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Here is an essay on ‘Population and National Power’ especially written for school and college students in Hindi language.
प्रो. हान्स जे. मॉरगेन्थाऊ ने लिखा- “जब हम भौतिक तथा समन्वित भौतिक तथा मानवीय तत्वों से हटकर केवल उन विशुद्ध मानवीय तत्वों पर विचार करते हैं, जिनके द्वारा किसी राष्ट्र की शक्ति निर्धारित होती है तो हमें उनके गुणात्मक तथा मात्रात्मक अंगों में भेद समझ लेना चाहिए । गुणात्मक तत्व राष्ट्रीय चरित्र राष्ट्रीय साहस, नेतृत्व, कूटनीति की गुणावस्था तथा सरकार के साधारण गुणों से सम्बन्धित हैं । मात्रा की दृष्टि से हमें इस तत्व को आबादी के मापदण्ड से परखना चाहिए ।”
आज विद्वानों में इस बारे में कोई गम्भीर मतभेद नहीं है कि राष्ट्रीय शक्ति के स्रोत के रूप में जनसंख्या का क्या महत्व है । श्लाइचर ने लिखा है कि- “जब तक उत्पादन और युद्ध के लिए मनुष्यों की आवश्यकता होगी तब तक यदि अन्य तत्व समान रहें तो जिस राज्य के पास इन दो कार्यों के लिए बड़ी संख्या में लोग होंगे वह सबसे अधिक सामर्थ्यवान होगा ।”
मुसोलिनी ने इटलीवासियों से जनसंख्या बढ़ाने का आग्रह करते हुए कहा था: ”बात साफ-साफ सोचना ही ठीक होगा । नौ करोड़ जर्मनों और बीस करोड़ स्तावों के सामने चार करोड़ इटालियनों की क्या हस्ती है ।” इतिहास इस बात का साक्ष्य है कि रोम साम्राज्य की शक्ति का मुख्य कारण उसकी विशाल जनसंख्या थी ।
आग्सट्स से केवल दो पीढ़ियों बाद रोम के पतन का एक बड़ा कारण उसकी बढ़ती जनसंख्या थी । अरस्तु के विचार में यूनान के पतन का मुख्य कारण भी जनसंख्या में नियमित ह्रास था । स्पार्टा के नाश का मुख्य कारण जनसंख्या का अभाव था ।
माण्टेस्क्यू ने यूरोप के तीसवर्षीय युद्ध की चर्चा करते हुए स्पष्ट लिखा है कि, ‘राष्ट्रों का नाश करने वाला सबसे संहारक कारण जनसंख्या में निरन्तर हास होना है ।’ ‘ईश्वर सदा विशालतम बटालियनों की ओर है’, यह कोई नया विचार नहीं है ।
इसका अभिप्राय यह है कि, यदि अन्य बातें समान हों तो अधिक जनसंख्या निर्णायक हो सकती है । हमारी मान्यता यह है कि बड़ी आबादी से यह तय नहीं हो जाता कि राज्य बड़ी शक्ति हो ही जाएगा लेकिन कोई राज्य अपेक्षाकृत बड़ी जनसंख्या के बिना बड़ी शक्ति नहीं हो सकता ।
मॉरगेन्थाऊ लिखते हैं- “यह कहना तो सही नहीं होगा कि जितनी अधिक किसी देश की आबादी होती है उतना ही शक्तिशाली वह देश हो जाता है क्योंकि यदि जनसंख्या के आकड़ों व राष्ट्रीय शक्ति में ऐसा सम्बन्ध होता तो अपनी एक सौ करोड़ की जनसंख्या से चीन विश्व में सबसे शक्तिशाली देश होता और 90 करोड़ जनसंख्या वाला भारत दूसरे नम्बर पर होता ।
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संयुक्त राज्य अमरीका पच्चीस करोड़ की जनसंख्या से तीसरा तथा रूस पन्द्रह करोड़ की जनसंख्या से चौथे नम्बर पर होता किन्तु यह सोचना बिल्कुल सही नहीं होगा कि यदि एक देश की आबादी अन्य तमाम देशों की तुलना में अधिक है तो वह देश आवश्यकतावश उनकी तुलना में अधिक शक्तिशाली होगा ही परन्तु साथ ही यह भी सत्य है कि कोई भी ऐसा देश न तो प्रथम श्रेणी का शक्तिशाली देश बन ही सकता है और न बनने पर रह ही सकता है जो संसार के घनी आबादी वाले देशों में से एक नहीं है ।”
बड़ी जनसंख्या सैनिक और आर्थिक दृष्टि से किसी राष्ट्र की शक्ति में वृद्धि कर सकती है । प्रथम श्रेणी के सैनिक अथवा शक्तिशाली राष्ट्रों के लिए विशाल जनसंख्या का होना आवश्यक है । विशाल जनसंख्या से बड़ी फौजें अधिक श्रमिक और श्रेद्द व्यक्तियों के चयन की सुविधा होती है ।
किसी राष्ट्र के आर्थिक उत्पादन का परिणाम अनेक कारकों में से इस कारक पर भी निर्भर करता है कि उस देश के पास श्रमिक बल या मजदूर वर्ग कितना है जो ठीक अर्थव्यवस्था के लिए सर्वथा आवश्यक है । मॉरगेन्थाऊ लिखते हैं: “घनी आबादी के बिना यह असम्भव है कि, आधुनिक युद्धों को सफलतापूर्वक संचालित करने के लिए आवश्यक औद्योगिक कारखाने निर्मित तथा संचालित किए जा सकें और न ही यह सम्भव है कि, बड़ी संख्या में लड़ने वाले सिपाहियों की टुकड़ियां स्थल, जल तथा वायु में लड़ने के लिए प्रस्तुत की जाएं और न ही फौज के अन्य वे कर्मचारी हासिल किए जा सकते हैं जिनकी संख्या लड़ाकू सिपाहियों की तुलना में कहीं अधिक होती है, जो लड़ाकुओं को खाना, यातायात के साधन, पत्र सन्देश, अस तथा गोला-बारूद, इत्यादि पहुंचाते हैं ।”
वस्तुत: अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में एक देश की सैनिक सम्भाव्य औद्योगिक उत्पादक क्षमता पर निर्भर करती है और औद्योगिक उत्पादन क्षमता बड़ी जनसंख्या पर निर्भर करती है । यदि दो राष्ट्रों की वैज्ञानिक प्रगति, तकनीकी विकास, औद्योगिक स्तर तथा अन्य शक्ति तत्व समान हों तो विशाल जनसंख्या सदैव राष्ट्र की शक्ति बढ़ाने में अधिक सहायक होगी ।
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एक देश जिसकी आबादी अपने प्रतिद्वन्द्वी की तुलना में कम है, अपनी जनसंख्या की गिरती हुई रफ्तार से उस समय बहुत चिन्तित हो जाएगा, जबकि उसके प्रतिद्वन्द्वी की आबादी अधिक रफ्तार से बढ़ रही हो । यही परिस्थिति सन् 1870 से 1940 के मध्य जर्मनी की तुलना में फ्रांस की रही है ।
इस युग में फ्रांस की जनसंख्या चालीस लाख बड़ी, जबकि जर्मनी की वृद्धि दो करोड़ सत्तर लाख रही । 1940 में जर्मनी के पास डेढ़ करोड़ व्यक्ति सैनिक सेवा के लिए उपलब्ध थे जबकि फ्रांस में ऐसे व्यक्तियों की संख्या केवल 50 लाख थी ।
सन् 1940 में फ्रांस के जर्मनी से पराजित होने का एक कारण यह भी था । सन् 1800 में प्रत्येक सातवां यूरोपीय व्यक्ति फ्रांसीसी था सन् 1930 में प्रत्येक तेरहवां व्यक्ति फ्रांसीसी था । सन् 1940 में जर्मनी के पास डेढ़ करोड़ मनुष्य सैनिक शिक्षा के लिए प्राप्त थे, जबकि फ्रांस के पास केवल पचास लाख ही थे ।
इसी प्रकार सन् 1870 के बाद जर्मनी रूस की जनसंख्या को देखकर चिन्तित रहता था जो जर्मनी की तुलना में अधिक बढ़ती चली जा रही थी वस्तुत: रूस द्वारा द्वितीय विश्वयुद्ध में हिटलर की सेनाओं को हराने में उसकी विशाल जनसंख्या का बड़ा महत्व था । उन्नीसवीं शताब्दी के अन्त में जब केवल ब्रिटिश साम्राज्य ही अकेली विश्व शक्ति था तो उसकी जनसंख्या प्राय: चालीस करोड़ थी । यह विश्व जनसंख्या की प्राय: एक-चौथाई थी ।
राष्ट्रीय शक्ति के निर्माण में जनसंख्या की अधिकता का तो महत्व है कि, चूंकि अधिक जनसंख्या की चेतना से राष्ट्र के सदस्यों का मनोबल ऊंचा हो सकता है और अधिक जनसंख्या वाला राष्ट्र किसी भी आक्रमणकारी के विरुद्ध निष्क्रिय प्रतिरोध भी सफलतापूर्वक चला सकता है तथापि राष्ट्र का शक्तिशाली होना वास्तविक रूप से जनसंख्या की प्रकृति उसके चरित्र और गुणों (Quality) पर निर्भर करता है ।
जनसंख्या के गुणों की दृष्टि से कई बातें महत्वपूर्ण हैं, जैसे: राज्य की जनसंख्या में वृद्धों की संख्या अधिक है अथवा युवकों की, वहां की आबादी में पुरुष अधिक हैं अथवा सियां वहां के लोगों का स्वास्थ्य कैसा है आबादी शिक्षित है अथवा निरक्षर, वहां जनसंख्या में अल्पसंख्यकों की संख्या कितनी है लोग निर्धन हैं अथवा सम्पन्न आदि ।
जनसंख्या की दृष्टि से आयु के प्रश्न का सीधा सम्बन्ध आर्थिक विकास से जुड़ा हुआ है । सैनिक अथवा औद्योगिक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए राष्ट्र की जनसंख्या में युवकों एवं प्रौढ़ों का बाहुल्य उपयोगी होता है । जिन राज्यों में अल्पसंख्यकों का अभाव होता है तथा जनसंख्या की रचना में एक ही प्रकार की जाति के लोग पाए जाते हैं वे अपेक्षाकृत अधिक शक्तिशाली होते हैं और वहां राष्ट्रीय एकता खण्डित होने जैसी कोई समस्या नहीं रहती ।
हम सभी जानते हैं कि, भारत में धर्म और भाषा के आधार पर अल्पसंख्यकों की उपस्थिति कभी-कभी राष्ट्रीय एकता के लिए चुनौती उत्पन्न कर देती है । वस्तुत: राष्ट्रीय शक्ति जनता के ओज, चरित्र, उत्पादन क्षमता, स्वास्थ्य, शिक्षा स्तर तथा आर्थिक प्रोत्साहन का ही सम्मिलित नाम है ।
यही कारण है कि, चीन तथा भारत विश्व के दो विशाल जनसंख्या वाले राष्ट्र हैं तथापि वे अमरीका तथा रूस से कमजोर हैं । जहां अधिक जनसंख्या राष्ट्र की शक्ति की अभिवृद्धि में सहायक होती है वहां एक अर्थ में राष्ट्रीय शक्ति के विकास में बाधाएं भी उपस्थित करती है ।
अधिक जनसंख्या के पोषण के लिए यदि राष्ट्र सक्षम नहीं है तो वह जनसंख्या उसके लिए विभिन्न समस्याओं का अम्बार खड़ा कर देती है । बड़ी जनसंख्या वाले देश में एक बड़ी समस्या राष्ट्रीय एकता की होती है और वहां बहुत-से लोगों को जीवित रखने के लिए एक बड़ी मात्रा में खाद्यान्न की आवश्यकता होती है ।
भारत की विशाल जनसंख्या के सामने जिस प्रकार अन्न संकट हमेशा मुंह बाए रहता है वह एक शोचनीय स्थिति है । कभी-कभी अधिक जनसंख्या बसाने के लिए राज्य अपने क्षेत्र का विस्तार करने को बाध्य होते हैं जिससे साम्राज्यवादी विदेश नीति का प्रादुर्भाव होता है जो अन्ततोगत्वा विश्वशान्ति के प्रतिकूल ही है ।
हम सभी जानते हैं कि जर्मनी की विस्तारवादी आकांक्षा के मूल में बड़ा कारण जर्मनी की बढ़ती हुई जनसंख्या का था । किंग्सले डेविस के विचार में निर्धन देशों की जनसंख्या सबसे अधिक बढ़ रही है तथा निकट भविष्य में सबसे अधिक जनसंख्या और सबसे कम संसाधन होने के कारण ये देश क्रान्तिकारी नीतियां अपनाने को बाध्य होंगे ।
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राष्ट्रीय शक्ति की रचना में जनसंख्या का योगदान:
जनसंख्या राष्ट्रीय शक्ति का महत्वपूर्ण अवयव है, चूंकि वह सैनिक कार्यवाहियों तथा आर्थिक उत्पादन के लिए जन शक्ति की व्यवस्था करती है । यहां यह उल्लेखनीय है कि किसी राष्ट्र के पास अपार जनशक्ति हो पर यदि वह सैनिक संगठन में न बंधी हो तो इससे राष्ट्रीय शक्ति की वृद्धि नहीं हो सकती ।
जनसंख्या से राष्ट्रों का यह भी सैनिक लाभ होता है कि विशाल जनसंख्या वाले देश को जीतना कठिन होता है और यदि उसे जीत भी लिया जाए तो उस विजय को स्थायी बनाना बहुत कठिन होता है । यह एक तथ्य है कि द्वितीय विश्वयुद्ध के काल में जापान को चीन में इसी कठिनाई का सामना करना पड़ा था ।
अधिक जनसंख्या आर्थिक उत्पादन के क्षेत्र में वृद्धि को सम्भव बनाकर राष्ट्रीय शक्ति की अभिवृद्धि में अपना योगदान देती है । असल में जनसंख्या की अधिकता से न तो शक्तिशाली सेना की गारण्टी हो सकती है और न उच्चकोटि के औद्योगीकरण की ।
यथार्थ में ये दोनों ही लाभ राष्ट्रीय शक्ति के अन्य कारणों पर निर्भर करते हैं विशेष रूप से इस बात पर कि किसी राष्ट्र ने कितना औद्योगिक विस्तार किया है और अपनी सैनिक शक्ति एवं उत्पादन तन्त्र को किस सीमा तक आधुनिक स्वरूप प्रदान किया है ।