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Read this article in Hindi to learn about:- 1. Meaning and Definitions of Decision Making 2. Characteristics of Decision-Making 3. Process 4. Types.
निर्णय निर्माण का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Decision Making):
प्रशासनिक व्यवहार का एक अन्य पक्ष है- निर्णय निर्माण अथवा निर्णय प्रक्रिया प्रशासनिक व्यवहार प्रशासन के गत्यात्मक पक्ष की प्रस्तुति करता है और निर्णय प्रक्रिया के अभाव में कोई भी प्रशासनिक संगठन गतिशील नहीं हो सकता है निर्णय शक्ति के अभाव में किसी भी प्रशासक के अन्य गुण महत्वहीन प्रतीत होते हैं ।
जैसा कि टेरी ने भी लिखा है कि- ”प्रशासकों का जीवन ही निर्णय लेना है । यदि प्रशासक की कोई सार्वभौमिक पहचान है तो वह है उसका निर्णय लेना ।”
निर्णय प्रक्रिया जितनी महत्वपूर्ण होती है उतनी ही जटिल भी होती है । यही कारण है कि प्रशासनिक क्षेत्र में लोग विशेष रूप से निर्णय लेने में संकोच करते हैं क्योंकि कोई भी गलत निर्णय देश या सार्वजनिक हित के लिये घातक सिद्ध हो सकता है । इसके अतिरिक्त, प्रशासनिक निर्णयों के द्वारा हर किसी को प्रसन्न कर पाना एक अत्यन्त दुष्कर कार्य है ।
‘निर्णयन’ का शाब्दिक अर्थ है- ‘अन्तिम परिणाम पर पहुँचना’, जबकि व्यावहारिक दृष्टिकोण से इसका अर्थ है ‘निष्कर्ष पर पहुँचना ।’
आर. ए. विलियम्स (R.A. Williams) के अनुसार- ”निर्णयन विभिन्न विकल्पों के चुनाव की एक सरलतम विधि है ।”
जॉर्ज आर. टेरी (George R. Tarry) के शब्दों में- ”निर्णयन किसी एक कसौटी पर आधारित दो या दो से अधिक सम्भावित विकल्पों में से एक का चयन है ।”
डॉ. जे. सी. ग्लोवर (Dr. J. C. Glower) के मतानुसार- ”चयनित विकल्पों में से किसी एक के सम्बन्ध में निर्णय करना ही निर्णयन है ।”
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मैक्फारलैण्ड (MacFarland) लिखते हैं- ”निर्णय लेना चयन की एक क्रिया है जिसके अन्तर्गत प्रबन्धक दी हुई परिस्थिति में इस निर्णय पर पहुँचता है कि क्या किया जाना चाहिये ? निर्णय किसी व्यवहार का प्रतिनिधित्व करता है जिसका चयन अनेक सम्भव विकल्पों में से किया जाता है ।”
शेकल (Shakal) के शब्दों में- ”निर्णय लेना रचनात्मक मानसिक क्रिया का वहबिन्दु हैजहाँ पर कार्य के लिये ज्ञान, विचार, भावना तथा कल्पना का संयोग होता है ।”
लुण्डबर्ग (Lundburg) के अनुसार- ”प्रशासकीय निर्णय एक प्रक्रिया है जिसमें एक व्यक्ति संगठन के दूसरे व्यक्तियों के व्यवहार को प्रभावित करने के लिये एक निर्णय लेता है जिससे कि वे व्यक्ति संगठन के लक्ष्यों को प्राप्त करने में अपना योग दे सकें ।”
वेब्सटर शब्दकोश (Webster Dictionary) के अनुसार- निर्णय करने का अर्थ है, “अपने मन में यह निश्चय कर लेना कि क्या अभिमत देना है या क्या कार्यवाही करनी है ?”
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हरबर्ट साइमन (Herbert Simon) के अनुसार- ”निर्णयन में तीन प्रमुख अवस्थाएँ होती हैं- निर्णय लेने के अवसरों को ज्ञात करना, सम्भावित कार्य मार्गों का पता लगाना तथा कार्य मार्गों में से चयन करना ।”
संक्षेप में, जटिलतम तथा परस्पर गुँथी हुई परिस्थितियों के अन्तर्गत उपलब्ध विकल्पों में से संगठन की क्षमतानुसार एक श्रेष्ठ विकल्प को चुनने तथा उसे प्रभावी ढंग से कार्य का रूप प्रदान करने को ही ‘निर्णयन’ कहा जाता है ।
निर्णयन के लक्षण या विशेषताएँ (Characteristics of Decision-Making):
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर ‘निर्णयन’ अथवा ‘निर्णय प्रक्रिया’ के निम्नलिखित लक्षण दृष्टिगत होते हैं:
(1) ‘निर्णयन’ एक मानवीय प्रक्रिया है जिसमें विभिन्न विकल्पों (Alternatives) में से किसी एक का चयन किया जाता है ।
(2) सर्वश्रेष्ठ विकल्प को चुनने की पूर्ण स्वतन्त्रता होती है ।
(3) अन्तिम विकल्प का चयन करने से पूर्व के सभी आवश्यक कार्य सम्पादित किये जाते हैं ।
(4) निर्णय स्थापित लक्ष्यों के आधार पर किया जाता है । निर्णयकर्त्ता अपने विवेक, कल्पनाशक्ति एवं भावनाओं का संयुक्त प्रयोग करता है ।
(5) निर्णय लक्ष्य प्राप्ति का एक साधन है । इसमें परिस्थितियों के साथ परिवर्तन होता रहता है ।
(6) निर्णय प्रक्रिया में समय का अत्यधिक महत्व होता है । जो व्यक्ति शीघ्र निर्णय लेने की योग्यता से युक्त होता है उसे ‘कुशल निर्णयकर्ता’ माना जाता है ।
(7) निर्णयन में दृढ़ता होती है तथा वह ठोस वास्तविकताओं पर आधारित होता है ।
निर्णय निर्माण की प्रक्रिया (Process of Decision-Making):
प्रशासनिक क्षेत्र में निर्णय निर्माण या निर्णय प्रक्रिया के क्षेत्र में विद्वानों ने अपने पूथक्-पृथक् मत प्रस्तुत किये हैं । हरबर्ट साइमन ने निर्णय प्रक्रिया के तीन चरण बताये हैं, न्यूमैन व वारेन ने चार, ड्रकर ने पाँच तथा बेके ने निर्णय प्रक्रिया के ग्यारह चरणों का उल्लेख किया है ।
इन सभी विद्वानों के मतों के विश्लेषण के उपरान्त यह निष्कर्ष निकलता है कि ‘निर्णय निर्माण’ या ‘निर्णय प्रक्रिया’ के प्रमुख रूप से निम्नलिखित चरण होने चाहिये:
(1) लक्ष्य निर्धारण (Setting of Goals):
निर्णय निर्माण के प्रथम चरण में उद्देश्यों या लक्ष्यों का निर्धारण किया जाता है । प्रशासक को यह देखना होता है कि जनता के हित में अथवा सार्वजनिक कल्याण की दृष्टि से किन लक्ष्यों को प्राप्त करना है ।
(2) समस्या की व्याख्या (Explanation of the Problem):
इस चरण में यह जानने का प्रयास किया जाता है कि लक्ष्यों की प्राप्ति के मार्ग में कौन-कौन सी समस्याएँ हैं ? समस्याओं को जानने के उपरान्त उनकी व्याख्या की आवश्यकता होती है ।
(3) समस्या का विश्लेषण (Analysis of the Problem):
समस्या की व्याख्या के उपरान्त उसका विश्लेषण करना आवश्यक हो जाता है । छोटी समस्या का विश्लेषण सरल होता है किन्तु बड़ी समस्याओं को कई भागों में विभक्त करके प्रत्येक भाग का अलग-अलग विश्लेषण किया जाता है ।
(iv) वैकल्पिक समाधान (Alternative Solution):
समस्या-विश्लेषण के उपरान्त समाधान के उपाय खोजे जाते हैं तथा समाधान से सम्बन्धित विभिन्न तथ्यों एवं सूचनाओं के आधार पर विभिन्न विकल्प प्रस्तुत किये जाते हैं ।
(v) सर्वश्रेष्ठ विकल्प का चयन (Selection of the Best Alternative):
सभी वैकल्पिक समाधानों का विश्लेषण करने के उपरान्त यह जानने का प्रयास किया जाता है कि कौन सा विकल्प समस्या के समाधान हेतु सर्वाधिक कारगर सिद्ध हो सकता है ? विवेक संगत विश्लेषण के उपरान्त उस सर्वश्रेष्ठ विकल्प का चयन कर लिया जाता है ।
(vi) निर्णयों का क्रियान्वयन (Implementation of Decisions):
सर्वश्रेष्ठ विकल्प का चयन करने के बाद उसका प्रयोग समस्याग्रस्त क्षेत्र पर किया जाता है जिससे कि समाधान सम्भव हो सके कर्मचारियों से कार्य कराना उन पर नियन्त्रण रखना उनमें समन्वय भावना उत्पन्न करना निर्णय के प्रभावों का अनुमान लगाना आदि क्रियाएँ ‘निर्णय क्रियान्वयन’ का ही एक अंग हैं ।
(vii) निर्णय की प्रतिपुष्टि (Confirmation of Decision):
अन्तत: निर्णय के प्रभावों का मूल्यांकन किया जाता है यह जानने का प्रयास किया जाता है कि निर्णय की क्रियान्विति की क्या प्रतिक्रिया हो सकती है ? यही निर्णय प्रक्रिया का अन्तिम चरण है ।
निर्णयों के प्रकार (Types of Decisions):
किसी भी संगठन में लिये जाने वाले निर्णयों को निम्नलिखित वर्गों में विभक्त किया जा सकता है:
(1) कार्यात्मक तथा अकार्यात्मक निर्णय (Programmed and Non-Programmed Decisions):
हरबर्ट साइमन ने सभी प्रकार के निर्णयों को दो वर्गों में विभक्त किया है कार्यात्मक निर्णय तथा अकार्यात्मक निर्णय । साइमन कार्यात्मक निर्णयों में दिन-प्रतिदिन के उन निर्णयों को सम्मिलित करता है जिनको सम्पादित करने के लिये एक निश्चित कार्यक्रम निर्धारित किया जाता है । इसके विपरीत, अकार्यात्मक निर्णय किसी विशेष परिस्थिति के उत्पन्न होने पर लिये जाते हैं । इनमें कोई निश्चित विधि नहीं अपनाई जाती है ।
(2) दैनिक व आधारभूत निर्णय (Routine and Basic Decision):
जिन निर्णयों के विषय में कम सोच-विचार की आवश्यकता पड़ती है वे सामान्य प्रक्रिया के द्वारा लिये जाते हैं तथा ‘दैनिक निर्णयों’ की श्रेणी में आते हैं । ऐसे निर्णय लेने के लिये अधिक विवेक या ज्ञान की आवश्यकता नहीं होती है इसके अतिरिक्त बहुत सोच-विचार कर लिये गये निर्णय ‘आधार भूत निर्णयों’ की श्रेणी में आते हैं । ये निर्णय अत्यधिक महत्वपूर्ण तथा विवेक पर आधारित होते हैं । इस प्रकार के निर्णय उच्च श्रेणी के प्रशासकों द्वारा लिये जाते हैं ये निर्णय दीर्घकालीन प्रवृत्ति के होते हैं ।
(3) संगठनात्मक व एकीकृत निर्णय (Organizational and Personal Decisions):
चेस्टर आई. बर्नार्ड ने निर्णयों को संगठनात्मक एवं व्यक्तिगत निर्णयों में विभाजित किया है । जो निर्णय संगठन के परिप्रेक्ष्य में लिये जाते हैं वे ‘संगठनात्मक निर्णय’ कहलाते हैं ।
ऐसे निर्णय संगठन के उच्च स्तर से निम्न सार की ओर प्रवाहित होते हैं । इसके विपरीत व्यक्तिगत निर्णय वे होते हैं जो एक पदाधिकारी अपनी व्यक्तिगत स्थिति में लेता है न कि संगठन का सदस्य होने के नाते ।
(4) एकाकी व सामूहिक निर्णय (Individual and Collective Decisions):
‘एकाकी निर्णय’ वे होते हैं जो प्रशासन के क्षेत्र में एक ही व्यक्ति द्वारा लिये जाते है किन्तु प्रशासनिक क्षेत्र की जटिलताओं में निरन्तर वृद्धि के कारण अब निर्णय एक व्यक्ति द्वारा नहीं लिये जाते हैं ।
अब सामूहिक निर्णय अधिक लिये जाते हैं । मैक्फारलैण्ड के अनुसार ”समूह द्वारा किये गये निर्णय एक व्यक्ति द्वारा किये गये निर्णयों से अधिक अच्छे होते हैं ।”
(5) नियोजित व अनियोजित निर्णय (Planned and Unplanned Decision):
आर. ई. विलियम्स के अनुसार निर्णयों को दो श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है नियोजित व अनियोजित निर्णय । नियोजित निर्णय प्राय: तथ्यों पर आधारित होते हैं तथा उनके लिये वैज्ञानिक विधियाँ प्रयोग में लाई जाती हैं । अनियोजित निर्णय किसी विशेष परिस्थिति या समस्या के उत्पन्न होने पर अचानक ही लिये जाते हैं ।
(6) नीतिगत निर्णय व संचालन (क्रियान्वयन) सम्बन्धी निर्णय (Policy Based or the Decision Regarding Implementation):
संगठन या संस्था की नीतियों से सम्बन्धित निर्णय ‘नीतिगत निर्णय’ कहलाते हैं । ये निर्णय उन प्रशासक वर्ग द्वारा लिये जाते हैं, जबकि संचालन (क्रियान्वयन) सम्बन्धी निर्णय वे होते हैं जो कि निम्न प्रशासक वर्ग द्वारा लिये जाते हैं इनका सम्बन्ध संगठन के व्यावहारिक संचालन से होता है ।
(7) नीति, प्रशासकीय एवं कार्यकारी निर्णय (Policy Based, Administrative and Functional Decisions):
अर्नेस्ट डेल ने नीतियों को तीन श्रेणियों में विभक्त किया है:
(i) नीति निर्णय:
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संगठन के निर्माण से लेकर वित्तीय संरचना तथा संगठन से सम्बन्धित अन्य महत्वपूर्ण निर्णय इस श्रेणी में आते हैं । इस प्रकार के निर्णय उच्च प्रबन्धक वर्ग द्वारा लिये जाते हैं ।
(ii) प्रशासकीय निर्णय:
प्रशासकीय निर्णय मध्यम वर्ग के प्रबन्धकों द्वारा लिये जाते हैं । नीति सम्बन्धी निर्णयों की अपेक्षा ये कम महत्वपूर्ण होते हैं । ये नीतियों के क्रियान्वयन को आधार प्रदान करते हैं ।
(iii) कार्यकारी निर्णय:
कार्यकारी निर्णयों की श्रेणी में वे निर्णय आते हैं जो कि कार्य करते समय लिये जाते हैं ।