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Read this article in Hindi to learn about the classical approach to organisation along with its criticism.
इस दृष्टिकोण को ‘परम्परावादी’ एवं ‘संरचनात्मक’ आदि नामों से भी जाना जाता है । इस दृष्टिकोण के समर्थकों में प्रमुख हैं- लूथर गुलिक, हेनरी फेयोल, उर्विक, मेरी पार्कर फॉलेट, जे. डी. मूने, रेले, गिलब्रेथ आदि । शास्त्रीय दृष्टिकोण के अनुसार संगठन का अर्थ है- एक ऐसा औपचारिक ढाँचा जिसकी रचना विशेषज्ञों द्वारा स्पष्ट नियमों एवं सिद्धान्तों के आधार पर की जाती है इस उपागम की रगर प्रमुख विशेषताएँ हैं कार्य-विभाजन पदसोपान, निर्वेयक्तिक्तता तथा कार्य-कुशलता ।
इस संगठन की दो प्रमुख मान्यताएँ इस प्रकार हैं: प्रथम संगठन के मौलिक सिद्धान्त इतने सर्वविदित हैं कि उद्देश्य की पूर्ति हेतु विशेषज्ञों द्वारा योजना बनाना सम्भव होता है । द्वितीय कर्मचारियों की नियुक्ति से पूर्व संगठन की योजना पर विचार किया जाना चाहिये यह ध्यान रखना चाहिये कि क्या कर्मचारी संगठन की आवश्यकताओं के अनुरूप हैं ।
यान्त्रिक दृष्टिकोण संगठन को एक मशीन के समान मानता है । जिस प्रकार एक मशीन का संचालन स्वेच्छापूर्वक किया जा सकता है उसी प्रकार संगठन की रचना व प्रयोग भी स्वेच्छा पर अवलम्बित होता है । जिस प्रकार मशीन में दाँते होते हैं उसी प्रकार संगठन में कर्मचारी होते हैं । इस दृष्टिकोण में व्यक्ति की तुलना में संगठन को अधिक महत्व दिया जाता है । यह दृष्टिकोण अवैयक्तिक है जिसमें दक्षता पर अत्यधिक बल दिया जाता है ।
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हेनरी फेयोल ने संगठन के अन्तर्गत पाँच सिद्धान्तों को अत्यन्त महत्वपूर्ण बताया:
योजना (Planning), संगठन (Organization), आदेश (Command), समन्वय (Co-Ordination) तथा नियन्त्रण (Control) । ये पाँच सिद्धान्त हेनरी फेयोल द्वारा प्रस्तुत उन 14 सिद्धान्तों का एक हिस्सा है जिन्हें सार्वभौमिक माना गया है । उनकी कृति ‘सामान्य और औद्योगिक प्रशासन’ (General and Industrial Relation) इस क्षेत्र में एक उल्लेखनीय रचना है ।
एल. उर्विक ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘प्रशासन के तत्व’ (The Elements of Administration) में संगठन के इस परम्परागत दृष्टिकोण पर विस्तार से विचार व्यक्त किये हैं । इसी प्रकार लूथर गुलिक एवं एलउर्विक द्वारा सम्पादित ‘प्रशासन विज्ञान पर लेख’ (Papers on the Science of Administration) में भी शास्त्रीय दृष्टिकोण का अत्यन्त व्यापक विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है । लूथर गुलिक ने संगठन के सिद्धान्तों को ‘पोस्टकॉर्ब’ (POSDCORB) नामक शब्द में संगृहीत किया ।
आलोचना (Criticism):
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आलोचकों के अनुसार यह दृष्टिकोण अत्यन्त संकीर्ण है । इसमें वर्णित सिद्धान्त कहावतें मात्र हैं जिनसे लोक प्रशासन के सम्बन्ध में सही जानकारी प्राप्त नहीं होती है इस दृष्टिकोण में लोक प्रशासन को कोई वांछित मार्गदर्शन भी प्राप्त नहीं होता है ।
एक आरोप यह लगाया जाता है कि इसमें ‘मानवीय तत्व’ की उपेक्षा की गई है किसी भी संगठन की वास्तविक प्रकृति को केवल यान्त्रिक ढाँचे के अध्ययन मात्र से ही नहीं समझा जा सकता है संगठन में कार्यरत व्यक्तियों से सम्बन्धित विस्तृत जानकारी प्राप्त होना भी नितान्त अपरिहार्य है संगठन मनुष्यों के लिये होता है ।
अत: मनुष्यों की तुलना मशीनों के पुर्जों से करना भी उचित नहीं है ।
उपर्युक्त आलोचनाओं के बावजूद भी प्रशासन के क्षेत्र में ‘शास्त्रीय अथवा यान्त्रिक दृष्टिकोण’ के योगदान की उपेक्षा नहीं की जा सकती है इस दृष्टिकोण में सर्वप्रथम इस बात पर बल दिया गया कि प्रशासन को एक स्वतन्त्र क्रिया मानकर उसका बौद्धिक अन्वेषण किया जाना चाहिये ।
इससे सत्ता प्रत्यायोजन एवं उत्तरदायित्व के विषय में भी स्पष्ट चिन्तन आरम्भ हुआ औद्योगिक संगठन में उत्पादन को संगठन का आधार बनाने में इस दृष्टिकोण ने उल्लेखनीय भूमिका निभाई । इस दृष्टिकोण की कमियों ने संगठन एवं उसके व्यवहार के सम्बन्ध में अनुसन्धान का मार्ग प्रशस्त किया । इस प्रकार संगठन सम्बन्धी अन्य दृष्टिकोणों एवं विचार धाराओं के लिये यह ‘मील का पत्थर’ सिद्ध हुआ ।