनेशनल के प्रतिवेदन प्रभावी भूमिका अदा करते हैं । दुनिया के अधिकांश देश एमनेस्टी इन्टरनेशनल से भय खाते हुए मानव अधिकारों के संरक्षण की दिशा में सक्रिय रहते हैं । पर्यावरण संरक्षण की दिशा में ग्रीन पीस और युद्धरत पक्षों को राहत पहुंचाने में रेड क्रास विशेष रूप से सक्रिय संगठन है ।
(5) धार्मिक संगठन (Religious Organisations):
अनेक धार्मिक संगठन भी आज अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय हैं ।
इनमें से प्रमुख हैं:
(i) क्रिश्चियन चर्च (Christian Church),
(ii) रोमन कैथोलिक चर्च (Roman Catholic Church),
(iii) वर्ल्ड कांग्रेस ऑफ रिलिजन्स (World Congress of Religions),
(iv) बैपटिस्ट वर्ल्ड अलाइन्स (Baptist World Alliance),
(v) विश्व हिन्दू परिषद (VHP) ।
ये धार्मिक संगठन राष्ट्रीय सीमाओं को तोड़ते हुए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अपने धार्मिक कार्यक्रम चलाते हैं । इन संगठनों का प्रमुख कार्य अपने धर्म का प्रचार एवं प्रसार, धार्मिक संस्थाओं की स्थापना, अपने धर्मावलम्बियों के हितों की रक्षा करना तथा अपने धर्म की पृथक पहचान एवं संस्कृति को बनाए रखना है ।
(6) गुरिल्ला एवं आतंकवादी संगठन (Guerillas and Terrorist Organisations):
आज अनेक गुरिल्ला संगठन आतंकवादी और राष्ट्रीय मुक्ति आन्दोलन से जुड़े संगठन अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय हैं । ऐसे संगठन हिंसा हत्या मारकाट विमान अपहरण जैसे साधनों का भी प्रयोग करते हैं । ऐसे संगठनों में अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस (ANC), साउथ वेस्ट अफ्रीकन पीपुल्स आर्गेनाइजेशन (SWAPO), पेलिस्टनि लिबरेशन आर्गेनाइजेशन (PLO), लिट्टे (LITTLE), अल-कायदा, हिजबुल मुजाहिदीन, अल-जिहाद, हमास, लश्करे-तोयबा, जैश-ए-मुहम्मद, तालिबान, अल- शबाव आईएसआईएस आदि प्रमुख हैं ।
Essay # 3. राज्येतर कर्ताओं की भूमिका (Role of the Non-State Actors):
आधुनिक युग में राज्येतर कर्ताओं के प्रादुर्भाव तथा अन्तरा-राष्ट्रीय सम्बन्धों ने अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों तथा राज्य कर्ताओं के कन्धों पर टिकी अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था को प्रभावित किया है । राज्येतर कर्ताओं ने सम्प्रभुता तथा राष्ट्रवाद की समस्त अवधारणा को ही बदल डाला है ।
आज राष्ट्र राज्यों की नीतियां निर्णय तथा कार्य सभी पर राज्येतर कर्ताओं का प्रभाव होता है, क्योंकि राज्येतर कर्ता अन्तर्राष्ट्रीय राजनीतिक व्यवस्था में शक्तिशाली वाणिज्यिक आर्थिक सांस्कृतिक एवं सामाजिक कर्ताओं के रूप में उभरकर सामने आए हैं ।
राज्येतर कर्ताओं (बहुराष्ट्रीय निगम गैर सरकारी संगठन अन्तर-सरकारी संगठन अन्तर्राष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठन धार्मिक संगठन गुरिल्ला एवं आतंकवादी संगठन) की भूमिका का विश्लेषण करते हुए वाई तथा कियोहेन लिखते हैं कि- ये राज्येतर कर्ता सम्प्रेषण पेटी (Transmission-Belt) के रूप में कार्य करके राष्ट्र राज्य की विदेश नीति के निर्माताओं की कार्य सूची को बनाने तथा व्यापक करने में सहायक होते हैं, जिसके द्वारा एक राष्ट्र की विदेश नीति दूसरे राष्ट्र की विदेश नीति के प्रति संवेदनशील होती है ।
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राज्येतर कर्ताओं ने न केवल विद्यमान राष्ट्र राज्य व्यवस्था को ही प्रभावित किया है, अपितु अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में राष्ट्रीय राज्यों की भूमिका में भी जबरदस्त परिवर्तन कर दिए हैं । अनेक अन्तरा-राष्ट्रीय संगठन अन्तर्राष्ट्रीय अन्त निर्भरता बढ़ाने की दिशा में इस गति से आगे बढ़ रहे हैं कि कुछ क्षेत्रों में इन्होंने राष्ट्र राज्यों की भूमिका को गौण कर दिया है ।
बहुराष्ट्रीय कम्पनियों, गुरिल्ला एवं आतंकवादी संगठनों की भूमिका के कारण अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में निम्न स्तर की घटिया गतिविधियों में भी वृद्धि हुई है । बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के बारे में ठीक ही कहा गया है- ”धनी राष्ट्रों के लोगों के अन्तरा-राष्ट्रीय व्यापार तथा लाभ कमाने वाले संगठनों के रूप में बहुराष्ट्रीय निगम तीसरी दुनिया के देशों की अर्थव्यवस्थाओं तथा नीतियों पर उपनिवेशी नियन्त्रण का कारण बने हैं ।”
बर्नेड तथा मूलर का कहना है- ”ये निगम निर्धन राष्ट्रों को उपनिवेश बना रहे हैं तथा धनी राष्ट्रों को धीरे-धीरे क्षीण तथा अस्थिर बना रहे हैं जबकि स्वयं विशालकाय बनते जा रहे हैं ।” संक्षेप में, राज्येतर कर्ता अन्तर्राष्ट्रीय राजनीतिक व्यवस्था में राज्यीय कर्ताओं से भी अधिक सक्रिय हैं ।
अनेक राज्येतर कर्ता अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग बढ़ाने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर रहे हैं फिर भी इनके कारण विविध प्रकार के झगड़े तथा तनाव उत्पन्न हो रहे हैं । इन्होंने अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों को और अधिक जटिल और समस्याग्रस्त बना दिया है ।
बहुराष्ट्रीय निगम के स्वरूप वाले कर्ता नव-उपनिवेशवाद लाने वाले अभिकरणों के रूप में कार्य कर रहे हैं; तथापि इनमें से अनेक कर्ताओं ने अन्तर्राष्ट्रीयतावाद, सार्वभौमिकता के पक्ष में राष्ट्रवादी भावना की समाप्ति तथा विभिन्न सशक्त, शान्तिवादी, विकासवादी तथा पर्यावरण रक्षण आन्दोलनों की वृद्धि में अपना योगदान दिया है ।