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Read this article in Hindi to learn about:- 1. Meaning and Definitions of Communication 2. Organs of Communication Process 3. Types 4. Chief Traits 5. Hindrances 6. Suggestions.
Contents:
- संचार का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Communication)
- संचार प्रक्रिया के अंग (Organs of Communication Process)
- संचार (सम्प्रेषण) के प्रकार (Types of Communication)
- प्रभावी संचार के प्रमुख लक्षण (Chief Traits of Effective Communication)
- संचार-व्यवस्था के मार्ग की बाधाएँ (Hindrances in the Communication System)
- संचार बाधाओं के निराकरण हेतु सुझाव (Suggestions to Overcome Communication Hindrances)
1. संचार का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Communication):
प्रशासनिक व्यवहार के अन्तर्गत अन्य तत्वों के समान संचार भी एक अत्यन्त आवश्यक प्रक्रिया है । संचार (सम्प्रेषण) की उचित व्यवस्था के अभाव में कोई भी संगठन प्रभावशाली ढंग से कार्य नहीं कर सकता है । यही कारण है कि सम्प्रेषण को ‘प्रशासन का प्रथम सिद्धान्त’ माना जाता है ।
प्रभावशाली सम्प्रेषण के अभाव में संगठन के अन्तर्गत न तो सहयोग व समन्वय की अपेक्षा की जा सकती है और न ही सफलता की कोई आशा होती है । संगठन में संचार व्यवस्था के द्वारा ही एक स्तर का दूसरे स्तर से, कर्मचारियों का पारस्परिक तथा कर्मचारियों व अधिकारियों का एक-दूसरे से सम्पर्क स्थापित हो पाता है । विचारों का आदान-प्रदान सम्भव हो पाता है । सूचना का आदान-प्रदान समयानुसार होने से संगठन की प्रक्रिया सुचारु रूप से चलती है ।
‘संचार’ शब्द की व्युत्पत्ति अंग्रेजी भाषा के ‘कम्युनिकेशन’ ‘Communication’ से हुई है । यह लैटिन शब्द ‘Communies’ से निर्मित है जिसका अभिप्राय ‘Common’ (सामान्य) से है । इसकी अभिव्यक्ति इस रूप में की जा सकती है कि संचार एक ऐसी व्यवस्था है जो लोगों को उनके उद्देश्यों प्रयासों एवं हितों को सामान्य दृष्टिकोण प्रदान करता है । लोक प्रशासन के क्षेत्र में ‘संचार’ का अर्थ व्यापक रूप में लिया जाता है ।
विभिन्न विद्वानों के द्वारा संचार की परिभाषाएँ अग्रलिखित रूपों में प्रस्तुत की गई हैं:
मिलेट के अनुसार- ”सम्प्रेषण किसी साझे के प्रयोजन की साझा समझ है ।”
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थियो हेमेन लिखते हैं- “संचार एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को सूचनाएं एवं समझ हस्तान्तरित करने की प्रक्रिया है ।”
लुई ए. एलेन के मतानुसार- “संचार एक व्यक्ति के मस्तिष्क को दूसरे व्यक्ति के मस्तिष्क से जोड़ने वाला पुल है । इसके अन्तर्गत कहने, सुनने तथा समझने की एक व्यवस्थित एवं अनवरत प्रक्रिया सम्मिलित है ।”
न्यूमैन व समर के कथनानुसार- ”संचार दो या दो से अधिक व्यक्तियों के तथ्यों विचारों सम्मतियों अथवा भावनाओं का पारस्परिक आदान-प्रदान है ।”
टीड ने अपने विचार इस प्रकार व्यक्त किये- ”सम्प्रेषण का मूल समान विषयों पर मस्तिष्कों में मेल स्थापित करना है ।”
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साइमन ने लिखा है- ”प्रचार के रूप में सम्प्रेषण को किसी भी ऐसी प्रक्रिया के रूप में परिवर्तित किया जा सकता है जिसके द्वारा निर्णयों को संगठन के एक सदस्य से दूसरे सदस्य तक पहुँचाया जा सके ।”
एफ. जी. मेयर के शब्दों में- “मानवीय विचारों और सम्मतियों का शब्दों पत्रों एवं सन्देशों के माध्यम से आदान-प्रदान ही संचार है ।”
मिलेट ने संचार को ‘प्रशासकीय संगठन की रक्तधारा’ तथा पिफनर ने संचार को ‘प्रशासकीय प्रबन्ध का हृदय’ कहा है ।
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि संचार विचारों, भावनाओं, इच्छाओं आदि के व्यक्तियों के मध्य विनिमय की एक प्रमुख विधि है ।
2. संचार प्रक्रिया के अंग (Organs of Communication Process):
संचार प्रक्रिया के प्रमुख अंग निम्नलिखित हैं:
(1) संवाद प्रेषक अथवा संवाददाता (Communicator)- सर्वप्रथम संवाददाता द्वारा संवाद भेजा जाता है ।
(2) संवाद (Message)- संवाद से तात्पर्य उस सन्देश से है जो कि संवाददाता द्वारा भेजा जाना है । यह आदेश, सुझाव, निवेदन, प्रस्ताव, शिकायत किसी भी रूप में हो सकता है ।
(3) माध्यम (Media)- संवाद को भेजने के लिये मौखिक, लिखित, सांकेतिक आदि किसी भी माध्यम को अपनाया जा सकता है ।
(4) संवाद प्राप्तकर्ता (Message Receiver)- जिसके पास संवाद भेजा जाता है वह उसे प्राप्त करता है । ऐसा न होने पर संचार-कार्य अपूर्ण माना जाता है ।
(5) प्रतिक्रिया (Reaction)- यदि संवाद प्राप्त होने के बाद प्राप्तकर्ता निर्देशों के अनुसार कार्य नहीं करता है तो संचार प्रभावहीन कहलाता है ।
3. संचार (सम्प्रेषण) के प्रकार (Types of Communication):
संचार अथवा सम्प्रेषण के प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं:
(1) आन्तरिक एवं बाह्य संचार (Internal and External Communication):
संगठन के अन्दर होने वाले संचार को ‘आन्तरिक’ संचार कहते हैं यह संगठन के विभिन्न स्तरों के मध्य होता है । बाह्य संचार संगठन के बाहर के घटकों के साथ होता है ।
(2) उर्ध्वमुखी व अधोमुखी संचार (Upward and Downward Communication):
संगठन के कर्मचारी जब अपनी बात अपने अधिकारी तक ऊपर के स्तरों की ओर पहुँचाते हैं तो इसे ‘उर्ध्वमुखी’ संचार कहा जाता है । यह मौखिक या लिखित आवेदनों, प्रार्थना-पत्रों आदि के रूप में हो सकता है । इसी प्रकार जब अधिकारी अपने सन्देश को नीचे की ओर अधीनस्थों (Subordinates) तक पहुँचाता है तो इसे ‘अधोमुखी’ संचार कहते हैं । यह आदेश निर्देश एवं विज्ञप्तियों आदि के रूप में होता है । इस प्रकार सम्प्रेषण व्यवस्था एक ‘दुतरफा यातायात’ (Two-Way Traffic) के समान है ।
(3) लिखित व मौखिक संचार (Written or Oral Communication):
लिखित संचार में सूचनाएँ लिखकर भेजी जाती हैं । इसके प्रमुख साधन हैं- समाचार-पत्र, मैगजीन, डायरियाँ, पत्रिकाएँ, पुस्तिकाएं आदि ।
लिखित सम्प्रेषण के निम्नलिखित लाभ हैं:
(i) जटिल सूचनाएँ प्रेषित करने के लिये यह विधि अधिक उपयुक्त है ।
(ii) प्रमाण के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है ।
(iii) दोनों पक्षों अर्थात् प्रेषक एवं प्राप्तकर्त्ता की उपस्थिति अनिवार्य नहीं होती है ।
लिखित सम्प्रेषण के कतिपय दोष भी हैं । इसमें धन व समय का अधिक अपव्यय होता है । इसमें गोपनीयता का अभाव रहता है तथा लाल फीताशाही (Red Tapism) को प्रोत्साहन मिलता है ।
मौखिक सम्प्रेषण में सन्देश बोलकर ही अर्थात् मौखिक रूप से सम्प्रेषित किये जाते हैं । इसमें प्रेषक (Sender) व प्राप्तकर्त्ता (Receiver) एक-दूसरे के सामने होते हैं । मौखिक सम्प्रेषण के प्रमुख साधन हैं- रेडियो, टेलीविजन साक्षात्कार विचार-विमर्श सभाएँ आदि ।
मौखिक संचार के प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं:
(i) समय व धन की बचत,
(ii) सरलता से समझने योग्य,
(iii) संकटकाल में उपयोगी विधि,
(iv) पारस्परिक सद्भाव पर आधारित ।
मौखिक सम्प्रेषण का प्रमुख दोष यह है कि उसकी पुन: प्रस्तुति सम्भव नहीं है । यह निर्णय करना कठिन है कि मौखिक व लिखित सम्प्रेषण में कौन-सा अधिक उपयुक्त है ? वस्तुत: यह आवश्यकता एवं परिस्थितियों पर ही निर्भर करता है ।
(4) औपचारिक व अनौपचारिक संचार (Formal and Informal Communication):
औपचारिक संचार में प्रेषक व प्राप्तकर्त्ता के सम्बन्ध सुनिश्चित होते हैं । इस प्रकार का संचार संगठन की आचार संहिता के अनुसार होता है । यह अधिकतर लिखित रूप में होता है । इसमें सम्प्रेषण की एक ही शृंखला होने के कारण प्रबन्धक का कार्यभार बढ़ जाता है ।
डॉ. बी. एल. फड़िया ने औपचारिक संचार के निम्नलिखित प्रकार बताये हैं:
(a) शृंखला नेटवर्क (Chain Network)- इसमें सूचना व सन्देश केवल ऊपर या नीचे जा सकते हैं ।
(b) सितारा नेटवर्क (Star Network)- इसमें सूचना व सन्देश एक केन्द्रीय बिन्दु से प्रत्येक दिशा में प्रवाहित होते हैं । इसे ‘व्हील नेटवर्क’ (Wheel Network) भी कहा जाता है ।
(c) वृत्त नेटवर्क (Circle Network)- इसमें सूचना व सन्देश समूह सदस्यों के बीच दायें या बायें ही भेजे जा सकते हैं ।
(d) सभी मार्ग नेटवर्क (All Channel Network)- समूह के सभी सदस्य एक दूसरे से सक्रिय रूप में जुड़े रहते हैं यह एक विकेन्द्रित व्यवस्था है ।
किसी भी प्रशासनिक संगठन में अनौपचारिक संचार सर्वाधिक महत्वपूर्ण होता है । अनौपचारिक सम्प्रेषण (संचार) सदैव अलिखित होता है । प्राय: संगठन के सदस्य अपने छोटे-छोटे समूह या क्लब बना लेते हैं जहाँ वे स्वेच्छापूर्वक एक-दूसरे से मिलते व बातचीत करते हैं । अपने औपचारिक पदों को भूलकर वे सामाजिकता के नाते एक-दूसरे से मिलते-जुलते हैं ।
4. प्रभावी संचार के प्रमुख लक्षण (Chief Traits of Effective Communication):
प्रभावी संचार की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
(1) सम्प्रेषण प्रक्रिया में उचित समय का ध्यान रखना परमावश्यक है ।
(2) सन्देश की भाषा सरल व बोधगम्य होनी चाहिये ।
(3) प्रेषित किये गये सन्देश का उद्देश्य प्रेषक एवं प्राप्तकर्ता दोनों को स्पष्ट होना चाहिये ।
(4) प्रभावी संचार के लिये उचित माध्यम का चयन भी परमावश्यक है ।
(5) एकमार्गीय संचार की अपेक्षा द्विमार्गी (Two ways) संचार अधिक अच्छा माना जाता है ।
(6) अधीनस्थों द्वारा सम्प्रेषित उपयोगी सुझावों को स्वीकार करना चाहिये तथा उनके द्वारा की गई आलोचनाओं को सहन करना चाहिये ।
(7) संचार की विषयवस्तु की समग्र जानकारी एकत्रित कर तथा सभी दृष्टिकोणों से उसका विश्लेषण कर तभी सन्देश प्रेषित करना चाहिये ।
(8) प्रभावी संचार के लिये उदाहरणों व चित्रों का भी प्रयोग किया जाना चाहिये ।
5. संचार-व्यवस्था के मार्ग की बाधाएँ (Hindrances in the Communication System):
संचार या सम्प्रेषण के मार्ग में सामान्यतया निम्नलिखित बाधाएँ आती हैं:
(1) संचार के मार्ग में प्रथम बाधा भाषा की जटिलता से सम्बन्धित होती है । जिस भाव से सन्देश भेजा जाता है कई बार उसी अर्थ में प्राप्त नहीं हो पाता है तथा कई बार दोहरे अर्थ (Double Meaning) की भी समस्या आती है ।
(2) संगठन का आकार भी संचार मार्ग में बाधाएँ उत्पन्न कर सकता है ।
(3) संगठन में सीमित कर्मचारी होने पर संचार सरल तथा कर्मचारी व शाखाओं की संख्या बढ़ने पर संचार प्रक्रिया में रुकावटें आने लगती हैं ।
(4) संगठन में आधुनिकतम संचार साधन होने पर संचार अत्यधिक प्रभावी होता है, किन्तु कुछ संगठन ऐसे होते हैं जहाँ दूरभाष की भी सुविधा उपलब्ध नहीं है । इस प्रकार साधनों का अभाव प्रभावी संचार के मार्ग में बाधाएं उत्पन्न करता है ।
(5) कुछ संगठनो में अधिकारियों व अधीनस्थों के मध्य मानवीय सम्बन्ध नहीं होते हैं । ऐसे संगठनो में एकरूपता समन्वय एवं पारस्परिक समझ आदि तत्वों का अभाव रहता है । ऐसे में संचार का अनुकूल प्रभाव उत्पन्न नहीं हो पाता है ।
(6) संचार व्यवस्था में प्रेषक व प्राप्तकर्ता के मध्य मनोवैज्ञानिक मतभेद उत्पन्न होने पर भी संचार में बाधा उत्पन्न होती है ।
(7) तकनीकी बाधा से भी संचार की सुचारु व्यवस्था में अवरोध उत्पन्न होता है ।
6. संचार बाधाओं के निराकरण हेतु सुझाव (Suggestions to Overcome Communication Hindrances):
संचार-व्यवस्था के मार्ग में उत्पन्न होने वाली बाधाओं के निराकरणार्थ निम्नलिखित सुझाव कारगर सिद्ध हो सकते हैं:
(1) सन्देश प्रेषक को पहले अपनी सूचना की यथार्थता की जाँच कर लेनी चाहिये । तदुपरान्त संचरित की गई सूचना स्पष्ट व सरल भाषा में होनी चाहिये ।
(2) सूचनाओं के तथ्य एक-दूसरे के विरोधी नहीं होने चाहिये तथा सूचनाएँ प्रेषित करते समय क्रमबद्धता का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिये ।
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(3) संगठन के सभी स्तरों पर कर्मचारियों के मध्य मधुर सम्बन्धों का विकास किया जाना चाहिये ।
(4) सन्देश की प्रकृति को दृष्टिगत रखते हुए ही संचार माध्यम का चयन किया जाना चाहिये ।
(5) सन्देश प्रेषित करते समय न्यायोचितता एवं समय की अनुकूलता का ध्यान रखना भी परमावश्यक होता है ।
(6) सम्प्रेषण के दौरान अनुकूल वातावरण का भी निर्माण आवश्यक है ।
(7) संचार समुचित तथा प्राप्तकर्ता की आकांक्षाओं के अनुरूप होना चाहिये ।