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Read this article in Hindi to learn about the nature of public administration in a state.
लोक प्रशासन की प्रकृति को लेकर विद्वानों में तीव्र मतभेद है कि लोक प्रशासन को विज्ञान की श्रेणी में रखा जाये अथवा कला की ।
इसी मतभेद के आधार पर विद्वानों को चार श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है:
(1) लोक प्रशासन को विज्ञान मानने वाले विचारक ।
(2) लोक प्रशासन को विज्ञान न मानने वाले विचारक ।
(3) लोक प्रशासन को कला मानने वाले विचारक ।
(4) लोक प्रशासन को कला व विज्ञान दोनों की श्रेणी में रखने वाले विचारक ।
इस विषय में गहराई से विचार करने से पूर्व यह जान लेना आवश्यक है कि विज्ञान शब्द का क्या अर्थ है ?
लोक प्रशासन एक विज्ञान है (Public Administration is a Science):
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विज्ञान क्या है ? (What is Science ?):
लोक प्रशासन विज्ञान है या नहीं इसका निर्णय करने से पूर्व विज्ञान का अर्थ समझना आवश्यक है तभी यह निर्णय किया जा सकता है कि विज्ञान की कितनी बातें लोक प्रशासन में भी पाई जाती हैं ?
थॉम्पसन ने लिखा है- ”विज्ञान वह सम्पूर्ण, देय, ग्राह्य एवं प्रामाणिक ज्ञान है जिसका नियमानुकूल निरीक्षण एवं परीक्षण द्वारा अध्ययन हो सके और जो संक्षिप्तता, स्थिरता और तत्सम्बन्धित सिद्धान्तों को मानता हो ।”
ग्रीन के अनुसार- ”विज्ञान अनुसन्धान की एक पद्धति है ।”
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लॉवेल के मतानुसार- ”प्रत्येक विज्ञान संसार की ओर एक दृष्टिकोण एक प्रमाणित एवं व्यवस्थित ज्ञान तथा खोज करने की पद्धति है ।”
गार्नर लिखते हैं कि- ”विज्ञान किसी विषय से सम्बन्धित उस ज्ञान राशि को कहते हैं जो विधिवत पर्यवेक्षण, अनुभव एवं अध्ययन के आधार पर प्राप्त की गई है और जिसके तथ्य परस्पर सम्बद्ध, क्रमबद्ध एवं वर्गीकृत किये गये हों ।”
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर विज्ञान की निम्नलिखित विशेषताएँ बताई जा सकती हैं:
(1) पर्यवेक्षण या निरीक्षण (Observation),
(2) वर्गीकरण (Classification),
(3) सारणीकरण (Tabulation),
(4) अनुसन्धान (Investigation),
(5) प्राक्कल्पना (Hypothesis),
(6) सहसम्बन्ध (Co-Relation),
(7) यथार्थता (Exactness),
(8) पूर्वानुमान (Predictability),
(9) यथार्थ निष्कर्ष (Exact Conclusion) ।
लोक प्रशासन को एक विज्ञान मानने वाले विचारकों की श्रेणी में प्रमुख हैं लूथर गुलिक उर्विक बुडरो विल्सन विलोबी आदि ।
इन विद्वानों द्वारा लोक प्रशासन को विज्ञान मानने के पक्ष में निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किये जाते हैं:
(1) क्रमबद्ध अध्ययन (Systematic Study):
क्रमबद्ध अध्ययन के द्वारा प्राप्त ज्ञान विज्ञान कहलाता है । लोक प्रशासन का अध्ययन भी क्रमबद्ध रूप से किया जाता है । इस आधार पर इस विषय को विज्ञान की श्रेणी में रखा जा सकता है । क्रमबद्ध अध्ययन पद्धति के प्रमुख चरण इस प्रकार हैं- परिकल्पना तथ्यों का संग्रह तथ्यों की पुष्टि तथ्यों का वर्गीकरण तुलनात्मक अध्ययन विश्लेषण एवं निष्कर्ष लोक प्रशासन के अन्तर्गत इन सभी चरणों का क्रमानुसार अनुकरण किया जाता है ।
प्राप्त निष्कर्षों के आधार पर कई बार सत्यता या भविष्यवाणी का अभाव उसी प्रकार है जिस प्रकार मौसम विज्ञान की भविष्यवाणी सदैव सत्य नहीं होती है । किन्तु जिस प्रकार मौसम विज्ञान को विज्ञान की श्रेणी में ही रखा जाता है इसी आधार पर लोक प्रशासन भी विज्ञान है ।
(2) वैज्ञानिक पद्धतियों का प्रयोग (Use of Scientific Methods):
विज्ञान की भांति ही लोक प्रशासन में तथ्यों तथा आकड़ों का संकलन करके उनका विश्लेषण किया जाता है तथा कुछ निश्चित निष्कर्ष निकाले जाते हैं । इन निष्कर्षों के आधार पर ही सामान्य नियम स्थापित किये जाते हैं । इस प्रकार लोक प्रशासन में वैज्ञानिक पद्धतियों का अनुकरण करके ही सामान्य नियम स्थापित किये जाते हैं ।
उदाहरणार्थ – टेलर व उसके समकालीन लेखकों के द्वारा वैज्ञानिक पद्धति के आधार पर सत्यापित किए गए प्रशासनिक सिद्धान्त । इसी प्रकार वित्तीय प्रशासन से सम्बन्धित विभिन्न सिद्धान्त एवं एल्टन मेयो के द्वारा वैज्ञानिक पद्धति के आधार पर सत्यापित सिद्धान्त भी उल्लेखनीय हैं ।
(3) निश्चित नियम (Fixed Rules):
विज्ञान में निश्चित एवं आधारभूत सिद्धान्तों का संकलन किया जाता है । इसी प्रकार लोक प्रशासन के भी कुछ सर्वमान्य सिद्धान्त हैं । यथा-नियन्त्रण क्षेत्र, आदेश की एकता टेलर का वैज्ञानिक, प्रबन्ध का सिद्धान्त आदि । इस आधार पर भी लोक प्रशासन को विज्ञान की संज्ञा दी जा सकती है ।
(4) नवीन प्रयोग (New Experiments):
जिस प्रकार विज्ञान में नवीन प्रयोग किये जाते हैं उसी प्रकार लोक प्रशासन में भी प्रशासनिक दोषों के उन्मूलन तथा प्रशासनिक तकनीक के विकास हेतु नये-नये प्रयोग किये जाते हैं । उदाहरणार्थ – तुलनात्मक लोक प्रशासन, विकास प्रशासन, नवीन लोक प्रशासन, नव लोक प्रबन्ध आदि ।
(5) तकनीकी ज्ञान (Technical Knowledge):
एक वैज्ञानिक की भांति एक कुशल प्रशासक को भी तकनीकी ज्ञान से युक्त होने की आवश्यकता होती है जिससे कि वह अपने दायित्वों का कुशलतापूर्वक निर्वाह कर सकें । इंग्लैण्ड के लोक प्रशासन संस्थान अमेरिका के मैक्सवेल ग्रेजुऐट स्कूल एवं भारतीय लोक प्रशासन संस्थान ने लोक प्रशासन के क्षेत्र में नवीन तकनीकी खोजों में सराहनीय योगदान दिया है ।
(6) भविष्यवाणी की सम्भावना (Possibility of Prediction):
मौसम-शास्त्र आदि ऐसे विज्ञान हैं जो मौसम की भविष्यवाणी करते हैं इसी प्रकार लोक प्रशासन में भी घटनाओं का अध्ययन करके कुशल प्रशासक यह अनुमान लगा सकते हैं कि इन घटनाओं के क्या परिणाम होंगे ?
लोक प्रशासन विज्ञान नहीं है (Public Administration is Not a Science):
अनेक प्रशासन लोक प्रशासन को एक विज्ञान नहीं मानते हैं तथा अपने मत के समर्थन में निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत करते हैं:
(1) निश्चितता का अभाव (Lack of Certainty):
अन्य विज्ञानों के समान लोक प्रशासन को निश्चितता (Certainty) या पूर्णता (Exactness) की कसौटी पर नहीं कसा जा सकता है विभिन्न विज्ञानों तथा भौतिक विज्ञानों एवं रसायन विज्ञानों आदि के नियम अपरिवर्तनशील एवं अकाट्य होते हैं किन्तु लोक प्रशासन के नियम स्थान व काल के अनुसार परिवर्तनशील होते हैं इसका प्रमुख कारण यह है कि प्राकृतिक विज्ञानों का सम्बन्ध जड़ पदार्थों से होता है जबकि लोक प्रशासन मानव व्यवहार से सम्बन्धित है जो कि निरन्तर परिवर्तनशील है ।
(2) एकरूपता का अभाव (Lack of Uniformity):
वैज्ञानिक तथ्यों एवं प्रयोगों के परिणाम समान होने के कारण विज्ञान के सिद्धान्तों में भी एकरूपता पाई जाती है किन्तु लोक प्रशासन में प्रशासक अपनी बुद्धि एवं मानवीय व्यवहार के परिप्रेक्ष्य में सिद्धान्तों की व्याख्या करता है । यही कारण है कि लोक प्रशासन के सिद्धान्तों में एकरूपता का अभाव बना रहता है ।
यद्यपि विलोबी, हेनरी फेयोल, उर्विक एवं टेलर आदि विद्वानों ने सार्वभौमिक सिद्धान्तों की रचना का प्रयास किया, किन्तु परस्पर विरोध मतभेद के कारण ऐसा नहीं हो सका ।
(3) पर्यवेक्षण का अभाव (Lack of Supervision):
विज्ञान में प्रयोगशाला का अत्यधिक महत्व है क्योंकि प्रयोगशाला में ही पूर्व अर्जित तथ्यों की सत्यता प्रमाणित की जाती है किन्तु लोक प्रशासन में ऐसी कोई प्रयोगशाला नहीं होती है जहाँ तथ्यों का परी क्षण किया जा सके ।
(4) भविष्यवाणी सम्भव नहीं (No Possibility of Prediction):
लोक प्रशासन मनुष्य की प्रशासनिक समस्याओं का अध्ययन करता है । मानवीय व्यवहार अनिश्चित होता है । व्यवहार की अनिश्चितता के कारण किसी भविष्यवाणी का किया जाना सम्भव नहीं होता है । इस आधार पर डॉ. अवस्थी लिखते हैं ”मानवीय क्रियाओं में सम्बन्धित होने के कारण लोक प्रशासन के नियम कम विश्वसनीय होते हैं क्योंकि मानवीय क्रियाकलापों के ऐसे मुख्य उद्देश्यों के सश्वना में बहुत कम ज्ञान होता है जिनमे विश्वास दृढ़ किया जाये अथवा मानव व्यवहार के सम्बरा में भविष्यवाणी की जा सके ।”
(5) आदर्शमूलक धारणाएँ (Idealistic Conceptions):
भौतिक विज्ञानों का अध्ययन यथार्थता पर आधारित होता है उनमें नैतिक मूल्यों या आदर्शों के लिए कोई स्थान नहीं होता है जबकि लोक प्रशासन एक आदर्श प्रशासनिक व्यवस्था के लिए प्रयत्नशील रहता है । इसमें मानवीय व्यवहारों भावनाओं नैतिक मूल्यों एवं आदर्शों को विशिष्ट स्थान प्राप्त होता है ।
दोनों पक्षों के मत के अध्ययन एवं विश्लेषण के उपरान्त यह स्पष्ट हो जाता है कि लोक प्रशासन को भौतिक विज्ञानों की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है किन्तु इसे एक सामाजिक विज्ञान के रूप में स्वीकार करने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए ।
यह एक प्रायोगिक विज्ञान नहीं वरन् सामाजिक विज्ञानों के समान पर्यवेक्षण विज्ञान है । इसके सिद्धान्त निरन्तर नवीन खोजों पर आधारित होने के कारण इसे एक प्रगतिशील विज्ञान कहा जा सकता है । लोक प्रशासन के क्षेत्र में किये जा रहे शोध यह सिद्ध करते हैं कि यह विषय वैज्ञानिकता की ओर निरन्तर अग्रसर है ।
लोक प्रशासन एक कला के रूप में (Public Administration as an Art):
कला का अर्थ (Meaning of Art):
किसी भी ज्ञान के व्यावहारिक प्रयोग को सामान्यतया कला का नाम दिया जा सकता है कला में ज्ञान की अपेक्षा अभ्यास पर अधिक बल दिया जाता है ग्लैडन ने उचित ही लिखा है- ”कला मानव योग्यता से सम्बन्धित ऐसा ज्ञान है जिसमें सिद्धान्त की अपेक्षा अभ्यास पर अधिक बल दिया जाता है” डॉ. एम. पी. शर्मा के मतानुसार” कला का अपना कौशल होता है तथा यह व्यवस्थित ढंग से व्यवहार में लायी जाती है ।
लोक प्रशासन कला है- प्रो. हाहट उर्विक डॉ. एम. पी. शर्मा एवं आर्डवे टीड आदि विचारक लोक प्रशासन को एक कला के रूप में स्वीकार करते हैं ।
लोक प्रशासन को कला मानने के सम्बन्ध में सामान्यतया निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किये जाते हैं:
(1) विकास प्रक्रिया (Process of Evolution):
अन्य कलाओं के समान ही लोक प्रशासन का विकास भी शनै:- शनै: क्रमिक रूप से हुआ है जैसा कि ग्लैडन ने लिखा है- ”प्रशासन का विकास एक विशिष्ट कार्य की भांति समाज के विकास के साथ-साथ शनै:- शनै हुआ है ।”
(2) व्यवस्थित अध्ययन (Systematic Study):
कला किसी भी विषय का व्यवस्थित अध्ययन है । इस दृष्टि से लोक प्रशासन भी एक कला है जिसके अन्तर्गत विभिन्न युगों का व्यवस्थित अध्ययन करते हुए कतिपय निश्चित नियम स्थापित किये गये । लोक प्रशासन ने जनता के अतीत व वर्तमान को सुधारने के साथ-साथ भविष्य की सम्भावनाओं को भी उजागर किया है ।
(3) प्रेरणा एवं उद्देश्य (Inspiration and Objective):
एक कलाकार के समान ही प्रशासक भी अभ्यास एवं अनुभव के आधार पर ही कुशल एवं सफल सिद्ध हो सकता है । ‘सत्यम शिवम् सुन्दरम्’ की अभिव्यक्ति होती है । इसी प्रकार प्रशासन इस संसार का सत्य है उसके उद्देश्य शिव अर्थात् लोक कल्याणकारी हैं तथा तकनीकी सौन्दर्य उसे कलात्मकता प्रदान करता है ।
(4) निश्चित नियम (Fixed Rules):
कला की सफलता निश्चित नियमों पर आधारित होती है । इसी प्रकार लोक प्रशासन में भी निश्चित नियमों का अभाव होने पर प्रशासकों की स्वेच्छाचारिता एवं प्रशासन के स्वरूप के विकृत होने की सम्भावना बनी रहती है ।
(5) परिवर्तनशील (Changeable):
विकासशील होने के कारण जिस प्रकार कला के सिद्धान्तों एवं प्रक्रिया में परिवर्तन होता रहता है उसी प्रकार लोक प्रशासन में भी विकास की प्रक्रिया जारी रहती है त था नवीन सिद्धान्तों की सम्भावना बनी रहती है ।
(6) चातुर्य एवं योग्यता (Cleverness and Skill):
चातुर्य एवं योग्यता से ज्ञान का उपयोग करना ही कला कहलाता है इसी प्रकार प्रशासन की सफलता भी प्रशासक की योग्यता एवं उसके चातुर्य पर निर्भर करती है । जैसा कि महात्मा गाँधी ने कहा था- ”प्रशासन को सफल बनाने के लिए कुछ योग्य एवं कर्मठ व्यक्तियों की आवश्यकता होती है । इन लोगों के प्रयत्नों से ही प्रजातन्त्र का वास्तविक रूप साकार हो सकता है ।”
(7) पद्धति एवं प्रशिक्षण (Method and Training):
पद्धतियों का अनुसरण करने तथा उनकी परिवर्तनशीलता के दृष्टिकोण से भी लोक प्रशासन एक कला है । साथ ही प्रशिक्षण के दृष्टिकोण से भी लोक प्रशासन को कला कहना उचित प्रतीत होता है । कला व लोक प्रशासन दोनों ही क्षेत्रों में प्रशिक्षण वांछनीय है ।
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(8) सिद्धान्त एवं व्यवहार में सामंजस्य (Co-Ordination between Theory and Practice):
कला अमूर्त (Abstract) वस्तु को मूर्त (Concrete) रूप प्रदान करती है । इसी प्रकार लोक प्रशासन में सिद्धान्तों को सामाजिक हित के उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु व्यवहार में लाया जाता है अर्थात उसकी क्रियान्वित की जाती है ।
उपर्युक्त सभी लक्षण विद्यमान होने के कारण प्रशासन को एक कला के रूप में भी स्वीकार किया जाता है । अन्त में सम्पूर्ण विश्लेषण के आधार पर कहा जा सकता है कि लोक प्रशासन विज्ञान भी है तथा कला भी है यदि सैद्धान्तिक दृष्टि से इसे विज्ञान के रूप में स्वीकार किया जाता है तो व्यावहारिक दृष्टि से यह एक कला है ।
एक कुशल प्रशासक लोक प्रशासन के सिद्धान्तों का वैज्ञानिक की भांति अध्ययन कर उन सिद्धान्तों को एक कलाकार की दक्षता से व्यवहार में लाता है । यद्यपि लोक प्रशासन को भौतिक विज्ञान की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है, किन्तु अर्थशास्त्र एवं मनोविज्ञान जैसे सामाजिक विज्ञानों की श्रेणी में अवश्य रखा जा सकता है । लोक प्रशासन के क्षेत्र में हो रहे निरन्तर शोध कार्यों से यह निरन्तर वैज्ञानिकता की ओर अग्रसर है । निष्कर्ष रूप में यही कहा जा सकता है कि लोक प्रशासन विज्ञान भी है तथा कला भी है ।
चार्ल्स वर्थ के शब्दों में- ”प्रशासन कला है क्योंकि उसमें उत्तमता, नेतृत्व, उत्साह तथा उच्च विचारों की आवश्यकता होती है । यह एक विज्ञान है क्योंकि इसमें निगमनात्मक विश्लेषण, पद्धयात्मक संगठन, सतर्कतायुक्त नियोजन तथा विवेकसम्मत साधनों की आवश्यकता होती है ।”