ADVERTISEMENTS:
Read this article in Hindi to learn about:- 1. Meaning of New Public Administration 2. Origin and Development of New Public Administration 3. Goals 4. Present Circumstances and Possibilities 5. Evaluation.
Contents:
- नवीन लोक प्रशासन से अभिप्राय (Meaning of New Public Administration)
- नवीन लोक प्रशासन का उद्भव एवं विकास (Origin and Development of New Public Administration)
- नवीन लोक प्रशासन के लक्ष्य (Goals of New Public Administration)
- नवीन लोक प्रशासन: वर्तमान परिस्थितियाँ एवं सम्भावनाएँ (New Public Administration Present Circumstances and Possibilities)
- नवीन लोक प्रशासन का मूल्यांकन (Evaluation of New Public Administration)
1. नवीन लोक प्रशासन से अभिप्राय (Meaning of New Public Administration):
लोक प्रशासन में नवीनता से तात्पर्य है ‘किसी भी प्रचलित प्रशासनिक व्यवस्था में नवीन तथ्यों व नवीन विधियों को प्रभावी करना ।’ तकनीकी दृष्टि से इसका आशय ‘प्रशासनिक संगठन व्यवहार विधियों एवं प्रक्रियाओं में संगठित एवं व्यवस्थित सुधार करना है ।’
नवीन लोक प्रशासन में आधुनिक विकास का अर्थ एक ऐसी प्रवृत्ति को जन्म देना है जो परम्परा से चली आ रही प्रशासनिक व्यवस्था को आदर्श मानने के लिये तैयार नहीं है और उसमें संशोधन व परिवर्तन करने के उपायों की खोज करती रहती है ।
लोक प्रशासन के विद्वानों के मतानुसार परम्परागत लोक प्रशासन नकारात्मक तथा नवीन लोक प्रशासन की अवधारणा सकारात्मक है । लोक हित की भावना से प्रेरित नवीन लोक प्रशासन विकेन्द्रीकरण में विश्वास करता है । परम्परागत लोक प्रशासन दक्षता, तटस्थता और मूल्य शून्यता के आदर्शों को महत्वपूर्ण मानता है, जबकि नवीन लोक प्रशासन से सम्बद्ध विचारक प्रतिबद्धता, सामाजिक उपयोगिता और नैतिकता को महत्व देते हैं ।
नवीन लोक प्रशासन के सिद्धान्तों का आधार नैतिकता व सामाजिक मूल्य है । नवीन लोक प्रशासन ने परम्परागत लोक प्रशासन के मूल्यों को यथावत् रखते हुए उनमें कुछ नये मूल्यों का समावेश किया । परम्परागत लोक प्रशासन के मूल्यों- कार्यकुशलता, मितव्ययिता, समन्वित प्रबन्ध व्यवस्था तथा उच्च स्तरीय प्रबन्ध व्यवस्था पर बल देने के साथ-साथ सामाजिक समानता की नवीन धारणा का भी नवीन लोक प्रशासन में समावेश किया गया है ।
नवीन लोक प्रशासन की मुख्य धारणा है कि समाज में व्यापक रूप से संस्थानीकरण को महत्व दिया जाये जिससे कि सामान्य जनता प्रशासन में अधिकाधिक हिस्सा ले सके तथा राष्ट्रीय समस्याओं के प्रति जागरूक हो सके । इसके अतिरिक्त नियोजन व्यवस्था पर अधिक बल देते हुए ‘कार्यक्रम नियोजन’ एवं ‘बजट तकनीक’ को भी इस नवीन व्यवस्था में सम्मिलित किया गया है ।
ADVERTISEMENTS:
2. नवीन लोक प्रशासन का उद्भव एवं विकास (Origin and Development of New Public Administration):
ADVERTISEMENTS:
सन् 1968 के पश्चात् लोक प्रशासन के अध्ययन क्षेत्र में नये विचारों का उदय हुआ है । इन विचारों को ही ‘नवीन लोक प्रशासन’ की संज्ञा दी गई । सन् 1967 में ‘हनी प्रतिवेदन’ के प्रकाशन के साथ ही ‘नवीन लोक प्रशासन’ को मान्यता मिली ।
तदुपरान्त नवीन लोक प्रशासन को आगे बढ़ाने में ‘लोक प्रशासन के सिद्धान्त एवं व्यवहार’ पर सम्मेलन (1967); मिन्नोब्रुक सम्मेलन (1968) की उल्लेखनीय भूमिका रही । सन् 1971 में फ्रेंक मैरीनी द्वारा सम्पादित पुस्तक ‘नवीन लोक प्रशासन की दिशाएँ: मिन्नोब्रुक परिप्रेक्ष्य में’ के प्रकाशन के साथ ही ‘नवीन लोक प्रशासन’ को एक नई दिशा प्राप्त हुई । इस ग्रन्थ की रचना सन् 1968 में आयोजित ‘मिन्नोब्रुक सम्मेलन’ के निष्कर्षों के आधार पर की गई ।
‘नवीन लोक प्रशासन’ के उदय एवं विकास में निम्नलिखित घटनाओं का सराहनीय योगदान रहा:
ADVERTISEMENTS:
(1) हनी प्रतिवेदन, 1967,
(2) लोक प्रशासन के सिद्धान्त एवं व्यवहार, 1967,
(3) मिन्नोब्रुक सम्मेलन, 1968,
(4) फ्रेंक मैरीनी एवं ड्वाइट वाल्डो के प्रकाशन ।
(1) हनी प्रतिवेदन 1967 (The Honey Report, 1967):
सन् 1967 में जॉन सी. हनी ने ‘सार्वजनिक सेवाओं सम्बन्धी उच्च शिक्षा’ पर अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत किया । प्रतिवेदन में लोक प्रशासन के क्षेत्र को विस्तृत एवं व्यापक बनाने पर बल दिया गया है ।
प्रतिवेदन में स्वीकार किया गया कि इस दिशा में कार्य करने में निम्नलिखित समस्याएँ सामने आती हैं:
(i) लोक प्रशासन को एक स्वतन्त्र विषय के रूप में विश्वविद्यालयों में लागू करने में एवं शोध आदि की व्यवस्था हेतु धन का अभाव ।
(ii) लोक प्रशासन के सम्बन्ध में बौद्धिक विभेद कि यह एक अनुशासन है या विज्ञान या व्यवसाय है ।
(iii) लोक प्रशासन के विद्वानों एवं प्रशासकों में अन्तर ।
इन समस्याओं पर विचार करने के बाद हनी प्रतिवेदन में निम्नलिखित सिफारिशें प्रस्तुत की गईं:
(i) लोक सेवा शिक्षा सम्बन्धी ‘राष्ट्रीय आयोग’ की स्थापना पर बल दिया गया । आयोग का प्रमुख दायित्व शासन हेतु शिक्षित मानव शक्ति उपलब्ध कराना निश्चित किया गया ।
(ii) शासकीय एवं सार्वजनिक मामलों से सम्बन्धित शोध कार्यों में रत व्यक्तियों को आर्थिक व अन्य प्रकार की सहायता प्रदान की जाये ।
(iii) लोक प्रशासन में स्नातकोत्तर परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले छात्रों के लिये छात्रवृतियों की व्यापक व्यवस्था की जाये ।
(iv) लोक सेवा को जीविका के रूप में अपनाने वालों को छात्रवृतियाँ दी जाएँ ।
(v) लोक प्रशासन के अन्तर्गत सम्पूर्ण शासकीय क्रिया-विधायिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका को सम्मिलित किया जाये ।
(vi) लोक प्रशासन एवं सार्वजनिक मामलों के विद्यालयों को उदारतापूर्वक सहायता दी जाये ।
(vii) नवीन लोक प्रशासन कार्यक्रम के लिये ‘नवीन परामर्शदात्री सेवा’ आरम्भ की जाये ।
‘हनी प्रतिवेदन’ पर मिश्रित प्रतिक्रिया हुई । जहाँ एक ओर प्रस्तुत सिफारिशों का स्वागत किया गया वहीं दूसरी ओर अपेक्षित रह गये मुद्दों के लिये तीव्र आलोचना की गई ।
(2) लोक प्रशासन: सिद्धान्त एवं व्यवहार सम्बन्धी सम्मेलन, 1967 (Public Administration : Convention in Regard of Theory and Practice, 1967):
सन् 1967 में अमेरिकी राजनीति विज्ञान एवं समाजशास्त्र परिषद् के तत्वाधान में जे.सी. चार्ल्सवर्थ की अध्यक्षता में एक सम्मेलन का आयोजन किया गया । यह ‘फिलाडेल्फिया सम्मेलन’ भी कहलाता है ।
इस सम्मेलन में लोक प्रशासन के सिद्धान्त एवं व्यवहार, क्षेत्र, अध्ययन पद्धति आदि विषयों पर गम्भीर विचार-विमर्श करने के उपरान्त निम्नलिखित सुझाव प्रस्तुत किये गये:
(i) लोक प्रशासन के क्षेत्र को स्पष्ट करना सरल नहीं है ।
(ii) कतिपय परिस्थितियों में लोक प्रशासन द्वारा भी नीतियों का निर्माण किया जाता है, अत: नीति-निर्माण एवं लोक प्रशासन में विभाजन करना उचित नहीं है ।
(iii) लोक प्रशासन को राजनीति विज्ञान से पृथक माना जाना चाहिए ।
(iv) ‘लोक प्रशासन’ एवं ‘वाणिज्य प्रशासन’ का प्रशिक्षण एक-सा नहीं होना चाहिये ।
(v) भावी प्रशासकों को व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थानों द्वारा प्रशिक्षित किया जाना चाहिये ।
(vi) लोक प्रशासन में प्रशिक्षण कार्यक्रमों एवं शिक्षा का उद्देश्य मात्र प्रबन्धात्मक योग्यताओं एवं तकनीकी निपुणताओं का विकास न होकर विभिन्न सरकारी अभिकरणों में कार्यरत सार्वजनिक कर्मियों, प्रशिक्षणार्थियों एवं विद्यार्थियों में सामाजिक चेतना को अधिक गहन करना होना चाहिये ।
(vii) परिवर्तित परिस्थितियों में पदसोपानीय धारणा तर्कसंगत प्रतीत नहीं होती है ।
(viii) नौकरशाही अध्ययन प्रकार्यात्मक (Functional) एवं संरचनात्मक (Structural) दोनों ही तरह से किया जाना चाहिये ।
(ix) समाज की अनेक नवीन समस्याओं, यथा-श्रम व संघ हड़तालें, दंगे, सार्वजनिक स्थलों से सम्बन्धित विवाद, निर्धनता, बेरोजगारी, अस्वच्छता, प्रदूषण एवं गिरता सामाजिक स्तर आदि की ओर लोक प्रशासन को अधिक ध्यान देना चाहिये ।
इस सम्मेलन ने लोक प्रशासन की परिधि को विस्तृत करने में उल्लेखनीय योगदान दिया ।
(3) मिन्नोब्रुक सम्मेलन, 1968 (The Minnow Brook Conference, 1968):
यह सम्मेलन युवा पीढ़ी का सम्मेलन था ।
सम्मेलन के लिये दो कारण प्रमुख रूप से उत्तरदायी थे:
(i) 1960 का दशक उथल-पुथल का काल था ।
(ii) पुराने एवं युवा पीढ़ी के बीच मतभेद नजर आने लगे थे ।
इस सम्मेलन में चर्चा का प्रमुख विषय यह था कि परिवर्तनशील समाज में लोक प्रशासन की क्या भूमिका होनी चाहिये ? नवीन लोक प्रशासन के समर्थक लोक प्रशासन की प्रचलित व्यवस्था से असन्तुष्ट थे । वे उथल-पुथल के काल में लोक प्रशासन के जागरूक होने की अपेक्षा करते थे ।
नवीन लोक प्रशासन के समर्थक मूल्य निरपेक्ष शोध प्रयासों के परित्याग पर अधिक बल देते हैं तथा सामाजिक न्याय के अनुरूप उपागम को अपनाने के समर्थक हैं । उनकी मान्यता है कि लोक प्रशासन को सामाजिक समस्याओं के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होना चाहिये ।
इस सम्मेलन द्वारा लोक प्रशासन को नवीन छवि प्रदान की गई ।
(4) फ्रेंक मैरीनी तथा ड्वाइट वाल्डो के प्रकाशन (Works of Frank Marini and Dwight Waldo):
सन् 1971 में दो महत्वपूर्ण ग्रन्थ प्रकाशित हुए- फ्रेंक मैरीनी द्वारा सम्पादित ‘नवीन लोक प्रशासन की दिशाएँ-मिन्नोब्रुक परिप्रेक्ष्य में’ (Towards a New Public Administration- Minnow Brook Perspective) तथा ड्वाइट वाल्डो द्वारा सम्पादित ‘उथल-पुथल के काल में लोक प्रशासन’ (Public Administration in a Time of Turbulence) ।
इन दोनों ग्रन्थों के द्वारा मिन्नोब्रुक सम्मेलन के निष्कर्षों का व्यापक प्रसार किया गया । मैरीनी की पुस्तक नवीन लोक प्रशासन पर लिखी गई प्रथम पुस्तक है । ये दोनों रचनाएँ लोक प्रशासन के अध्ययन क्षेत्र में नूतन क्षितिज को उद्घाटित करने में सफल हुई हैं ।
उपर्युक्त विश्लेषण से यह पूर्णतया स्पष्ट हो जाता है कि ‘नवीन लोक प्रशासन’ ने लोक प्रशासन के क्षेत्र को व्यापक, लोकहितकारी एवं सारगर्भित बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है । इस दिशा में प्रयास अभी भी जारी हैं । सन् 1988 व 2008 में सम्पन्न हुए द्वितीय एवं तृतीय मिन्नोब्रुक सम्मेलन इस तथ्य की पुष्टि करते हैं ।
(i) द्वितीय मिन्नोब्रुक सम्मेलन (The Minnow Brook Conference II, 1988):
सितम्बर, 1988 में ‘द्वितीय मिन्नोब्रुक सम्मेलन’ आयोजित किया गया । 4 सितम्बर, 1988 को इस सम्मेलन की बैठक सिराक्रूज विश्वविद्यालय में हुई । इसमें लगभग 60 विद्वानों ने भाग लिया जो कि राजनीति विज्ञान लोक प्रशासन इतिहास अर्थशास्त्र एवं समाजशास्त्र आदि विषयों के ज्ञाता थे ।
यह सम्मेलन प्रथम मिन्नोब्रुक सम्मेलन की अपेक्षा अधिक व्यावहारिक एवं बोधगम्य था । इसमें लोक प्रशासन की वर्तमान स्थिति एवं उसकी भविष्य दृष्टि पर विशेष बल दिया गया । यद्यपि मिन्नोब्रुक के प्रथम व द्वितीय सम्मेलनों के गठन एवं विषय वस्तु में भिन्नता थी तथापि दोनों का प्रमुख केन्द्र यही था कि लोक प्रशासन को किस प्रकार एक अध्ययन विषय के रूप में स्थापित किया जाये ?
(ii) तृतीय मिन्नोब्रुक सम्मेलन (The Minnow Brook Conference II, 1988):
3-7 सितम्बर, 2008 को सिराक्यूज विश्वविद्यालय के तत्वाधान में तथा ‘प्रो. रोजमेरी ओ लियरी’ के नेतृत्व में ‘तृतीय मिन्नोब्रुक सम्मेलन’ आयोजित किया गया । इसमें वार्ता का प्रमुख विषय था- ‘लोक प्रशासन, लोक-प्रबन्ध तथा लोक सेवा का समकालीन विश्व में भविष्य’ । इस सम्मेलन में 13 देशों के 220 विद्वानों ने भाग लिया ।
3. नवीन लोक प्रशासन के लक्ष्य (Goals of New Public Administration):
‘नवीन लोक प्रशासन’ के चार प्रमुख लक्ष्यों का संक्षिप्त विवरण निम्नांकित है:
(1) प्रासंगिकता (Priority):
परम्परागत लोक प्रशासन के लक्ष्य थे – कुशलता एवं मितव्ययिता । नवीन लोक प्रशासन ने इन लक्ष्यों को अप्रासंगिक करार देते हुए प्रासंगिकता को अपना लक्ष्य चुना जिसमें सम्बद्ध सामाजिक समस्याओं के प्रति गहरी चिन्ता व्यक्त की गई । नवीन लोक प्रशासन की मान्यता के अनुसार लोक प्रशासन का ज्ञान एवं शोध समाज की आवश्यकता के सन्दर्भ में प्रासंगिक होना चाहिये ।
(2) मूल्य (Value):
नवीन लोक प्रशासन समाज के लिये आदर्शात्मक मूल्यों पर जोर देता है । मिन्नोब्रुक सम्मेलन में परम्परागत लोक प्रशासन के मूल्यों को छिपाने के व्यवहार को अस्वीकार किया गया । नैतिकता के मूल्य पर विशेष प्रकाश डालते हुए कहा गया कि प्रशासनिक अधिकारियों के क्रियाकलापों में नैतिकता के प्रति चेतना अवश्य जाग्रत की जानी चाहिये ।
नवीन लोक प्रशासन के समर्थकों की मान्यतानुसार ‘मूल्य-तटस्थता का सिद्धान्त’ समाज के सशक्त वर्ग के हितों का संवर्द्धक है । अत: मूल्य-तटस्थता के स्थान पर प्रशासन को मूल्य आधारित बनाया जाना चाहिये ।
(3) सामाजिक समानता (Social Equality):
नवीन लोक प्रशासन को प्रशासनिक एवं सार्वजनिक नीतियों का क्रियान्वयन इस तरह करना चाहिये कि समाज के दुर्बल एवं असहाय वर्ग का संवर्द्धन हो सके तथा समाज में सामाजिक व आर्थिक असमानताएँ दूर हो सकें । नवीन लोक प्रशासन के अनुसार ‘सामाजिक समानता’ अथवा ‘सामाजिक न्याय’ को लोक प्रशासन के सिद्धान्त, अध्ययन एवं व्यावहारिक कार्यक्रमों का आधार बनाया जाना चाहिये ।
(4) परिवर्तन (Change):
लोक प्रशासन के क्षेत्र में परिवर्तन से तात्पर्य है- प्रशासनिक व्यवस्था की जड़ता को दूर करके प्रभावशीलता में वृद्धि करना तथा सामाजिक समता के लक्ष्य की प्राप्ति हेतु नये-नये विकल्पों की खोज करना ।
वर्तमान में समाज निहित स्वार्थों का पोषक बना हुआ है । लोक प्रशासन को सामाजिक परिवर्तन के औजार के रूप में प्रयुक्त कर समाज को निहित स्वार्थों के शिकंजे से मुक्त कराकर सामाजिक न्याय के मार्ग पर अग्रसर करना है ।
नवीन लोक प्रशासन द्वारा समन्वित गुणों यथा राजनीति व प्रशासन, नीति-निर्माण व नीति-क्रियान्वयन तथा प्रशासन के सैद्धान्तिक एवं व्यवहारिक पक्ष पर बल देने के कारण इसे ‘समन्वित प्रशासन’ (Integrated Administration) भी कहा जा सकता है ।
4. नवीन लोक प्रशासन: वर्तमान परिस्थितियाँ एवं सम्भावनाएँ (New Public Administration Present Circumstances and Possibilities):
नवीन लोक प्रशासन वर्तमान की समस्याओं एवं चुनौतियों के लिये वैचारिक एवं कार्यात्मक आधार तैयार करता है । उदाहरणार्थ- लोक प्रशासन का अध्ययन व कार्यक्षेत्र प्रासंगिक होना चाहिये, लोक प्रशासन मूल्य आधारित होना चाहिये, लोक प्रशासन का प्रमुख लक्ष्य सामाजिक न्याय की स्थापना होना चाहिये, यान्त्रिक को नहीं वरन् मानवीय दृष्टिकोण को महत्व दिया जाना चाहिये ।
वर्तमान में लोक प्रशासन को परम्परागत कार्यों के अतिरिक्त लोक कल्याणकारी कार्य भी सम्पन्न करने पड़ते हैं । इस हेतु नवीन संरचनाएँ एवं कार्यविधियों उपयोगी व सार्थक सिद्ध हो सकती हैं । लोक प्रशासन की वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए कहा जा सकता है कि उसके विकास की तीव्र सम्भावनाएँ हैं ।
ADVERTISEMENTS:
5. नवीन लोक प्रशासन का मूल्यांकन (Evaluation of New Public Administration):
ADVERTISEMENTS:
नवीन लोक प्रशासन ने लोक प्रशासन की परम्परागत विषयवस्तु को व्यापकता प्रदान की है तथा अनेक सकारात्मक पहलुओं में अपना विश्वास व्यक्त किया है तथापि नवीन लोक प्रशासन की भी विद्वानों के द्वारा आलोचना की गई है । कैम्पबेल इसकी नवीनता को अस्वीकृत करते हुए लिखते हैं कि- ”यह पुराने लोक प्रशासन से भिन्न केवल इसलिये है कि यह अन्य युगों की अपेक्षा एक भिन्न प्रकार की सामाजिक समस्याओं के प्रति दोषपूर्ण है ।”
एक अन्य विद्वान गोलमब्यूस्की के मतानुसार नवीन लोक प्रशासन- ”शब्दों में क्रान्ति एवं उग्रवाद है पर तकनीकों एवं कौशल में अधिक-से-अधिक यथापूर्व स्थिति ही है ।”
इन विद्वानों के विपरीत कतिपय विद्वान इस तथ्य को स्वीकार करते हैं कि लोक प्रशासन में निश्चित रूप से नवीन प्रवृत्तियाँ परिलक्षित हुई हैं । नीग्रो एवं नीग्रो के मतानुसार लोक प्रशासन ने नये क्षेत्र में पदार्पण किया है तथा पाठ्यक्रम में भी नवीन विषयवस्तु का समावेश किया है । इस नवीन तत्वों में सर्वाधिक प्रशंसनीय सामाजिक न्याय की सिफारिश करना है । नवीन लोक प्रशासन के अन्तर्गत मूल्यों एवं नैतिकता का प्रश्न भी अहम् है ।
आलोचकों की यह भी धारणा रही है कि यह आवश्यक नहीं है कि नवीन दृष्टिकोण के आधार पर निर्मित नीतियाँ जन-इच्छाओं के अनुकूल ही हों, किन्तु इन सभी आलोचनाओं के बावजूद यह स्वीकार करना होगा कि नवीन लोक प्रशासन ने पारम्परिक लोक प्रशासन को एक नई दिशा एवं नई प्रेरणा प्रदान की है ।