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Read this article in Hindi to learn about:- 1. Definitions of Position Classification 2. Basis of Position Classification 3. Position Classification in Britain 4. Position Classification in U.S.A. 5. Position Classification in India 6. Advantages and Disadvantages.
Contents:
- पद-वर्गीकरण की परिभाषाएँ (Definitions of Position Classification)
- पद-वर्गीकरण के मूल आधार (Basis of Position Classification)
- ब्रिटेन में पद-वर्गीकरण (Position Classification in Britain)
- संयुक्त राज्य अमेरिका में पद-वर्गीकरण (Position Classification in U.S.A.)
- भारत में पद-वर्गीकरण (Position Classification in India)
- पद-वर्गीकरण के लाभ व हानियाँ (Advantages and Disadvantages of Position Classification)
1. पद-वर्गीकरण की परिभाषाएँ (Definitions of Position Classification):
किसी भी संगठन में प्रशासनिक कर्मचारियों के पृथक्-पृथक् कर्त्तव्य व उत्तरदायित्व होते हैं जिनके आधार पर उसका पद निर्धारित किया जाता है इसे ही ‘पदवर्गीकरण’ कहा जाता है । अन्य शब्दों में पद वह स्थिति है जिसमें कतिपय निर्धारित उद्देश्यों की पूर्ति का उत्तरदायित्व सौंपा जाता है । जब समान कर्त्तव्यों की पूर्ति करने वाले पदों को मिलाकर एक वर्ग में रखा जाता है तो इसी को ‘पदवर्गीकरण’ कहा जाता है ।
विभिन्न विद्वानों द्वारा पद-वर्गीकरण की परिभाषाएँ अग्रलिखित रूपों में प्रस्तुत की गयी हैं:
पिफनर लिखते हैं- ”वर्गीकरण से हमारा अभिप्राय है कि समान कार्य तथा समान उत्तरदायित्व वाले पद एक ही श्रेणी में रखे जाते है चाहे वह किसी भी विभाग अथवा सेवा से सम्बन्धित हों ।”
साइमन के अनुसार- ”पद-वर्गीकरण में मुख्य विचार यह है कि उन सभी पदों जिनके लिए एकसमान उत्तरदायित्व है व एकसमान कर्त्तव्य है को भर्ती तथा प्रतिफल आदि के उद्देश्य से एक ही वर्ग में रखा जाना चाहिए ।”
डिमॉक व डिमॉक के अनुसार- ”वर्गीकरण का अर्थ तुलनात्मक कठिनाइयों एवं उत्तरदायित्वों के अनुसार पदसोपान के रूप में पदों को छाँटना व श्रेणीबद्ध करना है ।”
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प्रो. ह्वाइट के मतानुसार- ”पद-वर्गीकरण की सम्पूर्ण योजना वह ढाँचा है जिस पर लोक सेवा की कार्मिक आवश्यकताओं का निर्माण हुआ है । यह सार्वजनिक रोजगार से सम्बन्धित विभिन्न प्रकार के कार्यों एवं उत्तरदायित्वों के तार्किक विश्लेषण का परिणाम है ।”
मार्सटीन मार्क्स के शब्दों में- ”वर्गीकरण से अभिप्राय कर्त्तव्यों एवं अपेक्षित योग्यताओं की समानता के आधार पर पदों को समूहबद्ध करना है ।”
इस प्रकार कहा जा सकता है कि कार्मिक प्रशासन में कर्त्तव्यों व उत्तरदायित्वों के आधार पर व्यक्तियों को समूहबद्ध करना पद-वर्गीकरण कहलाता है ।
2. पद-वर्गीकरण के मूल आधार (Basis of Position Classification):
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प्रशासनिक क्षेत्र में पदों को निम्नलिखित आधारों पर वर्गीकृत किया जाता है:
(i) पद का कार्यक्षेत्र (Area of Position):
पदों को कार्य क्षेत्र के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है अर्थात् एक ही प्रकार के कार्य करने वालों को एक वर्ग में रखा जाता है जैसे चिकित्सक इंजीनियर आदि ।
(ii) कार्य की प्रकृति (Nature of Work):
अधिक महत्वपूर्ण कार्य सम्पहा करने वाले उच्च पदों पर आसीन होते हैं, जबकि कम महत्व के कार्यों को सम्पादित करने वाले अपेक्षाकृत निम्न पदों पर रहते है ।
(iii) पद के लिए योग्यतायें (Qualifications for the Post):
उच्च स्तरीय पदों के लिए विशिष्ट योग्यतायें आवश्यक होती हैं जबकि निम्न पदों के लिए सामान्य योग्यताएँ पर्याप्त हैं ।
(iv) पर्यवेक्षण के आधार पर (On the Basis of Supervision):
उच्च पदों पर पर्यवेक्षण की मात्रा कम होती है जबकि जिन पदों का ऊपर से अधिक पर्यवेक्षण किया जाता है उन्हें निम्न पदों की श्रेणी में रखा जाता है ।
(v) अधीक्षण के आधार पर (On the Basis of Control):
यदि पदाधिकारी के पास अधीक्षणात्मक शक्तियाँ अधिक हैं तो उसका पद उतना ही उच्च है तथा सीमित अधीक्षण शक्तियों से युक्त निम्न पदाधिकारी माने जाते हैं ।
(vi) क्षेत्र के आधार पर (On the Basis of Region):
कई बार कुछ विशेष पद क्षेत्र के आधार पर भी निर्मित किये जाते हैं जैसे- भारत में संघ शासित क्षेत्रों का प्रशासन ।
3. ब्रिटेन में पद-वर्गीकरण (Position Classification in Britain):
ब्रिटेन में लोक सेवाओं के संगठन का वास्तविक प्रयास 19वीं शताब्दी में प्रारम्भ हुआ । विभिन्न समयों पर गठित समितियों व आयोगों ने लोक सेवाओं के वर्गीकरण को अधिक व्यावहारिक बनाने से सम्बन्धित सुझाव प्रस्तुत किये ।
द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् ब्रिटेन में लोक सेवाओं का वर्गीकरण निम्नवत् था:
(i) प्रशासनिक वर्ग (Administrative Class);
(ii) निष्पादक वर्ग (Executive Class);
(iii) लिपिक वर्ग (Clerical Class);
(iv) व्यावसायिक, वैज्ञानिक व तकनीकी वर्ग (Professional, Scientific and Technical Class);
(v) छोटे व सहायक वर्ग (Minor and Auxiliary Classes);
(vi) औद्योगिक लोक सेवा (Industrial Civil Services);
(vii) राजनयिक सेवाएँ (Diplomatic Services) ।
व्यापक रूप में ब्रिटेन की लोक सेवाओं को चार वर्गों में विभक्त किया जा सकता है:
(i) औद्योगिक तथा गैर औद्योगिक सेवाएँ,
(ii) सुस्थापित तथा गैर सुस्थापित सेवाएँ,
(iii) राजकोषीय तथा विभागीय सेवाएँ,
(iv) सामान्य तथा विशेषज्ञ सेवाएँ ।
4. संयुक्त राज्य अमेरिका में पद-वर्गीकरण (Position Classification in U.S.A.):
अमेरिका में पद-वर्गीकरण का विचार उस समय अस्तित्व में आया जबकि सन् 1838 में एक बड़ी संख्या में सरकारी लिपिकों ने समान कार्य के लिए समान वेतन की माँग रखी । तत्पश्चात् 1853, 1990, 1923 में वर्गीकरण से सम्बन्धित योजनाएँ तैयार की गयीं ।
अन्तत: सन् 1949 में एक नवीन अधिनियम अस्तित्व में आया जिसके अनुसार पद-वर्गीकरण अग्रांकित हैं:
(i) व्यावसायिक एवं वैज्ञानिक सेवाएँ,
(ii) उप-व्यावसायिक एवं उप-वैज्ञानिक सेवाएँ,
(iii) प्रशासकीय, लिपिक-वर्गीय एवं सामान्य कार्य सम्बन्धी सेवाएँ,
(iv) अरिभत श्रम सेवाएँ (Custodian Labour Services),
(v) यान्त्रिक सेवाएँ ।
5. भारत में पद-वर्गीकरण (Position Classification in India):
भारत में पद वर्गीकरण की समस्या पर सर्वप्रथम ईस्ट इंडिया कम्पनी ने ध्यान दिया तथा लोक सेवकों को दो वर्गों में विभक्त किया-सम्बद्ध (Convenanted) तथा असम्बद्ध (Non-Covenanted) सन् 1887 में ‘एचिसन आयोग’ (Atchison Commission) की संस्तुतियों (Recommendations) के आधार पर भारतीय सेवाओं को तीन वर्गों में बाँटा गया-साम्राज्यीय (Imperial) प्रान्तीय (Provincial), तथा अधीनस्थ (Subordinate) ।
कतिपय कारणों यथा प्रान्तीय सेवाओं से सम्बद्ध अनेक कर्मचारियों को केन्द्रीय सरकार के अधिन रहकर कार्य करना पड़ता था असन्तोष की स्थिति उत्पन्न हुई । परिणामस्वरूप ‘इस्लिंगटन आयोग’ (Islington Commission 1912-15) ने सिफारिश की कि इन तीनों सेवाओं को दो वर्गों में विभक्त किया जाये उच्चतर सेवा एवं निम्नतर सेवा ।
सन् 1930 के उपरान्त भारतीय सेवाओं को दो वर्गों में विभक्त किया गया जिन्हें ‘अखिल भारतीय सेवाएँ’ (All India Services) तथा ‘केन्द्रीय सेवाएँ’ (Central Services) कहा गया ।
अखिल भारतीय सेवाओं में प्रारम्भ में दो ही सेवाएँ थीं:
(i) भारतीय प्रशासनिक सेवाएँ (Indian Administrative Services),
(ii) भारतीय विदेश सेवाएँ (Indian Foreign Services) ।
बाद में इस वर्ग में कुछ अन्य सेवाएँ भी जोड़ दी गयीं ।
स्वतन्त्रता के पश्चात् संविधान के अनुच्छेद 312 (2) के अनुसार ‘भारतीय प्रशासनिक सेवा’ और ‘भारतीय पुलिस सेवा’ के नाम से दो ही अखिल भारतीय सेवाओं का उल्लेख था किन्तु सन् 1966 में ‘भारतीय वन सेवा’ नामक तीसरी अखिल भारतीय सेवा का गठन किया गया ।
वर्तमान में कुल मिलाकर तीन अखिल भारतीय सेवाएँ हैं:
(i) भारतीय प्रशासनिक सेवा (Indian Administrative Services),
(ii) भारतीय पुलिस सेवा (Indian Police Service),
(iii) भारतीय वन सेवा (Indian Forest Service) ।
बाद में इस वर्ग में कुछ अन्य सेवाएँ भी जोड़ दी गयीं । अखिल भारतीय सेवाओं के सदस्यों की भर्ती प्रशिक्षण वेतन सेवा की शर्तें एवं अनुशासनात्मक कार्यवाही आदि के लिए केन्द्रीय सरकार उत्तरदायी है ।
दूसरी श्रेणी की सेवाएँ ‘केन्द्रीय सेवाएँ’ हैं जिनके सदस्यों की नियुक्ति केन्द्रीय सरकार के विभिन्न विभागों में की जाती है ।
केन्द्रीय सेवाओं के अधिकारियों को चार वर्गों में विभक्त किया गया है:
(I) केन्द्रीय सेवा समूह ‘क’ – इन सेवाओं की संख्या में निरन्तर वृद्धि हुई है । वर्तमान में इनकी संख्या 59 है ।
इस समूह की सेवाएँ निम्नलिखित हैं:
(1) भारतीय विदेश सेवा (Indian Foreign Service),
(2) भारतीय डाक सेवा (Indian Post Service),
(3) भारतीय डाक और तार लेखा और वित्त सेवा (Indian P & T and Finance Service),
(4) भारतीय रेलवे लेखा सेवा (Indian Railway Account Service),
(5) भारतीय रेलवे यातायात सेवा (Indian Transportation Service),
(6) भारतीय रेलवे कार्मिक सेवा (Indian Railway Personnel Service),
(7) भारतीय रक्षा लेखा सेवा (Indian Defence Account Service),
(8) भारतीय आयुध फैक्ट्री संघ (Indian Ordnance Factory Service),
(9) भारतीय लेखा परीक्षा एवं लेखा सेवा (Indian Audit and Account Service),
(10) केन्द्रीय सूचना सेवा (Central Information Service),
(11) भारतीय सीमा और केन्द्रीय उत्पाद शुल्क सेवा (Indian Customer and Excise Service),
(12) भारतीय नागरिक लेखा सेवा (Indian Civil Account Service),
(13) केन्द्रीय व्यापार सेवा (Central Trade Service),
(14) भारतीय राजस्व संघ (Indian Revenue Service),
(15) भारतीय रक्षा चल सम्पत्ति सेवा (Indian Defence Estate Service),
(16) केन्द्रीय सचिवालय सेवा (Central Secretariat Service),
(17) रेलवे मराडल सचिवालय (Railway Board Secretariat Service),
(18) सेना मुख्यालय नागरिक सेवा (Military Headquarters Civilians Service),
(19) सीमा शुल्क मूल्यांकन सेवा (Customs Appraisons Service),
(20) भारतीय प्रसारण (कार्यक्रम) सेवा (Indian Broadcasting (Programme) Service),
(21) भारतीय डाक-तार संचालन सेवा (Indian P & T Operation Service),
(22) भारतीय रेल विद्युत यान्त्रिकी सेवा (Indian Railway Electric Mechanical Service),
(23) भारतीय सांकेतिक यान्त्रिक रेल सेवा (Indian Signals Mechanical Rail Service),
(24) भारतीय यान्त्रिक अभियात्री रेल सेवा (Indian Mechanical Passengers Rail Service),
(25) भारतीय रेल अभियात्री सेवा (Indian Railway Passenger Service),
(26) भारतीय रेल भण्डार सेवा (Indian Railway Store Service),
(27) सेना यान्त्रिक सेवा (Army Engineering Service),
(28) भारतीय जल आयुध सेवा (Indian Naval Service),
(29) केन्द्रीय ऊर्जा यान्त्रिक सेवा (तकनीकी) [(Central Energy Mechanical Service Technical)]
(30) केन्द्रीय ऊर्जा यान्त्रिक सेवा (Central Energy Mechanical Service),
(31) भारतीय निरीक्षण सेवा (Central Energy Mechanical Service),
(32) भारतीय पूर्ति सेवा (Indian Supply Service),
(33) केन्द्रीय विद्युत यान्त्रिक सेवा (Central Electric Mechanical Services),
(34) केन्द्रीय इंजीनियरंग सेवा (Central Engineering Service),
(35) केन्द्रीय जल अभियान्त्रिकी सेवा (Central Water Engineering Service),
(36) केन्द्रीय सड़क निर्माण अभियान्त्रिक सेवा (Central Road Engineering Service),
(37) भारतीय प्रसारण (अभियान्त्रिकी) सेवा [Central Broadcasting (Engineering) Service],
(38) सीमा सड़क अभियान्त्रिक सेवा (Border Road Engineering Service),
(39) समुद्र पार संचार सेवा लपटा (Over Seas Communication Service),
(40) रेलवे चिकित्सा सेवा (Railway Medical Service),
(41) केन्द्रीय स्वास्थ्य सेवा (Central Health Service),
(42) भारतीय आर्थिक सेवा (Indian Economic Service),
(43) भारतीय सांख्यिकी सेवा (Indian Statistics Service),
(44) भारतीय लागत लेखा सेवा (Indian Costs Accounting Service),
(45) भारतीय आयुध कारखाना स्वास्थ्य सेवा (Indian Ordnance Factory Health Service),
(46) रक्षा अनुसन्धान और विकास सेवा (Defence Research and Development Service),
(47) रक्षा वायुयान चलन प्रमाप आश्वासन सेवा (Defence Research and Development Service),
(48) भारतीय विधिक सेवा (Indian Judicial Service),
(49) कम्पनी विधि परिषद् सेवा (Company Law Council Service),
(50) भारतीय नमक सेवा (Indian Salt Service),
(51) रक्षा प्रभाव आश्वासन सेवा (Defence Effects Assurance Service),
(52) भारतीय रक्षा अभियान्त्रिकी सेवा (Indian Defence Engineering Service),
(53) डाक एवं तार भवन निर्माण सेवा (P & T Building Construction Service),
(54) सेना अभियान्त्रिकी सर्वेक्षण सेवा (Army Engineering Survey Service),
(55) सेवा अभियान्त्रिकी शिल्पकार सेवा (Army Engineering Artisan Service),
(56) भारतीय श्रम सेवा (Indian Labour Service),
(57) केन्द्रीय जल अभियान्त्रिकी सेवा (सिविल) [Central Water Engineering Service (Civil)],
(58) केन्द्रीय विद्युत् एवं यान्त्रिकी सेवा (Central Electrical and Mechanical Service),
(59) केन्द्रीय सचिवालय सरकारी भाषा सेवा (Central Secretariat Official Language Service) ।
(II) केन्द्रीय सेवा समूह ‘ख’- द्वितीय श्रेणी की इन सेवाओं में भर्ती- ‘सीधी भर्ती’ एवं ‘पदोन्नति द्वारा’ दोनों विधियों से की जाती थी ।
इस वर्ग की प्रमुख सेवाएँ निम्नलिखित हैं:
(1) केन्द्रीय सचिवालय सेवा (Central Secretariat Service),
(2) जन अधिकारी सेवा (Public Officer Service),
(3) केन्द्रीय स्वास्थ्य सेवा (Central Health Service),
(4) भारतीय जलवायु सेवा (Indian Climate Service),
(5) डाक निरीक्षण सेवा राष्ट्र (Post Inspection Service),
(6) पोस्ट मास्टर सेवा (Post Master Service),
(7) तार यान्त्रिक एवं बेतार सेवा (Telegram Mechanical and Wireless Service),
(8) रेलवे मण्डल सचिवालय सेवा (Railway Board Secretariat Service),
(9) भारतीय विदेश सेवा (Indian Foreign Service),
(10) सशस्त्र बल मुख्यालय नागरिक सेवा (Arms Force Headquarter Civil Service),
(11) सीमा शुल्क मूल्यांकन सेवा (Customs Apprisons Service),
(12) दिल्ली और अण्डमान-निकोबार द्वीपसमूह नागरिक सेवा (Delhi,Andaman-Nicobar Islands Civil Service),
(13) पॉण्डिचेरी नागरिक सेवा (Pondicherry Civil Service),
(14) दिल्ली और अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह पुलिस सेवा (Delhi, Andaman-Nicobar Island Police Service),
(15) पॉण्डिचेरी पुलिस सेवा (Pondicherry Police Service),
(16) केन्द्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल में सहायक कमाण्डेंट पद (Post of Assistance Commandant in Central Industrial Security Force),
(III) केन्द्रीय सेवा समूह’ ‘ग’- तृतीय श्रेणी अर्थात् समूह ‘ग’ में लिपिक वर्गीय तथा मन्त्रालयीय पद हैं । ‘केन्द्रीय सचिवालय लिपिकीय सेवा’ (Central Secretariat Clerical Service), से सम्बन्धित अधिकांश पद इसी समूह में आते हैं ।
(IV) केन्द्रीय सेवा समूह ‘घ’- समूह ‘घ’ की सेवाओं को चतुर्थ श्रेणी की सेवाएँ भी कहा जाता है । इस समूह के अन्तर्गत चपरासी, सफाईवाला, दफ्तरी आदि की सेवाएँ आती हैं । इस समूह के लिए अनिवार्य शैक्षिक योग्यताएँ नहीं हैं । कुछ पदों के लिए मिडिल स्तरीय शिक्षा को अनिवार्य किया गया है ।
‘पाँचवें केन्द्रीय वेतन आयोग’ की रिपोर्ट के अनुसार- ”सरकारी कर्मचारियों में यह भावना लाने की जरूरत है कि वे सब एक ही एकीकृत प्रशासनिक तन्त्र का हिस्सा हैं वर्गीकरण या नाम की ऐसी कोई भी प्रणाली जो उनकी देसी सोच में किसी भी तरह से बाधक हो समाप्त कर देनी चाहिए ।”
भारत में पद-वर्गीकरण की आलोचना (Criticism of Position Classification in India):
भारत में पद-वर्गीकरण की आलोचना निम्नलिखित आधारों पर की जाती है:
(i) यह वर्गीकरण वैज्ञानिक नहीं है । इसमें पदों के कार्यों व दायित्वों का समुचित विश्लेषण करने के लिए आधुनिक पद्धति का अनुसरण नहीं किया गया है ।
(ii) वर्गीकरण का कोई सैद्धान्तिक आधार नहीं है । प्रथम व द्वितीय श्रेणी के पदाधिकारियों में योग्यता के आधार पर नहीं वरन् वेतन के आधार पर भेद किया जाता है ।
(iii) पद वर्गीकरण में ग्रेडों की संख्या अत्यधिक होना भी आलोचना का विषय रहा है ।
(iv) एक सेवा में कार्यरत कर्मचारियों का दूसरी सेवा में कार्यरत कर्मचारियों से कोई सम्बन्ध नहीं है । यद्यपि सभी सेवाओं का संचालन लोक सेवा के नियमों के अधीन होता है तथापि वेतन सम्बन्धी नियम एक जैसे नहीं हैं । राष्ट्रीय एकता की दृष्टि से यह अनुचित है ।
(v) भारतीय प्रशासनिक सेवा को अन्य सेवाओं की तुलना में अधिक सुविधा व प्रतिष्ठा प्राप्त है । न केवल सरकारी क्षेत्र में वरन् सामाजिक क्षेत्र में भी उन्हें उच्चतम प्रतिष्ठा प्राप्त है । इससे जातीय भावना को प्रोत्साहन मिलता है ।
उपर्युक्त आलोचनाओं के बावजूद यह भी नितान्त सत्य है कि बिना वर्गीकरण के कार्य नहीं चल सकता था ।
6. पद-वर्गीकरण के लाभ व हानियाँ (Advantages and Disadvantages of Position Classification):
पद-वर्गीकरण से होने वाले प्रमुख लाभ अग्रलिखित हैं:
(1) यदि विभिन्न विभागों के कर्मचारियों के लिए भिन्न-भिन्न प्रतियोगिताएँ आयोजित की जायेंगी तो सुविधाजनक होगा किन्तु इस विविध में पदों को अलग- अलग बाँट दिया जाता है तथा उसके लिए योग्यताएँ निर्धारित कर परीक्षा कराई जाती है ।
(2) पद-वर्गीकरण से वेतन निर्धारण समस्या भी दूर हो जाती है, क्योंकि इसमें कर्मचारी के स्थान पर वर्ग को मानक माना जाता है ।
(3) पदोन्नति प्रक्रिया में भी सरलता रहती है । पदसोपानीय व्यवस्था को ध्यान में रखकर पदोन्नति की जाती है ।
(4) कर्मचारियों में एकता व समानता की स्थापना होती है जिससे कि पारस्परिक सहयोग की भावना को प्रोत्साहन मिलता है ।
(5) बजट बनाने और लेखा तैयार करने के कार्य में सुविधा रहती है । यदि पदों में भलता होती है तो बजट व लेखा तैयार करने में असुविधा रहती है ।
पद-वर्गीकरण की कुछ हानियाँ भी हैं जो इस प्रकार हैं:
(i) कार्य व दायित्व आदि निश्चित होने से उदासीनता व रूढिवादिता आ जाती है तथा अस्थायी परिवर्तनों का विरोध किया जाता है ।
(ii) यद्यपि इसमें पदोन्नति प्रक्रिया सरल होती है तथापि पदोन्नति के अवसर सीमित होते हैं ।
(iii) पद-वर्गीकरण में कर्मचारी नियमों से बँधा होने के कारण अपनी योग्यता का पूर्ण उपयोग नहीं कर पाता है । इस प्रकार इस व्यवस्था में वैयक्तिक प्रतिभा को पुरस्कृत नहीं किया जा सकता है ।
(iv) पद-वर्गीकरण से कार्मिक व्यवस्था में कठोरता आ जाती है ।
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(v) पद-वर्गीकरण का एक दोष यह है कि उच्च वर्ग के अधिकारी श्रेष्ठता की भावना से युक्त होते हैं, जबकि निम्न श्रेणी के कर्मचारी हीनता का अनुभव करते हैं । इससे वैमनस्य की भावना आती है ।
(vi) कर्मचारियों को कार्यालय में एक कार्य से हटाकर सुविधापूर्वक दूसरे कार्य पर नहीं लगाया जा सकता है ।
उपर्युक्त दोषों के बावजूद इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता है कि पद-वर्गीकरण एक लाभकारी पद्धति है ।
जैसा कि हरमन फाइनर भी लिखते हैं:
”सभी देशों का अनुभव बताता है कि ऐसे वर्गीकरण की कितनी आवश्यकता है । बिना वर्गों के न तो गणना की जा सकती है न तुलना; न ही सापेक्षिक व्यक्तित्व निर्धारण और न ही मूल्यांकन सर्व श्रेष्ठ वर्गीकरण राज्य सेवा के दोषों की मात्रा न्यूनतम कर देता है ।”