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Read this article in Hindi to learn about:- 1. Meaning and Characteristics of Department 2. Types of Department 3. Two System of Departmental Organization 4. Departmental Organization in the Government of India 5. Ministries and Departments under Indian Government.
विभाग : अर्थ एवं विशेषताएँ (Department: Meaning and Characteristics):
शाब्दिक दृष्टि से विभाग का अर्थ है- किसी बड़े संगठन या इकाई का अंग । प्रशासनिक क्षेत्र में विभाग से तात्पर्य उस बड़ी प्रशासनिक इकाई से है जो मुख्य कार्यपालिका के तत्काल अधीन होती है । मुख्य कार्यपालिका के अधीन समस्त प्रशासनिक कार्य को अनेक खण्डों में विभक्त कर दिया जाता है ।
जिन्हें ‘विभाग’ (Department) सात कहा जाता है लोक प्रशासन के विद्वानों ने विभाग की दो पहचान बताई हैं:
(i) यदि कोई इकाई प्रशासकीय पदसोपान के शीर्ष के निकट हो तथा उसके व मुख्य कार्यपालिका के बीच अन्य कोई इकाई न हो तो उसे विभाग कहेंगे ।
(ii) यदि वह इकाई मुख्य कार्यपालिका के अधीन तथा उसके प्रति उत्तरदायी हो, तो वह विभाग कहलायेगी ।
डॉ. एम. पी. शर्मा के शब्दों में- ”प्रशासकीय पदसोपान में विभाग ठीक मुख्य कार्यपालिका के अधीन होते हैं और सरकार का कार्य उनमें बँटा होता है । इस प्रकार यह प्रशासनिक पदसोपान में सर्वाधिक उच्च एवं सबसे बड़ी इकाई होती है ।”
डिमॉक तथा कोइंग के अनुसार- ”प्रशासन में श्रम-विभाजन की आवश्यकता विभागीय प्रणाली के जन्म का स्वाभाविक कारण है ।”
वर्तमान में विभाग के लिए प्रशासन, अभिकरण, समिति एवं परिषद् आदि शब्दों का भी प्रयोग किया जाने लगा है ।
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विभाग के अर्थ का स्पष्टीकरण करते हुए विलोबी लिखते हैं कि प्रशासकीय कार्य दो सिद्धान्तों के आधार पर गठित किये जाते हैं:
(i) स्वतन्त्र अथवा असम्बद्ध- इसमें प्रत्येक सेवा एक स्वतन्त्र इकाई होती है ।
(ii) एकीकृत अथवा विभागीय- इसमें एकसमान क्षेत्र वाली सभी सेवाओं को एक समष्टि के रूप में इकट्ठा कर लिया जाता है तथा पारस्परिक सहयोग हेतु ‘विभागों’ में बाँट दिया जाता है । इसमें सत्ता का सूत्र विभिन्न सेवाओं से विभागों द्वारा मुख्य कार्यपालिका तक प्रवाहित होता है । विलोबी ने विभागीय प्रणाली को हर दृष्टि से श्रेष्ठ माना है ।
इस प्रकार हम कह सकते है कि विभाग प्रशासन की मूल संगठनात्मक इकाई है जिस पर प्रशासकीय क्रियाओं के सम्पादन का दायित्व रहता है ।
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विभागों के प्रकार (Types of Department):
विभागीय संगठन के विभिन्न आधारों पर भिन्न-भिन्न रूप होते हैं जिनका संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है:
(i) आकार के आधार पर (On the Basis of Size):
विभागों को आकार के आधार पर छोटे व बड़े दो वर्गों में विभक्त किया जाता है । उदाहरणार्थ- भारत सरकार में सुरक्षा, रेलवे, डाक-तार बड़े विभागों को व्यक्त करते हैं, जबकि राज्य स्तर पर स्थानीय स्वशासन छोटे विभाग की प्रस्तुति है ।
(ii) संरचना के आधार पर (On the Basis of Structure):
बनावट या संरचना की दृष्टि से विभागों को एकात्मक व संघात्मक दो वर्गों में रखा जाता है । एकात्मक विभाग का संगठन एक ही लक्ष्य की प्राप्ति हेतु किया जाता है । जैसे- स्वास्थ्य, शिक्षा आदि । इसके विपरीत संघात्मक विभाग विधि भन प्रकार के कार्य सम्पन्न करने वाले संभागों से मिलकर बनता है ।
विभागाध्यक्ष सभी संभागों के कार्यों का विशेषज्ञ नहीं हो सकता है, अत: सभी संभागों को स्वायत्तता प्रदान की जाती है ।
(iii) कार्य की प्रकृति के आधार (On the Basis of Nature of Work):
इस आधार पर भी विभाग दो प्रकार के होते हैं एक तो वह जो कि स्वयं कार्य सम्पन्न करते हैं । जैसे- पुलिस विभाग, शिक्षा विभाग आदि । द्वितीय श्रेणी में वे विभाग आते हैं जो कि स्वयं कार्य सम्पन्न नहीं करते हैं वरन् समन्वयकारी भूमिका निभाते हैं । जैसे- सामान्य प्रशासन विभाग ।
(iv) भौगोलिक आधार पर (On the Basis of Geography):
भौगोलिक दृष्टि से भी विभाग दो प्रकार के होते हैं । प्रथम, जिनका कार्य क्षेत्र भौगोलिक दृष्टि से केन्द्रित होता है । दूसरे, जिनका कार्य भौगोलिक दृष्टि से बिखरा होता है । प्रथम श्रेणी के विभागों में कोई क्षेत्रीय अभिकरण नहीं होता है, जबकि दूसरी श्रेणी में अधिकांश कार्य क्षेत्रीय अभिकरणों से कराया जाता है ।
यद्यपि विभागों का संगठन कई आधारों पर किया जा सकता है तथापि अधिकांश विद्वानों के मतानुसार विभागीय संगठन के चार आधार स्वीकार किये जाते हैं:
(i) उद्देश्य (Purpose):
उद्देश्य से तात्पर्य उस प्रयोजन से है जिसे प्राप्त करने के लिए किसी संगठन की स्थापना की जाती है । कार्य या उद्देश्य को आ धार बनाने का अर्थ है कि विभागों का वर्गीकरण उन उद्देश्यों के आधार पर किया जाये जिनसे वे सेवाएँ प्रेरित हैं ।
उदाहरणार्थ- देश की सुरक्षा व्यवस्था को दृष्टिगत रखते हुए ‘प्रतिरक्षा विभाग’ शिक्षा के प्रबन्ध हेतु ‘शिक्षा विभाग’ आदि की स्थापना की जाती है । भारत सरकार के विभागों की स्थापना इसी प्रकार किन्हीं विशिष्ट उद्देश्यों को दृष्टिगत रखकर की गयी है ।
इन विभागों में उद्देश्य की समानता होने के कारण समन्वय (Co-Ordination) बना रहता है । कार्य में दोहरेपन (Duplication) की सम्भावना कुछ कम रहती है । यह प्रणाली जनता को भी सरलतापूर्वक समझ में आ जाती है तथा विभाग के कार्यों का मूल्यांकन करना भी सुविधाजनक रहता है किन्तु उद्देश्य के आधार पर गठित विभागीय पद्धति के कुछ दोष भी हैं जैसे कि उद्देश्य के अर्थ बहुत व्यापक हैं तथा इसकी कोई सर्वमान्य व्याख्या सम्भव नहीं है । साथ ही कार्य के कुछ पक्षों की अवहेलना होने की सम्भावना रहती है । अन्य विभागों के साथ सहयोग का अभाव बना रहता है ।
(ii) प्रक्रिया (Process):
इसके अन्तर्गत विशिष्ट सेवाओं के आधार पर विभागों के रूप में सेवाओं का वर्गीकरण किया जाता है । विभागों के कर्मचारी अपने कार्य के विशेषज्ञ होते हैं । भारत सरकार में विशेष प्रक्रिया से युक्त ऐसे विभागों के उदाहरण इस प्रकार हैं – परमाणु ऊर्जा विभाग, न्याय विभाग, विज्ञान व तकनीकी विभाग आदि ।
प्रक्रिया के आधार पर विभागीय संगठन के महत्व पर प्रकाश डालते हुए डॉ. एम. पी. शर्मा लिखते हैं कि- ”प्रक्रिया अथवा व्यवसाय के आधार पर विभाग का संगठन करने का सबसे पहला गुण यह है कि इस व्यवस्था के अन्तर्गत विशेषीकरण को प्रोत्साहन मिलता है तथा तकनीकी योग्यता का अधिकतम उपयोग हो पाता है ।”इसके अतिरिक्त, आर्थिक दृष्टि से ये विभाग मितव्ययी होते हैं । एकता व समन्वय की दृष्टि से भी यह उपयोगी हैं । गुणों के साथ ही इस विभाग के भी अपने कुछ दोष हैं जैसे कि इसमें साध की अपेक्षा साधनों पर अधिक बल दिया जाता है ।
जनता की सेवा की तुलना में प्रशासकीय कुशलता को अधिक महत्व दिया जाता है । विभागाध्यक्ष के पदों पर विशेषज्ञों की ही नियुक्ति की जाती है जिनमें गर्व की भावना का आना स्वाभाविक होता है । इसके साथ ही दृष्टिकोण भी व्यापक नहीं बन पाता है ।
(iii) व्यक्ति (Persons):
कुछ संगठन व्यक्ति विशेष के संरक्षण एवं संवर्द्धन हेतु स्थापित किये जाते हैं । जैसे- बेरोजगार विभाग, महिला व बाल-कल्याण विभाग पुनर्वास विभाग, आदिम जाति कल्याण विभाग, वृद्धावस्था पेंशन विभाग आदि । ऐसे विभागों की स्थापना से प्रशासन व व्यक्तियों के मध्य सरलतापूर्वक सम्बन्ध स्थापित हो सकता है । इसमें भी दोहरेपन की सम्भावना कम होती है ।
समन्वय स्थापित करना सुगम होता है । यह सिद्धान्त व्यापक रूप से लागू नहीं किया जा सकता है, यह इसका दोष है । एक अन्य दोष यह है कि इस प्रकार के विभागों के कार्यक्षेत्र का निर्धारण करना सरल नहीं होता है । दवाब समूहों का प्रभाव बढ़ने की आशंका भी बनी रहती है ।
(iv) स्थान (Place):
प्राय: देश के कुछ स्थान या क्षेत्र अन्य क्षेत्रों की तुलना में पिछड़े हुए अथवा समस्याओं से ग्रस्त होते हैं । इन क्षेत्रों के विकास एवं समस्याओं के निराकरण हेतु सरकार कुछ विभाग स्थापित करती है । जैसे कि विदेश मन्त्रालय, जिसमें विभिड़ा संभाग होते हैं जो कि विभिन्न क्षेत्रों की समस्याओं से सम्बन्धित होते हैं इसी प्रकार दामोदर घाटी निगम नियन्त्रण बोर्ड पर्वतीय विकास परिषद् आदि इसी प्रकार के विभाग हैं ।
इस प्रकार के संगठन बड़े राष्ट्रों के लिए ही उपयुक्त होते हैं । इन क्षेत्रीय संगठनों की सहायता से दूरवर्ती प्रदेशों का शासन करना सुगम हो जाता है । पत्रव्यवहार व आवागमन जैसी आवश्यकताएँ कम हो जाने के कारण मितव्ययिता बनी रहती है । इन गुणों के बावजूद प्रादेशिक आधार पर विभागीयकरण का दोष यह है कि इसमें संकुचित प्रादेशिकतावाद पनपने लगता है ।
अन्त में कहा जा सकता है कि विभागीय संगठन का कोई एक सर्वसम्मत आधार नहीं है । सरकार का कोई भी विभाग केवल एक ही आधार पर निर्मित नहीं होता है वरन् यह सम्भव है कि उस संगठन में किसी एक गुण की प्रधानता हो । यह नितान्त उपयुक्त होगा कि किसी एक आधार पर दोषों को कम करने के लिए अन्य आधा से के गुणों का समावेश कर दिया जाये ।
विभागीय संगठन की दो प्रणालियाँ (Two System of Departmental Organization):
विभागीय संगठन की सामान्यतया दो घाघलियाँ प्रचलित हैं जिनका विवरण इस प्रकार है:
1. एक अध्यक्षीय अथवा ब्यूरो प्रणाली,
2. बहुल या मण्डल प्रणाली ।
1. एकल अथवा ब्यूरो प्रणाली (Single or Bureau System):
जब विभाग का अध्यक्ष एक ही व्यक्ति होता है तो वह ‘ब्यूरो प्रणाली’ कहलाती है । राजनीतिक दृष्टि से यह ‘मन्त्री’ के रूप में तथा प्रशासनिक दृष्टि से ‘सचिव’ के रूप में होता है ।
गुण (Merits):
ब्यूरो प्रणाली निम्नलिखित दृष्टि से लाभप्रद है:
(i) एक ही व्यक्ति के विभागाध्यक्ष होने से कार्यवाही में विलम्ब नहीं होता है साथ ही अनुशासन भी बना रहता है ।
(ii) अधिकाधिक कार्य कुशलतापूर्वक एवं योजनाबद्ध तरीके से सम्पन्न किया जाता है ।
(iii) संगठन में उद्देश्य की एकरूपता बनी रहती है ।
(iv) उत्तरदायित्व का निर्धारण स्पष्ट रूप से किया जा सकता है ।
(v) एक ही व्यक्ति के नेतृत्व में रहने से मितव्ययिता भी बनी रहती है ।
(vi) नीति सम्बन्धी स्पष्टता बनी रहती है ।
दोष (Demerits):
ब्यूरो प्रणाली में कतिपय दोष भी पाये जाते हैं जिनका संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है:
(i) एक ही व्यक्ति के हाथों में बागडोर होने से उसके निरंकुश होने की सम्भावना बनी रहती है ।
(ii) एक ही व्यक्ति पर अत्यधिक कार्य भार होने से विलम्ब तथा बाधा उत्पल होती है ।
(iii) लोकतन्त्र सत्ता-विभाजन में विश्वास करता है । इस प्रकार यह पद्धति लोकतान्त्रिक मूल्यों के विरुद्ध है ।
(iv) यह आवश्यक नहीं है कि अध्यक्ष सदैव विवेकशील होगा ।
(v) पक्षपात व दलबन्दी की सम्भावना बढ़ जाती है ।
2. बहुल या मण्डल प्रणाली (Plural or Board System):
जिस पद्धति में विभाग का अध्यक्ष एक व्यक्ति न होकर अनेक व्यक्तियों का समूह होता है उस पद्धति को बहुल या मण्डल प्रणाली कहा जाता है । विभाग के निर्देशन व निरीक्षण के दायित्व को कई व्यक्तियों में बाँट दिया जाता है । इस प्रणाली में सत्ता एक से अधिक व्यक्तियों के हाथों में निहित रहती है ।
मण्डल प्रणाली को कतिपय गुणों के कारण ब्यूरो प्रणाली की तुलना में अधिक श्रेष्ठ माना जाता है ।
ये इस प्रकार हैं:
(i) इसमें निर्णय कई व्यक्तियों द्वारा लिया जाता है, अत: निर्णय के विवेकपूर्ण होने की पूर्ण सम्भावना होती है ।
(ii) लोकहित की दृष्टि से नियमों उपनियमों के निर्माण में सुविधा रहती है ।
(iii) निर्णयों में निष्पक्षता लाने के लिए भी बहुल प्रणाली अनुकूल सिद्ध होती है ।
(iv) एक से अधिक अध्यक्ष होने के कारण विभिन्न वर्गों के हितों का प्रतिनिधित्व होता है तथा इस प्रकार का संगठन एक कल्याणकारी संगठन सिद्ध होता है ।
(v) ऐसे संगठन में किसी भी एक राजनीतिक दल की निरंकुशता नहीं हो पाती है वरन् यह एक सर्वदलीय संगठन होता है ।
(vi) एक ही विभाग के अन्दर सेवाएँ उपलब्ध होने के कारण समय की बचत होती है तथा सेवाओं के मध्य समन्वय स्थापित करना भी सरल होता है ।
(vii) समस्याओं को समग्र रूप में देखने की क्षमता उत्पन्न होती है ।
इस प्रणाली के भी कुछ दोष हैं जिनका संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है:
(i) विभागीयकरण का यह सिद्धान्त सार्वभौमिक रूप से लागू नहीं किया जा सकता है । समाज के अन्दर हित समूहों की संख्या बहुत बड़ी हो सकती है उनके आधार पर प्रशासन को संगठित करने से एक बड़ी संख्या में छोटे-छोटे विभाग अस्तित्व में आ जायेंगे ।
(ii) इस प्रकार के विभागों के कार्य क्षेत्र का निर्धारण करना सरल नहीं होता है
(iii) अनेक व्यक्ति संगठन की अध्यक्षता करते हैं, अत: आदेश की एकता का अभाव बना रहता है ।
(iv) प्रशासनिक त्रुटि के लिए किसी एक व्यक्ति को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है ।
(v) इस व्यवस्था में विभिन्न वर्गों के मध्य सहयोग की भावना का अभाव रहता है ।
(vi) इस व्यवस्था के अन्तर्गत सदस्यों को विभिन्न प्रकार के कार्य करने पड़ते हैं जिसके कारण उनमें विशेषज्ञता नहीं आ पाती है ।
(vii) निर्देशों में सर्वमान्यता का अभाव होता है जिससे कि अनुशासनहीनता बढ़ती है ।
अब प्रश्न उठना स्वभाविक है कि किन परिस्थितियों में ‘ब्यूरो प्रणाली’ को अपनाया जाये तथा किन परिस्थितियों में मण्डलीय पद्धति को ‘इस सम्बन्ध में विलोबी ने विचार व्यक्त किये हैं कि जहाँ सुनिश्चित पूर्व-निर्धारित योजना के अनुसार प्रशासन किया जाना हो वहाँ ‘ब्यूरो प्रणाली’ उपयुक्त है, किन्तु जहाँ नीति-निर्धारण करते हुए विभिन्न हितों के मध्य समन्वय करना होता है वहाँ ‘मण्डल प्रणाली’ को अपनाया जाना उचित होगा ।
अन्तत: दोनों प्रणालियों के गुण-दोषों की विवेचना के उपरान्त यह निष्कर्ष निकलता है कि ब्यूरो प्रणाली ही अपेक्षाकृत अधिक श्रेष्ठ है जैसा कि अलेकजेण्डर हेमिल्टन लिखते हैं- ”मण्डल बड़ी सभाओं की असुविधाओं के भागीदार बन जाते हैं । उनके निर्णय धीरे होते हैं । उनमें शक्ति कम होती है और उनका उत्तरदायित्व विकेन्द्रित होता है । उनमें वह ज्ञान और योग्यता नहीं पाई जाती है जो कि एक ही व्यक्ति के द्वारा संचालित प्रशासन में पाई जाती है ।
प्रथम कोटि के महत्वाकांक्षी व्यक्ति इनमें जल्दी नहीं आ पायेंगे क्योंकि उन्हें मण्डल में कम विशिष्टता तथा कम महत्ता प्राप्त होगी और स्वयं को प्रसिद्ध करने का कम अवसर प्राप्त होगा । मण्डलों के सदस्य एवं जानकारी प्राप्त करने का विशिष्ट स्थान पाने के बारे में कम प्रयत्न करेंगे क्योंकि उनमें ऐसा करने की कम प्रेरणाएँ पाई जाती हैं ।”
भारत सरकार के विभागीय संगठन (Departmental Organization in the Government of India):
भारत के संसदीय शासन में संवैधानिक कार्यपालिका राष्ट्रपति हैं जिन्हें वास्तविक शक्तियाँ प्राप्त नहीं हैं । यद्यपि शासन उन्हीं के नाम से संचालित किया जाता है किन्तु वास्तविक शक्ति प्रधानमन्त्री तथा उनके मन्त्रियों को प्राप्त होती है । संसद के बहुमत दल के नेता की नियुक्ति प्रधानमन्त्री के रूप में राष्ट्रपति द्वारा की जाती है । प्रशासन का वास्तविक संचालन प्रधानमन्त्री व उनकी मंत्रिपरिषद द्वारा किया जाता है ।
भारत में मुख्य कार्यपालिका (राष्ट्रपति) संविधान के अनुच्छेद 77 (3) के आधार पर प्रधानमन्त्री के परामर्श से मन्त्रालयों की स्थापना करता है । एक मन्त्रालय में एक या एक से अधिक विभाग हो सकते हैं । एक या एक से अधिक मन्त्रालयों को एक मन्त्री के अधीन रखा जाता है ।
भारत सरकार का विभागीय संगठन ‘तीन स्तरीय’ (Three Tiers) होता है जिसके शीर्ष पर राजनीतिक प्रमुख अर्थात् मन्त्री होता है । इसकी सहायतार्थ राज्यमन्त्री उपमन्त्री व संसदीय सचिव होते हैं । द्वितीय स्तर ‘सचिवालय’ होता है जिसका प्रमुख ‘सचिव’ कहलाता है । विभागीय संगठन का तीसरा स्तर कार्यपालिका सगठन है इसके शीर्ष पर महानिरीक्षक (Inspector General) अथवा महानिदेशक (Director General) होता है ।
प्रथम स्तर:
मन्त्री-विभागीय संगठन के शीर्ष पर स्थित मन्त्री का पद स्थायी नहीं होता है । राजनीतिक दल का बहुमत समाप्त होते ही उसे भी अपना पद छोड़ना पड़ता है । उसका पद पूर्णतया राजनीतिक होता है । अपने राजनीतिक दल के ‘निश्चित कार्यक्रम’ (Manifesto) को अपनाकर मन्त्री उसी के आधार पर अपने विभाग की नीति निर्धारित करता है ।
नीतियों के आधार पर विभाग का सफल संचालन करने में वह तभी सफल हो सकता है जबकि उसे अधीनस्थ कर्मचारियों का सहयोग प्राप्त होता है । मन्त्री लोक सभा के वरिष्ठ अधिकारियों के माध्यम से नीतियों के शीघ्र क्रियान्वयन हेतु प्रयत्न करता है विभागीय कार्य में कोई भी त्रुटि होने पर संसद के सम मन्त्री को उत्तरदायी ठहराया जाता है उदाहरणार्थ भले ही कोई रेल दुर्घटना किसी रेलवे कर्मचारी की गलती से हुई हो किन्तु मन्त्री को ही उत्तरदायी ठहराया जाता है ।
विभाग का पूर्ण उत्तरदायित्व मन्त्री पर होने के परिणामस्वरूप मन्त्री का अपने विभाग पर पूर्ण नियन्त्रण होता है । मन्त्री की सहायतार्थ राज्यमन्त्री, उपमन्त्री एवं संसद सचिव होते हैं । कई बार विशिष्ट परिस्थितियों में राज्यमन्त्री पूरा मन्त्रालय संभालता है । उपमन्त्री का कोई विशेष उत्तरदायित्व नहीं होता है ।
द्वितीय स्तर:
सचिवालय- सचिवालय (Secretariat) का प्रधान सचिव कहलाता है जिसका पद स्थायी होता है । सचिवालय को प्रशासकीय संगठन का मस्तिष्क कहा जाता है । इसका कारण यह है कि विभाग के समस्त कार्य सचिवालय ही नियन्त्रित करता है सचिव का कार्य मन्त्री को नीति सम्बन्धी परामर्श देना है । वह मन्त्री को सम्भावनाओं व खतरों के संकेत देकर वास्तविक स्थितियों से अवगत कराने के भी प्रयास करता है ।
सचिवालय में दो प्रकार के कर्मचारी होते हैं- अधिकारी एवं अधीनस्थ । अधिकारी वर्ग की चार श्रेणियाँ हैं- सचिव, उपसचिव, अवर-सचिव (Under Secretary) तथा सहायक सचिव (Assistant Secretary) । अधिकारी वर्ग के सदस्य ‘भारतीय प्रशासनिक सेवा’ (Indian Administrative Service) के वरिष्ठतम सदस्यों में से होते हैं । केवल सहायक सचिव ही ऐसे अधिकारी हैं जो भारतीय प्रशासनिक सेवा’ से सम्बन्धित नहीं होते हैं वरन् वे निम्न पदों से पदोन्नत होने के बाद अपने पद तक पहुँचते हैं ।
भारतीय प्रशासनिक सेवा के सदस्य सचिवालय में एक निश्चित कार्यकाल तक रहने के बाद पुन: अपने मूल पदों पर लौट जाते हैं । अदला-बदली की इस पद्धति में सचिवालय को ऐसे अधिकारी उपलब्ध हो जाते हैं जिनको नीति निर्धारण एवं नीति कार्यान्वयन का पूर्ण अनुभव प्राप्त होता है किन्तु यह पद्धति सभी विभागों में नहीं अपनायी जाती है ।
सचिवालय के अधीनस्थ, कर्मचारियों में अधीक्षक (Superintendent), सहायक, उच्च श्रेणी लिपिक (Upper Division Clerk) एवं निम्न श्रेणी लिपिक होते हैं । इनमें निम्न श्रेणी लिपिक के पदों को छोड्कर शेष सभी प्रतियोगी परीक्षाओं के माध्यम से आते हैं ।
कुशल एवं दक्ष प्रशासन हेतु सचिवालय को संभागों (Divisions), शाखाओं (Branches) और अनुभागों (Sections) में विभाजित होते हैं । संभाग का अधिकारी उपसचिव (Deputy Secretary), शाखाओं का अधिकारी अवर-सचिव (Under Secretary) तथा अनुभागों का अधिकारी ‘अनुभाग अधिकारी’ (Section Officer) कहलाता है ।
तृतीय स्तर:
कार्यपालिका संगठन- मन्त्री नीति निर्धारण करता है, सचिवालय नीति संचालन करता है और नीतियों का वास्तविक कार्यान्वयन कार्यपालिका संगठन करता है । कार्यपालिका संगठन का प्रधान सचिव के अधीन रहते हुए भी विभाग का प्रधान कहलाता है । रुथनास्वामी के अनुसार- ”यदि सचिवगण मन्त्रियों के आँख, कान हैं तो विभाग के प्रधान उसके हाथ हैं ।”
यद्यपि तीनों स्तरों के अधिकार- क्षेत्रों का स्पष्टतया सीमांकन किया गया है तथापि व्यवहार में प्रशासन की एक शाखा दूसरी शाखा का अतिक्रमण करती दिखाई देती है । इन सबका परिणाम अकुशलता, असफलता एवं विलम्ब आदि के रूप में देखने को मिलता है ।
भारत सरकार के मन्त्रालय एवं विभाग (Ministries and Departments under Indian Government):
भारत सरकार की प्रशासनिक इकाई मन्त्रालय एवं उनसे सम्बद्ध विभाग हैं । सन् 1948 में देश में सचिवों के 8 पद एवं 18 विभाग थे । मन्त्रालयों एवं विभागों के पुनर्गठन की प्रक्रिया चलती रहती है । सन् 1962 में इन विभागों की संख्या 35, 1966 में 41,1969 में 46,1970 में 48,1972 में 50,1975 में 53,1984 में 67 एवं 1999 में 76 थी । वर्तमान में विभागों की संख्या लगभग 81 है ।
भारत सरकार में मन्त्रालय/विभाग इस प्रकार हैं:
(1) कृषि मन्त्रालय (Ministry of Agriculture):
(i) कृषि तथा सहकारिता विभाग (Department of Agriculture and Co-Operatives),
(ii) कृषि अनुसन्धान एवं शिक्षा विभाग (Department of Agriculture Research and Education),
(iii) पशुपालन एवं दुग्ध व्यवसाय विभाग (Department of Animal Husbandry and Dairy Profession) ।
(2) रक्षा मन्त्रालय (Ministry of Defence):
(a) रक्षा विभाग (Department of Defence),
(b) रक्षा उत्पाद तथा आपूर्ति विभाग (Department of Defence Products and Supplies),
(c) रक्षा अनुसन्धान तथा विकास विभाग (Department of Defence Research and Development) ।
(3) विदेश मन्त्रालय (Ministry of External Affairs)
(4) वित्त मन्त्रालय (Ministry of Finance):
(i) आर्थिक कार्य विभाग (Department of Economic Affairs),
(ii) व्यय विभाग (Department of Expenditure),
(iii) राजस्व विभाग (Department of Revenue),
(iv) विनिवेश विभाग (Department of Investment),
(v) वित्तीय सेवाएँ विभाग (Department of Monetary Services) ।
(5) गृह मन्त्रालय (Home Ministry):
(a) आन्तरिक सुरक्षा विभाग,
(b) गृह विभाग (Department of Home),
(c) राज्य विभाग (Department of States),
(d) राजभाषा विभाग (Department of Official Language),
(e) जम्मू-कश्मीर मामलों का विभाग (Department of J & K Affairs) ।
(6) उद्योग मन्त्रालय (Ministry of Industry):
(i) लोक उद्यम विभाग (Department of Public Enterprises),
(ii) औद्योगिक विकास विभाग (Department of Industrial Development),
(iii) भारी उद्योग विभाग (Department of Heavy Industry),
(iv) ग्रामीण विकास विभाग (Department of Rural Development) ।
(7) नागरिक विमानन मन्त्रालय (Ministry of Civil Aviation)
(8) ऊर्जा मन्त्रालय (Ministry of Power)
(9) वाणिज्य मन्त्रालय (Ministry of Commerce):
(i) वाणिज्य विभाग (Department of Commerce),
(ii) आपूर्ति विभाग (Department of Supply) ।
(10) पर्यावरण तथा वन मन्त्रालय (Ministry of Environment and Forests)
(11) संचार मन्त्रालय (Ministry of Communication):
(i) डाक विभाग (Department of Posts),
(ii) दूर-संचार विभाग (Department of Tele-Communications)
(12) खाद्य एवं उपभोक्ता मन्त्रालय (Ministry of Food Consumer Affairs):
(i) खाद्य तथा नागरिक आपूर्ति विभाग (Department of Food and Civil Supply),
(ii) उपभोक्ता मामले विभाग (Department of Consumer Affairs),
(iii) शक्कर व खाद्य तेल विभाग (Department of Sugar and Edible Oil) ।
(13) स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मन्त्रालय (Ministry of Health and Family Welfare):
(i) स्वास्थ्य विभाग (Department of Health),
(ii) भारतीय चिकित्सा व होम्योपैथी विभाग (Department of Indian Medical and Homeopathy),
(iii) परिवार कल्याण विभाग (Department of Family Welfare) ।
(14) मानव संसाधन विभाग मन्त्रालय (Ministry of Human Resources Development):
(i) शिक्षा विभाग (Department of Education),
(ii) संस्कृति विभाग (Department of Culture),
(iii) युवा कार्य एवं खेल विभाग (Department of Youth Affairs and Sports) ।
(15) इस्पात एवं खान मन्त्रालय (Ministry of Steel and Mines):
(i) इस्पात विभाग (Department of Steel),
(ii) खान विभाग (Department of Mines) ।
(16) विधि तथा न्याय एवं कम्पनी कार्य मन्त्रालय (Ministry of Law, Justice and Company Affairs):
(i) विधि कार्य विभाग (Department of Legal Affairs),
(ii) न्याय विभाग (Department of Justice),
(iii) विधायी कार्य विभाग (Department of Legislative Affairs),
(iv) कम्पनी कार्य विभाग (Department of Company Affairs) ।
(17) कार्मिक, सार्वजनिक शिकायत एवं पेंशन मन्त्रालय (Ministry of Personnel, Public Grievances and Pension):
(i) कार्मिक तथा प्रशिक्षण विभाग (Department of Personnel and Training),
(ii) प्रशासनिक सुधार तथा जन-शिकायत विभाग (Department of Administration Reforms and Public Grievances),
(iii) पेंशन तथा पेंशनभोगी कल्याण विभाग (Department of Pensioner Welfare) ।
(18) श्रम मन्त्रालय (Ministry of Labour)
(19) संसदीय कार्य मन्त्रालय (Ministry of Parliamentary Affairs)
(20) रेल मन्त्रालय (Ministry of Railway)
(21) विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मन्त्रालय (Ministry of Science and Technology):
(i) विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Science and Technology),
(ii) जैव-प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Bio-Technology),
(iii) वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसन्धान विभाग (Department of Scientific and Industrial Research) ।
(22) पेट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैस मन्त्रालय (Ministry of Petroleum and Natural Gas)
(23) गैर-पारम्परिक ऊर्जा स्रोत मन्त्रालय (Ministry of Non-Conventional Energy Resources)
(24) कपड़ा मन्त्रालय (Ministry of Textiles)
(25) खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मन्त्रालय (Ministry of Food Processing Industry)
(26) जल, भूतल परिवहन मन्त्रालय (Ministry of Surface and Water Transport)
(27) योजना एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मन्त्रालय (Ministry of Planning and Programme Implementation)
(i) योजना विभाग (Department of Planning),
(ii) कार्यक्रम क्रियान्वयन विभाग सांख्यिकी विभाग
(28) ग्रामीण क्षेत्र एवं रोजगार विकास मन्त्रालय (Ministry of Rural Area and Employment Development):
(i) ग्रामीण विकास विभाग (Department of Rural Development),
(ii) बंजर भूमि विकास विभाग (Department of Waste Land Development),
(iii) ग्रामीण रोजगार एवं निर्धनता
(29) सूचना एवं प्रसारण मन्त्रालय (Ministry of Information and Broadcasting):
(i) प्रेस सूचना ब्यूरो (Bureau of Press Information),
(ii) विज्ञापन तथा दृश्य प्रचार निदेशालय (Directorate of Advertising and Visual Publicity),
(iii) महानिदेशक आकाशवाणी का कार्यालय (Office of Director General of all India Radio),
(iv) फिल्म विवेचना का केन्द्रीय मण्डल (Central Board for Film Censors),
(v) फिल्म प्रभाग (Film Division),
(vi) अनुसन्धान व सन्दर्भ प्रभाग (Research and Reference Division),
(vii) प्रकाशन प्रभाग (Publication Division),
(viii) पंचवर्षीय योजना का प्रचार कार्यालय (Office of Publicity of Five Years Plans),
(ix) भारतीय समाचार पत्रों के रजिस्ट्रार का कार्यालय (Office of the Register of Newspaper of India) ।
(30) कोयला मन्त्रालय (Ministry of Coal),
(31) परमाणु ऊर्जा विभाग (Department of Atomic Energy),
(32) इलेक्ट्रॉनिक विभाग (Department of Electronics),
(33) जल संसाधन मन्त्रालय (Ministry of Water Resources),
(34) शहरी मामले एवं रोजगार मन्त्रालय (Ministry of Urban Affairs and Employment):
(i) शहरी विकास विभाग (Department of Chemical and Petrochemical),
(ii) शहरी रोजगार एवं निर्धनता उन्मूलन विभाग (Department of Urban Employment and Poverty Eradication),
(35) सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मन्त्रालय (Ministry of Social Justice and Empowerment)
(36) महासागर विकास विभाग (Department of Ocean Development)
(37) अन्तरिक्ष विभाग (Department of Space)
(38) रसायन एवं उर्वरक मन्त्रालय (Ministry of Chemical and Fertilizers):
(i) रसायन एवं पेट्रो-रसायन विभाग (Department of Chemical and Petrochemical)
(ii) उर्वरक विभाग (Department of Fertilizers)
(39) पर्यटन मन्त्रालय (Ministry of Tourism)
(40) राष्ट्रपति कार्यालय (President Secretariat)
(41) प्रधानमन्त्री कार्यालय (Prime Minister Office)
(42) मन्त्रिमण्डल सचिवालय (Department of Cabinet Secretariat)
(43) योजना आयोग (Planning Commission) ।
गृह मन्त्रालय : संगठन एवं कार्य (The Ministry of Home Affairs: Organization and Functions):
देश के सम्पूर्ण प्रशासन में गृह मन्त्रालय की स्थिति अत्यधिक महत्वपूर्ण है । मन्त्रिमण्डल में प्रधानमन्त्री के बाद गृहमन्त्री को ही सर्वाधिक महत्व प्रदान किया जाता है । गृहमन्त्री के अधीन राज्य-मन्त्री तथा उपमन्त्री होते हैं ।
”गृह मन्त्रालय मुख्यत: ऐसे मामलों को निबटाता है जिनका सम्बन्ध शान्ति एवं सार्वजनिक स्थिरता बनाये रखने तथा लोक सेवाओं की भर्ती एवं उसके प्रशासन से होता है इसके अतिरिक्त इस मन्त्रालय को संघीय प्रदेशों के प्रशासन का उत्तरदायित्व भी सौंपा जाता है ।”
गृह मन्त्रालय के कार्यों को निम्नलिखित तीन श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है:
(i) आन्तरिक शान्ति व सुरक्षा (Internal Peace and Security):
देश में शान्ति व सुरक्षा बनाये रखने का उत्तरदायित्व गृह मन्त्रालय पर होता है । इस हेतु केन्द्रीय रिजर्व पुलिस (Central Reserve Police), सीमा सुरक्षा बल (Border Security Force), केन्द्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (Central Industrial Security Force) आदि की व्यवस्था होती है ।
(ii) कार्मिक एवं प्रशासनिक सुधार (Personnel and Administrative Reform):
लोक सेवा वर्ग एवं प्रशासनिक सुधार सम्बन्धी कार्य भी गृह मन्त्रालय करता है ।
(iii) राजनीतिक मामले (Political Issues):
राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति का चुनाव, राज्यपालों की नियुक्ति, राज्यों का निर्माण, राष्ट्रपति शासन की घोषणा आदि विषय भी गृह मन्त्रालय के में आते हैं ।
गृह मन्त्रालय के प्रमुख संभाग (Main Divisions of the Ministry):
गृह मन्त्रालय के अन्तर्गत निम्नलिखित संभाग आते हैं:
(1) विदेश (Foreign),
(2) प्रशासनिक सतर्कता (Administrative Vigilence),
(3) स्थापना (Establishment),
(4) लेखे (Accounts),
(5) सेवाएँ (Services),
(6) अखिल भारतीय सेवाएँ (All India Services),
(7) संघीय प्रदेश (Union Territories),
(8) प्रशासन (Administration),
(9) न्यायिक (Judicial),
(10) नियोजन (Planning),
(11) केन्द्रीय सेवाएँ (Central Services),
(12) संकटकालीन सहायता (Emergency Relief),
(13) मानवाधिकार (Human Rights),
(14) सार्वजनिक शिकायत (Public Complaint),
(15) पुलिस (Police),
(16) कल्याण (Welfare),
(17) शोध व नीति (Research and Policy) ।
मन्त्रालय के संलग्न कार्यालय (Offices Attached with Ministry):
गृह मन्त्रालय के अन्तर्गत निम्नलिखित कार्यालय आते हैं:
(1) केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो,
(2) केन्द्रीय जाँच ब्यूरो,
(3) केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल,
(4) सीमा सुरक्षा बल,
(5) सचिवालय प्रशिक्षण विद्यालय,
(6) जनगणना महारजिस्ट्रार,
(7) लाल बहादुर शास्त्री प्रशासनिक अकादमी ।
मन्त्रालय के अधीनस्थ कार्यालय (Subordinate Offices of the Ministry):
गृह-मन्त्रालय के अधीनस्थ कार्यालय निम्नलिखित हैं:
(i) राष्ट्रीय अग्निसेवा महाविद्यालय, नागपुर,
(ii) राष्ट्रीय पुलिस अकादमी, हैदराबाद,
ADVERTISEMENTS:
(iii) राष्ट्रीय नागरिक सुरक्षा महाविद्यालय, नागपुर,
(iv) भारत-तिब्बत सीमा पुलिस, नई दिल्ली,
(v) क्षेत्रीय-पंजीकरण कार्यालय (दिल्ली, कोलकाता, मुम्बई, चेन्नई)
(vi) भ्रमणशील नागरिक आपातकालीन पुलिस, नई दिल्ली
(vii) क्षेत्रीय कार्यालय हिन्दी प्रशिक्षण रोजगार (दिल्ली, कोलकाता, मुम्बई, चेन्नई) गृह मन्त्रालय की कुछ परामर्शदात्री संस्थाएँ भी हैं । संक्षेप में यही कहना पर्याप्त होगा कि भारतीय केन्द्रीय प्रशासन में गृह मन्त्रालय की भूमिका अहम् है ।