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The below mentioned article provides a paragraph on administrative behaviour in Hindi language.
प्रशासनिक व्यवहार से तात्पर्य उन क्रियाओं एवं प्रक्रियाओं आदि से है जिनके माध्यम से प्रशासन अपने निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु प्रयासरत रहता है । ये प्रयास वैयक्तिक या सामूहिक या संगठनात्मक- किसी भी स्तर पर किये जा सकते हैं ।
जब प्रशासन एक संगठन के रूप में लक्ष्य प्राप्ति की ओर उन्मुख होता है तो उसे विभिन्न प्रकार की प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है । यथा- प्रशासनिक लक्ष्यों का निर्धारण, लक्ष्यों के लिये उचित प्रबन्ध, प्रबन्ध के संचालन हेतु सक्षम नेतृत्व, अन्य आवश्यक मानवीय संसाधनों की व्यवस्था, विभिन्न स्तरों पर निर्णय-प्रक्रिया, निर्णय व आदेश के सम्प्रेषण हेतु संचार व्यवस्था, जवाबदेही आदि । ये सभी तत्व मिलकर प्रशासकीय व्यवहार का निर्धारण करते हैं । यहाँ कुछ अत्यन्त महत्वपूर्ण तत्वों की ही विवेचना की जायेगी ।
जब प्रशासन एक संगठन के रूप में उभरकर सामने आता है तो उसका सर्वप्रथम दायित्व होता है कि वह प्रशासनिक लक्ष्यों का निर्धारण करें तथा उसके पश्चात् उनकी प्राप्ति हेतु उचित प्रबन्ध करें ।
प्रशासनिक संगठनों के लक्ष्यों को दो वर्गों में विभक्त किया जा सकता है:
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(1) आधिकारिक लक्ष्य,
(2) संचालन लक्ष्य ।
(1) आधिकारिक लक्ष्य (Official or Authoritative Objectives):
ये लक्ष्य राज्य के स्थापित कानून के अन्तर्गत निहित होते हैं या नये कानूनों, नियमों व नीतियों के रूप में राजनीतिक सत्ता द्वारा निर्मित किये जाते हैं । ये लोक प्रशासन के ‘आधिकारिक लक्ष्य’ हैं ।
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(2) संचालन लक्ष्य (Executive or Running Objectives):
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आधिकारिक लक्ष्यों के आधार पर ही संचालन लक्ष्यों का निर्माण किया जाता है । इन संचालन लक्ष्यों के आधार पर ही वास्तविक प्रशासनिक नीतियों या संचालन नीतियों का निर्माण किया जाता है तथा उन्हें कार्यान्वित किया जाता है ।
आधिकारिक एवं संचालन दोनों ही प्रकार के लक्ष्य बाह्य तत्वों से प्रभावित होते हैं । ये बाह्य तत्व सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक आदि किसी भी रूप में हो सकते हैं । इसके अतिरिक्त प्रौद्योगिकी एवं जन आन्दोलन जैसे तत्व भी लक्ष्यों पर प्रभाव डालते हैं । प्रशासनिक स्तर पर लक्ष्यों की स्थापना एक अत्यधिक जटिल प्रक्रिया है ।
वर्तमान परिस्थितियों में राजनीतिक अस्थायित्व की प्रवृत्ति में निरन्तर वृद्धि हो रही है । साथ ही राजनेता प्रशिक्षित प्रबन्धक भी नहीं होते हैं । अत: नवीन प्रवृत्ति के अनुसार उच्च स्तर पर लक्ष्य व नीतियाँ राजनीतिज्ञों एवं प्रशासकों के द्वारा मिलकर पारस्परिक सहयोग के आधार पर निर्मित की जाती हैं ।
राजनीतिज्ञ जनमत को दृष्टिगत रखते हुए ही नीति-निर्माण करता है तथा प्रशासक व्यावहारिक संचालन या नीतियों के कार्यान्वयन हेतु कार्य करता है । दोनों प्रक्रियाएँ परस्पर इस प्रकार मिश्रित होती हैं कि उन्हें पृथक् किया जाना सम्भव नहीं है ।
इस प्रकार लक्ष्य निर्धारण या नीति निर्धारण ही प्रशासनिक व्यवहार का प्रमुख आधार है ।