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Read this article in Hindi to learn about:- 1. Meaning and Definitions of Budget 2. Importance of Budget 3. Types 4. Budgetary Process in India.
बजट का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Budget):
‘बजट’ (Budget) शब्द की व्युत्पत्ति फ्रांसीसी भाषा के शब्द ‘बूजट’ (Bougette) से हुई है जिसका अर्थ है ‘चमड़े का थैला’ । इंग्लैण्ड में सन् 1933 में जब वित्त मन्त्री सर रॉबट वॉलपोल ने अपनी वित्तीय योजना को लोकसभा के समक्ष रखने के लिये उस थैले को खोला जिसमें योजना वाला कागज था तब व्यंग्य से पहली बार किसी ने कहा था कि वित्तमन्त्री ने ‘बजट’ खोला । तब से वित्तीय विवरण-पत्र को बजट कहा जाने लगा ।
प्रो. विलोबी के मतानुसार- ”बजट सरकारी आय-व्यय का अनुमान तथा एक प्रस्ताव है । यह एक ऐसा लेख-पत्र है जिसके माध्यम से कार्यपालिका व्यवस्थापिका के सम्मुख आती है और विस्तार के साथ अतीत, वर्तमान तथा भविष्य की वित्तीय स्थिति का प्रतिवेदन प्रस्तुत करती है ।”
जोजेफ पोइस (Joseph Pois) के अनुसार- ”बजट एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक सरकारी अभिकरण की वित्तीय नीति निर्धारित और संचालित की जाती है ।”
लेनॉय ब्युलियो के शब्दों में- ”बजट एक निश्चित अवधि के अन्तर्गत होने वाली अनुमानित प्राप्तियों तथा व्ययों का एक विवरण है ।”’
जी. जेज ने बजट को परिभाषित करते हुए लिखा है- ”यह सम्पूर्ण सरकारी प्राप्तियों एवं व्ययों का एक पूर्वानुमान तथा अनुमान है । यह कुछ प्राप्तियों का संग्रह करने तथा कुछ का व्यय करने का एक आदेश है ।” रीन स्टोर्म के कथनानुसार- ”बजट एक लेख-पत्र है जिसमें सरकारी आय और व्यय की एक प्रारम्भिक अनुमोदित योजना रहती है ।”
बजट की विशेषताएं (Importance of Budget):
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर बजट की निम्नलिखित विशेषताएं दृष्टिगोचर होती हैं:
(1) बजट कार्यपालिका द्वारा सम्पादित प्रशासनिक व आर्थिक कार्यों का एक सन्तुलित विवरण है ।
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(2) सरकारी नीतियों को अभिव्यक्त करने का एक प्रशासनिक प्रयास है ।
(3) प्रशासकीय कार्यों के संचालन हेतु आय-व्यय का एक सन्तुलित मसौदा है ।
(4) कार्यपालिका को व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायित्व का बोध कराता है ।
(5) व्यवस्थापिका की स्वीकृति के बाद ही बजट को स्वीकृत माना जाता है ।
बजट के प्रकार (Types of Budget):
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सामान्यतया तीन प्रकार के बजटों का उल्लेख किया जाता है:
(1) व्यवस्थापिका प्रणाली का बजट (Legislative Type Budget):
जब व्यवस्थापिका के द्वारा कायपालिका की प्रार्थना पर एक समिति की सहायता से बजट तैयार किया जाता है तब ‘व्यवस्थापिका प्रणाली का बजट’ कहलाता है । बजट तैयार होने पर उसकी स्वीकृति का अधिकार भी व्यवस्थापिका को प्राप्त होता है ।
(2) कार्यपालिका प्रणाली का बजट (Executive Type Budget):
इसमें बजट कार्यपालिका द्वारा तैयार किया जाता है तथा व्यवस्थापिका की स्वीकृति मिल जाने के बाद कार्यपालिका ही इसे लागू करती है । यह प्रणाली सर्वाधिक लोकप्रिय है ।
(3) मण्डल अथवा आयोग प्रणाली का बजट (Board or Commission Type Budget):
इस प्रणाली बजट का निर्माण एक मण्डल अथवा आयोग द्वारा किया जाता है ।
इसमें या तो केवल प्रशासनिक अधिकारी होते हैं या फिर प्रशासनिक एवं विधायी दोनों संयुक्त रूप से होते हैं ।
भारत में बजट सम्बन्धी प्रक्रिया (Budgetary Process in India):
बजट सम्बन्धी प्रक्रिया को तीन भागों में बाँटा जा सकता है:
(1) बजट निर्माण,
(2) बजट का विधानमण्डल द्वारा अनुमोदन,
(3) बजट का कार्यान्वयन ।
(1) बजट निर्माण या तैयारी (Preparation of Budget):
भारत में बजट निर्माण का उत्तरदायित्व ‘वित्त मन्त्रालय’ को सौंपा जाता है । इसके साथ ही बजट निर्माण में प्रशासनिक मन्त्रालय, योजना आयोग एवं ‘नियन्त्रक व महालेखा परीक्षक’ की भी उल्लेखनीय भूमिका रहती है ।
भारत में वित्तीय वर्ष 1 अप्रैल को प्रारम्भ होकर 31 मार्च को समाप्त होता है । बजट अनुमान तैयार करने की शुरुआत वित्त मन्त्रालय द्वारा जुलाई या अगस्त माह में ही हो जाती है । इस हेतु विभागाध्यक्षों को व्ययों का प्राक्कलन तैयार करने हेतु एक प्रपत्र (Form) भेजा जाता है ।
विभागाध्यक्षों द्वारा ये प्रपत्र स्थानीय कार्यालयों में भेजे जाते हैं । इसके बाद स्थानीय कार्यालयों द्वारा भरकर भेजे गये प्रपत्र विभागाध्यक्ष एकीकृत करके वित्त मन्त्रालय को भेज देते हैं । एक-एक प्रतिलिपि ‘नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक’ के पास भेज दी जाती है । यह प्रक्रिया नवम्बर माह तक पूर्ण कर ली जाती है ।
प्रशासकीय मन्त्रालय द्वारा प्रेषित बजट अनुमानों को तीन वर्गों में बाँटा जा सकता है:
(i) स्थायी प्रभार (Standing Charges),
(ii) प्रचलित योजनाएँ (Continuing Schemes) एवं
(iii) नई योजनाएँ (New Schemes) ।
वित्त मन्त्रालय द्वारा इन प्राप्त अनुमानों को दो वर्गों में रखा जाता है- आय अनुमान एवं व्यय अनुमान । आय अनुमानों को भी दो भागों में बाँटा जाता है- राजस्व आय (विभिन्न करों से प्राप्त आय) एवं पूँजीगत आय (जनता से उधार एवं विदेशों से ऋण) ।
इसी प्रकार व्यय भी दो प्रकार का होता है- राजस्व व्यय एवं पूँजीगत व्यय । इस प्रक्रिया को पूरण कर लेने के बाद वित्त मन्त्रालय इन अनुमानों को मन्त्रिमण्डल के समक्ष रखता है । मन्त्रिमण्डल की स्वीकृति के बाद ये अनुमान विधेयक का रूप धारण कर लेते हैं तथा अनुमोदन हेतु संसद के समक्ष इनकी प्रस्तुति की जाती है ।
(2) विधानमण्डल की स्वीकृति (Approval by Legislature):
विधानमण्डल में बजट को स्वीकृति पाने के लिये निम्नलिखित चरणों से गुजरना होता है:
(i) बजट का प्रस्तुतिकरण (Presentation of the Budget):
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 112 के अन्तर्गत बजट को संसद की स्वीकृति हेतु ऐसे दिन प्रस्तुत किया जाता है जो दिन राष्ट्रपति द्वारा सुनिश्चित किया जाता है केन्द्रीय स्तर पर दो बजट होते हैं- सामान्य बजट एवं रेल बजट ।
रेल बजट, सामान्य बजट से एक सप्ताह पूर्व अर्थात् फरवरी माह के अन्तिम सप्ताह में प्रस्तुत किया जाता है । बजट प्रस्तुतिकरण से पूर्व यह निर्धारित करना आवश्यक होता है कि प्रस्तुत विधेयक सामान्य विधेयक है या वित्त विधेयक । उसी के अनुरूप विधेयक पारित करने की प्रक्रिया को अपनाया जाता है ।
(ii) बजट पर सामान्य चर्चा (General Discussion on Budget):
बजट से संबन्धित नीतियों व अनुमानों पर लगभग चार दिन तक सामान्य चर्चा चलती है इसमें कोई गम्भीर वाद-विवाद नहीं होता है वरन् बजट पर विरोधी दल के विचारों की जानकारी प्राप्त हो जाती है ।
(iii) अनुदानों हेतु माँगों पर मतदान (Vote on Demands for Grants):
प्रत्येक मन्त्रालय या विभाग द्वारा अपनी अनुमानित माँगे संसद के समक्ष प्रस्तुत करने पर लोकसभा अध्यक्ष उन्हें बारी-बारी से मतदान का अवसर देता है । इस प्रक्रिया में लगभग 25-26 दिन लग जाते हैं । इस दौरान मन्त्रियों से संसद में प्रश्न भी पूछे जाते हैं ।
(iv) विनियोग विधेयक पर विचार व पारित करना (Consideration and Approval of Appropriation Bill):
मतदान के उपरान्त माँगों को विधेयक के रूप में प्रस्तुत किया जाता है । यदि विनियोग विधेयक पारित नहीं होता है तो वह ‘अनुदान’ (Grant) नहीं बन सकता है । इस स्थिति में भारत की संचित निधि से कोई धन प्राप्त नहीं किया जा सकता है ।
(v) वित्त विधेयक पारित करना (Passing of the Money Bill):
संसद द्वारा विनियोग विधेयक पारित कर दिये जाने के बाद सरकार ‘वित्त विधेयक’ प्रस्तुत करती है । ‘विनियोग विधेयक’ केवल धन व्यय करने की अनुमति देता है, जबकि वित्त विधेयक द्वारा व्यय किये जाने वाले धन का प्रबन्ध होता है वित्त विधेयक पारित होने के बाद राज्यसभा में भेजा जाता है । राज्यसभा 14 दिन के अन्दर ही विचार-विमर्श कर संशोधनों के साथ लोकसभा में वापस भेज देती है । राष्ट्रपति के अनुमोदन के साथ ही यह अधिनियम बन जाता है ।
(3) बजट का कार्यान्वयन (Execution of Budget):
विधानमण्डल की स्वीकृति के बाद कार्यपालिका बजट की क्रियान्विति (निष्पादन) के सम्बन्ध में विचार-विमर्श करती है ।
बजट के क्रियान्वयन में निम्नलिखित प्रक्रियाओं से गुजरना होता है:
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(i) ‘वित्तीय स्रोतों का एकत्रीकरण’ इस दिशा में सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है ।
‘केन्द्रीय राजस्व बोर्ड’ (Central Board of Revenue) द्वारा समस्त वित्तीय स्रोतों का संकलन किया जाता है । कुछ अन्य विभागों द्वारा भी यह कार्य किया जाता है ।
(ii) वित्तीय स्रोतों के एकत्रीकरण के बाद इन निधियों की सुरक्षा का प्रश्न उभरकर सामने आता है । भारत में निधि सुरक्षा का कार्य ‘राजकोष व्यवस्था’ (Treasure System) द्वारा किया जाता है । यहाँ लगभग 300 राजकोष एवं 1,200 उप-राजकोष हैं । बाद में सरकारी निधियों को ये कार्यालय ‘रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया’ अथवा ‘स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया’ में जमा करा देते हैं ।
(iii) विनियोग विधेयक पारित होने पर विभागाध्यक्ष धन प्राप्ति का अथवा भुगतान का अधिकार प्राप्त कर लेते हैं । भुगतान राजकोष, उप-राजकोष या अधिकृत बैंक की शाखा के माध्यम से किया जाता है । भुगतान करने वाली संस्था में विभाग का खाता होना आवश्यक होता है ।
(iv) सरकारी आय-व्यय की समुचित देख-रेख हेतु सभी आँकडों का लेखांकन अति आवश्यक होता है । यह इस तथ्य का द्योतक होता है कि सरकारी धन का प्रयोग वैधानिक ढंग से किया गया है ।