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Read this article in Hindi to learn about the role of public administration in modern states.
आधुनिक लोकतान्त्रिक समाजवादी राज्य में लोक प्रशासन (Public Administration in a Modern Democratic Socialist State):
नवोदित प्रजातान्त्रिक समाजवादी राष्ट्रों के समक्ष राजनीतिक अस्थिरता तथा सामाजिक व आर्थिक विषमता की समस्याएँ चुनौतियों के रूप में विद्यमान हैं । राष्ट्रनिर्माण एवं राष्ट्र विकास जैसे लक्ष्यों की प्राप्ति इन समस्याओं का निपटारा किये बिना सम्भव नहीं है और इनकी समाप्ति का सर्वाधिक महत्वपूर्ण साधन लोक प्रशासन ही है ।
इन राष्ट्रों में लोक प्रशासन का दायित्व है कि वह पुराने व नवीन मूल्यों के मध्य सामंजस्य स्थापित करें । स्वतन्त्रता, समानता व न्याय के नवीन उद्देश्यों की स्थापना करें तथा राष्ट्र को विकास के मार्ग पर अग्रसर करें । यह भी आवश्यक है कि प्रशासक स्वयं को जनता का मालिक नहीं वरन् सेवक समझे । राजनीतिज्ञों व प्रशासकों के मध्य समन्वयात्मक सम्बन्ध होना परमावश्यक है । जनता के प्रतिनिधियों को प्रशासन की समीक्षा करने का पूर्ण अधिकार होना चाहिये ।
प्रजातान्त्रिक समाजवादी राज्यों में लोक प्रशासन को निम्नलिखित भूमिका निभानी चाहिये:
(i) सरकार की समस्त कार्यवाहियों का केन्द्र व्यक्ति होना चाहिये । जनकल्याणकारी कार्यों को प्राथमिकता देते हुए ही प्रशासनिक दायित्वों का निर्वाह किया जाना चाहिये ।
(ii) लोगों की प्रशासन में पूर्ण सहभागिता (Participation) होनी चाहिये ।
जनप्रतिनिधियों, परामर्शदात्री समितियों एवं विभिन्न हित-समूहों को विशेष महत्व दिया जाना चाहिये ।
(iii) लोकतन्त्रात्मक शासन में उद्यमों का संचालन सरकारी अभिकरणों एवं नागरिकों के द्वारा मिलजुलकर सहकारी आधार पर किया जाता है ।
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(iv) अधिकांश प्रशासकीय नीतियाँ जनता की प्रतिक्रिया जानने के उपरान्त ही क्रियान्वित की जाती हैं ।
(v) लोक प्रशासकों का दायित्व होता है कि राष्ट्रीय एवं जनता के हित की प्रत्येक समस्या पर वे राजनेताओं (मन्त्रियों) से सलाह-मशविरा करें क्योंकि मन्त्री जनता के प्रतिनिधि ही होते हैं ।
(vi) यद्यपि प्रशासन पर राजनीतिक नियन्त्रण होता है तथापि प्रजातान्त्रिक दृष्टि से देश के संविधान व कानून के अनुसार एक स्वतन्त्र एवं निष्पक्ष निकाय की भी स्थापना की जानी चाहिये जिससे कि प्रशासनिक अधिकारी अपने अधिकारों का दुरुपयोग न कर सकें ।
(vii) प्रशासनिक संगठन में रचनात्मकता एवं एकता होनी चाहिये जिससे कि सभी कर्मचारी समन्वित रूप से लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु प्रयासरत रहें ।
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(viii) लोक प्रशासन में मानवीय तत्व को सर्वोपरि महत्व दिया जाना चाहिये ।
(ix) लोक प्रशासकों को राजनीतिक निष्पक्षता का आचरण करना चाहिये तथा सत्तारूढ़ दल में परिवर्तन के घटनाक्रम से अप्रभावित रहना चाहिये ।
(x) लोकतन्त्रीय प्रशासन में प्रबन्धकों एवं कर्मचारियों के मतभेदों को दूर करने के लिये ‘समायोजक संस्थाओं’ की स्थापना की जाती है ।
(xi) लोक प्रशासकों को ‘अभिजन वर्ग’ (Elite Class) के रूप में नहीं वरन् जनसेवक (Public Servant) के रूप में कार्य करना चाहिये ।
अत: स्पष्ट है कि आधुनिक समाजवादी राज्य में लोक प्रशासन लोकतान्त्रिक शैली अपनाकर ही सफल हो सकता है ।
कल्याणकारी राज्य में लोक प्रशासन (Public Administration in a Welfare State):
वर्तमान में विश्व के अधिकांश देशों में राज्य का कल्याणकारी रूप ही देखने को मिलता है । कल्याणकारी राज्य के कार्यों एवं उत्तरदायित्वों में उत्तरोत्तर वृद्धि होती जा रही है आज प्रशासन के द्वारा सकारात्मक कार्य ही सम्पन्न किये जाते हैं । एक लोक-कल्याणकारी राज्य समाज के राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक आदि सभी क्षेत्रों में व्यक्ति के जीवन को नियन्त्रित करने का प्रयास करता है । इसके साथ ही समानता, स्वतन्त्रता व न्याय के आदर्शों की स्थापना करता है ।
लोक कल्याणकारी राज्य के अस्तित्व में आने के लिये कई कारण उत्तरदायी रहे हैं जिनमें से प्रमुख हैं:
(a) समाजवाद की विचारधारा,
(b) प्रजातन्त्रात्मक शासन-व्यवस्था,
(c) निजी क्षेत्र में निरपेक्ष एवं निर्बाध सत्ता के विकास पर नियन्त्रण ।
एक लोक-कल्याणकारी राज्य में राज्य की सम्प्रभुता जनता में निहित रहती है तथा जनता के प्रतिनिधि शासन-व्यवस्था का संचालन करते हैं । प्रशासनिक कार्य जनहित के लक्ष्य को समक्ष रखकर ही सम्पादित किये जाते हैं । संविधान के अन्तर्गत मौलिक अधिकारों एवं नीति-निदेशक तत्वों की व्यवस्था की जाती है ।
एक लोक-कल्याणकारी राज्य अपनी नीतियों को इस प्रकार संचालित करता है जिससे कि निम्नलिखित लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सके:
(i) नागरिकों को जीविका के पर्याप्त साधन प्राप्त हो सकें ।
(ii) अर्थव्यवस्था का प्रबन्ध इस प्रकार किया जाये कि धन के केन्द्रीयकरण को रोका जा सके तथा समान वितरण की स्थिति उत्पन्न हो सकें ।
(iii) समान कार्य के लिये स्त्री-पुरुषों को समान वेतन दिया जाये ।
(iv) समाज की भौतिक सम्पत्ति को इस प्रकार विभक्त किया जाये जिससे कि ‘सामूहिक हित’ के लक्ष्य की प्राप्ति सम्भव हो सके ।
(v) श्रमिकों के शोषण को रोका जाये ।
भारत में ‘नीति-निदेशक तत्वों’ (Directive Principles) के अन्तर्गत इन लक्ष्यों को स्थान दिया गया है तथा पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से इनकी प्राप्ति का प्रयास किया जा रहा है जिससे कि देश का सर्वागीण विकास सम्भव हो सके ।
निस्संदेह भारतीय लोक प्रशासन के कार्यक्षेत्र का व्यापक विस्तार हुआ है । ग्रामीण विकास हेतु ‘सामुदायिक विकास योजनाएँ’ आरम्भ की गई हैं । इन योजनाओं के अन्तर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में दैनिक जीवन की सभी आवश्यक सुविधाएँ उपलब्ध कराने का प्रयास किया जाता है । भारतीय लोक प्रशासन नगरीय बस्तियों व नगरीय जीवन की समस्याओं को सुलझाने में भी सहयोग प्रदान करता है ।
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भारत अपने इन्हीं प्रयासों के द्वारा देश में ‘लोकतान्त्रिक समाजवादी समाज’ की स्थापना में संलग्न है । संविधान द्वारा नागरिकों को प्रदत्त राजनीतिक अधिकारों के माध्यम से आर्थिक समानता के लक्ष्य को प्राप्त करने का प्रयास किया जा रहा है । इन राज्यों का लोक प्रशासन अन्य लोकतान्त्रिक राज्यों की अपेक्षा अधिक सक्रिय एवं नागरिकों के जीवन से अधिक सम्बद्ध होता है ।
साम्यवादी राज्यों में लोक प्रशासन (Public Administration in Communist States):
साम्यवादी देशों की विचारधारा मार्क्स व एंजिल्स की रचनाओं पर आधारित है । ये देश राज्य को बुर्जुआ वर्ग की संस्था मानते हैं । यह वर्ग आर्थिक शक्ति का स्वामी होता है तथा निर्धन लोगों का अमानुषिक शोषण करता है ।
बुर्जुआ वर्ग यह शोषण राज्य की संस्था के माध्यम से करता है । साम्यवाद के समर्थकों की मान्यतानुसार अन्ततोगत्वा राज्य जैसी संस्था की कोई आवश्यकता नहीं रहेगी तथा शोषक व शोषितों का वर्ग-विभेद भी समाप्त हो जायेगा किन्तु इस स्थिति में पहुंचने से पूर्व राज्य का अस्तित्व अनिवार्य है अन्य शब्दों में कहा जा सकता है कि पूँजीवाद का उन्मूलन करना साम्यवादी राज्य का प्रमुख लक्ष्य है ।
राज्य का दायित्व है कि वह साम्यवाद विरोधी शक्तियों को कुचल दे तथा न केवल राजनीतिक वरन् जीवन के अन्य सभी पहलुओं की भी निगरानी रखे ।
साम्यवादी राज्य के क्षेत्राधिकार में व्यक्ति के जीवन के सभी पहलू आ जाते हैं तथा राज्य उन पर कड़ा नियन्त्रण रखता है । यही कारण है कि साम्यवादी राज्य को प्राय: ‘सर्वाधिकारवादी राज्य’ (Totalitarian State) भी कहा जाता है । विगत कई वर्षों से साम्यवादी राज्यों में निरन्तर परिवर्तन हो रहे हैं ।