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Read this article in Hindi to learn about:- 1. Meaning and Definitions of Leadership 2. Types of Leadership 3. Functions 4. Merits.
नेतृत्व का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Leadership):
किसी भी प्रशासनिक संगठन की सफलता कुशल, योग्य एवं सक्षम नेतृत्व पर निर्भर करती है । किसी भी प्रशासनिक संगठन की असफलता के गौण कारण चाहे जो भी हो, लेकिन मूल कारण उसके नेतृत्व का अयोग्य व अक्षम होना ही पाया जाता है ।
एक कुशल नेता ही भौतिक व मानवीय संसाधनों का सदुपयोग करते हुए इनकी सहायता से निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु निरन्तर प्रयत्नशील रहता है । योग्य एवं कुशल नेतृत्व ही प्रशासनिक व्यवहार को सार्थक रूप प्रदान करता है । एक नेता की योग्यता व सफलता उसके व्यक्तित्व ज्ञान अनुभव एवं व्यवहार आदि पर अवलम्बित होती है ।
अंग्रेजी के शब्दकोश (Encyclopaedia of Britainica) में ‘नेतृत्व’ को ‘to lead’के अर्थ में प्रयुक्त किया गया है । सामान्य रूप से इसके दो अर्थ लगाये जाते हैं-प्रथम, ‘दूसरों से आगे जाना’ या ‘प्रसिद्ध होना’ । द्वितीय, ‘किसी को आदेश देना या मार्ग दिखाना’ या ‘किसी संगठन का प्रतिनिधित्व करना’ । प्रथम अर्थ वैयक्तिक रूप में द्वितीय संगठनात्मक रूप से प्रयुक्त होता है । नेतृत्व की विषयवस्तु के सम्बन्ध में विद्वान एकमत नहीं हैं ।
अत: विभिन्न विद्वानों द्वारा नेतृत्व की परिभाषा भिन्न-भिन्न रूपों में की गई है जो कि निम्नलिखित हैं:
सेक्लट हडसन के शब्दों में- ”बड़े-बड़े संगठनों में नेतृत्व की परिभाषा किसी उद्यम के प्रयोजनों की प्राप्ति हेतु समान प्रयत्न द्वारा व्यक्तियों को प्रेरित तथा प्रभावित करने के रूप में की जा सकती है ।”
टेरी के अनुसार- “नेतृत्व आपसी उद्देश्यों के लिये व्यक्तियों द्वारा स्वेच्छा से कार्य करने हेतु प्रभावित करने की क्रिया है ।”
आर्डवे टीड लिखते हैं- ”नेतृत्व उन गुणों के संयोग का नाम है जिनके कारण कोई व्यक्ति अन्य व्यक्तियों से कार्य कराने योग्य होता है विशेषकर उसके प्रभाव के कारण अन्य लोग स्वेच्छापूवक कार्य करने हेतु तत्पर हो जाते हैं ।”
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पीटर ड्रकर के मतानुसार- ”नेतृत्व एक ऐसी मानवीय विशेषता है जो मनुष्य की दृष्टि को व्यापक बना देती है और मनुष्य के निष्पादन स्तर को ऊँचा बनाने में सहायक होती है तथा साथ ही मनुष्य के व्यक्तित्व को सामान्य सीमाओं से परे कर देती है ।”
चेस्टर बर्नार्ड के कथनानुसार- “नेतृत्व व्यक्तियों के व्यवहार की गुणवत्ता को प्रदर्शित करता है जिसके द्वारा वे संगठित प्रयास में संलग्न लोगों का मार्गदर्शन करता है ।”
मूरे ने लिखा है- ”नेतृत्व एक ऐसी योग्यता है जो व्यक्तियों को नेता द्वारा अपेक्षित विधि के अनुसार कार्य करने हेतु प्रेरित करता है ।”
उपर्युक्त परिभाषाओं का सार यह है कि नेतृत्व किसी भी व्यवस्था में निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति हेतु व्यक्तियों के संयुक्त प्रयासों को सही दिशा में निर्दिष्ट कर सार्थक बनाने की प्रक्रिया है । नेतृत्व से तात्पर्य व्यक्तिगत सर्वोच्चता या प्रसिद्धि से नहीं वरन् उस गुण से है जो दूसरों का मार्गदर्शन करने हेतु वांछनीय होता है ।
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परिभाषाओं के विश्लेषण के उपरान्त नेतृत्व के निम्नलिखित प्रमुख तत्व या विशेषताएँ उभरकर सामने आती हैं:
(1) नेता वैयक्तिक गुणों एवं चारित्रिक विशेषताओं से युक्त होना चाहिये ।
(2) नेता पर विश्वास करने वाले अनुयायियों का एक समूह होना आवश्यक है ।
(3) नेता व अनुयायियों के सम्बन्ध तथा अनुयायियों के पारस्परिक सम्बन्ध पारस्परिक सहयोग की भावना पर आधारित होने चाहिये ।
(4) नेता व अनुयायियों में ऐसी समझ होना आवश्यक है कि वे संगठन के निर्धारित लक्ष्यों को वांछित एवं समाज के हित में माने ।
(5) नेता का दायित्व है कि वह अपने अनुयायियों को लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु कुशलतापूर्वक कार्य करने के लिये प्रेरित करें ।
नेतृत्व के प्रकार (Types of Leadership):
नेतृत्व के स्वरूप या प्रकार के सम्बन्ध में भी विद्वानों में मतैक्य नहीं है ।
‘ओहियो स्टेट विश्वविद्यालय’ ने नेतृत्व को निम्नलिखित पाँच वर्गों में विभक्त किया है:
(1) नौकरशाह के रूप में (As a Bureaucrat):
इस प्रकार के नेता के लिये सामान्य निर्धारित कार्यक्रम तथा नियम आदि सर्वाधिक महत्वपूर्ण होते हैं । वह वरिष्ठों को प्रसन्न करने में प्रयासरत रहता है तथा अधीनस्थ पर आज्ञापालन के लिये दबाव बनाकर रखता है अधीनस्थ सामान्यतया उदासीन रहते है एवं नेता के आदेशों की अवज्ञा करने में भी संकोच नहीं करते हैं ।
(2) तानाशाहके रूप में (As a Dictator):
इस वर्ग का नेता निरंकुशता की भावना से परिपूर्ण होता है । वह अधीनस्थों पर दवाब डालकर, उन्हें भयभीत या अपमानित करके कार्य कराने का अभ्यस्त होता है । ऐसी स्थिति में अधीनस्थों के मनों में अपने नेता के प्रति कोई सम्मान नहीं होता है तथा वे कार्यों को निष्ठापूर्वक नहीं करते हैं जिसके कारण परिणाम भी प्रतिकूल निकलते हैं ।
(3) कूटनीतिज्ञ के रूप में (As a Diplomat):
इस श्रेणी का नेता अवसरवादी प्रवृत्ति का होता है तथा अपने विरोधियों को परास्त करने का अवसर तलाशता रहता है । ऐसे नेता का स्वभाव स्वार्थपूर्ण होता है तथा वह अपने अधीनस्थों के साथ व्यवहार करते हुए भी स्वहित को दृष्टिगत रखता है । परिणामस्वरूप अधीनस्थ भी उससे पूर्ण सहयोग नहीं करते हैं ।
(4) विशेषज्ञ के रूप में (As an Expert):
इस प्रकार के नेता विशिष्ट कौशल से युक्त होते हैं । वे अपने विशिष्टता के कार्यक्षेत्र से बाहर कोई भी निर्णय लेने में संकोच करते हैं, किन्तु अपने क्षेत्र के विशेषज्ञ होने के कारण एवं अधीनस्थों से सहयोग करने के कारण वे सम्मान पाते हैं ।
(5) सहभागी के रूप में (As a Partner):
मानवीय सम्बन्धों को महत्व देने के कारण ऐसा नेता अपने अधीनस्थों के साथ अच्छा व्यवहार करता है तथा अधीनस्थ भी स्वेच्छापूर्वक अपने नेता के साथ पूर्ण सहयोग करते हैं ।
नेतृत्व के कार्य (Functions of Leadership):
नेतृत्व के कार्यों को किसी निश्चित सीमा में नहीं बाँधा जा सकता है । यही कारण है कि विभिन्न विद्वानों ने नेतृत्व के भिन्न-भिन्न कार्य वर्णित किये हैं ।
उन विभिन्न मतों के आधार पर ही नेतृत्व सामान्य रूप से निम्नलिखित कार्य सम्पन्न करता है:
(1) सहयोग की भावना (Feeling of Co-Operation):
नेता अकेले ही प्रशासनिक लक्ष्यों की प्राप्ति में सफल नहीं हो सकता है । कर्मचारियों के सहयोग से ही लक्ष्यों की प्राप्ति सम्भव है । अंत: नेता का कर्त्तव्य है कि वह कर्मचारियों के साथ मानवीय सम्बन्धों की स्थापना करके उनसे पूर्ण समर्थन व सहयोग प्राप्त करें ।
(2) अनुशासन की स्थापना (To Maintain Discipline):
नेता का प्रमुख दायित्व है कि वह संगठन में अनुशासन बनाकर रखे । अनुशासन के साथ कार्य के अधिक शीघ्र सम्पन्न होने की सम्भावना होगी साथ ही अनुशासनपूर्ण वातावरण कर्मचारियों के लिये लाभप्रद तथा उनके मनोबल को ऊँचा करने वाला सिद्ध होगा ।
(3) निष्ठापूर्ण (Full of Devotion):
नेता का निष्ठापूर्ण होना परम आवश्यक है अन्यथा वह संगठन के अन्य कर्मचारियों को निष्ठा के लिये प्रेरित करने में असमर्थ रहेगा । नेतृत्व के निष्ठाशील होने पर ही कर्मचारी वर्ग भी संगठन के लक्ष्यों एवं कार्यों के प्रति निष्ठा से युक्त हो सकेगा ।
(4) आदेश व सम्प्रेषण (Ordering and Communication):
नेतृत्व के लिये आवश्यक है कि वह संगठन में अपने अधीनस्थों को आवश्यक दिशा-निर्देश व आदेश दे जिससे कि कार्य-निष्पादन सुविधाजनक हो । आदेश इस प्रकार के होने चाहिये कि अधीनस्थ स्वेच्छापूर्वक एवं पूर्ण समर्पण भाव से कार्य सम्पन्न करें ।
इसके अतिरिक्त संगठन की सभी गतिविधियों में सामंजस्य होना भी आवश्यक है । यह सामंजस्य सफल सम्प्रेषण के माध्यम से ही सम्पन्न हो सकता है । नेता को अपने विचार व भावनाएँ कर्मचारियों तक सम्प्रेषित करने चाहिये । इसी प्रकार कर्मचारियों की गतिविधियों की सूचना भी नेतृत्व को निरन्तर मिलती रहनी चाहिये ।
(5) समन्वय (Co-Ordination):
किसी भी प्रशासनिक संगठन के अन्तर्गत कर्मचारियों के मध्य कार्य-विभाजन किया जाता है । यद्यपि वे पृथक-पृथक कार्यों का निष्पादन करते हैं, किन्तु उन सभी के कार्य एक ही लक्ष्य के प्रति उन्मुख होते हैं । नेतृत्व का कर्त्तव्य है कि वह इन कार्यों को इस प्रकार समन्वित करें कि वे निरन्तर लक्ष्योन्मुखी हों ।
(6) मूल्यांकन (Evaluation):
नेता को संगठन के कार्यों की प्रगति, कर्मचारियों के पारस्परिक सम्बन्धों एवं उनकी कर्त्तव्य-निष्ठा का निरन्तर मूल्यांकन करते रहना चाहिये इसके साथ ही जनता की भावनाओं तथा संगठन के कार्यों के प्रति जनता की प्रतिक्रियाओं का भी मूल्यांकन करते रहना चाहिये । इस मूल्यांकन के आधार पर ही संगठन की कमियों को दूर किया जा सकता है ।
निस्संदेह लोक प्रशासन के क्षेत्र में प्रत्येक संगठन में नेतृत्व का महत्व अत्यधिक है एक कुशल नेतृत्व पर ही संगठन की सफलता अवलम्बित है । संगठन के औचित्य को कर्मचारियों की दृष्टि में सिद्ध करने का दायित्व नेतृत्व का ही होता है । कर्मचारियों को यह अनुभूति कराई जाती है कि संगठन का अस्तित्व उनके हित में है ।
अत: संगठन की प्रगति हेतु उन्हें प्रयत्नशील रहना चाहिये । नेतृत्व का ही दायित्व है कि वह संगठन को आवश्यक भौतिक व मानवीय संसाधनों को उपलब्ध कराये तथा कर्मचारियों के कार्यों को समन्वित कर उन्हें लक्ष्य प्राप्ति की ओर उन्मुख करें ।
नेतृत्व के गुण (Merits of Leadership):
विभिन्न विद्वानों के द्वारा नेतृत्व के भिन्न-भिन्न गुणों का वर्णन किया गया है:
मिलेट के अनुसार- ‘अच्छा स्वास्थ्य, सेवा की भावना, आत्मविश्वास से पूर्ण, ईमानदार, निर्णयात्मक बुद्धि एवं निष्ठा से युक्त, उत्तरदायित्व की भावना से युक्त’ आदि गुण एक नेता में होने चाहिये ।
बर्नार्ड ने नेतृत्व के लिये चार गुणों को आवश्यक माना है:
(1) जीवन शक्ति एवं सहनशीलता,
(2) निर्णय की क्षमता,
(3) उत्तरदायित्व,
(4) बौद्धिक क्षमता ।
क्लीवलैण्ड के अनुसार नेतृत्व के अनिवार्य गुण हैं:
(1) लोकहित की भावना से प्रेरित,
(2) निजी अनुभवों से युकत,
(3) लोक-सम्बन्धों के लिये उत्तरदायी,
(4) जनता का नेता आदि ।
एपिलबी के अनुसार एक नेता के आवश्यक गुण हैं:
(1) आत्म विश्वास,
(2) समर्पण भाव,
(3) उत्तरदायित्वपूर्ण,
(4) तीक्ष्ण एवं आलोचनात्मक बुद्धि से युक्त,
(5) सहयोग की भावना,
(6) अधीनस्थों से कार्य कराने की क्षमता,
(7) संगठन के साधनों के समुचित प्रयोग की क्षमता,
(8) अच्छा श्रोता ।
उर्विक ने नेतृत्व के निम्नलिखित गुण बताये हैं:
(1) परिस्थितियों से लड़ने का साहस,
(2) दृढ़ इच्छा शक्ति,
(3) लचीलापन,
(4) सामंजस्य की क्षमता,
(5) उच्च बौद्धिक स्तर,
(6) ईमानदार ।
विभिन्न विद्वानों के मतों के विश्लेषण के उपरान्त कहा जा सकता है कि नेतृत्व के लिये सामान्यतया निम्नलिखित गुणों का होना आवश्यक है:
(1) दृढ़ इच्छा शक्ति (Strong Determination Power):
संगठन को लक्ष्य प्राप्ति की दिशा में निर्दिष्ट करने के लिए एक दृढ़ व स्थिर चरित्र व इच्छा शक्ति से युक्त नेता की आवश्यकता होती है । एक स्थिर इच्छा शक्ति एवं अनिर्णयात्मक प्रकृति का नेता होने पर परिणाम प्रतिकूल ही होंगे ।
(2) स्पष्ट दृष्टिकोण (Clear Views):
नेता को प्रशासनिक संगठन, उसके लक्ष्यों प्राप्ति हेतु प्रयुक्त साधनों नीतियों एवं उनके क्रियान्वयन के बारे में स्पष्ट दृष्टिकोण रखना चाहिये साथ ही नेता को एक खुले विचारों से युक्त व्यक्ति होना चाहिये ।
(3) विवेकयुक्त (Reasonable):
नेता में सही-गलत अथवा नैतिक अनैतिक में अन्तर करने की क्षमता होनी चाहिये । नेता को अक्सर चापलूस लोग घेर लेते हैं, किन्तु उसमें अपने विवेक के द्वारा सही आकलन की क्षमता होनी चाहिये तथा उसी के आधार पर विवेकपूर्ण निर्णय लेना चाहिये ।
(4) अधीनस्थों को प्रोत्साहन (Encouragement to Subordinates):
नेता को अपने अधीनस्थों के साथ तानाशाही का नहीं वरन् एक सहयोगी की तरह व्यवहार करना चाहिये । उनसे निकटता रखते हुए उनके गुण-दोषों को जानने का प्रयास करना चाहिये तथा उनके दोषों को सहानुभूतिपूर्ण तरीके से नियन्त्रित करने का प्रयास करना चाहिये । अधीनस्थों को अपने दृष्टिकोण के अनुरूप ढालने का प्रयास करना चाहिये ।
(5) पूर्वदृष्टि एवं दूरदृष्टि (Foresight and Farsightedness):
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एक नेता में पूर्वानुमान की क्षमता होनी चाहिये कि अमुक परिस्थितियों में किन लक्ष्यों की प्राप्ति सम्भव है तथा किन लक्ष्यों को त्यागना उचित है । साथ ही लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु कौन से साधन कारगर सिद्ध हो सकते हैं ?
ऐसी पूर्वदृष्टि रखने पर सफलता की सम्भावना बढ़ जाती है । इसके साथ ही नेता में दूरदर्शिता का भी गुण होना चाहिये कि भविष्य में कौन-कौन से परिवर्तन सम्भव हैं तथा उन परिवर्तित परिस्थितियों में वर्तमान के प्राप्त लक्ष्य किस सीमा तक औचित्यपूर्ण सिद्ध हो सकते हैं ?
(6) जन-सहयोग (Co-Operation of People):
नेता को सदैव जनता के सम्पर्क में रहना चाहिये तथा जनमत जानने के उपरान्त ही नीति-निर्धारण व नीति-क्रियान्वयन किया जाना चाहिये । जनमत पर आधारित नीतियाँ जन-सहयोग प्राप्त होने से सफल होती हैं । नेता को चाहिये कि वह प्रबन्ध के कार्य में अपने अधीनस्थों को साथ लेकर चले सहभागी-प्रबन्ध से कर्मचारियों की कार्य के प्रति रुचि जाग्रत होगी ।
एक नेता में यदि उपर्युक्त वर्णित सभी गुण विद्यमान होते हैं तो निस्संदेह वह एक सफल नेता की श्रेणी में आता है ।