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Here is an essay on ‘Union Public Service Commission’ especially written for school and college students in Hindi language.
Essay # 1. संघीय लोक सेवा आयोग का अर्थ (Meaning of Union Public Service Commission):
भारत में संघीय लोक सेवा आयोग की स्थापना संविधान के अनुच्छेद 315 के अन्तर्गत सन् 1950 में की गयी जिसमें चार सदस्यों सहित एक अध्यक्ष होता था । समयानुसार इसकी सदस्य संख्या में परिवर्तन होता रहता है ।
आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति संविधान के अनुच्छेद 316 (1) के प्रावधानों के अन्तर्गत करता है राज्य के लोक सेवा आयोग के अध्यक्षों एवं सदस्यों की नियुक्ति राज्य के राज्यपाल करते हैं किन्तु संघीय लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों को स्वयं राष्ट्रपति नियुक्त करते हैं ।
सन् 1924 में ‘ली आयोग’ (Lee Commission) ने कहा था कि आयोग (संघीय लोक सेवा आयोग) के अध्यक्ष सहित सदस्यों का चयन करते समय राष्ट्रपति को यह तथ्य दृष्टिगत रखता होता है कि लगभग आधे सदस्य ऐसे होने चाहिए जिन्होंने पहले कम-से-कम दस वर्ष तक किसी केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार के अधीन कार्य किया हो ।
संघीय लोक सेवा आयोग के सदस्यों व अध्यक्ष का कार्यकाल पद ग्रहण करने की तिथि से छ: वर्ष तक अथवा 65 वर्ष की आयु तक (जो भी पहले हो) हो सकता है । इसी प्रकार राज्य लोक सेवा आयोग में यह अवधि छ: वर्ष तक अथवा 62 वर्ष है ।
आयोग के सदस्यों के वेतन भत्ते एवं अन्य शर्तें निर्धारित करने का अधिकार राष्ट्रपति को प्राप्त है । संघीय लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष को 90,000 रुपए तथा सदस्यों को 80,000 रुपये मासिक वेतन मिलता है । राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्षों व सदस्यों का वेतन विभिन्न राज्यों में भिन्न-भिन्न है ।
संविधान के अनुच्छेद 317 में आयोग के सदस्यों को अपदस्थ करने की प्रक्रिया का वर्णन है । दुराचार प्रमाणित होने पर राष्ट्रपति आयोग के सदस्यों को अपदस्थ कर सकता है । संविधान के द्वारा राष्ट्रपति को ही यह अधिकार दिया गया है कि वह आयोग के स्टाफ के सदस्यों की संख्या व सेवा-शर्तें निर्धारित करें ।
औपचारिक रूप में सभी नियुक्तियाँ आयोग के अध्यक्ष द्वारा की जाती हैं आयोग के स्थायी स्टाफ में सचिव व अन्य अधिकारी आते हैं ।
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Essay # 2. संघीय लोक सेवा आयोग के कार्य (Functions of Union Public Service Commission):
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 320 के अन्तर्गत ‘लोक सेवा आयोग’ को निम्नलिखित कार्य सौंपे गये हैं:
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(i) केन्द्र व राज्यों की सेवाओं में नियुक्ति हेतु सरकार को परामर्श देना एवं परीक्षाओं का आयोजन कराना ।
(ii) दो या दो से अधिक राज्यों के द्वारा आग्रह करने पर भर्ती हेतु नियोजन में संघीय लोक सेवा आयोग द्वारा सहायता देना ।
(iii) आयोग निम्नांकित विषयों पर केन्द्र व राज्यों को परामर्श दे सकता है:
(a) भर्ती विधियों के बारे में,
(b) नियुक्ति हेतु अपनाये जाने वाले सिद्धान्तों पर,
(c) स्थानान्तरण एवं पदोन्नति के मामलों में,
(d) कानूनी व्यय के सम्बन्ध में,
(e) अनुशासनात्मक मामलों पर,
(iv) राष्ट्रपति के द्वारा सौंपा गया कोई भी मामला जिस पर शासन आयोग से परामर्श चाहता है ।
डॉ. मुतालिब ने आयोग के कार्यों को निम्नलिखित तीन श्रेणियों में विभक्त किया है:
(1) कार्यकारी- परीक्षाओं के माध्यम से लोक सेवकों का चयन करना ।
(2) नियामक- भर्ती की पद्धतियाँ, पदोन्नति व स्थानान्तरण आदि ।
(3) अर्द्धन्यायिक- अनुशासन के सम्बन्ध में परामर्श देना ।
लोक सेवा आयोग ने 1975 में एक समिति नियुक्त की जिसके सभापति डॉ. कोठारी थे । समिति की सिफारिशों को 1979 से लागू कर दिया गया । 1988 में सतीश चन्द्र की अध्यक्षता में एक अन्य समिति नियुक्त की गई । इस समिति ने 1989 में अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत करते हुए सिफारिश की प्रतियोगिता परीक्षाओं में ‘चिकित्सा’ एवं ‘अभियान्त्रिकी’ विषयों के पाठ्यक्रम को भी सम्मिलित किया जाये मुख्य परीक्षा में ‘निबन्ध’ का भी प्रश्न पत्र हो तथा व्यक्तित्व परीक्षा के अंक 250 से बढ़ाकर 300 कर दिया जायें । समिति की इन सिफारिशों को 1993 से लागू कर दिया गया ।
उच्चतर लोक सेवाओं की परीक्षाओं में सम्मिलित होकर भारत प्रशासनिक सेवा, भारतीय विदेश सेवा, भारतीय पुलिस सेवा एवं प्रथम श्रेणी के केन्द्रीय सेवाओं के अधिकांश पदों के लिए आवेदन किया जा सकता है ।
अभ्यर्थी एक ही परीक्षा देने के उपरान्त अपनी श्रेष्ठता के आधार पर इनमें से किसी भी सेवा में चयनित हो सकता है ।
सिविल सेवा प्रतियोगी परीक्षा दो चरणों में सम्पन्न होती है:
(i) प्रारम्भिक परीक्षा (वस्तुपरक),
(ii) मुख्य परीक्षा (लिखित एवं साक्षात्कार) ।
प्रारम्भिक परीक्षा में दो प्रश्न-पत्र होते हैं जिनमें बहुविकल्पीय प्रश्न होते हैं:
(a) सामान्य अध्ययन 150 अंक,
(b) ऐच्छिक विषय 300 अंक ।
प्रारम्भिक परीक्षा में सफल अभ्यर्थी मुख्य परीक्षा में सम्मिलित हो सकते हैं । मुख्य परीक्षा में लिखित परीक्षा व साक्षात्कार होते हैं । लिखित परीक्षा में कुल 9 प्रश्न-पत्र होते हैं लिखित परीक्षा को उत्तीर्ण करने के बाद साक्षात्कार होता है । पहले साक्षात्कार 250 अंकों का होता था । किन्तु 1993 में सतीशचन्द्र समिति की सिफारिश के बाद 300 अंकों का कर दिया गया ।
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सन् 2011 की प्रणाली व पाठ्यक्रम:
सन् 2011 में सिविल सेवा की परीक्षाओं में पुन: कुछ परिवर्तन किये गये । ये परिवर्तन मुख्यतया प्रारम्भिक परीक्षा एवं पाठ्यक्रम से सम्बन्धित हैं ।
प्रारम्भिक परीक्षा 2011 की योजना:
अब प्रारम्भिक परीक्षा में वैकल्पिक प्रश्न के स्थान पर ‘सिविल सर्विस एप्टीट्यूट टेस्ट’ (CSAT) होगा । ‘सामान्य अध्ययन’ तथा (CSAT) दोनों प्रश्न-पत्र 200-200 अंकों के होंगे तथा प्रत्येक की समयावधि दो घण्टे होगी परीक्षा के पाठ्यक्रम में भी आवश्यक परिवर्तन किए गये हैं । इस नए प्रारूप को मई, 2011 से लागू कर दिया गया है ।
सिविल सेवाओं की परीक्षाओं आदि का आयोजन संघ लोक सेवा आयोग द्वारा किया जाता है संघ लोक सेवा आयोग के माध्यम से लोक सेवाओं के वर्ग 1 व 2 में भर्ती की जाती रही है । किन्तु 1975 तक तृतीय श्रेणी के कर्मचारियों की भर्ती हेतु कोई उपकरण नहीं था । सन् 1975 से इस दायित्व की पूर्ति ‘कर्मचारी चयन आयोग’ (Staff Selection Commission) द्वारा की जा रही है ।