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Read this article in Hindi to learn about:- 1. Introduction to Development Administration 2. Meaning and Definitions of Development Administration 3. Elements and Characteristics 4. Development Administration and Traditional Administration.
विकास प्रशासन से आसय (Introduction to Development Administration):
विकास प्रशासन, नवीन लोक प्रशासन की ही एक अवधारणा है । द्वितीय विश्व युद्ध के उपरान्त प्रशासन को राष्ट्र निर्माण, आर्थिक विकास एवं लोकहित जैसे कुछ नये दायित्व सौंपे गये । इसी समय एशिया, अफ्रीका एवं लैटिन अमेरिका में नये स्वतन्त्र राज्य अस्तित्व में आये ।
इन राज्यों के प्रशासनों को भी राष्ट्र विकास के साथ-साथ अन्य लोकहितकारी कार्य सम्पन्न करने थे । प्रारम्भ में इन नवस्वतन्त्र राष्ट्रों ने पाश्चात्य विकसित देशों को ही अपने विकास का मॉडल स्वीकार किया ।
अमेरिका जैसे देशों ने इन नवोदित राष्ट्रों के विकास हेतु आर्थिक व तकनीकी सहायता देना भी स्वीकार किया किन्तु इन देशों में विकास की गति धीमी ही बनी रही । 1960 के दशक में ‘तुलनात्मक प्रशासन दल’ ने अपने प्रयोगों के द्वारा इसका कारण जानने का प्रयास किया ।
रिग्स (Riggs) ने यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि पारिस्थितिकी प्रशासन को प्रभावित करती है तथा इन देशों में विकास प्रशासन की स्थापना एक कारगर कदम सिद्ध हो सकता है ।
तीसरी दुनिया के देशों के प्रशासनों का अध्ययन व्यापक पैमाने पर करने पर यह ज्ञात हुआ कि इन देशों की विकास प्रक्रिया स्वदेशी न होकर विदेशों की नकल-मात्र है यह देखा गया है कि विकासशील देशों की नौकरशाही औपचारिकताओं (Formalities) एवं लाल फीताशाही (Red Tapism) को अनावश्यक महत्व देती है ।
साथ ही इन देशों के प्रशासकों का जनता के प्रति व्यवहार सेवक जैसा नहीं वरन् मालिकों के समान है । इन देशों की नौकरशाही में विकास कार्यक्रमों को पूरा करने के लिये दक्ष एवं योग्य प्रशासकों का भी अभाव है । इन देशों में राजनीतिज्ञों का व्यवहार प्रशासकों के समान होता है, जबकि प्रशासक राजनीति के चक्र में फँसे रहते हैं ।
तुलनात्मक लोक प्रशासन दल ने ‘विकास प्रशासन’ के सम्बन्ध में कई संस्तुतियाँ प्रस्तुत कीं । निमरोद रेफली ने मुख्य रूप से दो तथ्यों पर बल दिया- ‘सिद्धान्त निर्माण’ एवं ‘विकास प्रशासन’ । तुलनात्मक लोक प्रशासन में ‘सिद्धान्त निर्माण’ का अधिकांश कार्य विकास से सम्बद्ध है । इसके विपरीत विकास प्रशासन का अधिकांश कार्य सिद्धान्त निर्माण से जुड़ा है ।
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उल्लेखनीय है कि ‘तुलनात्मक प्रशासन ग्रुप’ (Comparative Administrative Group-CAG) की स्थापना ‘लोक प्रशासन के लिये अमेरिकी समाज’ के द्वारा सन् 1963 में की गई थी । इसका वित्तीय भार ‘फोर्ड फाउण्डेशन’ (Ford Foundation) को वहन करना था । प्रारम्भ में इस संस्था की स्थापना केवल तीन वर्ष के लिये की गई थी । फ्रेड डल्पपू रिग्स एक लम्बे समय तक इसके सभापति रहे । तत्पश्चात् इसकी बागडोर ‘रिचर्ड गेबल’ ने सँभाली ।
यह दल अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कार्यरत था इस दल का प्रमुख कार्य एशिया, यूरोप व लैटिन अमेरिका में तुलनात्मक प्रशासन पर अनुक्त-धान करना तथा विकास प्रशासन को प्रोत्साहन देना था दल ने अपने अध्ययनों के आधार पर लोक प्रशासन के अन्तर्गत ‘पारिस्थितिकीय अध्ययन अथवा दृष्टिकोण’ (Ecological Approach) का विकास किया ।
पारिस्थितिकीय दृष्टिकोण की मान्यतानुसार लोक प्रशासन विभिन्न प्रकार की सामाजिक परिस्थितियों के मध्य कार्यरत रहता है तथा स्वयं को उन परिस्थितियों के अनुकूल ढालने की क्षमता रखता है ।
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विकास प्रशासन: अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Development Administration):
‘विकास प्रशासन’ पद की उत्पत्ति सन् 1955 में भारतीय विद्वान यू.एल. गोस्वामी द्वारा की गई, किन्तु इसकी विस्तृत व्याख्या करने का श्रेय अमेरिकी विद्वानों को प्राप्त है । इस सम्बन्ध में सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका ‘तुलनात्मक प्रशासन समूह’ (Comparative Administrative Group- CAG) एवं ‘सामाजिक विज्ञानों की अनुसन्धान परिषद् की तुलनात्मक राजनीति सम्बन्धी समिति’ (The Committee on Comparative Politics of the Social Science Research Council) ने निभाई ।
विकास प्रशासन की अवधारणा के प्रतिपादकों में प्रमुख हैं- फ्रेड डब्ल्यू, रिग्स (Riggs), जॉर्ज ग्राण्ट (George Grant), वाईइडनर (Widener), फेनसोड (Fensod) जे.बी. वेस्टकाण्ट (J.B. Westcant), राल्फ ब्रिबैन्टी (Ralph Brebanty), मिल्टन एसमैन (Milton Esmen) एवं सॉलकैट्ज (Solcatz) आदि ।
इन सभी अमेरिकी विद्वानों ने ‘तुलनात्मक प्रशासन समूह’ (CAZ) के माध्यम से विकास प्रशासन की अवधारणा को आगे बढ़ाने में अपने लेखों एवं अनुसन्धानों आदि के द्वारा उल्लेखनीय योगदान दिया । विकास प्रशासन को अध्ययन विषय के रूप में स्थापित करने का श्रेय ‘फ्रेड डब्ल्यू. रिग्स’ को दिया जाता है ।
विकास प्रशासन के अर्थ को लेकर विद्वानों के मध्य मतैक्य का अभाव है । विद्वानों का एक वर्ग इसे ‘आर्थिक विकास’ के साधन के रूप में देखता है तो दूसरा वर्ग ‘प्रशासनिक विकास’ का माध्यम मानता है । शाब्दिक दृष्टि से विकास प्रशासन की अवधारणा में ‘विकास का प्रशासन’ एवं ‘प्रशासन का विकास’ शब्द परस्पर गुँथे हुए हैं ।
इस दृष्टि से विकास प्रशासन की अवधारणा प्रशासकीय आचरण से सम्बद्ध धारणा है, किन्तु यह पारम्परिक प्रशासकीय कार्यों का अध्ययन-मात्र नहीं है वरन् विकास योजना एवं कार्यान्वयन के उपकरण के रूप में परिवर्तन- उन्मुखी है ।
विभिन्न विद्वानों के द्वारा ‘विकास प्रशासन’ की अवधारणा को निम्नलिखित रूपों में परिभाषित किया गया है:
प्रो.सी.एच.टाड के अनुसार- ”राजनीतिक विकास के लिये आर्थिक एवं सामाजिक आधुनिकीकरण आवश्यक है । इसमें भी कोई सन्देह नहीं है कि प्रशासनिक विकास के लिये राजनीतिक विकास आवश्यक है ।”
एडवर्ड वीडनर के मतानुसार- ”विकास प्रशासन प्रगतिशील राजनीतिक धार्मिक एवं सामाजिक उद्देश्यों को चुनने तथा उन्हें पूरा करने का साधन है जिसमें ये उद्देश्य अधिकारिक रूप से एक या दूसरे प्रकार से निश्चित किये जाते हैं ।”
मॉण्टगोमरी के कथनानुसार- ”विकास सामान्यत: परिवर्तन के ऐसे सामान्य भाग को समझा गया है जो स्थल रूप से पूर्व निर्धारित या योजनाबद्ध एवं प्रशासित किया गया हो या कम से कम सरकारी क्रिया से प्रभावित हो ।”
जी.एफ.ग्राण्ट के शब्दों में- ”विकास प्रशासन को लोक प्रशासन का वह पहलू कहा है जिसमें लोक अभिकरणों को इस प्रकार संगठित और प्रशासित करने पर ध्यान दिया जाये जिसमें आर्थिक एवं सामाजिक विकास के लिये निर्धारित कार्यक्रमों को प्रोत्साहित और आगे बढ़ाया जा सके । इसका उद्देश्य आम लोगों की दृष्टि में परिवर्तन को आकर्षक और सम्भव बनाना है ।”
पाइ पानिन्दीकर के अनुसार- ”विकास प्रशासन उस संरचना संगठन तथा संगठनात्मक व्यवहार से सम्बन्धित है जो सामाजिक आर्थिक एवं राजनीतिक परिवर्तन की उन योजनाओं एवं कार्यक्रमों को पूर्ण करने के लिये है जिन्हें सरकार ने पूरा करना स्वीकार किया है ।”
फेनसोड के कथनानुसार- ”विकास प्रशासन नये मूल्यों की ओर ले जाने वाला वाहन है जिसमें आधुनिकीकरण और औद्योगीकरण के रास्ते पर बढ़ने के लिये विकासशील देशों द्वारा अपनाए जाने वाले विभिन्न कार्य आते हैं । विकास प्रशासन सुनियोजित आर्थिक विकास, संसाधनों के विकास एवं निर्धारण के लिये नई संस्थाओं के रूप में यन्त्रों की स्थापना करता है ।”
फ्रेड डब्ल्यू रिग्स के अनुसार- ”विकास प्रशासन उन कार्यक्रमों और परियोजनाओं को पूर्ण करने के संगठित प्रयासों से सम्बन्धित है जो विकास के उद्देश्यों की पूर्ति में संलग्न व्यक्तियों द्वारा प्रवर्तित किये जाते हैं ।”
रिग्स के ही शब्दों में विकास प्रशासन- ”निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये उपलब्ध साधनों के उपयोग में प्रभावकारिता वृद्धि की एक प्रणाली है ।”
उपर्युक्त परिभाषाओं की विवेचना से स्पष्ट होता है कि विकास प्रशासन के दो प्रमुख उद्देश्य हैं- राष्ट्र निर्माण एवं सामाजिक आर्थिक प्रगति । विकास प्रशासन, लोक प्रशासन का वह पहलू है जो कि सरकारी प्रभाव के माध्यम से प्रगतिशील राजनीतिक, सामाजिक व आर्थिक लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु परिवर्तनोन्मुखी (Change Oriented) एवं विकासोन्मुखी (Development Oriented) दृष्टिकोण रखता है । विकास प्रशासन लोगों की समस्याओं के समाधान हेतु नियोजित ढंग से एक सामाजिक अभिकर्ता (Agent) के रूप में कार्य करता है ।
विकास प्रशासन : तत्व एवं विशेषताएँ (Development Administration : Elements and Characteristics):
विकास प्रशासन की परिभाषाओं के विश्लेषण के उपरान्त निष्कर्ष रूप में विकास प्रशासन के निम्नलिखित त छा उभरकर सामने आते हैं:
(1) परिवर्तनोन्मुखी (Change-Oriented):
परिवर्तन से तात्पर्य किसी व्यवस्था का एक स्थिति से दूसरी स्थिति की ओर गतिमान होना है । इस प्रकार विकास प्रशासन परिवर्तनों के माध्यम से समाज को गति प्रदान करना चाहता है ।
(2) प्रगतिशील (Progressive):
प्रगतिशीलता का अर्थ है कि प्रशासन के क्षेत्र में अधिकाधिक लोगों की भागीदारी होनी चाहिए । विकास प्रशासन को ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न करनी चाहिये कि विकास कार्यों में जनता की सहभागिता अधिकतम हो ।
(3) लक्ष्य-उन्मुखी (Objective-Oriented):
विकास प्रशासन व्यवस्थित ढंग से लक्ष्यों की प्राप्ति पर बल देता है । इस प्रकार विकास प्रशासन स्वभावत: प्रगतिशील दृष्टिकोण से युक्त है । वेडनर के अनुसार- ”विकास प्रशासन लक्ष्य-अभिमुखी प्रशासन है ।”
(4) नियोजन (Planning):
विकास प्रशासन नियोजित परिवर्तन के माध्यम से विकास मार्ग पर अग्रसर रहता है । इस हेतु एक निश्चित अवधि में कुछ सुनिश्चित लक्ष्यों की प्राप्ति से सम्बन्धित कार्यक्रम तैयार किया जाता है । इस कार्यक्रम के अन्तर्गत नियोजन-समय, विकास-प्रक्रिया एवं अपनाये जाने वाले समय (निर्धारित समय) आदि का विवरण प्रस्तुत किया जाता है । विकासशील देशों में सामाजिक आर्थिक नियोजन इसी विकास प्रक्रिया का एक हिस्सा है ।
(5) जनहितकारी राज्य का लक्ष्य (Aim of Welfare State):
विकास प्रशासन का उद्देश्य जनता को अपनी सेवाओं व उत्पादन का अधिकतम लाभ पहुँचाना है । विकास प्रशासन जनता की आवश्यकताओं को प्राथमिकता देता है तथा अपने कार्यक्रम व नीतियों आदि को इन्हीं आवश्यकताओं को दृष्टिगत रखते हुए तैयार करता है ।
(6) समन्वय (Co-Ordination):
विकास प्रशासन की एक अन्य विशेषता समन्वय या एकीकरण है । प्रशासन विकासात्मक लक्ष्यों की प्राप्ति तभी कर सकता है, जबकि उसमें अधिकारियों व विभिन्न समूहों के मध्य समन्वय या एकीकरण करने की क्षमता होगी । ऐसा न होने पर विकास की प्रक्रिया पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की सम्भावना होती है ।
(7) नये विकल्पों का सृजन (Creation of New Alternatives):
विकास प्रशासन परम्परावादी सिद्धान्तों से बंधा हुआ नहीं होता है । विकासोन्मुख होने के कारण ऐसा प्रशासन परिस्थितियों के अनुसार परिवर्तन एवं गतिशीलता को महत्व देता है । इसी आधार पर विकास प्रशासन नवीन कार्यक्रमों एवं नवीन पद्धतियों को अपनाने पर बल देता है ।
विकास प्रशासन एवं परम्परागत प्रशासन (Development Administration and Traditional Administration):
द्वितीय विश्व युद्ध के उपरान्त विकासशील देशों एवं नवोदित राष्ट्रों के प्रशासन के समक्ष अनेक चुनौतियाँ उभरकर सामने आई । ऐसे समय में परम्परागत लोक प्रशासन की सार्थकता संदिग्ध सिद्ध होने लगी । नवीन समस्याओं के समाधान हेतु नवीन सिद्धान्तों की आवश्यकता अनुभव की जाने लगी ।
परम्परागत एवं विकास प्रशासन का तुलनात्मक अध्ययन निम्न रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है:
(1) परम्परागत प्रशासन का प्रमुख दायित्व कानून एवं व्यवस्था (Law and Order) की स्थापना करना था । विकास को भी महत्व दिया जाता था किन्तु इस सम्बन्ध में नकारात्मक दृष्टिकोण (Negative Approach) ही अपनाया जाता था । परम्परागत प्रशासन विकास के मार्ग के अवरोधों को हटाने में रुचि लेता था ।
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इसके विपरीत, विकास प्रशासन जनकल्याणकारी एवं विकासात्मक कार्यों को प्रोत्साहन देने के लिये सकारात्मक दृष्टिकोण (Positive Approach) रखता है ।
(2) परम्परागत प्रशासन में कुशलता एवं मितव्ययिता सर्वोपरि थे जबकि विकास प्रशासन में जनता को सर्वोपरि स्थान प्राप्त होता है तथा यह स्वीकार किया जाता है कि प्रशासन का अस्तित्व जनता की सेवा एवं कल्याण के लिये है ।
(3) परम्परागत प्रशासन में पदसोपान व्यवस्था को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है । इसमें सत्ता उच्च अधिकारियों में निहित रहती है जो कि पदसोपानीय क्रम में अपने अधीनस्थों पर नियन्त्रण रखते हैं । इसके विपरीत, विकास प्रशासन परिस्थितियों का महत्व कहीं अधिक होता है । इसमें पदसोपान व्यवस्था की बाधाएँ तोड़ी भी जा सकती हैं ।
(4) परम्परागत प्रशासन के अपने निश्चित नियम, विनिमय व पद्धतियाँ थीं, जबकि विकास प्रशासन एक गतिशील अवधारणा है । इसमें स्थान व परिस्थितियों में परिवर्तन के परिणामस्वरूप नियमों व सिद्धान्तों में परिवर्तन वांछनीय है ।
परम्परागत एवं विकास प्रशासन के उपर्युक्त तुलनात्मक अध्ययन के आधार पर कहा जा सकता है कि वर्तमान परिवर्तित परिस्थितियों में विकास-प्रशासन ही एक औचित्यपूर्ण अवधारणा है ।