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Read this article in Hindi to learn about:- 1. Meaning of Pay and Pay Commission 2. Principles to Determine the Pay 3. Recommendation of Pay Commission.
वेतन व वेतन आयोग का अर्थ (Meaning of Pay and Pay Commission):
वेतन उस धनराशि को कहते हैं जो किसी कर्मचारी या पदाधिकारी को उसके कार्यों व दायित्वों को सम्पन्न करने के बदले मासिक आय के रूप में दिया जाता है । उसकी जीविका का यह एक महत्वपूर्ण साधन है ।
किसी विशिष्ट सेवा की ओर व्यक्ति का जो आकर्षण होता है वह उसके ‘वेतन’ या ‘प्रतिफल’ को ध्यान में रखकर ही होता है । कर्मचारी के लिये वेतनमान ही प्रेरक शक्ति होता है । वेतन पर ही उसका जीवन-स्तर, सामाजिक प्रतिष्ठा व बच्चों का भविष्य निर्भर करता है ।
वेतन निर्धारण के सम्बन्ध में निम्नलिखित बातें उल्लेखनीय हैं:
(1) कार्य की प्रकृति,
(2) कर्मचारी की क्षमता,
(3) कर्मचारी का अनुभव,
(4) रहन-सहन का स्तर,
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(5) सामाजिक जीवन,
(6) उत्तरदायित्व के अनुरूप,
(7) क्षेत्र-विशेष की निर्वाह-व्यय दर ।
वेतन निर्धारण के सिद्धान्त (Principles to Determine the Pay):
वेतन निर्धारण के सम्बन्ध में सरकार द्वारा कोई न कोई सिद्धान्त अवश्य अपनाया जाता है ।
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इनमें से कुछ प्रमुख सिद्धान्तों का वर्णन निम्नवत् है:
(1) समान कार्य के लिये समान वेतन (Equal Pay for Equal Work):
एक ही प्रकार के कार्य के लिये एक ही प्रकार के वेतन की व्यवस्था से अभिप्राय है कि जो व्यक्ति एक ही प्रकार के कार्यों या दायित्वों का निर्वहन करते हैं उन्हें एक ही वर्ग में रखा जाता है तथा समान वेतन की व्यवस्था की जाती है ।
(2) सोपानी योजना सिद्धान्त:
इस योजना के अन्तर्गत वेतन क्रम में न्यूनतम व अधिकतम वेतन का उल्लेख होना चाहिये । साथ ही वृद्धि दर भी निश्चित होनी चाहिये ।
(3) आदर्श नियोक्ता का सिद्धान्त:
वेतन क्रम इतने आकर्षक होने चाहिये कि कर्मचारी शासकीय सेवाओं में आने के इच्छुक रहें । सामाजिक स्तर को ध्यान में रखते हुए वेतन निर्धारित किये जाने चाहिये ।
(4) आवश्यक पूर्ति का सिद्धान्त:
कर्मचारियों की विभिन्न आवश्यकताओं की जानकारी प्राप्त करने के बाद उनकी आवश्यकताओं के अनुरूप वेतन निर्धारित किया जाना चाहिये ।
(5) निर्वाह-व्यय का सिद्धान्त:
वेतन क्रम का निर्धारण जीवनोपयोगी वस्तुओं के मूल्यों को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिये ।
वेतन आयोगों की अनुशंसाएँ (Recommendation of Pay Commission):
भारतीय लोक सेवकों के वेतनमानों के सम्बन्ध में विभिन्न समयों पर गठित आयोगों ने अपनी संस्तुतियाँ प्रस्तुत कीं जिनके आधार पर वेतन-क्रमों में आवश्यक संशोधन किये जाते रहे हैं:
तीसरे वेतन आयोग (1973) ने पदों का जो वर्गीकरण उनके वेतन-क्रमों के आधार पर निर्धारित किया वह कतिपय संशोधनों के साथ आज भी ज्यों-का-त्यों बना हुआ है ।
यह वर्गीकरण इस प्रकार है:
(1) केन्द्रीय सेवा में सिविल पद (समूह क)- न्यूनतम वेतन व वेतनमान 1,300 रुपये से कम न हो ।
(2) केन्द्रीय सेवा में सिविल पद (समूह ख)- न्यूनतम वेतन व वेतनमान 900 रुपये से अधिक व 1,300 रुपये से कम हो ।
(3) केन्द्रीय सेवा में सिविल पद (समूह ग)- न्यूनतम वेतन व वेतनमान 290 रुपये से अधिक व 900 रुपये से कम हो ।
(4) केन्द्रीय सेवा में सिविल पद (समूह घ)- न्यूनतम वेतन व वेतनमान 290 रुपये से अधिक न हो ।
चतुर्थ वेतन आयोग (1984) अनुशंसा पर अखिल भारतीय सेवाओं की निम्नलिखित आठ वेतन श्रेणियाँ निर्धारित की गईं:
(a) कनिष्ठ वेतनमान,
(b) समय वेतनमान,
(c) कनिष्ठ प्रशासनिक ग्रेड,
(d) चयनित वेतनमान,
(e) उच्चतम वेतनमान (संयुक्त सचिव),
(f) उच्चतम वेतनमान (अतिरिक्त सचिव),
(g) उच्चतम वेतनमान (सचिव),
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(h) उच्चतम वेतनमान (मन्त्रिमण्डल सचिव) ।
चतुर्थ वेतन आयोग ने केन्द्रीय सरकार के कर्मचारी का न्यूनतम वेतन 750 रुपये तथा अधिकतम 9,000 रुपये करने की सिफारिश की ।
पाँचवें वेतन आयोग (1997) ने न्यूनतम वेतन 2,440 रुपये एवं अधिकतम वेतन 30,000 रुपये प्रतिमाह निर्धारित किया । बाद में न्यूनतम वेतन 2,550 रुपये कर दिया गया । आयोग ने कुल मिलाकर 33 वेतनमान निर्धारित किये ।
छठे वेतन आयोग ने 24 मार्च, 2008 को अपनी रिपोर्ट केन्द्रीय वित्त मन्त्री पी. चिदम्बरम को प्रस्तुत की । न्यायमूर्ति बी. एन. श्रीकृष्णा की अध्यक्षता वाले इस आयोग ने वेतन ग्रेडस की मौजूदा संख्या 35 को कम करके 20 कर दिया ।
न्यूनतम वेतन 6,600 रुपये प्रतिमाह एवं अधिकतम 90,000 रुपये प्रतिमाह निर्धारित किया गया ।