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सूत्र तथा स्टाफ अभिकरण (Line and Staff Agencies):
किसी भी संगठन के अन्तर्गत क्रियाओं को सम्पादित करने वाले अभिकरणों (Agencies) को दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है । इन अभिकरणों को ‘सूत्र अभिकरण’ (Line Agency) एवं ‘स्टाफ अभिकरण’ (Staff Agency) के नाम से जाना जाता है ।
इन अभिकरणों के द्वारा क्रमश: प्राथमिक या कार्यात्मक (Primary or Functional) तथा संस्थागत या गृह प्रबन्ध (Institutional or House Keeping) सम्बन्धी कार्य सम्पादित किये जाते हैं ।
प्राथमिक क्रियाएँ वे क्रियाएँ हैं जिन्हें कोई सेवा अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिये करती है, जबकि संस्थागत क्रियाओं का सम्बन्ध विभाग के प्रमुख उद्देश्य से न होकर ऐसी बातों से है जिनको पूरा किये बिना विभाग का कार्य ही नहीं चल सकता है । विलोबी के शब्दों में- ”मुख्य क्रियाएँ तो स्वयं उद्देश्य हैं; जबकि संस्थागत क्रियाएँ उद्देश्य की प्राप्ति के साधन मात्र हैं ।”
सामान्यतया ‘सूत्र’ एवं ‘स्टाफ’ अभिकरणों के अर्थ को इन शब्दों में व्यक्त किया जा सकता है- सूत्र अभिकरण वह अभिकरण है जो विभाग के सामान्य या प्राथमिक कार्य को सम्पन्न करता है तथा ‘स्टाफ अभिकरण’ जिसे कार्मिक अभिकरण भी कहा जाता है विभाग के गृह सम्बन्धी या प्रबन्धात्मक कार्य को मम्पन्न करता है ।
जहाँ तक प्रशासनिक क्षेत्र का सम्बन्ध है किसी भी प्रशासनिक संगठन के शीर्ष पर मुख्य कार्यपालिका होती है जिसे अपने दायित्वों के निर्वहन हेतु व्यापक शक्तियाँ प्रदान की जाती हैं । मुख्य कार्यपालिका की सहायतार्थ अधीनस्थ अधिकारी होते हैं । इस वर्ग का सम्बन्ध नीति-निर्माण व उसके क्रियान्वयन से है इस वर्ग की सहायतार्थ एक मन्त्रणा देने वाला वर्ग होता है जिसका कार्य केवल परामर्श देना होता है । इसे मन्त्रणा या ‘स्टाफ अभिकरण’ (Staff Agency) कहा जाता है ।
विलोबी या अन्य लेखकों ने सरकार के कार्यों को दो भागों में विभाजित किया था किन्तु परवर्ती लेखकों ने सरकारी अभिकरणों के तीन भेद किये हैं- सूत्र, सहायक तथा स्टाफ । इन लेखकों में गौस, ह्वाइट पिफनर व प्रेस्थस के नाम उल्लेखनीय हैं ।
ह्वाइट के अनुसार पदसोपान में ‘सूत्र’ का केन्द्रीय स्थान होता है । सूत्र की सहायता के लिए अनेक इकाइयाँ होती हैं जिनका प्रमुख कार्य सलाह देना होता है । इन्हें ‘स्टाफ’ कहते हैं । इसके अतिरिक्त संस्थात्मक कार्यों को करने वाली इकाइयों को ‘सहायक’ अभिकरण कहा जाता है ।
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सूत्र अभिकरण की परिभाषाएँ (Definitions of Line Agency):
विभिन्न विद्वानों के द्वारा सूत्र अभिकरण को निम्नलिखित रूप में परिभाषित किया गया है:
लेपावस्की के मतानुसार- ”सूत्र संगठन में सत्ता व उत्तरदायित्व की रेखाएँ ऊपर से नीचे तक फैली होती हैं ।” अत: इन्हें लाइन या सूत्र की संज्ञा दी गयी है । उन्हीं शब्दों में- ”जिस प्रकार किसी भी वृक्ष की पत्ती की नसें उसके डण्ठल से जुड़ी रहती हैं और उन पत्तियों के डण्ठल टहनियों तक, टहनियों से शाखाओं तक तथा अनेक शाखाओं से वृक्ष के तने तक फैली होती हैं । जिस प्रकार ये नसें, डण्ठल, टहनियाँ, शाखाएँ आदि मिलकर वृक्ष के विकास व जीवन में सहायक होती हैं, उसी प्रकार सूत्र अभिकरण संगठन के सभी कार्यों से जुड़ा रहता है ।”
इस प्रकार कहा जा सकता है कि सूत्र वह क्रियाशील अभिकरण है जो संगठन आदि के लिए नीतियों एवं कानूनों का निर्माण करती है यह वह प्रत्यक्ष सत्ता है जो संगठन में निम्न अधिकारियों को कार्य करने के लिए प्रत्यक्ष आदेश देती है । यह संगठन में उच्च स्तर से निम्न स्तर की ओर अग्रसारित होती है ।
संगठन के संचालन की पूर्ण सत्ता सूत्र अभिकरण के नियन्त्रण में ही होती है । सूत्र अभिकरण के प्रमुख उदाहरण हैं- विभाग, स्वतन्त्र नियामकीय आयोग एवं लोक निगम ।
स्टाफ अभिकरण की परिभाषाएँ (Definitions of Staff Agency):
स्टाफ का साहित्यिक अर्थ ‘छड़ी’ है जिस प्रकार ‘छड़ी’ सहारा देती है तथा मार्ग प्रदर्शन करती है, उसी प्रकार स्टाफ का कार्य नीति निर्धारण आदि के सम्बन्ध में परामर्श देना है । स्टाफ या छड़ी स्वयं गतिशील नहीं होते हैं केवल सहारा-मात्र होते हैं । प्रशासन के क्षेत्र में स्टाफ का कार्य कार्यपालिका को प्रशासन सम्बन्धी कार्यों में सहायता प्रदान करना है ।
विभिन्न विद्वानों ने ‘स्टाफ’ की परिभाषा निम्नलिखित रूपों में की है:
हेनरी फेयोल के अनुसार- ”यह एक सहायता है… यह प्रबन्धक के व्यक्तित्व का एक प्रकार से विस्तार है जिससे कि अपने कर्त्तव्यों को पूर्ण करने में उसे सहायता मिल सके ।”
मूने के मतानुसार- ”स्टाफ कार्यपालिका के व्यक्तित्व का ही विस्तार है । इसका अर्थ है अधिक आँखें अधिक कान और अधिक हाथ जो कि उसको योजना बनाने तथा क्रियान्वित करने में सहायता दे सकें ।”
प्रो. ह्वाइट लिखते हैं- ”स्टाफ उच्च श्रेणी के पदाधिकारी को परामर्श देने वाला एक अभिकरण होता है, जिसकी कोई क्रियात्मक जिम्मेदारी नहीं होती है ।”
लेपावस्की के शब्दों में- ”स्टाफ सूत्र विभाग के लिए योजनाएँ बनाता है, उसको सलाह देता है और उसकी सहायता करता है, परन्तु यह आदेश नहीं दे सकता है । स्टाफ अभिकरणों का मुख्य उद्देश्य प्रबन्ध सम्बन्धी अथवा गृह प्रबन्ध सम्बन्धी सेवाएँ सम्पन्न करना है जिससे कि लक्ष्य फल प्राप्त हो सकें ।”
डॉ. विबासि के शब्दों में- ”स्टाफ सूत्र विभाग के लिए योजनाएँ बनाता है, उसको सलाह देता है, किन्तु आदेश नहीं दे सकता है ।”
इस प्रकार स्टाफ एक परामर्शदात्री निकाय है जो किसी भी प्रकार से नीतिनिर्माण या आदेश सम्बन्धी कार्य नहीं करता है ।
सूत्र व स्टाफ की अवधारणा का विकास सैन्य प्रशासन से हुआ है । सैन्य प्रशासन में दो प्रकार की इकाइयाँ कार्यरत होती हैं- सूत्र या लाइन इकाई में वे लोग आते हैं जो आदेश देते हैं संचालन व नेतृत्व करते हैं । इनका मुख्य उद्देश्य युद्ध में विजय प्राप्ति होता है । ये वास्तविक शक्ति से युका होते हैं ।
ये अधिकारी पदसोपान की शृंखला में होते हैं किन्तु सैन्य अधिकारियों के लिए युद्ध सामग्री रसद दवाइयाँ, डाक व अन्य सुविधाएँ उपलब्ध कराने के लिए जो इकाई कार्य करती है वह ‘स्टाफ’ कहलाती है । यह स्वयं युद्ध में भाग नहीं लेती है, किन्तु युद्ध में विजय प्राप्ति में सहायक होती है इस प्रकार सूत्र व स्टाफ की अवधारणा का सर्वप्रथम प्रयोग ‘सैन्य प्रशासन’ में हुआ तदुपरान्त नागरिक प्रशासन में भी इसका प्रयोग किया गया ।
सूत्र व स्टाफ के मध्य अन्तर (Distinction between Line and Staff):
सूत्र व स्टाफ के मध्य निम्नलिखित अन्तर हैं:
(i) सूत्र प्राथमिक व क्रियात्मक है, स्टाफ संस्थागत व प्रबन्धात्मक है,
(ii) सूत्र का उद्देश्य लक्ष्य-प्राप्ति है, स्टाफ लक्ष्य-प्राप्ति में सहायता देने वाली इकाई है ।
(iii) सूत्र का सम्बन्ध नीति-निर्माण व उनकी क्रियान्विति से है, स्टाफ का सम्बन्ध नियोजन व अन्य कार्यों में परामर्श देने से है ।
(iv) सूत्र अधिकारी व सूत्र इकाइयाँ आदेश देने का कार्य करती हैं, स्टाफ अधिकारी व स्टाफ इकाइयाँ आदेश नहीं दे सकती हैं, केवल परामर्श देती हैं ।
(v) सूत्र के कार्य साध्य रूप में होते हैं, स्टाफ के कार्य साधनों के रूप में होते हैं ।
(vi) निर्णय की समस्त शक्ति सूत्र अधिकारियों के हाथों में केन्द्रित रहती है स्टाफ निर्णयों की पृष्ठभूमि में रहता है तथा निर्णयों के लिए भूमिका तैयार करता है ।
जहाँ तक लोक प्रशासन की नूतन प्रवृत्ति का प्रश्न है, सूत्र व स्टाफ के मध्य एक स्पष्ट विभाजन रेखा खींचना जटिल कार्य है । भारतीय प्रशासनिक संगठन का विश्लेषण करने के बाद यह पाया गया कि समूचे प्रशासन में सूत्र व स्टाफ के कार्यों को पृथक् कर पाना सम्भव नहीं है जैसा कि पॉल एपिलबी ने विचार व्यक्त किए हैं- ”यहाँ ऐसी कोई शब्दावली तथा ऐसा कोई ढाँचा नहीं है जो कि ‘सूत्र’ तथा ‘स्टाफ’ के मध्य भेद कर सके । भारत में ये शब्द संगठन के ढाँचे में प्रयुक्त नहीं किए जा सकते हैं ।”
इसी प्रकार साइमन लिखते हैं- ”यह धारणा भ्रम और अविश्वास पर आधारित है कि स्टाफ केवल परामर्श देता है तथा वह आदेश-निर्देश जारी नहीं कर सकता है । ”लेपावस्की के शब्दों में” वस्तुत: स्टाफ और सूत्र किसी भी संगठन के परिपूरक लक्षण होते हैं न कि विरोध ।”
अत: स्पष्ट है कि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में सूत्र व स्टाफ के मध्य विभाजन रेखा खींचना असम्भव है । सूत्र व स्टाफ में समायोजन करना आज एक जटिल समस्या बनती जा रही है ।
स्टाफ अभिकरण के कार्य (Functions of Staff Agency):
स्टाफ अभिकरणों के कार्यों के सम्बन्ध में विद्वानों द्वारा भिन्न-भिन्न मत व्यक्त किए गए हैं ।
मूने के अनुसार स्टाफ अभिकरण द्वारा निम्नलिखित तीन प्रकार के कार्य सम्पादित किये जाते हैं:
(i) सूचना सम्बन्धी कार्य (Information Function):
स्टाफ अभिकरण अपने सूत्र अधिकारी को वे सारी सूचनाएँ प्रेषित करता है जिनसे संगठन सम्बन्धी प्राथमिक कार्यों को करने में सहायता प्राप्त होती है । तथ्यों की जानकारी के अभाव में निर्णय कर पाना सम्भव नहीं है ।
(ii) परामर्श सम्बन्धी कार्य (Advisory Functions):
स्टाफ अभिकरण न केवल तथ्यों व सूचनाओं को प्रेषित करता है वरन् उनके प्रयोग एवं निर्णय लेने से सम्बन्धित महत्वपूर्ण परामर्श भी देता है । इस सलाह या परामर्श को मानना या न मानना मुख्य कार्यपालिका का कार्य है ।
(iii) निरीक्षण सम्बन्धी कार्य (Supervisory Functions):
उच्च स्तरीय सूत्र अधिकारियों के निर्णय अधीनस्थों तक पहुँच रहे हैं या नहीं तथा उनकी क्रियान्विति की जा रही है या नहीं ? इस सम्बन्ध में निरीक्षण करना स्टाफ का दायित्व है । कार्य निष्पादन में उत्पन्न होने वाली समस्याओं का निराकरण करना भी स्टाफ के कार्य-क्षेत्र में आता है ।
प्रो. ह्वाइट के मतानुसार स्टाफ द्वारा किये जाने वाले कार्य निम्नलिखित हैं:
(a) प्रशासनिक समस्याओं का अध्ययन करना,
(b) योजना बनाना,
(c) परामर्श देना,
(d) अवलोकन करना ।
डॉ. महादेव प्रसाद के अनुसार स्टाफ अभिकरण तीन प्रकार के कार्य करता है- कार्य में निरीक्षण कठिनाई निवारण तथा समन्वय ।
पिफनर के अनुसार स्टाफ के कार्य निम्नलिखित हैं:
(1) मुख्य कार्यपालिका तथा विभागीय अध्यक्षों को परामर्श देना तथा उनसे परामर्श लेना ।
(2) योजनाओं व मानवीय सम्पर्कों के द्वारा प्रशासन में समन्वय करना ।
(3) खोज व अन्वेषण करना ।
(4) अन्य व्यक्तियों व संगठनों के साथ सम्पर्क कर ज्ञात करना कि वे क्या कर रहे हैं ।
(5) विभागों को उनके कार्यों में सहायता देना ।
(6) आवश्यक होने पर विभागीय अध्यक्ष से प्राप्त शक्तियों को उनकी सीमाओं के अन्तर्गत क्रियान्वित करना ।
स्टाफ अभिकरणों के प्रकार (Types of Staff Agencies):
पिफनर व प्रेस्थस ने स्टाफ अभिकरणों को निम्नलिखित तीन श्रेणियों में विभक्त किया है:
(i) सामान्य स्टाफ,
(ii) सहायक स्टाफ तथा
(iii) तकनीकी स्टाफ ।
(i) सामान्य स्टाफ (General Staff):
सामान्य स्टाफ का कार्य मुख्य कार्यपालिका को प्रशासनिक कार्यों के सम्पादन में सामान्य रूप से सहायता पहुँचाना है । इस स्टाफ का कार्य तथ्यों को एकत्रित करना, उनकी छँटनी करना एवं तथ्यों के प्रयोग के सम्बना में मुख्य कार्यपालिका को आवश्यक परामर्श देना है अपना कार्य कुशलता व दक्षतापूर्वक करने के लिए यह आवश्यक है कि स्टाफ कर्मचारी को अपने कार्य का समुचित ज्ञान हो । धैर्यवान परिश्रमी आज्ञाकारी एवं अपने कार्य में निपुण हो ।
भारत में मुख्य कार्यपालिका का सामान्य स्टाफ इस प्रकार है:
(a) मन्त्रिमण्डलीय सचिवालय (General Staff),
(b) प्रधानमन्त्री कार्यालय (1997 तक प्रधानमन्त्री कार्यालय कहलाता था),
(c) मन्त्रिमण्डलीय समितियाँ,
(d) योजना आयोग,
(e) संगठन तथा प्रणाली संभाग,
(f) गृह मन्त्रालय,
(g) केन्द्रीय सांख्यिकीय संगठन,
(h) संघ लोक सेवा आयोग एवं
(i) विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ।
(ii) सहायक स्टाफ (Auxiliary Staff):
प्रत्येक विभाग में कुछ ऐसे कार्य होते हैं जो विभागों के मुख्य कार्यों के अंश न होकर समान रूप से सभी विभागों को करने पड़ते हैं । जैसे- किसी भी लेख रिपोर्ट आदि को प्रकाशित कराना, लेखन सामग्री खरीदना, कार्मिकों की भर्ती, आय व्यय का विवरण रखना आदि । प्रो. ह्वाइट ने इन्हें ‘सहायक सेवाओं’ का नाम दिया है ।
इस अभिकरण का कार्य प्रक्रिया-विरुद्ध किये गये कार्य की जाँच करना होता है । सहायक स्टाफ की सेवा प्रधान न होकर गौण होती है प्रो. ह्वाइट के ही शब्दों में- ”एक विशाल एवं जटिल संगठन में स्टाफ एवं सहायक दोनों प्रकार के अभिकरण आवश्यक रहते हैं किन्तु वे गौण रहते हैं । ये सूत्र अभिकरण की सेवा करते हैं । सूत्र अभिकरण जनता की सेवा करता है ।”
(iii) तकनीकी स्टाफ (Technical Staff):
इस श्रेणी में तकनीकी ज्ञान से युक्त स्टाफ कर्मचारी आते हैं । मुख्य कार्यपालिका को प्राविधिक मामलों में परामर्श देने हेतु विशिष्ट तकनीकी ज्ञान से युक्त कर्मचारियों को रखा जाता है । इस श्रेणी में चिकित्सक वकील शिक्षा-शास्त्री आदि आते हैं । आधुनिक युग में इनका महत्व बढ़ता जा रहा है ।
सहायक अभिकरण (Auxiliary Agency):
पिफनर व प्रेस्थस ने सहायक अभिकरणों को स्टाफ अभिकरणों का ही एक हिस्सा माना है, जबकि विलोबी व एल. डी. ह्वाइट ने इनका स्वतन्त्र अस्तित्व स्वीकार किया है ।
विलोबी ने इन्हें ‘हाऊस कीपिंग’ तथा एल. डी. ह्वाइट ने ‘सहायक सेवायें’ कहा है । सहायक क्रियायें प्रशासन में सूत्र अभिकरणों को सहायता प्रदान करती हैं । पहले सहायक क्रियायें विभागों द्वारा ही सम्पन्न कर ली जाती थीं किन्तु अब स भी सूत्र विभागों में सहायक अभिकरणों की आवश्यकता होती है ।
स्टाफ अभिकरण व सहायक अभिकरण (Staff Agency and Auxiliary Agency):
प्रो. ह्वाइट के अनुसार स्टाफ व सहायक दोनों ही अभिकरण विभाग के गृह प्रबन्ध सम्बन्धी कार्यों को करते हैं तथा दानों ही गौण अभिकरण हैं उन्हीं के शब्दों में- ”एक विशाल एवं जटिल संगठन में स्टाफ और सहायक दोनों प्रकार के अभिकरण आवश्यक होते हैं किन्तु वे गौण होते हैं ।”
किन्तु दूसरी और साइमन आदि लेखकों ने स्टाफ व सहायक अभिकरणों के म हम स्पष्ट अन्तर स्वीकार किया है- ”सहायक व स्टाफ इकाइयों में सामान्यतया यह भेद माना जाता है कि सहायक इकाइयाँ वे होती हैं जो कि कुछ सामान्य कार्यों को सम्पन्न करके सूत्र संगठनों की सहायता करती हैं जबकि स्टाफ इकाइयाँ कुछ ऐसे कार्य सम्पन्न करके मुख्य कार्यकारी की सहायता करती हैं जिन्हें वह सूत्र संगठनों को हस्तान्तरित नहीं कर सकती ।”
भारतीय लोक प्रशासन में स्टाफ अभिकरण (Staff Agencies in Indian Public Administration):
भारतीय लोक प्रशासन के प्रमुख स्टाफ अभिकरण निम्नलिखित हैं:
(i) प्रधानमन्त्री कार्यालय (Prime Minister’s Office):
भारत में प्रधानमन्त्री सचिवालय की स्थापना 15 अगस्त, 1947 को की गयी । इसे उन कार्यों को करना था जिन्हें स्वतन्त्रता से पूर्व गवर्नर जनरल के सचिव द्वारा किया जाता था । इस सचिवालय का प्रधान कार्य प्रधानमन्त्री को सभी विषयों में आवश्यक सूचनाएं व परामर्श प्रदान करना है ।
यह प्रधानमन्त्री को शासकीय दायित्वों राज्य शासन योजना आयोग एवं राष्ट्रीय विकास परिषद् से सम्बन्धित दायित्वों के बारे में तत्काल उचित परामर्श प्रदान करता है ।
(ii) मन्त्रिमण्डल सचिवालय (Cabinet Secretariat):
स्वातन्त्रोत्तर भारत में मन्त्रिमण्डल सचिवालय की स्थापना गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी परिषद् के स्थान पर की गयी । यह मुख्य कार्यपालिका (प्रधानमन्त्री) के सहयोगियों का एक संगठन है जिसका अध्यक्ष एक सचिव कहलाता है ।
यह मन्त्रिमण्डल की बैठकें आयोजित करता है, उनके लिए कार्य-सूचियों तैयार करता है, मन्त्रिमण्डल के समक्ष विचारार्थ विषय प्रस्तुति; मन्त्रिमण्डल द्वारा लिए गये निर्णयों के अभिलेख तैयार करना आदि कार्य भी सम्पन्न करता है ।
सचिवालय की भूमिका में निरन्तर वृद्धि होती जा रही है । इस नई भूमिका में नीतियाँ तय करना, विभिन्न मन्त्रालयों के निर्णयों को प्रभावित करना मन्त्रियों के विवाद मध्यस्थ रूप में सुलझाना आदि सम्मिलित हैं ।
(iii) मन्त्रिमण्डल समितियाँ (Cabinet Committees):
भारत में मन्त्रिमण्डल के कार्य-भार को हल्का करने हेतु अब तक कुल तेरह मन्त्रिमण्डल समितियों की नियुक्ति की जा चुकी है । ये समितियाँ विभिन्न विषयों पर परामर्श देती हैं तथा ‘स्थायी समितियाँ’ (Standing Committees) कहलाती हैं ।
इसके अतिरिक्त कई ‘तदर्थ या अस्थायी समितियाँ’ हैं । लगभग सभी समितियों का अध्यक्ष प्रधानमन्त्री होता है । इन सभी समितियों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण समिति ‘राजनीतिक मामलों की समिति’ है । यह ‘सुपर कैबिनेट’ के रूप में जानी जाती है ।
(iv) योजना आयोग (Planning Commission):
भारत सरकार ने सन् 1950 में ‘योजना आयोग’ की स्थापना की । यह एक परामर्शदात्री निकाय है । आयोग का कार्य देश के सामाजिक व आर्थिक विकास हेतु दीर्घकालीन योजनाएँ बनाना है । देश के लिए पंचवर्षीय योजनाएँ तैयार करना, उनके कार्यान्वयन में सहायता देना तथा लक्ष्य पूर्ति का मूल्यांकन करना योजना आयोग का दायित्व है । प्रधानमन्त्री योजना आयोग का अध्यक्ष होता है । व्यावसायिक योग्यता से युक्त कतिपय मन्त्री भी इसके सदस्य होते हैं । मन्त्रिमण्डल सचिव योजना आयोग का भी सचिव होता है ।
(v) राष्ट्रीय विकास परिषद् (National Development Council):
भारतीय संघात्मक शासन में केन्द्र द्वारा निर्मित पंचवर्षीय योजनाओं को राज्यों में सफलतापूर्वक क्रियान्वित करने के उद्देश्य से ‘राष्ट्रीय विकास परिषद्’ की स्थापना की गयी है । प्रधानमन्त्री इस परिषद् के अध्यक्ष होते हैं तथा सभी राज्यों के मुख्यमन्त्री व योजना आयोग के सदस्य इस परिषद् के सदस्य होते हैं । मुख्यमन्त्रियों के इस परिषद् का सदस्य होने के कारण योजनाओं को राज्यों में लागू कराने में कोई कठिनाई नहीं आती है ।
(vi) संघ लोक सेवा आयोग (Union Public Service Commission):
यह एक परामर्शदात्री निकाय है । यह आयोग केन्द्र की उच्च सेवाओं में नियुक्ति हेतु परीक्षाओं का संचालन करता है । यह आयोग कार्मिकों की भर्ती नियुक्ति सेवा विमुक्ति आदि से सम्बन्धित आवश्यक परामर्श भी देता है ।
(vii) केन्दीय जाँच ब्यूरो (Central Bureau of Investigation):
यह ब्यूरो प्रधानमन्त्री की देख-रेख में संचालित एक गुप्तचर संस्था है जो प्रधानमन्त्री द्वारा सौंपे गये मामलों की एवं भ्रष्टाचार व कुप्रशासन से सम्बन्धित मामलों की आवश्यक जाँच पड़ताल करती है ।
(viii) संगठन तथा प्रणाली संभाग (Organization and Methods):
यह संभाग केन्द्रीय मन्त्रालयों, विभागों तथा कार्यालयों के कार्यों की आलोचनात्मक दृष्टि से मूल्यांकन करता है और उनको ऐसे सुझाव देता है जिससे कि कार्य समय से सम्पदा हो जाये । इस संभाग का एक अन्य कार्य मंत्रिपरिषद के सचिवालय की प्रशासकीय शाखा को परामर्श देना भी है ।
(ix) विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (University Grant Commission):
इस आयोग का गठन सन् 1956 में किया गया । यह उच्च शिक्षा को प्रोत्साहित करने से सम्बन्धित आवश्यक पहलुओं पर विचार करता है तथा इसी सन्दर्भ में महत्वपूर्ण संस्तुतियाँ प्रस्तुत करता है ।
उपर्युक्त वर्णन से विदित होता है कि भारतीय लोक प्रशासन में स्टाफ अभिकरण विभिन्न रूपों में कार्य करता है ।
ब्रिटेन में स्टाफ अभिकरण (Staff Agencies in Britain):
ब्रिटेन में प्रधानमन्त्री को सहायता प्रदान करने वाले प्रमुख स्टाफ अभिकरण निम्नलिखित हैं:
(i) मन्त्रिमण्डलीय सचिवालय (Cabinet Secretariat)- यह मन्त्रिमण्डल की बैठकों का समस्त विवरण रखता है । इस प्रकार यह अभिलेख रखने वाला निकाय है ।
(ii) कोष विभाग (Treasury)- वर्तमान में कोष विभाग का कार्य सरकारी कर्मचारियों के वेतन की व्यवस्था एवं उनके कार्यों का मूल्यांकन करना है ।
(iii) मन्त्रिपरिषद समितियाँ (Cabinet Committees)- मन्त्रियों के कार्य-भार को कम करने के उद्देश्य से मन्त्रिमण्डलीय समितियों की स्थापना की गई । ये समितियाँ दो प्रकार की होती हैं- स्थायी समितियाँ (Standing Committies) एवं तदर्थ समितियाँ (Ad-hoc Committees) ।
संयुक्त राज्य अमेरिका में स्टाफ अभिकरण (Staff Agencies in the U.S.A):
अमेरिका राष्ट्रपति के ‘कार्यकारी कार्यालय’ के प्रमुख अंग निम्नलिखित हैं:
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(i) ह्वाइट हाउस कार्यालय (Prime Minister’s Office),
(ii) प्रबन्ध एवं बजट कार्यालय (Cabinet Secretariat),
(iii) राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद (Cabinet Committee),
(iv) आर्थिक सलाहकार परिषद (Planning Commission),
(v) प्रशासनिक-परिषद (National Development Council) ।